RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन

These comprehensive RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Business Studies in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Business Studies Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Business Studies Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 7 Notes निर्देशन

→ विषय प्रवेश:
एक प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह नेतृत्व, अभिप्रेरणा तथा अपने अधीनस्थों को प्रेरित करने के लिए विभिन्न तरीकों का प्रयोग करें जो उनके लिए उपयुक्त हों। सामूहिक रूप से इन्हें प्रबंधन की निर्देशन क्रिया कहा जाता है। 

→ निर्देशन
निर्देशन का अर्थ: साधारण अर्थ में निर्देशन का अर्थ निर्देश देने तथा व्यक्तियों के कार्य में मार्गदर्शन करने से है।
संगठन के प्रबन्ध के सन्दर्भ में, निर्देशन व्यक्तियों को आदेश देने, मार्गदर्शन, परामर्श, अभिप्रेरित तथा कुशल नेतृत्व प्रदान करने की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति करना है।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन

→ निर्देशन की मुख्य विशेषताएँ:

  • निर्देशन क्रिया को प्रारम्भ करता है।
  • निर्देशन प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर निष्पादित होता है।
  • निर्देशन एक निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है ।
  • निर्देशन ऊपर से नीचे की ओर प्रभावित होता है।

→ निर्देशन का महत्त्व:

  • संगठन में व्यक्तियों के कार्य को प्रारम्भ करने में निर्देशन सहायता करता है।
  • निर्देशन संगठन में कर्मचारियों के व्यक्तिगत प्रयासों को इस प्रकार समाकलित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति के कार्य का योगदान संस्था के निष्पादन में तथा सफलता में होता है।
  • यह कर्मचारियों का मार्गदर्शन करता है।
  • यह संगठन में आवश्यक परिवर्तनों को प्रारम्भ करने में मदद करता है।
  • प्रभावी निर्देशन संस्था में स्थिरता तथा सन्तुलन बनाये रखने में भी सहायता करता है।

→ निर्देशन के सिद्धान्त:
निर्देशन के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  • अधिकतम व्यक्तिगत योगदान का सिद्धान्त,
  • संगठन के उद्देश्यों के लिए तालमेल का सिद्धान्त,
  • आदेश की एकता का सिद्धान्त,
  • निर्देशन तकनीकों की उपयुक्तता/औचित्य का सिद्धान्त;
  • प्रबन्धकीय सम्प्रेषण का सिद्धान्त,
  • अनौपचारिक संगठन के प्रयोग का सिद्धान्त
  • नेतृत्व का सिद्धान्त,
  • अनुसरण करना।

→ निर्देशन के तत्त्व

  • पर्यवेक्षण,
  • अभिप्रेरणा,
  • नेतृत्व,
  • सम्प्रेषण। 

→ पर्यवेक्षण
पर्यवेक्षण का अर्थ:
निर्देशन के एक तत्त्व के रूप में पर्यवेक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो वांछित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों के प्रयासों के मार्गदर्शन तथा अन्य संसाधनों के प्रयोग से सम्बन्धित है। इसका अर्थ है अधीनस्थों द्वारा किये गये कार्यों का निरीक्षण करना तथा अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना। दूसरा, संस्था के क्रम शृंखला में पर्यवेक्षक को एक कार्य निष्पादक के रूप में समझा जा सकता है।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन

→ पर्यवेक्षण का महत्त्व

  • पर्यवेक्षक श्रमिकों के लिए मार्गदर्शक, मित्र तथा एक दार्शनिक के रूप में कार्य करता है।
  • प्रबन्धक तथा श्रमिकों के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है।
  • अधीनस्थों में सामूहिक एकता को बनाये रखता है।
  • कार्य का निष्पादन सुनिश्चित करता है।
  • कर्मचारियों तथा श्रमिकों को प्रशिक्षित करता है।
  • श्रमिकों के मध्य उच्च मनोवृत्ति का विकास करता है।
  • कार्य-निष्पादन का विश्लेषण करता है तथा अपनी सलाह अथवा प्रतिपुष्टि श्रमिकों को देता है। 

