RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन Important Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1. 
संगठन है-
(अ) व्यक्तियों का समूह 
(ब) क्रियाओं का समूह 
(स) अधिकारों का समूह 
(द) दायित्वों का समूह 
उत्तर:
(अ) व्यक्तियों का समूह 

प्रश्न 2. 
संगठन की विशेषताएँ हैं-
(अ) पूँजी प्रबन्ध का कार्य 
(ब) सतत प्रक्रिया 
(स) एक प्रणाली
(द) उपर्युक्त सभी 
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी 

प्रश्न 3. 
संगठन आवश्यक है-
(अ) उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए 
(ब) निर्देशन के लिए 
(स) नियन्त्रण के लिए
(द) सभी के लिए 
उत्तर:
(द) सभी के लिए 

प्रश्न 4. 
एक संगठन में किस का प्रत्यायोजन होता है-
(अ) सत्ता 
(ब) उत्तरदायित्व
(स) क्रिया 
(द) सत्ता एवं उत्तरदायित्व 
उत्तर:
(अ) सत्ता 

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

प्रश्न 5. 
प्रबन्ध के कार्यों में संगठन का कौनसा स्थान है?
(अ) प्रथम 
(ब) द्वितीय
(स) तृतीय 
(द) चतुर्थ 
उत्तर:
(ब) द्वितीय

प्रश्न 6. 
प्रबन्ध के सन्दर्भ में संगठन का अर्थ है-
(अ) केवल मानव के संगठन से 
(ब) केवल मनुष्यों के संगठन से 
(स) साधनों के संगठन से
(द) कार्यों के संगठन से 
उत्तर:
(द) कार्यों के संगठन से 

प्रश्न 7. 
संगठन प्रक्रिया का प्रथम चरण है-
(अ) कार्य की पहचान तथा विभाजन 
(ब) विभागीकरण 
(स) कर्तव्यों का निर्धारण
(द) वृत्तांत (रिपोर्टिंग) सम्बन्ध स्थापन 
उत्तर:
(अ) कार्य की पहचान तथा विभाजन 

प्रश्न 8. 
बड़े संगठनों में उच्चस्तरीय प्रबन्ध के कार्य के विभाजन के लिए उपयुक्त है-
(अ) समिति संगठन 
(ब) कार्यात्मक संगठन 
(स) रेखीय संगठन
(द) रेखा एवं कर्मचारी संगठन 
उत्तर:
(ब) कार्यात्मक संगठन 

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प्रश्न 9. 
प्रभागीय संगठन, किस सिद्धान्त पर आधारित है-
(अ) समन्वय के 
(ब) नियंत्रण के 
(स) उत्पाद विशिष्टीकरण
(द) सहभागिता के
उत्तर:
(अ) समन्वय के

प्रश्न 10. 
कार्यात्मक संगठन, किस सिद्धान्त पर आधारित है-
(अ) विशिष्टीकरण के 
(ब) समन्वय के
(स) सहभागिता के 
(द) नियन्त्रण के 
उत्तर:
(अ) विशिष्टीकरण के 

प्रश्न 11. 
केवल उच्च अधिकारी स्तर पर अधिकार संकेन्द्रित होना कहलायेगा-
(अ) आन्तरिकीकरण 
(ब) विकेन्द्रीकरण 
(स) विभागीकरण 
(द) केन्द्रीकरण
उत्तर:
(द) केन्द्रीकरण

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
"संगठन प्रक्रिया है।" स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
संगठन एक प्रक्रिया है जो योजनाओं को, कार्य के स्पष्टीकरण, कार्यशैली संबंध तथा संसाधनों तथा चिह्नित एवं इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त करता है।

प्रश्न 2. 
स्थायित्व के आधार पर औपचारिक संगठन एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर बताइये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन स्थायी एवं दीर्घकालीन होते हैं, जबकि अनौपचारिक संगठन अपेक्षाकृत कम स्थायी होते हैं अर्थात् ये प्रायः अस्थायी ही होते हैं।

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प्रश्न 3. 
स्थिति के आधार पर अधिकार अंतरण तथा विकेन्द्रीकरण में अंतर बताइये।
उत्तर:
स्थिति के आधार पर अधिकार अंतरण एक प्रक्रिया है जिसका कार्य विभाजन में अनुसरण किया जाता है जबकि विकेन्द्रीकरण शीर्ष प्रबंधकों द्वारा निर्धारित नीतियों का परिणाम है।

प्रश्न 4. 
प्रभागीय संगठन ढाँचा किन व्यावसायिक इकाइयों के लिए उपयुक्त है?
उत्तर:
प्रभागीय संगठन ढाँचा उन व्यावसायिक इकाइयों के लिए उपयुक्त है जहाँ विभिन्न प्रकार के उत्पादों का बड़ी भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है तथा जहाँ विभिन्न प्रकार के संसाधनों को प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 5. 
संगठन के महत्त्व के कोई दो बिन्दु लिखिए। 
उत्तर:

  • विशिष्टीकरण के लाभ 
  • कार्य करने में संबंधों का स्पष्टीकरण। 

प्रश्न 6. 
अधिकार अंतरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अधिकार अंतरण से केवल इतना ही आशय है कि अपने अधीनस्थों को निश्चित सीमाओं के अंतर्गत कार्य करने का अधिकार प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 7. 
संगठन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा. उपक्रम के कार्यों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंपकर उनके अधिकार सम्बन्धों को निश्चित किया जाता है।

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प्रश्न 8. 
अनौपचारिक संगठन का अर्थ लिखिये। .
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन ऐसा संगठन है जिसमें आपसी संबंध अज्ञानवश संयुक्त उद्देश्यों के लिए बनते

प्रश्न 9. 
एक ढांचे के रूप में 'संगठन' को परिभाषित करें।
उत्तर:
एक ढाँचे के रूप में संगठन का आशय संस्था में कार्यरत व्यक्तियों की संस्था में स्थिति, उनकी भूमिका, दायित्वों एवं अधिकारों एवं उनके सम्बन्धों को व्यक्त करने से है जिनमें उनके बीच सम्बन्ध होते हैं।

प्रश्न 10. 
अधिकार अंतरण के तत्त्व बतलाइये।
उत्तर:

  • अधिकार सौंपना 
  • उत्तरदायित्व डालना 
  • उत्तरदेयता या जवाबदेही निश्चित करना।

प्रश्न 11. 
औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर बताइये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन का निर्माण नियोजित होता है, जबकि अनौपचारिक संगठन का निर्माण आपसी सम्बन्धों के कारण होता है।

प्रश्न 12. 
अनौपचारिक संगठन की कोई दो विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  • सूचनाएँ शीघ्र पहँचती है। 
  • औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करता है।

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प्रश्न 13. 
संगठन प्रक्रिया के प्रमुख चरण गिनाइये।
उत्तर:

  • कार्य की पहचान तथा विभाजन 
  • विभागीकरण 
  • कर्तव्यों का निर्धारण करना 
  • वृत्तांत (रिपोर्टिंग सम्बन्धी स्थापन)।

प्रश्न 14. 
विभागीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब कार्य को छोटी-छोटी तथा प्रबन्धकीय क्रियाओं में विभक्त कर समान प्रकृति की क्रियाओं का साथ-साथ समूहन किया जाता है, तो यह विभागीकरण कहलाता है।

प्रश्न 15. 
विशिष्टीकरण क्या है ?
उत्तर:
विशिष्टीकरण से तात्पर्य है कि जो व्यक्ति जिस कार्य को करने में दक्ष है और योग्यता रखता है, उसको वही कार्य सौंपा जाना चाहिए।

प्रश्न 16. 
क्रियाओं का समूहीकरण क्या है?
उत्तर:
जब परस्पर सम्बन्धित एवं समान प्रकृति की क्रियाओं को एक श्रेणी या समूह में रखा जाता है तो इसे क्रियाओं का समूहीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 17. 
संगठन के महत्त्व को स्पष्ट करने वाले दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:

  • विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होना। 
  • संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग होना। 

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प्रश्न 18. 
संगठन ढाँचे के प्रमुख प्रकारों को गिनाइये।
उत्तर:
संगठन ढाँचे के प्रमुख प्रकार-

  • कार्यात्मक संगठन ढाँचा 
  • प्रभागीय संगठन ढाँचा।

प्रश्न 19. 
कार्यात्मक संगठन ढाँचे की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर:
इसमें समान प्रकृति के सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रखकर एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन कर दिया जाता है। सभी विभाग समन्वयकर्ता अध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं।

प्रश्न 20. 
कार्यात्मक संगठन ढाँचे के दो प्रमुख गुण बतलाइये।
उत्तर:

  • व्यावसायिक विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करना।
  • पुनरावृत्ति को कम करना फलतः आर्थिक बचत तथा लागत कम होना।

प्रश्न 21. 
कार्यात्मक संगठन ढाँचे के कोई दो दोष बतलाइये।
उत्तर:

  • संगठनात्मक हित की तरफ कम ध्यान देना।
  • अन्तर्विभागीय झगड़ों की अधिक सम्भावना।

प्रश्न 22. 
कार्यात्मक संगठन किन संस्थानों के लिए उपयुक्त माने जाते हैं ?
उत्तर:
वे संस्थान जो आकार में बहुत बड़े हैं, क्रियाओं में विविधता है, संचालन में उच्च कोटि के विशिष्टीकरण की आवश्यकता है।

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प्रश्न 23. 
प्रभागीय संगठन ढाँचे के दो प्रमुख गुण बतलाइये।
उत्तर:

  • किसी भी प्रभाग की लागत व आय की गणना आसानी से की जा सकती है।
  • प्रत्येक प्रभाग शीघ्र निर्णय ले सकता है।

प्रश्न 24. 
प्रभागीय संगठन ढाँचे के कोई दो दोष बतलाइये।
उत्तर:

  • विभिन्न प्रभागों में कोषों के आबंटन को लेकर झगड़े हो जाते हैं।
  • कार्य की बार-बार पुनरावृत्ति हो जाने से लागत मूल्य बढ़ जाता है।

प्रश्न 25. 
प्रभागीय संगठन ढाँचा किन व्यावसायिक संस्थानों के लिए उपयुक्त माना जाता है?
उत्तर:
(उन संस्थानों में) जहाँ विभिन्न प्रकार के उत्पादों का बड़ी भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है तथा जहाँ विभिन्न प्रकार के संसाधनों को प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 26. 
विकेन्द्रीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण से तात्पर्य केवल केन्द्रीय बिन्दुओं पर ही प्रयोग किए जाने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को अवस्थिति रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है।

प्रश्न 27. 
प्रभावी अंतरण के कोई दो गुण बताइये। 
उत्तर:

  • विकास का सरलीकरण 
  • कर्मचारियों का विकास 

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प्रश्न 28. 
संगठन एक सतत प्रक्रिया है। समझाइये।
उत्तर:
किसी उपक्रम में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्धकों को निरन्तर कार्य करना होता है। अतः यह एक सतत प्रक्रिया है।

प्रश्न 29. 
औपचारिक संगठन क्या है?
उत्तर:
औपचारिक संगठन वह संगठन है जिसमें कार्यरत व्यक्तियों के कर्तव्यों, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का स्पष्ट निर्धारण किया जाता है और आपसी सम्बन्धों को पहले से निर्धारित कर लिया जाता है।

प्रश्न 30. 
कार्यात्मक संगठन की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:

  • संगठन के कार्यों को कई भागों में बाँटना।
  • प्रत्येक विशिष्ट कार्य के लिए विशेषज्ञ की नियुक्ति होना।

प्रश्न 31. 
'अधिकारों के प्रवाह' के आधार पर औपचारिक संगठन एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर बतलाइये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन में अधिकारों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है, जबकि अनौपचारिक संगठन में अधिकारों का प्रवाह नीचे की ओर, ऊपर की ओर तथा समतल हो सकता है। 

प्रश्न 32. 
अधिकार से क्या आशय है?
उत्तर:
अधिकार से आशय निर्णय लेने की उस शक्ति से है जिससे दूसरे के कार्य को निर्देशित किया जा सके।

प्रश्न 33. 
अधिकार अन्तरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अधिकार अन्तरण से आशय दूसरों को अधीनस्थ कार्य सौंपना तथा उनके संम्बन्ध में आवश्यक अधिकारों को प्रदान करना है।

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प्रश्न 34. 
अधिकारों के केन्द्रीकरण से क्या आशय है?
उत्तर:
अधिकारों के केन्द्रीकरण से आशय निर्णयन के अधिकार उच्च प्रबन्ध द्वारा अपने पास ही रखने से है।

प्रश्न 35. 
अधिकारों के विकेन्द्रीकरण का क्या अर्थ है?
उत्तर:
अधिकारों के विकेन्द्रीकरण का अर्थ उच्चाधिकारी द्वारा अपने अधिकारों एवं दायित्वों को अपने अधीनस्थों को सौंपने से है।

प्रश्न 36. 
अधिकार अन्तरण करते समय प्रबन्ध को किन बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए?
उत्तर:

  • अधिकार दायित्व के अनुकूल होने चाहिए।
  • अधिकार क्षेत्र स्पष्ट होने चाहिए। 

प्रश्न 37. 
उत्तरदायित्व क्या है ? 
उत्तर:
एक अधीनस्थ कर्मचारी के लिए सौंपे गये कार्य का भली-भाँति निष्पादन करना उसका उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 38. 
जवाबदेही से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जवाबदेही से तात्पर्य अन्तिम परिणाम का उत्तर देने योग्य होने से है।

प्रश्न 39. 
अन्तरण के महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (कोई दो बिन्दु)
उत्तर:

  • कर्मचारियों का विकास होना। 
  • कर्मचारियों को प्रेरणा मिलना।

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प्रश्न 40. 
अधिकार अन्तरण की कोई दो सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:

  • निर्धारित सीमाओं में ही प्रत्यायोजन 
  • अधीनस्थों की क्षमतानुसार प्रत्यायोजन।

प्रश्न 41. 
किन कार्यों का अन्तरण नहीं किया जा सकता है? 
उत्तर:
समन्वय एवं नियन्त्रण सम्बन्धी कार्यों का प्रत्यायोजन नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 42. 
क्षेत्र के आधार पर अधिकार अन्तरण तथा विकेन्द्रीकरण में अन्तर कीजिये।
उत्तर:
अधिकार अन्तरण का क्षेत्र सीमित होता है; जबकि विकेन्द्रीकरण का क्षेत्र विस्तृत होता है।

प्रश्न 43. 
विकेन्द्रीकरण के महत्त्व लिखिए।
उत्तर:

  • अधीनस्थों में पहल भावना का विकास करना।
  • भविष्य के लिए प्रबंधकीय प्रतिभा का विकास करना।
  • शीर्ष प्रबंध को राहत।
  • शीघ्र निर्णय 

लघूत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
आपके दृष्टिकोण से प्रभागीय संगठन ढांचे के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:
प्रभागीय संगठन ढाँचे के दो दोष निम्न प्रकार हैं-

  • संघर्ष-विभिन्न प्रभागों में कोषों के आवंटन को लेकर संघर्ष की स्थिति बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त कोई विशेष प्रभाग, अन्य प्रभागों की कीमत पर अधिक लाभ की कोशिश कर सकता है।
  • लागत मूल्य बढ़ाना-प्रभागीय संगठन में काम की बार-बार दोहराई हो जाने से लागत मूल्य बढ़ जाता है। क्योंकि जब प्रत्येक प्रभाग को एक ही कार्य कराने के लिए अलग सामग्री दी जायेगी तो लागत मूल्य बढ़ेगा ही।

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प्रश्न 2. 
विशिष्टीकरण के आधार पर कार्यात्मक संगठन एवं प्रभागीय संगठन में अन्तर बताइये।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन-कार्य विशिष्टीकरण के आधार पर संगठित किया जाता है। इसमें विशिष्ट कार्य पर ही बल दिया जाता है।

प्रभागीय संगठन-उत्पाद विशिष्टीकरण के आधार पर संगठित किया जाता है। प्रत्येक प्रभाग में विशिष्ट उत्पाद से सम्बन्धित विभिन्न कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

प्रश्न 3. 
विकेन्द्रीकरण के महत्त्व के कोई दो बिन्दु समझाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण के महत्त्व के कोई दो बिन्दु निम्न प्रकार हैं-
(1) अधीनस्थों में पहलपन की भावना का विकास-विकेन्द्रीकरण से अधीनस्थों में पहल भावना का विकास होता है। यह अधीनस्थों में आत्मविश्वास तथा भरोसे की भावना को जागृत करता है। विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थों को अपने स्वयं के निर्णयों के अनुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता दी जाती है। इससे ऐसे प्रतिभावान कर्मचारियों की खोज में भी सहायता मिलती है जो भविष्य में अच्छा नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं।

(2) शीघ्र निर्णय-विकेन्द्रीकरण में निर्णय कार्यस्थल पर ही लिये जाते हैं तथा उच्च अधिकारियों या अन्य स्तरों से किसी प्रकार की अनुमति या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। अतः निर्णय शीघ्रता से लिये जाते हैं।

प्रश्न 4. 
औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर:
औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर-
(1) उद्गम-औपचारिक संगठन का उद्गम कम्पनी की नीतियों तथा नियमों के परिणामस्वरूप होता है, जबकि अनौपचारिक संगठन का उद्गम सामाजिक अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप होता है।

