These comprehensive RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 9 व्यावसायिक वित्त will give a brief overview of all the concepts.
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→ विषय:
निर्णयों को लेने के लिए सावधानीपूर्ण व्यावसायिक वित्त की समझ की आवश्यकता होती है तथा मुख्य वित्तीय निर्णय करने वाले क्षेत्रों, वित्तीय जोखिम, व्यवसाय की स्थायी एवं कार्यशील पूंजी की आवश्यकता की समझ की भी आवश्यकता होती है।
→ व्यावसायिक वित्त का अर्थ:
व्यावसायिक क्रियाओं के संचालन हेतु जिस धन की आवश्यकता होती है, उसे ही व्यावसायिक वित्त कहते हैं। वित्त की आवश्यकता, व्यवसाय के स्थापन, संचालन, आधुनिकीकरण, विस्तार करने अथवा विविधीकरण के लिए होती है। अत: वित्त की आवश्यकता एक व्यवसाय के जीवन काल में हर कदम पर होती है।
→ वित्तीय प्रबन्ध:
वित्तीय प्रबन्ध का सम्बन्ध इसकी वित्त उपलब्धता तथा वित्त के उपयोग से है। वित्त की उपलब्धता के लिए वित्त के विभिन्न उपलब्ध स्रोतों की पहचान की जाती है तथा उनके ऊपर आने वाले व्यय की तुलना की जाती है तथा सम्बन्धित जोखिम का भी ध्यान रखा जाता है। ठीक उसी प्रकार, जो वित्त उपलब्ध हुआ है उसका विनियोग इस प्रकार किया जाता है कि उससे होने वाली आय उसकी लागत से अधिक हो। अतः वित्तीय प्रबन्ध का अर्थ आवश्यकतानुसार वित्त की समुचित व्यवस्था करने से है।
→ वित्तीय प्रबन्ध की भूमिका:
→ वित्तीय प्रबन्ध का उद्देश्य एवं वित्तीय निर्णय:
वित्तीय प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य अंशधारियों की धनसम्पदा में अधिकतम वृद्धि करना होता है। वित्तीय सन्दर्भ में वित्तीय निर्णय का तात्पर्य सर्वोत्तम वित्तीय विकल्प अथवा सर्वोत्तम विनियोग विकल्प है। वित्तीय निर्णय लेने का अर्थ तीन निम्न विस्तृत निर्णयों से है
→ निवेश सम्बन्धी निर्णय:
निवेश सम्बन्धी निर्णय का सम्बन्ध इस बात से होता है कि फर्म के कोषों को विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों में कैसे विनियोजित किया जाये।
निवेश निर्णय दीर्घकालीन अथवा अल्पकालीन हो सकता है। एक दीर्घकालीन निवेश निर्णय को 'पूँजी बजटिंग निर्णय' के नाम से जाना जाता है। इसमें दीर्घकालीन आधार पर वित्त की वचनबद्धता निहित होती है।
→ पूँजी बजटिंग निर्णयों को प्रभावित करने वाले कारक
→ अल्पकालीन निवेश निर्णय (चालू पूँजी निर्णय):
अल्पकालीन निवेश निर्णय से आशय व्यवसाय में स्कन्ध, देनदार तथा रोकड़ के स्तर का निर्णय लेने से है। इन सम्पत्तियों के विषय में निर्णय लेने का अर्थ व्यवसाय की दैनिक कार्यवाही का निर्णय होने से है।
→ वित्तीयन सम्बन्धी निर्णय:
वित्तीयन निर्णय सम्बन्धी निर्णय दीर्घकालीन स्रोतों से धन प्राप्त करके वित्त के प्रभाव के विषय में लिया जाता है।
→ वित्तीय निर्णय को प्रभावित करने वाले कारक:
→ लाभांश से सम्बन्धित निर्णय:
लाभांश से सम्बन्धित निर्णय में यह निश्चित किया जाता है कि अर्जित लाभ (कर का भुगतान करने के पश्चात्) का कितना लाभ अंशधारियों में लाभ के रूप में वितरित कर दिया जाये तथा लाभ का कितना भाग फर्म में प्रतिधारित उपार्जन के रूप में पुनर्विनियोजनार्थ रखा जाये ताकि विनियोग की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
→ लाभांश निर्णय को प्रभावित करने वाले कारक:
