Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण Important Questions and Answers.
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बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
नियुक्तिकरण है-
(अ) नियोजन करना
(ब) नियन्त्रण करना
(स) निर्देशन करना
(द) लोगों को कार्य पर रखना।
उत्तर:
(द) लोगों को कार्य पर रखना।
प्रश्न 2.
नियुक्ति की आवश्यकता होती है-
(अ) श्रमिकों का कल्याण करने के लिए
(ब) औपचारिक संगठन बनाने के लिए
(स) कार्य निष्पादन करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता पूरी करने के लिए
(द) अनौपचारिक संगठन बनाने के लिए।
उत्तर:
(स) कार्य निष्पादन करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता पूरी करने के लिए
प्रश्न 3.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के चरण का क्रम है-
(अ) मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन करना
(ब) भर्ती
(स) आवेदकों में से चयन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
नियुक्ति की प्रथम सीढ़ी है-
(अ) चयन
(ब) भर्ती
(स) पदोन्नति
(द) साक्षात्कार।
उत्तर:
(ब) भर्ती
प्रश्न 5.
भर्ती करने का एक बहुत ही लोकप्रिय बाह्य स्रोत है-
(अ) सरकार व निजी रोजगार कार्यालय
(ब) विज्ञापन
(स) श्रमसंघ
(द) भूतपूर्व कर्मचारी।
उत्तर:
(ब) विज्ञापन
प्रश्न 6.
प्रबन्धकीय पदों की भर्ती का कार्य किया जाता है-
(अ) सरकारी व रोजगार कार्यालय
(ब) कार्यरत कर्मचारियों की अनुशंसा
(स) प्रबन्ध परामर्शदाता समिति
(द) श्रमसंघ।
उत्तर:
(स) प्रबन्ध परामर्शदाता समिति
प्रश्न 7.
चयन से पूर्व प्रक्रिया अपनायी जाती है-
(अ) प्रशिक्षण
(ब) भर्ती
(स) विकास
(द) पदोन्नति।
उत्तर:
(ब) भर्ती
प्रश्न 8.
वह प्रक्रिया जिससे कर्मचारी के पदभार सम्भालने से है जिसके लिए उसका चयन हुआ है, कहलाती है-
(अ) प्रशिक्षण
(ब) अभिविन्यास
(स) अनुस्थापन
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) अनुस्थापन
प्रश्न 9.
नियुक्ति प्रक्रिया का अन्तिम चरण है-
(अ) मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन करना
(ब) आवेदकों में से चयन
(स) अनुस्थापन तथा अभिविन्यास
(द) प्रशिक्षण तथा विकास।
उत्तर:
(द) प्रशिक्षण तथा विकास।
प्रश्न 10.
नियुक्तिकरण के प्रमुख पक्ष हैं-
(अ) भर्ती
(ब) चयन
(स) प्रशिक्षण
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
'ऑफ द जॉब' प्रशिक्षण विधियों में से 'चलचित्र' को समझाइये।
उत्तर:
इसमें चलचित्रों के माध्यम से सूचनाएँ देकर तथा सुस्पष्ट तरीकों से कौशलों को प्रदर्शित कर प्रशिक्षण दिया जाता है।
प्रश्न 2.
कर्मचारियों के चयन में 'व्यक्तित्व परीक्षाओं' का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व परीक्षाएँ, व्यक्ति के संवेगों, प्रतिक्रियाओं, परिपक्वता तथा उनके जीवन मूल्यों को जानने में संकेत देती हैं। ये पूरे व्यक्तित्व को परखने में सहायक होती हैं।
प्रश्न 3.
बाह्य भर्ती के कोई दो स्रोत लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
'चयन' की एक परिभाषा लिखिये।
उत्तर:
चयन एक ऐसी प्रक्रिया है जो भर्ती के समय बनाए गए संभावित पद-प्रत्याशिशें के निकाय में से कर्मचारियों को चुनती है।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध के कार्य के रूप में नियुक्तिकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण का कार्य कार्यबल के नियोजन से शुरू होता है तथा इसमें भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, पदोन्नति, क्षतिपूर्ति एवं कार्यबल निष्पादन मूल्यांकन (आकलन) सम्मिलित हैं।
प्रश्न 6.
भर्ती के आन्तरिक स्रोत की कोई एक सीमा बतलाइये।
उत्तर:
भर्ती के आन्तरिक स्रोत में नयी प्रतिभाओं के संस्था में प्रवेश के अवसर कम हो जाते हैं।
प्रश्न 7.
भर्ती के आन्तरिक स्रोत का कोई एक लाभ बतलाइये।
उत्तर:
कर्मचारियों को पदोन्नति के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। फलतः उनकी कार्य-सन्तुष्टि में वृद्धि होती है और उन्हें आसानी से अभिप्रेरित किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
भर्ती के बाह्य स्रोत का एक लाभ लिखिए।
उत्तर:
बाह्य स्रोत से भर्ती किये जाने की स्थिति में योग्य एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों को संस्था में अवसर प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 9.
प्रशिक्षण की उस विधि का नाम बताइये जिसमें प्रशिक्षणार्थी एक प्रमुख (मास्टर) कर्मचारी की देखरेख में कार्य सीखते हैं।
उत्तर:
प्रशिक्षणार्थी (Apprenticeship Training)।
प्रश्न 10.
प्रशिक्षण की उस विधि का नाम बताइये जिसमें प्रशिक्षणार्थी उन्हीं संयन्त्रों पर सीखते हैं, जिन्हें वे भविष्य में उपयोग में लायेंगे।
उत्तर:
प्रकोष्ठ प्रशिक्षण विधि (Vestibule Training Method)
प्रश्न 11.
मानव संसाधन प्रबंधन के कोई दो कर्तव्य लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 12.
रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती कैसे की जाती है?
उत्तर:
बेरोजगार व्यक्ति अपना सम्पूर्ण विवरण रोजगार कार्यालय में दर्ज करवाते हैं। जब व्यावसायिक संस्थाएँ रोजगार कार्यालय से सम्पर्क करती हैं, तब उपयुक्त उम्मीदवार भेज दिया जाता है।
प्रश्न 13.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के कौन-कौन से कदम हैं?
उत्तर:
प्रश्न 14.
नियुक्तिकरण में कार्य पर लगाने के अर्थ का वर्णन करें।
उत्तर:
नियुक्तिकरण में कार्य पर लगाने का अर्थ प्रबन्धक द्वारा कर्मचारियों की मानव शक्ति नियोजन, भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, पारिश्रमिक, पदोन्नति एवं अनुरक्षण कर सृजित पद को भरने से है।
प्रश्न 15.
नियुक्तिकरण की प्रमुख विशेषताओं को गिनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 16.
नियुक्ति के विभिन्न तत्त्वों को गिनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 17.
नियुक्तिकरण के प्रमुख पहलुओं को गिनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 18.
अनुस्थापन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अनुस्थापन से तात्पर्य कर्मचारी के पद-भार सम्भालने से है जिसके लिए उसका चयन हुआ है।
प्रश्न 19.
अभिविन्यास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अभिविन्यास एक ऐसी प्रक्रिया है जो कर्मचारियों को अन्य कर्मचारियों से मिलवाने का अवसर देती है तथा उन्हें संस्था के नियमों तथा नीतियों से अवगत कराती है।
प्रश्न 20.
क्रियात्मक रूप से मानव-शक्ति आवश्यकताओं को समझने के लिए किन महत्त्वपूर्ण तत्त्वों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
प्रश्न 21.
मानव संसाधन में कार्य-विश्लेषण की उपयोगिता बतलाइये।
उत्तर:
यह संस्था में विभिन्न कार्यों के निष्पादन तथा सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कितनी संख्या में तथा किस प्रकार के मानव संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी इत्यादि के निर्धारण को सम्भव बनाती है।
प्रश्न 22.
कार्य-शक्ति विश्लेषण क्या है?
उत्तर:
कार्य-शक्ति विश्लेषण से यह पता चलता है कि कितनी संख्या में और किस प्रकार के मानवसंसाधन उपलब्ध हैं।
प्रश्न 23.
भर्ती का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
भर्ती एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यक्तियों को संस्था में उपलब्ध पदों की जानकारी दी जाती है तथा उन्हें उन पदों के लिए आवेदन करने हेतु प्रेरित किया जाता है।
प्रश्न 24.
चयन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
चयन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत भर्ती किये गये प्रार्थियों से योग्य, कुशल एवं उपयोगी व्यक्तियों को चुना जाता है तथा अयोग्य एवं अकुशल प्रार्थियों को अस्वीकृत किया जाता है।
प्रश्न 25.
प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों के दृष्टिकोण, कौशल तथा उनकी योग्यताओं को बढ़ाया जाता है ताकि वे अपने कार्यों का बेहतर निष्पादन कर सकें।
प्रश्न 26.
पारिश्रमिक को समझाइये।
उत्तर:
पारिश्रमिक एक व्यापक शब्द है जिसमें कर्मचारियों की सेवाओं के बदले, नियोक्ता द्वारा दिया जाने वाला भुगतान, प्रलोभन एवं सुविधाएँ सम्मिलित हैं।
प्रश्न 27.
नियुक्ति की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 28.
नियुक्ति के महत्त्व के दो कारण लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 29.
संस्था में भर्ती की आवश्यकता के कोई दो कारण बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 30.
भर्ती के विभिन्न स्रोतों को कितने भागों में विभाजित किया जाता है ? नाम भी लिखिए।
उत्तर:
भर्ती के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जाता है-(1) भर्ती के आन्तरिक स्रोत, (2) भर्ती के बाह्य स्रोत।
प्रश्न 31.
भर्ती के कोई दो मुख्य आन्तरिक स्रोत लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 32.
स्थापना एजेंसी तथा प्रबंध परामर्शदाता के दो कार्य लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 33.
चयन की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 34.
चयन का उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
चयन का मुख्य उद्देश्य श्रेष्ठतम व्यक्तियों/ प्रत्याशियों का चयन करना है। .
प्रश्न 35.
पदोन्नति क्या है?
उत्तर:
इसमें कर्मचारियों को ऐसे पदों पर हस्तान्तरित किया जाता है जो अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण हों तथा कर्मचारियों की सुविधाएँ, पद-प्रतिष्ठा तथा वेतन बढ़ता है।
प्रश्न 36.
कर्मचारियों की भर्ती के आन्तरिक स्रोत के कोई दो दोष बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 37.
संस्था में बाह्य भर्ती के कोई चार स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बाह्य भर्ती के स्रोत-
प्रश्न 38.
भर्ती के बाह्य स्रोत के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 39.
भर्ती के बाह्य स्रोत के कोई दो दोष बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 40.
कर्मचारियों के चयन में 'बुद्धि परीक्षा' से आशय स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बुद्धि परीक्षा क्या है?
उत्तर:
यह एक ऐसी महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक परीक्षा है जिसके द्वारा व्यक्ति के सीखने की योग्यता, निर्णय लेने तथा परखने की योग्यता को मापा जाता है।
प्रश्न 41.
व्यक्तित्व परीक्षाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
ये परीक्षाएँ व्यक्ति के संवेगों, प्रतिक्रियाओं, परिपक्वता तथा उनके जीवन-मूल्यों को मापने का संकेत देती हैं।
प्रश्न 42.
प्रशिक्षण की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 43.
'शिक्षा' का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो बुद्धि को गुणवत्ता तथा चरित्र प्रदान करती है। मूलभूत सिद्धान्तों को समझाती है एवं विश्लेषण करने से कार्य करने की क्षमता का विकास करती है, संश्लेषण तथा विषयनिष्ठता प्रदान करती है।
प्रश्न 44.
'विकास' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
विकास का तात्पर्य सीखने के सुअवसरों का निर्माण करने से है। यह न केवल उन क्रियाओं को सम्मिलित करती है जो कार्य के निष्पादन में सुधार लाती हैं बल्कि उनको भी जो उनके व्यक्तित्व का विकास करें।
प्रश्न 45.
कार्य पर प्रशिक्षण विधि में सम्मिलित प्रशिक्षण की किन्हीं चार विधियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्रशिक्षण व विकास में कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर:
प्रशिक्षण व विकास में दो अन्तर निम्न प्रकार हैं-
(1) अर्थ-प्रशिक्षण का अर्थ कर्मचारियों को किसी विशेष कार्य में निपुण बनाना है, जबकि विकास का अर्थ कर्मचारियों को सभी कार्यों में निपुण बनाना है।
(2) आवश्यकता-प्रशिक्षण की आवश्यकता प्रायः श्रमिक वर्ग एवं पर्यवेक्षीय वर्ग के लिए अधिक होती है, जबकि विकास की आवश्यकता प्रबन्धकीय वर्ग के लिए अधिक होती है।।
प्रश्न 2.
एक प्रबन्धक के रूप में चयन प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण दो चरणों को बताइए।
उत्तर:
कर्मचारियों के चयन की प्रक्रिया के दो महत्त्वपूर्ण चरण निम्नलिखित हैं-
(1) प्रारम्भिक जाँच-आवेदन-पत्रों में दी गई सूचना के आधार पर अयोग्य अथवा अनुपयुक्त पद इच्छुकों की छंटनी में प्रारम्भिक जाँच, प्रबन्धक की सहायता करती है। प्रारम्भिक साक्षात्कार द्वारा उन आवेदन-पत्रों को अस्वीकार किया जा सकता है जिनमें पर्याप्त सूचनाएँ नहीं दी गई हों।
(2) चयन परीक्षाएँ-चयन के लिए रोजगार परीक्षाएँ एक ऐसा यन्त्र है जो व्यक्तियों की विशेषताओं को मापता है। ये विशेषताएँ शारीरिक निपुणता से लेकर बुद्धि या व्यक्तित्व सम्बन्धी हो सकती हैं। सामान्यतया कर्मचारियों के चयन के लिए बुद्धि-परीक्षा, कौशल परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा, व्यापार परीक्षा तथा अभिरुचि परीक्षा आयोजित की जाती हैं।
प्रश्न 3.
नियुक्तिकरण के पहलू को चार्ट द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
नियुक्तिकरण द्वारा संगठन को दिये जाने वाले दो लाभ बतलाइये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण द्वारा संगठन को प्राप्त लाभ-
1. योग्य कर्मचारियों की खोज में सहायता करना-नियुक्तिकरण से संगठन को एक लाभ यह होता है कि यह विभिन्न पदों के लिए योग्य कर्मचारियों को खोजने में सहायता करता है।
2. कार्य का बेहतर निष्पादन-नियुक्तिकरण से उपयुक्त व्यक्तियों को उपयुक्त पदों पर नियुक्त करने में सहायता मिलती है। फलतः संगठन में कार्य का बेहतर निष्पादन होता है।
प्रश्न 5.
नियुक्ति प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को एक चित्र की सहायता से बतलाइये।
उत्तर:
नियुक्ति प्रक्रिया के विभिन्न चरण
प्रश्न 6.
