Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 5 जन-संघर्ष और आंदोलन Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 10. Students can also read RBSE Class 10 Social Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 10 Social Science Notes to understand and remember the concepts easily. The class 10 economics chapter 2 intext questions are curated with the aim of boosting confidence among students.
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प्रश्न 1.
क्या आप यह बताना चाहते हैं कि हड़ताल, धरना, प्रदर्शन और बंद जैसी चीजें लोकतंत्र के लिए अच्छी हैं?
उत्तर:
हड़ताल, धरना, प्रदर्शन और बंद जैसी चीजें विरोध प्रदर्शित करने अथवा कुछ माँर्गों के समर्थन में की जाती संजीव पास बुक्स हैं। इनको अनुमति वहीं होती है जहाँ लोकतंत्र अच्छे से चल रहा हो तथा काम कर रहा हो। इनके द्वारा लोग अपनी उचित माँगें कर सकते हैं तथा अनुचित निर्णयों का विरोध कर सकते हैं।
अतः हड़ताल धरना, प्रदर्शन और बंद जैसी चीजें लोकतंत्र के लिए अच्छी हैं।
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प्रश्न 2.
क्या इसका मतलब यह हुआ कि जिस पक्ष ने ज्यादा संख्या में लोग जुटा लिए वह अपना चाहा हुआ सब कुछ हासिल कर लेगा? क्या हम यह माने कि लोकतन्त्र का मतलब जिसकी लाठी उसकी भैंस?
उत्तर:
लोकतन्त्र का मतलब जिसकी लाठी उसकी भैंस नहीं है क्योंकि लोकतन्त्र जनमत पर आधारित है। केवल भीड़ के जुटने से ही सरकार पर दबाव डालकर अपनी हर बात को मनवा लेना सम्भव नहीं होता। केवल वही आन्दोलन सरकारी नीतियों को प्रभावित करने में सफल होते हैं जिनकी माँग न्यायसंगत और जनकल्याण की भावना से प्रेरित होती है।
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प्रश्न 3.
ग्रीनबेल्ट (हरितपट्टी) मूवमेंट के अन्तर्गत पूरे केन्या में 3 करोड़ वृक्ष लगाए गए। इस आन्दोलन के नेता वांगरी मथाई सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के रुख से बड़े नाखुश हैं। उनका कहना है, "सन् 1970 और 1980 के दशक में जब मैं किसानों को वृक्षारोपण के लिए उत्साहित कर रहा था तो मुझे पता चला कि सरकार के भ्रष्ट कर्मचारी ही वनों के अधिकांश विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। इन लोगों ने अपने चहेते 'डेवलेपर्स' को जमीन और वृक्ष अवैध रूप से बेच रखे थे। सन् 1990 के दशक में राष्ट्रपति डेनियल अरेप मोई की सरकार के कुछ तत्त्वों ने जातीय समुदायों को जमीन के सवाल पर आपस में लड़वा दिया। इससे 'रिफ्ट वैली' के अनेक केन्यावासियों की आजीविका और अधिकार जाते रहे। कुछ को अपनी जान गँवानी पड़ी। शासक दल के समर्थकों को जमीन मिली और लोकतन्त्र-समर्थक आन्दोलन के पक्ष में बोलने वालों को विस्थापित होना पड़ा। यह सरकार की एक चाल थी जिसका उद्देश्य समुदायों को जमीन के सवाल पर आपस में लड़वाकर सत्ता पर कब्जा जमाए रखना था। अगर वे एक-दूसरे से भिड़ते रहेंगे तो लोकतन्त्र की माँग करने के लिए उनके पास कम मौके होंगे।"
ऊपर के अनुच्छेद में आपको लोकतन्त्र और सामाजिक आन्दोलन में क्या सम्बन्ध नजर आ रहा है? इस आन्दोलन को सरकार के प्रति क्या रवैया अपनाना चाहिए?
उत्तर:
इस अनुच्छेद् में लोकतन्त्र और सामाजिक आन्दोलन में सकारात्मक सम्बन्ध नजर आ रहा है। इस आन्दोलन को सरकार के प्रति विरोधी रवैया अपनाना चाहिए; क्योंकि सरकार का दृष्टिकोण लोकतन्त्र-समर्थक आन्दोलनकारियों का दमन कर, जमीन के सवाल पर जनता को आपस में लड़वाकर सत्ता पर कब्जा जमाए रखना है।
प्रश्न 1.
