Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक Textbook Exercise Questions and Answers.
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पृष्ठ 21 (आओ इन पर विचार करें)
प्रश्न 1.
विभिन्न क्षेत्रकों की परस्पर निर्भरता दिखाते हुए उपर्युक्त सारणी (पाठ्यपुस्तक में देखें) को भरें।
उत्तर:
तालिका 2.1 : आर्थिक गतिविधियों के उदाहरण
उदाहरण |
यह क्या प्रदर्शित करता है? |
कल्पना करें कि यदि किसान किसी चीनी मिल को गन्ना बेचने से इंकार कर दें, तो क्या होगा? मिल बंद हो जाएगी। |
यह द्वितीयक या औद्योगिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो प्राथमिक क्षेत्रक पर निर्भर है। |
कल्पना करें कि यदि कम्पनियाँ भारतीय बाजार से कपास नहीं खरीदतीं और अन्य देशों से कपास आयात करने का निर्णय करती हैं, तो कपास की खेती का क्या होगा? भारत में कपास की खेती कम लाभकारी रह जाएगी और यदि किसान शीघ्रता से अन्य फसलों की ओर उन्मुख नहीं होते हैं, तो वे दिवालिया भी हो सकते हैं तथा कपास की कीमत गिर जाएगी। |
यह प्राथमिक क्षेत्रक का उदाहरण है। यह पूर्ण रूप से द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भर है। |
किसान, ट्रैक्टर, पम्पसेट, बिजली, कीटनाशक और उर्वरक जैसी अनेक वस्तुएँ खरीदते हैं। कल्पना करें कि यदि उर्वरकों और पम्पसेटों की कीमत बढ़ जाती है, तो क्या होगा? खेती पर लागत बढ़ जाएगी और किसानों का लाभ कम हो जाएगा। |
यह प्राथमिक क्षेत्रक का उदाहरण है, जो द्वितीयक क्षेत्रक पर निर्भर है। |
औद्योगिक और सेवा क्षेत्रकों में काम करने वाले लोगों को भोजन की आवश्यकता होती है। कल्पना करें कि यदि ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी है और ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियाँ, दूध इत्यादि ले जाने से इंकार कर दिया, तो क्या होगा? शहरी क्षेत्रों में भोजन की कमी ही जाएगी और किसान अपने उत्पाद बेचने में असमर्थ हो जायेंगे। |
यह सेवा क्षेत्रक और प्राथमिक क्षेत्रक का उदाहरण है। यहाँ इनकी आपस में निर्भरता बतलायी गयी है। |
प्रश्न 2.
पुस्तक में वर्णित उदाहरणों से भिन्न उदाहरणों के आधार पर प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों के अन्तर की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक- इस क्षेत्रक में वे गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं जिनमें प्रकृति से सीधे उत्पाद प्राप्त किया जाता है जैसे किसी कृषक द्वारा भूमि से अनाज उत्पादित करना; मछली पालन, खानों में खनिज उत्पादन, पशुपालन।
द्वितीयक क्षेत्रक- इस क्षेत्रक में प्रकृति से प्राप्त उत्पादों का रूप परिवर्तित किया जाता है जैसे खेती से प्राप्त कपास से कपड़ा बनाना; कागज निर्माण उद्योग, फर्नीचर उद्योग।
तृतीयक क्षेत्रक- इसमें विभिन्न प्रकार की सेवाओं को शामिल किया जाता है, जैसे-अध्यापक, चिकित्सक, वकील, दुकानदार, व्यापारी आदि।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित व्यवसायों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रकों में विभाजित करें।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्रक में शामिल गतिविधियाँ- फूल की खेती करने वाला, मछुआरा, माली, मधुमक्खी पालक।
द्वितीयक क्षेत्रक में शामिल गतिविधियाँ- टोकरी बुनकर, दियासलाई कारखाना में श्रमिक, कुम्हार।
तृतीयक क्षेत्रक में शामिल गतिविधियाँ- दर्जी, दूध विक्रेता, पुजारी, कूरियर पहुँचाने वाला, महाजन, अन्तरिक्ष यात्री, कॉल सेन्टर का कर्मचारी।
पृष्ठ 23 (आओ इन पर विचार करें)
प्रश्न 1.
विकसित देशों के इतिहास क्षेत्रकों में हुए परिवर्तन के सम्बन्ध में क्या संकेत करते हैं?