नियुक्तिकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियुक्तिकरण का अर्थ-नियुक्तिकरण का अर्थ लोगों को कार्यरत करना है। यह कार्य मानव संसाधन के नियोजन से प्रारम्भ होता है तथा इसमें अन्य कार्य, जैसे-भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, पदोन्नति, क्षतिपूर्ति एवं कार्यबल निष्पादन मूल्यांकन (आकलन) सम्मिलित हैं। अन्य शब्दों में, नियुक्तिकरण प्रबन्ध प्रक्रिया का वह भाग है जो सन्तुष्टि एवं सन्तुष्ट करने वाले कार्यबल के प्राप्तिकरण, उपयोग एवं रख-रखाव से सम्बन्धित है। वर्तमान में, नियुक्तिकरण के अन्तर्गत कर्मचारियों के संयोजन में दैनिक श्रमिक, सलाहकार एवं अनुबन्धित कर्मचारियों को सम्मिलित किया जा सकता है। नियुक्तिकरण किसी संगठन द्वारा नियुक्त किये गये प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से मान्यता प्रदान करता है, जो कि अन्ततः कार्य निष्पादित करता है। वस्तुतः व्यावसायिक संगठन में नियुक्तिकरण को भर्ती करने एवं कर्मचारियों की संख्या पूरी रखने से सम्बन्धित प्रबन्धकीय कार्य करने के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
नियुक्तिकरण से एक व्यावसायिक संस्था को प्राप्त होने वाले लाभों को संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण से एक व्यावसायिक संस्था को प्राप्त होने वाले लाभ-
प्रश्न 8.
नियुक्तिकरण की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण की प्रमुख विशेषताएँ-
प्रश्न 9.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया में 'अनुस्थापन तथा अभिविन्यास' को समझाइये।
अथवा
'अभिविन्यास' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अनुस्थापन-नियुक्तिकरण में अनुस्थापन से तात्पर्य कर्मचारी के पदभार संभालने से है जिसके लिए उसका चयन हुआ है। अर्थात् नये कर्मचारी का पदभार संभालना अनुस्थापन कहलाता है।
अभिविन्यास-अभिविन्यास में कर्मचारियों को कम्पनी के बारे में एक संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण दिया जाता है तथा उनके उच्चाधिकारियों, अधीनस्थ तथा सहकर्मियों से उनका परिचय करवाया जाता है। कर्मचारियों को कार्यस्थल पर ले जाया जाता है, फिर उन्हें जिस पद के लिए चयनित किया गया है, उसका कार्य-भार सम्भलवाया जाता है। संस्था से कर्मचारियों को पूर्ण रूप से परिचित करवाने की यह प्रक्रिया कर्मचारियों के कार्य-निष्पादन तथा निर्णय लेने की क्षमता पर अत्यधिक प्रभाव डालती है। इस प्रकार अभिविन्यास की प्रक्रिया कर्मचारियों से मिलवाने का अवसर प्रदान करती है तथा उन्हें संस्था के नियमों तथा नीतियों से अवगत कराती है।
प्रश्न 10.
निम्न बिन्दुओं के आधार पर नियुक्ति के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए-
(1) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग
(2) सही कार्य पर सही व्यक्ति की नियुक्ति।
उत्तर:
(1) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोगनियुक्ति का महत्त्व इसलिए होता है कि यह श्रेष्ठ, कुशल एवं योग्य व्यक्तियों के चयन में सहायता करती है। फलतः इससे संस्था में उपलब्ध संसाधनों का सही व अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है। अकुशल कर्मचारियों को प्रशिक्षण की सहायता से कुशल एवं दक्ष बना कर स्वयं संस्था, सम्पूर्ण समाज व देश को लाभान्वित किया जा सकता है।
(2) सही कार्य पर सही व्यक्ति की नियुक्तिनियुक्ति का महत्त्व इस रूप में भी है कि इसकी सहायता से सही कार्य पर सही व्यक्ति की नियुक्ति की जा सकती है। जब किसी भी व्यक्ति को उपयुक्त एवं रुचिकर तथा परिचित कार्य मिलता है तो वह अपनी क्षमताओं का समुचित उपयोग कर सकता है। इससे कर्मचारी संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में सक्रिय रूप से योगदान दे सकता है। चयन प्रक्रिया के दौरान विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा व्यक्ति की अभिरुचि का परीक्षण किया जाता है। इससे सही कार्य पर सही व्यक्ति की नियुक्ति करने में सहायता मिलती है।
प्रश्न 11.
प्रबन्धक के रूप में निम्न बिन्दुओं के आधार पर नियुक्ति के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये-
(1) सुदृढ़ श्रम-सम्बन्धों का निर्माण
(2) परिवर्तनों एवं नवकरणों की प्रेरणा।
उत्तर:
(1) सुदृढ़ श्रम-सम्बन्धों का निर्माणयोग्य कर्मचारियों की नियुक्ति से संस्था में सुदृढ़ श्रमसम्बन्धों का निर्माण होता है। योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति से उच्चस्तरीय योग्य कर्मचारी होने पर विवादों का शीघ्र हल निकल जाता है। इससे श्रमिकों व नियोक्ताओं के मध्य मधुर एवं सुदृढ़ श्रम सम्बन्ध बनते हैं।
(2) परिवर्तनों एवं नवकरणों की प्रेरणासंस्था में कुशल, योग्य एवं दक्ष कर्मचारियों की नियुक्ति होती है तो इससे परिवर्तनों एवं नवकरणों को अपनाने की प्रेरणा मिलती है। सामान्यतया कर्मचारी परिवर्तन व नवकरण का विरोध करते हैं किन्तु श्रेष्ठ एवं कुशल कर्मचारी नियुक्त होने से ये लोग संस्था में परिवर्तन लाने एवं नवकरणों में रुचि लेते हैं और संस्था के विकास एवं विस्तार में अधिक योगदान देते हैं।
प्रश्न 12.
एक व्यावसायिक संस्था में चयन की आवश्यकता बतलाइये।
उत्तर:
चयन की आवश्यकता-
प्रश्न 13.
'पारिश्रमिक' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
'पारिश्रमिक किसी भी मानव संसाधन विभाग के एक प्रभावी, समर्थ कार्य-शक्ति को नियुक्त करने, कार्य पर बनाये रखने एवं उसकी क्षमता को बनाये रखने में अहम भूमिका निभाता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'पारिश्रमिक' से अभिप्राय कर्मचारियों को उनके संगठन के लिए योगदान के बदले प्राप्ति से है। सामान्यतः कर्मचारी अपनी सेवाएँ वेतन, सुविधाएँ एवं प्रलोभन के बदले प्रदान करते हैं। वेतन (भुगतान) से अभिप्राय मूल मजदूरी एवं वेतन-भत्ते से है जो कर्मचारी को अवधि के आधार पर मिलते हैं। प्रलोभन में बोनस, कमीशन एवं लाभ में हिस्सेदारी की योजनाएँ सम्मिलित हैं। इन्हें इस प्रकार निर्धारित करने का प्रयास किया जाता है कि कर्मचारी अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हो सकें। कुछ सुविधाएँ जैसे बीमा, चिकित्सा, मनोरंजन अवकाश आदि परोक्ष रूप से पारिश्रमिक में आते हैं। इस प्रकार 'पारिश्रमिक' एक व्यापक शब्द है जिसमें कर्मचारियों को सेवाओं के बदले में नियोक्ता द्वारा दिया जाने वाला भुगतान (वेतन), प्रलोभन एवं सुविधाएँ सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त प्रबन्धकों को संस्था में कुछ कानूनी औपचारिकताएँ भी पूरी करनी होती हैं जो कर्मचारियों को भौतिक एवं वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं। ये सब पारिश्रमिक में सम्मिलित हैं।
प्रश्न 14.
नियुक्तिकरण के विभिन्न पहलुओं (तत्त्वों) को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण के विभिन्न पहलू (तत्त्व)
1. भर्ती-भर्ती नियुक्तिकरण का एक सकारात्मक चरण है जो रिक्त पदों के लिए बहुत सारे व्यक्तियों को आकर्षित करती है कि वे रिक्त पदों के लिए प्रत्याशियों के रूप में अधिक से अधिक आवेदन-पत्र दें। क्योंकि जितनी अधिक संख्या में व्यक्ति रिक्त पदों के लिए आवेदन-पत्र देते हैं, उतनी ही अधिक सम्भावना इस बात की बनी रहती है कि संस्था को योग्य एवं अनुभवी कर्मचारी मिल सकें।
2. चयन-चयन' एक नकारात्मक प्रक्रिया है। चयन प्रक्रिया का लक्ष्य उन सभी प्रत्याशियों में से जिन्होंने नौकरी के लिए आवेदन किया है, सबसे योग्य व्यक्तियों का चयन करना होता है। अतः इस प्रक्रिया में आवेदनकर्ताओं की छंटनी का कार्य किया जाता है।
3. प्रशिक्षण-प्रशिक्षण भी नियुक्तिकरण का एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्त्व है। यह कर्मचारियों के ज्ञान तथा कौशल को उन्नत करने से सम्बन्धित है, ताकि उनके कार्य-निष्पादन की योग्यता को बढ़ाया जा सकेगा तथा संस्था के अनुरूप कार्य करने के योग्य बनाया जा सके।
प्रश्न 15.
भर्ती के उद्देश्य एवं प्रक्रिया को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
भर्ती का उद्देश्य उन सम्भावित कर्मचारियों को संस्था में आवेदन करने के लिए आकर्षित करना है जिनके पास पर्याप्त योग्यताएँ हैं। इसका उद्देश्य संस्था में रिक्त पदों के लिए पर्याप्त संख्या में व्यक्तियों को खोजना है। भर्ती के अन्तर्गत रिक्त पदों के लिए उपलब्ध व्यक्तियों का पता लगाकर उन्हें आमन्त्रित करना है कि वे संगठन में कार्य के लिए अपने आवेदन-पत्र दें। भर्ती की प्रक्रिया, संगठन में रिक्त पदों के लिए उपयुक्त प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया के शुरू होने से पहले ही प्रारम्भ हो जाती है। भर्ती की प्रक्रिया में निम्नलिखित क्रियाएँ सम्मिलित हैं-
प्रश्न 16.
'स्थानान्तरण' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्थानान्तरण-स्थानान्तरण एक ऐसी क्रिया है जिसमें किसी एक कर्मचारी को एक कार्य से हटाकर दूसरे कार्य पर लगा दिया जाता है अथवा एक विभाग से दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है। स्थानान्तरण में कर्मचारियों के उत्तरदायित्व तथा पद-प्रतिष्ठा में बिना किसी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन के ऐसा किया जाता है। इसके द्वारा कर्मचारियों के कर्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों या कार्यस्थितियों इत्यादि में परिवर्तन आ सकता है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि वेतन में कोई बढ़ोतरी हो। व्यावहारिक रूप से यह कर्मचारियों का समतल पदपरिवर्तन है। स्थानान्तरण के द्वारा एक विभाग में उपयुक्त कर्मचारियों की कमी को दूसरे विभाग या शाखा से पूरा कर सकते हैं। इसके साथ ही स्थानान्तरण व्यक्तिगत समस्याओं तथा शिकायतों को दूर करने में तथा नौकरी से निकालने के जैसी स्थितियों से बचाव करने में भी मदद करता है। स्थानान्तरण का लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जबकि यह निश्चित कर लिया जाये कि जिस कर्मचारी का स्थानान्तरण दूसरे पद पर किया जा रहा है, वह उस कार्य निष्पादन के योग्य है। स्थानान्तरण का प्रयोग कर्मचारियों को विभिन्न कार्यों को सिखाने के लिए प्रशिक्षण के रूप में भी किया जा सकता है।
प्रश्न 17.
'पदोन्नति' को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
पदोन्नति-व्यावसायिक संस्थाओं में पदोन्नति को भर्ती के आन्तरिक स्रोत के रूप में काम में लिया जाता है। सामान्यतः संस्था में उच्च पदों को भरने के लिए निम्न स्तर के कर्मचारियों की उच्च पदों पर नियुक्ति करते हैं। यह पदोन्नति कहलाती है। पदोन्नति में कर्मचारियों को अपने पद से ऐसे पद पर हस्तान्तरित किया जाता है जो अधिक उत्तरदायित्वपूर्ण हो तथा कर्मचारियों की सुविधाएँ, पद-प्रतिष्ठा तथा वेतन बढ़ जाता है। पदोन्नति कर्मचारियों का ऊर्ध्वाधर स्थानान्तरण है। पदोन्नति की नीति को अपनाना कर्मचारियों की अभिप्रेरणा, निष्ठा तथा उनके सन्तोष को बढ़ाने में सहायक होती है। इसका कर्मचारियों पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ता है, क्योंकि उच्च स्तरों पर पदोन्नति के कारण संगठन में निचले स्तरों पर भी पदोन्नति की एक श्रृंखला बन जाती है।
प्रश्न 18.
'प्रत्यक्ष भर्ती' पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष भर्ती-प्रत्यक्ष भर्ती के अन्तर्गत संस्था के सूचनापट्ट पर एक अधिसूचना लगायी जाती है, जिसमें संस्था के रिक्त पदों का विवरण दिया जाता है। संस्था में कार्य पाने के इच्छुक, संस्था के बाहर एक सुनिश्चित तिथि पर एकत्रित होते हैं तथा उनके चयन की प्रक्रिया उसी स्थान पर की जाती है। भर्ती का यह स्रोत उन आकस्मिक पदों के लिए काम में लिया जाता है जहाँ अप्रशिक्षित अथवा अर्द्ध-कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। ऐसे कर्मचारी प्रायः 'आकस्मिक' अथवा 'बदली' कर्मचारियों के नाम से जाने जाते हैं तथा इन्हें पारिश्रमिक प्रतिदिन/दिहाड़ी मजदूरी के अनुसार दी जाती है। भर्ती का यह एक कम खर्चीला तरीका है क्योंकि इसमें भर्ती के लिए विज्ञापन पर कोई लागत नहीं आती है। आकस्मिक रिक्त पदों को भरने के लिए, जब कार्य का दबाव ज्यादा होता है अथवा जब स्थायी कर्मचारी अनुपस्थित या अवकाश पर हों, यह विधि अत्यन्त उपयुक्त है।
प्रश्न 19.
भर्ती के बाह्य स्रोत के प्रमुख लाभ बतलाइये।
अथवा
भर्ती के बाह्य स्रोतों के किन्हीं दो लाभों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती के बाह्य स्रोत के प्रमुख लाभ
प्रश्न 20.
प्रशिक्षण एवं विकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण-कोई भी ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा कर्मचारियों के कौशल, क्षमता तथा योग्यता को बढ़ाया जाता है जिससे वे अपने विशिष्ट कार्यों का बेहतर निष्पादन कर सकें। वस्तुतः यह नये कौशलों को सीखने की प्रक्रिया तथा अपने ज्ञान को प्रयोग में लाने की प्रक्रिया है। प्रशिक्षण कर्मचारियों के वर्तमान कार्यनिष्पादन में सुधार लाती है तथा उन्हें अन्य किसी भी नये कार्य के लिए तैयार करती है।
विकास-विकास से तात्पर्य सीखने के सुअवसरों के निर्माण से है जो कर्मचारियों के विकास में सहयोग देती है। विकास में न केवल उन क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जो कार्य के निष्पादन में सुधार लाती हैं वरन् उन क्रियाओं को भी सम्मिलित किया जाता है जो उनके व्यक्तित्व का विकास करें, परिपक्वता तथा अपने सम्भावित कौशलों के अर्जन में भी सहायता करें । विकास के फलस्वरूप न केवल अच्छे कर्मचारी बनते हैं वरन् बेहतर पुरुष एवं महिला भी बनते हैं।
प्रश्न 21.
