RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 6 नियुक्तिकरण

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RBSE Class 12 Business Studies Chapter 6 Notes नियुक्तिकरण

→ विषय प्रवेश:
यह एक स्थापित सत्य है कि किसी संस्था के विकास के लिए लगातार गुणात्मक नियुक्ति की आवश्यकता है। इसलिए किसी भी संगठन की सफलता के लिए पर्याप्त नियुक्तिकरण अथवा उपयुक्त मानव संसाधनों का प्रावधान एक अनिवार्य आवश्यकता है।

→ नियुक्तिकरण का अर्थ:
सामान्य अर्थ में, नियुक्तिकरण का अर्थ लोगों को कार्यरत करना है। यह कार्यबल के नियोजन से प्रारम्भ होता है तथा इसमें अन्य कार्य, जैसे-भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, पदोन्नति, क्षतिपूर्ति एवं कार्य-निष्पादन मूल्यांकन (आकलन) सम्मिलित हैं। वस्तुतः नियुक्तिकरण प्रबन्ध प्रक्रिया का वह भाग है जो सन्तुष्ट एवं सन्तुष्ट करने वाले कार्य-बल के प्राप्तिकरण, उपभोग एवं रख-रखाव से सम्बन्धित है। वर्तमान में, नियुक्तिकरण में कर्मचारियों के संयोजन में दैनिक श्रमिक, सलाहकार एवं अनुबन्धित कर्मचारियों को सम्मिलित किया जा सकता है।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 6 नियुक्तिकरण

→ नियुक्तिकरण की आवश्यकता तथा महत्त्व:
मानव संसाधन किसी भी संगठन की एक अमूल्य एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिसम्पत्ति है। किसी भी संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति उसके मानवीय संसाधनों और गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इसलिए नियुक्तिकरण एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकीय प्रक्रिया है। कोई भी संस्था सफल नहीं हो सकती यदि वह अपने सांगठनिक संरचना में विभिन्न पदों पर सही कर्मचारियों की नियुक्ति कर पाने में समर्थ न हो।

→ नियक्तिकरण के लाभ:
योग्य कर्मचारियों की खोज में सहायता करना, उपयुक्त व्यक्तियों की उपयुक्त पदों पर नियुक्ति, संस्था का विकास, मानव संसाधन का सर्वोत्तम उपयोग, कर्मचारियों का मनोबल बढ़ना।

→ नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध के अंग के रूप में नियुक्तिकरण की प्रक्रिया प्रबन्धन के मानवीय तत्त्वों से सम्बन्धित है। कोई भी संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कितना सफल है, इसका निर्धारण बहुत कुछ मानव संसाधनों की योग्यता, अभिप्रेरणा तथा उनके निष्पादन के आधार पर होता है। छोटी संस्थाओं में प्रबन्धक नियुक्तिकरण का कार्य करता है तो उसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं-उचित पदों पर उचित व्यक्तियों की नियुक्ति, नये कर्मचारियों का संस्था में प्रवेश, प्रशिक्षण द्वारा निष्पादन में सुधार, उनकी योग्यताओं का विकास, उनका मनोबल रखना, उनके शारीरिक स्वास्थ्य तथा भौतिक सुविधाओं की सुरक्षा करना तथा कर्मचारियों के वेतन, कल्याण एवं उनकी कार्यस्थितियों से सम्बन्धित दायित्वों का निर्वाह करना।
बड़ी संख्या में मानव संस्थान प्रबन्ध में निष्पादित की जाने वाली क्रियाएँ इस प्रकार हैं-भर्ती, कार्य का विश्लेषण, क्षतिपूर्ति तथा प्रोत्साहन योजनाओं का विकास करना, कुशल निष्पादन तथा जीवन-वृद्धि हेतु कर्मचारियों का प्रशिक्षण तथा विकास, श्रम सम्बन्ध, संघ-प्रबन्ध सम्बन्धों का अनुरक्षण, रख-रखाव, शिकायतों का निराकरण, सामाजिक सुरक्षा तथा कर्मचारियों के कल्याण हेतु योजना बनाना; कानूनी मामले तथा कानूनी पेंचों से कम्पनी की सुरक्षा तथा बचाव करना।