(2) अर्थ-औपचारिक संगठन में अधिक सम्बन्धों का ढाँचा प्रबन्ध तैयार करता है, जबकि अनौपचारिक संगठन में सामाजिक सम्बन्धों का तंत्र (नेटवर्क) कर्मचारियों की अन्तःक्रिया से तैयार होता है। 

प्रश्न 5. 
प्रभागीय संगठन ढाँचे के दो गुण समझाइये। 
उत्तर:
(1) प्रभाग अध्यक्ष पदोन्नति के लिए तैयार-प्रभाग अध्यक्ष की, उत्पाद विशेषीकरण, उसकी प्रवीणता को विकसित करते हैं जिससे वे उच्च पदों (स्थानों) पर पदोन्नति के लिए तैयार हो जाते हैं; क्योंकि वे किसी विशेष उत्पाद से सम्बन्धित सभी कार्यों का अभ्यास कर लेते हैं।

(2) प्रभाग अध्यक्ष लाभ के लिये जवाबदेयप्रभाग अध्यक्ष लाभ के लिए जवाबदेय होते हैं। किसी भी प्रभाग से सम्बन्धित लागत तथा लाभ की गणना आसानी से की जा सकती है तथा उसे निर्धारित की जा सकती है और इससे कार्य-निष्पादन गणना को सही आधार मिल जाता है। यह उत्तरदायित्व निश्चित करने में भी सहायता करता है। यदि किसी प्रभाग का कार्य सन्तोषप्रद नहीं हो तो समुचित सुधारात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

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प्रश्न 6. 
संगठन को व्यक्तियों के एक समूह के रूप में परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
संगठन का आशय व्यक्तियों के एक समूह से होता है, जिनमें परस्पर सम्बन्ध होते हैं और वे समान उद्देश्य के लिए मिलकर कार्य करते हैं। लुइस ऐलन के अनुसार, "संगठन एक प्रक्रिया है जो कार्य को समझने तथा वर्गीकरण करने, अधिकार अंतरण को परिभाषित करने तथा मनुष्यों को अत्यधिक कार्य कुशलता के साथ, लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए संबंध स्थापित करता है। थ्यो हैमैन के अनुसार, "संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपक्रम के कार्यों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंपकर उनके अधिकार संबंधों को निश्चित किया जाता है।"

स्पष्ट है कि संगठन व्यक्तियों का वह समूह होता है जो किसी सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 7. 
किस अवस्था में कार्यात्मक ढाँचा एक उपयुक्त विकल्प सिद्ध होता है ?
अथवा 
क्रियात्मक संगठन ढाँचा किन परिस्थितियों में उपयुक्त रहता है?
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन ढाँचे की संरचना समस्त कार्यों को बड़े-बड़े कार्यात्मक विभागों में वर्गीकृत करके की जाती है अर्थात् समान प्रकृति वाले सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रखकर एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन कर दिया जाता है। सभी विभाग समन्वयकर्ता अध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं। इस प्रकार का संगठन उन संस्थानों के लिए अति उपयुक्त है जो आकार में बहुत बड़े हैं तथा जहाँ क्रियाओं में विविधता है तथा संचालन में अत्यधिक विशिष्टीकरण की आवश्यकता होती है।

लुईस ए. ऐलन के अनुसार, "संगठन एक प्रक्रिया है जो कार्य को समझने तथा वर्गीकरण करने, अधिकार अंतरण करने को परिभाषित करने तथा मनुष्यों को अत्यधिक कार्यकुशलता के साथ, लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए सम्बन्ध स्थापित करता है।"

निष्कर्ष-संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यों का विभाजन, उनका विभिन्न व्यक्तियों को सौंपना तथा संस्था के सभी अंगों को एक सूत्र में बाँधने के लिए विशिष्ट विभागों में सामञ्जस्य स्थापित करना सम्मिलित होता है।

प्रश्न 8. 
संगठन के महत्त्व के दो बिन्दुओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संगठन का महत्त्व
1. विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होना-संगठन से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं। यह विशिष्टीकरण को बढ़ावा भी देता है। संगठन, कार्यालय में विभिन्न क्रियाओं के नियमानुसार आबंटन में मार्गदर्शन का कार्य करता है। कर्मचारियों द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से कार्य का बोझ भी कम हो जाता है तथा कर्मचारी दक्षता से कार्य करते हैं, फलतः उत्पादन की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसके साथ ही लगातार एक ही कार्य करते रहने से कर्मचारी उस कार्य का अच्छा अनुभव एवं दक्षता प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार संगठन से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।

2. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग-संगठन के द्वारा सभी भौतिक, वित्तीय एवं मानवीय संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है। इसमें कार्य का उचित विभाजन एवं आबंटन होता है। कार्य के दोहरेकरण की समस्या से छुटकारा दिलाता है। जिससे प्रयासों तथा संसाधनों के अपव्यय को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 9. 
संगठन कार्मिकों का विकास करता है। स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर:
संगठन, प्रबन्धकों में सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है। प्रबन्धकों द्वारा अपने अधीनस्थों को दैनिक कार्यों के अधिकार अन्तरण से इनका कार्यभार हल्का हो जाता है। अधिकारं अन्तरण से विभिन्न स्तर के प्रबन्धकों को कार्य करने के नये तरीकों को विकसित करने का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे उन्हें संस्था की प्रतिस्पर्धी अवस्था को सुदृढ़ बनाने तथा नवीनीकरण के लिए नये क्षेत्र तथा विकास के लिए सुअवसर प्राप्त होते हैं। अधिकार अन्तरण अधीनस्थ कर्मचारियों को चुनौतियों का प्रभावपूर्ण ढंग से मुकाबला करने तथा अपनी सामर्थ्य को समझने में सहायता प्रदान करता है। इस प्रकार संगठन कार्मिकों के विकास में अत्यधिक सहयोग करता है।

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प्रश्न 10. 
'प्रबन्ध का विस्तार' मद किसका द्योतक है?
उत्तर:
प्रबन्ध का विस्तार अधिकार अन्तरण से कोई प्रबन्धक अपने दायित्व से मुक्त नहीं होता। अतः उसे सौंपे गये अधिकारों का उचित उपयोग करवाने के लिए अपने अधीनस्थों का निरन्तर निर्देशन व नियन्त्रण करना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति की नियन्त्रण क्षमता सीमित होती है और एक समय में वह अनगिनत व्यक्तियों के कार्यों का नियन्त्रण नहीं कर सकता, क्योंकि उसके पास सीमित समय, सीमित ज्ञान तथा सीमित अवलोकन शक्ति होती है। नियन्त्रण क्षमता की सीमा का अर्थ अधीनस्थों की ऐसी संख्या जिन पर एक प्रबन्ध प्रभावशाली नियन्त्रण रख सकता है।

प्रश्न 11. 
क्या यह कथन सत्य है कि "सत्ता का अधिकार अंतरण होता है, उत्तरदायित्व का नहीं।" समझाइये।
उत्तर:
जिन व्यक्तियों को संगठन में कार्य सौंपे जाते हैं, उन्हें कार्य-निष्पादन के लिए आवश्यक अधिकार भी प्रदान किये जाते हैं, ये अधिकार सौंपे गये कार्य को करने के लिए पर्याप्त होने चाहिए। एक सुदृढ़ संगठन वही माना जाता है जिसमें अधीनस्थों को पर्याप्त अधिकार दिये जायें ताकि वे सौंपे गये कार्य को अच्छी तरह से सम्पन्न कर सकें। अधिकारों के साथ-साथ अधीनस्थों के उत्तरदायित्व भी निश्चित किये जाने चाहिए; क्योंकि अधिकार एवं उत्तरदायित्व दोनों साथ-साथ चलने चाहिए। कोई भी अधिकारी अधिकारों का प्रत्यायोजन कर सकता है किन्तु उत्तरदायित्वों का प्रत्यायोजन करके अपने उत्तरदायित्व से मुक्त नहीं हो सकता है। सामान्यतः अधीनस्थ अपने कार्यनिष्पादन के लिए अपने उच्च अधिकारों के प्रति उत्तरदायी होता है। फिर भी अधीनस्थों के कार्य निष्पादन के लिए उच्च अधिकारी का ही दायित्व अन्तिम होता है। अत: यह कथन सत्य है कि, “अधिकार अथवा सत्ता का अधिकार अंतरण होता है, उत्तरदायित्व का नहीं।" 

प्रश्न 12. 
संगठन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
संगठन की प्रमुख विशेषताएँ-

  • संगठन व्यक्तियों का एक समूह होता है, जो अधिकारी के नेतृत्व एवं निर्देशन में कार्य करता है। 
  • संगठन का एक सामान्य उद्देश्य होता है। यह इन सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। 
  • संगठन प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। 
  • संगठन एक निरन्तर एवं सतत चलने वाली प्रक्रिया
  • संगठन सहकारी सम्बन्ध स्थापित करने की पद्धति है। 
  • संगठन में आदेश श्रृंखला का अनुसरण किया जाता
  • संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कार्य का व्यवस्थित आधार पर विभाजन किया जाता है। 
  • संगठन एक संरचना या ढाँचा है, जो संगठन में काम करने वाले व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों के अन्तर्जाल को स्पष्ट करता है। 
  • संगठन एक प्रणाली है जो विभिन्न उप-प्रणालियों का संयोजन है।

प्रश्न 13. 
कार्यात्मक संगठन की कोई छः विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन की विशेषताएँ

  • कार्य का विभाजन-कार्यात्मक संगठन में प्रकृति के आधार पर संगठन के कार्य को छोटे-छोटे कई भागों में विभाजित किया जाता है। 
  • विशेषज्ञ की नियुक्ति-कार्यात्मक संगठन में प्रत्येक विशिष्ट कार्य के लिए उस कार्य के विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाती है।
  • विशेषज्ञ को आदेश-निर्देश देने का अधिकार- कार्यात्मक संगठन में विशेषज्ञ को अपने अधीनस्थों को आदेश एवं निर्देश देने का अधिकार होता है। 
  • निर्णयन से पूर्व विशेषज्ञों का परामर्श आवश्यक-इसमें निर्णय लेने से पूर्व कार्यात्मक विशेषज्ञों से परामर्श करना आवश्यक होता है। इससे निर्णय अधिक सुदृढ़ होते हैं।
  • विशिष्टीकरण पर बल-इसमें विशिष्टीकरण को अपनाया जाता है। इसमें विशेषज्ञ रेखा अधिकारी के समान ही निर्णय लेने का कार्य करते हैं। विशेषज्ञ अपनेअपने कार्य में दक्ष होते हैं।
  • आदेश की एकता का अभाव-कार्यात्मक संगठन में कर्मचारियों को एक साथ अलग-अलग विशेषज्ञ अधिकारियों से आदेश प्राप्त होते हैं और सभी के आदेशों का पालन किया जाता है।

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प्रश्न 14. 
औपचारिक संगठन के प्रमुख गुणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के प्रमुख गुण

  • उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसानऔपचारिक संगठन में उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसान होता है; क्योंकि आपसी सम्बन्ध स्पष्ट रूप से समझाये हुए होते हैं।
  • भ्रम की स्थिति नहीं-औपचारिक संगठन में भ्रम की स्थिति नहीं रहती है; क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य एवं अधिकार स्पष्ट होते हैं। 
  • आदेश की एकता-औपचारिक संगठन में आदेश की श्रृंखला के स्थापन से आदेश की एकता बनी रहती है। 
  • प्रभावी कार्य निष्पादन-कार्य संचालन की सुनिश्चितता तथा प्रत्येक कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले कार्य की उन्हें जानकारी होने से कार्य का सम्पादन प्रभावपूर्ण ढंग से होता है। .
  • संगठन में स्थायित्व-औपचारिक संगठन में स्थायित्व आता है। कर्मचारियों के व्यवहार को भी आसानी से ज्ञात किया जा सकता है। क्योंकि इनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट नियम होते हैं।

प्रश्न 15. 
औपचारिक संगठन के प्रमुख दोष बतलाइये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के प्रमुख दोषऔपचारिक संगठन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

  • औपचारिक संगठन में आदेश की श्रृंखला का पालन करना पड़ता है जिससे कार्यविधिक विलंब के कारण, निर्णय लेने में अधिक समय लगता है।
  • संगठन की अवांछित पद्धतियाँ रचनात्मक प्रतिभा को समुचित मान्यता नहीं दे पातीं क्योंकि निर्धारित कठोर नीतियाँ किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होने देती। 
  • किसी भी संगठन में सभी मानवीय संबंधों को समझ पाना कठिन होता है। क्योंकि ये ढाँचे और कार्य पर अधिक बल देते हैं। अतः औपचारिक संगठन से किसी संस्थान के कार्य करने की सही तस्वीर सामने नहीं आ पाती।

प्रश्न 16. 
अनौपचारिक संगठन के प्रमुख लक्षणों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन के प्रमुख लक्षणअनौपचारिक संगठन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • इसमें उत्तरदायित्व को निर्धारित करना आसान होता है क्योंकि आपसी संबंध स्पष्ट रूप से समझाए हुए होते हैं।
  • इसमें भ्रम की स्थिति नहीं पाई जाती क्योंकि प्रत्येक सदस्य के कर्त्तव्य एक-एक करके बतलाए हुए होते हैं। इससे पुनरावृत्ति भी नहीं होती।
  • आदेश श्रृंखला के स्थापन से आदेश की एकता बनी रहती है।
  • कार्य संचालन की सुनिश्चितता तथा प्रत्येक कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले कार्य की उन्हें जानकारी होने से कार्य का संपादन प्रभावपूर्ण ढंग से होता है।
  • इससे संगठन में स्थायित्व आता है। कर्मचारियों के व्यवहार को भी आसानी से ज्ञात किया जा सकता है क्योंकि उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट नियम होते हैं।

प्रश्न 17. 
अनौपचारिक संगठन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का अर्थअनौपचारिक संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसकी रचना सोच-समझकर तथा जान कर नहीं की जाती है; अपितु आपसी सम्बन्धों, रुचियों तथा समान हितों के कारण स्वतः होती है चेस्टर बनोई के अनुसार, "वह संगठन अनौपचारिक है जिसमें आपसी संबंध अज्ञानवश संयुक्त उद्देश्यों के लिए बनते हैं।" इस प्रकार अनौपचारिक संगठन संस्था में कार्यरत कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों का एक ऐसा जाल है जिसकी स्थापना के लिए उच्च प्रबन्धकों की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। संस्था में काम करने वाले व्यक्तियों के बीच आपसी सम्बन्धों का विकास स्वतः ही आपसी सम्पर्क से होता है। इससे कर्मचारियों में आपसी स्नेह एवं आत्मीयता को बढ़ावा मिलता है।

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प्रश्न 18. 
अधिकार अन्तरण से आप क्या समझते
उत्तर:
अधिकार अन्तरण का अर्थ-वर्तमान समय में व्यावसायिक क्रियाओं में बढती हई तकनीकी व नियमों की जटिलता तथा कार्य विस्तार के कारण यह सम्भव नहीं है कि कोई अकेला व्यक्ति सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक कर सके। वैसे भी एक व्यक्ति की शक्ति व समय दोनों ही सीमित होते हैं। अत: आज के समय में यह नितान्त आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का अन्तरण करे। अधिकारों का अन्तरण करके ही संगठन के समस्त कार्यों का कुशलतापूर्वक निष्पादन किया जा सकता है।

लूइस ऐलन के अनुसार, "अंतरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे अपनाकर प्रबंधक अपने कार्यों को इस प्रकार विभाजित करता है जिससे कि वह संपूर्ण कार्य के केवल उस भाग का निष्पादन करे जिसे केवल वह स्वयं ही, संगठन में अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण, प्रभावशाली ढंग से, कर सकता है और इस प्रकार वह शेष कार्य को पूरा कराने के लिए आप लोगों की सहायता प्राप्त करता है।"

निष्कर्ष-अधिकारों के अन्तरण से आशय दूसरों को कार्य सौंपना तथा उनके सम्बन्ध में आवश्यक अधिकारों को प्रदान करना है। यह वह अधिकार है।

प्रश्न 19. 
उत्तरदेयता या जवाबदेही पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
उत्तरदेयता या जवाबदेही-जवाबदेही या उत्तरदेयता से तात्पर्य अन्तिम परिणाम का उत्तर देने योग्य होने से है। यदि एक बार अधिकार अन्तरित हो जाता है तथा उत्तरदायित्व स्वीकार कर लिया जाता है तो भी कोई जवाबदेही से इनकार नहीं कर सकता। उत्तरदेयता का न तो अन्तरण ही सम्भव है और न ही इसका प्रवाह ऊपर की ओर होता है। तात्पर्य यह है कि अन्तरण या भारार्पण की दशा में अधीनस्थ कर्मचारी ही अपने अधिकारी को कार्य को सही तरीके से पूरा करने के लिए जवाबदेह होता है। इससे यह प्रकट होता है कि अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य के सही सम्पादन के सन्दर्भ में अपने प्रबन्धक को आश्वस्त करना होता है। सामान्य तौर पर निरन्तर प्रति पुष्टि द्वारा कार्य के पूर्ण करने के लिए दबाव बनाया जाता है। अधीनस्थ कर्मचारी से यह आशा की जाती है कि वह अपनी कार्यवाही की घटनाओं या परिणाम या भूलों के विषय में बतलायेगा।