"प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास की प्रक्रिया है।" समझाइये।
उत्तर:
प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास की प्रक्रिया है किसी भी कार्य को करने के लिए विशिष्ट ज्ञान एवं कौशल की आवश्यकता होती है। सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति में जितनी क्षमता एवं योग्यता होती है, उनका पूर्ण उपयोग नहीं किया जाता है, किन्तु समुचित प्रशिक्षण कार्यक्रम के द्वारा कर्मचारियों की योग्यताओं एवं क्षमताओं का पूर्ण विकास करके उनका सदुपयोग किया जा सकता है। इतना ही नहीं, प्रशिक्षण के द्वारा कर्मचारियों को कार्य-विधियों, प्रणालियों, तकनीकों, प्रबन्धकीय ज्ञान आदि में होने वाले परिवर्तनों की शिक्षा एवं जानकारी प्रदान की जाती है। अतः प्रशिक्षण संस्था में नये एवं पुराने सभी कर्मचारियों के लिए आवश्यक होता है। प्रशिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों के ज्ञान, चातुर्य एवं कौशल आदि को विकसित करने का प्रयास किया जाता है। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास की प्रक्रिया है।
प्रश्न 22.
'विकास' की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
विकास की विशेषताएँ
प्रश्न 23.
एक उपक्रम में कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों के लिए प्रशिक्षण एवं विकास क्यों आवश्यक है ? किन्हीं चार कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 24.
आपके दृष्टिकोण से प्रशिक्षण एवं विकास से संगठन को होने वाले चार लाभ कौन से हैं ?
उत्तर:
प्रशिक्षण एवं विकास से संगठन को होने वाले लाभ
1. पैसा तथा प्रयास का नुकसान नहीं-प्रशिक्षण एक व्यवस्थित अभिगम्म अर्थात् सीखने की प्रक्रिया है, जो बार-बार गलती करके सीखने वाली विधियों से हमेशा बेहतर है, जिसके कारण पैसा तथा प्रयास का नुकसान नहीं होता है।
2. लाभ में वृद्धि-प्रशिक्षण एवं विकास कर्मचारियों की उत्पादकता को बढ़ाता है। यह उत्पादन की मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता को बढ़ाता है, परिणामस्वरूप संस्था अधिक माल बेचने में सक्षम रहती है, जिससे उसके लाभों में वृद्धि होती है।
3. भावी प्रबन्धकों को तैयार करना-प्रशिक्षण एवं विकास का एक लाभ यह होता है कि यह भविष्य के प्रबन्धकों को तैयार करने का कार्य करता है। ये प्रबन्धक संगठन में अचानक आने वाले संकट के समय स्थिति को सम्भालने में सक्षम रहते हैं।
4. मनोबल में वृद्धि तथा अनुपस्थिति दर में कमी-प्रशिक्षण एवं विकास कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाता है तथा अनुपस्थिति को कम करता है। कर्मचारियों के संस्था छोड़कर जाने की दर में भी कमी करता है, क्योंकि प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति कुशल एवं दक्ष होते हैं तथा उन्हें पदोन्नति के अधिक अच्छे अवसर प्राप्त होते हैं। फलतः वे अपने कार्य पर सदैव सन्तुष्ट रहते हैं।
प्रश्न 25.
भर्ती के आन्तरिक स्रोतों से रिक्त पदों की पूर्ति करने पर इसके होने वाले कोई चार लाभ लिखिए।
अथवा
आप एक संगठन में भर्ती कार्य करने जा रहे हैं, भर्ती के आन्तरिक स्रोतों का उपयोग करने से आपको क्या-क्या लाभ होंगे? लिखिये। (कोई चार)
उत्तर:
भर्ती के आन्तरिक स्रोत से प्राप्त होने वाले लाभ-
1. चयन प्रक्रिया तथा अनुस्थापन को सरल बनाना-आन्तरिक भर्ती के स्रोतों को अपनाये जाने से चयन प्रक्रिया तथा अनुस्थापन का कार्य सरल हो जाता है। जो कर्मचारी पहले से ही संस्था में कार्य कर रहे हैं उनका मूल्यांकन अधिक यथार्थ रूप में किया जा सकता है। यह भर्ती का अधिक विश्वसनीय तरीका भी है क्योंकि संस्था कर्मचारियों को पहले से ही जानती है।
2. कर्मचारियों का अपने कार्य-निष्पादन के सुधार के लिए अभिप्रेरित होना-कर्मचारी अपने कार्य-निष्पादन के सुधार के लिए अभिप्रेरित होते हैं। उच्च स्तर पर पदोन्नति द्वारा ही रिक्त स्थानों को भरा जाता है। यह कर्मचारियों को अभ्यास तथा सीखने के द्वारा उनके निष्पादन के स्तर को सुधारने के लिए प्रेरित करती है। इसमें कर्मचारी प्रतिबद्धता के साथ तथा निष्ठा से कार्य करते हैं और अपने कार्य से सन्तुष्ट रहते हैं। पदोन्नति के अधिक अवसर कर्मचारियों को प्राप्त होने से संगठन में भी शान्ति का वातावरण बना रहता है। आपस में कोई मनमुटाव की स्थिति नहीं रहती है।
3. प्रशिक्षण पर कम खर्चा-स्थानान्तरण जो आन्तरिक भर्ती का एक प्रमुख स्रोत है, कर्मचारियों के उच्च पदों के लिए प्रशिक्षित करने के लिए एक उपकरण है। इसके साथ ही जिन व्यक्तियों की भर्ती संस्था में कार्यरत कर्मचारियों में से की जाती है उन्हें प्रवेश स्तरीय प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार भर्ती के आन्तरिक स्रोत में प्रशिक्षण पर अधिक खर्चा नहीं करना पड़ता है।
4. अतिरिक्त विभागों से कार्य-शक्ति का स्थानान्तरण भर्ती के आन्तरिक स्रोत अर्थात् स्थानान्तरण का प्रयोग किये जाने का एक लाभ यह होता है कि संस्था के अतिरिक्त विभागों से कार्य-शक्ति का वहाँ स्थानान्तरण किया जा सकता है, जहाँ कर्मचारियों की कमी है।
प्रश्न 26.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को स्पष्ट कीजिये।
अथवा
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों को संक्षेप में समझाइये।
अथवा
नियुक्तियों की प्रक्रिया के चरणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के विभिन्न चरण-
1. मानव-शक्ति आवश्यकताओं का आकलन- नियुक्तिकरण प्रक्रिया के प्रथम चरण में संस्था में मानव_शक्ति की आवश्यकताओं का आकलन किया जाता है। क्योंकि संस्था में प्रत्येक कार्य-पद के लिए कर्मचारी की नियुक्ति की आवश्यकता पड़ती है। यहाँ केवल यही जानना नहीं है कि कितने व्यक्तियों की आवश्यकता है, बल्कि यह भी जानना है कि किस प्रकार के कर्मचारियों की आवश्यकता है। मानव-शक्ति की आवश्यकताओं को समझने के लिए कार्यभार विश्लेषण तथा कार्य-शक्ति का विश्लेषण किया जा सकता है।
2. भर्ती-नियुक्तिकरण प्रक्रिया के इस चरण में सम्भावित प्रत्याशियों को खोजना तथा वे स्रोत जहाँ से सम्भावित प्रत्याशी लिये जा सकते हैं, पता लगाना सम्मिलित है। भर्ती के लिए आन्तरिक स्रोतों का प्रयोग एक सीमित रूप में किया जा सकता है। नये प्रतिभावान व्यक्तियों के लिए तथा विस्तृत विकल्प के लिए बाह्य स्रोतों का प्रयोग किया जाता है।
3. चयन-चयन प्रक्रिया में प्रत्याशियों से आवेदनपत्र आमन्त्रित किये जाते हैं, उनका साक्षात्कार किया जाता है, रोजगार एवं चातुर्य परीक्षण आदि आयोजित किये जाते हैं एवं सन्दर्भो आदि की जाँच की जाती है।
4. अनुस्थापन तथा अभिविन्यास-इस चरण में चयनित प्रत्याशियों को कार्य-स्थल पर ले जाया जाता है। फिर उन्हें जिस पद के लिए चुना गया है, उसका कार्यभार सौंपा जाता है। अभिविन्यास की प्रक्रिया कर्मचारियों को अन्य कर्मचारियों से मिलवाने का अवसर देती है तथा उन्हें संस्था के नियमों तथा नीतियों से अवगत कराती है। अनुस्थापन से तात्पर्य कर्मचारी के पद-भार सम्भालने से है जिसके लिए उसका चयन हुआ है।
5. प्रशिक्षण तथा विकास-इस चरण में कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इससे न केवल संस्थान लाभान्वित होता है वरन् कर्मचारी का मनोबल भी बढ़ता है व कार्यक्षमता भी बढ़ती है। वे उपयुक्त ढंग से कार्य का निष्पादन करते हैं। इस प्रकार प्रशिक्षण एवं विकास संगठन की कार्यकुशलता तथा उसे प्रभावपूर्ण बनाने में योगदान देते हैं।
6. निष्पादन मूल्यांकन-निष्पादन मूल्यांकन का उद्देश्य यह निर्धारित करता है कि कर्मचारी अपने पदों की माँगों की पूर्ति करने में कितना सफल है। सुधार के लिए पुनर्निवेशन का होना आवश्यक है। इन मूल्यांकनों का उपयोग प्रशिक्षण, पदोन्नति एवं पारिश्रमिक से सम्बन्धित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
7. पदोन्नति एवं भविष्य नियोजन-नियुक्तिकरण की प्रक्रिया के इस चरण में व्यक्तियों की पदोन्नति, स्थानान्तरण एवं अवनति से जुड़ी क्रियाएँ सम्मिलित हैं।
8. पारिश्रमिक-संस्था में मजदूरी अथवा वेतन ढाँचा ऐसा होना चाहिए कि वह उचित हो एवं कर्मचारियों को आकर्षित कर सके। पारिश्रमिक एक ऐसा शब्द है जिसमें कर्मचारियों की सेवाओं के बदले, नियोक्ता द्वारा दिया जाने वाला भुगतान, प्रलोभन एवं सुविधाएँ सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त प्रबन्धकों को कुछ कानूनी औपचारिकताएँ भी पूरी करनी पड़ती हैं जो कर्मचारियों को भौतिक एवं वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं।
प्रश्न 27.
प्रशिक्षण एवं विकास की आवश्यकताओं से सम्बन्धित किन्हीं चार बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रशिक्षण एवं विकास की आवश्यकताप्रशिक्षण एवं विकास की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-
1. आधुनिक तकनीकों का उपयोग-प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रमों से कर्मचारियों को नई-नई तकनीकों एवं प्रौद्योगिकी से परिचित कराया जाता है। फलतः कर्मचारी आधुनिक तकनीकों एवं प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सक्षम होते हैं। इससे न केवल उन्हें वरन् संस्था को भी फायदा होता है।
2. जीवन वृत्ति को बेहतर बनाना-प्रशिक्षण एवं विकास के कारण कर्मचारियों के कौशल एवं ज्ञान में वृद्धि होती है। इससे वे अपनी जीवन वृत्ति को बेहतर बना सकते हैं।
3. संस्था में स्थायित्व-प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रमों के द्वारा कर्मचारी अधिक कुशल एवं दक्ष बनते हैं। वे संस्था में सन्तुष्ट रहते हैं और संस्था में स्थायित्व लाने में सहायक होते हैं।
4. उच्च मनोबल-प्रशिक्षण एवं विकास कर्मचारियों के मनोबल को उच्च बनाये रखने में सहायक होता है। इसकी सहायता से कर्मचारी कार्य का बेहतर निष्पादन करने में सक्षम होते हैं। कर्मचारी अधिक अर्जित करने में सफल होते हैं। फलतः उनका मनोबल ऊँचा रहता है और वे संस्था में पूर्ण निष्ठा से कार्य करते हैं।
प्रश्न 28.
"भर्ती के आन्तरिक स्रोत, बाह्य स्रोतों की अपेक्षाकृत अधिक अच्छे होते हैं।" इस कथन के समर्थन में कोई पाँच कारण समझाइये।
उत्तर:
“भर्ती के आन्तरिक स्रोत, बाह्य स्रोतों की अपेक्षा अधिक अच्छे होते हैं।" इस कथन के समर्थन में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं-
[नोट-उपर्युक्त प्रथम चार बिन्दुओं के सम्बन्ध में पूर्व प्रश्न संख्या 25 के उत्तर में पढ़ें।]
प्रश्न 29.
संगठन में नियुक्तिकरण की आवश्यकता क्यों होती है ? किन्हीं चार कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
संगठन में नियुक्तिकरण की आवश्यकता-संगठन में नियुक्तिकरण की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-
1. योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों की खोज में सहायक-नियुक्तिकरण के अन्तर्गत कर्मचारियों की भर्ती, चयन आदि के लिए इनकी आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार से यह योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को खोजने में सहायक होता है।
2. कार्य का बेहतर निष्पादन सम्भवनियुक्तिकरण की सहायता से उपयुक्त व्यक्तियों को उपयुक्त पदों पर नियुक्त किये जाने के प्रयास किये जाते हैं। इससे कार्य का बेहतर निष्पादन सम्भव होता है।
3. कर्मचारियों के विकास में सहायकनियुक्तिकरण के अन्तर्गत किये जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य प्रशिक्षण देने का है। सभी कर्मचारियों को सही जगह नियुक्त कर व समय-समय पर पर्याप्त प्रशिक्षण देकर उनका विकास किया जाता है। फलतः संस्था में कम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना सम्भव होता है। इससे कर्मचारियों के विकास में सहायता मिलती है।
4. मानव संसाधन का सर्वोत्तम उपयोगनियुक्तिकरण मानव संसाधन को सर्वोत्तम उपयोग के लिए आश्वस्त करता है। आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों को रखने से बचाव कर कर्मचारियों के कम उपयोग तथा उच्च श्रम लागत को रोकने में सहायक होता है।
प्रश्न 30.
भर्ती के बाह्य स्रोतों को बताइये।
उत्तर:
भर्ती के बाह्य स्रोत-सामान्यतः भर्ती के लिए जिन बाह्य स्रोतों का प्रयोग किया जाता है, वे निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 31.
चयन (Selection) से क्या आशय है?
उत्तर:
चयन का अर्थ-चयन, बड़ी संख्या में रिक्त पद के सम्भावित उम्मीदवारों में से सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति को पहचानने तथा खोजने की प्रक्रिया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, प्रत्याशियों को बड़ी संख्या क्रम में रोजगार परीक्षा तथा साक्षात्कार देने पड़ते हैं। प्रत्येक चरण में बहुत से प्रत्याशियों को निकाल दिया जाता है तथा कुछ ही अगली परीक्षा चरण में जाते हैं जब तक कि सही प्रकार के व्यक्ति नहीं मिल जाते हैं। वस्तुत: चयन की प्रक्रिया प्राप्त आवेदन-पत्रों की छंटनी/जाँच से प्रारम्भ हो जाती है। यह प्रक्रिया नियुक्ति पत्र मिलने, स्वीकार करने तथा उम्मीदवार के संस्था में प्रवेश के बाद तक भी जारी रह सकती है। चयन प्रक्रिया में किसी भी प्रबन्धन निर्णय के समान ही उम्मीदवार के सम्भावित निष्पादन की परख भी सम्मिलित है। अन्तिम रूप में चयन प्रक्रिया की उपयोगिता की परीक्षा चयनित व्यक्ति के कार्य-स्थल पर उसके सफल निष्पादन से होती है।
निष्कर्ष-चयन एक ऐसी विभेदात्मक क्रिया है जिसके अन्तर्गत उपयुक्त प्रार्थियों को रोजगार की उपलब्धि करायी जाती है एवं अनुपयुक्त प्रार्थियों को रोजगार देने से मना किया जाता है।
प्रश्न 32.
