These comprehensive RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 9 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 9 क्षेत्रीय संस्कृतियों का निर्माण
→ क्षेत्रीय संस्कृतियाँ जटिल प्रक्रिया से विकसित हुई हैं जिसके तहत स्थानीय परम्पराओं और उपमहाद्वीप के अन्य भागों के विचारों के आदान-प्रदान ने एक-दूसरे को सम्पन्न बनाया है।
→ चेर और मलयालम भाषा का विकास
- भाषा और क्षेत्र के बीच अन्तःसम्बन्ध को बताने का प्रमुख उदाहरण चेर राज्य है।
- चेर राज्य 9वीं सदी में केरल में स्थापित किया गया। इस क्षेत्र में मलयालम भाषा बोली जाती थी। .
- चेर लोगों ने संस्कृत की परंपराओं से भी बहुत कुछ ग्रहण किया, जैसे—मंदिर रंगमंच परम्परा, पहली | साहित्यिक कृतियाँ आदि।
→ शासक और धार्मिक परम्पराएँ-जगन्नाथी संप्रदाय
- अन्य क्षेत्रों में क्षेत्रीय संस्कृतियाँ, क्षेत्रीय धार्मिक परम्पराओं से विकसित हुई थीं। इसका उदाहरण है-पुरी में जगन्नाथ का सम्प्रदाय।
- 12वीं सदी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन ने पुरी में जगन्नाथ के लिए एक मंदिर बनवाया और राजा अनंगभीम ने स्वयं को जगन्नाथ का प्रतिनियुक्त घोषित किया। तीर्थ स्थल के रूप में महत्त्व प्राप्त होने पर मंदिर की राजनीतिक मामलों में सत्ता बढ़ती गई।
→ राजपूत और शूरवीरता की परम्पराएँ
- 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश लोग उस क्षेत्र को जहाँ आज का अधिकांश राजस्थान स्थित है, राजपूताना कहते थे।
- राजपूतों ने राजस्थान को एक विशिष्ट संस्कृति प्रदान की। ये सांस्कृतिक परम्पराएँ वहाँ के शासकों के आदर्शों एवं अभिलाषाओं के साथ घनिष्ठता से जुड़ी हुई रहीं। लगभग 8वीं शताब्दी से राजस्थान के अधिकांश भाग पर विभिन्न परिवारों के राजपूत राजाओं का शासन रहा। राजपूत शूरवीरों की कहानियाँ काव्यों और गीतों में सुरक्षित हैं।।
→ क्षेत्रीय सीमांतों से परे-कत्थक नृत्य की कहानी
- कत्थक नृत्य शैली उत्तर-भारत के अनेक भागों से जुड़ी है। कत्थक मूल रूप से मंदिरों में कथा सुनाने वालों की एक जाति थी। ये कथाकार अपने हाव-भाव तथा संगीत से अपने कथावाचन को अलंकृत किया करते थे।
- 15वीं तथा 16वीं शताब्दियों में भक्ति आंदोलन के प्रसार के साथ कत्थक रास-लीला में एक विशिष्ट नृत्य शैली का रूप धारण करने लगा।
- मुगल बादशाहों के काल में यह एक विशिष्ट नृत्य शैली के रूप में विकसित हो गया। आगे चलकर यह दो घरानों में फला-फूला
- राजस्थान (जयपुर) के राजदरबारों में,
- लखनऊ में।
- वर्तमान में यह देश के छः शास्त्रीय नृत्य रूपों में मान्य है।
→ संरक्षकों के लिए चित्रकला-लघुचित्रों की परम्परा
- एकं अन्य परम्परा जो कई रीतियों से विकसित हुई, वह थी-लघुचित्रों की परंपरा।
- मुगल काल में इतिहास और काव्यों की पांडुलिपियों को लघु चित्रों के रूप में चित्रित किया जाता था। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद दक्षिण के क्षेत्रीय दरबारों और राजस्थान के राजपूती दरबारों में मेवाड़, जोधपुर, बूंदी, कोटा और किशनगढ़ में पौराणिक कथाओं तथा काव्यों के विषयों के लघु चित्र बने । इस प्रकार चित्रकला की अलग-अलग शैलियों का विकास हुआ।
- 17वीं सदी में हिमाचल प्रदेश के इर्द गिर्द लघु चित्रकला की 'बसोहली शैली' का विकास हुआ। 18वीं सदी में लघु चित्रों की कांगड़ा शैली विकसित हुई।
→ बंगाल-नजदीक से एक नजर
एक क्षेत्रीय भाषा का विकास
- बंगाली भाषा अपने विकास क्रम की अनेक अवस्थाओं से गुजरी है।।
- बंगाली के प्रारंभिक साहित्य को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है
- संस्कृत महाकाव्यों के अनुवाद, मंगल काव्य और भक्ति साहित्य तथा
- नाथ साहित्य।
→ पीर-16वीं सदी में बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल से आए लोग दक्षिण-पूर्वी बंगाल के स्थानीय लोगों के किसान समुदायों में मिल गए। इन बाहर से आकर बसने वाले लोगों को सुख-सुविधाओं व व्यवस्थाओं का आश्वासन समुदाय के नेताओं ने दिया, जिन्हें लोग पीर कहा करते थे।
→ मंदिर
- बंगाल में 15वीं शताब्दी के बाद वाले वर्षों में शक्तिशाली समूहों या व्यक्तियों द्वारा मंदिर बनाने का दौर जोरों पर रहा।
- बंगाल में साधारण ईंटों और मिट्टी-गारे से अनेक मंदिर निम्न सामाजिक समूहों के समर्थन से भी बने।
- इन मंदिरों की स्थापत्य कला में विशिष्ट बंगाली शैली-चौचाला शैली का विकास हुआ।
→ मछली भोजन के रूप में
स्थानीय आहार में मछली की लोकप्रियता को देखते हुए ब्राह्मण धर्म के विशेषज्ञों ने बंगाली ब्राह्मणों के लिए सामिष भोजन करने के निषेध में ढील दे दी।