These comprehensive RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 20 उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Home Science Chapter 20 Notes उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण
(क) प्रस्तावना
- प्रत्येक मनुष्य एक स्वाभाविक उपभोक्ता है।
- अपने कमाए गए प्रत्येक पैसे को खर्च करके अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
- अनेक बार आपको वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने के उपरांत उनकी गुणवत्ता में कमी होने, निर्माता या सेवा प्रदाता द्वारा ठगी करने के कारण संतुष्टि नहीं हो पाती है और आप अपने आपको ठगे गए महसूस करते हैं।
- उपभोक्ता शिक्षा आपको एक कुशल और जागरूक उपभोक्ता बनना सिखाती है।
(ख) उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण का महत्व
(1) वर्तमान में शहरी और ग्रामीण दोनों ही बाजारों में उत्पादों का निर्माण और बिक्री निरन्तर बढ़ती जा रही है। औद्योगीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण भारत अल्प विकसित से विकासशील अर्थव्यवस्था में रूपान्तरित हो रहा है। इसलिए आज हम वैश्विक बाजार की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में उपभोक्ता का दृष्टिकोण भी वैश्विक होना आवश्यक है। अतः आज के उपभोक्ता को सतर्क, जागरूक और पूरी जानकारी वाला उपभोक्ता बनना आवश्यक है। इसलिए उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण आज के उपभोक्ता के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं।
(2) उदारीकरण के दौर में आज भारत के अनेक स्टोर्स में आयातित वस्तुएं देखी जा सकती हैं, जो बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा निर्मित हैं।
- उपभोक्ता के लिए सकारात्मक पक्ष यह है कि उपभोक्ता के पास चयन करने के अनेक विकल्प हैं और वह | प्रतिस्पर्धी कीमतों में बेहतर उत्पादों को चुन सकता है। .
- लेकिन इसका नकारात्मक पहलू यह है कि अनाचार, बेईमान विक्रेताओं द्वारा शोषण, भ्रामक विज्ञापनों के कारण उपभोक्ता को सही उत्पाद चयन करना कठिन हो गया है।
- ऐसी स्थिति में अब प्रत्येक व्यक्ति को समझदार उपभोक्ता बनना महत्वपूर्ण हो जाता है।
(ग) मूलभूत संकल्पनाएँ
- उपभोक्ता-हम उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं को अपनी व्यक्तिगत जरूरतों की संतुष्टि के लिए खरीदारी करने वाले के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जिनमें प्राकृतिक उत्पादों से लेकर बाजार के उत्पाद तथा सेवाएँ तक शामिल हैं।
- उपभोक्ता उत्पाद-उपभोक्ता उत्पाद ऐसी कोई भी वस्तु है जिसे उपभोक्ता के व्यक्तिगत या परिवार के प्रयोग के लिए अपने घर या किसी संस्थान में अथवा व्यावसायिक उद्देश्य से निर्मित किया तथा उसे बिक्री के लिए वितरित किया जाता है।
- उपभोक्ता व्यवहार-यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा खरीदार खरीदने के बारे में निर्णय लेता है।
- उपभोक्ता फोरम-वह स्थान जहाँ उपभोक्ता, उपभोक्ता उत्पादों व सेवाओं, उनके लाभ-हानियों के बारे में चर्चा कर सकते हैं।
- उपभोक्ता आगमन संख्या-किसी विशेष स्थान जैसे-किसी दुकान, स्टोर अथवा किसी मॉल में आने वाले ग्राहकों की संख्या।
(घ) उपभोक्ता की अपेक्षाएँ
वस्तुओं को खरीदते समय उपभोक्ता की ये अपेक्षाएँ होती हैं
- उचित कीमत,
- उपयुक्त और समुचित जानकारी,
- प्रामाणिक (असली) वस्तुएँ, पदार्थ/सेवाएँ,
- गुणवत्तापूर्ण उत्पाद,
- उत्पादों की शुद्धता,
- बिक्री और प्रोत्साहन में नैतिकता,
- सही वजन और माप।
(ङ) उपभोक्ताओं द्वारा झेली जाने वाली प्रमुख समस्यायें
- कम स्तर की खराब गुणवत्ता वाली वस्तुएँ।
- मिलावट
- अधिक कीमतें
- उपभोक्ता को जानकारी का अभाव
- विनिर्माता द्वारा अपूर्ण या त्रुटिपूर्ण जानकारी देना
- गलत तौल और माप
- अप्रामाणिक/नकली/जाली उत्पाद
- उपभोक्ता को लुभाने के लिए बिक्री संवर्धन योजनाएँ।
(च) उपभोक्ता अधिकार
भारत सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत छः उपभोक्ता अधिकारों को स्वीकृत, स्थापित और प्रतिष्ठापित किया है। इनमें प्रथम चार मौलिक अधिकार हैं और अंतिम दो अतिरिक्त अधिकार हैं। यथा
- सुरक्षा का अधिकार,
- सूचित किए जाने का अधिकार,
- चयन का अधिकार,
- सुने जाने का अधिकार,
- निवारण का अधिकार,
- शिक्षा का अधिकार।
(छ) उपभोक्ता संरक्षण की कार्यविधियां
(1) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम:
उपभोक्ता संरक्षण की पहली कार्यविधि उपभोक्ता के हित में बना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 है। इस अधिनियम का मुख्य कार्य उपभोक्ताओं की बाजार में मौजूद कपटपूर्ण बाजार नीतियों से सुरक्षा करना और उनकी शिकायतों का निवारण उपलब्ध कराना है। यह उपभोक्ता के सभी प्रकार के शोषण और उसके साथ किए गए अनुचित व्यवहार से संरक्षण करता है। इसका आशय उपभोक्ताओं की शिकायतों के लिए उन्हें सरल, शीघ्र और सस्ता निवारण उपलब्ध कराना है।
इस अधिनियम के दो पक्ष हैं
- यह उपभोक्ता को अपनी शिकायत अधिकारी से करने का अधिकार देता है और तत्काल निवारण की मांग करता है।
- उपभोक्ता निर्माता द्वारा की गई लापरवाही की वजह से होने वाली किसी हानि अथवा क्षति के लिए हर्जाने का दावा कर सकता है।
(2) मानकीकरण चिन्हों (मार्क) के माध्यम से संरक्षण-उपभोक्ता संरक्षण की दूसरी कार्यविधि मानकीकरण चिन्हों के जरिए संरक्षण प्रदान करना है। उपभोक्ताओं को मानकीकरण मार्कों वाले उत्पादों को ही खरीदना चाहिए, ताकि उत्पाद की गुणवत्ता/शुद्धता सुनिश्चित की जा सके। ये मानक चिन्ह निम्नलिखित हैं
- आई.एस.आई. मार्क
- एगमार्क और फल उत्पाद आदेश (एफ.पी.ओ.)