भर्ती के आन्तरिक एवं बाह्य स्रोतों की तुलना कीजिये।
उत्तर:
भर्ती के आन्तरिक एवं बाह्य स्रोतों की तुलना-
1. अर्थ-जब संस्था/संगठन के अन्दर से कर्मचारियों की भर्ती की जाती है तो वह भर्ती का आन्तरिक स्रोत कहलाता है, जबकि संस्था के बाहर से कर्मचारियों की भर्ती किये जाने को भर्ती का बाह्य स्रोत कहते हैं।
2. प्रकृति-भर्ती का आन्तरिक स्रोत संस्था के विद्यमान कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने वाला होता है, जबकि भर्ती का बाह्य स्रोत बाहरी व्यक्तियों को अभिप्रेरित करने वाला होता है।
3. गुणवत्ता-भर्ती के आन्तरिक स्रोत के उपयोग किये जाने से श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कर्मचारियों की प्राप्ति नहीं हो पाती, क्योंकि इसमें सीमित चुनाव होता है, जबकि भर्ती के बाह्य स्रोत में श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कर्मचारियों की प्राप्ति की सर्वाधिक सम्भावना बनी रहती है क्योंकि इसमें विस्तृत चुनाव होता है।
4. आधार-भर्ती के आन्तरिक स्रोत में भर्ती का आधार सामान्य कर्मचारियों की वरिष्ठता पर आधारित है, जबकि भर्ती के बाह्य स्रोत में भर्ती व्यक्तियों की योग्यताओं पर निर्भर करती है।
5. भर्ती का स्तर-आन्तरिक भर्ती स्रोत में योग्य कर्मचारियों की भर्ती करना आवश्यक नहीं है, जबकि बाह्य भर्ती स्रोत में चयन का क्षेत्र व्यापक होने से योग्य कर्मचारियों की प्राप्ति की अधिक सम्भावना रहती है।
प्रश्न 33.
चयन एवं भर्ती में अन्तर के किन्हीं तीन बिन्दुओं को दीजिये।
अथवा
चयन एवं भर्ती में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
चयन एवं भर्ती में अन्तर-
1. अर्थ-चयन का अर्थ उन प्रत्याशियों में से श्रेष्ठतम प्रत्याशियों के चयन से है जिन्होंने संस्था में नौकरी के लिए आवेदन किया है, जबकि भर्ती का अर्थ भावी कर्मचारियों की खोज करने एवं उन्हें संस्था में आवेदन करने के लिए प्रेरित करने से है।
2. प्रकृति-चयन एक नकारात्मक प्रक्रिया है, जबकि भर्ती एक सकारात्मक प्रक्रिया है। क्योंकि चयन में चुने जाने वाले उम्मीदवारों के बजाय अधिक उम्मीदवार निरस्त किये जाते हैं, जबकि भर्ती में अधिक से अधिक उम्मीदवारों को कार्य के आवेदन के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
3. चयन एवं भर्ती का कार्य-कर्मचारियों के चयन का कार्य कर्मचारियों की भर्ती के बाद किया जाता है, जबकि भर्ती का कार्य कर्मचारियों की नियुक्ति से पहले किया जाता है।
4. क्षेत्र-चयन के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र को छाँटना तथा उन्हें अपनी आवश्यकतानुसार छाँटना सम्मिलित है, जबकि भर्ती के अन्तर्गत कर्मचारियों की आवश्यकता का निर्धारण, आवेदन-पत्र प्राप्त करना, साक्षात्कार के लिए बुलाना तथा चयन करना सम्मिलित है।
5. कार्य-चयन में नौकरी के उम्मीदवारों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है, एक वे जिन्हें नौकरी दी जाती है, दूसरे वे जिन्हें नौकरी नहीं दी जाती है; जबकि कर्मचारियों की भर्ती में भविष्य के लिए कर्मचारियों की खोज की जाती है तथा उन्हें रिक्त पदों के लिए आवेदन करने के लिए अभिप्रेरित किया जाता है।
प्रश्न 34.
नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक अंग है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध के एक अंग के रूप में नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक व्यापक कार्य माना जाता है। यह प्रबन्ध का एक अभिन्न अंग माना जाता है। नियुक्तिकरण का कार्य संगठन से निकट रूप से सम्बन्धित है क्योंकि जब संगठनिक ढाँचे तथा पदों का निर्धारण हो जाता है, तब इन पदों पर कार्य करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। इसके पश्चात् संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इन्हें पदोन्नति, शिक्षण तथा अभिप्रेरित करने की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार संगठन के मानव संसाधनों का प्रबन्धन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि किसी भी संस्थान की सफलता इस पर निर्भर करती है, कि कार्यों का निष्पादन कितनी कुशलता से किया जाता है। संगठन अपने उद्देश्यों की पूर्ति में कितना सफल है, इसका निर्धारण बहुत कुछ मानव संसाधनों की योग्यता, अभिप्रेरणा तथा उनके निष्पादन के आधार पर होता है।
जब तक प्रबन्धक नियुक्तिकरण का कार्य करता है तो उसकी भूमिका कुछ सीमित रहती है। उनमें से कुछ उत्तरदायित्व इस प्रकार हैं-उचित पदों पर उपयुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति, नये कर्मचारियों का संस्था में प्रवेश, प्रशिक्षण द्वारा निष्पादन में सुधार, उनकी योग्यताओं का विकास, उनका मनोबल बनाये रखना तथा उनके शारीरिक स्वास्थ्य तथा भौतिक सुविधाओं की सुरक्षा/प्रबन्धकों के कार्य, कर्मचारियों के वेतन, कल्याण तथा उनकी कार्य-स्थितियों से भी सम्बन्धित है, का निर्वाह करना पड़ता है। जैसे-जैसे संगठन का आकार बड़ा होता जाता है कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि होती है। एक अलग मानव संसाधन विभाग की स्थापना की जाती है जिसमें मानवीय प्रबन्ध के विशेषज्ञ होते हैं। ये सभी यह दर्शाते हैं कि मानव संसाधन प्रबन्ध एक अत्यन्त विस्तृत अवधारणा है।
प्रश्न 35.
भर्ती के आन्तरिक स्रोतों की क्यों आलोचनाएँ की जाती हैं ?
उत्तर:
भर्ती के आन्तरिक स्रोतों की आलोचनाएँ-भर्ती के आन्तरिक स्रोतों की निम्न आधारों पर आलोचनाएँ की जाती हैं-
प्रश्न 36.
उन महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन के लिये किया जाता है।
उत्तर:
महत्त्वपूर्ण परीक्षाएँ जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन के लिए किया जाता है-
1. बुद्धि परीक्षाएँ-बुद्धि परीक्षाएँ वे परीक्षाएँ होती हैं जिनका उपयोग व्यक्ति के बुद्धि-कोष स्तर को मापने के लिए किया जाता है। यह व्यक्ति के सीखने की योग्यता का अथवा निर्णय लेने व परखने की योग्यता को मापने का सूचक/संकेतक है।
2. कौशल परीक्षा-कौशल परीक्षा व्यक्ति के नये कौशल को सीखने की सम्भावित कुशलता को मापती है। यह परीक्षा व्यक्ति के विकास करने की क्षमता का विकास करती है। ऐसी परीक्षाएँ व्यक्ति के भविष्य में, सफलता के स्तर को जाँचने का एक अच्छा संकेतक है।
3. व्यक्तित्व परीक्षाएँ-ये परीक्षाएँ व्यक्ति के संवेगों, प्रतिक्रियाओं, परिपक्वता तथा उनके जीवन-मूल्यों को जानने में संकेत देती हैं। ये परीक्षाएँ व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को परखने में सहायता करती हैं। इसलिए इनका निर्माण तथा क्रियान्वयन दोनों ही कठिन हैं।
4. व्यापार परीक्षा-ये परीक्षाएँ व्यक्ति के उपलब्ध कौशलों को मापती हैं। ये ज्ञान के स्तर तथा उनके क्षेत्र की व्यावसायिक तथा तकनीकी प्रशिक्षण की कुशलता को मापती हैं।
5. अभिरुचि परीक्षा-प्रत्येक व्यक्ति का किसी खास कार्य के प्रति आकर्षण होता है। अभिरुचि परीक्षाओं का प्रयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि उसकी रुचि किस प्रकार की है अथवा उसका रुझान किस प्रकार के कार्य की ओर है।
प्रश्न 37.
प्रशिक्षण की आवश्यकता बतलाइये।
उत्तर:
प्रशिक्षण की आवश्यकता-किसी भी संस्था में प्रशिक्षण की आवश्यकता निम्न कारणों से होती है-
1. सीखने के समय में कमी-यदि प्रशिक्षक योग्यता प्राप्त हो एवं कुशल नियन्त्रक हो तो उसके द्वारा दिये जाने वाले प्रशिक्षण में प्रशिक्षणार्थियों को सीखने में बहुत कम समय लगता है।
2. निष्पादन में सुधार-प्रशिक्षण न केवल नये कर्मचारियों के लिए होता है वरन् यह पुराने कर्मचारियों के लिए भी होता है। इससे कर्मचारियों के अपने वर्तमान कार्य के निष्पादन स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता मिलती है।
3. मानवीय आवश्यकताओं का प्रबन्धन-यदि किसी कम्पनी को कुशल एवं दक्ष कर्मचारियों की आवश्यकता है तो प्रशिक्षण के माध्यम से संस्था में आवश्यकतानुसार तैयार किये जा सकते हैं।
4. दृष्टिकोण एवं सोच में परिवर्तन लानासंस्था में प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संचालित करने का एक उददेश्य संस्था के कर्मचारियों के दृष्टिकोण एवं सोच में बदलाव लाना भी है। प्रशिक्षण कर्मचारियों को अधिक सहयोग एवं वफादारी प्रदान करने के लिए तैयार करता
5. कार्य सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में सहायता करना-पर्यवेक्षण से जुड़े अथवा प्रति घण्टे की दर से पारिश्रमिक पाने वाले कर्मचारी दोनों को ही प्रशिक्षण देने से आवर्त, अनुपस्थिति, दुर्घटनाओं एवं शिकायतों में कमी आती है। श्रम-प्रबन्ध, नेतृत्व, मानवीय सम्बन्ध एवं प्रशासन के क्षेत्र में पर्यवेक्षकों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण अधिकारी-अधीनस्थों के बीच सम्बन्धों में सुधार ला सकता है। साथ ही प्रशिक्षण घटता मनोबल, निराशाजनक ग्राहक सेवा, अत्यधिक क्षय एवं निराशाजनक कार्यप्रणालियाँ आदि समस्याओं से छुटकारा दिलाने में सहायता करता है।
6. कर्मचारियों को लाभ-प्रशिक्षण की सहायता से कर्मचारी नूतन ज्ञान एवं कार्य में निपुणता व दक्षता प्राप्त करते हैं। इससे उनकी बाजार में कीमत एवं धनोपार्जन शक्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 38.
एक प्रबन्धक के रूप में आप एक व्यवसाय में प्रशिक्षण, विकास एवं शिक्षा की आवश्यकता क्यों महसूस करेंगे? समझाइये।
उत्तर:
एक व्यवसाय में प्रशिक्षण, विकास तथा शिक्षा का बहुत महत्त्व होता है। एक प्रबन्धक के रूप में व्यवसाय में हम निम्न कारणों से इसकी बहुत आवश्यकता महसूस करेंगे-
प्रशिक्षण-व्यवसाय में प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों के दृष्टिकोण, कौशल, क्षमता तथा योग्यता को बढ़ाया जाता है जिससे वे अपने विशिष्ट कार्यों का बेहतर निष्पादन कर सकते हैं। प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों के कौशल का विकास होता है और उनकी उत्पादकता-मात्रा तथा गुणवत्ता दोनों प्रकार की-में वृद्धि होती है। प्रशिक्षण कर्मचारियों के वर्तमान कार्य निष्पादन में सुधार लाता है तथा उन्हें अन्य किसी भी नये कार्य के लिए तैयार करता है।
विकास-विकास भी सीखने तथा विकास की प्रक्रिया है। यह कर्मचारियों के विकास में सहयोग देती है। विकास से कर्मचारियों के न केवल कार्य-निष्पादन में सुधार आता है बल्कि उनके व्यक्तित्व का भी विकास होता है। विकास की प्रक्रिया से कर्मचारियों का पूर्णरूपेण विकास होता है। वे न केवल अच्छे कर्मचारी बनते हैं बल्कि बेहतर पुरुष तथा महिला भी बनते हैं।
शिक्षा-शिक्षा कर्मचारियों के ज्ञान तथा बोध को बढ़ाती है। शिक्षा कर्मचारियों में ऐसी तार्किक तथा विवेकपूर्ण बुद्धि का विकास करती है जिससे वे प्रासंगिक परिवर्तनशील/चरों के मध्य सम्बन्ध निर्धारित कर सकें तथा उसके द्वारा किसी भी तथ्य को समझ सकें। शिक्षा व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करती है। यह बुद्धि को गुणवत्ता तथा चरित्र प्रदान करती है, शिक्षा मूलभूत सिद्धान्तों को समझाती है तथा व्यक्ति में विश्लेषण करने की क्षमता का विकास करती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रशिक्षण, विकास एवं शिक्षा से कर्मचारियों का न केवल कौशल का विकास होता है अपितु उनके व्यक्तित्व का भी सर्वांगीण विकास होता है। अतः व्यवसाय में इनकी अत्यधिक आवश्यकता होती है।
प्रश्न 39.
भर्ती के महत्त्वपूर्ण स्रोतों को संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
भर्ती के महत्त्वपूर्ण स्रोत-भर्ती के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं जिनका उपयोग करके भर्ती के कार्य को सम्पन्न किया जाता है-
1. आन्तरिक स्त्रोत-भर्ती के दो महत्त्वपूर्ण आन्तरिक स्रोत निम्नलिखित हैं-
2. बाह्य स्रोत-बाह्य भर्ती स्रोत भर्ती के लिए एक विस्तृत विकल्प प्रदान करती है तथा संस्था में नये-नये लोगों का प्रवेश करती है। सामान्यतः भर्ती के जिन बाह्य स्रोतों का प्रयोग किया जाता है वे इस प्रकार हैं-
प्रश्न 40.
'प्रशिक्षण' को परिभाषित कीजिए। यह 'शिक्षा' से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रशिक्षण का अर्थ-प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों के कौशल, क्षमता तथा योग्यता को बढ़ाया जाता है जिससे वे अपने विशिष्ट कार्यों का बेहतर ढंग से निष्पादन कर सकें। वस्तुतः यह नये कौशल को सीखने की प्रक्रिया तथा अपने ज्ञान को प्रयोग में लाने की प्रक्रिया है। यह कर्मचारियों के वर्तमान कार्यनिष्पादन में सुधार लाती है तथा उन्हें अन्य किसी भी नये कार्य के लिए तैयार किया जाता है।
प्रशिक्षण तथा शिक्षा में अन्तर-
प्रश्न 41.