प्रश्न 20. 
अन्तरण प्रभावी संगठन का मूलभूत तत्त्व है। स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
अधिकार अन्तरण के तत्त्व जैसे अधिकार, उत्तरदायित्व तथा उत्तरदेयता, क्षमता कर्त्तव्यों और जवाबदेही जो संगठन में विभिन्न स्तरों से सम्बन्धित होते हैं, जो संगठन को व्यक्त करने में सहायता करते हैं। इससे कर्तव्यों की लीपापोती तथा पुनरावृत्ति रुकती है; क्योंकि प्रत्येक स्तर पर क्या करना है, इसकी स्पष्ट व्याख्या की हुई होती है। इस प्रकार का स्पष्टीकरण विभिन्न विभागों, स्तरों तथा प्रबन्ध के कार्यों में प्रभावी सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अन्तरण प्रभावी संगठन का मूलभूत तत्त्व है।

प्रश्न 21. 
विकेन्द्रीकरण का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण का अर्थ-विकेन्द्रीकरण से तात्पर्य उस विधि से है जिसमें निर्णय लेने का उत्तरदायित्व सोपानिक क्रम में विभिन्न स्तरों में विभाजित किया जाता है। सरल शब्दों में, विकेन्द्रीकरण का अर्थ संगठन के प्रत्येक स्तर पर अधिकार अन्तरण करना होता है। निर्णय लेने का अधिकार निम्नतम स्तर तक प्रबन्ध को दिया जाता है। वस्तुतः विकेन्द्रीकरण में निर्णय लेने का अधिकार आदेश की श्रृंखला में नीचे तक दिया जाता है।

लुईस ए. ऐलन के अनुसार, “विकेन्द्रीकरण से तात्पर्य केवल केन्द्रीय बिन्दुओं पर ही प्रयोग किये जाने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है।"

हेनरी फेयोल के अनुसार, "हर, वह कदम जो अधीनस्थों की भूमिका के महत्त्व को बढ़ाता है, विकेन्द्रीकरण कहलाता है।"

निष्कर्ष-विकेन्द्रीकरण का आशय निर्णय लेने के अधिकारों को कार्यस्थल के स्तर तक विभाजित करने से है। इसमें अधीनस्थ कर्मचारियों की भूमिका को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

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प्रश्न 22. 
विकेन्द्रीकरण के प्रमुख लक्षणों को गिनाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण के प्रमुख लक्षण

  • विकेन्द्रीकरण में अधिक से अधिक निर्णय प्रबन्ध के निम्न स्तर पर कार्यरत अधीनस्थों द्वारा लिये जाते
  • विकेन्द्रीकरण की स्थिति में अधिकांश कार्य निम्न स्तर के निर्णयों से प्रभावित होते हैं। 
  • विकेन्द्रीकरण की स्थिति में संगठन में अधीनस्थों की भूमिका का महत्त्व बढ़ जाता है। 
  • विकेन्द्रीकरण के अन्तर्गत सम्पूर्ण संगठन का प्रशासनिक कार्य उपविभागों में बाँट दिया जाता है। 
  • विकेन्द्रीकरण में केन्द्रीय नियन्त्रण व्यवस्था होती है। 
  • विकेन्द्रीकरण संगठन के निम्न स्तर पर अधिकारों के अन्तरण का एक व्यवस्थित प्रयास है। 
  • इसमें निर्णयन प्रक्रिया में उपक्रम के सभी स्तर के कर्मचारियों को भागीदार बनाने का प्रयास किया जाता है।
  • विकेन्द्रीकरण की स्थिति में निम्न स्तरीय प्रबन्धकों को निर्णय लेने में उच्चाधिकारियों की सहायता एवं मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है।

प्रश्न 23. 
अधिकारों के विकेन्द्रीकरण के प्रमुख दोष बतलाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण के प्रमुख दोष-

  • एक विकेन्द्रीकृत संस्था में योग्य एवं कुशल कर्मचारियों का पूरा-पूरा लाभ उठाया जाना सम्भव नहीं है। 
  • अधिक विकेन्द्रीकरण की स्थिति संस्था को विशिष्टीकरण के लाभों से वंचित कर देती है। 
  • विकेन्द्रीकरण संस्था में नीतियों की समानता एवं समन्वय को समाप्त कर देता है। 
  • विकेन्द्रीकरण से कार्यों का दोहराव होने लगता है। 
  • विकेन्द्रीकरण को अपनाये जाने पर संकटकालीन स्थिति में शीघ्र निर्णय लेना सम्भव नहीं हो पाता है। 
  • संगठन में शीघ्र ही परिवर्तन करना कठिन हो जाता है।
  • विकेन्द्रीकरण के अपनाये जाने से संस्था के निर्णयों में एकरूपता नहीं हो पाती है। 
  • विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था से संस्था की संचालन लागत बढ़ जाती है। 
  • विकेन्द्रीकृत संगठन में कार्य करने के लिए कुशल एवं कार्य करने के इच्छुक व्यक्तियों का पाया जाना भी कठिन ही है।

प्रश्न 24. 
अधिकारों के केन्द्रीकरण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकारों के केन्द्रीकरण का अर्थ-जब किसी व्यावसायिक संगठन में अधिकांश निर्णय नियमित रूप से उच्च अधिकारियों द्वारा ही लिये जायें और मध्यस्तरीय और निम्नस्तरीय अधिकारियों का मुख्य कार्य केवल इन निर्णयों को स्पष्ट करना व लागू करना हो तो ऐसी स्थिति को केन्द्रीकरण की स्थिति कहते हैं। इस प्रकार केन्द्रीकरण का आशय निर्णयन के अधिकार का उच्च प्रबन्ध द्वारा उसके पास ही रखा जाना है।

निष्कर्ष के रूप में, केन्द्रीकरण की स्थिति में अधिकांश निर्णय उच्चाधिकारियों द्वारा ही लिये जाते हैं, जिससे संगठन के निम्न स्तरों पर कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों का महत्त्व घट जाता है।

प्रश्न 25. 
अधिकारों के केन्द्रीकरण के प्रमुख लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
अधिकारों के केन्द्रीकरण के प्रमुख लक्षण 

  • अधिकारों के केन्द्रीकरण के अन्तर्गत सभी प्रकार के निर्णय उच्चाधिकारियों द्वारा लिये जाते हैं। 
  • इसमें अधीनस्थों द्वारा केवल उच्चाधिकारियों से प्राप्त आदेश-निर्देशों का क्रियान्वयन किया जाता है। 
  • अधिकारों के केन्द्रीकरण की स्थिति में प्रत्यायोजन का पूर्ण अभाव होता है। 
  • केन्द्रीकरण में अधीनस्थों अथवा निम्नस्तरीय कर्मचारियों का निर्णयन प्रक्रिया में कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं होता है।
  • केन्द्रीकरण में सम्पूर्ण अधिकार उच्चाधिकारी के हाथों में होते हैं।
  • केन्द्रीकरण व्यवस्था केवल छोटे आकार के उपक्रमों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 

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प्रश्न 26. 
केन्द्रीकरण के प्रमुख लाभ बतलाइये।
उत्तर:
केन्द्रीकरण के प्रमुख लाभ-

  • केन्द्रीकरण में समान नीतियों का पालन किया जाना सम्भव होता है। 
  • केन्द्रीकरण की स्थिति में समन्वय का कार्य आसान होता है। 
  • केन्द्रीकरण से विशिष्टीकरण एवं प्रमापीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।
  • केन्द्रीकरण में संस्था के अधिकारों एवं दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या की जानी सम्भव होती है। 
  • केन्द्रीकरण में उच्च कुशलता प्राप्त कर्मचारियों की सेवा का पूरा-पूरा फायदा उठाया जा सकता है। 
  • केन्द्रीकरण की स्थिति में संस्था में परिवर्तन परिस्थितियों के अनुसार आसानी से किया जा सकता है। 
  • केन्द्रीकरण में कर्मचारियों के खाली समय का सदुपयोग किया जाना सम्भव हो जाता है। 
  • संस्था में नये-नये कर्मचारियों को अच्छा प्रशिक्षण दिया जाना सम्भव होता है। 
  • केन्द्रीकरण. में कई प्रशासकीय समस्याओं की समाप्ति की जाती है। 

प्रश्न 27. 
केन्द्रीकरण के प्रमुख दोष बतलाइये।
उत्तर:
केन्द्रीकरण के प्रमुख दोष-

  • उच्च प्रबन्धकों का काफी अधिक समय एवं शक्ति दिन-प्रतिदिन के कार्यों में लग जाता है।
  • अधीनस्थों में प्रबन्धकीय ज्ञान का विकास नहीं हो पाता है। 
  • केन्द्रीकरण में निम्न स्तर पर कार्यों में शीघ्रता लाना प्रायः असम्भव होता है; क्योंकि प्रत्येक कार्य के लिए ऊपर से अधिकार प्राप्त करने होते हैं। 
  • केन्द्रीकरण में निम्न स्तर के कार्यों के सम्बन्ध में निर्णय उच्च अधिकारी ही लेते हैं। अतः अच्छे संचार की व्यवस्था भी नहीं हो पाती है। 
  • केन्द्रीकरण से अधीनस्थ अधिकारियों के मनोबल, रुचि आदि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 
  • केन्द्रीकरण में अनौपचारिक समूहों का लाभ नहीं उठाया जा सकता है।
  • केन्द्रीकरण में अधीनस्थों का महत्त्व समाप्त हो जाता है और उनके द्वारा कोई निर्णय लागू नहीं किये जाते हैं।

प्रश्न 28. 
अधिकार अन्तरण की सफलता के लिए आवश्यक बातें बतलाइये।
उत्तर:
अधिकार अन्तरण की सफलता के लिए आवश्यक बातें-

  • अधिकारी को अपने अधिकारों एवं दायित्वों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। 
  • अधीनस्थों को अन्तरित किये जाने वाले अधिकारों को निश्चित कर लेना चाहिए। 
  • अधिकारी को अपने अधीनस्थों की योग्यता एवं कमजोरियों का पूरा-पूरा ज्ञान होना चाहिए। 
  • अधिकारी को अधीनस्थों को अन्तरित किये जाने वाले समस्त अधिकारों को समझा देना चाहिए। 
  • जहाँ तक सम्भव हो सके निर्णय अधीनस्थों के विवेक पर ही छोड़ दिये जाने चाहिए। 
  • अधिकारी को अपनी अधिकार-सीमा में ही अधिकारों का अन्तरण करना चाहिए। 
  • अन्तरित किये गये अधिकारों के लिए कुशल नियन्त्रण व्यवस्था होनी चाहिए। 
  • अधिकारियों को प्रत्यायोजन की आवश्यकता एवं महत्त्व को भली-भाँति समझ लेना चाहिए। 
  • अधिकारी को उन निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जिन्हें अधीनस्थ लेने की स्थिति में हों।

प्रश्न 29. 
आप संगठन को संज्ञा व क्रिया के रूप में कैसे परिभाषित करेंगे?
उत्तर:
संगठन संज्ञा के रूप में-जब हम 'संगठन' शब्द को संज्ञा के रूप में लेते हैं तो 'संगठन' शब्द व्यक्तियों के किसी समूह या किसी संस्था की ओर इंगित करता है। यह व्यक्तियों के किसी ऐसे समूह या संस्था की ओर इंगित करता है जिनमें आपसी सम्बन्ध होते हैं और इसके सदस्य किसी एक नेता के नेतृत्व में कार्य करते हुए अपने सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति करते है।

इस प्रकार संगठन व्यक्तियों का समूह, संस्था या तंत्र है जो निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर समन्वित रूप से प्रयास करता है।

संगठन एक क्रिया के रूप में-'संगठन' शब्द को जब क्रिया के रूप में प्रयुक्त किया जाता है तो यह शब्द संगठन करने के कार्य की ओर इंगित करता है। अत: संगठन से तात्पर्य उन सभी क्रियाओं को करने से है जिनके द्वारा संगठन संरचना का निर्माण एवं संचालन किया जाता है।

इस प्रकार संगठन क्रिया के रूप में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी संस्था की सम्पूर्ण क्रियाओं को निश्चित एवं वर्गीकृत किया जाता है, विभिन्न व्यक्तियों के बीच अधिकारों एवं दायित्वों का विभाजन किया जाता है तथा उन सभी व्यक्तियों के बीच आपसी सम्बन्धों की स्थापना की जाती है।

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प्रश्न 30. 
अधिकार प्रत्यायोजन (अधिकार अन्तरण) की प्रक्रिया के प्रथम चार चरणों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये।
अथवा 
अधिकार अन्तरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अधिकार प्रत्यायोजन (अधिकार अन्तरण) की प्रक्रिया-अधिकार प्रत्यायोजन (अधिकार अन्तरण) की प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं-
1. अपेक्षित परिणामों का निर्धारण करनाअन्तरण प्रक्रिया के अन्तर्गत सर्वप्रथम अपेक्षित परिणामों का निर्धारण कर लिया जाना चाहिए। तत्पश्चात् अपेक्षित परिणामों के अनुकूल ही अधिकारों का अन्तरण किया जाना चाहिए। एक व्यक्ति को सौंपे जाने वाले अधिकार इतने अवश्य होने चाहिए कि जिनसे वह अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने का प्रयास कर सके।

2. क्रियाओं का विभाजन-अधीनस्थों को कार्य सौंपने से पहले क्रियाओं को दो भागों में विभाजित कर दिया जाना चाहिए। प्रथम, वे क्रियाएँ जिनका सामान्यतया वह उत्पादन करेगा, तथा द्वितीय, वे क्रियाएँ जिन्हें वह दूसरों को सौंप सकता है। अतिमहत्त्वपूर्ण क्रियाओं को अधिकारी को स्वयं के लिए सुरक्षित रखना चाहिए तथा सामान्य क्रियाओं को प्रत्यायोजन के लिए रखना चाहिए।

3. कार्य-भार सौंपना-अपेक्षित परिणामों को निर्धारण तथा क्रियाओं का विभाजन कर लेने के बाद अधीनस्थों को कार्य-भार सौंपा जाना चाहिए। अधीनस्थों को कार्य सौंपने से पहले उनकी योग्यता, कुशलता, आत्मविश्वास आदि बातों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए तथा सौंपे जाने वाले कार्य की प्रकृति एवं कार्य से सम्बन्धित सभी बातों से भी अधीनस्थों को अवगत कराना चाहिए।

4. अधिकार प्रदान करना-जब अधीनस्थों को अधिकारों का अन्तरण कर दिया जाता है तो यह जरूरी है कि उन कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त अधिकार भी अन्तरित किये जाने चाहिए। सौंपे गये कार्यों के सम्बन्ध में जहाँ तक सम्भव हो सके वे सभी अधिकार अन्तरित किये जाने चाहिए जो उस कार्य को पूरा करवाने के लिए आवश्यक हों, ऐसा होने पर ही कार्य समय पर ठीक से पूरा होने की सम्भावना रहती है।

5. उत्तरदायित्व का सृजन करना-अन्त में अन्तरण प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकारों के अन्तरण के साथ ही अधीनस्थों के दायित्वों को भी स्पष्ट कर देना चाहिए ताकि उसे उसके परिणामों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सके।

प्रश्न 31. 
"किसी सामान्य उद्देश्य या उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशेष अंगों का मैत्रीपूर्ण संयोजन ही संगठन कहलाता है।" इस कथन के सन्दर्भ में संगठन प्रक्रिया के महत्त्व के किन्हीं चार बिन्दुओं को समझाकर लिखिए।
उत्तर:
संगठन प्रक्रिया का महत्त्व
प्रश्न में दिये गये कथन के सन्दर्भ में संगठन प्रक्रिया के महत्त्व को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-
1. विशिष्टीकरण के लाभ-संगठन एक साधन है। यह कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं के नियमानुसार आबंटन में मार्गदर्शन का कार्य करता है। कर्मचारियों द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से वे उनमें दक्षता हासिल कर लेते हैं फलतः उत्पादन की मात्रा भी बढ़ जाती है। इस प्रकार संगठन में उनके प्रयासों का अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है।

2. प्रभावी प्रशासन-संगठन प्रक्रिया प्रशासन को प्रभावी बनाती है। इसमें कार्यों तथा तत्सम्बन्धित कर्त्तव्यों का स्पष्ट विवरण होता है। यह कर्मचारियों को असमंजस तथा पुनरावृत्ति से बचाती है। कार्यकरण में स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित होने से कार्य का निष्पादन ठीक ढंग से होता है। संगठन के उद्देश्यों की सहज प्राप्ति की जा सकती है। प्रशासन भी प्रभावी ढंग से कार्य करता है।

3. कार्य करने में संबंधों का स्पष्टीकरण-कार्य करने में संबंधों का स्पष्टीकरण संप्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किससे किसको रिपोर्ट करनी है, यह एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना तथा अनुदेशों के स्थानान्तरण में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके तथा एक व्यक्ति द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अंतरण किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

4. विकास एवं विस्तार-संगठन एक उद्यम को वर्तमान तौर तरीकों से नये आयामों में परिवर्तित होने में सहायता करता है। संगठन उद्यमों में कार्य स्थिति तथापि भागों में वृद्धि करता है तथा उत्पादन क्रियाओं में विभिन्नता लाता है, चालू कार्य क्षेत्रों में नये भौगोलिक - भू-भागों को जोड़ता है। इससे ग्राहकों, विक्रय तथा लाभ में वृद्धि होती है।