→ अभिप्रेरणा
अभिप्रेरणा का अर्थ:
अभिप्रेरणा का अर्थ है किसी भी कार्य या क्रिया को प्रेरित अथवा प्रभावित करना। व्यवसाय के सन्दर्भ में इसका अर्थ उस प्रक्रिया से है जो अधीनस्थों को निर्धारित सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वांछित रूप से कार्य करने के लिए तैयार करती है। अभिप्रेरणा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों को वांछित उददेश्यों की पूर्ति के लिए प्रेरित किया जाता है। अभिप्रेरणा व्यक्तियों की आवश्यकताओं, की सन्तुष्टि पर निर्भर करती है।

→ अभिप्रेरणा की विशेषताएँ

  • अभिप्रेरणा एक आन्तरिक अनुभब है।
  • अभिप्रेरणा एक लक्ष्य आधारित व्यवहार को जन्म देती है।
  • अभिप्रेरणा सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों ही प्रकार की हो सकती है।
  • अभिप्रेरणा एक जटिल प्रक्रिया है।

→ अभिप्रेरणा की प्रक्रिया:
असन्तुष्ट आवश्यकताएँ-तनाव →  आवेग →  व्यवहार-सन्तुष्टि →  आवश्यकता की सन्तुष्टि तनाव में कमी।

→ अभिप्रेरणा का महत्त्व

  • अभिप्रेरणा कर्मचारियों के निष्पादन स्तर के सुधार के साथ-साथ संगठन के सफल निष्पादन में सहायक है।
  • अभिप्रेरणा कर्मचारियों के नकारात्मक/निष्क्रिय/तटस्थ दृष्टिकोण को सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु उनके सकारात्मक रूपान्तरण में सहायक है।
  • अभिप्रेरणा कर्मचारियों की आवर्तन दर को कम करती है। 
  • अभिप्रेरणा संगठन में अनुपस्थिति की दर को कम करने में सहायक है।
  • अभिप्रेरणा प्रबन्धकों को नये परिवर्तनों को प्रारम्भ करने में बिना लोगों के विरोध के, सहायता देती है।

→ मास्लो की आवश्यकता:
क्रम अभिप्रेरणा का सिद्धान्त-अब्राहम मास्लो, एक विख्यात मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने समग्र अभिप्रेरणा के सिद्धान्त के तत्त्वों की रूपरेखा संक्षेप में दी है। उनका सिद्धान्त मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित था। उनके अनुसार पाँच प्रकार की आवश्यकताएँ क्रमानुसार होती हैं, वे हैंआधारभूत/शारीरिक आवश्यकताएँ; सुरक्षा आवश्यकताएँ; संस्था से जुड़ाव/संस्था से संबद्ध आवश्यकताएँ; मानसम्मान (प्रतिष्ठा) आवश्यकताएँ; आत्म-सन्तुष्टि आवश्यकताएँ।

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→  मास्लो का सिद्धान्त आवश्यकताओं को अभिप्रेरणा के आधार के रूप में केन्द्रित करता है। यह सिद्धान्त बहुत अधिक प्रसिद्ध हुआ है तथा सराहा गया है। यद्यपि, उसकी कुछ संकल्पनाओं पर प्रश्न उठे हैं जो आवश्यकताओं के वर्गीकरण तथा क्रमबद्धता से सम्बन्धित हैं । परन्तु, इन आलोचनाओं के बावजूद यह सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक है। यह व्यक्ति के व्यवहार को समझने के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह प्रबन्धकों को यह समझने में मदद करता है कि कर्मचारियों की आवश्यकता के स्तर को पहचान कर कर्मचारियों को अभिप्रेरित किया जा सकता है। 

→ वित्तीय तथा गैर-वित्तीय प्रोत्साहन:
प्रोत्साहन से तात्पर्य उन सभी उपायों से है जिनका प्रयोग व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है जिससे उनके कार्य निष्पादन में सुधार हो। 

→ वित्तीय प्रोत्साहन:
वित्तीय प्रोत्साहन वे प्रोत्साहन हैं जो प्रत्यक्ष रूप में वित्त के रूप में हैं अथवा जिन्हें वित्त के रूप में मापा जा सकता है। ये वित्तीय प्रोत्साहन हैं-वेतन तथा भत्ते; उत्पादकता सम्बन्धित पारिश्रमिक/मजदूरी प्रोत्साहन; बोनस/अधिलाभांश; लाभ में भागीदारी; सह-साझेदारी/स्कन्ध (स्टॉक) विकल्प; सेवानिवृत्ति लाभ; अनुलाभ/परक्विजट।

