RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

बहुचयनात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
आय का वह न्यूनतम स्तर जो किसी देश में जीवन का उपयुक्त स्तर पाने के लिए आवश्यक होता है, कहलाता है- 
(अ) जीवन स्तर 
(ब) जीवन की गुणवत्ता 
(स) गरीबी रेखा 
(द) विकास। 
उत्तर:
(स) गरीबी रेखा 

प्रश्न 2. 
जहाँ सेवक धार्मिक कार्यों में निःशुल्क सेवाएँ देते हैं, ऐसे श्रमदान को कहते हैं-
(अ) सेवा 
(ब) कर्त्तव्य 
(स) सामाजिक दायित्व 
(द) कार सेवा 
उत्तर:
(द) कार सेवा

प्रश्न 3. 
भारत में सामान्य रूप से कितने वर्ष के व्यक्ति को वृद्ध या वरिष्ठ नागरिक मान लिया जाता है? 
(अ) 50 वर्ष 
(ब) 55 वर्ष 
(स) 58 वर्ष 
(द) 60 वर्ष 
उत्तर:
(द) 60 वर्ष

प्रश्न 4. 
वृद्ध व्यक्तियों की नियुक्ति के विरोध में दिए जाने वाला तर्क है- 
(अ) वे अनुभवी होते हैं। 
(ब) उनके नौकरी छोड़ने की संभावना कम होती है। 
(स) वे युवा सहकर्मियों के उन्नति के अवसरों को रोक सकते हैं।
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं। 
उत्तर:
(स) वे युवा सहकर्मियों के उन्नति के अवसरों को रोक सकते हैं।

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प्रश्न 5. 
एक व्यक्ति अथवा व्यवसाय के विभिन्न सदस्यों के आचरण का परिचालन करने वाले नियम कहलाते हैं-
(अ) नैतिकता 
(ब) कार्य 
(स) सेवा 
(द) मूल्य। 
उत्तर:
(अ) नैतिकता

प्रश्न 6. 
रचनात्मकता को विकसित करने की विधि नहीं है- 
(अ) पढ़ना 
(ब) लिखना 
(स) पूर्वाग्रही होना 
(द) चिंतन और कल्पना करना 
उत्तर:
(स) पूर्वाग्रही होना

प्रश्न 7. 
निम्न में से कौनसा व्यवसाय सम्बन्धी भौतिक खतरा है? 
(अ) कोयले की धूल 
(ब) मलेरिया 
(स) बहरापन 
(द) क्षय रोग 
उत्तर:
(स) बहरापन

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें- 

1. ............. के परिणामस्वरूप होते हैं-मुद्रास्फीति, व्यापार का प्रतिकूल संतुलन, अल्प वृद्धि दर तथा बेरोजगारी।
2. ............ कर्मचारी के अनुकूल कार्य परिवेश बनाने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ कार्य का अध्ययन करना है।
3. ............. वह व्यक्ति होता है जो एक नए विचार को वास्तविकता का रूप देने का जोखिम उठाता है।
4. स्वैच्छिक सेवा ऐसा आचरण है जिसमें वयक्ति बिना किसी वित्तीय या भौतिक लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से ............ के लिए कार्य करता है।
5. भारत में ............... जनसंख्या के एक बड़े भाग के मुख्य व्यवसायों में से एक व्यवसाय रहा है।
उत्तर:
1. कम उत्पादकता
2. सुकार्यिकी 
3. एक उद्यमी 
4. दूसरों 
5. कृषि। 

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
सभी मनुष्यों के लिए कार्य क्या है? 
उत्तर:
सभी मनुष्यों के लिए कार्य मुख्यतः दैनिक जीवन की अधिकांशं गतिविधियाँ हैं। 

प्रश्न 2. 
अधिकांश व्यक्ति कार्य क्यों करते हैं? 
उत्तर:
अधिकांश व्यक्ति इतना धन अर्जित करने के लिए कार्य करते हैं जिससे परिवार का खर्च चल सके और आराम, मनोरंजन, खेल व खाली समय के लिए समुचित व्यवस्था हो सके। 

प्रश्न 3. 
गृहणियों/माताओं के लिए किया गया कार्य क्या है? 
उत्तर:
गृहणियों/माताओं के लिए किया गया कार्य एक कर्त्तव्य भी है और एक योगदान भी। 

प्रश्न 4. 
कार्य में सम्मिलित हो सकने वाली किन्हीं चार गतिवधियों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:

  • वेतन के लिए कार्य 
  • उद्यम वृत्ति 
  • परामर्श 
  • समाज कल्याण के लिए सामाजिक कार्य। 

प्रश्न 5. 
मनोरंजन क्या है? 
उत्तर:
मनोरंजन वह गतिविधि है जो शरीर, मन अथवा आत्मा को आराम देती है और व्यक्ति को कठिन कार्य से राहत मिलती है। 

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प्रश्न 6. 
आय किसे कहते हैं? 
उत्तर:
लोग कार्य के बदले जो धन प्राप्त करते हैं, उसे आय कहते हैं। 

प्रश्न 7. 
जीवन-स्तर से क्या आशय है? 
उत्तर:
जीवन-स्तर सामान्यतः धन-दौलत और आराम के स्तर, भौतिक सामग्री और उपलब्ध आवश्यकताओं का द्योतक है। 

प्रश्न 8. 
जीवन-स्तर का उपयोग किसके लिए किया जाता है? 
उत्तर:
जीवन-स्तर का उपयोग प्रायः क्षेत्रों अथवा देशों की परस्पर तुलना के लिए किया जाता है। 

प्रश्न 9. 
जी.डी.पी. से क्या आशय है? 
उत्तर:
जी.डी.पी. किसी राष्ट्र/क्षेत्र की भौगोलिक सीमाओं में एक निश्चित समय (सामान्यतः एक वर्ष) में .. उत्पादित सभी सामग्री और सेवाओं का मूल्य है। 

प्रश्न 10. 
गरीबी रेखा क्या है? 
उत्तर:
गरीबी रेखा आय का वह न्यूनतम स्तर है जो किसी देश में जीवन का उपयुक्त स्तर पाने के लिए आवश्यक होता है। इसमें भोजन, वस्त्र और मकान जैसी आवश्यकताएँ ही पूरी होती हैं। 

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प्रश्न 11. 
किसी राष्ट्र या वर्ग के विकास की गति किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
किसी राष्ट्र या वर्ग के विकास की गति उसके सभी सदस्यों की उत्पादकता और सफलता पर निर्भर करती है। 

प्रश्न 12. 
समाज,सेवा क्या है? 
उत्तर:
समाज के अभावग्रस्त लोगों की मदद करना समाज सेवा कहलाती है। 

प्रश्न 13. 
समाज सेवक किसे कहते हैं? 
उत्तर:
समाज सेवक वह व्यक्ति होता है जो समाज के अभावग्रस्त लोगों के कल्याण से सरोकार रखता है तथा वर्ग, संस्कृति, जाति, धर्म को लेकर कोई भेदभाव नहीं करता है। . 

प्रश्न 14. 
स्वैच्छिक सेवा क्या है? 
उत्तर:
स्वैच्छिक सेवा ऐसा आचरण है जिसमें व्यक्ति बिना किसी वित्तीय या भौतिक लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से दूसरों के लिए कार्य करता है। 

प्रश्न 15. 
कौशल-आधारित स्वेच्छावृत्ति किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जब व्यक्ति उस क्षेत्र में सेवा कार्य करते हैं जिनमें वे विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं, जैसे-नर्सिंग, तो इसे कौशल आधारित स्वेच्छावृत्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 16. 
ई-स्वैच्छिक सेवा क्या है? 
उत्तर:
ई-स्वैच्छिक सेवा ऑनलाइन स्वैच्छिक सेवा है। इसके लिए स्वयंसेवक कंप्यूटर और इंटरनेट का उपयोग कर सहायता कार्य करता है। 

प्रश्न 17. 
कार-सेवा क्या है? 
उत्तर:
कार-सेवा एक प्रकार का श्रमदान है जहाँ सेवक धार्मिक कार्यों में निःशुल्क सेवाएँ देते हैं। 

प्रश्न 18. 
समुदाय-आधारित कोई दो विकास परियोजनाएँ बताइए। 
उत्तर:

  • बड़ों के लिए कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम। 
  • प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम। 

प्रश्न 19. 
भारत के किन्हीं चार परम्परागत व्यवसायों के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  • कृषि 
  • पशुपालन 
  • मछली पकड़ना 
  • मिट्टी के बर्तन बनाना। 

प्रश्न 20. 
भारत में ऐतिहासिक दृष्टि से कलाकारों और शिल्पकारों को किन दो वर्गों के संरक्षकों से सहायता मिलती थी? 
उत्तर:
ऐतिहासिक दृष्टि से भारत में कलाकारों और शिल्पकारों को दो मुख्य वर्गों के संरक्षकों से सहायता मिलती थी-

  • बड़े हिंदू मंदिर 
  • विभिन्न राज्यों के शासक। 

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प्रश्न 21. 
आधुनिक काल में कलाओं को किनके द्वारा संरक्षण व प्रोत्साहन मिलता है? 
उत्तर:
आधुनिक काल में कलाओं को सरकार और कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संरक्षण और प्रोत्साहन मिलता है। 

प्रश्न 22. 
भारत में परम्परागत व्यवसायों के समक्ष वर्तमान में क्या मुख्य बाधाएँ हैं? 
उत्तर:
भारत में परम्परागत व्यवसायों के समक्ष मख्य बाधाएँ ये हैं-

  • निरक्षरता 
  • सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन 
  • अकुशल वित्तीय व विपणन सेवाएँ तथा 
  • भूमि सुधारों के क्रियान्वयन में धीमी प्रगति। 

प्रश्न 23. 
लिंग (सेक्स) और स्त्री-पुरुष (जेंडर) शब्दों में क्या अन्तर है? 
उत्तर:
सेक्स (लिंग) आनुवांशिकी, जनन अंगों इत्यादि के आधार पर जैविक वर्ग से संबंधित है जबकि जेंडर सामाजिक पहचान पर आधारित है। 

प्रश्न 24. 
कमाने में सक्रिय भागीदारी और परिवार के संसाधनों में योगदान देने के बावजूद स्त्रियाँ निरन्तर शक्तिहीन क्यों रहती चली आ रही हैं? 
उत्तर:
कमाने में सक्रिय भागीदारी और परिवार के संसाधनों में योगदान देने के बावजूद स्त्रियों को निर्णय लेने और स्वतंत्र रहने की मनाही के कारण वे निरन्तर शक्तिहीन रहती चली आ रही हैं। 

प्रश्न 25. 
वर्तमान में बाहर कार्यशील महिलाओं पर दोहरा भार किस रूप में पड़ गया है? 
उत्तर:
वर्तमान में बाहर कार्यशील महिलाओं से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वे घर का अधिकांश काम-काज करें और मुख्य देखभाल करने वाली भी बनी रहें। 

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प्रश्न 26. 
स्त्रियों के कार्य से संबंधित किन्हीं दो मुद्दों का उल्लेख कीजए। 
उत्तर:

  • स्त्रियों की कमाई को पूरक और गौण माना जाना। 
  • बिना जेंडर भेदभाव के कार्यस्थलों पर सुनिश्चित सुरक्षा। 

प्रश्न 27. 
बाल-श्रम किसे कहा जाता है? 
उत्तर:
बाल-श्रम सामान्यतः 15 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की गई आर्थिक गतिविधि को कहा जाता है। भारत में यह आयु 14 वर्ष है। 

प्रश्न 28. 
जोखिम भरे कार्यों को किस आयु से पहले करने की अनुमति नहीं है? 
उत्तर:
18 वर्ष की आयु से पहले। 

प्रश्न 29. 
भारत में 5-14 वर्ष आयु समूह के कितने बच्चे पारिश्रमिक और बिना पारिश्रमिक वाले कार्यों में कार्यरत 
उत्तर:
भारत में 5-14 वर्ष आयु-समूह के एक करोड़ पचास लाख बच्चे घरेलू कार्य सहित कई प्रकार के पारिश्रमिक और गैर-पारिश्रमिक वाले कार्यों में कार्यरत हैं। 

प्रश्न 30. 
भारत में कितने वर्ष के व्यक्ति को वृद्ध या वरिष्ठ नागरिक मान लिया जाता है? 
उत्तर:
भारत में 60 वर्ष के व्यक्ति को वृद्ध या वरिष्ठ नागरिक मान लिया जाता है। 

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प्रश्न 31. 
नौकरी करने वाले लोगों के लिए वृद्धावस्था बताने वाला सूचक क्या है? 
उत्तर:
नौकरी करने वाले लोगों के लिए वृद्धावस्था बताने वाला सूचक सक्रिय कार्य से सेवानिवृत्ति है। 

प्रश्न 32. 
बहुत से वरिष्ठ नागरिक परम्परागत सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी काम करना पसंद क्यों करते हैं? कोई दो कारण लिखिए। 
उत्तर:

  • कार्य उन्हें स्वाभिमान और आत्मसम्मान देता है। 
  • कार्य उन्हें समाज के लिए अर्थपूर्ण योगदान देने का अवसर देता है। 

प्रश्न 33. 
'वृद्ध कर्मचारियों की नियुक्ति उपयोगी होती है।' इस कथन के पक्ष में कोई दो कारण लिखिए। 
उत्तर:

  • वे अनुभवी और भरोसे के योग्य होते हैं।
  • उनके लापरवाही से अनुपस्थित रहने की संभावना कम रहती है।

प्रश्न 34. 
वृद्ध कर्मचारियों की नियुक्ति के विरोध में कोई दो तर्क दीजिए। 
उत्तर:

  • वृद्ध व्यक्ति श्रम बाजार से अनुवर्ती पीढ़ी को हटा देंगे। 
  • वे युवा सहकर्मियों के उन्नति के अवसरों को रोक सकते हैं। 

प्रश्न 35. 
'वृद्ध जनसंख्या कई प्रकार की समस्याओं का सामना करती है। कोई दो समस्यायें लिखिए। 
उत्तर:

  • खराब स्वास्थ्य 
  • सामाजिक भूमिका और पहचान खो जाना। 

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प्रश्न 36. 
जीवन-कौशल से क्या आशय है? 
उत्तर:
जीवन-कौशल वे क्षमताएँ हैं जो लोगों को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में समुचित तरीकों से व्यवहार करने योग्य बनाती हैं। 

प्रश्न 37. 
व्यक्ति के कार्य को किस आधार पर आँकना चाहिए? 
उत्तर:
कोई व्यक्ति जो भी कार्य करता है, उसे मूल्यों और नैतिकता के आधार पर आंकना चाहिए। 

प्रश्न 38. 
मूल्य से क्या आशय है? 
उत्तर:
मूल्य वे विश्वास, प्राथमिकताएँ अथवा मान्यताएँ हैं जो बताते हैं कि मनुष्यों के लिए क्या वांछनीय है या बेहतर है। 

प्रश्न 39. 
नैतिकता क्या है? 
उत्तर:
नैतिकता, एक व्यक्ति अथवा व्यवसाय के विभिन्न सदस्यों के आचरण का परिचालन करने वाले नियम या मानक हैं। 

प्रश्न 40. 
निष्पादन से क्या आशय है? 
उत्त:
निष्पादन की व्याख्या दिए गए कार्य को पूरा करने के रूप में की जा सकती है?

