These comprehensive RBSE Class 12 Physics Notes Chapter 6 वैद्युत चुंबकीय प्रेरण will give a brief overview of all the concepts.
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→ चुम्बकीय फ्लक्स:
(i) चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी तल से उसके लम्बवल् गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या को उस तल से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं। इसका मान है :
ΦB = BA cos θ
जहाँ θ, पृष्ठ पर खींचे गये अभिलम्ब एवं क्षेत्र रेखाओं के मध्य कोण है।
(ii) चुम्बकीय फ्लक्स चुम्बकीय क्षेत्र वेक्टर \(\overrightarrow{\mathrm{B}}\) व क्षेत्रफल वेक्टर \(\overrightarrow{\mathrm{A}}\) के अदिश गुणन के बराबर होता है, अर्थात्
ΦB = \(\overrightarrow{\mathrm{B}} \cdot \overrightarrow{\mathrm{A}}\)
(iii) चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक 'वेबर' है।
(iv) इसका विमीय सूत्र [M1L2T-2A-1] है।
→ फैराडे के विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण के नियम
(i) जब किसी परिपथ से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उसमें एक विद्युत् वाहक बल उत्पन्न होता है जिसे प्रेरित वि. वा. बल कहते हैं और परिपथ बन्द होने पर जो धारा बहती है उसे प्रेरित धारा तथा इस घटना को विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण कहते हैं।
(ii) प्रेरित वि. वा. बल का मान फ्लक्स परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपांती होता है अर्थात्
e = -\(\frac{\Delta \phi_{\mathrm{B}}}{d t}\)
यहाँ ऋण चिह्न लेन्ज के नियम से आया है। यदि बन्द परिपथ के रूप में N फेरों की कुण्डली हो तो
e = -N\(\frac{\Delta \phi_{\mathrm{B}}}{d t}\)
कुण्डली का प्रतिरोध यदि R है तो प्रेरित धारा
i = \(\frac{e}{\mathrm{R}}=-\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{R}} \cdot \frac{\Delta \phi_{\mathrm{B}}}{d t}\)
और प्रेरित आवेश q = i.Δt = \(\frac{\mathrm{N} \Delta \phi_{\mathrm{B}}}{\mathrm{R}}\)
→ लेन्ज का नियम:
प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार होती है कि यह उस कारण का विरोध कर सके जिस कारण से उत्पन्न होती है।
→ फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम:
इस नियम के अनुसार यदि दाहिने हाथ के अंगूठे, तर्जनी एवं मध्यिका तीनों को एक-दूसरे के लम्बवत् समायोजित करें और तर्जनी द्वारा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा तथा अँगूठे द्वारा चालक की गति की दिशा व्यक्त होती है तो मध्यिका द्वारा प्रेरित धारा की दिशा व्यक्त होगी।
→ गतिमान चालक छड़ में प्रेरित विभवान्तर:
जब B तीव्रता के चुम्बकीय क्षेत्र में ! लम्बाई का चालक क्षेत्र के लम्बवत् v वेग से चलाया जाता है, तो चालक में उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल
e = vBl
यदि चालक क्षेत्र के साथ θ कोण पर गतिशील है, तो
e = vBl sin θ
→ भँवर धाराएँ-जब किसी चालक से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन किया जाता है तो उस चालक में चक्करदार प्रेरित धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिन्हें भँवर धाराएँ कहते हैं।