आजकल के वातावरण में नियुक्तिकरण क्रिया का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
नियुक्तिकरण की क्रिया का महत्त्व-किसी भी संस्था में कार्य-निष्पादन के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। प्रबन्ध की नियुक्तिकरण प्रक्रिया कर्मचारियों की आवश्यकताओं को पूरा करती है। यह सही पदों के लिए सही व्यक्तियों का प्रबन्ध करती है। संगठन संरचना में नियुक्तिकरण ही रिक्त पदों की पूर्ति करता है। कर्मचारियों का चयन करते समय नियुक्तिकरण मानवीय तत्त्वों तथा उनकी मूल प्रकृति को सहजता प्रदान करता है। यह संगठन अभिवृत्ति, योग्यता, वचनबद्धता, निष्ठा जैसे महत्त्वपूर्ण गुणों को ध्यान में रखती है। आज के तकनीकी विकास के समय में संगठन के बढ़ते आकार तथा व्यक्तियों के व्यवहार की जटिलता को देखते हुए नियुक्तिकरण प्रक्रिया का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। मानव संसाधन किसी भी संगठन की एक अमूल्य निधि है। किसी भी संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति उसके मानवीय संसाधनों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इसलिए नियुक्तिकरण एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकीय प्रक्रिया है। वैसे भी एक संस्था तभी सफल हो सकती है जबकि वह अपने सांगठनिक संरचना में विभिन्न पदों पर सही कर्मचारियों की नियुक्ति कर पाने में समर्थ हो।
नियुक्तिकरण विभिन्न पदों के लिए योग्य कर्मचारियों को खोजने में सहायता करता है। उपयुक्त व्यक्तियों को उपयुक्त पदों पर नियुक्त करता है। यह मानव संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग के लिए आश्वस्त करता है। नियुक्तिकरण उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन तथा कर्मचारियों के योगदान का न्यायोचित प्रतिफल के द्वारा - कार्य-सन्तुष्टि में सुधार करता है तथा कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्रबन्ध के एक कार्य के रूप में 'नियुक्तिकरण' को समझाइये। कोई चार कारण देते हुए यह भी समझाइये कि एक संगठन में उचित नियुक्तिकरण क्यों आवश्यक है ?
अथवा
प्रबन्ध का कौनसा कार्य उचित व्यक्तियों की उपलब्धि और उनकी उचित काम पर नियुक्ति में सहायता करता है? इस कार्य के महत्त्व के किन्हीं पाँच बिन्दुओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
"संगठन में नियुक्तिकरण, प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।" क्यों ? किन्हीं चार कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियुक्तिकरण का अर्थ-
प्रबन्ध के एक कार्य के रूप में नियुक्तिकरण का अर्थ एक ऐसे प्रशासनिक कार्य से है जो संगठन में विभिन्न पदों पर पद के महत्त्व के अनुसार योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है। इस प्रकार नियुक्तिकरण प्रबन्धन प्रक्रिया का वह भाग है जो सन्तुष्ट एवं सन्तुष्ट करने वाले कार्य बल के प्राप्तिकरण, उपयोग एवं रखरखाव से सम्बन्धित है। वर्तमान में, नियुक्तिकरण के अन्तर्गत कर्मचारियों के संयोजन में दैनिक श्रमिक, सलाहकार एवं अनुबन्धित कर्मचारियों को सम्मिलित किया जा सकता है। व्यावसायिक संगठन में नियुक्तिकरण को भर्ती करने एवं कर्मचारियों की संख्या पूर्ण रखने से सम्बन्धित प्रबन्धकीय कार्य करने के रूप में वर्णित किया जा सकता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति सबसे पहले श्रम शक्ति की आवश्यकता को पहचान कर साथ ही साथ भर्ती, चुनाव, प्रतिनियुक्ति, पदोन्नति, मूल्य-निर्धारण और व्यक्तिगत विकास के द्वारा व्यावसायिक संगठनों द्वारा अभिकल्पित भूमिकाओं की पूर्ति हेतु की जा सकती है।
इस प्रकार प्रबन्ध के एक कार्य के रूप में नियुक्तिकरण का सम्बन्ध किसी व्यावसायिक संस्था में विभिन्न कार्यों एवं उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों को उपलब्ध कराने एवं उन्हें बनाये रखने से है।
नियुक्तिकरण की आवश्यकता तथा महत्त्व
किसी भी संस्था में कार्य निष्पादन हेतु पर्याप्त संख्या में कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। प्रबन्ध की नियुक्तिकरण प्रक्रिया इन आवश्यकताओं की पूर्ति करती है तथा सही व्यक्तियों का प्रबन्ध करती है। संगठन संरचना में नियुक्तिकरण रिक्त पदों की पूर्ति करता है। कर्मचारियों का चयन करते समय नियुक्तिकरण मानवीय तत्त्वों तथा मूल प्रकृति/सहजता प्रदान करता है। यह संगठन अभिवृत्ति, योग्यता, वचनबद्धता, निष्ठा जैसे महत्त्वपूर्ण गुणों को ध्यान में रखती है।
मानव संसाधन किसी भी व्यवसाय की आधारशिला है। योग्य व्यक्ति व्यवसाय को सर्वोच्च शिखर तक पहुँचा सकते हैं, गलत व्यक्ति व्यवसाय को गर्त में पहुँचा सकते हैं। अतः नियुक्तिकरण सांगठनिक निष्पत्ति की अत्यन्त आधारभूत तथा आलोचनात्मक प्रवृत्ति है। आज के तीव्र तकनीकी विकास के समय में संगठन के बढ़ते आकार तथा व्यक्तियों के व्यवहार की जटिलता को देखते हुए नियुक्तिकरण प्रक्रिया का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। किसी भी संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति उसके मानवीय संसाधनों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इसलिए नियुक्तिकरण एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण क्रिया है। कोई भी संस्था तब तक सफल नहीं हो सकती है जब तक कि वह अपने यहाँ विभिन्न पदों पर योग्य एवं कुशल कर्मचारी नियुक्त नहीं करे।
एक व्यावसायिक संस्था में नियुक्तिकरण का महत्त्व निम्न प्रकार से है-
1. योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को खोजने में सहायक-नियुक्तिकरण के अन्तर्गत कर्मचारियों की भर्ती, चयन आदि के लिए इनकी आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
2. कार्य का बेहतर निष्पादन सम्भवनियुक्तिकरण की सहायता से उपयुक्त व्यक्तियों को उपयुक्त पदों पर नियुक्त किये जाने से कार्य का बेहतर निष्पादन सम्भव होता है।
3. कर्मचारियों के विकास में सहायकनियुक्तिकरण के अन्तर्गत किया जाने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य प्रशिक्षण देने का है। सभी कर्मचारियों को सही जगह नियुक्त कर व समय-समय पर पर्याप्त प्रशिक्षण देकर उनका विकास किया जाता है। फलतः संस्था में कम लागत पर अधिकतम उत्पादन करना सम्भव होता है। इससे कर्मचारियों के विकास में सहायता मिलती है।
4. मानव संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोगनियुक्तिकरण मानव संसाधन को सर्वोत्तम उपयोग के लिए आश्वस्त करता है। आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों को रखने से बचाव कर कर्मचारियों के कम उपयोग तथा उच्च श्रम लागत को रोकने में सहायक है।
5. कार्य सन्तुष्टि व मनोबल में वृद्धिनियुक्तिकरण में कर्मचारियों का उद्देश्यपूर्ण मूल्यांकन तथा कर्मचारियों के योगदान का न्यायोचित प्रतिफल दिये जाने से कार्य-सन्तुष्टि में सुधार होता है तथा कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।
6. यह सही व्यक्ति को सही कार्य दिलाता हैनियुक्तिकरण के माध्यम से सही व्यक्ति को सही कार्य पर लगाकर अधिक व अच्छे उत्पादन को सुनिश्चित किया जाता है। नियुक्ति के अन्तर्गत संस्था में स्थापित पदों के महत्त्व को देखते हुए योग्य व्यक्तियों को लगाया जाता है।
7. यह कर्मचारियों की आवश्यकता से अधिक नियुक्ति होने से रोकता है-नियुक्ति कार्य का निष्पादन व्यवस्थित ढंग से किया जाता है और कोई भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती जबकि आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति की गई हो। इसके परिणामस्वरूप श्रम लागत में कमी आती है और लाभ बढ़ते हैं।
8. यह मानवीय जटिलताओं का सामना करने में सहायक है-नियुक्तिकरण के अन्तर्गत मानवीय व्यवहार का अध्ययन करके यह पता लगाया जाता है कि वे किस प्रकार का वातावरण चाहते हैं, किस प्रकार की पदोन्नति नीतियों एवं प्रशिक्षण को पसन्द करते हैं और क्या नहीं। इस आधार पर उनको वे सभी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं जो संस्था की पहुँच के अन्दर हैं, फलतः समन्वय का वातावरण तैयार किया जाता है।
प्रश्न 2.
कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया में निहित कदमों का वर्णन कीजिये एवं प्रशिक्षण के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया में निहित कदम
कर्मचारियों की चयन प्रक्रिया में निहित कदम निम्नलिखित हैं-
[नोट-उपर्युक्त बिन्दुओं के सम्बन्ध में इसी अध्याय के पाठ्यपुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 2 के उत्तर में पढ़ें।]
प्रशिक्षण के उद्देश्य-प्रशिक्षण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं-
प्रश्न 3.
भर्ती का क्या अर्थ है ? भर्ती के किन्हीं चार बाह्य स्रोतों की व्याख्या कीजिये।
अथवा
संगठन में नये रक्त संचार के लिए भर्ती के लिए बाह्य स्रोत की आवश्यकता क्यों पड़ती है ? इस स्रोत के किन्हीं तीन और दो सीमाओं को समझाइये।
अथवा
कर्मचारियों की भर्ती के बाह्य स्रोतों को संक्षेप में समझाइये।
अथवा
कर्मचारियों की भर्ती के बाह्य स्रोत का क्या अर्थ है ? इसके गुण-दोषों को बतलाइये।
उत्तर:
भर्ती का अर्थ एवं परिभाषाएँ
सम्भावित कर्मचारियों को ढूंढने की प्रक्रिया तथा उन्हें संगठन में पदों के लिए आवेदन देने के लिए प्रेरित करने की क्रिया को भर्ती कहते हैं । अन्य शब्दों में, भर्ती से अभिप्राय विभिन्न पदों के लिए ऐसे प्रार्थियों को तलाशने एवं उन्हें इच्छुक बनाने की प्रक्रिया से है जिनमें ऐसे ही व्यक्तियों का चयन किया जा सके। अतः यह कहा जा सकता है कि भर्ती रोजगार के लिए सक्षम व्यक्तियों को तलाशने एवं आकर्षित करने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया भर्ती के लिए नये व्यक्तियों की खोज से शुरू होती है एवं उनके द्वारा प्रार्थना-पत्र देने के साथ समाप्त होती है।
फ्लिप्पो के अनुसार, "भर्ती वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा भावी कर्मचारियों की खोज की जाती है तथा उन्हें संस्था के पदों के लिए आवेदन करने हेतु प्रेरित किया जाता है।"
बीच के अनुसार, "भर्ती मानव-शक्ति स्रोतों का विकास करना तथा बनाये रखना है। इसमें (भर्ती में) उपलब्ध श्रम का एक 'पूल' बनाया जाता है जिसमें से संस्था अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ने पर प्राप्त कर सके।"
इस प्रकार भर्ती एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत लोगों को संस्था में उपलब्ध पदों की जानकारी उपलब्ध करायी जाती है तथा उन्हें उन पदों के लिए आवेदन करने हेतु प्रेरित किया जाता है ताकि संस्था अपने भावी कर्मचारियों का 'पूल' बना सके तथा जब भी अतिरिक्त कर्मचारियों की आवश्यकता पड़े, संस्था उस पूल में से इच्छा व आवश्यकतानुसार कर्मचारियों की नियुक्ति कर सके।
भर्ती के बाह्य स्रोत का अर्थ- कर्मचारियों की भर्ती के बाह्य स्रोतों का अर्थ है खाली पदों को भरने के लिए संस्था के बाहर से व्यक्तियों को आमन्त्रित करना। इन स्रोतों का उपयोग अधिकतर निम्न स्तर के पदों को भरने के लिए किया जाता है। कई बार कुछ विशिष्ट पदों के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। जैसे इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउन्टेण्ट आदि को नियक्त करना। बाह्य भर्ती एक विस्तृत विकल्प प्रदान करती है तथा संस्था में नये लोगों को प्रवेश के अवसर प्रदान करती है।
भर्ती के बाह्य स्रोत-
भर्ती के प्रमुख बाह्य स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. प्रत्यक्ष भर्ती-प्रत्यक्ष भर्ती के अन्तर्गत संगठन के अधिसूचना पट्ट (नोटिस बोर्ड) पर एक अधिसूचना लगायी जाती है, जिसमें संस्था के रिक्त कार्य-पदों का विवरण दिया जाता है। कार्य प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्ति, संस्था के बाहर एक निश्चित तिथि पर एकत्रित होते हैं तथा उनके चयन की प्रक्रिया उसी स्थान पर की जाती है। प्रत्यक्ष भर्ती की यह प्रक्रिया सामान्यतः उन आकस्मिक पदों के लिए अपनायी जाती है जहाँ अप्रशिक्षित अथवा अर्द्धकुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। ऐसे कर्मचारी प्रायः 'आकस्मिक' अथवा 'बदली' कर्मचारियों के नाम से जाने जाते हैं तथा इन्हें पारिश्रमिक प्रतिदिन/ दिहाड़ी मजदूरी के अनुसार दी जाती है।
2. प्रतीक्षा सूची-बड़ी व्यावसायिक संस्थाएँ रोजगार के इच्छुक अनियमित आवेदकों से प्राप्त हुए आवेदनों के लिए एक फाइल बना लेती हैं। इस फाइल के आधार पर आवेदकों की एक सूची तैयार की जाती है। संस्था में जब भी कोई पद रिक्त होता है तो इस सूची से आवेदकों को बुलाकर व उनको जाँच-परखकर रखा जाता है। इस स्रोत में कार्मिकों की भर्ती की लागत अन्य स्रोतों से कम आती है।
3. विज्ञापन-जब संस्था को विस्तृत विकल्पों की आवश्यकता होती है, संस्था समाचार-पत्रों में तथा व्यावसायिक पत्रिकाओं को विज्ञापन देती है। अधिकांश रूप से उद्योग तथा वाणिज्य के क्षेत्र में वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति इस स्रोत के द्वारा ही की जाती है।
4. रोजगार कार्यालय-सरकार द्वारा संचालित रोजगार कार्यालय अकुशल तथा कुशल क्रियात्मक कार्यों या पदों की भर्ती के लिए एक महत्त्वपूर्ण बाह्य स्रोत हैं। कुछ स्थितियों में रिक्त पदों की अनिवार्य विज्ञप्ति रोजगार कार्यालय में कानूनन देना आवश्यक है। रोजगार कार्यालय पद पाने के इच्छुक कर्मचारियों तथा नियोक्ता के बीच एक कड़ी का कार्य कर कर्मचारियों की माँग तथा पूर्ति का मिलान करने में सहयोग करता है।
5. स्थापन एजेन्सी तथा प्रबन्ध परामर्शदाताआजकल स्थापन एजेन्सियाँ पूरे देश में कर्मचारियों की माँग तथा पूर्ति से सम्बन्धित सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। ये एजेन्सियाँ बड़ी संख्या में प्रत्याशियों का पूरा ब्यौरा संकलित करती हैं तथा नियोक्ताओं को योग्य व्यक्तियों के नाम सुझाती हैं । ये एजेन्सियाँ अपनी सेवाओं के बदले पारिश्रमिक लेती हैं। ये व्यावसायिक भर्ती एजेन्सियाँ दसरी कम्पनियों के उच्च अधिकारियों को भी अच्छे पदों/शर्तों का प्रलोभन देती हैं।
प्रबन्धकीय परामर्शक फर्मे संगठन की तकनीकी, व्यावसायिक तथा प्रबन्धकीय कर्मचारियों की भर्ती में सहायता करती हैं।
6. महाविद्यालय/विश्वविद्यालय से भर्तीविश्वविद्यालय तथा प्रबन्धकीय तथा प्रौद्योगिकी संस्थान, तकनीकी, व्यावसायिक तथा प्रबन्धकीय पदों की भर्ती के लिए एक महत्त्वपूर्ण तथा लोकप्रिय स्रोत बन गये हैं। बहुत सी बड़ी संस्थाएँ एवं कम्पनियाँ इन संस्थाओं से सम्पर्क बनाये रखती हैं ताकि विभिन्न पदों के लिए ये योग्य कर्मचारियों की भर्ती कर सकें। के नाम से जाने जाते हैं तथा इन्हें पारिश्रमिक प्रतिदिन/ दिहाड़ी मजदूरी के अनुसार दी जाती है।
7. कर्मचारियों द्वारा अनुशंसा-विद्यमान कर्मचारियों द्वारा सिफारिश किये गये आवेदक अथवा उनके अपने मित्र तथा सम्बन्धी, भर्ती का एक अच्छा स्रोत सिद्ध होते हैं। ऐसे आवेदक अच्छे कर्मचारी साबित हो सकते हैं क्योंकि ऐसे कर्मचारियों की पृष्ठभूमि के बारे में पूरा ज्ञान होता है।
8. जॉबर एवं ठेकेदार-जॉबर या ठेकेदार सम्भावित मजदूरों से सम्पर्क बनाये रखते हैं तथा कम समय की सूचना पर भी वांछित संख्या में अकुशल श्रमिकों को उपलब्ध कराने में सक्षम होते हैं। मजदूरों की भर्ती इन्हीं ठेकेदारों के माध्यम से होती है, जो स्वयं संगठन के कर्मचारी हैं।
9. दूरदर्शन-वर्तमान में रिक्त पदों का दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर विज्ञापन बाह्य भर्ती का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। आवश्यक पदों का विस्तृत विवरण, आवश्यकता तथा उन योग्यताओं की जो कार्य के लिए आवश्यक है, उन्हें संस्था के विवरण के साथ प्रसारित किया जाता है जहाँ ये रिक्त पद होते हैं।
10. वैब प्रसारण-इंटरनेट आज के समय में भर्ती का एक नया स्रोत बनता जा रहा है। ऐसे कुछ वैबसाइट विशेष रूप से बनाये तथा समर्पित किये गये हैं जो कार्य पाने के इच्छुक तथा नये प्रवेश से सम्बन्धित सूचनाएँ देते हैं, जैसे-वैबसाइट www. नौकरी.कॉम, www जॉब स्ट्रीट.कॉम इत्यादि पर दोनों ही सम्भावित कर्मचारी तथा संस्थाएँ जो व्यक्तियों को ढूँढ़ रही हैं, जाकर सूचनाएँ देखती हैं।
भर्ती के बाह्य स्रोत के गुण
भर्ती के बाह्य स्रोतों के कुछ प्रमुख गुण निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं जिनके कारण संगठन में नये रक्त संचार करने के लिए भर्ती के बाह्य स्रोत की आवश्यकता होती है-
1. योग्य कर्मचारी प्राप्त होना-भर्ती के बाह्य स्रोत के प्रयोग से प्रबन्ध योग्य तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों को संस्था के रिक्त पदों पर आवेदन करने का अवसर प्रदान करता है। फलतः संस्था में योग्य एवं कुशल व्यक्ति आ सकते हैं।
2. विस्तृत विकल्प उपलब्ध होना-जब रिक्त पदों का विस्तृत रूप से विज्ञापन दिया जाता है संस्था को बाहर से बड़ी संख्या में आवेदक आवेदन करते हैं । इससे संस्था के प्रबन्ध को विस्तृत विकल्प प्राप्त हो जाते हैं।
3. नयी प्रतिभाएँ-भर्ती के बाह्य स्रोत द्वारा नयी प्रतिभाओं को संस्था में लाया जा सकता है। यद्यपि इसमें साख में कमी आती है। इसी कारण अच्छे व्यक्ति संस्था की ओर आकर्षित नहीं होते।
प्रश्न 4.