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प्रश्न 41. 
मनुष्यों द्वारा कार्य निष्पादन का निर्धारण किससे किया जाता है? 
उत्तर:
मनुष्यों द्वारा कार्य निष्पादन का निर्धारण सामान्यतः किसी कार्य करने की इच्छा और प्रेरणा, योग्यता, क्षमता और कार्य परिवेश से किया जाता है। 

प्रश्न 42. 
रचनात्मकता क्या है? 
उत्तर:
रचनात्मकता सामान्य और सुविदित को नए, अनोखे और मौलिक रूप में बदलने की योग्यता है। 

प्रश्न 43. 
नवाचार क्या है? 
उत्तर:
नवाचार का अर्थ है-नए विचारों को प्रभावी और सफलतापूर्वक उपयोग में लाना। 

प्रश्न 44. 
रचनात्मकता को आगे बढ़ाने की कोई दो विधियाँ बताइए। 
उत्तर:

  • प्रत्यक्ष अनुभव 
  • पढ़ना और लिखना। 

प्रश्न 45. 
रचनात्मकता के विकास के मार्ग की कोई दो बाधाएँ लिखिए। 
उत्तर:

  • स्व-हतोत्साहित होना 
  • पूर्वाग्रही होना। 

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प्रश्न 46. 
उत्पादकता से क्या आशय है? 
उत्तर:
उत्पादकता को संसाधनों-श्रम, पूँजी, भूमि, ऊर्जा, सामग्री, विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की जानकारी और सेवाओं के कारगर उपयोग के रूप में समझा जा सकता है। 

प्रश्न 47. 
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर उत्पादकता की संकल्पना किससे जुड़ती जा रही है? 
उत्तर:
वर्तमान में वैश्विक स्तर पर उत्पादकता की संकल्पना अधिकाधिक गुणवत्ता से जुड़ती जा रही है। 

प्रश्न 48. 
कम उत्पादकता के कोई चार परिणाम लिखिए। 
उत्तर:
कम उत्पादकता के परिणाम हैं-

  • मुद्रा स्फीति 
  • व्यापार का प्रतिकूल संतुलन 
  • अल्प वृद्धि दर 
  • बेरोजगारी। 

प्रश्न 49. 
समय प्रबंधन क्या है? 
उत्तर:
समय प्रबंधन में उन आदतों या कार्यविधियों को ग्रहण किया जाता है जिनसे समय का अधिकाधिक सदुपयोग हो सके। 

प्रश्न 50. 
बहुकार्यता से क्या आशय है? 
उत्तर:
कार्यस्थलों पर बहुत सी चीजों/कामों को साथ-साथ करना बहुकार्यता कहलाता है। 

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प्रश्न 51. 
व्यवसाय से सम्बन्धित स्वास्थ्य क्या है? 
उत्तर:
व्यवसाय से सम्बन्धित स्वास्थ्य से आशय है-सभी व्यवसायों में कर्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य-कल्याण हेतु उच्चतर स्तर पर प्रोत्साहन एवं रख-रखाव उपलब्ध कराना। 

प्रश्न 52. 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए कोई दो कार्य लिखिए। 
उत्तर:

  • कर्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य कल्याण को बनाए रखना और बढ़ावा देना। 
  • व्यवसाय सम्बन्धी संकटों और दुर्घटनाओं को कम करना। 

प्रश्न 53. 
सुकार्यिकी (एर्गोनॉमिक्स) क्या है? 
उत्तर:
सुकार्यिकी कर्मचारी के अनुकूल कार्य परिवेश बनाने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ कार्य का अध्ययन करना है। 

प्रश्न 54. 
सुकार्यिकी द्वारा किन पहलुओं पर विचार किया जाता है? 
उत्तर:
सुकार्यिकी द्वारा जिन पहलुओं पर विचार किया जाता है, वे हैं-

  • श्रमिक क्षमता, 
  • कार्य की माँग और 
  • कार्य परिवेश। 

प्रश्न 55. 
सुकार्यिकी का अध्ययन कितने स्तंभों पर व्यवस्थित है? 
उत्तर:
सुकार्यिकी का अध्ययन चार स्तंभों पर व्यवस्थित है। ये हैं-

  • मानवमिति, 
  • जैव-यांत्रिकी, 
  • शरीर क्रिया विज्ञान और 
  • औद्योगिक मनोविज्ञान। 

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प्रश्न 56. 
उद्यमिता से क्या आशय है? 
उत्तर:
उद्यमिता एक नया और नवप्रवर्तक उद्यम/उत्पाद या सेवा स्थापित करने का कार्य है। 

प्रश्न 57. 
उद्यमी कौन होता है? 
उत्तर:
एक उद्यमी वह व्यक्ति होता है जो एक नए विचार को वास्तविकता का रूप देने का जोखिम उठाता है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न- 

प्रश्न 1. 
कार्य की संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
कार्य-कार्य मूलतः ऐसी गतिविधि है, जिसे सभी मनुष्य करते हैं। यह सभी मनुष्यों के लिए दैनिक जीवन की अधिकांश गतिविधियाँ हैं। कार्य के द्वारा प्रत्येक, इस संसार में एक स्थान पाता है, नए संबंध बनाता है, अपनी विशिष्ट प्रतिभाओं और कौशलों का उपयोग करता है और सबसे ऊपर अपनी पहचान और समाज के प्रति लगाव की भावना को रना सीखता है और उसमें वृद्धि करता है। कार्य का वर्णन आवश्यक गतिविधियों के रूप में किया जा सकता है, जो किसी उद्देश्य या आवश्यकता के लिए की जाती हैं। 

प्रश्न 2. 
लोगों द्वारा किये जाने वाले कार्य कौनसे कारकों पर निर्भर होते हैं? 
उत्तर:
लोगों द्वारा किए जाने वाले कार्य बहुत से कारकों पर निर्भर होते हैं, उनमें से प्रमुख ये हैं-

  • शिक्षा 
  • स्वास्थ्य
  • आयु 
  • जेंडर (स्त्री-पुरुष) 
  • अवसर की सुलभता 
  • वैश्वीकरण 
  • भौगोलिक स्थिति 
  • वित्तीय लाभ 
  • पारिवारिक पृष्ठभूमि इत्यादि। 

प्रश्न 3. 
लोग कार्य क्यों करते हैं? 
उत्तर:
(i) अधिकांश व्यक्ति इतना धन अर्जित करने के लिए कार्य करते हैं जिससे परिवार का खर्च चल सके और साथ ही आराम, मनोरंजन, खेल और खाली समय के लिए धन की समुचित व्यवस्था हो सके। 

(ii) कछ व्यक्ति ऐसे भी हैं. जो आनंद, बौद्धिक प्रोत्साहन, समाज को योगदान इत्यादि के लिए निरन्तर कार्य करते हैं, और वे इससे कोई धन अर्जित नहीं करते हैं। जैसे-गृहणियों/माताओं द्वारा किया गया कार्य। ऐसे लोगों के लिए कार्य एक कर्त्तव्य भी है और एक योगदान भी। 

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प्रश्न 4. 
कार्य का महत्त्व बताइए। 
उत्तर:
कार्य का महत्त्व-

  • कार्य वह तेल है जो समाज रूप मशीन के लिए स्नेहक का कार्य करता है। 
  • मानव और प्रकृति का सामूहिक कार्य हमारी आधारभूत आवश्यकताएं पूरी करता है और हमें सुख-साधन और सविधाएँ भी उपलब्ध कराता है। 
  • अधिकांश मामलों में कार्य से कार्यकर्ता को आजीविका प्राप्त होती है, परन्तु अन्य ऐसे लोग भी हैं जो आनंद, बौद्धिक प्रोत्साहन, समाज को योगदान इत्यादि के लिए निरन्तर कार्य करते हैं। 
  • कार्य स्वयं की व्यक्तिगत पहचान को विकसित करने और स्वाभिमान बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य करता है। 

प्रश्न 5. 
जीविका (करिअर) क्या है? 
उत्तर:
जीविका (करिअर) से आशय-जीविका नौकरी से कुछ अधिक है। यह जीवन को बेहतर बनाने की प्रबल इच्छा और आगे बढ़ने, विकसित होने तथा चुने हुए क्षेत्र में स्वयं को प्रमाणित करने की आवश्यकता से जुड़ा हुआ होता है। 

करिअर की संकल्पना में मात्र नौकरी प्राप्त करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि सफलता प्राप्ति के लिए निरन्तर नए कौशल सीखने, उन्हें उन्नत करने, विषय की नई जानकारी प्राप्त करने और कार्य क्षमता बढ़ाने की आवश्यकता भी है। ये सभी चीजें नौकरी के साथ मिलकर करिअर का निर्माण करती हैं। 

प्रश्न 6. 
कोई व्यक्ति अपने करिअर का चुनाव कैसे कर सकता है? 
उत्तर:
कोई व्यक्ति निश्चित कैसे करे कि वह कौनसा करिअर अपनाए? इसके लिए निम्नलिखित में से किसी भी मार्ग को अपना सकता है-

  • अनेक बच्चे अपने माता-पिता के पद-चिह्नों के अनुसार यह निश्चय कर सकते हैं। 
  • कुछ उन करिअरों को अपना सकते हैं जो माता-पिता के करिअर से भिन्न हैं। 
  • वे ऐसे करिअर को अपना सकते हैं जिनके बारे में माता-पिता ने उनके लिए सोचा है। 

लेकिन किसी भी मार्ग के चयन में सबसे महत्त्वपूर्ण मापदण्ड यह है कि व्यक्ति चयनित मार्ग के लिए गहन रुचि और अभिलाषा महसूस करे। उसे नौकरी या कार्य में आनंद आना चाहिए। 

प्रश्न 7. 
आराम, मनोरंजन/अवकाश क्या है और यह क्यों आवश्यक है? 
उत्तर:
आराम, मनोरंजन/अवकाश वे गतिविधियाँ हैं, जो आराम और सुख, उपलब्ध कराती हैं तथा विशेष रूप से हँसी-मजाक, मनोरंजन और स्वास्थ्य को बढ़ावा देती हैं। मनोरंजन की गतिविधि शरीर, मन अथवा आत्मा को आराम देती है। 

अच्छे परिणाम और उत्पादन को प्राप्त करने के लिए सभी मनुष्यों के लिए आवश्यक हैं कि वे आराम करें, थकावट मिटाएँ और स्वयं को तरोताजा कर लें। अतः बेहतर गुणवत्ता वाले जीवन और तन्दुरुस्ती को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि आराम, मनोरंजन/अवकाश की गतिविधियों के अवसरों का लाभ उठायें और इसके लिए समय निकालें। 

प्रत्येक व्यक्ति को आराम और अवकाश का अधिकार है। साथ ही कार्य करने के समय की औचित्यपूर्ण सीमा के अलावा समय-समय पर सवेतन छद्रियाँ मिलनी चाहिए। 

प्रश्न 8. 
विश्राम और मनोरंजन के लिए किस प्रकार की गतिविधियों को अपनाना चाहिए?
उत्तर:
विश्राम और मनोरंजन के लिए व्यक्ति को ऐसी गतिविधियों को अपनाना चाहिए जो आरामप्रद, स्वास्थ्यप्रद और आनन्दप्रद हों। 
घर में परिवार के साथ बिताए हुए कुछ शांत घंटे, क्लब के उत्तेजित और उगिन करने वाले माहौल से बेहतर होते है। 

व्यर्थ की गतिविधियों में बिताये जाने वाले समय की अपेक्षा जल्दी-जल्दी टहलना ज्यादा कारगर होता है। संक्षेप में व्यक्ति को ऐसे काम में स्वयं को लगाना चाहिए जिसमें उसे आनंद मिले, जैसे कोई अभिरुचि, मनपसंद खेल अथवा समय बिताने का कोई अन्य तरीका। 

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प्रश्न 9. 
सामाजिक दायित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
सामाजिक दायित्व-आजकल सामाजिक दायित्व का दृष्टिकोण अनिवार्य रूप से समाज के अभावग्रस्त वर्गों की मदद के लिए कल्याणकारी मॉडल बन गया है। सामाजिक दायित्व, विशेष रूप से सरकार, संस्थाओं और कंपनियों के द्वारा, ऐसी कार्रवाई और प्रक्रियाओं की आवश्यकता है, जिससे ज़रूरतमंद व्यक्तियों को मदद मिल सके और समाज पूर्ण रूप से सम्पन्नता की ओर अग्रसर हो। ये प्रयास विभिन्न आवश्यकताओं के लिए किये जा सकते हैं, जैसे जरूरतमंद लोगों की आर्थिक परिस्थितियों में सुधार लाना, शिक्षा, सफाई; कृषि और उनके अनेक अन्य पहलू जिसमें भौतिक और मानसिक स्वास्थ्य, बड़ों तथा असक्षम व्यक्तियों की देखभाल सम्मिलित है। 

प्रश्न 10. 
स्वैच्छिक सेवा से क्या आशय है? इसका महत्त्व बताइए। 
उत्तर:
स्वैच्छिक सेवा-स्वैच्छिक सेवा का वर्णन निम्नलिखित बिन्दओं के अन्तर्गत किया गया है- 
(1) स्वैच्छिक सेवा से आशय-स्वैच्छिक सेवा एक ऐसा आचरण है जिसे व्यक्ति बिना किसी वित्तीय या भौतिक लाभ की प्राप्ति के उद्देश्य से दूसरों के लिए करता है। इसमें व्यक्ति अपना समय/प्रतिभा/कौशल/ऊर्जा का योगदान, सामान्यतः अपने समाज के लिए, परोपकार, शिक्षा, सामाजिक व राजनीतिक उद्देश्यों के लिए स्वतंत्र रूप से बिना किसी धन प्राप्ति के उद्देश्य से करता है। यह सामान्यतः निःस्वार्थ भावना से और जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए की जाती है। 

स्वैच्छिक सेवा का महत्त्व-

  • स्वैच्छिक वृत्ति का हमारे समुदाय पर सार्थक, सकारात्मक प्रभाव होता है। 
  • कभी-कभी स्वेच्छावृत्ति कौशल को प्राप्त करने में भी सहायता करती है। 

प्रश्न 11. 
स्वैच्छिक सेवा के रूपों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
स्वैच्छिक सेवा के रूप-स्वैच्छिक सेवा कई रूपों में हो सकती है। यथा- 

  • कौशल आधारित स्वैच्छिक सेवा-जब व्यक्ति उस क्षेत्र में सेवा कार्य करते हैं, जिनमें वे प्रशिक्षित होते हैं, तब इसे कौशल आधारित स्वेच्छावृत्ति कहा जाता है, जैसे-नर्सिंग कार्य, बाल शिक्षा आदि। 
  • पर्यावरणीय स्वैच्छिक सेवा-स्वैच्छिक सेवा का एक अन्य रूप पर्यावरणीय स्वैच्छिक सेवा है। इसमें पर्यावरणीय पारिस्थितिकीय पुनरुद्धार, जैसे वनस्पति को पुनः उगाना और खरपतवार को हटाना आदि शामिल हैं।  
  • ई-स्वैच्छिक सेवा-ई-स्वैच्छिक सेवा, ऑनलाइन स्वैच्छिक सेवा अथवा साइबर सेवा और टेलिट्यूरिंग सेवा के नाम से जानी जाती है। इसके लिए स्वयंसेवक कम्प्यूटर और इंटरनेट का पूर्ण या आंशिक रूप से उपयोग करते हुए चयनित कार्यों में सहायता करते हैं। 

प्रश्न 12. 
समाज सेवा और श्रमदान का महत्त्व बताइए। 
उत्तर:
समाज सेवा और श्रमदान का महत्त्व-

  • समाज सेवा अर्थात् दूसरों की सेवा करने से मन को शांति मिलती है और व्यक्ति को यह कम स्वार्थी बनाती है। 
  • सामाजिक सेवा रचनात्मकता को बढ़ाने और नया सोचने में मदद करती है। 
  • इससे व्यक्ति केवल अपना मन ही ताजा नहीं करता बल्कि उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व तरोताजा हो जाता है। 
  • श्रमदान और सेवा समता और न्याय की संकल्पना को विकसित करते हैं। 
  • सेवा और श्रमदान तनाव को कम करने में सहायता करते हैं। 

RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

प्रश्न 13. 
भारत में परम्परागत शिल्प निर्माण/उत्पादन करने की विधियों, तकनीक तथा कौशल का प्रशिक्षण किस प्रकार दिया जाता था? 
उत्तर:
भारत में परम्परागत रूप से शिल्प निर्माण/उत्पादन करने की विधियाँ, तकनीक और कौशल परिवार के सदस्यों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सौंप दिए जाते थे। इस देशी ज्ञान का हस्तांतरण और प्रशिक्षण मुख्य रूप से गृह आधारित प्रशिक्षण और जानकारी थी और इस ज्ञान के सूक्ष्म तत्त्वों को उस रोजगार से जुड़े समूहों में कड़ी सुरक्षा के साथ गोपनीय रखा जाता था। ऐसे सैकड़ों परम्परागत रोजगार हो सकते हैं, जैसे-शिकार करना और पक्षियों व जानवरों को जाल में फंसाना, माला बनाना, नमक बनाना, ताड़ का रस निकालना, खनन कार्य, ईंट और टाइल बनाना। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाले अन्य परम्परागत रोजगारों में सम्मिलित हैं-पुजारी व्यवसाय, सफाई करने वाला व्यवसाय, चमड़े का व्यवसाय आदि।

