These comprehensive RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 14 संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण will give a brief overview of all the concepts.
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→ भारत में संग्रहालय का उद्भव तथा अर्थ
भारत में संग्रहालय की प्रथा का उद्भव पश्चिम से हुआ जिसका लक्ष्य पुराकाल की वस्तुओं का संग्रह करना था। भारतीय संस्कृति में खंडित वस्तुओं के संग्रहालय स्थापित करने की कोई प्रथा न थी।
संग्रहालय शब्दं यूनानी विचारधारा से लिया गया है जिसका अर्थ है-कला मंदिर अर्थात् सीखने और अध्ययन का एक पवित्र स्थान। 19वीं शताब्दी के बाद भारत की कला और संस्कृति का ज्ञान लोगों तक पहुंचाने के लिए संग्रहालयों की स्थापना हुई।
→ संग्रहालय का महत्व
→ संग्रहालय के उद्देश्य
संग्रहालय निम्नलिखित अनेक उद्देश्यों के लिए संग्रहित की गई वस्तुएँ रखते हैं
→ मूलभूत संकल्पनाएँ
(1) संरक्षण-संरक्षण मुख्य रूप से किसी वस्तु के जीवन काल को दीर्घ बनाने पर लक्षित एक संक्रिया है और यह उसके अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक प्राकृतिक या आकस्मिक ह्रास को रोकने में परिणत होती है।
संरक्षण के प्रकार-सरंक्षण दो प्रकार का होता है। यथा
(2) वस्त्र संरक्षण-वस्त्र संरक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव किया जाता है ताकि भविष्य में होने वाली क्षति से उन्हें सुरक्षित रखा जा सके।
(3) संरक्षक-जो व्यक्ति संग्रहालयों की शिल्पकृतियों और वस्तुओं को सुरक्षित रखता है, वह संरक्षक कहलाता है।
→ वस्त्र-विकृति के कारक
वस्त्रों के क्षतिग्रस्त होने के कारकों को मोटे रूप से दो भागों में बाँटा जाता है-(अ) प्राकृतिक कारक और (ब) मानव निर्मित कारक।
(अ) प्राकृतिक कारक-कार्बनिक प्रकृति के होने के कारण वस्त्र
(1) प्रकाश:
प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है जो वस्त्रों का रंग फीका कर सकता है और वस्त्रों के रेशों का रासायनिक और भौतिक ह्रास कर सकता है।
प्रकाश के कारण क्षति धीरे-धीरे होती है। रंगों का धूमिल पड़ना, प्रकाश से होने वाली क्षति के आसानी से पाए जाने वाले लक्षण हैं । इसमें पहले वस्तु अपना लचीलापन खोती है, फिर कमजोर पड़ती है, भंगुर हो जाती है और अंत में फट जाती है। इस प्रक्रिया में वस्त्रों का पीला या भूरा पड़ जाना उनकी खराब अवस्था का सूचक है।
प्रकाश से क्षति को रोकना
(2) नमी और ऊष्मा
नमी और ऊष्मा से क्षति को रोकना
(3) नाशक जीव-नाशक जीव वस्त्रों के लिए अन्य प्रमुख खतरा हैं। इनमें अधिकतर पाए जाने वाले मोथ (शलभ) कार्पेट बीटल, सिलवर फिश और चूहे होते हैं। इन कीटों का खतरा, उष्णकटिबंधीय जलवायु में शीतोष्ण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होता है।
→ नाशक जीवों से होने वाली क्षति की रोकथाम
(4) पर्यावरणीय कारक (फफूंदी, धूल आदि)
(i) फफूंदी-फफूंदी हल्के गरम, नम वातावरण में लगती है, जहाँ वायु का आवागमन कम होता है। यदि वस्त्रों पर रोएंदार वृद्धि या बिखरे हुए धब्बे हों या हवा में एक फफूंदीदार गंध हो तो यह उसका सूचक है कि यह क्षति फफूंदी के कारण हुई है।
फफूंदी से होने वाली क्षति को रोकना
(ii) धूल-धूल वायु में उपस्थित महीन कणकीय प्रदूषक है, जिसमें अनेक पदार्थ मिले होते हैं। जब वस्त्रों में जमी धूल समय के साथ रेशों में चली जाती है तो इसे हटाना असंभव सा हो जाता है तथा धूल में पोषण मिलने से नाशक कीट उसमें आश्रय ले लेता है।
धूल से होने वाली क्षति से रोकथाम
(ब) मानव जनित कारक-मनुष्यों द्वारा वस्त्रों को क्षति पहुँचाने वाले अनेक कारक हैं। यथा
→ वस्त्रों का भंडारण
प्रतिकूल भंडारण परिस्थितियाँ संग्रह की गई सभी वस्तुओं को प्रभावित करती हैं, लेकिन एक अच्छा भंडारण पर्यावरण भौतिक क्षति को रोकता है और रासायनिक विकृति को धीमा करता है। इससे वस्त्रों का जीवनकाल बहुत बढ़ जाता है।
वस्त्रों की धरोहर सामग्री को साइज और आवश्यकता के अनुसार भंडारित किया जाता है, जैसे-लिपटा हुआ भंडारण, बाक्स भंडारण आदि।
→ वस्त्रों के प्रदर्शन के लिए आदर्श स्थितियाँ
→ जीविका (करियर) के लिए तैयारी
संरक्षणकर्ता बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता कला बोध की है। व्यक्ति को कला के प्रति लगाव होना चाहिए। उसमें कला की जटिलताओं का मूल्यांकन करने एवं समझने का रुझान होना चाहिए। इसके साथ ही साथ
→ कार्यक्षेत्र
कोई भी व्यक्ति कला संरक्षण क्षेत्र में डिग्री या कम अवधि के डिप्लोमा ग्रहण कर लेता है तो उसके पास राजकीय नौकरी या निजी संग्रहालयों या कला दीर्घाओं में कार्य करने के विकल्प होते हैं।
संरक्षण का पाठ्यक्रम पूरा करने के पश्चात् बहुत से अवसर मिलते हैं