दबाव-समूह और आन्दोलन राजनीति को किस तरह प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
दबाव-समूह और जन-आन्दोलन दोनों ही अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति को निम्नलिखित ढंग से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं-
प्रश्न 2.
दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप कैसा होता है? वर्णन करें।
उत्तर:
राजनीतिक दलों तथा दबाव-समूहों के आपसी सम्बन्धों का स्वरूप अग्रलिखित प्रकार का होता है-
प्रश्न 3.
दबाव-समूहों की गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में कैसे उपयोगी होती हैं?
उत्तर:
दबाव समूहों की गतिविधियाँ लोकतान्त्रिक सरकार के कामकाज में उपयोगी भी होती हैं। इसे निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) सरकार पर धनी व ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी सरकारें प्रायः थोड़े से धनी और ताकतवर लोगों के अनुचित दबाव में आ जाती हैं। जन-साधारण के हित-समूह तथा दबाव-समूह इस अनुचित दबाव के प्रतिकार में उपयोगी भूमिका निभाते हैं और आम नागरिकों की जरूरतों तथा सरोकारों से सरकार को अवगत कराते हैं।
(2) परस्पर विरोधी हितों के बीच सामंजस्य व संतुलन स्थापित करने में उपयोगी-जब समाज में विभिन्न वर्ग-विशेषी हित-समूह सक्रिय हों तो कोई एक समूह समाज के ऊपर प्रभुत्व कायम नहीं कर सकता। यदि कोई एक समूह सरकार के ऊपर अपने हित में नीति बनाने के लिए दबाव डालता है तो दूसरा समूह इसके प्रतिकार में दबाव डालेगा। इससे परस्पर विरोधी हितों के बीच सामञ्जस्य बैठाना तथा शक्ति-सन्तुलन करना सम्भव होता है।
(3) कानून निर्माण में सहायक-दबाव समूह सही सूचनाओं के माध्यम से सांसदों एवं विधायकों को कानून निर्माण में आवश्यक परामर्श देते हैं।
(4) सरकार व जनता के बीच कड़ी-दबाव समूह जनता तथा सरकार के बीच कड़ी का कार्य करते हैं। वे जनता की भावनाओं तथा उनकी मांगों को सरकार तक पहुंचाते हैं और सरकार की नीतियों का जनता में प्रचार करते हैं।
प्रश्न 4.
दबाव समूह क्या हैं? कुछ उदाहरण बताइये।
उत्तर:
जब समान पेशे, हित, आकांक्षा अथवा मत के लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर संगठन बनाते हैं तथा वे अपने उन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं तथा सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें दबाव-समूह या हित-समूह कहा जाता है। जैसे-व्यापार संगठन, मजदूर संघ, वकीलों व शिक्षकों के संगठन आदि।
प्रश्न 5.
दबाव-समूह और राजनीतिक दल में क्या अन्तर है?
उत्तर:
दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अन्तर-दबाव-समूह अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर प्रभाव डालकर सरकार की नीतियों को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयास करता है, दूसरी तरफ राजनीतिक दल प्रत्यक्ष रूप से चुनाव लड़कर सत्ता को अपने हाथों में लेने का प्रयास करते हैं।
दूसरे, राजनीतिक दल एक राजनीतिक संगठन होता है जो समाज के सामान्य हितों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि दबाव समूह अराजनीतिक संगठन है जो प्रायः किसी विशेष वर्ग के समान हितों को लेकर चलता है।
तीसरे, दबाव समूहों का संगठन सुगठित नहीं होता जबकि राजनीतिक दलों का संगठन सुगठित होता है।
प्रश्न 6.
जो संगठन विशिष्ट सामाजिक वर्ग, जैसे-मजदूर, कर्मचारी, शिक्षक और वकील आदि के हितों को बढ़ावा देने की गतिविधियाँ चलाते हैं उन्हें ............... कहा जाता है।
उत्तर:
वर्ग विशेष के हित समूह।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में किस कथन से स्पष्ट होता है कि दबाव-समूह और राजनीतिक दल में अन्तर होता है-
(क) राजनीतिक दल राजनीतिक पक्ष लेते हैं जबकि दबाव-समूह राजनीतिक मसलों की चिन्ता नहीं करते।
(ख) दबाव-समूह कुछ लोगों तक ही सीमित होते हैं जबकि राजनीतिक दल का दायरा ज्यादा लोगों तक फैला
(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
(घ) दबाव-समूह लोगों की लामबंदी नहीं करते जबकि राजनीतिक दल करते हैं।
उत्तर:
(ग) दबाव-समूह सत्ता में नहीं आना चाहते जबकि राजनीतिक दल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
प्रश्न 8.