→ गैर-वित्तीय प्रोत्साहन:
मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा संवेगीकारक भी प्रोत्साहन देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गैर-वित्तीय प्रोत्साहन मुख्यतः इन आवश्यकताओं पर केन्द्रित हैं। कुछ गैर-महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रोत्साहन इस प्रकार हैं--पद प्रतिष्ठा/ओहदा; सांगठनिक वातावरण; जीवनवृत्ति विकास के सुअवसर; पद-संवर्द्धन; कर्मचारियों को पहचान/मान-सम्मान देने सम्बन्धित कार्यक्रम; पद-सुरक्षा/स्थायित्व; कर्मचारियों की भागीदारी; कर्मचारियों का सशक्तिकरण। नेतृत्व

→ नेतृत्व का अर्थ:
नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार को प्रभावित करने की वह प्रक्रिया है, जो उन्हें स्वतः ही सांगठनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धित करती है। नेतृत्व संकेत करता है किसी व्यक्ति की उस योग्यता की जो अनुयायियों के मध्य अच्छे पारस्परिक सम्बन्धों को बनाये रखने में तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की जिससे वे सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति में अपना योगदान दे सकें।

→ नेतृत्व की विशेषताएँ

  • दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता,
  • व्यक्तियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास,
  • नेता तथा अनुयायियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध,
  • समान लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास,
  • निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया। .

→ नेतृत्व का महत्त्व:
अनुयायियों के द्वारा अच्छे परिणामों को उत्पादित करना; अनुकूल कार्य वातावरण का सृजन करना; संस्था में आवश्यक परिवर्तनों को प्रारम्भ करना; आपसी टकराव (द्वन्द्व) को प्रभावपूर्ण ढंग से निपटाना; अपने अधीनस्थों को प्रशिक्षण उपलब्ध करवाना।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन

→ एक अच्छे नेता के गुण:
शारीरिक विशेषताएँ, ज्ञान, सत्यनिष्ठा/ईमानदारी, पहल, सम्प्रेषण कौशल, अभिप्रेरणा कौशल, आत्म-विश्वास, निर्णय लेने की क्षमता, सामाजिक कौशल।

→ नेतृत्व शैली:
नेतृत्व की तीन मूल शैलियाँ हैं-एकतंत्रीय, लोकतंत्रीय, अबंधता (लेसिज फेयर)। 

→ सम्प्रेषण
सम्प्रेषण का अर्थ:
सम्प्रेषण को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है जिसके द्वारा भावं, विचार, तथ्य, अनुभव इत्यादि का आदान-प्रदान होता है, जिसका उद्देश्य दो व्यक्तियों के मध्य या आपस में आपसी समझ पैदा करता है।

→ सम्प्रेषण प्रक्रिया के तत्त्व:
सम्प्रेषण प्रक्रिया के प्रमुख तत्त्व हैं-प्रेषक/सन्देश भेजने वाला, कूट/सन्देश, एनकोडिंग, माध्यम, रिकार्डिंग, सन्देश प्राप्तकर्ता, प्रतिपुष्टि, ध्वनि/कोलाहल।।

→ सम्प्रेषण का महत्त्व:
सम्प्रेषण का महत्त्व निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझाया जा सकता है

  • समन्वय के आधार के रूप में कार्य करना,
  • उद्यम के निर्विघ्न संचालन में सहायता करना,
  • निर्णय लेने की क्षमता के आधार के रूप में कार्य करना,
  • प्रबन्धकीय कुशलता को बढ़ाना,
  • सहयोग तथा औद्योगिक शान्ति की स्थापना,
  • प्रभावी नेतृत्व को स्थापित करना,
  • मनोबल बढ़ाना तथा अधीनस्थों को अभिप्रेरित करना। 