→ मानव संसाधन प्रबन्धन का क्रम विकास-मानव संसाधन प्रबन्ध का अपने वर्तमान स्वरूप में प्रादुर्भाव बहुत सारे महत्त्वपूर्ण अन्तर्सम्बन्धित विकासों के द्वारा हुआ है जो औद्योगिक क्रान्ति कही जाती है। व्यापार-संघ आन्दोलन के आविर्भाव ने मनुष्य की आवश्यकता को उभारा जो प्रबन्धक/स्वामी तथा कर्मचारियों के मध्य एक महत्त्वपूर्ण कड़ी का कार्य कर सके । इस प्रकार श्रम कल्याण अधिकारी के पद का जन्म हुआ। कारखाना प्रणाली के प्रादुर्भाव से हजारों कर्मचारी एक ही छत के नीचे नियुक्त होने लगे। लोगों की भर्ती चयन तथा नियुक्ति का कार्य संगठन में एक व्यक्ति को सौंपा गया।

फलतः कर्मचारी प्रबन्धक पद का जन्म हुआ। तत्पश्चात् मानव सम्बन्ध उपागम का प्रादुर्भाव हुआ। यह उपागम मानवीय तत्त्व को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण साधन या यन्त्र के रूप में मानता है। धीरे-धीरे कर्मचारियों को एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में माना जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप ही कर्मचारी प्रबन्धक का पद मानव संसाधन प्रबन्ध के रूप में प्रतिस्थापित हो गया। आज नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्धक का एक अन्तर्निहित भाग है, जो कर्मचारियों के कार्य-सम्बन्धों को स्थापित करने के लिए, उन्हें जानने, मूल्यांकित करने के उद्देश्य से कार्यरत रहती है।

नियुक्तिकरण दोनों ही प्रकार की प्रबन्धन क्रियाएँ करता है जैसे नियोजन, संगठन, निर्देशन तथा नियन्त्रण साथ ही साथ प्रबन्धन के भिन्न कार्यात्मक क्षेत्र जैसे विपणन तथा वित्तीय प्रबन्धन।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 6 नियुक्तिकरण

→ नियुक्तिकरण की प्रक्रिया

  • मानव-शक्ति आवश्यकताओं का आकलन करना,
  • भर्ती,
  • चयन,
  • अनुस्थापन तथा अभिविन्यास,
  • प्रशिक्षण तथा विकास,
  • निष्पादन मूल्यांकन,
  • पदोन्नति एवं भविष्य नियोजन,
  • पारिश्रमिक।

→ नियुक्तिकरण के विभिन्न पहलू:
नियुक्तिकरण के तीन मुख्य पक्ष हैं-भर्ती, चयन तथा प्रशिक्षण। 

→ भर्ती: भर्ती का अर्थ-वह प्रक्रिया जिसमें सम्भावित कर्मचारियों को आकर्षित/प्रेरित किया जाता है कि वे संगठन में कार्य करने के लिए अपने आवेदन-पत्र दें, भर्ती कहलाती है।

→ भर्ती की प्रक्रिया:

  • श्रमपूर्ति के विभिन्न स्रोतों की पहचान,
  • उनकी वैधता का निर्धारण,
  • सबसे उपयुक्त स्रोत अथवा स्रोतों को चुनना,
  • रिक्त पदों के लिए सम्भावित कर्मचारियों को आमन्त्रित करना।

→ भर्ती के आन्तरिक स्त्रोत:

  • स्थानान्तरण,
  • पदोन्नति। 

→ भर्ती के आन्तरिक स्रोतों के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं-कर्मचारियों द्वारा प्रतिबद्धता तथा निष्ठा से कार्य करना, चयन प्रक्रिया व अनुस्थापन को सरल बनाना, प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं, अतिरिक्त विभागों से कार्यशक्ति का स्थानान्तरण सम्भव, कम खर्चीली।

→ भर्ती के आन्तरिक स्त्रोत की कमिया:
नयी प्रतिभाओं के संस्था में प्रवेश के अवसर कम होना, कर्मचारी अकर्मण्य हो सकते हैं, नयी संस्था के लिए अनुपयुक्त, स्थानान्तरण से कर्मचारियों की उत्पादकता पर प्रभाव।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 6 नियुक्तिकरण

