These comprehensive RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन will give a brief overview of all the concepts.
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→ विषय प्रवेश:
एक प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह नेतृत्व, अभिप्रेरणा तथा अपने अधीनस्थों को प्रेरित करने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयोग करें जो उनके लिए उपयुक्त हों। सामूहिक रूप से इन्हें प्रबंधन की निर्देशन क्रिया कहा जाता है।
→ निर्देशन
निर्देशन का अर्थ: साधारण अर्थ में निर्देशन का अर्थ निर्देश देने तथा व्यक्तियों के कार्य में मार्गदर्शन करने से है।
संगठन के प्रबन्ध के सन्दर्भ में, निर्देशन व्यक्तियों को आदेश देने, मार्गदर्शन, परामर्श, अभिप्रेरित तथा कुशल नेतृत्व प्रदान करने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति करना है।
→ निर्देशन की मुख्य विशेषताएँ:
→ निर्देशन का महत्त्व:
→ निर्देशन के सिद्धान्त:
निर्देशन के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं
→ निर्देशन के तत्त्व
→ पर्यवेक्षण
पर्यवेक्षण का अर्थ:
निर्देशन के एक तत्त्व के रूप में पर्यवेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों के प्रयासों के मार्गदर्शन तथा अन्य संसाधनों के प्रयोग से सम्बन्धित है। इसका अर्थ है अधीनस्थों द्वारा किये गये कार्यों का निरीक्षण करना तथा अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना। दूसरा, संस्था के क्रम शृंखला में पर्यवेक्षक को एक कार्य निष्पादक के रूप में समझा जा सकता है।
→ पर्यवेक्षण का महत्त्व
→ अभिप्रेरणा
अभिप्रेरणा का अर्थ:
अभिप्रेरणा का अर्थ है किसी भी कार्य या क्रिया को प्रेरित अथवा प्रभावित करना। व्यवसाय के सन्दर्भ में इसका अर्थ उस प्रक्रिया से है जो अधीनस्थों को निर्धारित सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वांछित रूप से कार्य करने के लिए तैयार करती है। अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को वांछित उददेश्यों की पूर्ति के लिए प्रेरित किया जाता है। अभिप्रेरणा व्यक्तियों की आवश्यकताओं, की सन्तुष्टि पर निर्भर करती है।
→ अभिप्रेरणा की विशेषताएँ
→ अभिप्रेरणा की प्रक्रिया:
असन्तुष्ट आवश्यकताएँ-तनाव → आवेग → व्यवहार-सन्तुष्टि → आवश्यकता की सन्तुष्टि तनाव में कमी।
→ अभिप्रेरणा का महत्त्व
→ मास्लो की आवश्यकता:
क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धान्त-अब्राहम मास्लो, एक विख्यात मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने समग्र अभिप्रेरणा के सिद्धान्त के तत्त्वों की रूपरेखा संक्षेप में दी है। उनका सिद्धान्त मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित था। उनके अनुसार पाँच प्रकार की आवश्यकताएँ क्रमानुसार होती हैं, वे हैंआधारभूत/शारीरिक आवश्यकताएँ; सुरक्षा आवश्यकताएँ; संस्था से जुड़ाव/संस्था से संबद्ध आवश्यकताएँ; मानसम्मान (प्रतिष्ठा) आवश्यकताएँ; आत्म-सन्तुष्टि आवश्यकताएँ।
→ मास्लो का सिद्धान्त आवश्यकताओं को अभिप्रेरणा के आधार के रूप में केन्द्रित करता है। यह सिद्धान्त बहुत अधिक प्रसिद्ध हुआ है तथा सराहा गया है। यद्यपि, उसकी कुछ संकल्पनाओं पर प्रश्न उठे हैं जो आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रमबद्धता से सम्बन्धित हैं । परन्तु, इन आलोचनाओं के बावजूद यह सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। यह व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह प्रबन्धकों को यह समझने में मदद करता है कि कर्मचारियों की आवश्यकता के स्तर को पहचान कर कर्मचारियों को अभिप्रेरित किया जा सकता है।
→ वित्तीय तथा गैर-वित्तीय प्रोत्साहन:
प्रोत्साहन से तात्पर्य उन सभी उपायों से है जिनका प्रयोग व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है जिससे उनके कार्य निष्पादन में सुधार हो।
→ वित्तीय प्रोत्साहन:
वित्तीय प्रोत्साहन वे प्रोत्साहन हैं जो प्रत्यक्ष रूप में वित्त के रूप में हैं अथवा जिन्हें वित्त के रूप में मापा जा सकता है। ये वित्तीय प्रोत्साहन हैं-वेतन तथा भत्ते; उत्पादकता सम्बन्धित पारिश्रमिक/मजदूरी प्रोत्साहन; बोनस/अधिलाभांश; लाभ में भागीदारी; सह-साझेदारी/स्कन्ध (स्टॉक) विकल्प; सेवानिवृत्ति लाभ; अनुलाभ/परक्विजट।