प्रश्न 14. 
'विशिष्ट पाक प्रणाली, आजीविका के एक स्रोत के रूप में' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
भारत के प्रत्येक क्षेत्र की एक विशिष्ट पाक प्रणाली होती है। इसमें देशी सामग्री और मसालों को लेकर विविध प्रकार के स्थानीय व्यंजन बनाए जाते हैं। आज भारत अपने स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है और ऐसे अनेक व्यक्तियों की आजीविका के स्रोत के रूप में उभर कर आया है जो सड़क पर भोजन बेचने से लेकर विशिष्ट भोजनालयों और पांच सितारा होटलों के थीम मंडपों में कार्य करते हैं। 

प्रश्न 15. 
भारत में वास्तुकला और धर्म के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न भागों में वास्तुकला की भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय शैलियाँ देखने को मिलती हैं जो विभिन्न धर्मों को प्रतिबिंबित करती हैं। जैसे-इस्लाम, सिक्ख धर्म, ईसाई धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म। ये सभी धर्म सम्पूर्ण देश में विशिष्ट रूप से साथ-साथ अस्तित्व में थे। अतः विभिन्न उपासना स्थलों और मकबरे युक्त महलों, समाधि स्थलों इत्यादि के पत्थरों पर कुशलता से गढ़ी हुई, कांसे या चांदी में ढाली हुई या टेराकोटा या लकड़ी की बनी हुई कई प्रकार की प्रतिमाएँ देखने को मिलती हैं। इनमें से अधिकांश भारत की विशाल धरोहर के रूप में परिलक्षित की गई हैं। 

प्रश्न 16. 
वर्तमान में भारत के परंपरागत व्यवसायों के समक्ष मुख्य बाधाएँ क्या हैं? 
उत्तर:
परंपरागत व्यवसायों की भारत में समृद्ध परम्परा है, लेकिन आधुनिक संदर्भ में ये परम्परागत कलाकृतियाँ धीरे-धीरे बहुमात्रा में उत्पादित सामग्री की अपेक्षा कम पसंद की जा रही हैं। इन परम्परागत भारतीय व्यवसायों के समक्ष निम्न प्रमुख बाधाएँ हैं- 

  • निरक्षरता 
  • सामान्य सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन 
  • भूमि सुधार लागू करने में धीमी प्रगति 
  • अपर्याप्त और अकुशल वित्तीय और विपणन सेवाएँ 
  • वन आधारित संसाधनों का कम होना तथा 
  • सामान्य पर्यावरणीय निम्नीकरण। 

प्रश्न 17. 
महिला सशक्तीकरण के संगठित प्रयास से संबंधित कोई एक उदाहरण दीजिए। 
उत्तर:
श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़-यह गृह उद्योग महिलाओं के लिए और महिलाओं द्वारा संचालित एक संगठन है। इसका उद्देश्य महिलाओं को अच्छी और सम्मानजनक कमाई वाली जीविका के लिए रोजगार उपलब्ध कराना है। 

यह संस्था वर्ष 1959 में सात सदस्यों के साथ आरंभ हुई और वर्ष 1966 में बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम तथा समितियाँ पंजीकरण अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत हुई। इसी दौरान इस संस्था को खादी और ग्रामीण उद्योग द्वारा 'ग्रामीण उद्योग' के रूप में मान्यता दी गई। लिज्जत पापड़ को 'सर्वश्रेष्ठ ग्रामीण उद्योग' का पुरस्कार भी मिला।

वर्तमान में इसके उत्पादों में खाखरा, मसाला बड़ी, डिटर्जेंट पाउडर, चपातियाँ, केक और अन्य बेकरी उत्पाद शामिल हैं। 

यह संस्था पूरे भारत में लगभग 40000 साथी सदस्यों को स्वरोजगार उपलब्ध कराती है। इसकी वार्षिक बिक्री 300 करोड़ रुपये की है, जिसमें अनेक देशों को होने वाला निर्यात भी शामिल है। इस प्रकार इस संस्था ने महिलाओं के आत्म-निर्भर होने का मार्ग प्रशस्त किया है। 

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प्रश्न 18. 
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों ने बालकों के लिए जोखिम भरे किन-किन कार्यों की पहचान की है? 
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों ने बालकों के लिए जोखिम भरे या संकटदायी कार्यों की पहचान की है। ये हैं-

  • असुरक्षित मशीनों से काम करना 
  • कीटनाशी, शाकनाशी जैसे संकटदायी पदार्थों का छिड़काव करना 
  • भारी वजन उठाना और अत्यधिक ताप वाले परिवेश में काम करना। 
  • गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए, प्रवाल भित्ति पर जाल लगाने के लिए बच्चों को 60 मीटर गहराई तक गोता लगाने, उच्च वायुमंडलीय दाब से प्रभावित होने और मांसाहारी व विषैली मछलियों के आक्रमण का खतरा हो सकता है। 
  • बच्चों को कांच की चूड़ियाँ, माचिस, पटाखें या ईंट बनाने के काम में लगा दिया जाता है, जहाँ उन्हें अनिष्टकारी धुआँ और पिघले हुए कांच की विकिरण-ऊष्मा को सहन करना पड़ता है। ये सभी व्यवसाय बच्चों के लिए खतरनाक हैं। 

प्रश्न 19. 
बच्चों को किन-किन प्रमुख कारणों से विवश होकर कार्य करना पड़ता है? 
उत्तर:
सामाजिक और पारिवारिक स्तर अनेक कारण बच्चों को काम करने के लिए विवश करते हैं। कुछ प्रमुख कारण ये हैं-

  • गरीबी 
  • परिवार पर कर्जा होना 
  • परिवारों का गाँवों से शहरों की ओर स्थानान्तरण 
  • विद्यालय छोड़ देना 
  • दूसरों के सामने दुर्व्यवहार 
  • माता-पिता की मृत्यु 
  • दुनिया की चकाचौंध और आकर्षण तथा 
  • अपने कर्तव्यों को पूरा न करना। 

प्रश्न 20. 
विश्व में बाल श्रम को रोकने के लिए क्या प्रयास किये गए हैं? 
उत्तर:
पूरे विश्व में बाल श्रम को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की दो संस्थाओं यूनिसेफ और आई.एल.ओ. ने इस सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे को विकसित करने में मदद की है। इनके कार्यों के परिणामस्वरूप हमारे पास बाल श्रम पर रोक लगाने और सरकारों द्वारा ठोस कानूनी उपायों की पहचान के कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं। बाल श्रम के विरुद्ध इस प्रकार की 20 अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ हैं। जब कोई राष्ट्र किसी संधि का अनुसमर्थन करता है तो इसके उल्लंघन होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाएँ सम्मन जारी करती हैं और राष्ट्र को संधियों के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी ठहराती हैं। 

प्रश्न 21. 
बाल श्रम को रोकने हेतु सरकारों से क्या अपेक्षा है? 
उत्तर:
बाल श्रम को रोकने के सम्बन्ध में सरकारों से अपेक्षा है कि वे-

  • बाल श्रम, श्रम के सबसे खराब रूप, को हटाने और रोकने के प्रभावी कार्यक्रम लागू करें। 
  • बच्चों और उनके सामाजिक संगठनों को, उनके पुनर्वास के लिए सीधी सहायता उपलब्ध कराएं। 
  • निःशुल्क शिक्षा का मार्ग सुनिश्चित करें।
  • विशिष्ट खतरों में पड़े बच्चों की पहचान करें। 
  • बालिकाओं और उनकी विशेष परिस्थितियों पर ध्यान दें। 
  • सरकारें संधि की प्रासंगिकता के सम्बन्ध में आई.एल.ओ. को नियमित रिपोर्ट करती रहें और उल्लंघन के सभी आरोपों की जिम्मेदारी लें। 

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प्रश्न 22. 
"बहुत से वरिष्ठ नागरिक परम्परागत सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी काम करना पसंद करते हैं।" इसके क्या कारण हैं? 
उत्तर:
वरिष्ठ नागरिकों के सेवानिवृत्ति की आयु के पश्चात् भी काम करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 

  • कार्य में आनन्द लेना। 
  • कार्य उन्हें स्वाभिमान और आत्मसम्मान देता है। 
  • कार्य उन्हें समाज के लिए अर्थपूर्ण योगदान देने के अवसर देता है। 
  • कुछ लोगों को आराम और मनोरंजन का जीवन संतोषजनक नहीं लगता।
  • कुछ लोगों के लिए काम एक आर्थिक आवश्यकता हो सकती है। 
  • स्वावलंबी बने रहने की इच्छा से। 

प्रश्न 23. 
वृद्ध कर्मचारियों की नियुक्ति किन कारणों से उपयोगी होती है? 
उत्तर:
वृद्ध कर्मचारियों की नियुक्ति निम्नलिखित कारणों से उपयोगी होती है-

  • वे अनुभवी और भरोसे के योग्य होते हैं। 
  • वे अपने युवा साथी कर्मचारियों की अपेक्षा भिन्न प्रकार के तरीकों और प्रेरणा का समावेश कर सकते हैं। 
  • बहुत से पुराने कर्मचारी वेतन के स्थान पर सामग्री अथवा सुविधाएँ लेना स्वीकार कर सकते हैं। 
  • उनके नौकरी छोड़ने और दूसरी नौकरी पर जाने की संभावना कम रहती है। 
  • उनके लापरवाही से अनुपस्थित रहने की संभावना कम रहती है। 

प्रश्न 24. 
वृद्ध जनसंख्या किन-किन समस्याओं का सामना करती है?
उत्तर:
वृद्ध जनसंख्या निम्न प्रमुख समस्याओं का सामना करती है- 

  • स्वयं और स्वयं पर आश्रितों के गुजारे के लिए निश्चित और पर्याप्त आय का अभाव। 
  • खराब स्वास्थ्य। 
  • सामाजिक भूमिका और पहचान खो जाना। 
  • खाली समय का रचनात्मक उपयोग करने के अवसरों का न होना। 
  • गहन और लम्बे समय तक देखभाल की आवश्यकता के कारण परिवार पर वित्तीय भार का बढ़ना। 

प्रश्न 25. 
आधुनिक काल में भारत में किन कारणों से वृद्धों के देखभाल में कमी आई है? 
उत्तर:
आधुनिक काल में भारत में निम्न कारणों से वृद्धों की देखभाल में कमी आई है-आधुनिक काल में भारत में-

  • औद्योगीकरण, 
  • शहरीकरण, 
  • शैक्षिक और रोजगार के अवसरों के साथ-साथ 
  • व्यष्टिवादी दर्शन के विकास के परिणामस्वरूप परिवार के युवा सदस्यों द्वारा बड़ों की देखभाल में कमी आई है। 

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प्रश्न 26. 
वृद्धों के लिए किन-किन बातों की आवश्यकता है? 
उत्तर:
वृद्धों के लिए निम्नलिखित दो प्रमुख बातों की आवश्यकता है-

  • एक ओर समाज में वृद्धों के बारे में दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। 
  • दूसरी ओर उनकी बेहतर देखभाल के लिए उन्हें सुविधाएँ और सेवाएं उपलब्ध कराना आवश्यक है। 

इन समस्याओं के समाधान के लिए केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन का क्रियान्वयन कर रही है। यह योजना पूरे भारत में लागू है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं शुरू की हैं। 

प्रश्न 27. 
"अंतरपीढ़ी पारस्परिक क्रियायें और गतिविधियाँ" किसे कहते हैं? 
उत्तर:
विभिन्न क्षेत्रों में युवाओं के लिए वरिष्ठ नागरिकों के साथ तथा वरिष्ठ नागरिकों के लिए कार्य करने के बहुत से अवसर उपलब्ध हैं। इन्हें सामान्यतः 'अंतरपीढ़ी पारस्परिक क्रियाएँ और गतिविधियाँ' कहते हैं जो दोनों पीढ़ियों के लिए लाभदायक सिद्ध होती हैं। जो कार्यक्रम लागू किए जाते हैं वे वरिष्ठ नागरिकों को बनाने पर केन्द्रित और व्यक्तियों को आत्मसममान और सकारात्मक छवि के साथ सशक्त बनाने वाले होने चाहिए। 

प्रश्न 28. 
'निष्पादन' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
निष्पादन-निष्पादन की व्याख्या दिए गए कार्य को पूरा करने के रूप में की जा सकती है। सामान्यतः निष्पादन को यथार्थता, पूर्णता, लागत और कार्य को पूरा करने में लगे समय के मानकों को ध्यान में रखकर मापा जाता है। 

मनुष्यों द्वारा कार्य-निष्पादन का निर्धारण सामान्यतः किसी कार्य के करने की इच्छा और प्रेरणा, योग्यता और क्षमता से किया जाता है। कार्य-परिवेश, जिसमें कार्य करने के लिए औजार, सामग्री और आवश्यक सूचनाएँ शामिल हैं, भी निष्पादन को प्रभावित करते हैं। साधन-सम्पन्न और नवाचारी होने की योग्यताएँ अच्छे निष्पादन से निकटता से जुड़ी हुई हैं। 

प्रश्न 29. 
रचनात्मकता से आप क्या समझते हैं? 
उत्तर:
रचनात्मकता-रचनात्मकता सामान्य और सुविदित को नए, अनोखे और मौलिक में बदलने की योग्यता है। व्यक्तियों में रचनात्मकता अनेक बातों से प्रभावित होती है, जैसे—आपकी आंतरिक प्रेरणा और कुछ नया, अलग और मौलिक विकसित करने का उत्साह, संसाधन अर्थात् आपका ज्ञान, प्रवीणता तथा सूचनाओं तक पहुँच और रचनात्मक सोच रचनात्मक सोच कौशल सीमा के आगे सोचने और वर्तमान विचारों को नवाचार द्वारा नये संयोजन में ढालने की क्षमता है। 

प्रश्न 30. 
कार्य स्थल पर रचनात्मकता को किसके द्वारा प्रेरित किया जा सकता है? 
उत्तर:
कार्य स्थल पर रचनात्मकता को निम्नलिखित में से एक या अधिक द्वारा प्रेरित किया जा सकता है-

  • इस बात की स्वतंत्रता कि कौन-सा कार्य करना है और कैसे किया जाना है। 
  • महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर मेहनत से कार्य करने की चुनौती। 
  • काम करने के लिए आवश्यक संसाधन। 
  • अच्छे कार्य-मॉडलों द्वारा प्रोत्साहन। 
  • काम करने वाली टीमों की सहायता। 

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प्रश्न 31. 
उत्पादकता से क्या आशय है? 
उत्तर:
उत्पादकता-उत्पादकता को संसाधनों-श्रम, पूँजी, भूमि, ऊर्जा, सामग्री, विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की जानकारी और सेवाओं के उपयोग के रूप में समझा जा सकता है। उत्पादकता में मानव और पूँजी संसाधनों का प्रभावी उपयोग शामिल है। उत्पादकता को एक व्यापक माप के रूप में इस प्रकार समझा जा सकता है कि कोई संगठन दक्षता और प्रभावात्मकता का उपयोग कैसे कर पाता है। 

प्रश्न 32. 
वैश्विक स्तर पर उत्पादकता की संकल्पना किससे जुड़ती जा रही है? 
उत्तर:
वैश्विक स्तर पर, उत्पादकता की संकल्पना अधिकाधिक गुणवत्ता से जुड़ती जा रही है। उत्पादकता में सुधार, व्यक्तियों और समाज के बेहतर जीवन-स्तर को निश्चित करने में मदद करता है। आज यह अधिकाधिक रूप से स्वीकार किया जाने लगा है कि बढ़ती उत्पादकता और कार्य जीवन की बेहत्तर गुणवत्ता, साथ-साथ चलते हैं। अतः राष्ट्र के कल्याण में उत्पादकता की भूमिका को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। 

प्रश्न 33. 
उत्पादकता बढ़ाने के लिए किनको उपयोग में लाया जा सकता है? 
उत्तर:
निम्नलिखित को, व्यक्ति के स्तर पर, अंततः संगठन एवं राष्ट्रीय स्तरों पर भी उत्पादकता बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है- 