उत्तर:
विकसित देशों का इतिहास यह संकेत करता है कि विकास के प्रारम्भिक चरण में प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान सबसे अधिक होता है तथा विकास के साथ-साथ विनिर्माण क्षेत्रक अर्थात् द्वितीयक क्षेत्रक का योगदान बढ़ता जाता है तथा जब देश विकसित हो जाता है तब उस देश की राष्ट्रीय आय अथवा उत्पाद में तृतीयक क्षेत्रक अथवा सेवा क्षेत्रक का योगदान सबसे अधिक होता है। विकसित देशों में श्रम शक्ति का अधिकांश भाग सेवा क्षेत्रक में नियोजित रहता है तथा सबसे कम भाग प्राथमिक क्षेत्रक में नियोजित रहता है।
पृष्ठ 24 (आओ इन पर विचार करें)
(आरेख 1 का अवलोकन करते हुए निम्नलिखित का उत्तर दें।)
प्रश्न 1.
1973-74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
1973-74 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक प्राथमिक क्षेत्रक था।
प्रश्न 2.
2013-14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक कौन था?
उत्तर:
वर्ष 2013-14 में सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्रक तृतीयक क्षेत्रक था।
प्रश्न 3.
क्या आप बता सकते हैं कि तीस वर्षों में किस क्षेत्रक में सबसे अधिक संवद्धि हई?
उत्तर:
तीस वर्षों में तृतीयक क्षेत्रक में सबसे अधिक संवृद्धि हुई।
प्रश्न 4.
2013-14 में भारत का जी.डी.पी. क्या है?
उत्तर:
2013-14 में भारत का जी.डी.पी. लगभग 56,50,000 करोड़ रुपये है।
पृष्ठ 27 (आओ इन पर विचार करें)
प्रश्न 1.
आलेख 2 और 3 पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या 25 में दिए गए आँकड़े का प्रयोग कर सारणी की पूर्ति करें और नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें। यदि आँकड़े कुछ वर्षों के नहीं हैं, तो उन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है।
तालिका 2.2 : स.घ.उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
|
1972-73 |
1973-74 |
2011-12 |
2013-14 |
स.घ.उ. में हिस्सेदारी |
|
|
|
|
रोजगार में हिस्सेदारी |
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|
|
|
40 वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में आप क्या परिवर्तन देखते हैं?
उत्तर:
स.घ.उ. और रोजगार में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी
|
1972-73 |
1973-74 |
2011-12 |
2013-14 |
स.घ.उ. में हिस्सेदारी |
- |
39% |
- |
13% |
रोजगार में हिस्सेदारी |
74% |
- |
49% |
- |
वर्षों में प्राथमिक क्षेत्रक में निम्न परिवर्तन देखने को मिले हैं-
(i) 1973-74 की तुलना में 2013-14 में स.घ.उ. में प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी में कमी आई है।
(ii) 1972-73 की तुलना में 2011-12 में रोजगार में भी प्राथमिक क्षेत्रक की हिस्सेदारी कम हुई है।
प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करेंअल्प बेरोजगारी तब होती है जब लोग-
(अ) काम करना नहीं चाहते हैं।
(ब) सुस्त ढंग से काम कर रहे हैं।
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
(द) उनके काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है।
उत्तर:
(स) अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं।
प्रश्न 3.
विकसित देशों में देखे गए लक्षण की भारत में हुए परिवर्तनों से तुलना करें और वैषम्य बतायें। भारत में क्षेत्रकों के बीच किस प्रकार के परिवर्तन वांछित थे, जो नहीं हुए?
उत्तर:
(1) प्राथमिक क्षेत्रक- विकसित देशों में विकास की प्रारम्भिक अवस्था में प्राथमिक क्षेत्रक उत्पादन एवं रोजगार दोनों दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक था; भारत में भी विकास की प्रारम्भिक अवस्था में यही स्थिति रही।
(2) द्वितीयक क्षेत्रक- अर्थव्यवस्था में विकास के साथ-साथ विकसित देशों में धीरे-धीरे द्वितीयक क्षेत्रक उत्पादन और रोजगार की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो गया, लेकिन भारत में यह क्षेत्रक दोनों ही दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक अभी तक नहीं हुआ है।
(3) तृतीयक क्षेत्रक- विकास के उच्च स्तरों पर विकसित देशों में जी.डी.पी. और रोजगार में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, जबकि भारत में वर्तमान में जी.डी.पी. में तो तृतीयक क्षेत्रक की सर्वाधिक हिस्सेदारी हो गई है लेकिन रोजगार की दृष्टि से भारत में अभी भी सर्वाधिक रोजगार प्राथमिक क्षेत्रक में ही है।
प्रश्न 4.
हमें अल्प बेरोजगारी के सम्बन्ध में क्यों विचार करना चाहिए?
