RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 10 बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन

These comprehensive RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 10 बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन will give a brief overview of all the concepts.

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 10 Notes बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन

→ परिवार:
परिवार समाज की मूल इकाई है और इसका कार्य अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को देखना और ध्यान रखना है।

→ बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों की आवश्यकता

  • परिवार हमेशा अपने सदस्यों की इष्टतम वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक सभी विशिष्ट सेवाएँ प्रदान नहीं कर पाता है। इसलिए प्रत्येक समुदाय अन्य ऐसी संरचनाओं, जैसे-विद्यालयों, अस्पतालों, विश्वविद्यालयों, मनोरंजन केन्द्रों, प्रशिक्षण केन्द्रों आदि का निर्माण करता है जो समाज के सदस्यों को विशिष्ट या सहायक सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • यद्यपि एक परिवार से समाज की ये संरचनाएँ मिलकर परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, तथापि हमारे देश में कुछ परिवार विभिन्न कारणों से अपने सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। इसके प्रमुख कारण हैं
    • परिवार में वित्तीय संसाधनों की कमी
    • गरीबी
    • उचित सफाईसुविधाएँ उपलब्ध न होना
    • कम प्रशिक्षित दाइयों द्वारा प्रसव कराना
    • आयोडीन युक्त नमक न खाना
    • बालिकाओं और महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा
    • कुपोषण आदि।
  • ऐसे परिवारों अथवा चुनौतीपूर्ण सदस्यों के लिए सरकार और समाज को आगे बढ़कर इनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रयास करने चाहिए। यथा
    (अ) ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का एक तरीका संस्थान स्थापित करना तथा बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए समर्पित कार्यक्रमों को शुरू करना है।
    (ब) यह निजी अथवा गैर-सरकारी संगठनों के प्रयासों की भी सहायता कर सकते हैं।
    (स) इनमें कुछ संस्थान और कार्यक्रम विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने पर और कुछ समग्र परिप्रेक्ष्य पर केन्द्रित हो सकते हैं।

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→ मूलभूत संकल्पनाएँ
(अ) संवेदनशील समूह-संवेदनशील समूह का अर्थ समाज के उन व्यक्तियों या समूहों से है जिन पर प्रतिकूल परिस्थितियों का अधिक हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जैसे-बच्चे, युवा, वृद्धजन। दूसरे, यदि किसी व्यक्ति की आवश्यकताएँ दैनिक जीवन के क्रम में पूरी नहीं होती तो वह व्यक्ति संवेदनशील बन जाता है।

(ब) बच्चे
(1) बच्चे संवेदनशील क्यों होते हैं?

  • बच्चे संवेदनशील होते हैं क्योंकि बाल्यावस्था सभी क्षेत्रों में तीव्र विकास की अवधि होती है और एक क्षेत्र का विकास अन्य सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
  • वे बच्चे दूसरों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते हैं, जो चुनौतीपूर्ण स्थितियों और कठिन परिस्थितियों में जीते हैं।
  • कठिन परिस्थितियों में रहने वाले सभी बच्चों को विशेष देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है।
  • कुछ बच्चे कानून का उल्लंघन करते हैं अथवा गैर-सामाजिक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं। ऐसे बच्चों के लिए किशोर बच्चों की देखरेख और संरक्षण अधिनियम 2000 की स्थापना की गई है। इस अधिनियम के दो पक्ष हैं-एक, कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे (बाल अपराधी) को भारतीय दंड संहिता के उल्लंघन करने पर दंडित करना। दूसरा पक्ष है-बाल-अपराध रोकथाम और उनके साथ व्यवहार।

इस अधिनियम के अनुसार देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे वे हैं

  • जिनका कोई घर या निश्चित आश्रय नहीं है। 
  • ऐसे बच्चे जिनके अभिभावकों के दुर्व्यवहार की संभावना होती है। 
  • दिव्यांग या बीमार बच्चे। 
  • जिन्हें यौन दुर्व्यवहार या अनैतिक कार्यों के लिए प्रताडित या दंडित किया जाता है।
  • नशीली दवाओं के आदी या उनका अवैध व्यापार में संलग्न बच्चे।
  • सशस्त्र या नागरिक विद्रोह या प्राकृतिक आपदा के शिकार बच्चे।
  • परित्यक्त, अनाथ, कारखानों से छुड़ाए गए बाल श्रमिक, गुम या भागे हुए बच्चे आदि।

(2) संस्थागत कार्यक्रम और बच्चों के लिए पहल-संवेदनशील बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश में अनेक कार्यक्रम और सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। ऐसे कुछ प्रमुख कार्यक्रम ये हैं

  • भारत सरकार की समेकित बाल विकास सेवाएँ।
  • एस.ओ.एस. बाल गाँव।
  • सरकार द्वारा चलाए जाने वाले बालगृह ये हैं
    • प्रेक्षण गृह
    • विशेष गृह
    • किशोर/बालगृह।।

(3) गोद लेना-भारत में बच्चा गोद लेने की परम्परा काफी पुरानी है। पहले सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं के आधार पर बच्चा गोद लिया जाता था। बाद में इस प्रथा को संस्थागत और विधिक बना दिया गया।
इस सम्बन्ध में भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय की सलाह के तहत एक केन्द्रीय संस्था केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था' का गठन किया है जो बच्चों के कल्याण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए गोद लेने के लिए दिशा निर्देश देती है।

(स) युवा-युवा 13-35 वर्ष की आयु के व्यक्ति हैं जो आगे. व्यापक रूप से दो उपसमूहों में उप विभाजित हैं

  • किशोर (13-19 वर्ष) और 
  • युवक (20-35 वर्ष)।

(1) युवा क्यों संवेदनशील हैं?-युवावस्था अनेक कारणों से संवेदनशील अवधि है

  • शरीर में होने वाले जैविक परिवर्तन
  • आजीविका कमाना
  • विवाह करना
  • पारिवारिक जीवन प्रारंभ करना
  • निरन्तर प्रतिस्पर्धी होती दुनिया में साथियों का दबाव
  • बेहतर करने का दबाव
  • यौन और जनन सम्बन्धी जोखिम आदि।

(2) विशेष रूप से संवेदनशील युवा-समूह-युवाओं के व्यापक संवर्ग में कुछ ऐसे समूह हैं जो विशेष रूप से संवेदनशील हैं। ये हैं

  • ग्रामीण और जनजातीय युवा;
  • विद्यालय छोड़ चुके युवा;
  • किशोर, विशेष रूप से किशोरियाँ;
  • दिव्यांगताओं वाले युवा;
  • विशेष कठिन स्थितियों वाले युवा, जैसे-अवैध धंधों के शिकार, अनाथ और सड़क के आवारा बच्चे।

(3) युवाओं की आवश्यकताएँ-सामाजिक रूप से उपयोगी और आर्थिक रूप से उत्पादक होने के लिए युवाओं की निम्न प्रमुख आवश्यकताएँ हैं

  • उचित शिक्षा और प्रशिक्षण।
  • लाभदायक रोजगार।
  • व्यक्तिगत विकास और तरक्की के लिए उचित अवसर।
  • अपेक्षित आश्रय, स्वच्छ परिवेश तथा मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएँ।
  • सभी प्रकार के शोषणों के विरुद्ध सामाजिक सुरक्षा, संरक्षण।
  • युवाओं से संबंधित मुद्दों से सरोकार रखने वाली निर्णायक संस्थाएँ।
  • सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में उपयुक्त भागीदारी के अवसर। 
  • खेलों, शारीरिक शिक्षा, साहसी और मनोरंजनात्मक अवसरों तक पहुँच।

(4) भारत में युवाओं के लिए कार्यक्रम-युवा मामलों और खेलकूद मंत्रालय ने 2003 में राष्ट्रीय युवा नीति के अन्तर्गत युवाओं के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम उपलब्ध हैं

  • राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.)।
  • राष्ट्रीय सेवा स्वयंसेवक योजना।
  • साहसिक कार्यों को प्रोत्साहन जैसे-पर्वतारोहण, पैदल यात्रा, वनों, मरुस्थलों और सागरों, पहाड़ों की वनस्पतियों व जीव-जन्तुओं का अध्ययन, नौकायन आदि को प्रोत्साहन।
  • स्काउट और गाइड।
  • राष्ट्रमण्डल युवा कार्यक्रम। 
  • राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन ।

RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 10 बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन

(द) वृद्धजन-अनेक देशों में वरिष्ठ नागरिक 65 वर्ष या अधिक आयु वाले व्यक्ति होते हैं, जबकि भारत में 60 वर्ष या अधिक आयु के व्यक्तियों को वरिष्ठ माना जाता है।
वर्ष 2016 में भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत थी।
(1) भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या की विशिष्टताएँ

  • लगभग 80 प्रतिशत वृद्ध ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
  • वृद्ध जनसंख्या का 51 प्रतिशत महिलाएँ हैं।
  • 80 वर्ष से अधिक आयु के वृद्धों की संख्या में वृद्धि।
  • वृद्धों की 30 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे।

(2) वृद्धजन क्यों संवेदनशील हैं?-वृद्धजन विभिन्न कारणों से संवेदनशील समूह है। यथा