प्रश्न 32. 
"यदि हम अधिकार सौंपते हैं, तो हम इसे दो से गुणा करते हैं। यदि हम विकेन्द्रीकरण करते हैं, तो इसे अनगिनत से गुणा करते हैं।" इस कथन के सन्दर्भ में विकेन्द्रीकरण के महत्त्व के चार बिन्दुओं को समझाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण का महत्त्व-प्रश्न में दिये गये कथन के सन्दर्भ में विकेन्द्रीकरण के महत्त्व को निम्न प्रकार से समझा सकते हैं-
1. शीघ्र निर्णय-विकेन्द्रीकृत में सूचनाओं को लम्बे रास्ते से नहीं गुजरना पड़ता है अतः उनमें विकृत होने की संभावना कम ही होती है। निर्णय कार्य स्थल पर ही लिए जाते हैं तथा उच्च अधिकारियों या अन्य स्तरों से किसी प्रकार की अनुमति या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। अतः प्रक्रिया अधिक गतिशील होती है।

2. शीर्ष प्रबन्ध को राहत प्राप्त होनाविकेन्द्रीकरण में अधीनस्थ कर्मचारियों के क्रियाकलापों के प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण आदि में उच्चाधिकारियों को राहत मिल जाती है क्योंकि वे अपने कार्य को निर्धारित सीमाओं के अन्दर जो उच्च अधिकारियों द्वारा निर्धारित की जाती हैं, कार्य करते हैं। विकेन्द्रीकरण में शीर्ष प्रबन्ध के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों के करने के लिए अधिक समय मिल जाता है जिससे वे अधिक महत्त्वपूर्ण नीतियों तथा संचालन सम्बन्धी निर्णयों को अच्छी तरह ले लेते हैं।

3. विकास को सरल बनाता है-विकेन्द्रीकरण, निम्नस्तरीय प्रबंधकों तथा प्रभागीय अथवा विभागीय मुख्याधिकारियों को महानतम् स्वायत्तता प्रदान करता है। इस प्रकार उन्हें अपने विभागों के अनुकूल सर्वोत्तम विधि से कार्य करने का सुअवसर देता है तथा विभागीय प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित करता है। परिणामस्वरूप प्रत्येक विभाग द्वारा सर्वोत्तम कार्य करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलने से उत्पादन में वृद्धि होती है तथा संगठन अधिक लाभ कमाने की स्थिति में होता है। आगे चलकर इस लाभ से आसानी से संगठन का विस्तार किया जा सकता है।

4. अधीनस्थों में पहल भावना का विकास विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थ कर्मचारियों व अधिकारियों को स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त होता है, उन्हें कार्य करने में अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है निश्चित क्षेत्रों में कार्य करने की जिम्मेदारी भी डाली जाती है। इससे कर्मचारियों को प्रेरणा मिलती है और उनके मनोबल में भी वृद्धि होती है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

प्रश्न 33. 
औपचारिक संगठन एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर्भेद कीजिए।
उत्तर:
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन 1

प्रश्न 34. 
कोई तीन कारण देते हुए समझाइये कि किसी संगठन में अधिकार अन्तरण (Delegation of Authority) क्यों महत्त्वपूर्ण होता है ?
उत्तर:
संगठन में अधिकार अन्तरण (Delegation of Authority) का महत्त्व
1. प्रभावी प्रबन्ध-संगठन में अधिकारों का अन्तरण किये जाने से प्रबन्धकों को अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करने का पर्याप्त समय मिल जाता है। उन्हें अपने दैनिक कार्यक्रमों से मुक्ति पाकर नये क्षेत्रों में अधिक उत्कृष्टतापूर्ण कार्य करने के सुअवसर भी प्राप्त होते हैं। फलतः संगठन में प्रबन्ध प्रभावी रहता है। 

2. कर्मचारियों का विकास-संगठन में अधिकार अन्तरण के परिणामस्वरूप कर्मचारियों को अपनी योग्यता व प्रतिभा का उपयोग करने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। इससे उनकी निपुणता विकसित होती है तथा वे जटिल प्रकृति के कार्य करने में समर्थ हो सकते हैं। इस प्रकार अधिकार अन्तरण कर्मचारियों को उनकी प्रतिभा का उपयोग करने, अनुभव प्राप्त करने और अपने आपको उच्च पदों पर आसीन होने में सहायता करता है।

3. कर्मचारियों को प्रेरणा प्रदान करना-संगठन में अधिकार अन्तरण कर्मचारियों की प्रतिभा को विकसित करता है। इसके कुछ मनोवैज्ञानिक लाभ हैं। जब एक उच्च पद पर आसीन अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य सौंपता है तो वह केवल कार्य का विभाजन मात्र ही नहीं है, बल्कि उच्चाधिकारी का अपने अधीनस्थ में विश्वास तथा अधीनस्थ कर्मचारी की अपने उच्चाधिकारी के प्रति वचनबद्धता भी होती है। उत्तरदायित्व एक कर्मचारी में आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है तथा भरोसे में सुधार लाता है। इससे कर्मचारियों को प्रेरणा व प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 35. 
कोई तीन कारण देते हुए समझाइये कि संगठन को प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य क्यों समझा जाता है ?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से संगठन को प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य समझा जाता है-
1. विशिष्टीकरण के लाभ-संगठन से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं। क्योंकि, संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं के नियमानुसार आबंटन में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है तथा उत्पादन की मात्रा भी बढ़ जाती है। लगातार एक ही प्रकार का कार्य करते रहने से कर्मचारी विशेषज्ञता प्राप्त कर लेता है और वह अपने कार्य में दक्ष हो जाता है। 

2. कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरणसंगठन कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण करता है, सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसको किसे रिपोर्ट करनी है, यह बतलाता है। इसके साथ ही संगठन सूचना तथा अनुदेशों के स्थानान्तरण में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम के निर्धारण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्वों को निर्धारित किया जा सके तथा एक व्यक्ति द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

3. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग-संगठन के द्वारा संस्था के सभी भौतिक, वित्तीय तथा मानव संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है। इसमें कार्य का विभाजन उचित ढंग से होता है। इससे काम की लीपापोती रुकती है तथा संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सम्भव होता है। यह काम के दोहरेकरण से दूर रखता है जिससे प्रयासों तथा संसाधनों के अपव्यय को कम किया जा सकता है। सन्देहों की भी रोकथाम होती है।

प्रश्न 36. 
अनौपचारिक संगठन का अर्थ बताइये एवं इसके दो लाभ एवं दो हानियाँ बतलाइये।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का अर्थव्यावसायिक संस्था में औपचारिक रूप से कार्य करते हुए व्यक्तियों के मध्य कुछ औपचारिक सम्बन्धों का जन्म होता है और ये सम्बन्ध अनौपचारिक संगठनों को जन्म देते हैं। अनौपचारिक संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसकी रचना सोच-समझकर तथा जानबूझकर नहीं की जाती है, अपितु आपसी सम्बन्धों, रुचियों तथा समान हितों के कारण स्वतः होती है।

चेस्टर बनोई के अनुसार, "वह संगठन अनौपचारिक है जिसमें आपसी संबंध अज्ञानवश संयुक्त उद्देश्यों के लिए बनते हैं।"

कीथ डैविस के अनुसार, “अनौपचारिक संगठन व्यक्तिगत तथा सामाजिक संबंधों का एक तंत्र है जो न तो औपचारिक संगठन द्वारा बनाया जता है और न ही आवश्यक है। इसका जन्म/उदय व्यक्तियों के स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे से सहयोग करने से होता  है।"

निष्कर्ष-अनौपचारिक संगठन संस्था में कार्यरत कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों का एक ऐसा जाल है जिसकी स्थापना के लिए उच्च प्रबन्धकों की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। संस्था में काम करने वाले व्यक्तियों के बीच आपसी सम्बन्धों का विकास स्वतः ही आपसी सम्पर्क से होता है।

लाभ-

  • शीघ्र सूचनाएँ-अनौपचारिक संगठन में सूचनाएँ शीघ्रता से पहुँचती हैं तथा उनकी प्रतिपुष्टि भी शीघ्र हो जाती है। इसमें सम्प्रेषण के निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया जाता है।
  • संगठन में अपनत्व की भावना जाग्रत करना-अनौपचारिक संगठन सदस्यों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। यह सदस्यों की कार्य-सन्तुष्टि में वृद्धि करता है तथा संगठन में अपनत्व की भावना जाग्रत करता है।

दोष-

  • अफवाहें फैलाना-अनौपचारिक संगठन में अफवाहें फैलने की अधिक सम्भावना रहती है। जब अफवाहें फैलती हैं तो ये विघटनकारी ताकत बन जाते हैं। यह औपचारिक संगठन के विपरीत कार्य कर सकता है।
  • विलम्ब या प्रतिबन्ध की स्थिति पैदा करनायदि अनौपचारिक संगठन विरोध करता है तो प्रबन्ध परिवर्तनों को लागू करने में असमर्थ रहता है। इस प्रकार का प्रतिरोध या तो विलम्ब करा देता है या प्रतिबन्धित करा देता है।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

प्रश्न 37. 
संगठन को परिभाषित कीजिए। 
उत्तर:
संगठन का अर्थ
(1) संगठन-एक ढाँचे के रूप में इस अर्थ में संगठन दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो समान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मिल-जुलकर निर्धारित नियमों के अधीन कार्य करते हैं। यह क्षैतिज एवं लम्बवत् सम्बन्धों का एक ऐसा ढाँचा है जिसमें संस्था में कार्यरत विभिन्न व्यक्तियों के अधिकार दायित्व व आपसी सम्बन्ध सुनिश्चित किये जाते हैं।

(2) प्रक्रिया के रूप में संगठन-प्रक्रिया के रूप में संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्यों का निर्धारण एवं समूहीकरण, उनका व्यक्तियों में विभाजन तथा व्यक्तियों के मध्य अधिकार व दायित्व सम्बन्धों का निर्माण किया जाता है।

निष्कर्ष-संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यों का विभाजन, उनका विभिन्न व्यक्तियों को सौंपना तथा संस्था के सभी अंगों को एक सूत्र में बाँधने के लिए विशिष्ट विभागों में सामञ्जस्य स्थापित करना सम्मिलित होता है।

प्रश्न 38. 
औपचारिक संगठन क्या है ? इसके लाभ लिखिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन का अर्थऔपचारिक संगठन से आशय एक ऐसे संगठन से है जिसके प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों के अधिकारों, कर्त्तव्यों एवं दायित्वों की स्पष्ट सीमा होती है। ऐसे संगठनों में अधिकारों का अन्तरण होता है तथा संगठन संरचना संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है। दूसरे शब्दों में, औपचारिक संगठन से तात्पर्य किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबन्धकों द्वारा तैयार किये गये ढाँचे से है। यह अधिकार तथा उत्तरदायित्व की सीमाओं का स्पष्टीकरण करता है तथा संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करता है। औपचारिक संगठन में ढाँचा कार्यात्मक अथवा प्रभागीय कोई भी हो सकता है।

लुईस ए. ऐलन के अनुसार, "औपचारिक संगठन, कार्यों की समुचित ढंग से परिभाषित पद्धति है जिसमें प्रत्येक के अधिकार, उत्तरदायित्व तथा जवाबदेही की निश्चित परिमाप होती है।"

चेस्टर आई. बर्नार्ड के अनुसार, "जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाएँ समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जानबूझकर समन्वित की जाती हैं तो उसे औपचारिक संगठन कहते हैं।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि औपचारिक संगठन में सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों तथा उनकी क्रियाओं का निर्धारण संगठन संरचना के आधार पर किया जाता है। संगठन में ऊपर से नीचे की ओर अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाता है और उपकरण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संगठित प्रयास किये जाते हैं।

औपचारिक संगठन के लाभ-औपचारिक संगठन के दो लाभ निम्नलिखित हैं-
1. उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसानऔपचारिक संगठन में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसान होता है, क्योंकि इस प्रकार के संगठनों में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आपसी सम्बन्ध स्पष्ट रूप से समझाये हुए रहते हैं।

2. भ्रम की स्थिति नहीं-औपचारिक संगठनों का एक लाभ यह है कि इस प्रकार के संगठनों में प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी के अधिकार एवं कर्त्तव्य स्पष्ट किये हुए रहते हैं तथा उनके बीच आपसी सम्बन्ध भी स्पष्ट होते हैं कि वे किससे आदेश प्राप्त करेंगे और किसको आदेश देंगे। अतः ऐसे संगठनों में भ्रम की स्थिति नहीं रहती है।

प्रश्न 39. 
औपचारिक संगठन के चार लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के लक्षणऔपचारिक संगठन के चार लक्षण निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. आपसी सम्बन्धों की प्रकृति को स्पष्ट करना-औपचारिक संगठन विभिन्न प्रकार के कार्यों की स्थिति तथा उनके आपसी सम्बन्धों की प्रकृति का स्पष्टीकरण करता है। यह संगठन यह स्पष्ट करता है कि संगठन में कौन व्यक्ति किससे आदेश प्राप्त करेगा और किसको रिपोर्ट करेगा। .

2. निर्दिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति का साधनऔपचारिक संगठन संस्था के निर्दिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है। क्योंकि निर्दिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक नियम तथा कार्यविधि इसके अन्तर्गत स्पष्ट रहते हैं।

3. विभिन्न प्रभागों के प्रयासों में समन्वयऔपचारिक संगठन का एक प्रमुख लक्षण यह भी है कि इसके द्वारा संस्था के विभिन्न प्रभागों के प्रयासों को समन्वित, अन्तःसम्बन्ध तथा एकीकृत किया जाता है। 

4. उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा निर्माण-संगठन बिना किसी परेशानी के अपना कार्य आसानी से करता रहे इसीलिए इस प्रकार के संगठन का निर्माण व रचना उच्च- स्तरीय प्रबन्ध द्वारा विचार-विमर्श के बाद ही की जाती है।

प्रश्न 40. 
अन्तरण के तत्त्वों की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
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प्रश्न 41. 
परिवर्तनों का अनुकूलन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
परिवर्तनों का अनुकूलन से यह तात्पर्य है कि संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबंधकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन तथा आपसी संबंधों के संशोधनों में पारगमन का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बावजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने संबंधी, आवश्यकता की पूर्ति करता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1. 
एक प्रबन्धक के रूप में, कार्यात्मक संगठन ढाँचे का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके गुण व दोषों को समझाइये।
अथवा 
कार्यात्मक संगठन क्या है ? इसके गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
कार्यात्मक संगठन का अर्थ-कार्यात्मक संगठन ढाँचे की संरचना समस्त कार्य को बड़े-बड़े कार्यात्मक विभागों में वर्गीकृत करके की जाती है। इसके अन्तर्गत समान प्रकृति के सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रख कर एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन कर दिया जाता है। सभी विभाग इस समन्वय प्रधान को रिपोर्ट करते हैं। संगठन में व्यावसायिक संस्था के मुख्य कार्य का विभाजन उत्पादन, क्रय, विपणन, लेखा तथा कार्मिकों के रूप में किया जा सकता है। ये विभाग आगे उप-वर्गों में विभाजित किये जा सकते हैं । इस प्रकार कार्यात्मक संगठन एवं संगठनात्मक नमूना है जिसके समूह समान अथवा एक रूप में होते हैं या सम्बन्धित कार्य साथ-साथ होते हैं।

कार्यात्मक संगठन के गुण 
कार्यात्मक संगठन के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं-
1. विशिष्टीकरण को प्रोत्साहन-कार्यात्मक संगठन व्यावसायिक विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करता है; क्योंकि इसमें विशिष्ट कार्य पर ही बल दिया जाता है। यह मानव-शक्ति के उपयोग में दक्षता को प्रोत्साहित करता है; क्योंकि कर्मचारी विभाग के अन्तर्गत एक ही प्रकार का कार्य लगातार करते रहते हैं और अपनी कार्यविधि को उन्नतशील एवं दक्ष बनाते हैं।

2. सामंजस्य तथा नियन्त्रण कार्यात्मक संगठन में विभाग के अन्तर्गत सामंजस्य तथा नियन्त्रण उन्नतिशील होते हैं; क्योंकि एक ही कार्य बार-बार किया जाता है।

3. कौशल में वृद्धि-कार्यात्मक संगठन प्रबन्धकीय तथा संचालन सम्बन्धी कौशल में वृद्धि करने में सहायता करता है। इससे सम्पूर्ण संस्था के लाभों में वृद्धि होती है।

4. आर्थिक बचत तथा कम लागत-कार्यात्मक संगठन पुनरावृत्ति को कम करता है जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक बचत तथा लागत कम होती है।

5. प्रशिक्षण को आसान बनाना-कार्यात्मक संगठन में कर्मचारियों के प्रशिक्षण को आसान बनाता है क्योंकि इसमें कार्यों को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर दिया जाता है और इसमें कार्य का दायरा छोटा ही होता है।

6. कार्यों पर पूरा ध्यान-कार्यात्मक संगठन में सभी कार्यों पर पूर्ण रूप से ध्यान दिया जाता है।