भर्ती के आन्तरिक स्रोत का क्या अर्थ है? संगठन आन्तरिक स्रोतों के माध्यम से भर्ती को क्यों प्राथमिकता देते हैं ? समझाइये।
अथवा
कर्मचारियों की भर्ती के आन्तरिक स्रोत से क्या तात्पर्य है ? इसके गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
भर्ती के आन्तरिक स्रोत का अर्थ-
भर्ती के आन्तरिक स्रोत से तात्पर्य उस स्रोत से है जिसमें रिक्त पदों को संस्था के अन्दर उपलब्ध कर्मचारियों में से ही भर लिया जाता है। भर्ती के आन्तरिक स्रोतों में मुख्य रूप से पदोन्नति तथा स्थानान्तरण को सम्मिलित किया जाता है।
भर्ती के आन्तरिक स्रोत के गुण-
भर्ती के आन्तरिक स्रोत में निम्नलिखित कुछ गुण ऐसे हैं जिनके कारण संगठन आन्तरिक स्रोतों के माध्यम से ही भर्ती करने को प्राथमिकता देते हैं-
1. कार्य निष्पादन में सुधार-भर्ती के आन्तरिक स्रोत में कर्मचारी अपने कार्य-निष्पादन में सुधार के लिए अभिप्रेरित होते हैं। यह कर्मचारियों को अभ्यास तथा सीखने के द्वारा उनके निष्पादन को सुधारने के लिए प्रेरित करती है। कर्मचारी प्रतिबद्धता के साथ तथा निष्ठा से कार्य करते हैं तथा अपने कार्य से सन्तुष्ट रहते हैं।
2. चयन प्रक्रिया तथा अनुस्थापन को सरल बनाना-आन्तरिक भर्ती चयन प्रक्रिया तथा अनुस्थापन को भी सरल कर देती है। जो कर्मचारी पहले से ही संस्था में कार्य कर रहे हैं उनका मूल्यांकन अधिक यथार्थ रूप में किया जा सकता है तथा यह आर्थिक रूप से लाभकारी है।
3. भर्ती का विश्वसनीय तरीका-भर्ती का यह स्रोत एक अधिक विश्वसनीय स्रोत है; क्योंकि इसमें पदोन्नति करने वाले कर्मचारियों के बारे में संस्था पहले से ही अवगत रहती है।
4. प्रशिक्षण में अधिक खर्चा नहीं-स्थानान्तरण, कर्मचारियों को उच्च पदों के लिए प्रशिक्षित करने के लिए एक उपकरण है। इसमें जिन व्यक्तियों को उच्च पदों पर भर्ती की जाती है उनके प्रशिक्षण पर ज्यादा खर्चा करना नहीं पड़ता है।
5. अतिरिक्त विभागों से कार्य शक्ति का स्थानान्तरण-भर्ती के आन्तरिक स्रोत अर्थात् स्थानान्तरण से यह भी लाभ है कि अतिरिक्त विभागों से कार्य-शक्ति का स्थानान्तरण किया जा सकता है, वहाँ पर जहाँ कर्मचारियों की कमी है।
6. मितव्ययी-आन्तरिक स्रोतों से पदों की पूर्ति व भर्ती कर्मचारियों के बाह्य स्रोतों से भर्ती की तुलना में अधिक सस्ती है।
7. मनोबल में वृद्धि-सभी आन्तरिक स्रोतों और विशेषकर पदोन्नति द्वारा भर्ती किये जाने पर कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि होती है।
8. श्रेष्ठ चयन-संस्था के अन्दर कार्य कर रहे व्यक्तियों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी होती है। यही कारण है कि उनका उच्च पद के लिए चयन करने पर किसी प्रकार की जोखिम नहीं होती।
9. श्रम परिवर्तन दर में कमी-जब कर्मचारियों को यह जानकारी हो कि उन्हें ऊँचे पदों पर नियुक्त किया जा सकता है तो वह संस्था को छोड़कर नहीं जाते और परिणामतः श्रम परिवर्तन दर में कमी आती है तथा संस्था की साख बढ़ती है।
10. अच्छे श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध-भर्ती के आन्तरिक स्रोत का उपयोग किये जाने पर कर्मचारी वर्ग सन्तुष्ट हो जाता है और परिणामतः अच्छे श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध स्थापित होते हैं।
भर्ती के आन्तरिक स्रोत के दोष
भर्ती के आन्तरिक स्रोत के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
1. नयी प्रतिभाओं को कम अवसर प्राप्त होनाआन्तरिक स्रोत अर्थात् पदोन्नति के द्वारा जब रिक्त पदों को भरा जाता है तो 'नयी प्रतिभाओं' के संस्था में प्रवेश के अवसर न्यून हो जाते हैं। इसलिए पूर्ण रूप से आन्तरिक भर्ती पर निर्भर होने से 'अन्तःप्रजनन' का खतरा बना रहता है जो संस्था में नये लोगों के प्रवेश को रोकने से उत्पन्न हो सकता है।
2. अकर्मण्यता-यदि संस्था में कर्मचारी समयबद्ध पदोन्नति के लिए आश्वस्त हो जाते हैं तो वे अकर्मण्य हो सकते हैं।
3. नयी संस्थाओं के लिए अनुपयुक्त-एक नयी संस्था भर्ती के आन्तरिक स्रोत का उपयोग कर ही नहीं सकती है। अतः उनके लिए आन्तरिक स्रोत की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती है।
4. प्रतिस्पर्धा में कमी-संस्था में आन्तरिक भर्ती के स्रोतों के उपयोग किये जाने से कर्मचारियों के मध्य प्रतिस्पर्धा की स्थिति समाप्त हो जाती है।
5. कर्मचारियों की उत्पादकता प्रभावित-संस्था में कर्मचारियों का निरन्तर स्थानान्तरण करते रहने से उनकी उत्पादकता पर निश्चय ही प्रभाव पड़ता है और वह कम होने लगती है।
6. यह चयन के क्षेत्र को कम करता हैकर्मचारियों की आन्तरिक भर्ती चयन के स्रोत को कम करती है, क्योंकि संस्था के अन्दर काम करने वाले कुछ ही कर्मचारियों में से चयन करना पड़ता है।
7. पक्षपात को प्रोत्साहन-इस प्रणाली में उच्च प्रबन्धक प्रायः अपने प्रिय कर्मचारियों का ही चयन कर लेते हैं। कई बार कम योग्य होने पर भी कर्मचारी का चयन कर लिया जाता है।
प्रश्न 5.
प्रशिक्षण क्या है ? प्रशिक्षण के महत्त्व (लाभों) का वर्णन कीजिये।
अथवा
किसी संगठन में कर्मचारियों का प्रशिक्षण क्यों आवश्यक है ? किन्हीं छः कारणों का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
अथवा
प्रशिक्षण का अर्थ एवं विशेषताओं को बतलाइये।
उत्तर:
प्रशिक्षण का अर्थ
कोई भी ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा कर्मचारियों के कौशल, क्षमता तथा योग्यता को बढ़ाया जाता है जिससे वे अपने विशिष्ट कार्यों का बेहतर निष्पादन कर सकें, प्रशिक्षण कहलाता है। वस्तुतः प्रशिक्षण एक नये कौशल को सीखने की प्रक्रिया तथा अपने ज्ञान को प्रयोग में लाने की प्रक्रिया है। यह कर्मचारियों को बेहतर कार्य-निष्पादन के लिए समर्थ एवं योग्य बनाती है। यह कर्मचारियों के वर्तमान कार्य-निष्पादन में सुधार लाती है तथा उन्हें अन्य किसी भी नये कार्य के लिए तैयार करती है।
निष्कर्ष-प्रशिक्षण एक पूर्व-नियोजित प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति के किसी विशिष्ट कार्य के सम्बन्ध में ज्ञान, चातुर्य, अभिरुचि तथा योग्यता का विकास करने का प्रयास किया जाता है ताकि वह उस विशिष्ट कार्य को सुव्यवस्थित एवं सर्वोत्तम ढंग से करते हुए संस्था की कुशलता में योगदान दे सके।
प्रशिक्षण की विशेषताएँ
प्रशिक्षण की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रशिक्षण व्यक्ति को किसी विशेष कार्य में निपुण बनाता है-प्रशिक्षण व्यक्ति को उनके किसी विशेष कार्य में निपुण बनाता है। क्योंकि इसमें व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार से उनके कार्यों को सर्वोत्तम ढंग से प्रशिक्षित किया जाता है।
2. प्रशिक्षण एक सतत् प्रक्रिया है-प्रशिक्षण कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं है जो किसी कर्मचारी को हमेशा के लिए एक ही बार में कार्य सम्बन्धी पूरा ज्ञान प्रदान कर सके। संस्था में जब भी नई कार्यविधि, नई तकनीक आदि का प्रयोग किया जाता है तो प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। वस्तुतः जब-जब भी व्यवसाय में कोई परिवर्तन होता है तब-तब प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। व्यवसाय में लगातार परिवर्तन होते रहने से प्रशिक्षण एक नियमित रूप से सम्पादित की जाने वाली प्रक्रिया है।
3. प्रशिक्षण पर किया गया खर्च विनियोग हैप्रशिक्षण पर किया जाने वाला खर्चा विनियोग ही होता है, क्योंकि प्रशिक्षण पर संस्था द्वारा जो भी खर्च किया जाता है उस खर्चे से कर्मचारी कुशलता एवं दक्षता प्राप्त करते हैं, वे अपने कार्य को अच्छे ढंग से और अधिक करने में सफल रहते हैं। फलतः कर्मचारियों की उत्पादकता व उत्पादन दोनों में ही वृद्धि होती है और संस्था लाभान्वित होती है।
4. प्रशिक्षण नये एवं पुराने दोनों कर्मचारियों के लिए आवश्यक होता है-प्रशिक्षण नये कर्मचारियों के लिए तो जरूरी रहता ही है, साथ ही पुराने कर्मचारियों के लिये भी आवश्यक रहता है। क्योंकि यह पुराने कर्मचारियों को नई-नई जानकारी देने, नई-नई तकनीकों को सिखाता है। इस प्रकार प्रशिक्षण नये तथा पुराने दोनों प्रकार के कर्मचारियों के लिए आवश्यक होता है।
5. प्रशिक्षण संस्था तथा कर्मचारियों दोनों के लिए लाभदायक होता है-प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे संस्था एवं कर्मचारी दोनों को लाभ प्राप्त होता है। एक तरफ तो यह संस्था का इस लागत पर अधिक उत्पादन का सपना साकार होता है, दूसरी तरफ कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ने से वे कम समय में अधिक व अच्छा उत्पादन करके अधिक पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं और दुर्घटनाओं में कमी होने से उनका जीवन भी सुरक्षित रहता है।
6. कार्य-आधारित प्रक्रिया-प्रशिक्षण एक कार्यआधारित प्रक्रिया है।
7. प्रशिक्षण तथा शिक्षा में अन्तर होता हैप्रशिक्षण द्वारा किसी विशेष कार्य को करने के लिए कर्मचारी के ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि की जाती है जबकि शिक्षा द्वारा कर्मचारी के सामान्य ज्ञान एवं समझ में वृद्धि होती है। यह शिक्षा तार्किक तथा विवेकपूर्ण बुद्धि का विकास करती है।
8. प्रशिक्षण तथा विकास में अन्तर होता है- प्रशिक्षण का अभिप्राय कर्मचारियों को किसी विशेष कार्य में निपुण बनाता है, जबकि विकास के अन्तर्गत सभी क्षेत्रों में जानकारी प्रदान की जाती है। इसके साथ ही प्रशिक्षण सभी स्तर के कर्मचारियों के लिए आवश्यक होता है, जबकि विकास की आवश्यकता प्रबन्धकीय वर्ग के लिए अपेक्षाकृत अधिक होती है।
प्रशिक्षण का महत्त्व (लाभ)/आवश्यकता
प्रशिक्षण के महत्त्व या लाभों/आवश्यकता को हम निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा सकते हैं-
व्यक्तियों या कर्मचारियों के लिए महत्त्व या लाभ-
संगठन के लिए महत्त्व या लाभ-
[नोट-उपरोक्त बिन्दुओं के सम्बन्ध में पाठ्यपुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 3 के उत्तर में पढ़ें।]
प्रश्न 6.