  • रोगों के लिए
  • अनेक दिव्यांगताएँ, जैसे-दृष्टि कमजोर होना, अंधापन, तंत्रिका विकार के कारण बहरापन, गठिया के कारण चलने-फिरने में परेशानी
  • अपनी देखभाल कर पाने में अक्षमता
  • अकेलेपन की पीड़ा, पृथक्करण और दूसरों पर बोझ बन जाने की भावना।
  • आर्थिक रूप से बच्चों पर निर्भरता
  • शहरी जीवन की विशिष्टताओं के कारण परिवारजनों द्वारा उचित देखभाल न किया जाना
  • अपने लिए स्वतंत्रता, भौतिकता और आत्मकेन्द्रित होने जैसी प्रवृत्तियाँ।

(3) वृद्धजनों के लिए कुछ कार्यक्रम-सरकारी-गैर सरकारी संगठन, पंचायती राज संस्थान और स्थानीय निकाय भारत में वृद्धजनों के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कर रहे हैं । जैसे—परित्यक्त बुजुर्गों के लिए भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम, अन्तरपीढ़ीय संबंधों के विकास कार्यक्रम, सक्रिया और उत्पादक रूप से वृद्धावस्था गुजारने का कार्यक्रम, संस्थागत और गैर-संस्थागत बुजुर्ग देखरेख सेवा कार्यक्रम, वृद्धावस्था सदन, बहुसेवा केन्द्र, मोबाइल चिकित्सा देखभाल इकाइयाँ, अल्जाइमर रोग। पागलपन के रोगियों के लिए डे-केयर सेन्टर, सहायता एवं परामर्श केन्द्र, अनेक चिकित्सीय व सहायक चिकित्सीय उपकरण सम्बन्धी कार्यक्रम तथा वृद्धजनों की देखभाल करने वालों के लिए प्रशिक्षण तथा राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना आदि।

(य) जीविका के लिए तैयारी करना-बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर। रोजगार के लिए एक योजनाकार, प्रबंधक और परीक्षक की क्षमताओं और कौशलों का होना आवश्यक है। इस हेतु निम्नलिखित कौशलों और क्षमताओं का विकास करना आवश्यक है
(1) जन कौशल-किसी संगठन को चलाने या उसमें काम करने का अर्थ है-आपको विभिन्न पदों पर काम करने वाले भिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों से बातचीत करनी है। ये व्यक्ति समूह हैं

  • समुदाय/समाज
  • निजी क्षेत्र
  • सरकारी अधिकारी
  • संगठन में काम करने वाले व्यक्ति।

(2) प्रशासनिक कौशल-किसी संगठन या कार्यक्रम को चलाने या उसका प्रबंधन करने में वित्तीय हिसाबकिताब रखना, व्यक्तियों की भर्ती करना, स्थान किराए पर रखना, उपकरण खरीदना, रिकॉर्ड और सामान का हिसाब रखना शामिल हैं। आपको इनमें से प्रत्येक मुद्दे की मूलभूत समझ होनी चाहिए।

(3) शैक्षणिक योग्यता-बच्चों, युवाओं, वृद्धजनों के लिए कार्यक्रमों और संस्थानों में करिअर/रोजगार की तैयारी के निम्नलिखित चरण हैं

  • पूर्व-स्नातक डिग्री प्राप्त करना-पहला चरण बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के बारे में जानकारी अर्जित करना और उनके प्रति समझ विकसित करना है। इसके लिए गृह विज्ञान अथवा सामाजिक कार्य में अथवा समाज विज्ञान की अन्य शाखा में पूर्व स्नातक डिग्री प्राप्त करना सही रहता है।
  • रोजगार बाजार में प्रवेश या उच्चतर अध्ययन-पूर्व स्नातक डिग्री के बाद रोजगार बाजार में प्रवेश किया जा सकता है अथवा आगे अध्ययन करने का विकल्प चुना जा सकता है।
  • पारंपरिक प्रणाली का अध्ययन जारी रखने के साथ-साथ इग्नू से निम्नलिखित पाठ्यक्रम का अध्ययन कर सकते हैं
  • गैर-सरकारी संगठन प्रबंधन में सर्टिफिकेट कार्यक्रम 
  • युवा विकास कार्य में डिप्लोमा आदि। 

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(र) कार्यक्षेत्र-इस क्षेत्र में निम्नलिखित रोजगार के अवसर हैं

  • निजी संस्थान स्थापित करना। 
  • किसी प्रतिष्ठित संस्थान अथवा कार्यक्रम में प्रबंधक बनना। 
  • किसी स्तर/कॉडर में काम करना। 
  • मौजूद कार्यक्रमों और संस्थानों में शोधकर्ता, मूल्यांकनकर्ता/परीक्षक। 
Prasanna
Last Updated on July 15, 2022, 11:50 a.m.
Published July 15, 2022