कार्यात्मक संगठन के दोष 
कार्यात्मक संगठन के कुछ प्रमुख दोष अग्रलिखित-
1. संस्थान के अन्य उद्देश्यों पर कम ध्यान-कार्यात्मक संगठन ढाँचे में कार्याध्यक्ष द्वारा बतलाये गये कार्यों की अपेक्षा संस्थान के अन्य सभी उद्देश्यों पर कम ध्यान दिया जाता है। संगठनात्मक हित की अपेक्षा विभागीय हित पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है तो इससे विभागों में आपसी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 

2. निर्णय में विलम्ब-संस्था के विकास एवं विस्तार होने से उसमें विभागों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इसके कारण सही समन्वय नहीं हो पाता तथा निर्णयों में भी विलम्ब हो जाता है।

3. हितों में टकराव-जब दो या दो से अधिक विभागों के हित अमुकूल नहीं हों तो हितों का टकराव या झगड़ा होना स्वाभाविक ही होता है। इस प्रकार के हितों में टकराव संगठनात्मक हितों की पूर्ति में बाधक हो सकते हैं। अन्तर्विभागीय झगड़े भी, स्पष्ट उत्तरदायित्व पृथक्करण के अभाव में, खड़े हो सकते हैं।

4. अस्थिरता की स्थिति-कार्यात्मक संगठन में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जैसा कि एक ही चातुर्य तथा ज्ञान के आधार पर मनुष्यों में संकीर्ण सापेक्ष महत्त्व पनप सकता है जिससे किसी अन्य विचारधारा को महत्त्व देने में कठिनाई हो सकती है। कार्य प्रधान उच्च प्रबन्ध स्तरीय प्रशिक्षण नहीं पाते क्योंकि वे विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।

प्रश्न 2. 
एक औपचारिक संगठन के प्रबन्धक के रूप में, इसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन के गुण
औपचारिक संगठन के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
1. उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसानंऔपचारिक संगठन में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के उत्तरदायित्व निर्धारित करना आसान होता है; क्योंकि इस प्रकार के संगठनों में अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आपसी सम्बन्ध स्पष्ट रूप से समझाये हुए रहते हैं।

2. भ्रम की स्थिति नहीं-औपचारिक संगठनों का एक गुण या लाभ यह है कि इस प्रकार के संगठन में प्रत्येक अधिकारी व कर्मचारी के अधिकार एवं कर्त्तव्य स्पष्ट किये हुए रहते हैं तथा उनके बीच आपसी सम्बन्ध भी स्पष्ट होते हैं कि वे किससे आदेश प्राप्त करेंगे और किसको आदेश देंगे। अतः ऐसे संगठनों में भ्रम की स्थिति नहीं रहती है।

3. आदेश की एकता-औपचारिक संगठन में आदेश श्रृंखला की स्थापना से आदेश की एकता बनी रहती है। इसमें एक व्यक्ति एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त करता है अतः वह भ्रम की स्थिति में नहीं रहता।

4. कार्य सम्पादन प्रभावपूर्ण-औपचारिक संगठन में कार्य संचालन की सुनिश्चितता तथा प्रत्येक कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले कार्य की उन्हें जानकारी होने से कार्य का सम्पादन प्रभावपूर्ण ढंग से होता है।

5. स्थायित्व-औपचारिक संगठन में स्थायित्व आता है। कर्मचारियों के व्यवहार को भी आसानी से ज्ञात किया जा सकता है क्योंकि उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट नियम होते हैं।

6. अन्य-

  • कार्यों का दोहराव नहीं होता है। 
  • टालमटोल की भावना का विकास नहीं हो पाता
  • ऐसे संगठनों में किसी एक व्यक्ति का अत्यधिक महत्त्व समाप्त हो जाता है।  
  • अधिकारों एवं दायित्वों की स्पष्ट व्याख्या होने से आपसी मतभेद समाप्त हो जाते हैं। 
  • पक्षपात के अवसर समाप्त हो जाते हैं।

औपचारिक संगठन के दोष 
औपचारिक संगठन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
1. निर्णय लेने में अधिक समय लगनाऔपचारिक संगठन में आदेश की श्रृंखला का पालन करना पड़ता है जिससे कार्य-विधिक विलम्ब के कारण, निर्णय लेने में अधिक समय लगता है।

2. रचनात्मक प्रतिभा को समुचित मान्यता नहींऔपचारिक संगठन की वांछित पद्धतियाँ रचनात्मक प्रतिभा को समुचित मान्यता नहीं दे पाती हैं। क्योंकि निर्धारित कठोर नीतियाँ किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होने देतीं।

3. ढाँचे और कार्य पर अधिक बल-किसी भी संगठन में सभी मानवीय सम्बन्धों को समझाना कठिन होता है; क्योंकि ये ढाँचे और कार्य पर अधिक बल देते हैं। अतः औपचारिक संगठन से किसी संस्थान के कार्य करने की सही तस्वीर सामने नहीं आ पाती।

4. अन्य दोष

  • यह संगठन में पहलपन की भावना को समाप्त करता है।
  • ऐसे संगठन यंत्रवत् होते हैं, जहाँ पर नियम मनुष्यों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं। 
  • यह संगठन अनौपचारिक सम्प्रेषण में बाधा उपस्थित करते हैं।
  • ऐसे संगठनों में अनावश्यक रूप से अधिकारों का प्रयोग किया जाता है।
  • ऐसे संगठनों में समन्वय की समस्या विद्यमान रहती है।

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प्रश्न 3. 
तनुश्री लि. रेडीमेड कपड़ों का निर्माण करती है और इसके उत्पादन, विपणन, वित्त तथा सेविवर्गीय विभाग हैं। इस प्रकार के संगठन ढाँचे का नाम बताइये, जिसे तनुश्री लि. अपना रही है। इस संगठन ढाँचे के चार लाभ-गुण बताइये।
उत्तर:
तनुश्री लिमिटेड जो रेडीमेड कपड़ों का निर्माण करती है और इसके उत्पादन, विपणन, वित्त तथा सेविवर्गीय विभाग हैं। यह कार्यात्मक संगठन ढाँचा अपना रही है। इस संगठनात्मक ढाँचे के चार प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
1. विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करनाकार्यात्मक ढाँचा व्यावसायिक विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करता है; क्योंकि विशिष्ट कार्य पर ही जोर दिया जाता है। यह मानव शक्ति के उपयोग में दक्षता को प्रोत्साहित करता है; क्योंकि कर्मचारी विभाग के अन्तर्गत ही एक ही कार्य को करते हैं तथा अपनी कार्यविधि को उन्नतशील बनाते हैं। 

2. उन्नतशील सामंजस्य तथा नियन्त्रणकार्यात्मक संगठन ढाँचे में विभिन्न विभागों के अन्तर्गत सामन्जस्य तथा नियन्त्रण उन्नतशील होते हैं; क्योंकि एक ही कार्य बार-बार किया जाता है। 

3. कौशल में वृद्धि-कार्यात्मक संगठन प्रबन्धकीय तथा संचालन सम्बन्धी कौशल में बढ़ोतरी करने में सहायता करता है, जिसका परिणाम अधिक लाभदायक होता है।

4. पुनरावृत्ति कम करना-कार्यात्मक संगठन ढाँचा पुनरावृत्ति को कम करता है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक बचत एवं लागत कम होती है।

प्रश्न 4. 
औपचारिक तथा अनौपचारिक संगठन के मध्य आप किस प्रकार अन्तर करेंगे?
अथवा 
क्या आप समझते हैं कि संगठन स्वरूपों के औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन के मध्य कोई अन्तर है ? यदि हाँ, तो अन्तर बतलाइये।
अथवा 
औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठन में अन्तर्भेद कीजिए।
उत्तर:
औपचारिक संगठन से तात्पर्य किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबन्धकों द्वारा तैयार किये गये ढाँचे से है। यह अधिकार तथा उत्तरदायित्व की सीमाओं का स्पष्टीकरण करता है तथा संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करता है, जबकि अनौपचारिक संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसकी रचना सोच-समझकर तथा जानबूझकर नहीं की जाती है, अपितु आपसी सम्बन्धों, रुचियों तथा समान हितों के कारण स्वतः होती है। अतः स्पष्ट है कि औपचारिक संगठन तथा अनौपचारिक संगठन एक ही नहीं है वरन् इनके मध्य पर्याप्त अन्तर है। इन दोनों के बीच के अन्तर को अग्र प्रकार से बतलाया जा सकता है-
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प्रश्न 5. 
औपचारिक संगठन से क्या अभिप्राय है? संगठन के इस स्वरूप के किन्हीं पांच लाभों का उल्लेख कीजिये।
अथवा 
औपचारिक संगठन से आप क्या समझते हैं ? इसके आवश्यक लक्षण बतलाइये।
अथवा 
औपचारिक संगठन की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिये।
उत्तर:
औपचारिक संगठन का अर्थ-औपचारिक संगठन से आशय एक ऐसे संगठन से है जिसके प्रत्येक स्तर के प्रबन्धकों के अधिकारों, कर्तव्यों एवं दायित्वों की स्पष्ट सीमा होती है। ऐसे संगठनों में अधिकारों का अन्तरण होता है तथा संगठन संरचना संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है। दूसरे शब्दों में, औपचारिक संगठन से तात्पर्य किसी विशिष्ट कार्य को पूरा करने के लिए प्रबन्धकों द्वारा तैयार किये गये ढाँचे से है। यह अधिकार तथा उत्तरदायित्व की सीमाओं का स्पष्टीकरण करता है तथा संगठनात्मक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विभिन्न क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करता है। औपचारिक संगठन में ढाँचा कार्यात्मक अथवा प्रभागीय कोई भी हो सकता है।

लुईस ए. ऐलन के अनुसार, "औपचारिक संगठन, कार्यों की समुचित ढंग से परिभाषित पद्धति है जिसमें प्रत्येक के अधिकार, उत्तरदायित्व तथा जवाबदेही की निश्चित परिमाप होती है।"

चेस्टर आई. बर्नार्ड के अनुसार, "जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों की क्रियाएँ समान उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जानबूझकर समन्वित की जाती हैं तो उसे औपचारिक संगठन कहते हैं।"

इस प्रकार स्पष्ट है कि औपचारिक संगठन में सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों तथा उनकी क्रियाओं का निर्धारण संगठन संरचना के आधार पर किया जाता है। संगठन में ऊपर से नीचे की ओर अधिकारों का प्रत्यायोजन किया जाता है और उपकरण के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संगठित प्रयास किये जाते है।

औपचारिक संगठन की विशेषताएँ/लक्षण
औपचारिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • आपसी सम्बन्धों की प्रकृति को स्पष्ट करना-औपचारिक संगठन विभिन्न प्रकार के कार्यों की स्थिति तथा उनके आपसी सम्बन्धों की प्रकृति का स्पष्टीकरण करता है। यह संगठन यह स्पष्ट करता है कि संगठन में कौन व्यक्ति किसको रिपोर्ट करेगा।
  • निर्दिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन औपचारिक संगठन योजनाओं में निर्दिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने का एक साधन है; क्योंकि उन्हें प्राप्त करने के लिए आवश्यक नियम तथा कार्यविधि इसके अन्तर्गत दिये हुए रहते हैं।
  • विभिन्न प्रभागों के प्रयासों में समन्वयऔपचारिक संगठन द्वारा विभिन्न प्रभागों के प्रयासों को समन्वित, अन्तःसम्बन्ध तथा एकीकृत किया जाता है।
  • उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा निर्माण-संगठन बिना किसी परेशानी के अपना कार्य आसानी से करता रहे इसीलिए इसकी रचना उच्चस्तरीय प्रबन्ध द्वारा विचारविमर्श के बाद ही की जाती है।
  • कार्य-निष्पादन पर अधिक बल-औपचारिक संगठन में कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों की अपेक्षा इस संगठन में कार्य-निष्पादन पर अधिक बल दिया जाता
  • सोच-समझ कर बनाया गया संगठनऔपचारिक संगठन सोच-समझ कर स्वेच्छा से बनाया गया संगठन होता है। यह कुशलता पर आधारित होता है और विधिपूर्ण संगठन होता है। 
  • स्थायी संगठन-औपचारिक संगठन स्थायी होता है। इस प्रकार के संगठन का निर्माण हो जाता है तो वह संस्था के जीवनकाल तक बचा रहता है। समय एवं परिस्थितियों के अनुसार इसकी संगठन संरचना में परिवर्तन अवश्य हो सकता है।
  • सोपान श्रृंखला-औपचारिक संगठन में आदेशों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर एक सोपान श्रृंखला के माध्यम से होता है। कर्मचारियों से कार्य कराने सम्बन्धी आदेश उच्चस्तरीय प्रबन्ध से प्रारम्भ होकर विभागीय प्रबन्धकों के माध्यम से निम्न स्तरीय प्रबन्धकों तक पहुँचते हैं जो कर्मचारियों को स्पष्ट आदेश एवं निर्देश देते हैं।
  • संगठन चार्ट्स एवं मैनुअल्स-औपचारिक संगठन में प्रत्येक सदस्य की संगठनात्मक स्थिति को प्रकट करने के लिए संगठन चार्ट्स एवं मैनुअल्स बनाये जाते हैं। कोई भी व्यक्ति इस चार्ट के माध्यम से किसी पद की स्थिति जान सकता है। 
  • सामान्य उद्देश्य-औपचारिक उद्देश्य का एक सामान्य उद्देश्य होता है जिसकी प्राप्ति के लिए इस संगठन की स्थापना की जाती है। इस संगठन की आन्तरिक संरचना उस सामान्य उद्देश्य को ध्यान में रख करके ही निर्धारित की जाती है।

औपचारिक संगठन के लाभ- औपचारिक संगठन के पाँच लाभों को पूर्व प्रश्न संख्या 2 के उत्तर में पढ़ें।

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प्रश्न 6. 
'अनौपचारिक संगठन' से क्या अभिप्राय है ? संगठन के इस स्वरूप के किन्हीं तीन लाभों एवं किन्हीं तीन दोषों का उल्लेख कीजिये।
अथवा 
अनौपचारिक संगठन से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण एवं दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का अर्थ-व्यावसायिक संस्था में औपचारिक रूप से कार्य करते हुए व्यक्तियों के मध्य कुछ औपचारिक सम्बन्धों का जन्म होता है और ये सम्बन्ध अनौपचारिक संगठनों को जन्म देते हैं। अनौपचारिक संगठन से आशय ऐसे संगठन से है जिसकी रचना सोच-समझ कर तथा जानकर नहीं की जाती है, अपितु आपसी सम्बन्धों, रुचियों तथा समान हितों के कारण स्वतः होती है।

चेस्टर बनोई के अनुसार, "वह संगठन अनौपचारिक है जिसमें आपसी संबंध अज्ञानवश संयुक्त उद्देश्यों के लिए बनते हैं।"

कीथ डैविस के अनुसार, "अनौपचारिक संगठन व्यक्तिगत तथा सामाजिक संबंधों का एक तंत्र है जो न तो औपचारिक संगठन द्वारा बनाया जाता है और न ही आवश्यक है। इसका जन्म/उदय व्यक्तियों के स्वैच्छिक रूप से एक दूसरे से सहयोग करने से होता है।"

निष्कर्ष-अनौपचारिक संगठन संस्था में कार्यरत कर्मचारियों के आपसी सम्बन्धों का एक ऐसा जाल है जिसकी स्थापना के लिए उच्च प्रबन्धकों की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है। संस्था में काम करने वाले व्यक्तियों के बीच आपसी सम्बन्धों का विकास स्वतः ही आपसी सम्पर्क से होता है। इससे कर्मचारियों में आपसी स्नेह एवं आत्मीयता को बढ़ावा मिलता है।

अनौपचारिक संगठन के गुण 
अनौपचारिक संगठन के प्रमुख गुण या लाभ निम्नलिखित हैं-

  • शीघ्र सूचनाएँ-अनौपचारिक संगठन में सूचनाएँ शीघ्र पहुँचती हैं तथा उनकी प्रतिपुष्टि भी शीघ्र हो जाती है। इसमें सम्प्रेषण के निर्धारित नियमों को नहीं माना जाता है।
  • संगठन में अपनत्व की भावना जागृतअनौपचारिक संगठन सदस्यों की सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। यह सदस्यों की कार्य-सन्तुष्टि में वृद्धि करता है तथा संगठन में अपनत्व की भावना को जागृत करता है।
  • औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करना-अनौपचारिक संगठन लक्ष्यों को प्राप्त करने में औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करने में सहायता करता है। 
  • आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ करनाअनौपचारिक संगठन कर्मचारियों में आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ करते हैं।
  • कार्य के प्रति प्रेरणा-अनौपचारिक संगठन संस्था के कर्मचारियों को कार्य के प्रति प्रेरणा प्रदान करते
  • कर्मचारियों को सन्तोष प्रदान करनाअनौपचारिक संगठन कर्मचारियों को सन्तोष प्रदान करते
  • कुशल सम्प्रेषण में योगदान-अनौपचारिक संगठन कुशल सम्प्रेषण में योगदान देते हैं।
  • सतर्कतापूर्वक प्रबन्ध-अनौपचारिक संगठनों के होने पर प्रबन्धक सतर्कतापूर्वक प्रबन्ध करते हैं।