  • शिक्षा और प्रशिक्षण, 
  • काम करने के लिए स्वस्थ/सकारात्मक अभिवृत्तियों का पोषण और उन्हें विकसित करना, 
  • बेहतर प्रदर्शन को प्रोत्साहन, 
  • पुरस्कार और प्रोत्साहन संप्रेषण रोजगार सुरक्षा, 
  • स्वास्थ्य सुरक्षा, 
  • उन्नत कार्यविधियाँ, 
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग करना आदि। 

उत्पादन में वृद्धि मात्र चीजों को अच्छी तरह से करना ही नहीं है, बल्कि उपयुक्त चीजों को और बेहतर बनाना भी है। 

प्रश्न 34. 
समय प्रबंधन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
समय प्रबंधन से आशय-समय प्रबंधन का अर्थ यह नहीं है कि आप समय के सम्बन्ध में केवल स्वयं का प्रबंध करें, बल्कि इसके लिए यह भी आवश्यक है कि हम उन आदतों या कार्यविधियों को ग्रहण करने के लिए तैयार रहें, जिनसे हम समय का अधिक से अधिक सदुपयोग कर सकें। 

समय प्रबंधन की उपयोगिता-

  • समय प्रबंधन कौशल के साथ हम अपने समय, तनाव और ऊर्जा पर नियंत्रण कर सकते हैं। 
  • समय प्रबंधन के द्वारा हम अपने काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाए रख सकते हैं। इससे हम नए अवसरों/अप्रत्याशित/अनापेक्षित घटनाओं के लिए अधिक शांतिपूर्वक सोच-समझकर कार्य कर पायेंगे। 

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प्रश्न 35. 
बहुकार्यता से क्या आशय है? व्यवसाय में इसकी उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
बहुकार्यता-बहुकार्यता से आशय है-अनेक कार्यों को साथ-साथ करना। आधुनिक समय में इसे कार्यस्थलों पर एक आवश्यक कौशल माना जाता है। 21वीं सदी में जीवन अधिकाधिक जटिल होता जा रहा है और इसमें बहुत सी चीजें/काम साथ करने पड़ते हैं। बहुकार्यता का प्रारंभ स्वभाविक रूप से महिलाओं से हुआ। परन्तु अब बहुकार्यता सभी कार्यालयों और संगठनों के कार्यडेस्कों एवं कक्षों पर भी लागू होती है। अब प्रत्येक व्यक्ति को बहुकार्य करना पड़ता है। अन्यों की अपेक्षा कुछ व्यक्ति बहुकार्यता में अधिक निपुण होते हैं। 

उपयोगिता-

  • बहुकार्यता में विविध कौशल और उनका अनुकूलतम उपयोग शामिल है। वर्तमान में व्यवसाय से जुड़े बहुकार्यता वाले लोग जानकारी का आदान-प्रदान और समय का प्रबंधन कुशलता से करने के लिए जाने जाते हैं। 
  • जीविका में सफलता व्यवहार कौशलों और बड़े व विविध कार्य भारों को संभालने की योग्यता से बढ़ सकती है। 

प्रश्न 36. 
बहुत से कामों को साथ-साथ पूरा करने के सम्बन्ध में आवश्यक सुझाव दीजिए।
उत्तर:
बहुत से काम समय में पूरा करना एक चुनौती है, जिसका हम सब सामना करते हैं और इसे पूरा करने में निम्नलिखित तरीके या सुझाव सहायता कर सकते हैं- 

  • आपको जो करना है, उसकी एक सूची बना लें और कार्यों को वरीयता के क्रम में रख लें। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य से प्रारंभ करें। 
  • कठिन कार्य को पहले करने से वे जल्दी समाप्त हो जाते हैं, बजाय उसे टालने या उसकी चिंता करने के। 
  • जो कार्य आपके हाथ में हैं, उन्हीं पर पूरा ध्यान दें ताकि वे प्रभावी और कुशलतापूर्वक समाप्त हो सकें।
  • बीच-बीच में थोड़ा आराम भी करें। 
  • आने वाले किसी भी प्रकार के अवरोधों को कम करें। निरंतर आने वाले अवरोध, विशेष रूप से अपेक्षाकृत महत्त्वहीन मामलों वाले अवरोध, व्यक्ति का ध्यान बँटा देते हैं। 

प्रश्न 37. 
सकारात्मक कार्य-परिवेश से क्या आशय है? 
उत्तर:
सकारात्मक कार्य-परिवेश-सभी मनुष्य एक ऐसे परिवेश में रहना और फलना-फूलना चाहते हैं जो उन्हें अच्छे कार्य करने के लिए प्रोत्साहित और प्रेरित करता है, जिसे करने के वे योग्य हैं। अतः एक खुशहाल और स्वस्थ कार्य-परिवेश की संस्कृति तैयार करना महत्त्वपूर्ण है। यह बात केवल भौतिक और सामाजिक अर्थ में नहीं, परन्तु गहन मनोवैज्ञानिक/मानसिक और भावनात्मक पहलुओं पर भी लागू होती है। अतः एक स्वस्थ कार्य-परिवेश को ही सकारात्मक कार्य-परिवेश कहा जा सकता है। 

प्रश्न 38. 
एक सकारात्मक कार्य-परिवेश किस प्रकार तैयार किया जा सकता है? 
उत्तर:
एक सकारात्मक कार्य-परिवेश निम्नलिखित पर ध्यान देकर तैयार किया जा सकता है- 

  • संगठन सम्बन्धी आवश्यकताओं के साथ-साथ कर्मचारी की आवश्यकताओं और.अपेक्षाओं पर समुचित ध्यान देकर। 
  • कर्मचारी को एक आकर्षक और सुरक्षित कार्य-परिवेश देकर व्यक्ति से उसकी योग्यता के अनुसार कार्य कराकर। 
  • कार्य के अनुरूप व्यक्ति की उपयुक्तता को देखना। 
  • तकनीकी क्षमता को सुनिश्चित करके और उसके अनुरूप सुविधा देकर। 
  • कार्य को रोचक और चुनौतीपूर्ण बनाकर। 
  • टीम भावना और टीम उत्तरदायित्व विकसित करके। 
  • लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करके। 
  • कर्मचारियों में प्रशिक्षण के द्वारा आत्मविश्वास उत्पन्न करके तथा कर्मचारियों को जहाँ उचित हो, अधिकार देकर सशक्त बनाकर। 

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प्रश्न 39. 
व्यवसाय से संबंधित स्वास्थ्य क्या है? 
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार व्यवसाय से संबंधित स्वास्थ्य की परिभाषा है, "सभी व्यवसायों में कर्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य-कल्याण के लिए उच्चतम स्तर पर प्रोत्साहन एवं रख-रखाव उपलब्ध कराना अर्थात् काम करते समय सभी का पूर्ण स्वास्थ्य।" 

प्रश्न 40. 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल के लक्ष्य क्या हैं? 
उत्तर:
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल के लक्ष्य ये है-

  • एक स्वस्थ और सुरक्षित कार्यकारी परिवेश। 
  • एक अच्छा क्रियागत कर्मचारी समुदाय। 
  • कार्य के दौरान होने वाली बीमारियों को रोकना। 
  • कर्मचारियों की कार्यकारी योग्यता और क्रियात्मक क्षमता को बनाए रखना।
  • कर्मचारियों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना। 

प्रश्न 41. 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल के लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए क्या देखना आवश्यक है? 
उत्तर:
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल के लक्ष्यों के लिए निम्न बातों को सुनिश्चित करना आवश्यक है- 

  • भवन-परिसर निरापद हों। 
  • मशीनें और सामग्री निरापद हों। 
  • कार्य करने की प्रणालियाँ, कार्य-परिवेश और सुविधाएँ निरापद हों। 
  • कर्मचारियों को सुरक्षा सम्बन्धी सूचनाएँ, निर्देश, प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण उपलब्ध कराए जाते हों। 
  • कार्य-भार की तुलना में कर्मचारियों की कार्यक्षमता का आकलन किया जाता हो और उनके स्वास्थ्य-स्तर को मॉनिटर किया जाता हो। 
  • इन सबके अतिरिक्त संकटों को यथासंभव रोका जाता हो या कम किया जाता हो।

प्रश्न 42. 
व्यावसायिक और व्यक्तिगत सुरक्षा के पहलुओं का सम्बन्ध किनसे है? 
उत्तर:
व्यावसायिक और व्यक्तिगत सुरक्षा के पहलुओं का सम्बन्ध इनसे है-

  • कार्यस्थलों का एर्गोनॉमिक्स (कर्मचारियों का अध्ययन) 
  • ध्वनिस्तरों, औद्योगिक स्वच्छता तथा बिजली के झटकों से सुरक्षा। 
  • निरापद उपकरण। 
  • विकिरणों से सुरक्षा। 
  • मशीनों का निरापद होना। 
  • कंपन और झटकों से सुरक्षा। 
  • सुरक्षात्मक कपड़े। 
  • गिरने और फिसलने आदि से सुरक्षा। 

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प्रश्न 43. 
सुकार्यिकी (एर्गोनॉमिक्स) क्या है? 
उत्तर:
सुकार्यिकी (एर्गोनॉमिक्स)-सुकार्यिकी अपने-अपने कार्य स्थलों पर कार्य करते समय लोगों का किया जाने वाला अध्ययन है, ताकि व्यवसाय सम्बन्धी आवश्यकताओं को, कार्य करने की विधियों को, इस्तेमाल किये जाने वाले औजारों को और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए लोगों के जटिल अन्तर्सम्बन्धों को समझ सकें। संक्षेप में, एर्गोनॉमिक्स कर्मचारी के अनुकूल कार्य-परिवेश बनाने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ कार्य का अध्ययन करना है। 

प्रश्न 44. 
सुकार्यिकी द्वारा कौन-कौनसे पहलुओं पर विचार किया जाता है?
उत्तर:
सुकार्यिकी द्वारा जिन महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जाता है, वे हैं-

  • श्रमिक क्षमता (शरीर क्रियात्मक और मनोवैज्ञानिक दोनों),
  • कार्य की माँग (इसमें शामिल हैं-प्रकृति और जटिलता, कर्मचारियों की आवश्यकता, अवधि और मुद्रा।) 
  • कार्य-परिवेश (शोर, आर्द्रता, कंपन, प्रकाश, ताप) 

प्रश्न 45. 
सुकार्यिकी के लाभ बताइए। 
उत्तर:
सुकार्यिकी के प्रमुख लाख निम्नलिखित हैं-

  • यह चोट और दुर्घटनाओं के जोखिमों को कम करता है। 
  • यह उत्पादकता को बढ़ाता है। 
  • यह त्रुटियों को कम तथा कार्य दोबारा करने की आवश्यकता को कम करता है। 
  • यह दक्षता को बढ़ाता है। 
  • यह खराब स्वास्थ्य/दुर्घटनाओं/तनाव के कारण होने वाली अनुपस्थिति को कम करता है। 
  • यह कर्मचारियों के मनोबल को बेहतर बनाता है। 

प्रश्न 46. 
उद्यमिता का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
उद्यमिता-उद्यमिता एक नया और नवप्रवर्तक उद्यम/उत्पाद या सेवा स्थापित करने का कार्य है। उद्यमिता में उद्यमी द्वारा किसी उत्पाद के उत्पादन या डिजाइन के प्रतिरूप में नवप्रवर्तनों/आविष्कार द्वारा बदलना होता है अथवा नयी तकनीकी विधियों/सुधारों द्वारा नयी उपयोगी वस्तु या पुरानी को नए तरीके से बनाना होता है। 

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प्रश्न 47. 
उद्यमी कौन होता है? 
उत्तर:
एक उद्यमी वह व्यक्ति है जो इस प्रकार के परिवर्तनों को एक उद्यम या व्यवसाय के माध्यम से पूरा करता है। वह संसाधनों को अपनी कुशाग्र बुद्धि से जुटाता है और इसे जीविका के लिए लक्ष्य बनाता है। वह एक नए विचार को वास्तविकता का रूप देने का जोखिम उठाता है। अतः एक उद्यमी नवप्रवर्तक, रचनात्मक, सुव्यवस्थित और जोखिम उठाने वाला व्यक्ति होता है। भारत के कुछ प्रमुख उद्यमी ये हैं-श्रीनारायण मूर्ति, जे.आर.डी. टाटा, धीरूभाई अंबानी। 

प्रश्न 48. 
एक उद्यमी को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कैसा होना चाहिए? 
उत्तर:
एक उद्यमी को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नवप्रवर्तनकारी, रचनात्मक और लक्ष्य-अभिमुखी होना चाहिए। उसे सीधी कार्रवाई करने और कार्य करने के अधिक प्रभावी तरीकों का पता लगाने और अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए। उसे विभिन्न प्रकार की उद्यमयी पहल, जैसे-सामाजिक उद्यमवृत्ति और ज्ञान उद्यमवृत्ति के बारे में विशिष्टता की सोच रखनी चाहिए।

प्रश्न 49. 
सामाजिक उद्यमवृत्ति तथा सामाजिक उद्यमी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
सामाजिक उद्यमवृत्ति-सामाजिक उद्यमवृत्ति अच्छे सामाजिक कार्य करने पर केन्द्रित रहती है। यह एक विशेष समूह या समाज के लिए उद्यमवृत्ति के माध्यम से बड़े पैमाने पर लाभ प्राप्त करने के लक्ष्य तक पहुँचना चाहती है। 

सामाजिक उद्यमी-सामान्यतः, सामाजिक उद्यमी कमजोर, अपेक्षित, वंचित समूह अथवा वे व्यक्ति जिनको स्वयं लाभ प्राप्त करने के लिए वित्तीय साधन प्राप्त नहीं है, के लाभ के लिए कार्य करते हैं। वे सामाजिक उत्प्रेरक तथा दूरदर्शी होते हैं। 

निबन्धात्मक प्रश्न- 

प्रश्न 1. 
कार्य, अर्थपूर्ण कार्य और जीविका से क्या आशय है? कार्य के महत्त्व तथा इसके विविध परिप्रेक्ष्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्य-कार्य मूलतः ऐसी गतिविधि है, जिसे सभी मनुष्य करते हैं और जिसके द्वारा प्रत्येक, इस संसार में एक स्थान पाता है, नए संबंध बनाता है, अपनी विशिष्ट प्रतिभाओं और कौशलों का उपयोग करता है और सबसे ऊपर अपनी पहचान और समाज के प्रति लगाव की भावना को विकसित करना सीखता है और उसमें वृद्धि करता है। 

आवश्यक गतिविधियों के रूप में किया जा सकता है जो किसी उद्देश्य या आवश्यकता के लिए की जाती हैं। वास्तव में, सभी मनुष्यों के लिए कार्य मुख्यतः दैनिक जीवन की अधिकांश गतिविधियाँ हैं। 

लोगों द्वारा किये जाने वाले कार्य बहुत से कारकों पर निर्भर होते हैं, जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, आयु, जेंडर (लिंग), अवसर की सुलभता, वैश्वीकरण, भौगोलिक स्थिति, वित्तीय लाभ, पारिवारिक पृष्ठभूमि आदि। 

कार्य का महत्त्व-कार्य के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है- 

  • अधिकांश व्यक्ति इतना धन अर्जित करने के लिए कार्य करते हैं जिससे परिवार का खर्च चल सके और साथ ही आराम, मनोरंजन, खेल और खाली समय के लिए समुचित व्यवस्था हो सके। अतः कार्य करने से जीवनयापन हेतु आवश्यक धन की प्राप्ति होती है। 
  • कार्य स्वयं की व्यक्तिगत पहचान को विकसित करने और स्वाभिमान बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य कर सकता है। 
  • जब हम कोई कार्य करते हैं, तब हमें स्वयं को विकसित होने तथा स्वयं की कुशलता का बोध होता है। 
  • हमारा बेहतर कार्य संस्थान को बेहतर ख्याति दिलाकर या बेहतर लाभ दिलाकर उस संस्थान के लिए भी योगदान देता है, जो हमें नौकरी देता है। अतः हम बेहतर कार्य करके अपने नियोक्ता को भी लाभ पहुंचाते हैं। 
  • हमारा कार्य हमारे आस-पास के परिवेश में जीवन की गुणवत्ता पर भी अपना प्रभाव डालता है। 