→ औपचारिक तथा अनौपचारिक सम्प्रेषण
औपचारिक सम्प्रेषण का अर्थ:
औपचारिक सम्प्रेषण संस्था की संरचना में आधिकारिक माध्यमों द्वारा प्रवाहित होता है। सम्प्रेषण अधिकारियों तथा अधीनस्थों के मध्य, अधीनस्थों तथा अधिकारियों के मध्य तथा प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य आपस में जो समान स्तर पर है, होता है। यह मौखिक या लिखित हो सकता है। यह ऊर्ध्वाधर तथा समतल भी हो सकता है। एक औपचारिक संगठन में जो सम्प्रेषण तन्त्र कार्य कर सकते हैं वे हैं- एक श्रृंखला, चक्र, गोला, स्वतन्त्र प्रवाह, विलोम।

→ अनौपचारिक सम्प्रेषण का अर्थ:
व्यक्तियों एवं समूहों के मध्य होने वाले सम्प्रेषण जो आधिकारिक/ औपचारिक तौर पर नहीं होते हैं, उन्हें अनौपचारिक सम्प्रेषण कहा जाता है। इसे अंगूरीलता सम्प्रेषण भी कहा जाता है।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 7 निर्देशन

→ अनौपचारिक सम्प्रेषण की आवश्यकता का कारण है:
कर्मचारियों का आपस में विचारों का आदान-प्रदान जो औपचारिक माध्यमों द्वारा सम्भव नहीं है, वह इस माध्यम द्वारा पूरी होती है।

→ अंगूरीलता तंत्र:
अंगूरीलता संप्रेषण विभिन्न प्रकार के तंत्र द्वारा संभव है, जैसे-इकहरी श्रृंखला तंत्र, अफवाहें/गपशप तंत्र, समूह/भीड़-भाड़ तंत्र एवं संभाव्यता तंत्र।

→ प्रभावी सम्प्रेषण में बाधाएँ:
(1) संकेतिक/संकेतीय बाधाएँ

  • सन्देश की अनुपयुक्त अभिव्यक्ति,
  • विभिन्न अर्थों सहित संकेतक,
  • त्रुटिपूर्ण रूपान्तर/अनुवाद,
  • अस्पष्ट संकल्पनाएँ,
  • तकनीकी विशिष्ट शब्दावली,
  • शारीरिक भाषा तथा हाव-भाव की अभिव्यक्ति की डिकोडिंग।

(2) मनोवैज्ञानिक बाधाएँ

  • असामयिक मूल्यांकन,
  • सावधानी का अभाव/ध्यान न होना,
  • सम्प्रेषण के प्रसारण में लोप/क्षय तथा अपर्याप्त प्रतिधारण,
  • अविश्वास। 

(3) सांगठनिक बाधाएँ

  • सांगठनिक नीति,
  • नियम तथा अधिनियम,
  • पदवी/पद,
  • संगठन की संरचना में जटिलता,
  • सांगठनिक सुविधाएँ। 

(4) व्यक्तिगत बाधाएँ-

  • सत्ता के सामने चुनौती का भय,
  • अधिकारी का अपने अधीनस्थों में विश्वास का अभाव, 
  • सम्प्रेषण में अनिच्छा,
  • उपयुक्त प्रोत्साहनों का अभाव।।

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→ प्रभावी सम्प्रेषण के लिए सुधार

  • सम्प्रेषण करने से पहले विचार/लक्ष्य स्पष्ट करने चाहिए।
  • सन्देश प्राप्तकर्ता की आवश्यकतानुसार सम्प्रेषण करें।
  • सम्प्रेषण के पहले अन्य लोगों से भी परामर्श करें।
  • सन्देश में प्रयुक्त भाषा शैली तथा उसकी विषय-वस्तु के लिए जागरूक रहें।
  • ऐसा सम्प्रेषण करें जो सुनने वालों के लिए सहायक हो तथा महत्त्वपूर्ण/मूल्यवान हो।
  • उपयुक्त प्रतिपुष्टि निश्चित करें।
  • वर्तमान तथा भविष्य दोनों के लिए सम्प्रेषण करें।
  • सम्प्रेषण का अनुसरण।
  • एक अच्छा स्रोत होना चाहिए।
Prasanna
Last Updated on June 17, 2022, 11:19 a.m.
Published June 17, 2022