These comprehensive RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 2 नैदानिक पोषण और आहारिकी will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 12 Home Science Chapter 2 Notes नैदानिक पोषण और आहारिकी
→ पोषण:
- पोषण खाद्य, पोषकों और दूसरे पदार्थों के साथ शरीर द्वारा उनके पाचन, अवशोषण तथा उपयोग का विज्ञान है।
- पोषण का सरोकार भोजन और खाने के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक पहलुओं से भी है।
- संक्रमण से प्रतिरोधक क्षमता और सुरक्षा देने, बीमारियों से स्वास्थ्य लाभ पाने तथा असाध्य बीमारियों से निपटने के लिए समुचित पोषण महत्त्वपूर्ण होता है। अतः स्वास्थ्य और पोषण परस्पर अंतरंग रूप से जुड़े हुए हैं।
→ नैदानिक पोषण:
पोषण का विशिष्ट क्षेत्र, जो बीमारी के समय के पोषण से संबंधित है, 'नैदानिक पोषण' कहलाता है। आजकल इसे चिकित्सीय पोषण उपचार कहते हैं । नैदानिक पोषण प्रमाणित बीमारी वाले मरीजों के पोषण प्रबंधन पर केन्द्रित रहता है।
→ महत्त्व:
गत वर्षों में पोषण के देख-रेख को सम्पूर्ण विश्व में अत्यधिक महत्त्व प्राप्त हुआ है। यथा
- स्वास्थ्य समस्यायें/बीमारियाँ और उनका उपचार पोषण स्थिति को कई प्रकार से प्रभावित कर सकते हैं, नैदानिक पोषण ऐसे मरीजों के पोषण प्रबंधन पर केन्द्रित रहता है।
- किसी अवयव/ऊतक/तंत्र की क्रिया बीमारी से प्रभावित हो जाने की स्थितियों में व्यक्ति का समचित रूप से पोषण आवश्यक है। इसके लिए यह आवश्यक है कि आहार सेवा देने वाला व्यक्ति आहार-विशेषज्ञ/चिकित्सीय पोषण विशेषज्ञ हो।
- वर्तमान में एक तरफ वृद्धजनों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ बहुत कम उम्र में अनेक ऐसी नई बीमारियाँ बढ़ी हैं, जिनसे जनसंख्या का वह भाग बढ़ रहा है, जिसे पोषण देखभाल, सहायता और आहार सलाह की आवश्यकता है। नैदानिक पोषण विशेषज्ञ विभिन्न बीमारियों के प्रबंधन के लिए चिकित्सीय आहार बताने के अलावा बीमारियों की रोकथाम और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पोषण सम्बन्धी आधारभूत शोध ने विभिन्न पोषकों और अन्य पदार्थों (पादप रसायनों, पोषण औषध और चिकित्सीय खाद्य) की भूमिका और खाद्य तथा औषध निर्माण उद्योग में हुए विकास पर प्रकाश डाला है। इससे नैदानिक पोषण क्षेत्र में उन्नति हुई है।
→ पोषण औषध:
पोषण औषध वे पदार्थ हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।
→ चिकित्सीय खाद्य:
चिकित्सीय खाद्य पदार्थ वे उत्पाद हैं जो विशिष्ट आवश्यकताओं वाले लोगों के लिए विशेष रूप से तैयार किए जाते हैं।
पादप रसायन/जैव सक्रिय यौगिक-ये खाद्य पदार्थों में पाए जाने वाले ऐसे अवयव होते हैं जिनकी शरीर में क्रियात्मक या जैविक क्रियाशीलता होती है और स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
→ मूलभूत संकल्पनाएँ
आहार विशेषज्ञ की भूमिका
- आहार विशेषज्ञ की भूमिका सलाह देने और तकनीकी सचना को आहार सम्बन्धी दिशानिर्देशों में बदलने की और यदि आवश्यक हो तो जीवन चक्र के विभिन्न स्तरों, कोख से मृत्यु तक, अच्छी पोषण स्थिति बनाए रखने और स्वस्थ रखने में मदद करने की होती है।
- विशेष बीमारियों की परिस्थितियों में पोषण और आहार चिकित्सा का उपयोग मरीजों के स्वास्थ्य के सम्पूर्ण सुधार के लिए किया जाता है।
- जिन मरीजों का ऑपरेशन कराना होता है, उन्हें सर्जरी से पहले और बाद में पूरक आहार की आवश्यकता होती है।
→ आहार चिकित्सा के उद्देश्य
- मरीज की भोजन की प्रकृति के अनुसार आहार की सूची तैयार करना।
- बीमारी को नियंत्रण हेतु वर्तमान आहार में परिवर्तन करना।
- पोषणहीनता की स्थिति में आहार उपचार-हीनता को दूर करना।