अनौपचारिक संगठन के दोष 
अनौपचारिक संगठन के प्रमुख दोष निम्नलिखित

  • अफवाहें फैलाना-अनौपचारिक संगठन जब अफवाहें फैलाता है तो यह एक विघटनकारी ताकत बन जाता है। यह औपचारिक संगठन के विपरीत कार्य कर सकता है।
  • विलम्ब या प्रतिबन्ध की स्थिति पैदा करनायदि अनौपचारिक संगठन विरोध करता है तो प्रबन्ध परिवर्तनों को लागू करने में असमर्थ रहता है । इस प्रकार का प्रतिरोध या तो विलम्ब करा देता है या प्रतिबन्धित करा देता है।
  • सदस्यों को अपने अनुरूप चलने के लिए बाध्य करना-अनौपचारिक संगठन सदस्यों को समूह की आकांक्षाओं के अनुरूप चलने के लिए बाध्य करता है। यह हानिकारक हो सकता है। यदि समूह द्वारा बनाये गये मानदण्ड संगठनजन्य हितों के विरुद्ध होते हैं।
  • भीड़ तन्त्र को बढ़ावा देना-अनौपचारिक संगठन भीड़ तन्त्र को बढ़ावा देते हैं।
  • उत्पादकता वृद्धि की योजनाओं को प्रभावहीन बनाना-अनौपचारिक संगठन उत्पादकता वृद्धि की योजनाओं को प्रभावहीन बना देते हैं।

प्रश्न 7. 
एक संगठन के प्रभागीय ढाँचे (Divisional Structure) से क्या अभिप्राय है? किस प्रकार के व्यावसायिक उद्यमों के लिए यह ढाँचा सबसे अधिक उपयुक्त है ? संगठनात्मक ढाँचे के इस स्वरूप के किन्हीं चार लाभों का उल्लेख कीजिये।
अथवा 
विभागीय संगठन ढाँचे (Divisional Structure) से आप क्या समझते हैं? कार्यात्मक एवं विभागीय संगठन ढाँचे में अन्तर्भेद कीजिये।
उत्तर:
प्रभागीय संगठन का अर्थ-प्रभागीय संगठन के अर्थ को इसी अध्याय के पाठ्यपुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 2 के उत्तर में पढ़ें।

प्रभागीय ढाँचे की उपयुक्तता-निम्नलिखित व्यावसायिक उद्यमों के लिए प्रभागीय संगठन ढाँचा उपयुक्त माना जाता है-

  • जहाँ विभिन्न प्रकार के उत्पादों का बड़ी भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है तथा जहाँ विभिन्न प्रकार के संसाधनों को प्रयोग में लाया जाता है। .
  • जहाँ उद्यम/उद्यमों का आकार काफी बड़ा हो।
  • जहाँ अलग-अलग निर्माण तकनीकों एवं विपणन पद्धतियों की आवश्यकता हो।
  • जहाँ विस्तृत बाजार खण्ड एवं भौगोलिक क्षेत्र में कार्य करने वाले उद्यम हों।

प्रभागीय संगठन ढाँचे के लाभ-प्रभागीय संगठन ढाँचे के लाभों को पाठ्य-पुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 2 के उत्तर में पढ़ें।

कार्यात्मक एवं प्रभागीय (विभागीय) संगठन ढाँचे में अन्तर्भे द-कार्यात्मक एवं प्रभागीय (विभागीय) संगठन ढाँचे में अन्तर को पाठ्यपुस्तक के निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 4 के उत्तर में पढ़ें। 

प्रश्न 8. 
श्रीमान 'अ' को आपके दृष्टिकोण से अधिकार अन्तरण एवं विकेन्द्रीकरण में अन्तर बताइये।
अथवा
अधिकारों के अन्तरण एवं विकेन्द्रीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अधिकारों के अन्तरण एवं विकेन्द्रीकरण में अन्तर
अधिकारों के अन्तरण एवं विकेन्द्रीकरण में अन्तर को निम्न बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-
RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन 5

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प्रश्न 9. 
एक प्रबन्धक के रूप में किसी व्यावसायिक उद्यम में अधिकार अन्तरण के महत्त्व को समझाइये।
अथवा
अधिकारों के प्रत्यायोजन से क्या अभिप्राय है? ऐसे किन्हीं चार बिन्दुओं को समझाइये जो एक संगठन के प्रत्यायोजन के महत्त्व को उजागर करते हैं।
अथवा 
अधिकार अन्तरण क्या है? इसके तत्त्वों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
अधिकार अन्तरण का अर्थ एवं
परिभाषाएँ-वर्तमान समय में व्यावसायिक क्रियाओं में बढ़ती हुई तकनीकी व नियमों की जटिलता तथा कार्य विस्तार के कारण यह सम्भव नहीं है कि कोई अकेला व्यक्ति सभी कार्यों को कुशलतापूर्वक कर सके। वैसे भी एक व्यक्ति की शक्ति व समय दोनों ही सीमित होते हैं। अतः आज के समय में यह नितान्त आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का अन्तरण करे। अधिकारों का अन्तरण करके ही संगठन के कार्यों का कुशलतापूर्वक निष्पादन किया जा सकता है।

लूइस ऐलन के अनुसार, "अंतरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे अपनाकर प्रबंधक अपने कार्यों को इस प्रकार विभाजित करता है जिससे कि वह संपूर्ण कार्य के केवल उस भाग का निष्पादन करे जिसे केवल वह स्वयं ही, संगठन में अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण, प्रभावशाली ढंग से, कर सकता है और इस प्रकार वह शेष कार्य को पूरा कराने के लिए आप लोगों की सहायता प्राप्त करता है।"

थ्यो हेमैन के अनुसार, “अधिकार अंतरण से केवल इतना ही आशय है कि अपने अधीनस्थों को निश्चित सीमाओं के अंतर्गत कार्य करने का अधिकार प्रदान किया जाता है।"

निष्कर्ष-अधिकारों के अन्तरण से आशय दूसरों को कार्य सौंपना तथा उनके सम्बन्ध में आवश्यक अधिकारों को प्रदान करना है। यह वह अधिकार है जिसके द्वारा अधीनस्थ कुछ निश्चित क्षेत्रों में अपने विवेक से निर्णय ले सकते हैं।

अधिकार अन्तरण का महत्त्व 
अधिकार अन्तरण के महत्त्व को हम निम्न बिन्दुओं की सहायता से स्पष्ट करते हैं-
1. प्रभावी प्रबन्ध-अधिकारों का अन्तरण किये जाने से प्रबन्धकों को अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करने का समय मिल जाता है। उन्हें अपने दैनिक कार्यक्रमों से मुक्ति पाकर नये क्षेत्रों में अधिक उत्कृष्टतापूर्ण कार्य करने के सुअवसर प्राप्त होते हैं।

2. कर्मचारियों का विकास-अन्तरण के परिणामस्वरूप कर्मचारियों को अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के लिए अधिक सुअवसर प्राप्त होते हैं। उन्हें अपनी प्रतिभा का निखार करने का अवसर मिल जाता है। इससे उनकी निपुणता विकसित होती है तथा वे जटिल प्रकृति के कार्य करने में समर्थ हो जाते हैं। इस प्रकार अन्तरण कर्मचारियों को उनकी प्रतिभा का उपयोग करने, अनुभव प्राप्त करने और अपने आपको उच्च पदों पर आसीन होने में सहायता करता है। 

3. कर्मचारियों को प्रेरणा प्रदान करना-अन्तरण कर्मचारियों की प्रतिभा को विकसित करता है। इसके कुछ मनोवैज्ञानिक लाभ हैं। जब एक उच्च पद पर आसीन अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य सौंपता है तो यह केवल कार्य का विभाजन मात्र ही नहीं है; बल्कि उच्चाधिकारी का अपने अधीनस्थ में विश्वास तथा अधीनस्थ कर्मचारी की अपने उच्चाधिकारी के प्रति वचनबद्धता होती है। उत्तरदायित्व एक कर्मचारी में आत्मविश्वास को बढ़ावा देता है तथा भरोसे में सुधार लाता है। इससे कर्मचारियों को प्रोत्साहन मिलता है।

4. विकास का सरलीकरण-अधिकार अन्तरण एक संगठन में विकास को बढ़ावा देता है। इसके द्वारा ऊँचे पदों पर नया काम करने के लिए तुरन्त कर्मचारी उपलब्ध हो जाते हैं। नये उत्पाद को प्रारम्भ करने के लिए प्रशिक्षित तथा अनुभवी कर्मचारी महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने में समर्थ हो जाते हैं, जो वर्तमान कार्य-पद्धति को नये रूप में आसानी से परिवर्तित कर देते हैं।

5. प्रबन्ध सोपानिकी (पदानुक्रम) का आधारअधिकार अन्तरण अधिकारी- अधीनस्थ सम्बन्ध बनाता है जो प्रबन्ध पदानुक्रम का आधार है। यह अधिकार के प्रवाह का क्रम है जो बतलाता है कि किसे किसको सूचना देनी है। जिस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण किया जाता है, काम पर संगठन में उसी सीमा तक वे प्रभावी होते हैं।

6. उत्तम सामंजस्य-अधिकार अन्तरण के तत्त्व जैसे अधिकार, उत्तरदायित्व, उत्तरदेयता, क्षमता-कर्तव्यों और जवाबदेही जो संगठन में विभिन्न स्तरों से सम्बन्धित होते हैं, व्यक्त करने में सहायता करते हैं। इससे कर्तव्यों की लीपापोती तथा पुनरावृत्ति रुकती है; क्योंकि प्रत्येक स्तर पर क्या काम करना है, इसकी स्पष्ट व्याख्या की हुई होती है । इस प्रकार का स्पष्टीकरण विभिन्न विभागों, स्तरों तथा प्रबन्ध के कार्यों में प्रभावी सामंजस्य स्थापित करने में सहायता करता है।

7. संगठन की आधारशिला-अधिकार अन्तरण संगठन की आधारशिला भी माना जाता है; क्योंकि बिना अधिकार सौंपे सहायक अधिकारी व अधीनस्थ कर्मचारी नहीं हो सकते हैं; और इनके अभाव में संगठन का निर्माण हो ही नहीं सकता है।

8. मनोबल में वृद्धि-अन्तरण के कारण अधीनस्थों में कार्य करने की इच्छा-शक्ति का विकास होता है, स्थिति में सुधार होता है और उनके कार्यों को भी महत्त्व मिलने लगता है। फलतः उनके मनोबल में वृद्धि होती है।

9. शीघ्रता-अधिकारों का अन्तरण करके कार्यों को शीघ्रतापूर्वक पूरा करवाया जा सकता है। प्रत्येक कार्य के लिए रोजमर्रा के निर्णय यथास्थान लिये जा सकते हैं। इससे कार्यों में देरी नहीं होती है। 

अधिकार अन्तरण के आवश्यक तत्त्व 
अधिकार अन्तरण के आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित-
1. अधिकार-अधिकार से तात्पर्य एक व्यक्ति के पास उस अधिकार से है जिसके द्वारा वह अपने अधीनस्थों को नियन्त्रित करता है तथा अपने पद के अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कार्यवाही करता है। अधिकार की धारणा निर्धारित सोपान श्रृंखला से प्रारम्भ होती है जो संगठन की विभिन्न स्थितियों तथा स्तरों तक जोड़ती है। 

औपचारिक संगठन में अधिकारों का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। उच्चाधिकारी को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर अधिकार प्राप्त होते हैं। अधिकार सम्बन्ध संस्थान में प्रबन्धक के अपने कार्य-बल को उचित आज्ञाकारिता तथा निर्देशन पर कानून व्यवस्था को बनाये रखने में सहायक होते हैं। अधिकार अन्तरण द्वारा उच्चाधिकारी एवं अधीनस्थ कर्मचारी अपने निर्णयों के विषय में इस आशा से कि वह कार्य को सही तरीके से पूरा करेगा तथा अधीनस्थ उस कार्य को बतायी गई विधि से जो उच्चाधिकारी ने समझायी थी, कार्यान्वित करता है। कार्य का उचित रूप से वितरण उच्चाधिकार के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है कि वह अधिकार अन्तरण करने में किन-किन सावधानियों को प्रयोग में लाता है। ... अधिकार अन्तरण उन निर्णयों को लेने का अधिकार प्रदान करता है; जो प्रबन्धकीय स्थितियों में निहित है कि व्यक्ति क्या करते हैं तथा उनसे क्या करने की अपेक्षा की जाती है।

अधिकार अन्तरण संगठन की कानून व्यवस्था तथा नियमों से बँधा हुआ होता है, जो इसके क्षेत्र को सीमित करते हैं, लेकिन फिर भी हम प्रबन्धकीय पदानुक्रम में जितना ऊपर की ओर बढ़ेंगे, अधिकारों का क्षेत्र उतना ही बढ़ता जाता है।

2. उत्तरदायित्व-एक अधीनस्थ कर्मचारी के लिए सौंपे गये कार्य का भली-भाँति निष्पादन करना उसका आवश्यक उत्तरदायित्व है। उत्तरदायित्वों की उत्पत्ति उच्चाधिकारी तथा अधीनस्थों के सम्बन्ध से होती है; क्योंकि एक अधीनस्थ अपने अधिकारी द्वारा बतलाये गये कार्यों को पूरा करने के लिए बाध्य होता है। उत्तरदायित्व ऊपर से नीचे की ओर प्रवाहित होता है क्योंकि एक अधीनस्थ सदैव अपने उच्चाधिकारी के प्रति उत्तरदायी होता है। अधिकार एवं उत्तरदायित्व में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। ये साथ-साथ चलने चाहिए। एक प्रभावी प्रत्यायोजन के लिए यह आवश्यक है कि जो उत्तरदायित्व सुपुर्द किया गया है उसी के अनुरूप अधिकार भी दिये जाने चाहिए। यदि उत्तरदायित्व से स्वीकृत अधिकार की मात्रा अधिक है तो अधिकारों का दुरुपयोग होगा। यदि अधिकारों से उत्तरदायित्व की मात्रा अधिक है तो सम्बन्धित व्यक्ति अप्रभावी हो जाता है।

3. उत्तरदेयता या जवाबदेही-इसमें कोई सन्देह नहीं है कि अधिकार अन्तरण एक कर्मचारी को अपने उच्चाधिकारी के प्रति काम करने की सामर्थ्यता देता है लेकिन फिर भी उत्तरदेयता या जवाबदेही अभी भी उच्चाधिकारी की ही बनी रहती है।

यहाँ जवाबदेही से तात्पर्य अन्तिम परिणाम का उत्तर देने योग्य होने से है। यदि एक बार अधिकार अन्तरित हो जाता है तथा उत्तरदायित्व स्वीकार कर लिया जाता है तो भी कोई जवाबदेही से इनकार नहीं कर सकता। जवाबदेही का न तो अन्तरण सम्भव है और न ही इसका प्रवाह ऊपर की ओर होता है अर्थात् अन्तरण की दशा में अधीनस्थ कर्मचारी ही अपने अधिकारी को कार्य को सही तरीके से पूरा करने के लिए जवाबदेह होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अधीनस्थ कर्मचारी को कार्य के सही सम्पादन के सन्दर्भ में अपने प्रबन्धक को आश्वस्त करना होता है। सामान्य तौर पर निरन्तर प्रतिपुष्टि द्वारा कार्य के पूरा करने के लिए दबाव बनाया जाता है। अधीनस्थ कर्मचारी से यह आशा की जाती है कि वह अपनी कार्यवाही के परिणामों एवं मूल्यों के सम्बन्ध में बतलायेगा।

प्रश्न 10. 
एक संगठन के कार्यात्मक ढाँचे का क्या अर्थ है ? इसके किन्हीं दो लाभों एवं किन्हीं दो सीमाओं की व्याख्या कीजिये।
अथवा 
'क्रियात्मक संगठन' से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं एवं लाभ-हानि को लिखिए।
अथवा 
क्रियात्मक संगठन (कार्यात्मक संगठन ढाँचा) से क्या आशय है? क्रियात्मक संगठन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कार्यात्मक ढाँचे/क्रियात्मक संगठन (कार्यात्मक संगठन) का अर्थ-कार्यात्मक संगठन ढाँचे की संरचना समस्त कार्यों के बड़े-बड़े कार्यात्मक विभागों में वर्गीकृत करके की जाती है। इसके अन्तर्गत समान प्रकृति के सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रखकर एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन कर दिया जाता है। सभी विभाग इस समन्वय अध्यक्ष को रिपोर्ट करते हैं। संगठन में व्यावसायिक संस्था के मुख्य कार्य का विभाजन उत्पादन, क्रय, विपणन, लेखा तथा कार्मिकों के रूप में किया जाता है। ये विभाग आगे उपवर्गों में विभाजित किये जा सकते हैं। इस प्रकार कार्यात्मक संगठन एक संगठनात्मक नमूना है जिसके समूह समान अथवा एक-रूप होते हैं या सम्बन्धित कार्य साथ-साथ होते हैं।