- वूल मार्क
- सिल्क मार्क
- हॉल मार्क
(3) संरक्षण परिषदें:
उपभोक्ता हितों की रक्षा करने वाले भारतीय मानक ब्यूरो तथा विपणन और निरीक्षण निदेशालय, भारत सरकार जैसे-वैधानिक, अर्द्ध-सरकारी और गैर-सरकारी निकायों के अतिरिक्त सरकार द्वारा केन्द्र और राज्य स्तरों पर संरक्षण परिषदों की स्थापना की गई है।
(4) गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.)/स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन:
ये संगठन अपने गैर-पक्षीय हितों के कारण उपभोक्ता शिक्षा और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उपभोक्ता जागरूकता फैलाने, उत्पादों के बारे में बताने, उपभोक्ताओं के लिए नए वैधानिक प्रावधानों के बारे में जानकारी का प्रचार करने, कानूनी सलाह और पैरवी करने, उपभोक्ताओं की शिकायतों से निपटने और सतर्कता समूहों के रूप में कार्य करने में संलग्न हैं।
(ज) उपभोक्ता के दायित्व उपभोक्ता के रूप में हमारे अधिकारों के साथ-साथ हमारे दायित्व भी हैं। ये हैं
- उपभोक्ता कानूनों और उनके प्रावधानों की अद्यतन जानकारी करते रहें।
- ईमानदारी से लेन-देन व खरीदारी।
- बाजार सर्वेक्षण तथा कीमतों की तुलना।
- वस्तुओं को बिना किसी रोक-टोक के चयन करना।
- वस्तु के लेबल/ब्रोशर की जानकारी को पढ़ना।
- मानकीकरण चिन्हों वाले उत्पाद खरीदना।
- खरीद की रसीद तथा अन्य सम्बद्ध दस्तावेज अपने पास रखना।
- बीमा, क्रेडिट कार्ड, बैंक जमा आदि सेवाओं को खरीदते समय उनका स्पष्टीकरण प्रतिनिधि द्वारा लेना।
- विभिन्न उपभोक्ता संगठनों की गतिविधियों की जानकारी बढ़ाना।
(झ) उपभोक्ता अध्ययन क्षेत्र में जीविका के लिए आवश्यक कौशल
- उपभोक्ता संरक्षण कार्यविधि और शिकायत निवारण संस्थाओं की जानकारी होना।
- अच्छा संप्रेषण और अन्तर्वैयक्तिक कौशल।
- परानुभूतिपूर्ण और विवेकपूर्ण अभिवृत्ति।
- अच्छा श्रोता होना।
- उपभोक्ता जागरूकता कार्यक्रमों, विज्ञापनों, वार्ताओं को विकसित करने के लिए सर्जनात्मक होना।
- लेखन-कौशल होना।
- उपभोक्ताओं की सहायता करने की इच्छा शक्ति का होना।
- पाठ्यक्रम-पूर्व स्नातक तथा स्नातक स्तर पर उपभोक्ता शिक्षण तथा संरक्षण प्राप्त करना।
इस हेतु बी.एससी. गृह विज्ञान, बी.एससी. परिवार संसाधन प्रबंधन, बी.एससी. गृह प्रबंधन/व्यवसाय प्रशासन अध्ययन में बी.बी.एस. आदि उपाधि पाठ्यक्रम करने के विकल्प हैं।
(ब) कार्यक्षेत्र उपभोक्ता शिक्षण और संरक्षण में प्रशिक्षण लेने के बाद निम्नलिखित क्षेत्रों में जीविका के अवसर हैं
- भारतीय मानक ब्यूरो, विपणन और निरीक्षण निदेशालय, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय आदि सरकारी संगठनों में विभिन्न निर्णय लेने वाले प्रबंधकीय और तकनीकी पदों पर कार्य कर सकते हैं।
- अनेक स्वैच्छिक संगठनों में कार्य कर सकते हैं।
- निगमित कॉर्पोरेट व्यापारिक संस्थानों के उपभोक्ता प्रभाग में कार्य।
- बाजार अनुसंधान संगठनों के साथ कार्य।
- निजी उपभोक्ता संगठन शुरू करना।
- राष्ट्रीय उपभोक्ता हैल्पलाइन में कार्य।
- विद्यालयों और महाविद्यालयों में उपभोक्ता क्लबों में परामर्शदाता के रूप में कार्य।
- दृश्य-श्रव्य प्रचार विभाग में कार्य ।
- उपभोक्ता परीक्षण प्रयोगशालाओं में कार्य ।
- उपभोक्ता संरक्षण न्यायालयों में पैरवी करना।
- पत्रकारिता सम्बन्धी कार्य।