→ गैर-वित्तीय प्रोत्साहन:
मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा संवेगीकारक भी प्रोत्साहन देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गैर-वित्तीय प्रोत्साहन मुख्यतः इन आवश्यकताओं पर केन्द्रित हैं। कुछ गैर-महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रोत्साहन इस प्रकार हैं--पद प्रतिष्ठा/ओहदा; सांगठनिक वातावरण; जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर; पद-संवर्द्धन; कर्मचारियों को पहचान/मान-सम्मान देने सम्बन्धित कार्यक्रम; पद-सुरक्षा/स्थायित्व; कर्मचारियों की भागीदारी; कर्मचारियों का सशक्तिकरण। नेतृत्व
→ नेतृत्व का अर्थ:
नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने की वह प्रक्रिया है, जो उन्हें स्वतः ही सांगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धित करती है। नेतृत्व संकेत करता है किसी व्यक्ति की उस योग्यता की जो अनुयायियों के मध्य अच्छे पारस्परिक सम्बन्धों को बनाये रखने में तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की जिससे वे सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना योगदान दे सकें।
→ नेतृत्व की विशेषताएँ
→ नेतृत्व का महत्त्व:
अनुयायियों के द्वारा अच्छे परिणामों को उत्पादित करना; अनुकूल कार्य वातावरण का सृजन करना; संस्था में आवश्यक परिवर्तनों को प्रारम्भ करना; आपसी टकराव (द्वन्द्व) को प्रभावपूर्ण ढंग से निपटाना; अपने अधीनस्थों को प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना।
→ एक अच्छे नेता के गुण:
शारीरिक विशेषताएँ, ज्ञान, सत्यनिष्ठा/ईमानदारी, पहल, सम्प्रेषण कौशल, अभिप्रेरणा कौशल, आत्म-विश्वास, निर्णय लेने की क्षमता, सामाजिक कौशल।
→ नेतृत्व शैली:
नेतृत्व की तीन मूल शैलियाँ हैं-एकतंत्रीय, लोकतंत्रीय, अबंधता (लेसिज फेयर)।
→ सम्प्रेषण
सम्प्रेषण का अर्थ:
सम्प्रेषण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है जिसके द्वारा भावं, विचार, तथ्य, अनुभव इत्यादि का आदान-प्रदान होता है, जिसका उद्देश्य दो व्यक्तियों के मध्य या आपस में आपसी समझ पैदा करता है।
→ सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्त्व:
सम्प्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व हैं-प्रेषक/सन्देश भेजने वाला, कूट/सन्देश, एनकोडिंग, माध्यम, रिकार्डिंग, सन्देश प्राप्तकर्ता, प्रतिपुष्टि, ध्वनि/कोलाहल।।
→ सम्प्रेषण का महत्त्व:
सम्प्रेषण का महत्त्व निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझाया जा सकता है
→ औपचारिक तथा अनौपचारिक सम्प्रेषण
औपचारिक सम्प्रेषण का अर्थ:
औपचारिक सम्प्रेषण संस्था की संरचना में आधिकारिक माध्यमों द्वारा प्रवाहित होता है। सम्प्रेषण अधिकारियों तथा अधीनस्थों के मध्य, अधीनस्थों तथा अधिकारियों के मध्य तथा प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य आपस में जो समान स्तर पर है, होता है। यह मौखिक या लिखित हो सकता है। यह ऊर्ध्वाधर तथा समतल भी हो सकता है। एक औपचारिक संगठन में जो सम्प्रेषण तन्त्र कार्य कर सकते हैं वे हैं- एक श्रृंखला, चक्र, गोला, स्वतन्त्र प्रवाह, विलोम।
→ अनौपचारिक सम्प्रेषण का अर्थ:
व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य होने वाले सम्प्रेषण जो आधिकारिक/ औपचारिक तौर पर नहीं होते हैं, उन्हें अनौपचारिक सम्प्रेषण कहा जाता है। इसे अंगूरीलता सम्प्रेषण भी कहा जाता है।
→ अनौपचारिक सम्प्रेषण की आवश्यकता का कारण है:
कर्मचारियों का आपस में विचारों का आदान-प्रदान जो औपचारिक माध्यमों द्वारा सम्भव नहीं है, वह इस माध्यम द्वारा पूरी होती है।
→ अंगूरीलता तंत्र:
अंगूरीलता संप्रेषण विभिन्न प्रकार के तंत्र द्वारा संभव है, जैसे-इकहरी श्रृंखला तंत्र, अफवाहें/गपशप तंत्र, समूह/भीड़-भाड़ तंत्र एवं संभाव्यता तंत्र।
→ प्रभावी सम्प्रेषण में बाधाएँ:
(1) संकेतिक/संकेतीय बाधाएँ
(2) मनोवैज्ञानिक बाधाएँ
(3) सांगठनिक बाधाएँ
(4) व्यक्तिगत बाधाएँ-
→ प्रभावी सम्प्रेषण के लिए सुधार