संक्षेप में, अधिकांश मामलों में, कार्य से कार्यकर्ता को आजीविका प्राप्त होती है, परन्तु अन्य ऐसे भी लोग हैं जो आनंद, बौद्धिक प्रोत्साहन, समाज को योगदान के लिए निरंतर कार्य करते हैं। इस तथ्य के बावजूद कि वे इससे कोई धन अर्जित नहीं कर रहे हैं। 

कार्य के विविध परिप्रेक्ष्य 
कार्य के बहुत से परिप्रेक्ष्य होते हैं। इसके प्रमुख परिप्रेक्ष्य निम्नलिखित हैं- 
(1) एक नौकरी और जीविका के रूप में कार्य-यहाँ कार्य मुख्य रूप से आय का एक स्रोत होता है जो ऐच्छिक परिणाम उपलब्ध कराता है। उदाहरण के लिए अपने परिवार को सहायता प्रदान करने के लिए नौकरी करना। इसमें व्यक्ति को नौकरी करने का संतोष अर्जित आय के रूप में होता है। 

(2) जीविका के रूप में कार्य-इसमें व्यक्ति अपने कार्य को निरन्तर उन्नत, व्यावसायिक रूप में उच्च पद, स्तर, वेतन और उत्तरदायित्व के रूप में देखता है। एक व्यक्ति जो जीविका के रूप में कार्य करता है, पर्याप्त समय और ऊर्जा लगाता है, क्योंकि ऐसा करने पर ही उसे भविष्य में लाभ होता है। ऐसे लोगों को नौकरी के दौरान निरन्तर बढ़ने और उपलब्धियाँ प्राप्त करने से संतुष्टि प्राप्त होती है। 

(3) जीविका के रूप में मनपसन्द कार्य-कार्य को अपनी मनपसन्द जीविका मानकर उसे करने पर व्यक्ति को संतोष मिलता है। इससे जीविका को करने के लिए उसे प्रेरणा मिलती है और वह आंतरिक अथवा उत्कृष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित होता है। 

निम्नलिखित दन्तकथा कार्य की उक्त तीनों संकल्पनाओं को दर्शाती है- 
तीन व्यक्ति मजबूत हथौड़ों से पत्थर तोड़ रहे थे। उनसे पूछा गया कि क्या कर रहे हैं? तो पहले व्यक्ति ने उत्तर दिया, "यह मेरा रोजगार है, मैं इन चट्टानों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ रहा हूँ।" 

दूसरे व्यक्ति ने कहा, "यह मेरी आजीविका है, मैं चट्टानों को तोड़कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता हूँ।" तीसरे व्यक्ति ने कहा, "मेरी एक कल्पना है, एक मूर्ति बनाने की और इसलिए मैं इस बड़े पत्थर से मूर्ति गढ़ रहा 

तीसरे व्यक्ति ने यह कल्पना कर ली थी कि हथौड़े की प्रत्येक चोट उसकी जीविका को साकार करने के लिए योगदान देगी जबकि पहले और दूसरे व्यक्ति का ध्यान उनके रोजगार और आजीविका पर था। 

अर्थपूर्ण कार्य-अर्थपूर्ण कार्य समाज तथा अन्य लोगों के लिए उपयोगी होता है, जिसे जिम्मेदारी से किया जाता है और करने वाले के लिए आनंददायक भी होता है। यह कार्य करने वाले को अपने कौशल अथवा समस्या समाधान की योग्यता के लिए समर्थ बनाता है। जब कोई व्यक्ति अर्थपूर्ण कार्य में सम्मिलित होता है, तो उसमें पहचान, महत्त्व और प्रतिष्ठा का बोध विकसित होता है। 

जीविका-जीविका एक जीवन-प्रबन्धन संकल्पना है। जीवन पर्यन्त जीविका में विकास होता रहता है, जिसमें प्रबंधक भूमिकाएँ जैसे-वैतनिक और अवैतनिक कार्यों में संतुलन बनाये रखना आदि सीखना तो शामिल है ही, साथ ही साथ व्यक्तिगत जीवन सम्बन्धी भूमिकाएँ और निजी तौर पर तय किए गए भविष्य की ओर गमन करने के लिए आवश्यक कमी भी और कहीं भी किए जाने वाले परिवर्तन भी सम्मिलित हैं। 

वेबस्टर शब्दकोश में जीविका को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, "विशेष रूप से सार्वजनिक, व्यावसायिक अथवा व्यापारिक जीवन से जुड़े निरंतर प्रगतिशील क्षेत्र अथवा व्यवसाय और कार्य हैं-श्रम अथवा कर्तव्य जो व्यक्ति द्वारा . उसकी आजीविका के लिए चयनित जीविका अथवा रोजगार का सामान्य माध्यम है।" कोई व्यक्ति जो कुछ भी चुनता है, व्यापक रूप से वह शरीर और मनोवृत्ति दोनों का पोषण करने के साथ-साथ दूसरों को भी लाभान्वित करे। 

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प्रश्न 2. 
समाज सेवा क्या है? इसके विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
समाज सेवा से आशय-प्रत्येक मनुष्य जीवन में संतुष्टि और पारितोष चाहता है। इसे पाने के लिए बहुत से लोग आर्थिक लाभ के बारे में नहीं सोचते और स्वयं को ऐसी गतिविधियों में लगा लेते हैं, जो कम संपन्न अथवा अल्पतम साधनों वाले लोगों के हित वाली अथवा प्रकृति के संरक्षण संबंधी होती हैं। इस प्रकार दोनों लक्षणों आध्यात्मिक और भौतिक-में संतुलन बना रहता है और यह स्थिति मानव को प्रसन्नता प्रदान करती है। इसके लिए लोगों ने दूसरों की सेवा का दायित्व लिया हुआ है, जिसे समाज-सेवा कहा जाता है।

समाज सेवा के रूप-समाज सेवा के प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं-
(1) दूसरों की सेवा करना-कुछ लोगों ने मन की शांति के लिए दूसरों की सेवा करने का दायित्व लिया हुआ है। यह सेवा व्यक्ति को कम स्वार्थी बनाती है, रचनात्मकता को बढ़ाने और नया सोचने-करने में मदद करती है। इससे उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही तरोताजा हो जाता है। 

(2) श्रमदान-समाज सेवा के रूप में श्रमदान को भारतवासियों ने जीवन में अपनाया है। यहाँ श्रम का अर्थ मेहनत और दान का अर्थ देना है। भारत में व्यक्तियों, समूहों और संस्थाओं के अनेक उदाहरण हैं जो दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं। यह श्रम दोहरी भूमिका निभाता है-यह व्यक्ति को उसके स्वयं के बारे में बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है। साथ ही साथ व्यक्ति को स्वयं में परिवर्तन लाने और सशक्तिकरण के लिए भी प्रेरित करता है।

(3) कार सेवा-कार सेवा एक दूसरे प्रकार का श्रमदान है, जहाँ सेवक धार्मिक कार्यों में निःशुल्क सेवाएँ देते हैं। 

(4) सामूहिक उत्थान हेतु सामूहिक प्रयास-सामाजिक स्तर पर किसी समस्या के समाधान के प्रयास किए जाते हैं। सड़क निर्माण, स्वच्छता से जुड़ी स्थितियों को सुधारना, जल-संरक्षण, जेंडर, वर्ग या जाति उत्पीड़न को कम करने के प्रयासों से संबंधित हो सकते हैं। ये प्रयास मानव समानता, श्रम की महत्ता और ऐसे लोग जो परस्पर मदद कर सकते हैं, के चिंतन से संभव हुआ है। 

सामाजिक सेवा कार्यों में लगे व्यक्ति सामाजिक वर्ग, जाति, रंग, पंथ, जेंडर या आयु पर ध्यान दिए बिना सभी मनुष्यों की प्रतिष्ठा, योग्यता और मूल्य के प्रति वचनबद्ध होते हैं। 

प्रश्न 3. 
निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सी.एस.आर.) से आप क्या समझते हैं। इसके वर्तमान प्रस्तावों में क्या सम्मिलित हैं? 
उत्तर:
निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सी.एस.आर.) से आशय-आजकल समाज के साथ अपना लाभ बाँटने के दृष्टिकोण से बड़ी कंपनियों द्वारा निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (सी.एस.आर.) को व्यवसाय से जोड़ा जा रहा है। 

निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व के अन्तर्गत निगम के नेता और कंपनियाँ उनकी गतिविधियों का उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, समुदायों, स्टेकहोल्डरों और जनता तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की जिम्मेदारी लेते हैं। 

निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रस्तावों में सम्मिलित उत्तरदायित्व-सी.एस.आर. के वर्तमान प्रस्तावों में निम्नलिखित दायित्व सम्मिलित हैं- 

  • समुदाय आधारित विकास परियोजनाएँ, जैसे-प्रारंभिक बाल शिक्षा, बच्चों की स्कूली शिक्षा का संवर्धन, बड़ों के लिए कौशल प्रशिक्षण, कुपोषण, अस्वस्थता और मृत्यु दर को कम करना और रोकना। 
  • ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रम। 
  • प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम। 
  • अनौपचारिक शिक्षा। 
  • आय प्राप्ति हेतु गतिविधियाँ और बाजार वितरण प्रणाली। 
  • R & D क्षेत्र विशेष में पर्यावरण हितैषी पद्धतियों को बढ़ावा देना, जल संरक्षण, पर्यावरण स्वच्छता और शोध - व विकास सहायता उपलब्ध कराना। 
  • प्राकृतिक रेशों, वस्त्रों, पर्यावरण हितैषी रंग, कशीदाकारी और अन्य दस्तकारियाँ। 

सी. एस. आर. अब अस्तित्व में आ गया है और यह संकेत देता है कि इस प्रवृत्ति में वृद्धि होगी और यह स्थिति और मजबूत होती जाएगी। उन व्यक्तियों के लिए अवसर उपलब्ध होंगे जिनकी समाज सेवा और समुदाय कल्याण, दीर्घकालिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन में रुचि और रुझान है। 

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प्रश्न 4. 
भारत के परम्परागत व्यवसायों पर एक लेख लिखिए। 
उत्तर: 
भारत के परम्परागत व्यवसाय भारत के प्रमुख परम्परागत व्यवसाय निम्नलिखित हैं- 
(1) कृषि-कृषि जनसंख्या के एक बड़े भाग के मुख्य व्यवसायों में से एक व्यवसाय रहा है क्योंकि भारत के अधिकांश भागों में जलवायुवीय परिस्थितियाँ कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त हैं। चूंकि कुल जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, अतः उन लोगों के लिए कृषि ही रोजगार का सबसे बड़ा स्रोत है। 

देश के अधिकांश भागों में कुछ किसान शहरी बाजार में बेचने हेतु 'नकदी फसलें उगाते हैं और कुछ क्षेत्रों में अधिक आर्थिक महत्त्व वाली फसलें, जैसे-चाय, काफी, इलायची और रबड़ उगाते हैं तथा इनसे विदेशी मुद्रा कमाते हैं। 

भारत विश्व में काजू, नारियल, दूध, अदरक, हल्दी और कालीमिर्च के सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों में से एक है। 

(2) मछली पकड़ने का व्यवसाय-कृषि के अतिरिक्त भारत में दूसरा महत्त्वपूर्ण व्यवसाय मछली पकड़ने का है क्योंकि देश की समुद्र तट रेखा काफी लम्बी है। 

(3) हस्तशिल्प व्यवसाय-भारतीय गाँवों के परम्परागत व्यवसायों में हस्तशिल्प भी एक है और आज अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत की बहुत सी ललित कलाएँ तथा हस्तशिल्प काफी लोकप्रिय है। 

संजीव पास बुक्स , शिल्प के कुछ उदाहरण हैं-काष्ठ शिल्प, मिट्टी के बर्तन बनाना, धातु शिल्प, आभूषण बनाना, हाथी दाँत शिल्प, कंघा शिल्प, कांच और कागज शिल्प, कशीदाकारी, बुनाई, रंगाई और छपाई, शैली शिल्प, मूर्तिकला, टेराकोटा, शोलापीठ शिल्प, दरी, गलीचे, कार्पेट, मिट्टी व लोहे की वस्तुएँ आदि। 

परम्परागत रूप से, शिल्प निर्माण/उत्पादन करने की विधियाँ, तकनीक और कौशल परिवार के सदस्यों को पीढ़ी दर पीढ़ी सौंप दिये जाते थे। इस देशी ज्ञान का हस्तांतरण और उसका प्रशिक्षण मुख्य रूप से गृह आधारित प्रशिक्षण और जानकारी पर आधारित था और इस ज्ञान के सूक्ष्म तत्त्वों को रोजगार से जुड़े समूहों में कड़ी सुरक्षा के साथ गोपनीय रखा जाता था। 

(4) जन समहों की सामाजिक सोपानिक व्यवस्था से संबद्ध परम्परागत व्यवसाय-भारत में धर्म, जाति और व्यवसाय घनिष्ठ रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं तथा देश के सामाजिक ढाँचे में जनसमूहों की सोपानिक व्यवस्था से भी सम्बद्ध हैं। ऐसे सैंकड़ों परम्परागत रोजगार हैं, जैसे—पुजारी, सफाई करने वाले, चमड़े का काम करने वाले व्यवसाय, शिकार करने, माला बनाने, नमक बनाने, ताड़ का रस निकालने, खनन कार्य करने का व्यवसाय आदि। 

(5) विशिष्ट पाक प्रणाली से सम्बद्ध व्यवसाय-भारत के प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट पाक-प्रणाली होती है, जिसमें देशी सामग्री और मसालों से लेकर विविध प्रकार के स्थानीय व्यंजन बनाए जाते हैं। आज भारत अपने स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है और ऐसे अनेक व्यक्तियों की आजीविका के स्रोत के रूप में उभरकर आया है जो सड़क पर भोजन बेचने से लेकर विशिष्ट भोजनालयों और पाँच सितारा होटलों के थीम मंडपों में कार्य करते हैं। 

प्रश्न 5. 
भारत में चित्रकलाओं का विकास कैसे हुआ तथा आधुनिक काल में इनके समक्ष प्रमुख बाधाएँ व समस्यायें क्या हैं? 
उत्तर: 
भारत में चित्रण कलाओं का विकास 
भारत में चित्रण कलाओं की विविधता है जो चार हजार वर्षों से प्रचलन में है। यथा- 
(1) कलाकारों को संरक्षण-ऐतिहासिक दृष्टि से, कलाकारों और शिल्पकारों को दो मुख्य वर्गों के संरक्षकों से सहायता मिलती थी-

  • बड़े हिन्दू मंदिर और 
  • विभिन्न राज्यों के राजसी शासक। 

(2) चित्रण कलाओं के जन्म तथा विकास का आधार धार्मिक-धार्मिक उपासना के संदर्भ में मुख्य चित्रण कलाओं का उदय हुआ। भारत के विभिन्न भागों में वास्तुकला की भिन्न-भिन्न शैलियाँ देखने को मिलती हैं जो विभिन्न धर्मों को प्रतिबिंबित करती हैं, जैसे-इस्लाम, सिक्ख धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और हिन्दू धर्म। ये सभी धर्म सम्पूर्ण देश में विशिष्ट रूप के साथ अस्तित्व में थे। 

(3) प्रस्तर प्रतिमाएँ-अतः विभिन्न उपासना स्थलों और मकबरे युक्त महलों, समाधि स्थलों इत्यादि के पत्थरों पर कुशलता से प्रतिमाएँ गढ़ी गईं। 

(4) अन्य प्रकार की प्रतिमाएँ-इसके अतिरिक्त कांसे या चाँदी में ढाली गई या टेराकोटा या लकड़ी की बनी हुईं अथवा रंगों द्वारा चित्रित कई प्रकार की प्रतिमाएँ देखने को मिलती हैं। इनमें से अधिकांश भारत की विशाल धरोहर के रूप में परिरक्षित की गई हैं। 

(5) वर्तमान में संरक्षण-आधुनिक काल में इन कलाओं को सरकार और कुछ गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा संरक्षण और प्रोत्साहन मिला है। इससे उद्यमिता के साथ-साथ रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं। 