प्रशिक्षण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिये।
अथवा
प्रशिक्षण की प्रमुख विधियों का विवेचन कीजिये।
उत्तर:
प्रशिक्षण की प्रमुख विधियाँ
प्रशिक्षण की प्रमुख विधियों को निम्न दो भागों में वर्गीकृत कर समझाया जा सकता है-
I. ऑन द जॉब विधियाँ-
1. प्रशिक्षणार्थी कार्यक्रम-प्रशिक्षण की इस विधि में प्रशिक्षणार्थी को कार्य में दक्ष बनाने के लिए एक दक्ष कर्मचारी के अधीन रखा जाता है। इन कार्यक्रमों की रूपरेखा उच्चस्तरीय कौशल को अर्जित करने के लिए बनायी जाती है जो लोग विशेष कौशल वाले व्यापार में प्रवेश चाहते हैं जैसे बिजली का काम, प्लम्बर का काम। एक-समान अवधि का प्रशिक्षण इन शिक्षार्थियों को दिया जाता है, जिसमें तीव्र गति से तथा मंद गति से सीखने वाले शिक्षार्थियों दोनों को ही साथ रखा जाता है।
2. शिक्षण (कोचिंग)-प्रशिक्षण की विधि के अन्तर्गत उच्च अधिकारी तथा प्रशिक्षण एक शिक्षक के समान प्रशिक्षणार्थी को सिखाता है। शिक्षक या परामर्शक आपसी सलाह से उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं तथा सुझाव देते हैं कि इन उद्देश्यों को कैसे पूरा करना है। निश्चित समयावधि में प्रशिक्षक प्रशिक्षणार्थी के विकास का पुनरीक्षण करते हैं तथा सुझाव देते हैं कि उनके व्यवहार तथा निष्पादन में किस प्रकार के बदलाव की आवश्यकता है। प्रशिक्षणार्थी प्रत्यक्ष रूप से उच्च अधिकारी के अधीन कार्य करता है तथा प्रबन्धक प्रशिक्षणार्थी के प्रशिक्षण की पूरी जिम्मेदारी/दायित्व अपने ऊपर लेता है। प्रशिक्षक द्वारा प्रशिक्षणार्थी को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि यह उच्च अधिकारी को उसके कुछ दायित्वों से भारमुक्त कर सके।
3. स्थानबद्ध प्रशिक्षण (इंटर्नशिप प्रशिक्षण)यह प्रशिक्षण का एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम है जिसमें शैक्षणिक संस्थान तथा व्यावसायिक संस्था सहयोग देती है। चयनित प्रशिक्षणार्थी एक निश्चित निर्धारित अवधि के लिए एक नियमित अध्ययन करते हैं। वे उसी कार्यालय में व्यावहारिक ज्ञान तथा कौशल अर्जित करने के लिए कार्य भी करते हैं।
4. कार्य बदली-प्रशिक्षण की इस विधि में प्रशिक्षणार्थी का एक विभाग से दूसरे विभाग में अथवा एक कार्य से दूसरे कार्य में स्थानान्तरण सम्मिलित है। यह प्रशिक्षण प्रशिक्षणार्थी को व्यवसाय के विभिन्न अंगों को विस्तृत रूप से समझने में तथा कोई संगठन किस प्रकार पूर्णरूप से कार्य करता है, समर्थ बनाता है। इसमें प्रशिक्षणार्थी पूर्णरूप से विभाग के कार्यों में सम्मिलित होता है तथा उसे अपनी क्षमता तथा योग्यताओं को परखने का भी अवसर मिलता है। कार्य बदली प्रशिक्षणार्थी को अन्य कर्मचारियों से भी बातचीत करने का मौका देती है जो भविष्य में विभिन्न विभागों में सहयोग को बढ़ाने में मदद करती है। जब कर्मचारी इस पद्धति द्वारा प्रशिक्षित होते हैं तो संगठन को पदोन्नति, स्थानापन्न अथवा स्थानान्तरण करने के समय आसानी होती है।
II. ऑफ द जॉब विधियाँ-
प्रशिक्षण की ऑफ द जॉब विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. कक्षा-कक्ष व्याख्यान/सम्मेलन-व्याख्यान अथवा सम्मेलन उपागम विशेष सूचना नियम कार्यप्रणाली अथवा प्रक्रिया को सम्प्रेषित करने के लिए अत्यन्त अनुकूल है। दृश्य-श्रव्य सामग्री अथवा प्रदर्शन प्रायः एक औपचारिक कक्षा-कक्ष प्रस्तुति को ज्यादा रुचिकर बनाते हैं, साथ ही साथं प्रतिधारण को भी बढ़ाते हैं और यह कठिन बिन्दुओं के स्पष्टीकरण के लिए एक अच्छा माध्यम है।
2. चलचित्र-यह सूचनाएँ देने तथा सुस्पष्ट तरीके से कौशलों को प्रदर्शित करता है जो आसानी से किसी अन्य तकनीक द्वारा नहीं की जा सकती है। सम्मेलन तथा चर्चा के साथ कुछ विशिष्ट स्थितियों में यह अत्यन्त प्रभावी विधि है।
3. समस्यात्मक अध्ययन (केस स्टडी)प्रशिक्षण की इस विधि में संगठन के वास्तविक अनुभवों के आधार पर केस अध्ययन के माध्यम से प्रयास करते हैं कि किस प्रकार सम्भावित वास्तविक समस्याओं का यथार्थ वर्णन किया जाये जो प्रबन्धकों के सामने आये हैं। प्रशिक्षणार्थी, समस्याओं को निर्धारित करने में, कारणों का विश्लेषण करने में तथा वैकल्पिक हल निकालने में, वह हल जो वे विश्वास करते हैं कि यह उत्तम है तथा उसको क्रियान्वित करने में, केसों का अध्ययन करते हैं।
4. प्रकोष्ठशाला प्रशिक्षण-प्रशिक्षण की इस विधि में नये कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से, अलग से एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की जाती है। एक अनुभवी एवं प्रशिक्षित प्रशिक्षक को इस केन्द्र का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। इस केन्द्र में मशीनों व उपकरणों को इस ढंग से लगाया जाता है ताकि कारखाने जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जायें। जब कर्मचारी प्रशिक्षित हो जाते हैं तो उन्हें वास्तविक कार्य पर लगा दिया जाता है।
5. कम्प्यूटर प्रतिमान-प्रशिक्षण की यह विधि इस प्रकार का कार्य वातावरण बनाने में सहायक है जो कम्प्यूटर में प्रोग्राम के द्वारा कार्य की वास्तविक स्थितियों की नकल करने में सक्षम है तथा इससे प्रशिक्षणार्थी बिना किसी जोखिम के अथवा कम लागत पर सीख सकता है जो गलतियाँ वह वास्तविक जीवन-स्थिति में कर सकता है।
6. नियोजित अनुदेश/प्रशिक्षण-प्रशिक्षण की यह विधि कुछ पूर्व नियोजित विशेष कौशलों अथवा सामान्य ज्ञान के अधिग्रहण को समाविष्ट करती है। यह सूचनाओं को अर्थपूर्ण इकाइयों में बाँटती है तथा इन्हीं इकाइयों को उपयुक्त तरीके से क्रमबद्ध किया जाता है ताकि वे एक तार्किक तथा क्रमिक अधिगम पैकेज के रूप में बन सकें, जैसे-सरल से जटिल की ओर। प्रशिक्षणार्थी इन इकाइयों को पढ़ते हुए प्रश्नों के उत्तर देता है तथा रिक्त स्थानों की पूर्ति करता है।
प्रश्न 7.
मानव संसाधन प्रबन्ध के क्रमिक विकास को संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
मानव संसाधन प्रबन्ध का क्रमिक विकास
मानव संसाधन प्रबन्ध ने श्रम कल्याण तथा कार्मिक प्रबन्ध की पारम्परिक अवधारणा को प्रतिस्थापित किया है। औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप मानव संसाधन प्रबन्ध का अपने वर्तमान स्वरूप में प्रादुर्भाव बहुत सारे अन्तर्सम्बन्धित विकासों के द्वारा हुआ है। व्यापार-संघ आन्दोलन के प्रादुर्भाव ने मनुष्य की आवश्यकता को उभारा जो प्रबन्धक/स्वामी तथा कर्मचारियों के मध्य एक प्रभावपूर्ण कड़ी का कार्य कर सके। इस प्रकार श्रम कल्याण अधिकारी के पद का जन्म हुआ। उसकी भूमिका मात्र कर्मचारियों के न्यूनतम कल्याणकारी क्रियाओं तक ही सीमित थी। क्योंकि नियोक्ता तथा कर्मचारी दोनों ने ही उसे हीन भावना से देखा था।
कारखाना प्रणाली के प्रारम्भ होने से हजारों कर्मचारी एक ही छत के नीचे नियुक्त होने लगे। बड़े-- बड़े कारखानों की स्थापना ने भी श्रमिकों एवं कर्मचारियों को एक साथ एकत्रित होने का अवसर प्रदान किया। ऐसे समय कारखानों में नियुक्ति सम्बन्धी कार्य एक व्यक्ति को सौंपा गया जिसे बाद में भर्ती, चयन तथा कर्मचारियों की नियुक्ति का भी दायित्व सौंप दिया गया। इस प्रकार से प्रथमत: कर्मचारी अधिकारी पद का आविर्भाव हुआ तथा वही बाद में कर्मचारी प्रबन्धक के रूप में जाना जाने लगा।
मानव सम्बन्ध उपागम किसी भी संगठन की सफलता के लिए मानवीय तत्त्व को एक महत्त्वपूर्ण यंत्र के रूप में मानता है किन्तु जैसे-जैसे तकनीकी विकास होने लगा, कार्य के सम्बन्ध में जटिलताएँ बढ़ीं, नये कौशल विकास तथा कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता बढ़ी है। कर्मचारियों को एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में माना जा रहा है, जिनका और अधिक विकास सम्भव हो। कार्यक्षेत्र के विस्तृत होने के कारण कर्मचारी प्रबन्धक का पद मानव संसाधन प्रबन्धक के रूप में प्रतिस्थापित हो गया है। इस प्रकार मानव संसाधन प्रबन्धक के प्रादुर्भाव से कर्मचारियों के प्रभावी प्रबन्ध के अभाव में जो पुरानी अवधारणाएँ थीं वे असफल हो गईं और फलतः मानव संसाधन प्रबन्ध एक मुख्य धारा प्रक्रिया के रूप में सामने आया।
औद्योगिक क्षेत्र में मानवीय तत्त्वों से सम्बन्धित उपर्युक्त सभी पक्ष उद्यम के यान्त्रिक पक्ष से भिन्न हैं। इस प्रकार से नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक अन्तर्निहित भाग है। यह कर्मचारियों के कार्यसम्बन्धों को स्थापित करने के लिए, उन्हें जानने, मूल्यांकित करने के उद्देश्य से कार्यरत रहता है। ये सभी एक उद्देश्यपूर्ण क्रियाएँ होती हैं।
यहाँ यह उल्लेख किया जाना आवश्यक है कि नियुक्तिकरण के अन्तर्गत दोनों ही प्रकार की प्रबन्धन क्रियाएँ होती हैं-जैसे नियोजन, संगठन, निर्देशन तथा नियन्त्रण, साथ ही साथ प्रबन्ध के भिन्न कार्यात्मक क्षेत्र जैसे विपणन तथा वित्तीय प्रबन्धन।
अतः नियुक्तिकरण दोनों ही प्रकार की क्रियाएँ करती है जैसे प्रबन्ध के आवश्यक कार्य तथा मानव संसाधन विभाग द्वारा निभायी गई एक परामर्शदाता की भूमिका।
प्रश्न 8.
मानव शक्ति नियोजन का महत्त्व स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मानव शक्ति नियोजन का महत्त्व
एक व्यावसायिक संस्था में मानव शक्ति नियोजन एक निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। क्योंकि संस्था के कर्मचारियों में निरन्तर परिवर्तन होता है। संस्था की वर्तमान एवं भावी मानवीय आवश्यकताओं की व्याख्या एवं पूर्वानुमान द्वारा मानव शक्ति नियोजन मानव संसाधन की प्राप्ति, उपयोग एवं सुधार में सहायक होता है। व्यवसाय का विस्तार, तकनीकी परिवर्तन, विशिष्टीकरण, श्रम लागत में वृद्धि, पेंशेवर प्रबन्धकों की माँग आदि के कारण मानवशक्ति नियोजन का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। मानव शक्ति नियोजन द्वारा प्रबन्ध श्रम लागत पर नियन्त्रण रख सकता है। मानव शक्ति नियोजन कर्मचारियों की अधिकता एवं कमी को दूर करने में भी सहायक होता है। यह कर्मचारियों के चयन, भर्ती, प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन में मार्गदर्शन का कार्य करता है। व्यावसायिक संस्था की सफलता मानव शक्ति के प्रभावी एवं उत्तर उपयोग पर आधारित है और यह मानव शक्ति नियोजन के अभाव में असम्भव है। संक्षेप में, मानव शक्ति नियोजन के महत्त्व को हम निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
1. संगठन में वृद्धि होना-एक बढ़ते हुए व्यावसायिक संस्थान में अधिक संख्या में योग्य एवं दक्ष लोगों की आवश्यकता होती है। अतः मानव शक्ति स्रोतों को ज्ञात करना, उन्हें प्राप्त करना तथा उनका विकास करना आवश्यक हो जाता है। मानव शक्ति नियोजन इन सभी कार्यों में पथ-प्रदर्शक माना जाता है।
2. विशिष्टीकरण-व्यावसायिक संस्थानों में बढ़ते हुए श्रम विभाजन के महत्त्व के कारण सहयोग एवं समन्वय की समस्याएँ अधिक जटिल बन गई हैं। इनका समाधान करने के लिए मानवीय संसाधन का प्रभावी नियोजन आवश्यक हो गया है। इसके साथ ही संस्था के स्थायित्व एवं निरन्तरता के लिए भी मानवीय शक्ति नियोजन आवश्यक है।
3. तकनीकी परिवर्तन-व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में तकनीकी विकास के कारण प्रबन्ध के सामने नई-नई समस्याएँ आने लगती हैं। इन समस्याओं का सामना करने के लिए व इनसे निबटने के लिए कुशल एवं योग्य प्रबन्धक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होना आवश्यक है। यह मानव शक्ति नियोजन के बिना सम्भव नहीं है।
4. प्रबन्धकीय अप्रचलन (Managerial obsolescence)-व्यावसायिक क्षेत्र में होने वाले तकनीकी परिवर्तनों एवं बढ़ती हुई जटिलताओं के परिणामस्वरूप प्रबन्धकों का ज्ञान शीघ्र ही पुराना हो जाता है। प्रबन्धकों को नये ज्ञान एवं जानकारियाँ देने के लिए उनके प्रशिक्षण एवं विकास की योजनाएँ बनाना आवश्यक हो जाता है। इस कारण से भी मानव शक्ति नियोजन का महत्त्व बढ़ जाता है।
5. कर्मचारियों की आवश्यकता का निर्धारणमानव शक्ति नियोजन का महत्त्व इस रूप में भी है कि इसके द्वारा संस्था में कर्मचारियों की आवश्यकता का निर्धारण किया जाता है। इसके द्वारा व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न विभागों में कितनी मानवीय शक्ति की जरूरत होगी। इस प्रकार इसकी सदस्यता से मानव शक्ति का ब्यौरा तैयार किया जाता है। मानव शक्ति का नियोजन के कार्य द्वारा मानव ङ्केशाक्ति की आवश्यकता का निर्धारण कर उसकी भर्ती का कार्य किया जाता है।
प्रश्न 9.