उत्तर:
भारत में कई क्षेत्रों में अल्प बेरोजगारी पाई जाती है विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में अल्प बेरोजगारी पाई जाती है। अल्प बेरोजगारी में लोगों को उनकी क्षमता के अनुरूप रोजगार नहीं मिलता है, वे रोजगार पर लगे हुए तो प्रतीत होते हैं किन्तु उत्पादन में उनका बहुत ही कम योगदान होता है। ऐसे लोगों को यदि रोजगार से हटा भी दिया जाए तो उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि ऐसे लोगों को अन्य क्षेत्रों में लगाया जाए तो वे अधिक उत्पादक बन जाते हैं जिससे राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है तथा बेरोजगारी एवं निर्धनता की समस्या का भी समाधान होगा। अतः अल्प बेरोजगारी पर विचार करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
पृष्ठ 29 (आओ इन पर विचार करें)
प्रश्न 1.
आपके विचार से म.गाँ.रा.ग्रा.रो.गा.अ. को काम का अधिकार' क्यों कहा गया है?
उत्तर:
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम-2005 (म.गाँ.रा.ग्रा.रो.गा.अ. -2005) ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम ही नहीं बल्कि एक कानून है, क्योंकि इस कार्यक्रम के अन्तर्गत उन सभी लोगों को जो काम करने में सक्षम हैं और जिन्हें काम की जरूरत है, उन्हें सरकार द्वारा वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी दी गई है। इसके अन्तर्गत यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में असफल रहती है तो वह लोगों को बेरोजगारी भत्ता देगी। अतः इसे 'काम का अधिकार' कहा गया है।
प्रश्न 3.
यदि किसानों को सिंचाई और विपणन सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं तो रोजगार और आय में वृद्धि कैसे होगी?
उत्तर:
प्रश्न 4.
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि कैसे की जा सकती है?
उत्तर:
शहरी क्षेत्रों में रोजगार में वृद्धि हेतु व्यापारिक गतिविधियों एवं सेवा क्षेत्र में वृद्धि की जानी चाहिए।
पृष्ठ 31 ( आओ इन पर विचार करें)
प्रश्न 1.
निम्नलिखित उदाहरणों को देखें। इनमें से कौन असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं?
उत्तर:
उपर्युक्त गतिविधियों में से निम्न गतिविधियाँ असंगठित क्षेत्रक की गतिविधियाँ हैं-
(1) बाजार में अपनी पीठ पर सीमेन्ट की बोरी ढोता हुआ एक श्रमिक।
(2) अपने खेत की सिंचाई करता एक किसान।
(3) एक ठेकेदार के अधीन काम करता एक दैनिक मजदूरी वाला श्रमिक।
(4) अपने घर में काम करता एक करघा बुनकर।
प्रश्न 3.
असंगठित और संगठित क्षेत्रक के बीच आप विभेद कैसे करेंगे? अपने शब्दों में व्याख्या करें।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक-असंगठित क्षेत्रक का आशय उन छोटी-छोटी एवं बिखरी हुई इकाइयों से होता है जिन पर किसी प्रकार का सरकारी नियन्त्रण नहीं होता है। इसमें रोजगार की शर्ते अनियमित होती हैं । यहाँ काम के घण्टे निश्चित नहीं होते। अतिरिक्त काम के समय की कोई अतिरिक्त मजदूरी नहीं मिलती। इसमें रोजगार की सुरक्षा नहीं होती है। उदाहरण के लिए एक दैनिक मजदूरी करने वाला श्रमिक।
संगठित क्षेत्रक-संगठित क्षेत्रक में वे उद्यम अथवा कार्य-स्थान आते हैं जहाँ रोजगार की अवधि नियमित होती है तथा वहाँ सरकारी नियमों एवं विनियमों का अनुपालन किया जाता है। इसमें रोजगार की शर्ते नियमित होती हैं। यहाँ काम के घंटे निश्चित होते हैं तथा अतिरिक्त कार्य के समय के लिए अतिरिक्त मजदूरी मिलती है। इसमें रोजगार की सुरक्षा होती है। उदाहरण के लिए एक बड़े कारखाने में काम करने वाला श्रमिक।
प्रश्न 4.
संगठित एवं असंगठित क्षेत्रक में भारत के सभी श्रमिकों की अनुमानित संख्या आगे दी गई सारणी में दी गई है। सारणी को सावधानी से पढ़ें। विलुप्त आँकड़ों की पूर्ति करें और प्रश्नों के उत्तर दें।
सारणी : विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों की संख्या (दस लाख में)
क्षेत्रक |
संगठित |
असंगठित |
कुल |
प्राथमिक |
1 |
- |
232 |
द्वितीयक |
41 |
74 |
115 |
तृतीयक |
40 |
88 |
|
कुल |
82 |
|
|
कुल प्रतिशत में |
|
|
100% |
(i) असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत क्या है?
