These comprehensive RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 2 नए राजा और उनके राज्य will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 2 नए राजा और उनके राज्य
→ भारतीय उपमहाद्वीप में 7वीं से 12वीं शताब्दी के बीच विभिन्न हिस्सों में शासन करने वाले अनेक प्रमुख राजवंशों का उदय हुआ।
→ नए राजवंशों का उदय
- इस काल में इस उपमहाद्वीप में उत्तर में गुर्जर-प्रतिहार, चौहान, पाल तथा दक्षिण में राष्ट्रकूट, चालुक्य, चोल, चेर, पांड्यन आदि छोटे राज्यों का उदय हुआ।
- 7वीं सदी आते-आते इस उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में सामन्त अस्तित्व में आए। ये राजा के मातहत होते | थे। .
- कभी-कभी ये सामन्त अपने स्वामी के आधिपत्य से स्वतंत्र हो जाने का दावा भी करते थे। उदाहरण के लिए दक्षिण के राष्ट्रकूट।
- कुछ उद्यमी परिवारों के पुरुषों ने अपनी राजशाही कायम करने के लिए सैन्य-कौशल का इस्तेमाल किया, जैसे-कदंब मयूरशर्मण और गुर्जर-प्रतिहार ने क्रमशः कर्नाटक और राजस्थान में अपने राज्य स्थापित किए।
→ राज्यों में प्रशासन
- ये राजा अपने सामन्तों, किसान, व्यापारी और ब्राह्मणों के संगठनों के साथ सत्ता की साझेदारी करते थे।
- इन राज्यों में किसानों, पशुपालकों, कारीगरों और व्यापारियों से 'लगान' या कर वसूला जाता था।
- राजस्व-वसूली के लिए पदाधिकारियों की नियुक्ति प्रायः प्रभावशाली परिवारों से वंशानुगत होती थी।
- सेना में भी ओहदों पर प्रायः राजा के निकट सम्बन्धी ही होते थे।
→ प्रशस्तियाँ और भूमि अनुदान
- प्रशासन में मदद करने वाले विद्वान ब्राह्मणों द्वारा प्रशस्तियाँ रची गई थीं, जिनमें राजा को शूरवीर, विजयी योद्धा के रूप में दर्शाया गया है।
- राजा लोग प्रायः ब्राह्मणों को भूमि अनुदान देते थे। ये ताम्र पत्रों पर अभिलिखित होते थे, जो भूमि पाने वाले को दिए जाते थे।
- कल्हण ने अपने ग्रंथ राजतरंगणि में कश्मीर के शासकों के शिलालेखों, दस्तावेजों व अन्य स्रोतों का उल्लेख किया है।
→ धन के लिए युद्ध
- शासक दूसरे के क्षेत्रों पर नियंत्रण करने का प्रयास करते थे।
- जब राजा एक-दूसरे के राज्यों पर आक्रमण करते थे, तो वे मंदिरों को भी अपना निशाना बनाते थे क्योंकि वे बहुत सम्पन्न होते थे।
→ उरैयूर से तंजावूर तक : चोल साम्राज्य
(अ) चोल साम्राज्य का उदय तथा विस्तार
- कावेरी डेल्टा में मुट्टरियार नाम से प्रसिद्ध एक छोटे से मुखिया परिवार की सत्ता थी। वे कांचीपुरम के पल्लव राजाओं के अधीन थे।
- उरइयार के चोलवंशीय प्राचीन मुखिया परिवार के विजयालय ने 9वीं सदी के मध्य में मुट्टियारों को हराकर इस डेल्टा पर कब्जा जमाया। इसके उत्तराधिकारियों ने पड़ौसी इलाकों को जीता और उसका राज्य अपने क्षेत्रफल तथा शक्ति दोनों रूपों में बढ़ता गया।
- दक्षिण और उत्तर के पांड्यन और पल्लव के इलाके इस राज्य का हिस्सा बना लिए गए।
- राजराज प्रथम 985 ई. में राजा बना। यह सबसे शक्तिशाली चोल शासक था। उसने राज्य के विस्तार के साथ प्रशासन का पुनर्गठन भी किया।
(ब) चोल साम्राज्य के भव्य मंदिर और कांस्य मूर्तिकला:
राजराज और राजेन्द्र प्रथम द्वारा बनवाए गए तंजावूर और गंगईकोंड चोलपुरम के बड़े मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला की दृष्टि से एक चमत्कार हैं।
(स) चोल साम्राज्य में कृषि और सिंचाई-चोलों की कई उपलब्धियाँ कृषि में हुए नए विकासों के माध्यम से सम्पन्न हुईं। यथा
- जंगलों को साफ किया गया, कुछ इलाकों को कृषि हेतु समतल किया गया, बाढ़ रोकने के लिए तटबंध बनाए गए तथा नहरों का निर्माण किया गया।
- सिंचाई योजनाएँ बनाई गईं।
(द) चोल साम्राज्य का प्रशासन
- चोल साम्राज्य में किसानों की बस्तियाँ 'उर' कहलाती थी; गाँवों के समूह को 'नाडु' कहा जाता था।
- ग्राम परिषद और नाडु न्याय करने और कर वसूलने जैसे कई प्रशासकीय कार्य करते थे।
- धनी भूस्वामियों का नाडु के काम-काज पर अच्छा-खासा नियंत्रण होता था।
- ब्राह्मणों को दिये गए भूमि अनुदानों से दक्षिण भारत में ब्राह्मण बस्तियाँ अस्तित्व में आईं।
- 'नगरम्' के नाम से ज्ञात व्यापारियों के संघ भी अक्सर शहरों में प्रशासनिक कार्य संपादित करते थे।