These comprehensive RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा will give a brief overview of all the concepts.
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→ प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current):
ऐसी धारा जो समय के साथ परिमाण व दिशा (vary in magnitude and direction with time) दोनों में बदलती है और निश्चित समय के बाद फिर उसी परिमाण से उसी दिशा में प्रारम्भ हो जाती है; प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है। इसे निम्न समीकरण से व्यक्त करते हैं
I = Im sin ωt
जहाँ : I प्रत्यावर्ती धारा का तात्क्षणिक मान और Im शिखर मान है। इसी प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टता .
V = Vm sin ωt
→ प्रत्यावर्ती धारा का मापन (Measurement of Alternative Current):
प्रत्यावर्ती धारा का मा: तप्त तार अमीटर (hot wire ammeter) एवं विभवान्तर का मापन तप्त तार वोल्ठमीटर की सहायता से किया जाता है क्योंकि चलकुण्डल धारामापी (moving coil galvanometer) प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में जोड़ने पर शून्य विक्षेप की ही स्थिति दर्शाता है।
→ प्रतिघात (Reactance):
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रेरकत्व (L) एवं संधारित्र (C) द्वारा डाली गयी रुकावट (hindrance) को प्रतिघात कहते हैं और इसे X से प्रदर्शित करते है।
→ प्रतिबाधा (Impedance):
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रतिरोध के साथ-साथ प्रेरकत्व या संधारित्र या दोनों होते हैं, तो परिपथ की परिणामी रुकावट को प्रतिबाधा कहते हैं। इसे Z से व्यक्त करते हैं और इसका मान
Z = \(\frac{V}{i}\)
प्रतिबाधा का मात्रक ओम (Ω) है।
→ प्रवेश्यता (Admittance):
(i) किसी परिपथ की प्रतिबाधा के व्युत्क्रम को प्रवेश्यता कहते हैं और इसे A से व्यक्त करते हैं।
∴ प्रवेश्यता A = \(\frac{1}{Z}\)
इसका मात्रक Ω-1 या म्हो या सीमेन है।
→ विभिन्न प्रकार के प्रत्यावर्ती धारा परिपथ (Various types of alternating current circuits)
(i) R-परिपथ-Z = R, Φ = 0 अर्थात् धारा और विभवान्तर समान कला में हैं।
(ii) L-परिपथ-Z = XL = ωL = 2πfL; Φ = π/2; विभवान्तर धारा से कला में आगे होता है।
(ii) C-परिपथ-Z = XC = \(\frac{1}{\omega C}=\frac{1}{2 \pi f C}\), Φ = π/2; धारा विभवान्तर से कला में आगे होती है।
(iv) R-L परिपथ Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^2+\mathrm{X}_{\mathrm{L}}^2}=\sqrt{\mathrm{R}^2+(2 \pi f \mathrm{~L})^2}\); कलान्तर Φ = tan-1\(\left(\frac{\mathrm{X}_{\mathrm{L}}}{\mathrm{R}}\right)\); विभवान्तर कला में धारा से आगे होता है।
(v) R-C परिपथ Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^2+\mathrm{X}_{\mathrm{C}}^2}=\sqrt{\mathrm{R}^2+\left(\frac{1}{2 \pi f \mathrm{C}}\right)^2}\)
कलान्तर Φ = tan-1\(\left(\frac{\mathrm{X}_{\mathrm{C}}}{\mathrm{R}}\right)\) विभवान्तर कला में धारा से पीछे होता है।
(vi) L-C परिपथ-
(a) जब XL > XC; तो Z = XL - XC और Φ = +π/2 अर्थात् विभवान्तर धारा से कला में π/2 आगे होता है।
(b) जब XL < XC; तो Z = XC - XL; कलान्तर Φ = -π/2 अर्थात् विभवान्तर धारा से कला में π/2 पीछे होता है।
(c) जब XL = XC; तो Z = XL ~ XC, यह L-C परिपथ में वैद्युत अनुनाद की स्थिति है। परिपथ के वैद्युत दोलनों की अनुनादी आवृत्ति
f0 = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{\mathrm{LC}}}\)
(vii) L-C-R परिपथ
(a) जब XL > XC;; तो Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^2+\left(\mathrm{X}_{\mathrm{L}}-\mathrm{X}_{\mathrm{C}}\right)^2}\) और Φ = tan-1\(\left(\frac{\mathrm{X}_{\mathrm{L}}-\mathrm{X}_{\mathrm{C}}}{\mathrm{R}}\right)\); विभवान्तर कला में धारा से आगे होता है।