(ii) क्या आप सहमत हैं कि कृषि असंगठित क्षेत्रक की गतिविधि है? क्यों?
(iii) यदि हम सम्पूर्ण देश पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में ........% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग..........% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोजगार उपलब्ध है।
उत्तर:
सारणी : विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों की संख्या (दस लाख में)
क्षेत्रक |
संगठित |
असंगठित |
कुल |
प्राथमिक |
1 |
231 |
232 |
द्वितीयक |
41 |
74 |
115 |
तृतीयक |
40 |
88 |
128 |
कुल |
82 |
393 |
475 |
कुल प्रतिशत में |
17.26% |
82.74% |
100% |
असंगठित क्षेत्रक की विशेषताएँ-
(i) असंगठित क्षेत्रक में कृषि में लगे लोगों का प्रतिशत निम्न प्रकार है-
= \(\frac{231}{393}\) × 100 = 58.78%
(ii) कृषि असंगठित क्षेत्र की गतिविधि है क्योंकि ये छोटी-छोटी तथा बिखरी हुई इकाइयाँ हैं तथा यहां रोजगार की अवधि अनियमित है।
(iii) यदि हम सम्पूर्ण देश पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि भारत में 82.74% श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में हैं। भारत में लगभग 17.26% श्रमिकों को ही संगठित क्षेत्रक में रोजगार उपलब्ध है।
प्रश्न 1.
कोष्ठक में दिए गए सही विकल्प का प्रयोग कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) सेवा क्षेत्रक में रोजगार में उत्पादन के समान अनुपात में वृद्धि .................। (हुई है/नहीं हुई है)
(ख) ........... क्षेत्रक के श्रमिक वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते हैं। (तृतीयक/कृषि)
(ग) ........... क्षेत्रक के अधिकांश श्रमिकों को रोजगार-सुरक्षा प्राप्त होती है। (संगठित/असंगठित)
(घ) भारत में ...........अनुपात में श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम कर रहे हैं। (बड़े/छोटे)
(ङ) कपास एक...........उत्पाद है और कपड़ा एक...........उत्पाद है। (प्राकृतिक/विनिर्मित)
(च) प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक की गतिविधियाँ...........हैं। (स्वतन्त्र/परस्पर निर्भर)
उत्तर:
(क) नहीं हुई है
(ख) तृतीयक
(ग) संगठित
(घ) बड़े
(ङ) प्राकृतिक, विनिर्मित
(च) परस्पर निर्भर।
प्रश्न 2.
सही उत्तर का चयन करें-
(अ) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक आधार पर विभाजित है।
(क) रोजगार की शर्तों
(ख) आर्थिक गतिविधि के स्वभाव
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(घ) उद्यम में नियोजित श्रमिकों की संख्या।
उत्तर:
(ग) उद्यमों के स्वामित्व
(ब) एक वस्तु का अधिकांशतः प्राकृतिक प्रक्रिया से उत्पादन ....क्षेत्रक की गतिविधि है।
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) सूचना प्रौद्योगिकी।
उत्तर:
(क) प्राथमिक
(स) किसी वर्ष में उत्पादित ........ के कुल मूल्य को स.घ.उ. कहते हैं।
(क) सभी वस्तुओं और सेवाओं
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
(ग) सभी मध्यवर्ती वस्तुओं और सेवाओं
(घ) सभी मध्यवर्ती एवं अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं।
उत्तर:
(ख) सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं
(द) स.घ.उ. के पदों में वर्ष 2013-14 में तृतीयक क्षेत्रक की हिस्सेदारी ......... प्रतिशत है।
(क) 20 से 30
(ख) 30 से 40
(ग) 50 से 60
(घ) 60 से 70
उत्तर:
(घ) 60 से 70
प्रश्न 3.
निम्नलिखित का मेल कीजिए-
कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ |
कृषि सम्भावित उपाय |
1. असिंचित भूमि |
(अ) कृषि आधारित मिलों की स्थापना |
2. फसलों का कम मूल्य |
(ब) सहकारी विपणन समिति |
3. कर्ज भार |
(स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली |
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव |
(द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण |
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता। |
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना। |
उत्तर:
कृषि क्षेत्रक की समस्याएँ |
कृषि सम्भावित उपाय |
1. असिंचित भूमि |
(द) सरकार द्वारा नहरों का निर्माण |
2. फसलों का कम मूल्य |
(स) सरकार द्वारा खाद्यान्नों की वसूली |
3. कर्ज भार |
(य) कम ब्याज पर बैंकों द्वारा साख उपलब्ध कराना। |
4. मंदी काल में रोजगार का अभाव |
(अ) कृषि आधारित मिलों की स्थापना |
5. कटाई के तुरन्त बाद स्थानीय व्यापारियों को अपना अनाज बेचने की विवशता। |
(ब) सहकारी विपणन समिति |
प्रश्न 4.