आधुनिक काल में इन कलाकृतियों के समक्ष बाधाएँ व समस्यायें 
परम्परागत व्यवसायों की समृद्ध धरोहर होते हुए भी आधुनिक संदर्भ में ये कृतियाँ धीरे-धीरे बहुमात्रा में उत्पादित सामग्री की अपेक्षा कम पसंद की जा रही हैं। इससे एक ओर शिल्पकारों के आय के स्रोत कम हो गए हैं तो दूसरी ओर ललितकलाओं का सौंदर्य बोध धीरे-धीरे कम होता चला जा रहा है। 

आधुनिक काल में इन कलाओं के समक्ष प्रमुख बाधाएँ व समस्यायें निम्नलिखित हैं-

  • निरक्षरता 
  • सामान्य सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन 
  • भूमि सुधार लागू करने में धीमी प्रगति 
  • अपर्याप्त अथवा अकुशल वित्तीय और विपणन सेवाएँ
  • वन-आधारित संसाधनों की कमी तथा 
  • सामान्य पर्यावरणीय निम्नीकरण। 

ये सब इन ललित कलाओं के समक्ष जबरदस्त चुनौती सामने लाते हैं। इससे देशी ज्ञान, जानकारी तथा कौशल तेजी से अपना आधार खो रहे हैं। 

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प्रश्न 6. 
बाल श्रम से आप क्या समझते हैं? अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों ने बाल श्रम से संबंधित किन संकटों की पहचान की है? बाल श्रम को रोकने के लिये सरकारों से क्या अपेक्षा है? 
उत्तर:
बाल श्रम से आशय-"बाल श्रम' सामान्यतः 15 वर्ष से कम आयु के बालक द्वारा की गई आर्थिक गतिविधि को कहा जाता है।" यह परिभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संस्था (I.L.O.) द्वारा दी गई है। यह बाल श्रम वैश्विक सरोकार वाला मामला है। 

बाल श्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित दो बिन्दु विचारणीय हैं-(i) आयु (ii) काम का प्रकार तथा कार्य की परिस्थितियाँ। यथा- 
(i) आयु-सरकारों और राष्ट्रीय संस्थाओं ने काम के लिए आयु सम्बन्धी नियम पारित कर रखे हैं जो विश्व में अलग-अलग हैं। उदाहरण के लिए मिस्र में काम करने की काननी न्यूनतम उम्र 12 वर्ष है, फिलीपींस और भारत में यह 14 वर्ष है तथा हांग-कांग में 15 वर्ष है। 

आई.एल.ओ. सम्मेलनों ने हल्के कामों के लिए 12 या 13 वर्ष की आयु की मान्यता दी है परन्तु जोखिम भरे कार्यों को 18 वर्ष की आयु से पहले करने की अनुमति नहीं है। आई.एल.ओ. ने उन देशों के लिए न्यूनतम आयु 15 वर्ष कम की है, जहाँ अनिवार्य स्कूली शिक्षा 15 वर्ष तक पूरी हो जाती है। 

(ii) काम का प्रकार तथा काम की परिस्थितियाँ-बाल श्रम के अन्तर्गत केवल आयु ही नहीं, काम का प्रकार और काम की परिस्थितियाँ भी सोच-विचार के लिए महत्त्वपूर्ण हैं । यथा 
(1) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर, विशेषज्ञों ने बालकों के लिए निम्नलिखित संकटपूर्ण कार्यों की पहचान की है (i) असुरक्षित मशीनों से काम करना। (ii) संकटदायी पदार्थ जैसे-कीटनाशी, शाकनाशी का छिड़काव करना। (iii) भारी वजन उठाना (iv) अत्यधिक ताप वाले परिवेश में काम करना।। 

(2) गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए, प्रवाल भित्ति पर जाल लगाने के लिए बच्चों को 60 मीटर गहराई में गोता लगाने, उच्च वायुमंडलीय दाब से प्रभावित होने और मांसाहारी तथा विषैली मछलियों से आक्रमण का खतरा हो सकता है। 

(3) गरम कांच के टुकड़ों पर चलना अथवा उनको संभालना, संकटदायी रासायनिक मिश्रणों के प्रभाव में आना, पटाखों में बारूद भरना जिसमें आग लगने और विस्फोट का खतरा रहता है; लेड और कार्बन मोनोऑक्साइड के प्रभाव में आना और भट्टे में चिकनी मिट्टी से ईंटों के बनाने की प्रक्रिया के दौरान जलने से घाव होना आदि सभी संकटदायी हैं। 

(4) हमारे देश के बाल श्रम अधिनियम में पचास से अधिक ऐसे व्यवसायों की सूची दी है जो बच्चों के लिए संकटदायी हैं। इनमें घरों में किया जाने वाला घरेलू कार्य और होटलों तथा रेस्टोरेंटों में किए जाने वाले सेवा कार्य भी सम्मिलित हैं। 

बाल-श्रम रोकने के लिए सरकारों से अपेक्षा- 
पूरे विश्व में बाल श्रम को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की दो एजेन्सियों-यूनिसेफ और आई.एल.ओ. ने अपना ध्यान इस ओर लगाया है। उन्होंने बाल श्रम की समस्याओं को परिभाषित करने और उन्हें सुधारने हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचे को विकसित करने में मदद की है। परिणामस्वरूप बाल श्रम रोकने के लिए 20 अन्तर्राष्ट्रीय संधियाँ हुई हैं। जब कोई राष्ट्र किसी संधि का अनुसमर्थन करता है तो उसके उल्लंघन होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्थाएँ सम्मन जारी करती हैं और उस राष्ट्र को संधियों के उल्लंघन के लिए उत्तरदायी ठहराती है। 

समय की मांग है कि इसे राष्ट्रीय स्तरों पर दढता से लाग किया जाए तथा सरकारों से अपेक्षा है कि वे-

  • श्रम के सबसे खराब रूप-बाल श्रम को हटाने और रोकने के प्रभावी कार्यक्रम लागू करें। 
  • बच्चों और उनके सामाजिक संगठनों के पुनर्वास हेतु सीधी सहायता करायें। 
  • निःशुल्क शिक्षा का मार्ग सुनिश्चित करें। 
  • विशिष्ट खतरों में पड़े बच्चों की पहचान करें। 
  • बालिकाओं और उनकी विशेष परिस्थितियों पर ध्यान दें। 
  • सरकारें संधि की प्रासंगिकता के सम्बन्ध में आई.एल.ओ. को नियमित रूप से रिपोर्ट करती रहें और उल्लंघन के सभी आरोपों की जिम्मेदारी लें। 

प्रश्न 7. 
वृद्धावस्था से क्या आशय है? वृद्ध लोगों के कार्य करने के सम्बन्ध में उठे विभिन्न विचारों को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
वृद्धावस्था-पूरे विश्व में 'वृद्धावस्था' कालानुक्रमिक आयु से दर्शायी जाती है। व्यापक रूप से, विशेषकर भारत में 60 वर्ष के व्यक्ति को 'वृद्ध' या 'वरिष्ठ नागरिक' मान लिया जाता है। नौकरी करने वाले लोगों (पुरुष एवं महिलाओं) के लिए वृद्धावस्था बताने वाला सूचक उनकी सक्रिय कार्य से सेवानिवृत्ति है। 

वृद्धों के संबंध में कुछ भ्राँतियाँ-

  • एक बहुत बड़ी भ्रांति यह है कि वृद्ध व्यक्तियों की सक्रिय कार्य से सेवानिवृत्ति हो जानी चाहिए। 
  • वृद्ध व्यक्तियों को नए प्रक्रमों या प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण नहीं दिया जा सकता। 
  • वृद्ध व्यक्ति युवा कर्मचारियों के समान दक्ष अथवा उत्पादक नहीं हो सकते। 
  • वे बीमार पड़ जाते हैं और युवा कर्मचारियों की अपेक्षा अक्सर अनुपस्थित रहते हैं। 
  • वे युवा व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक सख्त होते हैं। 

लेकिन वास्तविकता यह है कि कालानक्रमित आय आगे काम करने की अयोग्यता को नहीं दर्शाती है। 
सेवानिवृत्ति के बाद में वृद्ध लोगों द्वारा काम करना-बहुत से वरिष्ठ नागरिक परंपरागत सेवानिवृत्ति की आयु के बाद भी काम करना पसंद करते हैं। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 

  • वे कार्य में आनंद लेते हैं। 
  • कार्य उन्हें स्वाभिमान और आत्मसम्मान देता है। 
  • कार्य उन्हें समाज के लिए अर्थपूर्ण योगदान देने का अवसर प्रदान करता है। 
  • कुछ लोगों को आराम और मनोरंजन का जीवन संतोषजनक नहीं लगता है। 
  • कुछ लोगों के लिए काम एक आर्थिक आवश्यकता भी हो सकती है। 
  • कुछ लोग स्वावलंबी बने रहने की इच्छा से कार्य करते हैं। 

बहुत बड़ी संख्या में ऐसे वरिष्ठ नागरिक हैं, जो स्वस्थ, सक्रिय और मानसिक रूप से सचेत हैं तथा विभिन्न प्रकार से भरपूर योगदान दे रहे हैं। 

वृद्ध कर्मचारियों की नियुक्ति की उपयोगिता-यह पाया गया है कि वृद्ध कर्मचारियों को नए कार्य करने हेतु प्रशिक्षित किया जा सकता है और उनकी नियुक्ति निम्नलिखित कारणों से उपयोगी होती है- 

  • वे अनुभवी और भरोसे के योग्य होते हैं। 
  • वे अपने युवा साथी कर्मचारियों की अपेक्षा भिन्न प्रकार के तरीकों और प्रेरणा का समावेश कर सकते हैं। 
  • बहुत से पुराने कर्मचारी वेतन अथवा वित्तीय लाभ के स्थान पर सामग्री अथवा सुविधाएँ लेना स्वीकार कर सकते हैं। 
  • उनके नौकरी छोड़ने और दूसरी नौकरी पर जाने की संभावना कम रहती है। 
  • उनके लापरवाही से अनुपस्थित रहने की संभावना कम रहती है। 

वृद्ध व्यक्तियों की प्रमुख समस्यायें 
वृद्ध जनसंख्या कई प्रकार की समस्याओं का सामना करती है। यथा-

  • स्वयं और स्वयं पर आश्रितों के गुजारे के लिए सुनिश्चित और पर्याप्त आय का अभाव। 
  • खराब स्वास्थ्य। 
  • सामाजिक भूमिका और पहचान का खो जाना। 
  • खाली समय का रचनात्मक उपयोग करने के अवसरों का न रहना। 
  • परिवार पर वित्तीय भार का बढ़ना क्योंकि लोग लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और अधिक आयु (75 वर्ष या अधिक) होने पर उन्हें गहन देखभाल की आवश्यकता होती है। 

आधुनिक संसार में औद्योगीकरण, शहरीकरण, शैक्षिक और रोजगार के अवसरों के साथ-साथ व्यष्टिवादी दर्शन के विकास के परिणामस्वरूप परिवार के युवा सदस्यों द्वारा बड़ों की देखभाल में कमी आई है। यद्यपि युवा पीढ़ी अपने बड़ों का ध्यान रख रही है, तथापि वृद्धों की रहने की दशाएँ और जीवन की गुणवत्ता व्यापक रूप से भिन्न पायी जाती है। इन सबसे शक्तिहीन, असहाय होने और निम्न आत्मसम्मान का बोध होता है। महिलाएँ, विशेषकर जो विधवा हैं और अकेली रह रही हैं, वे गरीब लोगों में सबसे खराब दशा में हैं और असुरक्षित हैं। 

वृद्धों की आवश्यकताएँ तथा इस सम्बन्ध में भारत सरकार के प्रयास-वृद्धों की प्रमुख आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं- 

  • दोनों पीढ़ियों को, वयोवृद्धि से होने वाले परिवर्तन के अनुकूल बनाने के लिए समाज में वृद्धों के बारे में दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है। 
  • दूसरे, वृद्धों की बेहतर देखभाल के लिए सुविधाएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। 

इन समस्याओं के समाधान के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1999 से केन्द्र सरकार राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन का क्रियान्वयन कर रही है, जिसमें निराश्रितता की स्थिति में रह रहे वृद्धजनों को प्रतिमाह पेंशन देने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारों ने भी वृद्धावस्था पेंशन योजनाएं शुरू की हैं। 

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प्रश्न 8. 
कार्य के प्रति मनोवत्तियों और दष्टिकोण पर एक लेख लिखिए। 
उत्तर:
कार्य के प्रति मनोवृत्तियाँ और दृष्टिकोण-कार्य के प्रति मनोवृत्ति केवल कार्य/नौकरी के लिए ही नहीं होती। यह इसलिए भी होती है कि कोई व्यक्ति कैसे अपने कार्य की परिस्थिति को समझता है, कैसे वह नौकरी की परिस्थितियों और आवश्यकताओं तथा विभिन्न आवश्यक कार्यों से निपटता है। 

एक व्यक्ति का नौकरी से संतोष अथवा असंतोष का अनुभव उसकी मनोवृत्ति से काफी प्रभावित होता है, बजाय इसके कि स्वभावतः नौकरी द्वारा पूर्णतः इसे निर्धारित किया जाये। दूसरे शब्दों में व्यक्ति का नौकरी से संतोष अथवा असंतोष का अनुभव उसकी स्वयं की मनोवृत्ति और नौकरी के कार्यस्थल के परिवेश से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने प्राप्त वेतन की तुलना दूसरे व्यक्ति के वेतन से, उसके काम के उत्तरदायित्व, अर्जित योग्यता, कार्य उत्पादन, सच्चाई और समर्पण पर विचार किए बिना करता है, तो उसमें असंतोष पैदा होने की संभावना हो जाती है। 

दूसरी ओर, किसी व्यक्ति की नौकरी के सभी पहलुओं (सकारात्मक और नकारात्मक दोनों) की वास्तविक छान बीन में संतोष और प्रसन्नता की संभावना अधिक होगी। 

कार्य को बोझ समझने की मनोवृत्ति-अकसर कुछ लोग काम को इस दृष्टि से देखते हैं कि उन्हें यह 'किसी प्रकार या कैसे भी' करना है और इसलिए वे कार्य का आनंद लेने में असमर्थ रहते हैं अथवा काम में आनन्द की सोचते भी नहीं हैं। 

कार्य को सीखने के स्रोत के रूप में देखने की मनोवृत्ति-कुछ लोग कार्य को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं तो वे व्यक्ति अपने कार्य को पारितोष या सीखने के स्रोत के रूप में देखते हैं। ऐसे लोगों को नौकरी से संतोष मिलता है। 

कार्य का आनंद लेने की मनोवृत्ति-कुछ लोग अपने कार्य का आनंद लेते हैं, चुनौतियों की उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। कठिन कार्यों को सकारात्मक दृष्टिकोण से संभालते हैं तो ये सभी तथ्य मिलकर उन्हें अपनी नौकरी के बारे में अच्छा महसूस कराते हैं। इसी प्रकार उनकी जीविका में प्रगति के अवसर और उनकी योग्यता, कौशल और ज्ञान का उपयोग व्यक्तिगत प्रसन्नता और संस्था के कार्य जीवन की गुणवत्ता में योगदान करते हैं।

प्रश्न 9. 
कर्मचारियों को अपने कार्य-जीवन में सुधार लाने के लिए क्या करना चाहिए? इस सम्बन्ध में कुछ सामान्य सुझाव दीजिए। 
उत्तर:
कर्मचारियों द्वारा अपना स्वयं का कार्य-जीवन सुधारना- 
यद्यपि किसी भी संगठन के लिए अपने कर्मचारियों के समग्र कार्य-जीवन में सुधार लाना निर्णायक होता है, तथापि प्रत्येक कर्मचारी के लिए यह अति आवश्यक है कि वह ईमानदारी के साथ अपना कार्य-जीवन सुधारे, जिससे उसे नौकरी से संतोष मिले तथा उत्पादन की गुणवत्ता और उसकी मात्रा में वृद्धि हो। 