चयन से आप क्या समझते हैं ? उन महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं का विवेचन कीजिये जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन हेत किया जाता है।
उत्तर:
चयन का अर्थ-चयन, बड़ी संख्या में रिक्त पद के सम्भावित उम्मीदवारों में से सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्तियों को पहचानने तथा खोजने की प्रक्रिया है। इसमें प्रत्याशियों को बड़ी संख्या क्रम में रोजगार परीक्षा तथा साक्षात्कार देने पड़ते हैं। चयन प्रक्रिया में प्रत्येक चरण पर बहुत से प्रत्याशियों को निकाल दिया जाता है, कुछ अगली परीक्षा चरण में जाते हैं, जब तक कि सही ढंग से व्यक्ति मिल नहीं जाते। यह प्रक्रिया आवेदन-पत्रों की छंटनी/जाँच से ही शुरू हो जाती है। यह प्रक्रिया नियुक्ति पत्र मिलने, स्वीकार करने तथा उम्मीदवार के संस्था में प्रवेश के बाद तक भी जारी रहती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चयन प्रक्रिया में, किसी भी प्रबन्धन निर्णय के समान ही उम्मीदवार के सम्भावित निष्पादन की परख भी सम्मिलित है। चयन प्रक्रिया की सार्थकता की परीक्षा चयनित व्यक्ति के कार्यस्थल पर उसके सफल निष्पादन से होती है।
चयन के लिए उपयोग में लायी जाने वाली परीक्षाएँ-
महत्त्वपूर्ण परीक्षाएँ जिनका प्रयोग कर्मचारियों के चयन हेतु किया जाता है-
1. बुद्धि परीक्षाएँ-बुद्धि परीक्षाएँ उन महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं में से एक है जिसका प्रयोग व्यक्ति के बुद्धि कोष स्तर को मापने के लिए किया जाता है। यह परीक्षा व्यक्ति के सीखने की योग्यता का अथवा निर्णय लेने तथा परखने की योग्यता को मापने का सूचक/संकेतक है।
2. कौशल परीक्षा-कौशल परीक्षा व्यक्ति के नये कौशल को सीखने की सम्भावित कुशलता को मापती है। यह व्यक्ति के विकास करने की क्षमता का संकेत करती है। इस प्रकार की परीक्षाएँ व्यक्ति के भविष्य में सफलता के स्तर को जानने का एक अच्छा संकेतक हैं।
3. व्यक्तित्व परीक्षाएँ-व्यक्तित्व वह परीक्षा है जो व्यक्ति के संवेगों, प्रतिक्रियाओं, परिपक्वता तथा उनके जीवन-मूल्यों को जानने में संकेत देती हैं। ये परीक्षाएँ पूरे व्यक्तित्व को परखने में सहायक होती हैं।
4. व्यापार परीक्षा-व्यापार परीक्षाएँ व्यक्ति के उपलब्ध कौशल को मापती हैं। ये ज्ञान के स्तर तथा उनके क्षेत्र की व्यावसायिक तथा तकनीकी प्रशिक्षण की कुशलता को मापती हैं। कौशल परीक्षा तथा व्यापार परीक्षा में अन्तर यह है कि कौशल परीक्षा व्यक्ति के कौशल अर्जित करने की सम्भावित क्षमता को मापती है, जबकि व्यापार परीक्षा उन वास्तविक कौशलों को, जो उनके पास पहले से ही हैं।
5. अभिरुचि परीक्षा-प्रत्येक व्यक्ति को किसी विशेष कार्य के प्रति आकर्षण रहता है। अभिरुचि परीक्षाओं का प्रयोग यह जानने के लिये किया जाता है कि उसकी रुचि किस प्रकार की है अथवा उसका रुझान किस प्रकार के कार्य की तरफ है।
प्रश्न 10.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया की परिभाषा दीजिए तथा इसके अन्तर्गत विभिन्न चरणों को भी बतलाइये।
अथवा
नियुक्तिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियुक्तिकरण प्रक्रिया का अर्थ-
नियुक्तिकरण प्रक्रिया उन मानव शक्ति की आवश्यकताओं के निर्धारण की प्रक्रिया है जो संस्था के उद्देश्यों का पूर्ति करती है। इसके अनुसार इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्याशियों का मूल्यांकन एवं चयन और नये तथा वर्तमान कर्मचारियों का अनुस्थापन, प्रशिक्षण एवं विकास किया जाता है।
इस प्रकार नियुक्तिकरण प्रक्रिया में संगठन ढाँचे में अंकित कार्यों को करने के लिए लोगों के उचित एवं प्रभावपूर्ण चुनाव, मूल्यांकन एवं विकास के द्वारा पदों पर उनकी नियुक्ति की जाती है। नियुक्तिकरण संगठन से जुड़ा हुआ है अर्थात् कार्य एवं पदों का सोच-समझ कर ढाँचा तैयार किया जाता है। प्रबन्ध के एक कार्य के रूप में नियुक्तिकरण का सम्बन्ध किसी व्यावसायिक इकाई में विभिन्न कार्यों एवं उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों को उपलब्ध कराने से है।
डेल योडर के अनुसार, "नियुक्तिकरण प्रक्रिया प्रबन्ध का वह भाग है, जो मानवीय शक्ति का अन्य शक्ति-स्रोतों से भिन्न प्रभावशाली नियन्त्रण व उपभोग से सम्बन्ध रखती है।"
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के विभिन्न चरण
1. मानव शक्ति आवश्यकताओं का आकलन करना-व्यावसायिक संस्था में प्रत्येक कार्य-पद के निष्पादन के लिए कर्मचारी की नियुक्ति की आवश्यकता पड़ती है, जिसके पास विशिष्ट योग्यता, कौशल तथा पूर्व-अनुभव इत्यादि हैं। इस प्रकार मानव शक्ति आवश्यकताओं को समझना केवल यह जानना नहीं है कि कितने व्यक्तियों की आवश्यकता है, वरन् यह जानना भी है कि किस प्रकार के कर्मचारियों की आवश्यकता है। क्रियात्मक रूप से मानव शक्ति आवश्यकताओं को समझने के लिए एक तरफ कार्य भार विश्लेषण की आवश्यकता है तो दूसरी तरफ कार्य शक्ति विश्लेषण की आवश्यकता है। कार्य-विश्लेषण विभिन्न कार्यों के निष्पादन तथा सांगठनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कितनी संख्या में तथा किस प्रकार के मानव संसाधनों की आवश्यकता पड़ेगी इत्यादि के निर्धारण को सम्भव बनाती है। कार्य-शक्ति विश्लेषण से पता चलता है कि कितनी संख्या में तथा किस प्रकार के मानव-संसाधन उपलब्ध हैं। वास्तव में इस प्रकार के प्रयोग/अभ्यास यह प्रकट करते हैं कि संस्था में आवश्यकता से कम नियुक्तियाँ हैं अथवा ज्यादा हैं अथवा उपयुक्त हैं। कम नियुक्तिकरण की स्थिति में ही भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की आवश्यकता पड़ती है।
2. भर्ती-सम्भावित कर्मचारियों को ढूंढने की प्रक्रिया तथा उन्हें संगठन में रिक्त पदों के लिए आवेदन करने के लिए प्रेरित करने को भर्ती कहते हैं। इस चरण में, संभावित प्रत्याशियों को खोजना तथा वे स्रोत जहाँ से सम्भावित प्रत्याशी लिये जा सकते हैं, पता लगाना सम्मिलित है। भर्ती के लिए आन्तरिक स्रोतों का प्रयोग एक सीमित रूप में किया जा सकता है। नये प्रतिभावान व्यक्तियों के लिए तथा विस्तृत विकल्प के लिए बाह्य स्रोतों का प्रयोग किया जाता है।
3. चयन-चयन एक ऐसी प्रक्रिया है जो भर्ती के समय बनाये गये सम्भावित पद-प्रत्याशियों के निकाय में से कर्मचारियों को चुनती है। चयन में विभिन्न प्रकार की परीक्षाएँ आयोजित करना तथा साक्षात्कार लेना सम्मिलित है। जो व्यक्ति परीक्षा तथा साक्षात्कार में सफल होते हैं, उन्हें रोजगार अनुबन्धन प्रस्ताव दिया जाता है। यह एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें रोजगार का प्रस्ताव तथा अवधि व शर्ते और किस दिन संस्था में कार्य-भार सँभालना है इत्यादि का उल्लेख होता है।
4. अनुस्थापन तथा अभिविन्यास-कार्यस्थल पर कर्मचारियों के समाजीकरण का प्रारम्भ कर्मचारियों के पद सम्भालते ही हो जाता है। कर्मचारियों को कम्पनी के बारे में एक संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण दिया जाता है तथा उनके उच्च अधिकारियों, अधीनस्थ तथा सहकर्मियों से उनका परिचय कराया जाता है। कार्य-स्थल पर उन्हें ले जाया जाता है। फिर उन्हें जिस पद के लिए चयन किया जाता है, उसका.कार्य-भार दिया जाता है। अभिविन्यांस की प्रक्रिया कर्मचारियों को अन्य कर्मचारियों से मिलवाने का अवसर देती है तथा उन्हें संस्था के नियमों तथा नीतियों से अवगत कराती है। अनुस्थापन से तात्पर्य कर्मचारी के पद-भार सम्भालने से है जिसके लिए उसका चयन हुआ है।
5. प्रशिक्षण तथा विकास-संगठन में प्रत्येक व्यक्ति को उच्च पदों पर पहुँचने का अवसर प्राप्त होना चाहिए। इसके लिए कर्मचारियों को सीखने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। संगठन के पास या तो अपने संस्थान में ही प्रशिक्षण केन्द्र होता है या उन्हें अपने कर्मचारियों के सतत प्रशिक्षण हेतु अन्य प्रशिक्षण तथा शैक्षणिक संस्थाओं के साथ सम्बन्ध बनाने होते हैं। इस प्रक्रिया से न केवल संस्थान लाभान्वित होता है वरन् कर्मचारी का मनोबल बढ़ता है व कार्यक्षमता भी बढ़ती है। वे उपयुक्त ढंग से कार्य का निष्पादन करते हैं। इस प्रकार प्रशिक्षण एवं विकास संगठन की कार्यकुशलता तथा उसे प्रभावपूर्ण बनाने में योगदान देते हैं।
6. निष्पादन मूल्यांकन-निष्पादन मूल्यांकन का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि कर्मचारी अपने पदों की माँगों की पूर्ति करने में कितना सफल है। सुधार के लिए पुनर्निवेशन का होना आवश्यक है। इन मूल्यांकनों का उपयोग प्रशिक्षण, पदोन्नति एवं पारिश्रमिक से सम्बन्धित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। .
7. पदोन्नति एवं भविष्य नियोजन-संगठन में लोगों के उच्च पदों की ओर प्रगति की निरन्तर आवश्यकता होती है। कई कर्मचारी अपने वर्तमान पद के लिए अयोग्य सिद्ध हो रहे हैं इसलिए उनका उनके कौशल एवं रुचि के अनुसार पदों पर हस्तान्तरण कर दिया जाये। इस चरण में व्यक्तियों की पदोन्नति, हस्तान्तरण एवं अवनति से जुड़ी क्रियायें सम्मिलित हैं।
8. पारिश्रमिक-संस्था में मजदूरी अथवा वेतन का ढाँचा ऐसा होना चाहिए कि वह उचित हो एवं कर्मचारियों को आकर्षित कर सके। पारिश्रमिक एक ऐसा शब्द है जिसमें कर्मचारियों की सेवाओं के बदले, नियोक्ता द्वारा दिया जाने वाला भुगतान, प्रलोभन एवं सुविधाएँ सम्मिलित हैं। इनके अतिरिक्त कर्मचारियों को कुछ कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी आवश्यक हैं जो कर्मचारियों को भौतिक एवं वित्तीय सुरक्षा प्रदान करती हैं।
इस प्रकार नियुक्तिकरण एक प्रक्रिया के रूप में किसी भी संस्थान के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण संसाधन जो मानवीय पूँजी हैं, उनका अधिग्रहण, प्रशिक्षण तथा विकास करती है।
प्रश्न 11.
नियुक्तिकरण क्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा निष्यादित की जाती है तथा जरूरी नहीं है कि एक भिन्न विभाग द्वारा की जाये। समझाइये/स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियुक्तिकरण क्रिया की आवश्यकता संस्था के प्रत्येक स्तर पर होती है एवं यह भी आवश्यक नहीं कि केवल प्रबन्धकों द्वारा ही यह कार्य किया जाये। पर्यवेक्षक स्टाफ को बजट बनाने, दैनिक उत्पाद सूची तैयार करने, रिकार्ड रखने आदि के सम्बन्ध में नियुक्तिकरण कार्य की आवश्यकता होती है। मध्यस्तरीय प्रबन्धकों को भी नियुक्तिकरण कार्य की आवश्यकता होती है। उच्चस्तरीय प्रबन्धकों को भी अनेक कार्य करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।
आधारभूत रूप से सांगठनिक संरचना में नियुक्तिकरण प्रबन्ध के सभी स्तरों पर रिक्त पदों की पूर्ति करता है। कर्मचारी का चयन करते समय नियुक्तिकरण मानवीय तत्त्वों की मूल प्रकृति को सहजता प्रदान करता है। संगठन अभिवृत्ति, योग्यता, वचनबद्धता, निष्ठा जैसे महत्त्वपूर्ण गुणों को ध्यान में रखती है। इसे एक विशिष्ट क्षेत्र भी माना गया है तथा इस विषय पर विस्तृत ज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्त उपलब्ध है।
योग्य एवं कुशल कर्मचारी किसी भी व्यावसायिक संस्था को शीर्ष पर पहुँचा सकते हैं, जबकि अकुशल कर्मचारी व्यावसायिक संस्था को बन्द होने के कगार पर पहुँचा सकते हैं अतः नियुक्तिकरण सांगठनिक निष्पत्ति की अत्यन्त आधारभूत आवश्यकता है। आज के तीव्र तकनीकी विकास के समय में संगठन के बढ़ते हुए आकार तथा कर्मचारियों के व्यवहारों की जटिलताओं को देखते हुए संगठन में प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर नियुक्तिकरण प्रक्रिया का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। वैसे भी किसी भी संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति उसके मानवीय संसाधनों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। इसलिए नियुक्तिकरण एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकीय प्रक्रिया है। कोई भी संस्था तब तक सफल नहीं हो सकती है यदि वह अपनी सांगठनिक संरचना में विभिन्न पदों पर सही कर्मचारियों की नियुक्ति कर पाने में समर्थ न हो।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि नियुक्तिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो संस्था में प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा निष्पादित की जाती है। यह जरूरी नहीं कि यह एक भिन्न विभाग द्वारा ही की जाये।