विषम की पहचान करें और बताइए क्यों?
उत्तर:
(क) पर्यटन-निर्देशक, धोबी, दर्जी, कुम्हार
(ख) शिक्षक, डॉक्टर, सब्जी विक्रेता, वकील
(ग) डाकिया, मोची, सैनिक, पुलिस कांस्टेबल
(घ) एम.टी.एन.एल., भारतीय रेल, एयर इण्डिया, जेट एयरवेज, ऑल इण्डिया रेडियो।
(क) इस वर्ग में कुम्हार असंगत है क्योंकि यह प्राथमिक क्षेत्रक का कार्य है।
(ख) इस वर्ग में सब्जी विक्रेता असंगत है क्योंकि वह असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है।
(ग) इस वर्ग में मोची असंगत है क्योंकि वह असंगठित क्षेत्रक के अन्तर्गत आता है।
(घ) इस वर्ग में जेट एयरवेज असंगत है क्योंकि यह निजी क्षेत्रक का उपक्रम है।
प्रश्न 5.
एक शोध छात्र ने सूरत शहर में काम करने वाले लोगों का अध्ययन करके निम्न आंकड़े जुटाए-
कार्य स्थल |
रोजगार की प्रकृति |
श्रमिकों का प्रतिशत |
सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में |
संगठित |
15 |
औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लिनिक |
|
15 |
सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक |
|
20 |
छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं। |
|
|
तालिका को पूरा कीजिए। इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की प्रतिशतता क्या है?
उत्तर:
कार्य स्थल |
रोजगार की प्रकृति |
श्रमिकों का प्रतिशत |
सरकार द्वारा पंजीकृत कार्यालयों और कारखानों में |
संगठित |
15 |
औपचारिक अधिकार-पत्र सहित बाजारों में अपनी दुकान, कार्यालय और क्लिनिक |
संगठित |
15 |
सड़कों पर काम करते लोग, निर्माण श्रमिक, घरेलू श्रमिक |
असंगठित |
20 |
छोटी कार्यशालाओं में काम करते लोग, जो प्रायः सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं हैं। |
असंगठित |
50 |
इस शहर में असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों की प्रतिशतता 70 है।
प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि आर्थिक गतिविधियों का प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है? व्याख्या कीजिए कि कैसे?
उत्तर:
यह सत्य है कि आर्थिक गतिविधियों का प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में विभाजन की उपयोगिता है। इसके आधार पर विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को सरलता से वर्गीकृत किया जा सकता है। इस विभाजन के आधार पर देश की राष्ट्रीय आय अथवा राष्ट्रीय उत्पादन की गणना भी आसानी से की जा सकती है तथा विभिन्न क्षेत्रकों में श्रमिकों के योगदान का ज्ञान आसानी से लगाया जा सकता है। इस विभाजन की सहायता से ही राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रकों के योगदान का पता लगाया जा सकता है। अतः यह विभाजन उपयोगी है।
प्रश्न 7.
इस अध्याय में आए प्रत्येक क्षेत्रक को रोजगार और सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) पर ही क्यों केन्द्रित करना चाहिए? चर्चा करें।
उत्तर:
इस अध्याय में क्षेत्रकों को तीन भागों में विभाजित किया गया--प्राथमिक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक तथा तृतीयक क्षेत्रक। इन तीनों में देश की सभी आर्थिक गतिविधियों को सम्मिलित किया गया है जिनका आकलन रोजगार एवं सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर ही किया जा सकता है। यह वर्गीकरण अत्यधिक उपयोगी है क्योंकि-
प्रश्न 8.
जीविका के लिए काम करने वाले अपने आस-पास के वयस्कों के सभी कार्यों की लंबी सूची बनाइए। उन्हें आप किस तरीके से वर्गीकृत कर सकते हैं? अपने चयन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हमारे आस-पास वयस्कों द्वारा किए जाने वाले प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-
हमारे आस-पास वयस्कों द्वारा किए जाने वाले कार्यों का वर्गीकरण हम मुख्य रूप से तीन क्षेत्रकों के आधार पर कर सकते हैं जो निम्न प्रकार हैं-प्राथमिक क्षेत्रक, द्वितीयक क्षेत्रक तथा तृतीयक क्षेत्रक।
प्रश्न 9.
तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से भिन्न कैसे है? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्रक अथवा सेवा क्षेत्रक में वे गतिविधियाँ सम्मिलित की जाती हैं जो प्राथमिक तथा द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में सहायक होती हैं। तृतीयक क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों से इसलिए भिन्न होता है क्योंकि इस क्षेत्रक में किसी वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता है बल्कि विभिन्न प्रकार की सेवाओं को सम्मिलित किया जाता है जैसे चिकित्सक, वकील, अध्यापक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को तृतीयक क्षेत्रक में सम्मिलित किया जाता है। तृतीयक क्षेत्रक की क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में योगदान देती हैं। उदाहरण के लिए संचार, परिवहन, बैंकिंग, भण्डार आदि के बिना प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक का विकास सम्भव नहीं है। अतः यह क्षेत्रक अन्य क्षेत्रकों को सेवाएँ उपलब्ध करवाता है।
प्रश्न 10.
प्रच्छन्न बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों से उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रच्छन्न बेरोजगारी- प्रच्छन्न बेरोजगारी को छिपी हुई बेरोजगारी भी कहा जाता है। यह अल्प बेरोजगारी का ही एक रूप है। इसमें व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप पूरा कार्य नहीं मिलता है। इसमें व्यक्ति रोजगार पर लगा हुआ प्रतीत होता है किन्तु उस व्यक्ति का उत्पादन में कोई योगदान नहीं होता है। यदि उसे उस आर्थिक गतिविधि से हटा दिया जाए तो भी उत्पादन पर किसी प्रकार का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। प्रच्छन्न बेरोजगारी अथवा छिपी हुई बेरोजगारी प्रायः शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों दोनों में पाई जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में उदाहरण- प्रायः गांवों में यह देखा जाता है कि एक खेत पर उस खेत के मालिक अथवा कृषक का पूरा परिवार कृषि कार्यों में लगा रहता है जबकि वास्तव में इतने लोगों की आवश्यकता नहीं होती है अतः उस खेत पर लगे अतिरिक्त लोगों में छिपी हुई अथवा प्रच्छन्न बेरोजगारी पाई जाती है।
शहरी क्षेत्रों में उदाहरण- प्रायः शहरी क्षेत्रों में कई लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार पूरा रोजगार नहीं मिलता है जैसे कई बार पढ़े-लिखे लोगों को रोजगार न मिलने के कारण वे मजदूरी करने लगते हैं अतः वे प्रच्छन्न अथवा अल्प बेरोजगारी के अन्तर्गत आते हैं।
प्रश्न 11.
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच विभेद कीजिए।
उत्तर:
खुली बेरोजगारी और प्रच्छन्न बेरोजगारी के बीच निम्नलिखित अन्तर हैं-
(1) खुली बेरोजगारी का तात्पर्य उस स्थिति से है जिसमें योग्य व्यक्ति प्रचलित मजदूरी पर कार्य करना चाहते हैं किन्तु उन्हें रोजगार अथवा काम नहीं मिल पाता है अर्थात् वे पूरी तरह बेरोजगार रहते हैं। इसके विपरीत प्रच्छन्न बेरोजगारी में लोगों को उनकी योग्यता के अनुरूप पूरा काम नहीं मिल पाता है तथा वे रोजगार पर तो लगे होते हैं किन्तु उत्पादन में उनका कोई योगदान नहीं होता है।
(2) खुली बेरोजगारी स्थायी प्रकृति की होती है जबकि प्रच्छन्न बेरोजगारी अस्थायी प्रकृति की होती है।
प्रश्न 12.
"भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है।" क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में तृतीयक क्षेत्रक कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रहा है। यदि हम आँकड़ों को देखें तो भारत में जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान निरन्तर बढ़ रहा है। वर्ष 1973-74 में जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्र का योगदान लगभग 48 प्रतिशत था, वह वर्ष 2013-14 में बढ़कर लगभग 68 प्रतिशत हो गया है। अतः वर्तमान में देश के आर्थिक विकास में तृतीयक क्षेत्रक की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, साथ ही इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि हो रही है। इसके अतिरिक्त प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में भी तृतीयक क्षेत्रक का योगदान महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रक को सेवाएं उपलब्ध करता है।
प्रश्न 13.
"भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है।" ये लोग कौन हैं?
उत्तर:
भारत में सेवा क्षेत्रक दो विभिन्न प्रकार के लोग नियोजित करता है। ये लोग हैं-
प्रश्न 14.
"असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है।" क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में कारण दीजिए।
उत्तर:
हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों का शोषण किया जाता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-
प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर कैसे वर्गीकृत की जाती हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में गतिविधियाँ रोजगार की परिस्थितियों के आधार पर निम्न दो भागों में विभाजित की जा सकती हैं-
प्रश्न 16.