→ स्वप्रेरण
(i) किसी चक्र में धारा बदलने पर जब उसी चक्र में प्रेरण होता है तो इस घटना को स्वप्रेरण कहते हैं।
(ii) स्वप्रेरित वि. वा. बल
eL = -L\(\frac{\Delta i}{\Delta t}\)
जहाँ \(\frac{\Delta i}{\Delta t}\) धारा परिवर्तन की दर और L स्वप्रेरण गुणांक या स्वप्रेरकत्व है।
(iii) यदि कुण्डली में फेरों की संख्या N हो और उसमें बहने वाली धारा i हो तो कुण्डली से सम्बद्ध कुल चुम्बकीय फ्लक्स
NΦB = Li या L = \(\frac{N \phi_{\mathrm{B}}}{i}\)
यदि i = 1 A तो NΦB = L
अर्थात् किसी कुण्डली का स्वप्रेरकत्व उस चुम्बकीय फ्लक्स के तुल्य होता है जो कुण्डली में 1 A धारा बहने पर उसके साथ सम्बद्ध होता है।
(iv) N फेरों वाली समतल कुण्डली का प्रेरकत्व
L = \(\frac{\mu_0 \pi}{2}\).N2.r
(v) परिनालिका का स्वप्रेरकत्व
L = \(\frac{\mu_0 \mathrm{~N}^2 \cdot \mathrm{A}}{l}\)
यदि परिनालिका में आपेक्षिक चुम्बकशीलता (relative permeability) , का क्रोड रखा हो, तो
L = \(\frac{\mu_0 \mu_r \mathrm{~N}^2 \mathrm{~A}}{l}\)
→ प्रेरकत्वों का संयोजन:
(i) श्रेणी संयोजन-यदि L1 व L2 स्वप्रेरण गुणांक वाले दो प्रेरकत्व श्रेणीबद्ध हों, तो संयोजन का तुल्य प्रेरकत्व
L = L1 + L2
(ii) समान्तर संयोजन-यदि संयोजन समान्तर क्रम में हो, तो
\(\frac{1}{\mathrm{~L}}=\frac{1}{\mathrm{~L}_1}+\frac{1}{\mathrm{~L}_2}\) या L = \(\frac{\mathrm{L}_1 \mathrm{~L}_2}{\mathrm{~L}_1+\mathrm{L}_2}\)
→ अन्योन्य प्रेरण एवं अन्योन्य प्रेरकत्व:
(i) जब एक चक्र में धारा बदलने से उसके पास रखे दूसरे चक्र में प्रेरण होता है, तो इस घटना को अन्योन्य प्रेरण कहते हैं।
(ii) यदि प्राथमिक परिपथ में धारा i1, बहने पर द्वितीयक के साथ सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स N2Φ2, हो, तो
N2Φ2 = Mi1
जहाँ N2, द्वितीयक में फेरों की संख्या है एवं M दोनों के मध्य अन्योन्य प्रेरण गुणांक है।
M = \(\frac{\mathrm{N}_2 \phi_2}{i_1}\) = N2Φ2, यदि i1 = 1 A
"दो कण्डलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरण गुणांक उस चुम्बकीय Hyp dss, gsted ea A धारा बहने पर द्वितीयक के साथ सम्बद्ध होता है।"
(iii) द्वितीयक में अन्योन्य प्रेरित वि. वा. बल
e2 = -M\(\frac{\Delta i_1}{\Delta t}\)
(iv) दो समतल कुण्डलियों के मध्य अन्योन्य प्रेरकत्व
M = \(\frac{\mu_0 \pi \mathrm{N}_1 \mathrm{~N}_2 r_2^2}{2 r_1}\)
(v) दो समाक्षीय परिनालिकाओं के मध्य अन्योन्य प्रेरण गुणांक
M = \(\frac{\mu_0 \mathrm{~N}_1 \mathrm{~N}_2 \mathrm{~A}}{l}\)
→ प्रत्यावर्ती धारा जनित्र
(i) जब चुम्बकीय क्षेत्र में किसी कुण्डली को घुमाया जाता है तो उसके सिरों पर प्रत्यावर्ती वि. वा. बल उत्पन्न हो जाता है।
(ii) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र वह युक्ति है जो यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युत ऊर्जा में बदलती है।
(iii) उत्पन्न प्रत्यावर्ती वि. वा. बल का तात्क्षणिक मान
e = e0 sin ωt
जहाँ e0 प्रत्यावर्ती वि. वा. बल का शिखर मान है।
→ चुम्बकीय फ्लक्स
ΦB = BA cos θ
→ प्रेरित वि. वा. बल e = -N\(\frac{d \phi_{\mathrm{B}}}{d t}\)
→ प्रेरित धारा