सूची-I (संगठन और संघर्ष) का मिलान सूची-II से कीजिए और सूचियों के नीचे दी गई सारणी से सही उत्तर चुनिए :
सूची-I |
सूची-II |
1. किसी विशेष तबके या समूह के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन |
(क) आन्दोलन |
2. जन-सामान्य के हितों को बढ़ावा देने वाले संगठन |
(ख) राजनीतिक दल |
3. किसी सामाजिक समस्या के समाधान के लिए चलाया गया एक ऐसा संघर्ष जिसमें सांगठनिक संरचना हो भी सकती है और नहीं भी। |
(ग) वर्ग-विशेष के हित समूह |
4. ऐसा संगठन जो राजनीतिक सत्ता पाने की गरज से लोगों को लामबंद करता है। |
(घ) लोक कल्याणकारी हित-समूह। |
उत्तर:
(ख) ग, घ, क, ख
प्रश्न 9.
सूची-I का सूची-II से मिलान करें जो सूचियों के नीचे दी गई सारणी में सही उत्तर हो चुनें :
सूची-I |
सूची-II |
1. दबाव समूह |
(क) नर्मदा बचाओ आन्दोलन |
2. लम्बी अवधि का आन्दोलन |
(ख) असम गण परिषद् |
3. एक मुद्दे पर आधारित आन्दोलन |
(ग) महिला आन्दोलन |
4. राजनीतिक दल |
(घ) खाद विक्रेताओं का संघ |
उत्तर:
(अ) घ, ग, क, ख
प्रश्न 10.
दबाव-समूहों और राजनीतिक दलों के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
(क) दबाव-समूह समाज के किसी खास तबके के हितों की संगठित अभिव्यक्ति होते हैं।
(ख) दबाव-समूह राजनीतिक मुद्दों पर कोई न कोई पक्ष लेते हैं।
(ग) सभी दबाव-समूह राजनीतिक दल होते हैं।
अब नीचे दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प चुनें-
(अ) क, ख और ग (ब) क और ख (स) ख और ग (द) क और ग
उत्तर:
(ब) क और ख
प्रश्न 11.
मेवात हरियाणा का सबसे पिछड़ा इलाका है। यह गुड़गाँव और फरीदाबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था। मेवात के लोगों को लगा कि इस इलाके को अगर अलग जिला बना दिया जाए तो इस इलाके पर ज्यादा ध्यान जाएगा। लेकिन, राजनीतिक दल इस बात में कोई रुचि नहीं ले रहे थे। सन् 1996 में मेवात एजुकेशन एंड सोशल आर्गेनाइजेशन तथा मेवात साक्षरता समिति ने अलग जिला बनाने की माँग उठाई। बाद में सन् 2000 में मेवात विकास सभा की स्थापना हुई। इसने एक के बाद एक कई जन-जागरण अभियान चलाए। इससे बाध्य होकर बड़े दलों यानी कांग्रेस और इण्डियन नेशनल लोकदल को इस मुद्दे को अपना समर्थन देना पड़ा। उन्होंने फरवरी 2005 में होने वाले विधान सभा के चुनाव से पहले ही कह दिया कि नया जिला बना दिया जाएगा। नया जिला सन् 2005 की जुलाई में बना।
इस उदाहरण में आपको आन्दोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच क्या रिश्ता नजर आता है? क्या आप कोई ऐसा उदाहरण दे सकते हैं जो इससे अलग रिश्ता बताता हो?
उत्तर:
जब कोई जन-आंदोलन जनता के व्यापक हित से सम्बन्धित होता है तो प्रायः सभी राजनैतिक दल उसकी माँग का समर्थन करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार भी इसकी मांगों को मान लेने में ही अपना हित समझती है।
इस उदाहरण से ज्ञात होता है कि लोकतन्त्र में लोक कल्याण या जन-सामान्य के हितों की मांगों के सन्दर्भ में आन्दोलन, राजनीतिक दल और सरकार के बीच सकारात्मक सम्बन्ध होता है। ऐसा ही एक उदाहरण नर्मदा बचाओ आन्दोलन है। इस आन्दोलन को बड़ा जनाधार प्राप्त है। फिर भी सरकार इन माँगों को नहीं मान रही है क्योंकि इस पर राजनीतिक दलों के विचार अलग-अलग हैं।