कर्मचारी के दृष्टिकोण से कार्य-जीवन का सम्बन्ध केवल नौकरी से ही नहीं होता, बल्कि इस बात से भी होता है कि वह अपने कार्य-जीवन का कैसे अनुभव करता है। इस दिशा में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि व्यक्ति अपने कार्य को ऊर्जा, आत्मसंतोष और सीखने के स्रोत के रूप में देखे। 

कर्मचारियों द्वारा अपना स्वयं का कार्य-जीवन सुधारने के संदर्भ में कुछ सामान्य सुझाव निम्नलिखित हैं- 
(1) स्वस्थ व्यक्तिगत प्रवृत्तियाँ विकसित करें-कर्मचारियों को चाहिए कि वे अपने शरीर, मस्तिष्क और प्रवृत्ति का ध्यान रखें। स्वस्थ जीवन-शैली बनाए रखने के लिए वे पौष्टिक आहार लें, पर्याप्त और उचित व्यायाम करें एवं पर्याप्त नींद लें। इस प्रकार की जीवन-शैली उन्हें कार्यस्थल पर चुनौतियों और दबावों का सामना करने में सहायक होती है। 

(2) परानुभूतिशील और सहानुभूतिशील बनें-कर्मचारियों को अपने सहकर्मियों, अधीनस्थ कर्मियों और निरीक्षकों से पारस्परिक क्रिया अनिवार्य है और इसके लिए परानुभूतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसके फलस्वरूप आपको सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। 

(3) परस्पर निर्भरता का ध्यान-काम पर लगे सभी व्यक्ति व्यक्तिगत, व्यावसायिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से परस्पर निर्भरता का ध्यान रखें। सहकर्मियों, अधीनस्थों और निरीक्षकों के साथ सकारात्मक अभिवृत्ति और व्यवहार एवं पारस्परिक क्रिया, सभी मिलकर पारस्परिक सदभाव पैदा करेंगे। जो लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, अधिक आत्मसंतोष और लाभ प्राप्त करते हैं; साथ ही किसी व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति में भी मदद करते हैं। कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने और जीविका के विकास के लिए अच्छा संप्रेषण और अन्तर्वैयक्तिक कौशल का होना अति आवश्यक है। 

(4) संगठन के प्रति निष्ठावान होना-कर्मचारियों के हमेशा अपने संगठन के प्रति निष्ठा और वचनबद्धता बनाए रखनी चाहिए तथा व्यावसायिक रूप से नीतिपरक होना चाहिए। 

(5) परिस्थितियों के लिए प्रतिसंवेदी होना-कर्मचारियों को परिस्थितियों के लिए प्रतिसंवेदी होना चाहिए, न कि प्रतिक्रियाशील। उदाहरण के लिए, यदि काम पर अपने वरिष्ठ से फटकार मिले तो उचित होगा कि स्थिति की वास्तविकता को परखकर और शांति से उसका उत्तर दें, बजाय इसके कि भावावेश में आकर तर्क-वितर्क करने लगें। यदि वरिष्ठ की फटकार उचित है तो व्यक्ति को सुधार के उपाय करने चाहिए और आवश्यक हो तो क्षमा माँग लेनी चाहिए। 

(6) लचीलापन, अनुकूलनशीलता तथा कौशल-कार्यक्षेत्र में कर्मचारी का लचीलापन, अनुकूलनशीलता, समस्या समाधान अभिवृत्ति तथा कौशल आदि उसकी प्रमुख योग्यताएँ हैं। चाहे उसका स्वयं का व्यवसाय है या वह दूसरों के लिए कार्य करता हो। 

(7) अच्छा नागरिक बनें तथा मिलकर कार्य करें-कर्मचारियों को चाहिए कि वे एक अच्छा नागरिक बनें और अपने आस-पास के समुदायों में वे सकारात्मकता को विकसित करें। दूसरों को उनकी उपलबिधयों के लिये सम्मान दें तथा उत्तरदायी परिवर्तन लाने के लिए दूसरों के साथ मिलकर कार्य करें। 

(8) जीवन के अनुभवों से सीखें-कार्य की संतुष्टि का संबंध दिन-प्रतिदन की चुनौतियाँ, दबाव तथा विचलित करने वाली परिस्थितियों को स्वीकार करने और उन्हें जीवन के अनुभवों में बदलने से है। यह उन्हें स्वयं को विकसित करने, एक बेहतर और अधिक आत्मसंतुष्टि वाला व्यक्ति एवं व्यवसायी बनने में मदद करते हैं। 

RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका

प्रश्न 10. 
कार्यस्थल पर आवश्यक प्रक्रिया कौशलों (सॉफ्ट स्किल्स) को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
कार्यस्थल पर आवश्यक प्रक्रिया कौशल 
कार्यस्थल पर आवश्यक प्रक्रिया कौशलों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
(1) उत्पादकतापूर्ण कार्य-कार्यस्थल पर एक प्रमुख आवश्यक प्रक्रिया कौशल उत्पादकतापूर्ण कार्य करना है। उत्पादन के लिए काम करने वाला अपने रोजगार और काम में प्रभावी कार्य करने की आदतों और अभिवृत्तियों का प्रयोग करता है। इसके लिए कार्यकर्ता में पर्याप्त ज्ञान, कौशल और प्रवीणता के साथ-साथ अनुभव भी होना चाहिए। उत्पादकता पर कार्यकर्ता के जोश, उत्साह और उसकी गतिशीलता का भी प्रभाव पड़ता है। साथ ही उत्पादकतापूर्ण कार्य के लिए रोजगार से लगाव और संस्था से अपनापन महत्त्वपूर्ण कारक हैं। 

(2) प्रभावी ढंग से सीखना-प्रत्येक व्यक्ति को पढ़ने, लिखने और परिकलन के लिए जरूरी कौशलों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त क्षेत्र से संबंधित अन्य सूचना प्राप्त करने के लिए तथा उपकरणों एवं कार्यनीतियों का उपयोग करने की क्षमता के लिए भी जरूरी कौशलों की आवश्यकता होती है। अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठा पाने के लिए, क्षेत्र के विकास के साथ प्रगति करने के लिए अपने क्षेत्र की नवीनतम जानकारी रखना और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरणा भी उतनी ही आवश्यक है। 

(3) स्पष्ट संप्रेषण-समुचित लिखने, बोलने और सुनने के कौशलों का प्रयोग करने के लिए स्पष्ट संप्रेषण आवश्यक है, ताकि व्यक्ति यथार्थ रूप से सूचना, विचार और सुझाव दूसरों तक पहुँचा सके। 

(4) मिल-जुलकर काम करना-प्रत्येक वयक्ति को काम पूरा करने, समस्याओं को सुलझाने, झगड़ों को निपटाने, सूचना उपलब्ध कराने और प्रोत्साहन देने के लिए आपस में मिल-जुलकर काम करना चाहिए। 

(5) विवेचनात्मक और रचनात्मक सोच-प्रत्येक सफल व्यक्ति कुछ नया करना और सृजन करना चाहता है, इस नाते वह विश्लेषणात्मक चिंतन और विवेचनात्मक मल्यांकन के लिए विभिन्न सिद्धान्तों और कार्यनीतियों को अपनाता है। 

(6) अन्य अपेक्षित कौशल-अन्य अपेक्षित कौशलों में सम्मिलित हैं-एकाग्रता, सतर्कता, सूझ-बूझ, व्यवहार कुशलता, परानुभूति, व्यवहार कौशल, प्रशिक्षण देने, काम सौंपने और दूसरों से कार्य करवाने की योग्यताएँ, पूर्व सोच और दृष्टिकोण, विविध कार्यों को करने की योग्यता। 

प्रश्न 11. 
रचनात्मकता से आप क्या समझते हैं? कार्यस्थल पर रचनात्मकता को कैसे प्रेरित किया जा सकता है? रचनात्मकता को विकसित करने की विधियों तथा उसके मार्ग की बाधाओं का उल्लेख कीजिए। 
अथवा 
रचनात्मकता पर. एक लेख लिखिए। 
उत्तर:
रचनात्मकता से आशय-रचनात्मकता सामान्य और सुविदित को नए, अनोखे और मौलिक में बदलने की योग्यता है। 

व्यक्तियों में रचनात्मक प्रेरणा अनेक बातों से प्रभावित होती है, जैसे-उनकी आंतरिक प्रेरणा और कुछ नया व मौलिक विकसित करने का उत्साह, संसाधन अर्थात् उनका ज्ञान, प्रवीणता, सूचनाओं तक पहुँच और रचनात्मक सोच। रचनात्मक सोच कौशल सीमा के आगे सोचने और वर्तमान विचारों को नवाचार (नए विचारों को प्रभावी ढंग से और सफलतापूर्वक उपयोग में लाना) द्वारा नए संयोजन में ढालने की क्षमता है।

रचनात्मकता के उत्पाद-रचनात्मकता के उत्पाद भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, जैसे-एक कलात्मक डिजाइन, संगीत की एक रचना, शायद एक नारा या फिर एक बेहतर चूहेदानी या एक आराम-कुर्सी या एक चिकित्सीय खोज या शीघ्र खाना पकाने की कोई विधि या जीवाणुओं को नष्ट करने का कोई नया हथियार आदि। 

कार्यस्थल पर रचनात्मकता को प्रेरित करने की स्थितियाँ-
कार्यस्थल पर रचनात्मकता को निम्नलिखित में से एक या अधिक द्वारा प्रेरित किया जा सकता है-

  • इस बात की स्वतंत्रता कि कौन-सा कार्य करना है और कैसे किया जाना है। 
  • महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर मेहनत से कार्य करने की चुनौती। 
  • काम करने के लिए आवश्यक संसाधन। 
  • अच्छे कार्य-मॉडलों द्वारा प्रोत्साहन। 
  • काम करने वाली टीमों की सहायता। 

रचनात्मकता को विकसित करने और आगे बढ़ाने की विधियाँ-रचनात्मकता को विकसित करने और आगे बढ़ाने की विधियाँ निम्नलिखित हैं-

  • प्रत्यक्ष अनुभव 
  • खेल खेलना 
  • पहेलियों का हल निकालना 
  • उपजीविका 
  • ललित कलाएँ 
  • पढ़ना और लिखना 
  • विचार मंथन 
  • अपनी अनुभूतियों को समझना और उनमें सुधार करना 
  • प्रश्न पूछना 
  • चिंतन और कल्पना करना। 

रचनात्मकता में बाधाएँ-रचनात्मकता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं-

  • स्व-हतोत्साहित होना 
  • असफल होने का भय 
  • आलोचना का भय 
  • अपनी रचनात्मक क्षमता में अविश्वास 
  • दृढ़ता की कमी 
  • देखने-समझने में कमी 
  • घर की बंधनयुक्त परिस्थितियाँ 
  • निष्क्रियता। 

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प्रश्न 12. 
उत्पादकता से क्या आशय है? उत्पादकता किन-किन बातों से निर्धारित की जाती है? 
उत्तर:
उत्पादकता से आशय-उत्पादकता को संसाधनों के कारगर उपयोग के रूप में समझा जा सकता है। संसाधन विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे-श्रम (मानव शक्ति), पूँजी, भूमि, ऊर्जा, सामग्री, विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की जानकारी और सेवाएँ। उत्पादकता को निवेश के प्रति इकाई से प्राप्त होने वाले उत्पाद (आउटपुट) से मापा जाता है। उदाहरण के लिए, श्रम उत्पादकता, प्रति कार्य घंटा (जो एक श्रम निवेश है) के अनुपात में हुए आउटपुट के अनुपात में मापी जाती है। 

उत्पादकता को एक व्यापक माप के रूप में किसी संगठन की दक्षता और प्रभावात्मकता. दोनों विशेषताओं के समावेशन के माध्यम से समझा जाता है। उत्पादकता सभी संगठनों के लिए प्रासंगिक है, चाहे उनका निर्गम (आउटपुट) उत्पाद हो या सेवाएँ हों।

उत्पादकता बढ़ाने के कारक- 
(1) अच्छा कार्य-परिवेश-एक सरल और अनुकूल सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और प्रेरणादायक कार्य-परिवेश द्वारा उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। 

(2) लोग-किसी संगठन के लोग उत्पादकता निर्धारण के लिए मुख्य संसाधन और केन्द्रीय कारक होते हैं। अतः निम्नलिखित को व्यक्ति के स्तर पर और अन्ततः संगठन एवं राष्ट्रीय स्तरों पर उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उपयोग में लाया जा सकता हैं-

  • शिक्षा और प्रशिक्षण। 
  • काम करने के लिए स्वस्थ/सकारात्मक अभिवृत्तियों का पोषण और उन्हें विकसित करना। 
  • बेहतर प्रदर्शन को प्रोत्साहन। 
  • पुरस्कार और प्रोत्साहन। 
  • संप्रेषण। 
  • रोजगार सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा और उन्नत कार्यविधियाँ। 
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग। 

उत्पादकता में वृद्धि मात्र चीजों को अच्छी तरह से करना नहीं है, बल्कि उपयुक्त चीजों को और बेहतर बनाना है। वैश्विक स्तर पर, उत्पादकता की संकल्पना अधिकाधिक गुणवत्ता से जुड़ती जा रही है। उत्पादकता में सुधार, व्यक्तियों और समाज के बेहतर जीवन-स्तर को निश्चित करने में मदद करती है। अधिकाधिक रूप से स्वीकार किया जाने लगा है कि बढ़ती उत्पादकता और कार्य-जीवन की बेहतर गुणवत्ता, साथ-साथ चलते हैं। अतः राष्ट्र के कल्याण में उत्पादकता की भूमिका को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। 

प्रश्न 13. 
व्यवसाय से संबंधित स्वास्थ्य क्या है? व्यवसाय सम्बन्धी खतरों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
व्यवसाय से संबंधित स्वास्थ्य से आशय-अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार व्यवसाय से संबंधित स्वास्थ्य की आधुनिक परिभाषा है, "सभी व्यवसायों में कर्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य कल्याण के लिए उच्चतम स्तर पर प्रोत्साहन एवं रख-रखाव उपलब्ध कराना है अर्थात् काम करते समय सभी का पूर्ण स्वास्थ्य।" 

व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के उद्देश्य-व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए उद्देश्य निम्नलिखित हैं- 

  • कर्मचारियों के शारीरिक, मानसिक और स्वास्थ्य-कल्याण को बनाए रखना और बढ़ावा देना, 
  • अधिकतम मानव दक्षता और मशीन दक्षता प्राप्त करना, 
  • व्यवसाय संबंधी संकटों और दुर्घटनाओं को कम करना, 
  • व्यवसाय सम्बन्धी रोगों और क्षति को रोकना, 
  • रोगग्रस्त होने के कारण अनुपस्थिति को कम करना और उत्पादकता बढ़ाना, 
  • कर्मचारियों की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य-स्थल और कार्य-परिवेश को बनाना। 

व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि-

  • भवन-परिसर, मशीनें और सामग्री, कार्य-करने की प्रणालियाँ, कार्य-परिवेश और सुविधाएँ निरापद हों। 
  • कर्मचारियों को सुरक्षा सम्बन्धी सूचनाएँ, निर्देश, प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण उपलब्ध कराए जाते हों। 
  • कार्य-भार की तुलना में कर्मचारियों की कार्य-क्षमता का आकलन किया जाता हो और उनके स्वास्थ्य-स्तर को मॉनिटर किया जाता हो। 

व्यवसाय सम्बन्धी खतरे 
व्यवसाय सम्बन्धी खतरे कई प्रकार के होते हैं, जैसे-भौतिक, रासायनिक, जैविक, यांत्रिक और मनोवैज्ञानिक। इन्हें निम्न सारणी में दर्शाया गया है- 

सारणी 1-विभिन्न प्रकार के व्यवसाय से खतरे
RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका 1 
स्पष्ट है कि विशिष्ट प्रकार के कार्य तथा पर्यावरण कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए विभिन्न प्रकार के संकट और जोखिम खड़े कर सकते हैं। 

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प्रश्न 14. 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल और सुरक्षा के उपायों के क्या महत्त्व है? 
उत्तर: 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल और 
सुरक्षा के उपायों के महत्त्व 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य से होने वाले लाभ कर्मचारियों और नियोक्ता दोनों के लिए हैं। यथा-
(अ) कर्मचारियों/श्रमिकों के लिए लाभ- 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य से कर्मचारियों/श्रमिकों को होने वाले लाभों में सम्मिलित हैं-

  • बेहतर स्वास्थ्य और कमाई की क्षमता 
  • कार्य जीवन की बेहतर गुणवत्ता, 
  • दुर्घटनाओं और अन्य किसी अस्थायी या स्थायी अपंगता की रोकथाम, 
  • बेहतर मनोबल और अधिक उत्पादकता।

(ब) संगठन/नियोक्ता के लिए लाभ- 
व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य की देखभाल और सुरक्षा के उपायों से संगठन/नियोक्ता को अनेक लाभ होते हैं जो वित्तीय लाभों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये अग्रलिखित हैं- 

  • व्यवसाय संबंधी रोगों/अन्य कार्य सम्बन्धी अस्वस्थता की रोकथाम करने से कम हुई अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप अधिक उत्पादकता, 
  • कर्मचारियों को स्वस्थ रखने से प्राप्त अधिक लाभ, 
  • संस्थान को मुख्य व्यवसाय पर ध्यान केन्द्रित करने का अवसर मिलना, 
  • संकट और मुकदमे के खर्च में कमी, 
  • चिकित्सकीय और कानूनी दावों में कमी, कर्मचारियों को दिए जाने वाले मुआवजों से होने वाले खर्चों में कमी, 
  • कर्मचारियों की बेहतर उपस्थिति और उनका संस्थान में बने रहना तथा 
  • कर्मचारियों को बेहतर प्रोत्साहन और निष्पादन। 

प्रश्न 15. 
दुर्घटनाओं से व्यवसाय द्वारा किये जाने वाले खर्चों पर एक टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
किसी व्यवसाय में दुर्घटनाओं से होने वाले खर्चे-किसी व्यवसाय में दुर्घटनाओं से होने वाले खर्चों को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है- 
(1) दुर्घटनाओं से होने वाले प्रत्यक्ष खर्चे-दुर्घटनाओं से होने वाले प्रत्यक्ष खर्चे हैं-श्रमिक की क्षतिपूर्ति का दावा जिसमें घायल या बीमार का चिकित्सीय खर्चा और भुगतान सम्मिलित होते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रत्यक्ष खर्चे हैं-

  • घायल कर्मचारियों के स्थान पर लगाए गए कर्मचारियों के प्रशिक्षण का खर्च 
  • संपत्ति की मरम्मत 
  • दुर्घटना जाँच, 
  • दोष निवारक प्रक्रिया को लागू करना तथा 
  • बीमा राशि के भुगतान का खर्च।

(2) दुर्घटनाओं से होने वाले अप्रत्यक्ष खर्च-दुर्घटना से होने वाले अप्रत्यक्ष खर्चों में शामिल हैं-

  • निर्धारित कार्य में देरी, 
  • प्रशासनिक समय में वृद्धि, 
  • निम्न मनोबल, 
  • अनुपस्थिति में वृद्धि और 
  • ग्राहक सम्बन्धों में कमजोरी।

इसलिए दुर्घटनाएँ अप्रत्यक्ष खर्चों के कारण उससे कहीं अधिक महंगी पड़ती हैं, जितना अधिकांश लोग सोचते हैं। 

प्रश्न 16. 
प्रभावी व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य और सुरक्षा कार्यक्रम किन-किन बातों पर केन्द्रित होते हैं? 
उत्तर: 
प्रभावी व्यवसाय संबंधी स्वास्थ्य और सुरक्षा कार्यक्रम 
प्रभावी व्यवसाय सम्बन्धी स्वास्थ्य और सुरक्षा कार्यक्रम निम्नलिखित छः बातों पर केन्द्रित होते हैं-
(1) कार्यस्थल सुरक्षा और रोजगार संकटों के विश्लेषण का मूल्यांकन-रोजगार सुरक्षा विश्लेषण, व्यापक सर्वे का आधार होना चाहिए। इसमें रोजगार के चरणों का अध्ययन और रिकॉर्ड बनाना शामिल होना चाहिए। जिससे वर्तमान और संभावित रोजगार-खतरों की पहचान की जा सके और कार्य इस प्रकार किया जाये कि खबरों को कम करना या समाप्त करना संभव हो सके। इसमें योजनाबद्ध और नयी सुविधाओं, प्रक्रमों, सामग्री और उपकरणों का विश्लेषण सम्मिलित है। 

(2) खतरों की रोकथाम और नियंत्रण-उद्योगों में महत्त्वपूर्ण होता है कि संयंत्र के सभी रसायनों और रनाक पदार्थों की सूची बनाकर रखी जाए। बहुत से उद्योगों के लिए ध्वनि स्तरों, वायु के नमूनों का विश्लेषण और एर्गोनॉमिक खतरे के कारकों का सर्वेक्षण आवश्यक होता है। 

(3) स्टाफ का प्रशिक्षण-स्वास्थ्य आर सुरक्षा के मुद्दों से संबंधित स्टाफ का प्रशिक्षण कितना आवश्यक है। इसके लिए संकट-संप्रेषण कार्यक्रम को विकसित करना, उसे लागू करना और समय-समय पर उसका पुनरावलोकन करना चाहिए। 

(4) प्रबंध समिति की प्रतिबद्धता-प्रबंध समिति विश्वास करती है कि रोजगार में सुरक्षा और स्वस्थ परिवेश कंपनी का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। इसके साथ ही साथ अन्य संस्थागत उद्देश्य भी होते हैं, जैसे-लागत नियंत्रण, गुणवत्ता और उत्पादकता। 

(5) कर्मचारियों की भागीदारी-किसी संगठन के कर्मचारी यह विश्वास करते हैं कि उनका कार्यस्थल निरापद है और स्वास्थ्यकारी कार्यस्थल का होना उनका अधिकार है और उनकी निरापदता तथा स्वास्थ्य उनकी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। उनका यह भी विश्वास होना चाहिए कि अपने साथियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान देना उनका कर्तव्य है। 

(6) पुनर्वास कार्यक्रमों पर स्वास्थ्य परामर्श की व्यवस्था-संस्थान को चाहिए कि वह स्वास्थ्य सम्बन्धी सभी पहलुओं के प्रबंधन के साथ-साथ पुनर्वास कार्यक्रमों पर स्वास्थ्य सम्बन्धी परामर्श की व्यवस्था करे और वह कर्मचारी की चिकित्सीय, सामाजिक, शैक्षिक, व्यावसायिक समस्याओं और आवश्यकताओं के अनुरूप हो।

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प्रश्न 17. 
कार्यस्थल पर खतरे के सूचक, संकेताक्षर तथा आपूर्ति के लिए खतरनाक वस्तुओं के प्रतीकों को एक तालिका में प्रदर्शित कीजिए। 
उत्तर: 
तालिका : कार्यस्थल पर खतरे के सूचक, संकेताक्षर 
तथा आपूर्ति के लिए खतरनाक वस्तुओं के प्रतीक 
RBSE Class 12 Home Science Important Questions Chapter 1 कार्य, आजीविका तथा जीविका 2

प्रश्न 18. 
सुकार्यिकी ( एर्गोनॉमिक्स) से आप क्या समझते हैं। कार्यस्थल पर सुकार्यिकी की आवश्यकता एवं महत्त्व को समझाइये। 
उत्तर:
सुकार्यिकी (एर्गोनॉमिक्स) से आशय-सुकार्यिकी अपने-अपने कार्यस्थल पर कार्य करते समय लोगों का किया जाने वाला अध्ययन है, ताकि व्यवसाय सम्बन्धी आवश्यकताओं, कार्य करने की विधियों, इस्तेमाल किए जाने वाले औजारों और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए लोगों के जटिल अन्तर को समझा जा सके। इसे 'मानव कारक अभियांत्रिक' भी कहा जा सकता है। 

संक्षेप में, सुकार्यिकी कर्मचारी के अनुकूल कार्य-परिवेश बनाने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ कार्य का अध्ययन है। इस प्रकार का कार्य-परिवेश उत्पन्न करने का उद्देश्य है कि यह परिवेश मानव-स्वास्थ्य के लिए खतरनाक नहीं होता है और कर्मचारियों को स्वीकार्य होता है एवं यह कार्य निर्गम और उत्पादकता के लिए भी अनुकूल होता है। 

दूसरे शब्दों में, सुकार्यिकी मानव और मशीन का सामञ्जस्य है। इसमें मानव और उसके कार्य में अनुकूलतम सामञ्जस्य स्थापित करने के लिए मानव जैविक विज्ञान के अनुप्रयोग को अभियांत्रिकी विज्ञान के साथ शामिल किया जाता है। औजारों, मशीनों और कार्यस्थलों की कार्य के अनुरूप डिजाइन की जाती है ताकि तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी आए। 

सुकार्यिकी द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया जाता है-

  • श्रमिक क्षमता-शरीर क्रियात्मक और मनोवैज्ञानिक दोनों 
  • कार्य की माँग-इसमें कार्य की प्रकृति और जटिलता, कर्मचारियों की आवश्यकता, अवधि और मुद्रा शामिल हैं। 
  • कार्य-परिवेश-इसमें शोर, आर्द्रता, कंपन, प्रकाश तथा ताप शामिल हैं। 

सकार्यिकी का अध्ययन चार स्तंभों पर व्यवस्थित हैं। ये स्तंभ हैं-(i) मानवमिति (शरीर का आकार और मापन) (ii) जैव यांत्रिकी (पेशी-कंकाली गतिविधियाँ और लगाए जाने वाला बल), (iii) शरीर क्रिया विज्ञान और (iv) औद्योगिक मनोविज्ञान। 

सुकार्यिकी की आवश्यकता 
कार्यस्थल पर सुकार्यिकी की आवश्यकता निम्नलिखित उपयोग हेतु है-
(1) बेहतर और निरापद स्वास्थ्य-कार्यस्थल पर बेहतर और निरापद स्वास्थ्य निम्न द्वारा पाया जा सकता है-

  • कार्यस्थल पर चोटिल होने और उसकी गंभीरता को कम करने के लिए, 
  • मानवीय त्रुटि से होने वाली दुर्घटनाओं की संभावना में कमी लाने के लिए। उक्त स्थितियों को लाने के लिए कार्यस्थल पर सुकार्यिकी के उपयोग होने की आवश्यकता है। 

(2) बेहतर प्रभावी रोजगार-बेहतर प्रभावी रोजगार निम्नलिखित के द्वारा पाया जा सकता है-

  • उत्पादकता को बढ़ाने के लिए, 
  • त्रुटियों में कमी लाकर, 
  • चोट न लगने देना या उसमें कमी लाकर, 

इन स्थितियों को कार्यस्थल पर सुकार्यिकी के उपयोग द्वारा ही पैदा किया जा सकता है। 

(3) रोजगार प्रभाविता में वृद्धि-सुकार्यिकी के उपयोग द्वारा सुविधाजनक कार्य-परिस्थितियों को पैदा कर रोजगार संतुष्टि में वृद्धि करके रोजगार प्रभाविता में वृद्धि की जा सकती है। 

सुकार्यिकी के लाभ 
कार्यस्थल पर सुकार्यिकी के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

  • सुकार्यिकी चोट और दुर्घटनाओं के जोखिमों को कम करता है। 
  • यह उत्पादकता को बढ़ाता है। 
  • यह त्रुटियों को कम करके कार्य पुनः करने की आवश्यकता को कम करता है। 
  • यह दक्षता को बढ़ाता है। 
  • यह खराब स्वास्थ्य/दुर्घटनाओं/तनाव के कारण होने वाली अनुपस्थिति को कम करता है। 
  • यह कर्मचारियों के मनोबल को बेहतर बनाता है। 

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प्रश्न 19. 
उद्यमिता तथा उद्यमी से आप.क्या समझते हैं? उद्यमियों के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
उद्यमिता-उद्यमिता एक नया और नवप्रवर्तक उद्यम/उत्पाद/सेवा स्थापित करने का कार्य है। उद्यमिता में एक उद्यमी किसी उत्पाद के उत्पादन या डिजाइन के प्रतिरूप में नवप्रवतेनों/आविष्कारों द्वारा परिवर्तित करता है अथवा नयी तकनीकी विधियों/सुधारों द्वारा नयी उपयोगी वस्तु या पुरानी को नए तरीके से बनाता है। 

उद्यमी-एक उद्यमी वह व्यक्ति होता है जो एक नए विचार को वास्तविकता का रूप देने का जोखिम उठाता है। वह नवप्रवर्तक, रचनात्मक, सुव्यवस्थित और जोखिम उठाने वाला व्यक्ति होता है। वह उद्यमिता को एक उद्यम/व्यवसाय के माध्यम से पूरा करता है, संसाधनों/अर्थव्यवस्था को अपनी कुशाग्र बुद्धि से जुटाता है और इसे अपनी जीविका का लक्ष्य बनाता है। 
 
उद्यमीवृत्ति-उद्यमीवृत्ति छोटी व्यक्तिगत परियोजनाओं एवं सूक्ष्म इकाइयों से लेकर, कई बार अंशकालिक उद्यम तक होती हैं। इनके अतिरिक्त इनमें प्रमुख औद्योगिक संस्थान भी होते हैं। 

उद्यमियों के लक्षण 
एक उद्यमी में निम्नलिखित व्यक्तिगत विशेषताएँ अवश्य होनी चाहिए-

  • कड़ी मेहनत करने की इच्छा। 
  • योजना बनाने और क्रियान्वयन करने का ज्ञान और कौशल। 
  • वित्त, सामग्री, व्यक्तियों और समय के प्रबंधन के कौशल। 
  • आकलित जोखिम उठाने का साहस होना। 
  • एक साथ कई कार्यों को आरंभ करने की योग्यता और तत्परता। 
  • आरंभ किए गए कार्यों के लिए आवश्यक कौशलों को सीखने और प्राप्त करने करने की योग्यता। 
  • कठिन मुद्दों से निपटने और उनके समाधान ढूंढने की क्षमता। 
  • यथार्थवादी होना और आसान समाधानों की अपेक्षा न करना। 
  • गतिरोधों, चुनौतियों और असफलताओं का सामना करने की योग्यता। 
  • भागीदारी विकसित करना, कार्यनीति बनाना तथा तालमेल बनाने की योग्यता। 
  • विनम्र होना और संकट की स्थितियों से निपटने की योग्यता। 
  • अच्छे संप्रेषण कौशलों का होना। 

संक्षेप में, उद्यमी को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नवप्रवर्तनकारी, रचनात्मक और लक्ष्य-अभिमुखी होना चाहिए। 

प्रश्न 20. 
सामाजिक उद्यमवृत्ति और सामाजिक उद्यमी पर एक टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
सामाजिक उद्यमवृत्ति-सामाजिक उद्यमवृत्ति अच्छे सामाजिक कार्य करने पर केन्द्रित रहती है। यह उद्यमवृत्ति एक विशेष समूह या व्यापक रूप से समाज के लिए उद्यमवृत्ति के माध्यम से बड़े पैमाने पर लाभ प्राप्त करने के लक्ष्य तक पहुँचना चाहती है। सामाजिक उद्यमवृत्ति की सफलता आर्थिक लाभ से उतनी नहीं आंकी जाती जितनी सामाजिक लाभों और प्रभावों से मापी जाती है। 

सामाजिक उद्यमी-सामान्यतः सामाजिक उद्यमी कमजोर, उपेक्षित, वंचित समूह अथवा वे व्यक्ति जिनको स्वयं लाभ प्राप्त करने के लिए वित्तीय साधन प्राप्त नहीं हैं, के लाभ के लिए कार्य करते हैं। 

सामाजिक उद्यमी सामाजिक उत्प्रेरक और दूरदर्शी होते हैं जो मूलभूत सामाजिक परिवर्तनों और टिकाऊ सुधारों का सृजन करते हैं। उनके कार्यों के चयनित क्षेत्र हैं-शिक्षा, स्वास्थ्य देख-भाल, आर्थिक विकास, पर्यावरण, ललित कलाएँ या कोई ऐसा अन्य सामाजिक क्षेत्र जिसमें सुधारों की आवश्यकता है। सामाजिक उद्यमी से अपने चयनित क्षेत्र में वैश्विक सुधारों को प्रेरित करने की क्षमता हो सकती है।

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Last Updated on Aug. 19, 2022, 10:01 a.m.
Published July 14, 2022