- दीर्घकालिक बीमारियों में आहार उपचार द्वारा आहार-समस्याओं को रोकने में मदद करना।
- निर्धारित आहार का अनुसरण करने की आवश्यकता सम्बन्धी शिक्षा और सलाह मरीज को देना।
एक आहार विशेषज्ञ के लिए यह आवश्यक है कि वह भोजन के स्वीकरण और उपयोग पर अस्वस्थता के प्रभाव को देखने के लिए
(a) पोषण तनाव
(b) मानसिक तनाव
(c) भोजन के स्वीकरण पर अस्वस्थता का प्रभाव तथा
(d) परिष्कृत चिकित्सीय आहारों की स्वीकार्यता पर विचार करे।
→ बीमारी में पोषण देखभाल गतिविधियाँ हैं
- पोषण स्थिति का मूल्यांकन करना।
- पोषण समस्याओं का निदान करना।
- पोषण हस्तक्षेपों की योजना बनाना और वरीयता तय करना ।
- पोषण देखभाल के परिणामों का मूल्यांकन करना।
→ पोषण देखभाल प्रक्रिया:
पोषण देखभाल प्रक्रिया किसी भी व्यक्ति या समूह पर भिन्न स्थितियों के लिए लागू की जाती है। ये स्थितियाँ हैं
- स्वस्थ व्यक्ति
- गर्भवती महिलाएँ
- वयोवृद्ध व्यक्ति
- निदानगृहों या अस्पतालों में भर्ती मरीज।
→ व्यावसायियों के लिए डॉक्टरी पोषण या आहारिकी अध्ययन का महत्त्व
- विभिन्न स्तरों की पोषण आवश्यकताओं हेतु सही तरीके से आहार योजना बनाना।
- बीमारी की विभिन्न स्थितियों में मरीजों की पृष्ठभूमि, उपचार सम्बन्धी नियम और पसंद-नापसंद को ध्यान में रखते हुए आहारों में परिवर्तन करना।
- खिलाड़ियों, सैनिकों, औद्योगिक मजदूरों आदि के लिए आहारों की योजना बनाना।
- मरीजों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना।
- विभिन्न प्रकार के संस्थानिक परिवेशों में आहार सेवाओं का प्रबंधन करना।
- दीर्घकालिक बीमारियों के रोगियों की जटिलता को रोकने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने में मदद करना।
- समुदाय में बेहतर स्वास्थ्य और संस्थानों में बेहतर रोगी देखभाल प्रबंधन के रूप में समग्र देखभाल सेवाओं| की बेहतर क्षमता को बढ़ावा देना।
→ आहार विशेषज्ञ के उत्तरदायित्व:
- यह सुनिश्चित करना कि रोगी को उचित आहार और पर्याप्त पोषण देखभाल मिल रही है।
- पोषण देखभाल योजना विकसित करना।
- अस्पताल में रोगियों को उचित हिदायत देकर पोषण योजना को लागू करना।
→ आहार के प्रकार:
आहार को मोटे रूप से दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है
- नियमित आहार-एक मानव का नियमित आहार वह होता है जो सभी प्रकार के भोजनों को सम्मिलित करता है और स्वस्थ व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
- संशोधित आहार-संशोधित आहार वे होते हैं जो रोगी की चिकित्सीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समायोजित किए जाते हैं। इनमें निम्नलिखित में से एक या अधिक हो सकते हैं
- क्रमबद्धता और बनावट (जैसे-तरल और नरम आहार),
- ऊर्जा (कैलोरी) अंतर्ग्रहण में कमी या वृद्धि
- एक या अधिक पोषकों को कम या अधिक मात्रा में शामिल करना।
→ तरलता में परिवर्तन:
परिस्थितियों के अनुसार रोगियों को तरल आहार, नरम या नियमित आहार। ठोस खाद्य पदार्थ लेने की सलाह दी जाती है। यथा
→ संजीव पास बुक्स
- तरल आहार-तरल आहार कमरे के ताप पर सामान्यतः द्रव अवस्था में रहते हैं, जैसे-नारियल पानी, सूप, जूस, छाछ, दूध आदि। लेकिन इनसे व्यक्ति की पोषण आवश्यकताओं को पूरा करना आसान नहीं है।
- नरम आहार-नरम परन्तु ठोस पदार्थ उपलब्ध कराता है। इसमें सम्मिलित हैं-खिचड़ी, दलिया इत्यादि।
- तैयार मृदु आहार-बड़ी उम्र समूह के सामान्य प्रौढ़ों के लिए भी आहार में कुछ संशोधन करने पर इसे तैयार मृदु आहार कहा जाता है। यह नरम, कुचला हुआ और शोरबा युक्त भोजन होता है जो चबाने में आसान होता है। लेकिन यह केवल आसानी से पचने वाला भोजन होता है, जिसमें कठोर रेशे, उच्च वसा या मसाले युक्त खाद्य पदार्थ नहीं होते।