→ भर्ती के बाह्य स्रोत

  • प्रत्यक्ष भर्ती,
  • प्रतीक्षा सूची,
  • विज्ञापन,
  • रोजगार कार्यालय,
  • स्थापन एजेन्सी तथा प्रबन्ध परामर्शदाता,
  • महाविद्यालय/विश्वविद्यालय से भर्ती,
  • कर्मचारियों द्वारा अनुशंसा,
  • जॉबर एवं ठेकेदार,
  • विज्ञापन एवं दूरदर्शन,
  • वैब प्रसारण।

→ बाह्य स्रोत के प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
योग्य कर्मचारी प्राप्त होना, विस्तृत विकल्प उपलब्ध, नयी प्रतिभाएँ प्राप्त होना, प्रतियोगिता की भावना। 

→ बाह्य स्रोत की प्रमुख सीमाएँ इस प्रकार हैं-वर्तमान कर्मचारियों में असन्तोष की भावना, महंगी प्रक्रिया।

→ चयन का अर्थ:
बड़ी संख्या में रिक्त पद के सम्भावित उम्मीदवारों में से सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति को पहचानने तथा खोजने की प्रक्रिया चयन कहलाती है।

→ चयन की प्रक्रिया:
प्रारम्भिक जाँच, चयन परीक्षाएँ (बुद्धि, कौशल, व्यक्तित्व, व्यापार तथा अभिरुचि परीक्षा); रोजगार साक्षात्कार; सन्दर्भ तथा पृष्ठभूमि जाँच/परीक्षण; चयन निर्णय; शारीरिक एवं डॉक्टरी प्रशिक्षण; पद-प्रस्ताव; रोजगार समझौता।

→ प्रशिक्षण तथा विकास
अर्थ:
प्रशिक्षण तथा विकास, कर्मचारियों के वर्तमान तथा भविष्य के निष्पादन स्तर को सुधारने का एक प्रयास है। इसमें प्रायः कर्मचारियों को सिखाने के द्वारा उनकी योग्यता को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है।

→ प्रशिक्षण तथा विकास की आवश्यकता

  • संगठन को लाभ-प्रशिक्षण एक सीखने की प्रक्रिया, कर्मचारियों की उत्पादकता व उत्पादन को बढ़ाना, भविष्य के प्रबन्ध को तैयार करना, कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाना, प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सहायक।
  • कर्मचारियों को लाभ-कर्मचारी के कौशल तथा ज्ञान में वृद्धि, कार्य का बेहतर निष्पादन, कर्मचारियों को अधिक कुशल बनाना, कर्मचारियों के सन्तोष तथा मनोबल में वृद्धि।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 6 नियुक्तिकरण

→ प्रशिक्षण, विकास एवं शिक्षा:
प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों के दृष्टिकोण, कौशल तथा उनकी योग्यताओं को बढ़ाया जाता है ताकि वे अपने विशिष्ट कार्यों का बेहतर निष्पादन कर सकें। विकास से तात्पर्य सीखने के सुअवसरों के निर्माण से है जो कर्मचारियों के विकास में सहयोग देती है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो कर्मचारियों के ज्ञान तथा बोध को बढ़ाती है।

→ प्रशिक्षण की विधियाँ:
ऑन द जॉब विधियाँ

  • प्रशिक्षणार्थी कार्यक्रम,
  • शिक्षण (कोचिंग),
  • स्थानबद्ध प्रशिक्षण (इंटर्नशिप प्रशिक्षण)/संयुक्त प्रशिक्षण,
  • कार्यबदली। 

→ ऑफ द जॉब विधियाँ

  • कक्षाकक्ष व्याख्यान/सम्मेलन,
  • चलचित्र,
  • समस्यात्मक अध्ययन (केस-स्टडी),
  • कम्प्यूटर प्रतिमान,
  • प्रकोष्ठ प्रशिक्षण,
  • नियोजित अनुदेश/प्रशिक्षण।
Prasanna
Last Updated on June 17, 2022, 11:14 a.m.
Published June 17, 2022