→ वित्तीय नियोजन अर्थ एवं उद्देश्य:
→ वित्तीय नियोजन का महत्त्व:
वित्तीय नियोजन किसी भी व्यावसायिक संस्था के समग्र नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। इसका लक्ष्य कम्पनी कोष की उपलब्धता के लिए उपलब्ध समय के सम्बन्ध में अनिश्चितता का सामना करने के योग्य बनाना है। यह संगठन के सुगम प्रचालन में सहायक होती है।
→ पूँजी संरचना:
वित्तीय प्रबन्ध में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय वित्तीय प्रारूप के सम्बन्ध में लेना होता है अर्थात् निधियों को बढ़ाने में विभिन्न वित्त के स्रोतों का उपयोग का अनुपात क्या होगा। स्वामित्व के आधार पर व्यावसायिक वित्त के स्रोतों को मोटे तौर पर 'स्वामिगत निधि' तथा 'उधार लिया हुआ या ग्रहीत निधि' में विभाजित किया जा सकता है। स्वामिगत निधि में समता अंश, पूर्वाधिकार अंश तथा संचय एवं आधिक्य अथवा प्रतिधारित उपार्जन सम्मिलित होते हैं। ग्रहीत निधि में ऋण, ऋण-पत्र, सार्वजनिक जमा आदि सम्मिलित होते हैं। इनको बैंक, अन्य वित्तीय संस्थाओं, ऋणपत्रधारियों एवं जनता से उधार लिया जा सकता है।
→ पूँजी संरचना का आशय स्वामिगत तथा ग्रहीत निधि के निर्णय से है। पूँजी संरचना को प्रभावित करने वाले कारक-एक व्यावसायिक संस्था की पूँजी संरचना का निर्धारण करने में विभिन्न प्रकार की निधियों से सम्बन्धित अनुपात का निर्धारण सन्निहित होता है। यह जिन कारकों से प्रभावित होता है या निर्धारित होता है, वे हैं
→ स्थायी एवं कार्यशील पूंजी स्थायी सम्पत्तियों का अर्थ:
स्थायी सम्पत्तियाँ वे होती हैं जो व्यवसाय में एक वर्ष से अधिक समय के लिए होती हैं या और लम्बे समय तक कार्यान्वित रहती हैं।
→ स्थायी पूँजी का अर्थ एवं प्रबन्धन:
स्थायी पूँजी से आशय दीर्घकालीन सम्पत्तियों में निवेश किये जाने से है। इन सम्पत्तियों में वित्त प्रबन्धन दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों से ही किया जाता है। इन दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों में समता या पूर्वाधिकार अंश, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण तथा व्यवसाय के प्रतिधारित उपार्जन से की जाती है।
→ स्थायी पूँजी की व्यवस्था या निवेश या पूँजी बजटिंग निर्णय निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण होता है:
→ स्थायी पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले घटक
→ कार्यशील पूँजी का अर्थ:
कार्यशील सम्पत्तियाँ वे होती हैं जो व्यवसाय में एक वर्ष से कम समय के लिए होती हैं। इनके माध्यम से व्यावसायिक संस्था की दैनिक संचालन क्रियाओं को सुगम रूप में संचालित रखने में आसानी रहती है। शुद्ध कार्यशील पूँजी के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है
शुद्ध कार्यशील पूँजी = चालू सम्पत्तियाँ - चालू दायित्व।
→ चालू सम्पत्तियों: में रोकड़ हस्ते/रोकड़ बैंक में, विक्रय योग्य प्रतिभूतियाँ, प्राप्य बिल, देनदार, तैयार माल रहतिया, अर्द्धनिर्मित माल, कच्चा माल, पूर्वदत्त व्यय आदि सम्मिलित होती हैं।
→ चालू दायित्वों में देय विपत्र, लेनदार, अदत्त व्यय, ग्राहकों से पूर्व प्राप्त भुगतान आदि सम्मिलित हैं।
→ कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं को प्रभावित करने वाले कारक"