→ भोजन देने के तरीके:
- रोगी को भोजन देने का सही तरीका मुँह से भोजन खिलाना है।
- यदि रोगी के लिए भोजन चबाना या निगलना संभव नहीं है या व्यक्ति बेहोश है या उसकी आहार नली में कोई समस्या है तो ऐसे व्यक्तियों के लिए दो विकल्प हैं
- नली द्वारा भोजन ग्रहण करना।
- अंतःशिरा से भोजन देना।
→ चिरकालिक रोगों की रोकथाम
- आहार और अच्छा पोषण रोगी व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण होने के अतिरिक्त, चिरकालिक रोगों को नियंत्रित करने और उनके प्रारंभ होने की अवस्था में विलम्ब कर सकता है।
- पिछले दशक में शहरी भारतीयों के आहारों में वसा और परिष्कृत शक्कर का उपयोग बढ़ गया है। रेशेदार भोजन तथा विटामिनों और खनिजों का लिया जाना कम हो गया है। इसके परिणामस्वरूप अनेक चिरकालिक रोगों मोटापा, कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, अतितनाव आदि की संख्या बढ़ रही है। इन रोगों के रोकथाम हेतु अच्छा पोषणयुक्त आहार ही लेना आवश्यक है जिसमें प्रचुर मात्रा में रेशे, विटामिन और खनिज लवण हों।
→ जीविका की तैयारी:
व्यावसायिक नैदानिक, आहार विशेषज्ञ में आवश्यक रूप से निम्नलिखित ज्ञान तथा कौशल होने चाहिए
(अ) ज्ञान:
- रोग की परिस्थितियों में शारीरिक परिवर्तनों का ज्ञान।
- पोषक तत्त्व की प्रस्तावित दैनिक मात्रा में परिवर्तनों का ज्ञान।
- बीमारी में पोषकों की आवश्यकता और आवश्यक आहारी संशोधनों के प्रकार का ज्ञान।
- परंपरागत और जातीय पाक विधियों का ज्ञान।
- रोगियों के साथ प्रभावी रूप से बातचीत के लिए विभिन्न भाषाओं का ज्ञान।
(ब) कौशल:
- नैदानिक और जैव रासायनिक मापदंडों का उपयोग कर रोगियों की आहारी दशा के मूल्यांकन का कौशल।
- वैयक्तिक रोगियों और विशिष्ट रोग परिस्थितियों में आवश्यकता के अनुरूप आहार योजना तैयार करने का कौशल।
- रोगियों के लिए आहारों की संस्तुति करने और देने का कौशल।
- सांस्कृतिक वातावरण को अपनाने का कौशल तथा भोजन निषिद्धता और मिथ्या धारणाओं से मुक्त होने का कौशल।
→ जीविका के लिए तैयारी:
आहार विशेषज्ञ बनने के लिए अर्हताएँ आवश्यक हैं
- आहारिकी में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पास करना और साथ ही इंटर्नशिप करना।
- जिनके पास जीव विज्ञान, जैव रसायन, सूक्ष्म जैविकी में बी.एस.सी. की डिग्री है, वे इस क्षेत्र में स्नातकोत्तर डिप्लोमा स्तर पर प्रवेश पा सकते हैं।
- खाद्य विज्ञान और पोषण में एम.एस.सी. भी किसी भी व्यक्ति को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदान करती है और . उसे नौकरी के योग्य बनाती है।
- यदि आप शैक्षिक या शोध क्षेत्रों में अपनी जीविका चाहते हैं तो आप इस क्षेत्र में पी.एच.डी की डिग्री प्राप्त करें।
→ कार्यक्षेत्र (जीविका के अवसर):
नैदानिक पोषण और आहारिकी में पोषण विशेषज्ञ, आहार सलाहकार, शोधकर्ता या उद्योग सलाहकार के रूप में संतोषजनक जीविका के लिए पर्याप्त कार्य करने के अवसर और क्षमताएँ हैं। यथा
- स्वास्थ्य क्लबों या व्यायामशालाओं में सलाहकारों/चिकित्सकों के साथ आहार विशेषज्ञ।
- अस्पतालों में विशिष्ट विभागों सहित अन्य में आहार विशेषज्ञ के रूप में स्वास्थ्य देखभाल दल को पोषणसहायता करने वाला प्रमुख सदस्य।
- अस्पतालों, विद्यालयों, उद्योगों के अल्पाहार गृहों इत्यादि की खान-पान सेवाओं में आहार विशेषज्ञ।
- उद्यमी जो विशिष्ट स्वास्थ्य प्रयोजनों के लिए विशिष्ट प्रकार के खाद्य पदार्थों का विकास और आपूर्ति करते हैं।
- शिक्षण और शिक्षक।
- शोध जिसमें चिकित्सकीय शोध भी सम्मिलित है।
- पोषण विपणनं तथा तकनीकी लेखन।