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कार्यात्मक संगठन ढाँचे की प्रमुख विशेषताएँ-
कार्यात्मक संगठन ढाँचे की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • कार्यात्मक संगठन ढाँचे की संरचना समस्त कार्यों को बड़े-बड़े कार्यात्मक विभागों में वर्गीकृत करके की जाती है। 
  • इस प्रकार के संगठन में समान प्रकृति के सभी कार्यों को संगठन के एक भाग में रखा जाता है। 
  • कार्यात्मक संगठन ढाँचा संरचना में सभी विभागों को एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के अधीन रखा जाता है। 
  • इसमें प्रत्येक विशिष्ट कार्य के लिए एक विशेषज्ञ होता है। 
  • प्रत्येक विशेषज्ञ केवल अपने विशिष्ट क्षेत्र के सम्बन्ध में ही आदेश एवं निर्देश देने का अधिकार रखता है। 
  • प्रत्येक विभाग को उप-विभागों में विभाजित किया जाता है। 
  • प्रत्येक विभाग अपनी रिपोर्ट समन्वयकर्ता अध्यक्ष को देता है।

कार्यात्मक संगठन ढाँचे के लाभ 
कार्यात्मक संगठन ढाँचे अथवा क्रियात्मक संगठन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होना-कार्यात्मक संगठन ढाँचा व्यावसायिक विशिष्टीकरण की ओर प्रेरित करता है; क्योंकि इसमें विशिष्ट कार्य पर ही जोर दिया जाता है। यह मानव शक्ति के उपयोग में दक्षता को प्रोत्साहित. करता है; क्योंकि कर्मचारी विभाग के अन्तर्गत एक ही प्रकार का कार्य करते रहते हैं और कम्पनी कार्य-विधि को उन्नतिशील एवं दक्ष बनाते हैं। इस प्रकार इस प्रकार के संगठन से संस्था को विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं।

2. सामन्जस्य तथा नियंत्रण-कार्यात्मक संगठन ढाँचे में विभाग के अन्तर्गत सामन्जस्य तथा नियंत्रण उन्नतिशील होता है; क्योंकि एक ही कार्य बार-बार किया जाता है। फलतः संस्था के विभागों में सामन्जस्य तथा नियन्त्रण प्रभावी रहता है। 

3. कौशल में वृद्धि-कार्यात्मक संगठन ढाँचा प्रबन्धकीय तथा संचालन सम्बन्धी कौशल में बढ़ोतरी करने में सहायता करता है जिसका परिणाम अधिक लाभदायक होता है अर्थात् इससे सम्पूर्ण संस्था के लाभों में वृद्धि होती है।

4. आर्थिक बचत एवं लागत में कमीकार्यात्मक संगठन कार्य की पुनरावृत्ति को कम करता है जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक बचत होती है और लागत भी कम होती है।

5. प्रशिक्षण को आसान बनाना-कार्यात्मक संगठन कर्मचारियों के प्रशिक्षण को आसान बनाता है क्योंकि इस प्रकार के संगठन में कार्यों को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर कर्मचारियों को सौंप दिया जाता है। ये कर्मचारी सौंपे गये कार्य को ही कुछ समय पश्चात् अधिक दक्षता से करने लगते हैं। इसमें कार्य का दायरा भी छोटा होता है। अतः प्रशिक्षण अधिक आसान रहता है।

6. कार्यों पर पूरा ध्यान-कार्यात्मक संगठन में समान प्रकृति के कार्य एक विभाग को सौंप दिये जाते हैं। सभी विभाग एक समन्वयकर्ता अध्यक्ष के नियन्त्रण में कार्य करते हैं। इससे स्वयं विभाग के मुखिया तथा समन्वयकर्ता अध्यक्ष के द्वारा कार्यों पर पूरा ध्यान दिया जाता है। इससे संस्था को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सफलता मिलती है।

कार्यात्मक संगठन ढाँचे के दोष/हानियाँ
कार्यात्मक संगठन ढाँचे अथवा क्रियात्मक संगठन के प्रमुख दोष या हानियाँ निम्नलिखित बतलायी जा सकती हैं-
1. संस्थान के अन्य उद्देश्यों पर कम ध्यानकार्यात्मक संगठन ढाँचे में कार्याध्यक्ष द्वारा बतलाये गये कार्यों की अपेक्षा संस्थान के अन्य सभी उद्देश्यों पर कम ध्यान दिया जाता है। इससे विभागों में आपसी विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

2. निर्णय में विलम्ब-संस्था के विकास एवं विस्तार होने से उसमें विभागों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इसके कारण विभिन्न विभागों में सही ढंग से समन्वय नहीं हो पाता तथा निर्णयों में भी विलम्ब हो जाता है।

3. हितों में टकराव-कार्यात्मक संगठन ढाँचे में कार्यों को समान प्रकृति के आधार पर अलग-अलग भागों में वर्गीकृत अलग-अलग विभागों को सौंप दिया जाता है। जब दो या दो से अधिक विभाग होते हैं और उनके हित अनुकूल नहीं हों तो हितों का टकराव या मनमुटाव होना स्वाभाविक ही होता है। इस प्रकार के हितों का टकराव संगठनात्मक हितों की पूर्ति में बाधक ही होता है। अन्तर्विभागीय झगड़े भी स्पष्ट उत्तरदायित्व पृथक्करण के अभाव में खड़े हो सकते हैं।

4. अस्थिरता-कार्यात्मक संगठन ढाँचे से अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जैसा कि एक ही चातुर्य तथा ज्ञान के आधार पर मनुष्यों में संकीर्ण सापेक्ष महत्त्व पनप सकता है जिससे किसी अन्य विचारधारा को महत्त्व देने में कठिनाई हो सकती है। कार्य प्रधान उच्च प्रबन्ध स्तरीय प्रशिक्षण नहीं प्राप्त कर पाते क्योंकि ये विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।

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प्रश्न 11. 
विकेन्द्रीकरण एक ऐच्छिक नीति है। समझाइये कि एक संगठन विकेन्द्रीकृत होना क्यों पसन्द करता है?
अथवा 
एक प्रबन्धक के रूप में किसी व्यावसायिक उद्यम में विकेन्द्रीकरण के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण प्रबन्धकीय सोपान श्रृंखला में निम्न स्तर के कर्मचारियों को अधिकार हस्तान्तरित करने से कहीं अधिक है। यह मान्यता है कि यह कार्यवाही केवल कुछ अधिकारों के अन्तरण में ही अपनायी जाती है तथा इस पर विश्वास कर लिया जाता है कि लोग योग्य हैं, सामर्थ्यवान हैं, भरोसेमन्द भी हैं। वे इनके निर्णयों को प्रभावपूर्ण विधि से लागू कर सकते हैं। इस प्रकार यह विचारधारा निर्णयकर्ताओं की स्वायत्तता की इच्छा को स्वीकृति प्रदान करती है। इस सम्बन्ध में प्रबन्ध को यह ध्यान रखना चाहिये कि वह किन-किन निर्णयों को निम्न स्तर तक स्थानान्तरित करे तथा किनकिन निर्णयों को उच्च स्तर पर ही रखे। इस प्रकार विकेन्द्रीकरण एक ऐच्छिक नीति है जिसे अपनाना या नहीं अपनाना प्रबन्धकों की इच्छा पर निर्भर करता है। 

विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता या महत्त्व
निम्नलिखित कारणों से एक संगठन विकेन्द्रीकृत होना पसन्द करता है-
1. अधीनस्थों में पहलपन की भावना का विकास-विकेन्द्रीकरण, अधीनस्थों में आत्मविश्वास तथा विश्वास की भावना को जागृत करता है। इससे ऐसे प्रतिभावान कर्मचारियों की खोज में भी सहायता मिलती है जो भविष्य में अच्छा नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं।

2. प्रबन्धकीय प्रतिभा का विकासविकेन्द्रीकरण में योग्य तथा दक्षता प्राप्त लोगों को अपनी प्रतिभा को सिद्ध करने का सुअवसर प्रदान किया जाता है, ताकि उन्हें भविष्य में पदोन्नति देकर अधिक जटिल कार्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जा सके। इस प्रकार विकेन्द्रीकरण प्रबन्धकीय शिक्षा का एक माध्यम है।

3. शीघ्र निर्णय-विकेन्द्रीकरण में निर्णय कार्यस्थल पर ही लिये जाते हैं तथा उच्च अधिकारियों या अन्य स्तरों से किसी प्रकार की अनुमति या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है, अतः निर्णय शीघ्रता से लिये जाते हैं।

4. सूचनाओं के विकृत होने की सम्भावना कम-विकेन्द्रीकरण में सूचनाओं को लम्बे रास्ते से नहीं गुजरना पड़ता है, अतः सूचनाओं के विकृत होने की सम्भावना कम ही होती है।

5. शीर्ष प्रबन्ध को राहत-विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यकलापों के प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण आदि में उच्चाधिकारियों को राहत मिल जाती है; क्योंकि वे अपने कार्य को निर्धारित सीमाओं के अन्दर जो उच्चाधिकारियों द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं, कार्य करते हैं। इस प्रकार विकेन्द्रीकरण में शीर्ष प्रबन्ध के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए अधिक समय मिल जाता है जिससे वे अधिक महत्त्वपूर्ण नीतियों तथा संचालन सम्बन्धी निर्णयों को अच्छी तरह ले लेते है।

6. विकास को सरल बनाता है-विकेन्द्रीकरण, निम्नस्तरीय प्रबन्धकों तथा प्रभागीय अथवा विभागीय मुख्याधिकारियों को महानतम स्वायत्तता प्रदान करता है। इस प्रकार उन्हें अपने विभागों के अनुकूल सर्वोत्तम विधि से कार्य करने का सुअवसर देता है तथा विभागीय प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित करता है। फलतः प्रत्येक विभाग द्वारा सर्वोत्तम कार्य करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलने से उत्पादन में वृद्धि होती है।

7. श्रेष्ठ नियन्त्रण-विकेन्द्रीकरण से प्रत्येक स्तर पर कार्य निष्पादन के मूल्यांकन का अवसर मिलता है जिससे प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से उनके परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों की उपलब्धि किस सीमा तक हुई या समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक विभाग कितना सफल हो सका, इसका भी निर्धारण किया जा सकता है। सभी स्तरों से प्रतिपुष्टि द्वारा भिन्नताओं का विश्लेषण करने तथा सुधारने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 12. 
संगठन से आप क्या समझते हैं ? संगठन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संगठन का अर्थ- सामान्य अर्थ में, संगठन व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो अपने सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपनी संस्था के संसाधनों तथा मानवीय प्रयासों में इस प्रकार सम्बन्ध स्थापित करता है कि न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणाम प्राप्त किये जा सकें।

संगठन शब्द के अर्थ को ठीक ढंग से समझने के लिए इसकी परिभाषाओं का निम्न आधारों पर वर्गीकरण कर सकते हैं-
(1) संगठन-एक ढाँचे के रूप में-इस अर्थ में संगठन दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो समान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मिल-जुलकर निर्धारित नियमों के अधीन कार्य करते हैं। यह क्षैतिज एवं लम्बवत् सम्बन्धों का एक ऐसा ढाँचा है जिसमें संस्था में कार्यरत विभिन्न व्यक्तियों के अधिकार दायित्व व आपसी सम्बन्ध सुनिश्चित किये जाते हैं।

(2) प्रक्रिया के रूप में संगठन-प्रक्रिया के रूप में संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कार्यों का निर्धारण एवं समूहीकरण, उनका व्यक्तियों में विभाजन तथा व्यक्तियों के मध्य अधिकार व दायित्व सम्बन्धों का निर्माण किया जाता है। 

लूइस ऐलन के अनुसार, "संगठन एक प्रक्रिया है जो कार्य को समझने तथा वर्गीकरण करने, अधिकार अंतरण को परिभाषित करने तथा मनुष्यों को अत्यधिक कार्य कुशलता के साथ, लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करने के लिए संबंध स्थापित करता है।"

थ्यो हेमैन के अनुसार, "संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा उपक्रम के कार्यों को परिभाषित एवं वर्गीकृत किया जाता है और उन्हें विभिन्न व्यक्तियों को सौंपकर उनके अधिकार संबंधों को निश्चित किया जाता है।"

निष्कर्ष-संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यों का विभाजन, उनका विभिन्न व्यक्तियों को सौंपना तथा संस्था के सभी अंगों को एक सूत्र में बाँधने के लिए विशिष्ट विभागों में सामञ्जस्य स्थापित करना सम्मिलित होता है।

संगठन की प्रमुख विशेषताएँ 
एक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. व्यक्तियों का समूह-संगठन दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह होता है, जो प्रबन्धकों के नेतृत्व एवं निर्देशन में कार्य करता है। संगठन की आवश्यकता वहीं होती है जहाँ पर अनेक व्यक्ति समूह के रूप में मिलकर कार्य करते हैं।

2. सामान्य उद्देश्य-संगठन साध्य न होकर एक साधन होता है जिसका निर्माण पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। संगठन में काम करने वाले सभी अधिकारी एवं कर्मचारी उन सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिलकर कार्य करते हैं।

3. प्रबन्ध का कार्य-संगठन प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। प्रबन्धकों द्वारा नियोजन, संगठन, समन्वय, अभिप्रेरण एवं नियन्त्रण आदि अनेक कार्य किये जाते हैं । संगठन के माध्यम से प्रबन्ध इन कार्यों को पूरा करता है।

4. सतत प्रक्रिया-संगठन एक सतत एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबन्धकों को संगठन सम्बन्धी क्रियाएँ हमेशा करनी होती हैं।

5. सहकारी सम्बन्ध-किसी संगठन की सफलता उसमें काम करने वाले व्यक्तियों के आपसी सहयोग पर निर्भर करती है। इस प्रकार संगठन उपक्रम में काम करने वाले व्यक्तियों के मध्य सहकारी सम्बन्ध स्थापित करने की पद्धति है। संगठन के बीच लम्बवत् एवं समतल दोनों ही प्रकार के सम्बन्ध होते हैं।

6. आदेश की श्रृंखला-प्रत्येक संगठन में सत्ता की क्रमबद्धता अथवा आदेश की श्रृंखला निर्धारित कर दी जाती है। किसी भी संगठन में आदेश अथवा सत्ता का प्रवाह उच्च प्रबन्ध से नीचे की ओर होता है। सम्पूर्ण सत्ता उच्च प्रबन्धकों में केन्द्रित होती है जिसका प्रत्यायोजन अधीनस्थों को किया जाता है।

7. कार्य का विभाजन-निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सभी कार्यों का संगठन में कार्य करने वाले व्यक्तियों के बीच विभाजन किया जाता है। कार्य का विभाजन करते समय एक समान प्रकृति वाले कार्यों को एक समूह में रखा जाता है। कार्यों को करने के लिए सत्ता सम्बन्धों की स्थापना भी की जाती है।

8. एक संरचना-संगठन व्यक्तियों का एक व्यवस्थित समूह होता है और उसकी एक संरचना होती है। संगठन संरचना में प्रत्येक पद की स्थिति स्पष्ट कर दी जाती है। वस्तुतः संगठन एक संरचना या ढाँचा है।

9. एक प्रणाली-संगठन एक प्रणाली है जो विभिन्न उप-प्रणालियों द्वारा निर्मित या संयोजित होती है। चूँकि संगठन का सम्बन्ध मनुष्यों से होता है, अतः संगठन को एक सामाजिक प्रणाली कहा जाता है। यह प्रणाली संगठन के बाह्य वातावरण से प्रभावित होती है और उसी के अनुरूप कार्य करती है।

10. गतिशील वातावरण-प्रत्येक संगठन का अपना वातावरण होता है जिसमें रह कर कार्य करता है। जिस वातावरण से संगठन प्रभावित होता है वह गतिशील होता है। यह वातावरण संगठन के सुअवसर प्रदान करता है और कभी-कभी खतरे भी उत्पन्न करता है।

11. व्यवस्थित कार्यप्रणाली-संगठन की कार्यप्रणाली व्यवस्थित होती है। संगठन की अपनी नीतियाँ, कार्य-विधियाँ, नियम एवं नियमन आदि होते हैं। संगठन सम्पन्न की जाने वाली क्रियाओं के सम्पादन के समय इन नीतियों, नियमों एवं कार्यविधियों का पालन किया जाता है। 

12. संचार प्रणाली-संगठन में औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों ही प्रकार की संचार प्रणाली कार्य करती है। औपचारिक संचार प्रणाली संगठन की अधिकार रेखाओं के अनुरूप कार्य करती है।

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प्रश्न 13. 
एक प्रबन्धक के रूप में आप संगठन प्रक्रिया को किस प्रकार क्रियान्वित करेंगे?
उत्तर:
संगठन प्रक्रिया में अन्तर्निहित कदम/चरण
एक प्रबन्धक के रूप में संगठन प्रक्रिया को क्रियान्वित करने के लिए हम निम्न कदमों अथवा चरणों का पालन करेंगे-
1. कार्य की पहचान तथा विभाजन करनासंगठन प्रक्रिया के प्रथम चरण में पूर्व-निर्धारित योजनाओं की पहचान की जाती है तथा कार्य का विभाजन किया जाता है। कार्य का विभाजन करते समय यह ध्यान में रखा जाता है कि कार्य करने से पुनरावृत्ति नहीं हो तथा कार्य का बोझ सभी कर्मचारियों में विभाजित हो जाये।