(b) जब XL < XC तो Z = \(\sqrt{R^2+\left(X_C-X_L\right)^2}\) और Φ = tan-1\(\left[\frac{\mathrm{X}_{\mathrm{C}}-\mathrm{X}_{\mathrm{L}}}{\mathrm{R}}\right]\); विभवान्तर कला में धारा से पीछे होता है।
(c) जब XL = XC तो Z = R और Φ = 0. यह वैद्युत अनुनाद की स्थिति है। अनुनादी आवृत्ति f0 = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
→ A.C. परिपथ में व्यय शक्ति (Power loss in a.c. circuit):
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में व्यय शक्ति
P = Vrms. Irms cos Φ
जहाँ, cos Φ = \(\frac{R}{Z}\) = शक्ति गुणांक।
→ वाटहीन धारा (Wattless current): परिपथ में बिना ऊर्जा क्षय के बहने वाली धारा को वाटहीन धारा कहते हैं।
→ चोक कुण्डली (Choke coil): चोक कुण्डली ऐसी युक्ति है जो प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में बिना वैद्युत ऊर्जा के क्षय के धारा को नियन्त्रित करती है। इसके लिए
cos Φ = \(\frac{R}{Z}\) → 0 ∴ P→ 0
→ अनुनादी परिपथ (Resonant circuits)
श्रेणी अनुनादी परिपथ
(a) इस परिपथ में L, C व R तीनों श्रेणी क्रम में जुड़े होते हैं और अनुनाद की स्थिति में XL = XC होता है तथा अनुनादी आवृत्ति
f0 = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
(b) इस स्थिति में प्रतिबाधा न्यूनतम (Z = R) होती है; फलतः धारा अधिकतम (imax = \(\frac{V}{R}\)) होती है।
→ गुणता कारक (Quality factor) (Q):
श्रेणीबद्ध L-C-R परिपथ का गुणता कारक अनुनादी आवृत्ति तथा अनुनादी वक्र के बैण्ड विस्तार के अनुपात के बराबर होता है अर्थात्
Q = \(\frac{\omega_0}{2 \Delta \omega}=\frac{\omega_0}{\omega_2-\omega_1}=\frac{\omega_0 L}{R}=\frac{1}{R} \sqrt{\frac{L}{C}}\)
स्पष्ट है कि R का मान कम होने से Q का मान अधिक होगा, अतः अनुनाद अधिक तीक्ष्ण होगा। इस प्रकार गुणता कारक अनुनाद की तीक्ष्णता का निर्धारण करता है।
→ ट्रान्सफॉर्मर (Transformer):
अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर बना यह एक ऐसा उपकरण है जो प्रत्यावर्ती वोल्टता को बदलने के काम आता है। निम्न वोल्टता को उच्च वोल्टता में बदलने वाले ट्रान्सफॉर्मर को उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर एवं उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में बदलने वाले ट्रान्सफॉर्मर को अपचायी ट्रान्सफॉर्मर कहते हैं। ट्रान्सफॉर्मर के लिए
\(\frac{\mathrm{V}_s}{\mathrm{~V}_p}=\frac{e_s}{e_p}=\frac{\mathrm{N}_s}{\mathrm{~N}_p}\) = r [परिणप्रन अनुपात (transformation ratio)]
उच्चायी ट्रान्सफार्मर के लिए Ns > Np, और अपचायी के लिए Ns < Np, ट्रान्सफार्मर केवल वोल्टता में परिवर्तन करता है, शक्ति में नहीं।
Pp = Ps
Vp.Ip = Vs.Is,
ट्रान्सफॉर्मर की दक्षता
→ प्रत्यावर्ती धारा व वोल्टेज I = Im sin ωt
V= Vm sin ωt
→ प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान
Irms = \(\frac{I_m}{\sqrt{2}}\) = 0.707 Im
→ प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान
IM = \(\frac{2 \mathrm{I}_m}{\pi}\) = 0.637Im
→ प्रतिबाधा Z = \(\frac{V}{I}\)
→ धारितीय प्रतिघात XC = \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\)
→ प्रेरण प्रतिघात XL = ωL
→ प्रेरणिक अधिकल्पित प्रवेश्यता SL = \(\frac{1}{\mathrm{X}_{\mathrm{L}}}=\frac{1}{\omega \mathrm{L}}\)
→ R-L परिपथ की प्रतिबाधा
Z = \(\sqrt{\left(\mathrm{R}^2+X_{\mathrm{L}}{ }^2\right)}=\sqrt{\mathrm{R}^2+(2 \pi f \mathrm{~L})^2}\)
धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर
Φ = tan-1 \(\left(\frac{2 \pi f L}{R}\right)\)
→ R-C परिपथ की प्रतिबाधा .
Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^2+\frac{1}{(2 \pi f C)^2}}\)
धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर
Φ = tan-1\(\left[\frac{1}{2 \pi f \mathrm{CR}}\right]\)
→ L, C, R परिपथ की प्रतिबाधा
Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^2+\left(2 \pi f \mathrm{~L}-\frac{1}{2 \pi f \mathrm{C}}\right)^2}\)
धारा एवं विभवान्तर के मध्य कलान्तर
Φ = tan-1\(\frac{\left[2 \pi f \mathrm{~L}-\frac{1}{2 \pi f \mathrm{C}}\right]}{\mathrm{R}}\)
→ अनुनादी आवृत्ति, f0 = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
→ प्रत्यावर्ती धारा में व्यय शक्ति
P = Vrms.Irms. cos Φ
→ शक्ति गुणांक cos Φ = \(\frac{R}{Z}\)
= \(\frac{R}{\sqrt{R^2+\left(X_L-X_C\right)^2}}\)
= \(\frac{R}{\sqrt{R^2+\omega^2 L^2}}\) (L-R परिपथ के लिए)
→ गुणताकारक Q = \(\frac{1}{\mathrm{R}} \sqrt{\left(\frac{\mathrm{L}}{\mathrm{C}}\right)}=\frac{\omega \mathrm{L}}{\mathrm{R}}\)
→ LC परिपथ में चुम्बकीय ऊर्जा UM = \(\frac{1}{2}\)Li2
→ L-C परिपथ में वैद्युत ऊर्जा UE = \(\frac{q_0^2}{2 \mathrm{C}}\)
→ ट्रान्सफॉर्मर के लिए \(\frac{\mathrm{V}_s}{\mathrm{~V}_{\mathrm{P}}}=\frac{e_s}{e_{\mathrm{P}}}=\frac{\mathrm{N}_s}{\mathrm{~N}_{\mathrm{P}}}\) = r
→ ट्रान्सफॉर्मर की दक्षता
→ फेजर (Phasors):
प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) और प्रत्यावर्ती वोल्टता सदिश न होकर फेजर है। फेजर का मान समय के साथ बदलता है।
→ अवमन्दित दोलन (Damped oscillations):
वे दोलन हैं जिनका आयाम समय के साथ घटता है।
→ प्रभावी मान (Ieff):
प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान, प्रभावी मान कहलाता है।
→ वोल्टता प्रवर्धन (Voltage Amplification):
किसी श्रेणी अनुनादी परिपथ के विशेषता गुणांक Q को उस परिपथ का वोल्टता प्रवर्धन भी कहा जाता है।
→ कार्यधारी धारा (Wattful Current):
कार्यधारी धारा किसी परिपथ की धारा का वह घटक है, जिसके कारण परिपथ में शक्ति व्यय होती है।
→ फिल्टर परिपथ (Filter circuits):
श्रेणी LCR परिपथ को फिल्टर परिपथ भी कहते हैं।
→ कला (Phase):
समीकरण V = Vm sin ωt एवं I = Im sin ωt में sin का कोणांक ωt प्रत्यावर्ती वोल्टता अथवा प्रत्यावर्ती धारा की समय t पर कला को प्रदर्शित करता है।
→ शिखर मान (Peak Value):
प्रत्यावर्ती परिवर्तन के पूर्ण चक्र (full cycle) में धारा की वोल्टता का अधिकतम मान शिखर मान (peak value) कहलाता है।
→ तात्क्षणिक मान (Instantaneous Value):
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में किसी क्षण वि. वा. बल (वोल्टता) या धारा के मान को तात्कालिक या तात्क्षणिक मान कहते हैं।
→ रूप गुणक (Form Factor):
वोल्टता या धारा के वर्ग माध्य मूल मान तथा अर्द्ध-चक्र के लिए औसत मान का अनुपात रूप गुणक कहलाता है।