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना करें।
उत्तर:
संगठित और असंगठित क्षेत्रकों में विद्यमान रोजगार परिस्थितियों की तुलना निम्न आधार पर की जा सकती है
प्रश्न 17.
मनरेगा 2005 (MGNREGA 2005) के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध करवाने का न केवल एक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है बल्कि एक कानून है। इस कानून के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में उन सभी लोगों को, जो काम करने में सक्षम हैं तथा जो काम करना चाहते हैं उन्हें सरकार द्वारा एक वर्ष में 100 दिन के रोजगार की गारण्टी दी जाती है, यही इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है। यदि सरकार रोजगार उपलब्ध करवाने में असफल रहती है तो लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। इस अधिनियम में उन कार्यों को वरीयता दी गई है जिनसे भविष्य में भूमि से उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी।
प्रश्न 18.
अपने क्षेत्र से उदाहरण लेकर सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक की गतिविधियों एवं कार्यों की तुलना तथा वैषम्य कीजिए।
अथवा
सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र में कोई तीन अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(1) सार्वजनिक क्षेत्रक के अन्तर्गत आर्थिक गतिविधियों पर सरकार का स्वामित्व एवं नियन्त्रण होता है तथा ये गतिविधियाँ सरकार द्वारा चलाई जाती हैं जैसे रेल विभाग एक सार्वजनिक उपक्रम है। इसके विपरीत निजी क्षेत्रक में आर्थिक गतिविधियों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व एवं नियन्त्रण होता है तथा वे निजी हित हेतु उन आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं जैसे हमारे पास स्थित ICICI बैंक एक निजी क्षेत्र का उपक्रम है।
(2) सार्वजनिक क्षेत्रक का उद्देश्य सार्वजनिक कल्याण में वृद्धि करना होता है, जबकि निजी क्षेत्रक की गतिविधियों का उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है।
(3) सार्वजनिक क्षेत्र में किए गए व्यय की भरपाई सरकार करों के माध्यम से करती है जबकि निजी क्षेत्र में किए गए ऐसे व्ययों की भरपाई लाभ में से की जाती है।
प्रश्न 19.
अपने क्षेत्र से एक-एक उदाहरण देकर निम्न तालिका को पूरा कीजिए और चर्चा कीजिए :
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सुव्यवस्थित प्रबन्ध वाले संगठन |
कुव्यवस्थित प्रबन्ध वाले संगठन |
सार्वजनिक क्षेत्रक |
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निजी क्षेत्रक |
|
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उत्तर:
क्षेत्रक |
सुव्यवस्थित प्रबन्ध वाले संगठन |
कुव्यवस्थित प्रबन्ध वाले संगठन |
सार्वजनिक क्षेत्रक |
स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया |
राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम |
निजी क्षेत्रक |
आई.सी.आई.सी.आई. बैंक |
सेठी फाइनेंस कार्पोरेशन, जयपुर |
प्रश्न 20.
सार्वजनिक क्षेत्रक की गतिविधियों के कुछ उदाहरण दीजिए और व्याख्या कीजिए कि सरकार द्वारा इन गतिविधियों का कार्यान्वयन क्यों किया जाता है?
उत्तर:
सार्वजनिक क्षेत्रक में वे गतिविधियाँ आती हैं जिन पर सरकार का स्वामित्व एवं नियन्त्रण होता है। उदाहरण के लिए भारतीय रेलवे, भारत संचार निगम लिमिटेड, सवाई मानसिंह चिकित्सालय, भारतीय खाद्य निगम आदि। सरकार इन गतिविधियों का क्रियान्वयन सामाजिक कल्याण हेतु करती है। सरकार इन गतिविधियों के माध्यम से लोगों की सुविधाएँ बढ़ाकर उनका जीवन स्तर उठाने का प्रयास करती है। इन गतिविधियों के माध्यम से सरकार उचित मूल्य पर या नि:शुल्क लोगों की आवश्यकताएँ पूरी करती है। इन गतिविधियों के अन्तर्गत सरकार रेलवे, चिकित्सा, शिक्षा, सड़क निर्माण, पुल निर्माण आदि गतिविधियों का संचालन करती है।
प्रश्न 21.
व्याख्या कीजिए कि एक देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक कैसे योगदान करता है?
उत्तर:
एक देश के आर्थिक विकास में सार्वजनिक क्षेत्रक की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है जिसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-
प्रश्न 22.