i = \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{R}} \frac{d \phi_{\mathrm{B}}}{d t}\)
→ प्रेरित आवेश q = \(\frac{N \Delta \phi_{\mathrm{B}}}{\mathrm{R}}\)
→ एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में चालक की गति
e = vBI
→ समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील चालक को चलाने पर उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल
e = Bvl, I = \(\frac{\mathrm{B} l v}{\mathrm{R}}\)
→ स्वप्रेरक गुणांक L = \(\frac{\mathrm{N} \phi_{\mathrm{B}}}{i}\)
L = eL.\(\frac{\Delta t}{\Delta i}\)
→ युग्मन गुणांक K = \(\frac{\mathrm{M}}{\sqrt{\mathrm{L}_1 \mathrm{~L}_2}}\)
→ परिनालिका का स्वप्रेरकत्व
L = \(\frac{\mu_r \mu_0 \mathrm{~N}^2 \mathrm{~A}}{l}\)
→ प्रेरकत्वों का संयोजन
(i) श्रेणीक्रम में L = L1 + L2
(ii) समान्तर क्रम में
\(\frac{1}{\mathrm{~L}}=\frac{1}{\mathrm{~L}_1}+\frac{1}{\mathrm{~L}_2}\)
→ प्रेरकत्व में संचित चुम्बकीय ऊर्जा ऊर्जा घनत्व
Um = \(\frac{1}{2}\)Li2 = \(\frac{1}{2}\)Φi
→ प्रति एकांक आयतन में संचित चुम्बकीय ऊर्जा या
Um = \(\frac{1}{2} \frac{\mathrm{B}^2}{\mu_0}\)
→ अन्योन्य प्रेरण .
M = \(\frac{e \Delta t}{\Delta I}\)
→ दो लम्बी समाक्षीय परिनालिकाओं का अन्योन्य प्रेरकत्व
M = \(\frac{\mu_0 n_1 n_2 \pi r^2}{l}\)
→ दो समतल कुण्डलियों का अन्योन्य प्रेरकत्व
M = \(\frac{\mu_0 \mu_r}{2} \frac{\pi \mathrm{N}_1 \mathrm{~N}_2 r_2^2}{r_1}\)
→ विस्थापन धारा, Id = ε0 \(\frac{d \phi_{\mathrm{E}}}{d t}\)
→ ऐम्पियर के परिपथीय नियम का संशोधित रूप
\(\oint_{\mathrm{s}} \overrightarrow{\mathrm{B}} \cdot \overrightarrow{d l}\) = μ0i + μ0ε0\(\frac{d \phi_{\mathrm{E}}}{d t}\)
→ तात्क्षणिक प्रेरित प्रत्यावर्ती वि. वा. बल
e = e0 sin ωt
जहाँ e =NBAω
→ वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic induction):
वह घटना जिसमें परिवर्तित चुम्बकीय क्षेत्र के द्वारा विद्युत क्षेत्र उत्पन्न किया जाता है।
→ चुम्बकीय फ्लक्स (Magnetic flux):
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी तल से उसके लम्बवत् गुजरने वाली क्षेत्र रेखाओं की संख्या।
→ चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व (Magnetic flux density):
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता को चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व भी कहते हैं।
→ फोकाल्ट धाराएँ (Focault's currents):
भँवर धाराओं को फोकाल्ट धाराएँ भी कहते हैं।
→ प्रेरण भट्टी (Induction furnace):
धातु को भँवर धाराओं के प्रभाव से गर्म करके पिघलाना।
→ विस्थापन धारा (Displacement current):
वह धारा जो विद्युत क्षेत्र के परिवर्तन के कारण होती है।
→ अतितापन (Diathermy):
भँवर धाराओं का प्रयोग मनुष्य शरीर के ऊतकों में तापन को चिन्हित करने में किया जाता है इस चिकित्सा को अतितापन चिकित्सा कहते हैं।
→ स्पीडोमीटर (Speedometer):
किसी वाहन की तात्क्षणिक (instantaneous) गति नापने का यन्त्र है।
→ गतिक वि. वा. बल (Motional emf):
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में चालक की गति के कारण गतिक वि. वा. बल उत्पन्न होता है।