These comprehensive RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 3 दिल्ली के सुलतान will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 3 दिल्ली के सुलतान
→ दिल्ली तोमरों और चौहानों के राज्यकाल, 1100 ई. से 1200 ई. के मध्य, वाणिज्य का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया था।
→ तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई, जो मूलतः आक्रमणकारी थे तथा मध्य एशिया और ईरान के शासक थे। देहली सल्तनत का प्रथम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था।
→ जिस इलाके को हम आज दिल्ली के नाम से जानते हैं, वहाँ इन सुल्तानों ने देहली-ए-कुहना, सीरी और जहांपनांह नगर बसाये।
→ दिल्ली के शासकराजपूत वंश-(1130-1195)
- तोमर (आरंभिक 12वीं शताब्दी-1165)-अनंगपाल (1130-1145)
- चौहान (1165-1192)—पृथ्वीराज चौहान (1175-1192)
→ प्रारंभिक तुर्की शासक-(1206-1290):
- कुतुबुद्दीन ऐबक-(1206-1210)
- शमसुद्दीन इल्तुतमिश-(1210-1236)
- रजिया-(1236-1240)
- गयासुद्दीन बलबन–(1266-1287)
→ खिलजी वंश (1290-1320)
- 1. जलालुद्दीन खिलजी-(1290-1296)
- 2. अलाउद्दीन खिलजी-(1296-1316)
→ तुगलक वंश (1320-1414)
- गयासुद्दीन तुगलक-(1320-1324)
- मुहम्मद तुगलक-(1324-1351)
- फिरोजशाह तुगलक-(1351-1388)
- सैयद वंश (1414-1451)
- खिज्र खान-(1414-1421)
- लोदी वंश (1451-1526)
- बहलोल लोदी-(1451-1489)
→ इस काल के इतिहास के प्रमुख स्रोत 'तारीख' और 'तवारीख' हैं जो सुल्तानों के शासन काल में प्रशासन की भाषा फारसी में लिखे गए थे।
→ दिल्ली सल्तनत का विस्तार-गैरिसन शहर से साम्राज्य तक
- 13वीं सदी के आरंभिक वर्षों में दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों का शासक गैरिसन शहरों से ही सम्बद्ध था। उनसे दूर भीतरी प्रदेशों तथा दिल्ली से दूर बंगाल व सिंध के गैरिसन शहरों पर उनका नियंत्रण न के बराबर था।
- इन समस्याओं से निजात पाने हेतु गयासुद्दीन बलबन, अलाउद्दीन ख़िलजी और मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल में सल्तनत की भीतरी सीमाओं में गैरिसन शहरों की पृष्ठभूमि में स्थित भीतरी क्षेत्रों की स्थिति को मजबूत करने के लिए अभियान चले।
- दूसरा विस्तार सल्तनत की बाहरी सीमा पर हुआ। इसमें खिलजी और तुगलक काल में दक्षिण भारत को लक्ष्य करके सैनिक अभियान चले।।
- मुहम्मद तुगलक के राज्यकाल के अंत तक इस उपमहाद्वीप का एक विशाल क्षेत्र इसके युद्ध अभियान के अन्तर्गत आ चुका था।
→ खिलजी और तुगलक वंश के अन्तर्गत प्रशासन और सम्मेलन:
नजदीक से एक नजर
- दिल्ली सल्तनत जैसे विशाल साम्राज्य के समेकन के लिए विश्वसनीय सूबेदारों और प्रशासकों की आवश्यकता थी।
- इल्तुतमिश, सामन्तों और जमींदारों के स्थान पर अपने विशेष गुलामों को सूबेदार नियुक्त करना अधिक पसंद करते थे। इन्हें फारसी में 'बंदगाँ' कहा जाता था।
- खलजी और तुगलक शासक भी बंदगाँ का इस्तेमाल करते रहे। इससे उच्च वर्ग के लोग असंतुष्ट रहने लगे और प्रायः नए और पुराने सरदारों में टकराहट शुरू होने लगी।
- सुल्तानों के काल में सेनानायकों को इलाकों के सूबेदार के रूप में नियुक्त किया। ये इक्तदार या मुक्ती कहे जाते थे। इनका काम था-सैनिक अभियानों का नेतृत्व करना, कानून-व्यवस्था बनाए रखना, राजस्व वसूली करना।।
- राजस्व की रकम का हिसाब रखने के लिए राज्य द्वारा लेखाधिकारी रखे गये।
- अलाउद्दीन खलजी के शासन काल में भू राजस्व के निर्धारण और वसूली के कार्य को राज्य ने अपने नियंत्रण में ले लिया। इससे आंतरिक इलाकों पर भी नियंत्रण स्थापित हुआ।
- इस उपमहाद्वीप का काफी बड़ा हिस्सा दिल्ली के सुल्तानों के अधिकार से बाहर ही था। यह हिस्सा थाबंगाल और दक्षिण भारत।
- अलाउद्दीन खलजी और मुहम्मद तुगलक के शासनकालों में दिल्ली पर मंगोलों के धावे बढ़ गए। सुल्तानों ने एक विशाल सेना खड़ी करके मंगोलों के धावों का सफलतापूर्वक सामना किया।
→ मुहम्मद तुगलक ने:
- मंगोल सेना को परास्त किया।
- देहली-ए-कुहना को निवासियों से खाली करवाकर वहाँ सैनिक छावनी बना दी तथा शहर के निवासियों को नयी राजधानी दौलताबाद भेज दिया।
- खाद्यान्न इकट्ठा किया तथा नए कर लगाए।
- सैनिकों को नकद वेतन दिया तथा सांकेतिक मुद्रा चलायी।
- उठाये गए प्रशासनिक कदम बेहद. असफल रहे । फलतः इन प्रशासनिक कदमों को वापस ले लिया।
→ 15वीं तथा 16वीं शताब्दी में सल्तनत
- तुगलक वंश के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा।
- जौनपुर, मालवा, गुजरात, राजस्थान तथा पूरे दक्षिण भारत में इस काल में स्वतंत्र शासक उठ खड़े हुए।
- बिहार के शेरशाह सूर ने मुगल सम्राट हुमायूँ (1530-1540) को परास्त कर दिल्ली पर अधिकार करके अपना स्वयं का राजवंश स्थापित किया जो 1540 ई. से 1555 ई. तक रहा।