2. विभागीकरण-संगठन प्रक्रिया के इस चरण में जब कार्य को छोटी-छोटी तथा प्रबन्धकीय क्रियाओं में विभक्त कर दिया जाता है तो उनमें से जो क्रियाएँ समान प्रकृति की हैं उनका साथ-साथ समूहन कर दिया जाता है। इस प्रकार का निर्धारण विशिष्टीकरण को सरल बनाता है। इस समूहबद्ध करने की क्रिया को विभागीकरण कहते हैं। विभागों की रचना कुछ लक्षणों को आधार मान कर की जा सकती है। उनमें से कुछ अति प्रचलित आधार क्षेत्र या उत्पाद हो सकते हैं। 

3. कर्तव्यों का निर्धारण-जब एक बार विभागों का निर्माण कर दिया जाता है तो प्रत्येक कार्य एक व्यक्ति के सुपुर्द कर दिया जाता है। इसके उपरान्त विभिन्न कार्यों को प्रत्येक विभाग के सदस्यों में उनकी निपुणता तथा सक्षमता के आधार पर आबंटित कर दिया जाता है। एक व्यक्ति की योग्यता तथा कार्य की प्रकृति में सुमेल स्थापित करना प्रभावी निष्पादन के लिए अति आवश्यक है।

4. वृत्तांत (रिपोर्टिंग) सम्बन्ध स्थापन-केवल कार्य का आबंटन मात्र ही पर्याप्त नहीं होता। प्रत्येक कर्मचारी को यह ज्ञात होना चाहिए कि उसे किससे आदेश प्राप्त करने हैं तथा वह किसके प्रति जवाबदेह है। इस प्रकार का स्पष्ट सम्बन्ध स्थापन कर्मचारियों का सोपानिक ढाँचा तैयार करने में सहायता करता है तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित करने में भी सहायता देता है।

प्रश्न 14. 
विकेन्द्रीकरण से क्या आशय है? विकेन्द्रीकरण के महत्त्व की विवेचना कीजिये एवं प्रत्यायोजन तथा विकेन्द्रीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विकेन्द्रीकरण का अर्थ-सामान्य अर्थ में, विकेन्द्रीकरण का तात्पर्य निर्णय शक्ति का संगठन में निम्न स्तर तक फैलाव किये जाने से है। दूसरे शब्दों में, विकेन्द्रीकरण का अर्थ प्रबन्धकीय निर्णय लेने का अधिकार उन सभी व्यक्तियों के हाथों में सौंपने से है जो कार्य या उस निर्णय से सम्बन्धित हो।

लुइस एलन के अनुसार, "विकेंद्रीकरण से तात्पर्य केवल केन्द्रीय बिन्दुओं पर ही प्रयोग किए जाने वाले अधिकारों को छोड़कर शेष सभी अधिकारों को व्यवस्थित रूप से निम्न स्तरों को सौंपने से है।"

हैनरी फेयॉल के अनुसार, "हर, वह कदम जो अधीनस्थों की भूमिका के महत्त्व को बढ़ाता है, विकेन्द्रीकरण कहलाता है तथा हर, वह कदम जो इसको घटाता है, केन्द्रीकरण कहलाता है।"

निष्कर्ष-विकेन्द्रीकरण तब होता है जब कि उच्चाधिकारी अपने अधिकारों एवं दायित्वों को अधीनस्थों को सौंपते हैं। इन अधिकारों के परिणामस्वरूप अधीनस्थ अपने कार्यों के सम्बन्ध में स्वयं निर्णय ले सकते हैं।

विकेन्द्रीकरण का महत्त्व 
विकेन्द्रीकरण के महत्त्व को हम निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा सकते हैं-
1. अधीनस्थों में पहलपन की भावना का विकास-विकेन्द्रीकरण, अधीनस्थों में आत्मविश्वास तथा विश्वास की भावना को जागृत करता है। इससे ऐसे प्रतिभावान कर्मचारियों की खोज में भी सहायता मिलती है जो भविष्य में अच्छा नेतृत्व प्रदान कर सकते हैं। 

2. प्रबन्धकीय प्रतिभा का विकास विकेन्द्रीकरण से योग्य तथा दक्षता प्राप्त लोगों को अपनी प्रतिभा को सिद्ध करने का सुअवसर प्रदान किया जाता है, ताकि उन्हें भविष्य में पदोन्नति देकर अधिक जटिल कार्यों को पूरा करने के लिए नियुक्त किया जा सके। इस प्रकार विकेन्द्रीकरण प्रबन्धकीय शिक्षा का एक माध्यम

3. शीघ्र निर्णय-विकेन्द्रीकरण में निर्णय कार्यस्थल पर ही लिये जाते हैं तथा उच्च अधिकारियों या अन्य स्तरों से किसी प्रकार की अनुमति या स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है, अतः निर्णय शीघ्रता से लिये जाते हैं।

4. शीर्ष प्रबन्ध को राहत-विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्यकलापों के प्रत्यक्ष रूप से पर्यवेक्षण आदि में उच्चाधिकारियों को राहत मिल जाती है; क्योंकि वे अपने कार्य को निर्धारित सीमाओं के अन्दर जो उच्चाधिकारियों द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं, कार्य करते हैं। इस प्रकार विकेन्द्रीकरण में शीर्ष प्रबन्ध के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए अधिक समय मिल जाता है जिससे वे अधिक महत्त्वपूर्ण नीतियों तथा संचालन सम्बन्धी निर्णयों को अच्छी तरह ले लेते हैं।

5. विकास को सरल बनाता है-विकेन्द्रीकरण, निम्नस्तरीय प्रबन्धकों तथा प्रभागीय अथवा विभागीय मुख्याधिकारियों को महानतम स्वायत्तता प्रदान करता है। इस प्रकार उन्हें अपने विभागों के अनुकूल सर्वोत्तम विधि से कार्य करने का सुअवसर देता है तथा विभागीय प्रतियोगिता के लिए प्रोत्साहित करता है। फलतः प्रत्येक विभाग द्वारा सर्वोत्तम कार्य करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलने से उत्पादन में वृद्धि होती है।

6. श्रेष्ठ नियन्त्रण-विकेन्द्रीकरण से प्रत्येक स्तर पर कार्य-निष्पादन के मूल्यांकन का अवसर मिलता है जिससे प्रत्येक विभाग व्यक्तिगत रूप से उनके परिणामों के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है। संगठन के उद्देश्यों की उपलब्धि किस सीमा तक हुई या समस्त उद्देश्यों को प्राप्त करने में प्रत्येक विभाग कितना सफल हो सका, इसका भी निर्धारण किया जा सकता है। सभी स्तरों से प्रतिपुष्टि द्वारा भिन्नताओं का विश्लेषण करने तथा सुधारने में सहायता मिलती है।

प्रत्यायोजन तथा विकेन्द्रीकरण में अन्तर
[नोट-प्रत्यायोजन (अधिकारों का अन्तरण) तथा विकेन्द्रीकरण के अन्तर को पूर्व प्रश्न संख्या 8 के उत्तर में पढ़ें।]

प्रश्न 15. 
एक सुदृढ़ संगठन की किन्हीं आठ पूर्वापेक्षाओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
एक सुदृढ़ संगठन की पूर्वापेक्षाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक सुदृढ़ संगठन की पूर्वापेक्षाएँ 
एक सुदृढ़ संगठन की पूर्वापेक्षाएँ निम्नलिखित हैं-

  • उद्देश्यों के प्रति सजगता-संगठन में कार्यरत सभी कर्मचारियों को संस्था के उद्देश्यों के प्रति सजग रहना चाहिए तथा उन सभी में उनकी प्राप्ति के लिए एकरूपता होनी चाहिए।
  • स्पष्टता-संगठन में प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों, अधिकारों, दायित्वों एवं सम्बन्धों की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। 
  • विशिष्टीकरण-संगठन में विशिष्टीकरण की नीति को अपनाते हुए प्रत्येक व्यक्ति को वही कार्य सौंपा जाना चाहिए जिसके लिए वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से उपयुक्त हो।
  • सत्ता की स्पष्ट रेखाएँ-संगठन में ऊपर से नीचे तक अधिकार रेखाएँ स्पष्टतः उल्लेखित होनी चाहिए। अध्यक्ष से लेकर प्रत्येक कर्मचारी तक का अधिकार क्षेत्र स्पष्ट होना चाहिए।
  • नियन्त्रण का विस्तार एक सुदृढ़ संगठन में प्रबन्धक के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में कर्मचारियों की संख्या सीमित ही होनी चाहिए। यह संख्या कार्य की प्रकृति, अधीनस्थों की कार्यक्षमता तथा प्रबन्धकों की योग्यता पर निर्भर करती है।
  • अधिकारों का अन्तरण-एक सुदृढ़ संगठन वही माना जाता है जिसमें अधीनस्थों को पर्याप्त मात्रा में अधिकार सौंपे जायें ताकि वे अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह आसानी से कर सकें।
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व में समानता-सुदृढ़ संगठन के लिए अधिकार एवं उत्तरदायित्व में समानता होनी चाहिए। अधिकारों का अन्तरण उत्तरदायित्वों के अनुरूप ही किया जाना चाहिए।
  • आदेश की एकता-सुदृढ़ संगठन के लिए यह आवश्यक है कि उसमें प्रत्येक कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश प्राप्त होने चाहिए। एक समय में अलग-अलग अधिकारियों से आदेश प्राप्त होने से भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • निदेशन की एकता-संगठन के कार्यों को प्रभावशाली तरीके से समय पर पूरा करने के लिए यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि एक कर्मचारी के पास एक समय में एक ही योजना होनी चाहिए।
  • सन्तुलन-सुदृढ़ संगठन वह है जो सन्तुलित हो। यह विभिन्न विभागीय प्रयासों को आनुपातिक एवं सन्तुलित महत्त्व प्रदान करता है। वैसे भी सुदृढ़ संगठन संस्था के साधनों एवं प्रयासों में उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सन्तुलन एवं सामंजस्य स्थापित करता है।
  • सरलता-संगठन संरचना सरल होनी चाहिए ताकि उपक्रम में काम करने वाला प्रत्येक व्यक्ति उसको आसानी से समझ सके।
  • निरन्तरता-संगठन संरचना एक सतत एवं निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
  • समन्वय-सुदृढ़ संगठन में उचित एवं प्रभावशाली समन्वय की व्यवस्था होती है। संगठन के विभिन्न विभागों, कर्मचारियों, अधिकारियों में प्रभावपूर्ण समन्वय होना परमावश्यक है।
  • प्रभावी सम्प्रेषण-सुदृढ़ संगठन के लिए संगठन में आपसी विचारों के आदान-प्रदान करने, आदेश-निर्देश देने, शिकायत, सुझाव व कार्य का प्रतिवेदन प्रस्तुत करने आदि में सम्प्रेषण की आवश्यकता होती है।
  • लोचशीलता-संगठन संरचना लोचशील होनी चाहिए ताकि परिवर्तनशील परिस्थितियों के अनुरूप संगठन में आवश्यक परिवर्तन आसानी से किया जा सके।

RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 5 संगठन

प्रश्न 16. 
एक प्रबन्धक के रूप में संगठन का किसी व्यावसायिक उद्यम में महत्त्व समझाइये।
अथवा 
एक व्यावसायिक उद्यम में संगठन की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
व्यावसायिक संस्था में संगठन के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर:
एक व्यावसायिक उद्यम में संगठन की भूमिका/महत्त्व 
1. विशिष्टीकरण के लाभ-संगठन से विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं। क्योंकि, संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं के नियमानुसार आबंटन में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है तथा उत्पादन की मात्रा भी बढ़ जाती है। लगातार एक ही प्रकार का कार्य करते रहने से कर्मचारी विशेषज्ञता प्राप्त कर लेता है और वह अपने कार्य में दक्ष हो जाता है।

2. कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरणसंगठन कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण करता है, सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसको किसे रिपोर्ट करनी है, यह बतलाता है। इसके साथ ही संगठन सूचना तथा अनुदेशों के स्थानान्तरण में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम के निर्धारण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्वों को निर्धारित किया जा सके तथा एक व्यक्ति द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

3. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग-संगठन के द्वारा संस्था के सभी भौतिक, वित्तीय तथा मानव संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग सम्भव होता है। इसमें कार्य का विभाजन उचित ढंग से होता है। इससे काम की लीपापोती रुकती है तथा संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग सम्भव होता है। यह काम के दोहराव से दूर रखता है जिससे प्रयासों तथा संसाधनों के अपव्यय को कम किया जा सकता है। सन्देहों की भी रोकथाम होती

4. परिवर्तनों में अनुकूल बनाना-संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक संस्थाओं को व्यावसायिक पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करती है। यह संगठन संरचना में प्रबन्धकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन तथा आपसी सम्बन्धों के संशोधनों में पारगमन का मार्ग प्रशस्त करती है। संगठन व्यावसायिक संस्थाओं को परिवर्तनों के अनुकूल बनाकर उन्हें जीवित रखता है।

5. प्रभावी प्रशासन-संगठन कार्यों तथा उसके सम्बन्ध में कर्तव्यों को स्पष्ट करता है। यह संस्था को असमंजस तथा पुनरावृत्ति से बचाता है। कार्यकरण में स्पष्ट सम्बन्ध स्थापित होने से कार्य का निष्पादन ठीक प्रकार से होता है। संगठन का प्रबन्ध आसान होता है तथा प्रशासन प्रभावपूर्ण ढंग से कार्य करता है।

6. कार्मिकों का विकास-संगठन, प्रबन्धकों में सृजनात्मकता को बढ़ावा देता है। प्रबन्धक अपने अधीनस्थों को अपने कुछ दैनिक कार्यों के अधिकार अन्तरित कर देते हैं, इससे अधिकारियों का कार्यभार हल्का हो जाता है। अधिकार अन्तरण किये जाने से प्रबन्धकों को कार्य करने के नये तरीके सीखने एवं विकसित करने का ज्ञान प्राप्त होता है। इससे उन्हें संस्था की प्रतियोगी अवस्था को सुदृढ़ बनाने तथा नवीनीकरण के लिए नये क्षेत्र तथा विकास के लिए अवसर प्राप्त होते हैं। अधिकार अन्तरण अधीनस्थ कर्मचारियों को चुनौतियों का प्रभावपूर्ण ढंग से मुकाबला करने तथा अपनी सामर्थ्य को समझने में सहायता प्रदान करता है।

7. विकास एवं विस्तार-संगठन एक व्यावसायिक उद्यम को वर्तमान तौर-तरीकों से नये आयामों में परिवर्तित होने से सहायता करता है। संगठन उद्यमों में कार्य करने का माहौल तैयार करता है, उत्पादन क्रियाओं में विभिन्नता लाता है, कार्यक्षेत्र का विस्तार करता है। कुल मिलाकर संस्था के विकास एवं विस्तार में योगदान देता है।

8. सामूहिक कार्य-भावना के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना-संगठन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से प्रबन्धक संस्था में व्याप्त अव्यवस्थाओं को मिटा सकता है, कर्मचारियों में काम अथवा उत्तरदायित्व सम्बन्धी झगड़ों को कम कर सकता है तथा सामूहिक कार्य-भावना के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार कर सकता है।

प्रश्न 17. 
अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन की किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर:
अनौपचारिक संगठन का जन्म औपचारिक संगठन से होता है, जब व्यक्ति अधिकाधिक तौर पर बतलायी गई भूमिकाओं से परे आपस में मेल-मिलाप से कार्य करते हैं। जब कर्मचारी स्वतन्त्रतापूर्वक सम्पर्क बनाते हैं तो उन्हें किसी कठोर औपचारिक संगठन की ओर नहीं धकेला जा सकता। बल्कि वे मैत्रीपूर्ण व सहयोगपूर्ण विचारों से एक ग्रुप बनाने की ओर झुकते हैं, यह उनके आपसी हितों की अनुरूपता को प्रकट करता है। अनौपचारिक संगठन के कोई लिखित नियम नहीं होते हैं। इसका कोई क्षेत्र अथवा रूप भी निश्चित नहीं होता है तथा न ही इसकी कोई सम्प्रेषण की निश्चित रूपरेखा होती है। अनौपचारिक समूहों का प्रयोग संगठन की उन्नति तथा सहयोग के लिए किया जा सकता है। ऐसे समूह उपयोगी संचार सुलभ कराते हैं। अनौपचारिक संचार या सम्प्रेषण के माध्यम से कर्मचारियों के आपसी तथा कर्मचारियों एवं उच्च अधिकारियों के मध्य विवाद सुलझाने का कार्य भली-भाँति किया जा सकता है। 

संगठन के उद्देश्यों को मितव्ययी ढंग से प्राप्त करने तथा कार्यों को सुगमतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए प्रबन्धकों को औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार के संगठनों का युक्तिपूर्ण ढंग से उपयोग करना चाहिए। अनौपचारिक संगठन को यदि भली-भाँति नियन्त्रित किया जाये तो औपचारिक संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति में अनौपचारिक संगठन अत्यधिक उपयोगी साबित हो सकता है। अनौपचारिक संगठन औपचारिक. संगठन के कर्मचारियों की कार्य सन्तुष्टि में वृद्धि करता है तथा संगठन में अपनत्व की भावना को जागृत करता है। इसके साथ ही अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में, औपचारिक संगठन की कमियों को दूर करने में सहायता करता है।

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Last Updated on June 24, 2022, 8:05 p.m.
Published June 22, 2022