These comprehensive RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 5 खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Home Science Chapter 5 Notes खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी
→ प्रस्तावना-खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी का इतिहास व उसका विकास
- प्राचीन काल से ही फसल कटने पर अनाजों को सुखाकर उनका सुरक्षा काल बढ़ाया जाता रहा है।
- प्रारंभ में खाद्य पदार्थों का संसाधन उनकी सुपाच्यता, स्वाद सुधारने और खाद्य पदार्थ की निरन्तर आपूर्ति सुरक्षित करने के लिए किया जाता था, जैसे-अचार, मुरब्बा, पापड़ बनाना।
- वर्तमान में उन्नत परिवहन, संचार और बढ़ते औद्योगीकरण के कारण सुविधाजनक खाद्यों, ताजे और अधिक प्राकृतिक, सुरक्षित तथा स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्यों की मांग बढ़ी। परिणामतः इन माँगों की पूर्ति के लिए आज ऐसे खाद्य पदार्थ विभिन्न प्रकार के प्रक्रमों और प्रौद्योगिकियों को उपयोग में लाकर बड़े पैमाने पर तैयार किए जाते हैं। इस प्रकार वर्तमान में खाद्य प्रसंस्करण की साधारण और परम्परागत विधियों के साथ-साथ नयी विधियाँ और प्रौद्योगिकियाँ काम में ली जा रही हैं।
→ विषय का महत्त्व-भारत में खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी के महत्त्व के बढ़ने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
- भारत में कृषि-आधिक्य की स्थिति होने से अब कृषि और बागवानी के उत्पादों के भंडारण और प्रसंस्करण की आवश्यकता उत्पन्न हो गई है।
- जीवन शैली में परिवर्तन, आवगमन में वृद्धि और वैश्वीकरण के कारण विभिन्न प्रकारों के उत्पादों की माँग बढ़ी है, जिससे इस विषय का महत्त्व बढ़ा है।
- खाद्य पदार्थों के प्रबलीकरण हेतु खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी का महत्त्व बढ़ा है।
- भोजन पदार्थों के बारे में उपभोक्ता का नजरिया बदलने से ऐसे खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी है जो रसायनों, पीड़कनाशियों और परिरक्षकों से मुक्त हों तथा इनका सुरक्षा काल अधिक हो।
→ मूलभूत संकल्पनाएँ
- खाद्य विज्ञान-खाद्य विज्ञान एक विशिष्ट क्षेत्र है जिसमें आधारभूत विज्ञान विषयों, जैसे-रसायन और भौतिकी, पाक कलाओं, कृषि विज्ञान और सूक्ष्म जीव विज्ञान के अनुप्रयोग शामिल हैं। खाद्य वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक-रासायनिक पहलुओं से संबंध रखते हैं। अतः खाद्यं विज्ञान हमें खाद्य की प्रकृति और गुणों को समझने में मदद करते हैं।
- खाद्य संसाधन-खाद्य संसाधन ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह है, जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार उत्पादों में बदल देता है।
- खाद्य प्रौद्योगिकी-खाद्य प्रौद्योगिकी विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के उत्पादन के लिए खाद्य विज्ञान और खाद्य अभियांत्रिकी का उपयोग कर उसका लाभ उठाती है। इसका एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू सभी उत्पादित खाद्यों को सुरक्षित करना और उपयोग में लाना है।
- खाद्य उत्पादन-खाद्य उत्पादन में खाद्य प्रौद्योगिकी के सिद्धान्तों का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर खाद्य उत्पादन किया जाता है।
→ खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी का विकास
- 1810 में निकोलस ऐप्पर्ट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया विकसित की गयी।
- 1864 ई. में लुई पाश्चर ने खाद्य की सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु पाश्चुरीकरण (निर्जीवीकरण) प्रक्रम को विकसित किया।
- 20वीं सदी में सेना की आवश्यकताओं तथा उपभोक्ताओं द्वारा विभिन्न उत्पादों की बढ़ती माँग ने खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान दिया तथा कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु तत्काल मिलकर बनने वाले सूप मिश्रण और पकाने को तैयार पदार्थ एवं भोजन की प्रौद्योगिकियाँ विकसित हुए।
- 21वीं सदी में खाद्य प्रौद्योगिकी ने विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए हैं।
→ खाद्य-संसाधन और संरक्षण का महत्त्व
- खाद्य पदार्थ को भोज्य और सुरक्षित रूप से संरक्षित करने के लिए खाद्य-संसाधन और संरक्षण की आवश्यकता है।
- खाद्य-संसाधन, खाद्यों के विभिन्न वर्गों के सामान्य गुण और खाद्य विज्ञान के सिद्धान्तों, रसायन, खाद्य सूक्ष्म विज्ञान, पोषण संवेदी विश्लेषण और अच्छी खाद्य विनिर्माण पद्धतियों को समाविष्ट करता है।
- खाद्य-संसाधन के साथ जुड़ी संकल्पनाओं में सूक्ष्मजीवी गतिविधियों और अन्य कारक, जो खाद्य पदार्थ को प्रभावित करते हैं, को कम करने पर ध्यान दिया जाता है।
- बहुत से खाद्य संसाधन संबंधी कार्य खाद्य उत्पादों के शैल्फकाल को बढ़ाने के लिए डिजाइन किए जाते हैं।
- खाद्य पदार्थों को नष्ट होने से बचाने के लिए संसाधित विधियों की मूलभूत संकल्पनाएँ ये हैं
- ऊष्मा का अनुप्रयोग
- जल को हटाना
- भंडारण के समय ताप कम करना
- pH कम करना तथा
- ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपलब्धता पर नियंत्रण करना।
→ खाद्य पदार्थ के वर्ग
(अ) संसाधन की सीमा के आधार पर खाद्य-पदार्थों के तीन प्रमुख प्रकार या वर्ग हैं। ये हैं
- विकार्य खाद्य पदार्थ
- अर्ध-विकार्य खाद्य पदार्थ और
- अविकार्य खाद्य पदार्थ।
(ब) संसाधन के प्रकार के आधार पर खाद्य पदार्थों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है
- न्यूनतम संसाधित खाद्य
- संरक्षित खाद्य
- विनिर्मित खाद्य
- फार्मूलाबद्ध खाद्य
- खाद्य व्युत्पन्न
- संश्लेषित खाद्य
- कार्यमूलक खाद्य
- चिकित्सीय खाद्य।
→ खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल:
खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी में लगे व्यवसायियों में व्यापक ज्ञान और कौशल होना चाहिए। इस दृष्टि से खाद्य उत्पादों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है
- सामग्री के रूप में खाद्य।
- खाद्य उत्पादन विकास।
- रैसीपी विकास। उक्त प्रत्येक के लिए अलग-अलग ज्ञान और कौशलों की आवश्यकता होती है।
→ जीविका के लिए तैयारी करना-खाद्य प्रसंस्करण और प्रौद्योगिकी उद्योग/व्यवसाय में जीविका हेतु व्यक्तियों में निम्न प्रमुख ज्ञान और कौशल होने आवश्यक हैं
- खाद्य सुरक्षा/गुणवत्ता आश्वासन, बेहतर विनिर्माण पद्धतियों और पोषण का ज्ञान।
- कच्चे और पकाए हुए खाद्यों के संघटन, गुणवत्ता और सुरक्षा का विश्लेषण।।
- खाद्य सामग्री, बड़े पैमाने पर खाद्य निर्माण और खाद्य उत्पादन में खाद्य-सुरक्षा ज्ञान व कौशल का उपयोग करना।
- उत्पादन विनिर्देशन और खाद्य उत्पादन में विकास।
- संवेदी मूल्यांकन और स्वीकार्यता।
- औद्योगिक पद्धतियों, कार्यप्रणाली नियंत्रण, वितरण-प्रणालियों तथा उपभोक्ता क्रम पैटर्न का ज्ञान।
- खाद्यों को पैक करने और उन पर लेबल लगाने का कौशल।
- उत्पादन रूपरेखा डिजाइन हेतु सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की योग्यता।
- खाना बनाने और पाक क्रिया में कुशल।
- डिजाइन तैयार करने, विश्लेषण करने, प्रतिरूप का अनुसरण करने और रेसीपी अनुकूलन की योग्यता।
→ जीविका (करिअर) के अवसर:
- उत्पादक प्रबंधक,
- परियोजना कार्यान्वयन,
- विपणन और विक्रय अधिकारी,
- संवेदी मूल्यांकन,
- गुणवत्ता आश्वासन,
- शोध-विकास और उत्पादन-विकास,
- परियोजना की वित्तीय व्यवस्था,
- परियोजना का मूल्यांकन,
- शिक्षण और शोध,
- उद्यमशीलता का विकास,
- परामर्शदाता,
- उत्पादों का तकनीकी वितरण।
खाद्य प्रौद्योगिकीविदों का काम मुख्य रूप से खाद्य उद्योगों, गुणवत्ता नियंत्रक विभागों, होटलों, अस्पतालों, लेबल लगाने और पैक करने वाले उद्योगों, मद्य निर्माण कारखानों, मृदु पेय उद्योगों, डेयरी, कन्फेशनरी, मछली और माँस संसाधन, फल-सब्जी संसाधन, अनाजों इत्यादि में होता है। इन संस्थानों के विभिन्न विभागों में उक्त पदों व कार्यों में वे अपनी प्रवीणता का उपयोग कर सकते हैं।