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को निम्नलिखित मुद्दों पर संरक्षण की आवश्यकता है-मजदूरी, सुरक्षा और स्वास्थ्य। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असंगठित क्षेत्रक में श्रमिकों को बहुत कम मजदूरी दी जाती है तथा अधिक समय तक काम करवाया जाता है तथा उन्हें कभी भी रोजगार से निकाला जा सकता है। श्रमिकों के संरक्षण हेतु असंगठित क्षेत्र में कोई भी सुरक्षा उपाय नहीं अपनाये जाते हैं। दुर्घटनाओं के समय होने वाली हानि को उन्हें स्वयं ही वहन करना पड़ता है। अतः वे सदैव असुरक्षित रहते हैं तथा उनके चिकित्सा व स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई प्रावधान नहीं किए जाते हैं। किसी भी बीमारी के समय उन्हें निजी चिकित्सकों से स्वयं के खर्चे पर ही इलाज करवाना पड़ता है। अतः इस क्षेत्र में सरकारी नियन्त्रण की आवश्यकता है। इन क्षेत्रकों को रोजगार सम्बन्धी कुछ नियमों का पालन करने हेतु बाध्य किया जाना चाहिए।
प्रश्न 23.
अहमदाबाद में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नगर के 15,00,000 श्रमिकों में से 11,00,000 श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में काम करते थे। वर्ष 1997-98 में नगर की कुल आय 600 करोड़ रुपये थी। इसमें से 320 करोड़ रुपये संगठित क्षेत्रक से प्राप्त होती थी। इस आँकड़े को तालिका में प्रदर्शित कीजिए। नगर में और अधिक रोजगार सृजन के लिए किन तरीकों पर विचार किया जाना चाहिए?
उत्तर:
सारणी : अहमदाबाद शहर में श्रमिक वर्गीकरण (वर्ष 1997-98)
मद |
संगठित क्षेत्रक |
असंगठित क्षेत्रक |
कुल |
श्रमिक |
4,00,000 |
11,00,000 |
15,00,000 |
आय |
320 करोड़ |
280 करोड़ |
600 करोड़ |
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि अहमदाबाद शहर में अधिकांश श्रमिक असंगठित क्षेत्रक में कार्यरत हैं तथा उनके द्वारा अर्जित आय भी संगठित क्षेत्रक की तुलना में कम है।
अतः इस नगर में संगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में और अधिक वृद्धि हेतु प्रयास किए जाने चाहिए विशेष रूप से सार्वजनिक उपक्रमों की स्थापना की जानी चाहिए तथा असंगठित क्षेत्र में नियमों का पालन करते हुए आय वृद्धि के प्रयास किए जाने चाहिए। यहाँ तृतीयक क्षेत्र का पर्याप्त मात्रा में विकास किया जाना चाहिए। बैंक, बीमा, डाकघर, परिवहन, संचार, स्वास्थ्य, चिकित्सा, शैक्षणिक सेवाएँ आदि का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए ताकि संगठित क्षेत्रक में रोजगार के अधिक अवसर सृजित किए जा सकें।
प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका में तीनों क्षेत्रकों का सकल घरेलू उत्पाद (स.घ.उ.-जी.डी.पी.) रुपये (करोड़) में दिया गया है :
वर्ष |
प्राथमिक |
द्वितीयक |
तृतीयक |
2000 |
52,000 |
48,500 |
1,33,500 |
2013 |
8,00,500 |
10,74,000 |
38,68,000 |
(क) वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स.घ.उ. में तीनों क्षेत्रकों की हिस्सेदारी की गणना कीजिए।
(ख) इन आँकड़ों को अध्याय में दिए आरेख 2 के समान एक दण्ड आरेख के रूप में प्रदर्शित कीजिए।
(ग) दण्ड आरेख से हम क्या निष्कर्ष प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
(क) वर्ष 2000 एवं 2013 के लिए स.घ.उ. (जी.डी.पी.) में तीनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी निम्न प्रकार है-
2000 में कुल जी.डी.पी. = 52,000 + 48,500 + 1,33,500 = 2,34,000
2013 में कुल जी.डी.पी. = 8,00,500 + 10,74,000 + 38,68,000 = 57,42,500
(ख) दण्ड-आरेख : जी.डी.पी. में क्षेत्रकों की हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
(ग) दण्ड-आरेख से निष्कर्ष- वर्ष 2000 से 2013 में जी.डी.पी. में तीनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी में काफी परिवर्तन हुआ है। वर्ष 2000 में जी.डी.पी. में प्राथमिक क्षेत्रक का योगदान 22.22% था वह वर्ष 2013 में घटकर 13.94% ही रह गया। द्वितीयक क्षेत्रक का जी.डी.पी. में योगदान 2000 में 20.73% था वह 2013 में घटकर 18.70% रह गया। इसी प्रकार वर्ष 2000 में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान 57.05% था वह वर्ष 2013 में बढ़कर 67.36% हो गया है। अतः देश में जी.डी.पी. में तृतीयक क्षेत्र के योगदान में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई।