RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

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RBSE Class 12 Physics Chapter 11 Notes विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

→ मुक्त इलेक्ट्रॉन:
वे इलेक्ट्रॉन, जिन पर नाभिक का नियन्त्रण बहुत कम होता है और जिन्हें थोड़ी भी ऊर्जा देकर संगत परमाणु से अलग किया जा सकता है, मुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं।

→ कार्य-फलन:
किसी इलेक्ट्रॉन को चालक से मुक्त करने के लिए जितनी न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे उस धातु का कार्य-फलन कहते हैं।

→ इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन:
धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना को इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन कहते हैं। यह चार प्रकार से होता है

  • तापायनिक उत्सर्जन
  • प्रकाश-वैद्युत् उत्सर्जन
  • क्षेत्र उत्सर्जन
  • द्वितीयक उत्सर्जन।

→ प्रकाश-वैद्युत् प्रभाव-उचित आवृत्ति का प्रकाश धातुओं के पृष्ठ पर डालने पर इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना प्रकाश-वैद्युत प्रभाव कहलाती है। उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन कहते हैं। यदि इन उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को एकत्र करके पुनः उत्सर्जक पृष्ठ तक पहुँचा दिया जाये तो प्राप्त धारा प्रकाश-वैद्युत् धारा कहलाती है।

RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति 

→ प्रकाश-वैद्युत प्रभाव के नियम

  • प्रकाश वैद्युत् प्रभाव आपतित प्रकाश की एक निश्चित न्यूनतम आवृत्ति (देहली आवृत्ति vo) से प्रारम्भ होता है।
  • प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करती है, तीव्रता पर नहीं।
  • उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की संख्या आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है।
  • प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के मध्य कोई समयान्तराल नहीं होता है।

→ प्रकाश का क्वाण्टम मॉडल-इस सिद्धान्त के अनुसार किसी प्रकाश स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन लगातार न होकर ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकेटों के रूप में होता है, जिन्हें क्वाण्टम या फोटॉन कहते हैं।
फोटॉन की

  • ऊर्जा E = hv एवं E = \(\frac{h c}{\lambda}\)
  • विराम द्रव्यमान = शून्य
  • गतिक द्रव्यमान m = \(\frac{h v}{c^2}\) एवं = \(\frac{h}{c \lambda}\)
  • संवेग p = \(\frac{h v}{c}\) एवं p = \(\frac{h}{\lambda}\)

→ आइन्स्टीन का प्रकाश-वैद्युत् समीकरण-प्लांक के क्वाण्टम सिद्धान्त के आधार पर आइन्स्टीन ने प्रकाश- वैद्युत् प्रभाव की व्याख्या की। उन्होंने बताया कि जब कोई फोटॉन इलेक्ट्रॉन से टकराता है तो उसकी ऊर्जा दो रूपों में व्यय होती है
(i) इलेक्ट्रॉन को धातु-पृष्ठ से मुक्त करने में कार्य-फलन के रूप में,
(ii) शेष ऊर्जा मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा में बदल जाती है। इस आधार पर उन्होंने निम्न समीकरण की स्थापना की
\(\frac{1}{2}\)mvmax2 = h (v - vo)
जहाँ v, आपतित प्रकाश की आवृत्ति है एवं vo देहली आवृत्ति है।

→ प्रकाश-वैद्युत् कार्य-फलन-आपतित फोटॉन की वह न्यूनतम ऊर्जा जो इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक होती है, कार्यफलन कहलाती है।
कार्य-फलन
Φo = hvo = \(\frac{h c}{\lambda_0}\)
जहाँ λo देहली तरंगदैर्ध्य है।

→ निरोधी विभव-वह मन्दक विभव जो अधिकतम गतिज ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन को ऐनोड पर पहुँचने से रोक देता है, निरोधी विभव कहलाता है। इसे Vo से व्यक्त करते हैं। .
∴ Kmax = \(\frac{1}{2}\)mvmax2 = Voe
या Vo = \(\frac{m v_{\max }^2}{2 e}\)

→ प्रकाश-वैद्युत् सेल-वह युक्ति जो प्रकाश ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में बदलती है, प्रकाश-वैद्युत् सेल कहलाती है। संरचना के आधार पर ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं

  • प्रकाश-उत्सर्जक सेल,
  • प्रकाश वोल्टीय सेल,
  • प्रकाश-चालकीय सेल।।

→ डी-ब्रॉग्ली परिकल्पना-डी-ब्रॉग्ली ने बताया कि जिस प्रकार तरंगों के रूप में विकिरण ऊर्जा से कणों के लाक्षणिक गुणों का सम्बद्ध होना पाया जाता है, ठीक उसी प्रकार गतिशील द्रव्य कणों के साथ तरंगों के लाक्षणिक गुण सम्बद्ध होने चाहिए अर्थात् गतिशील द्रव्य कणों के साथ तरंगें भी सम्बद्ध रहती हैं। इन्हीं तरंगों को डी-ब्रॉग्ली तरंगें कहते . हैं। इनकी तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac{h}{p}=\frac{h}{m v}\)

→ डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य के लिए सूत्र
(i) λ = \(\frac{h}{p}=\frac{h}{m v}=\frac{h}{\sqrt{2 m \mathrm{~K}}}\)
जहाँ K = कण की गतिज ऊर्जा
(ii) T ताप के तापीय न्यूट्रॉनों के लिए माध्य गतिज ऊर्जा
K = \(\frac{3}{2}\)kT
∴ डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac{h}{\sqrt{3 m k \mathrm{~T}}}\)

(iii) V वोल्ट द्वारा त्वरित आवेशित कणों की गतिज ऊर्जा
K = V.q
λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 \mathrm{M} q \mathrm{~V}}}\)
इलेक्ट्रॉनों के लिए λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 m e V}}=\frac{12 \cdot 27}{\sqrt{\mathrm{V}}}\)Å

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→ प्रायोगिक सत्यापन-इलेक्ट्रॉनों की तरंग प्रकृति का प्रथम प्रायोगिक सत्यापन डेविसन-जर्मर ने विवर्तन पर आधारित प्रयोग द्वारा किया। बाद में यह प्रदर्शित किया गया कि सभी गतिमान कण तरंग प्रकृति प्रदर्शित करते हैं।

→ प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा
Kmax = eV0 = \(\frac{1}{2}\)mvmax2

→ किसी फोटॉन की ऊर्जा
E = hv = \(\frac{h c}{\lambda}\)

→ फोटॉन का गतिक द्रव्यमान
m = \(\frac{h v}{c^2}=\frac{h}{c \lambda}\)

→ फोटॉन का संवेग
p = mc = \(\frac{h \mathrm{v}}{c}=\frac{h}{\lambda}\)

→ फोटॉन की ऊर्जा, संवेग एवं शक्ति में सम्बन्ध
N = \(\frac{\mathrm{Pt}}{(h c / \lambda)}\)

→ कार्य-फलन
Φ0 = hv0

→ आइन्स्टीन का प्रकाश वैद्युत समीकरण
eV0 = \(\frac{1}{2}\)mmax2 = h(v - v0)

→ प्लांक नियतांक
h = e × (V0 - v) ग्राफ का ढाल
= e × tan θ

→ डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac{h}{p}\)
यदि तरंग की गतिज ऊर्जा K है, तो
λ = \(\frac{h}{\sqrt{2 m K}}\)

→ यदि परम ताप (TK) है तो
λ = \(\frac{h}{\sqrt{3 m k T}}\)

→ प्रति सेकण्ड उत्सर्जित फोटॉनों की संख्या
n = \(\frac{P}{E}\)

→ फोटॉन फ्लक्स = \(\frac{I}{E}\)

→ q आवेश के M द्रव्यमान वाले कण को V विभवान्तर से त्वरित करने पर कण की गतिज ऊर्जा
K =qV
कण की डी-ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य
λ = \(\frac{h}{\sqrt{3 \mathrm{M} q \mathrm{~V}}}\)
इलेक्ट्रॉन के लिए
λ = \(\frac{12 \cdot 27}{\sqrt{\mathrm{V}}}\)Å

→ बोहर का क्वाण्टीकरण सिद्धान्त
mvr =n.\(\frac{h}{2 \pi}\)

→ ब्रॉग का समीकरण
2d sin θ = nλ

→ धन किरणें (Positive rays):
धन आयनों के पुंज को धन-किरणें या कैथोड-किरणें कहते हैं।

→ हाईजेनबर्ग का अनिश्चितता का सिद्धान्त (Heisenberg Uncertainty Principle):
हाईजेनबर्ग के अनुसार, किसी कण की स्थिति एवं संवेग को एक साथ (Simultaneously) मापना असम्भव है।

RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति

→ देहली तरंगदैर्ध्य (Threshold wavelength):
प्रकाश संवेदी सतह से फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के लिए आवश्यक अधिकतम तरंगदैर्ध्य देहली तरंगदैर्ध्य कहलाती है।

→ विशिष्ट आवेश (Specific charge):
इलेक्ट्रॉन के आवेश तथा मात्रा का अनुपात (अर्थात् e/m) को विशिष्ट आवेश कहते हैं।

→ शीत कैथोड उत्सर्जन (Cold-cathode emission):
क्षेत्र उत्सर्जन की क्रिया को ही शीत उत्सर्जन या शीत कैथोड उत्सर्जन कहते हैं।

→ इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी (Electron microscope):
एक ऐसी युक्ति है जो इलेक्ट्रॉनों की तरंग प्रकृति का उपयोग करती है। अपनी उच्च विभेदन तथा आवर्धन क्षमता के कारण इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी विज्ञान, शिल्प विज्ञान, धातुकर्म, औषधि तथा उद्योग आदि के क्षेत्रों में शोध कार्यों हेतु एक अत्यन्त आवश्यक, सक्षम तथा महत्वपूर्ण यन्त्र है।

Prasanna
Last Updated on Nov. 22, 2023, 5:23 p.m.
Published Nov. 21, 2023