Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 4 नियोजन Important Questions and Answers.
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बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
नियोजन प्रबन्ध प्रक्रिया का कार्य है-
(अ) प्रथम
(ब) द्वितीय
(स) तृतीय
(द) चतुर्थ।
उत्तर:
(अ) प्रथम
प्रश्न 2.
नियोजन का अर्थ-
(अ) भविष्य के विषय में पहले से निश्चित करना कि भविष्य में क्या करना है।
(ब) अनिश्चितताओं को दूर करना।
(स) नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करना।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 3.
नियोजन का आधार है-
(अ) विभिन्न संसाधन
(ब) पूर्वानुमान
(स) सामग्री
(द) प्रबन्धक।
उत्तर:
(ब) पूर्वानुमान
प्रश्न 4.
नियोजन कार्य है-
(अ) सर्वव्यापी
(ब) आकस्मिक
(स) कभी-कभी
(द) आवश्यकता होने पर।
उत्तर:
(अ) सर्वव्यापी
प्रश्न 5.
नियोजन निम्न में से किस प्रकार की प्रक्रिया है?
(अ) आर्थिक
(ब) सामाजिक
(स) बौद्धिक
(द) राजनैतिक।
उत्तर:
(स) बौद्धिक
प्रश्न 6.
नियोजन प्रबन्ध के किस स्तर पर किया जाता है?
(अ) उच्च स्तर पर
(ब) मध्यम स्तर पर
(स) निम्न स्तर पर
(द) सभी स्तरों पर।
उत्तर:
(द) सभी स्तरों पर।
प्रश्न 7.
नियोजन आवश्यक है-
(अ) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए
(ब) संगठन संरचना के लिए
(स) सरकारी नीतियों की क्रियान्विति के लिए
(द) संसाधनों के उपयोग के लिए।
उत्तर:
(अ) निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए
प्रश्न 8.
नियोजन प्रक्रिया के चरण हैं-
(अ) उद्देश्यों का निर्धारण
(ब) वैकल्पिक विधियों की पहचान करना
(स) विकल्पों का मूल्यांकन एवं चयन करना
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 9.
नियोजन का लक्षण नहीं है-
(अ) नियोजन निर्देशन की व्यवस्था करता है।
(ब) नियोजन नियन्त्रण में सहायक नहीं होता है।
(स) नियोजन निर्णय लेने को सरल बनाता है।
(द) नियोजन नियन्त्रण के मानकों का निर्धारण करता है।
उत्तर:
(ब) नियोजन नियन्त्रण में सहायक नहीं होता है।
प्रश्न 10.
नियोजन का संघटक नहीं है-
(अ) उद्देश्य
(ब) कार्य-विधि
(स) पर्यवेक्षण
(द) कार्यक्रम।
उत्तर:
(स) पर्यवेक्षण
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
नियोजन का अर्थ बताइये।
उत्तर:
नियोजन का अर्थ उद्देश्यों का निर्धारण करना तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित कार्यविधि को विकसित करना है।
प्रश्न 2.
"नियोजन, नव-प्रवर्तन विचारों को प्रोत्साहित करता है।" कैसे?
उत्तर:
नियोजन प्रबन्ध का प्रथम कार्य है, नवीन विचार योजना का साकार रूप ले सकते हैं अतः नियोजन नव-प्रवर्तन विचारों को प्रोत्साहित करता है।
प्रश्न 3.
"नियोजन एक मानसिक अभ्यास है।" कैसे?
उत्तर:
क्योंकि नियोजन में दूरदर्शिता के साथ मस्तिष्क के अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है, साथ ही बुद्धिमत्तापूर्ण कल्पना एवं ठोस निर्णय भी आवश्यक होते हैं।
प्रश्न 4.
"नियोजन समय नष्ट करने वाली प्रक्रिया है।" समझाइए।
उत्तर:
कभी-कभी योजनाएँ तैयार करने में इतना समय बर्बाद हो जाता है कि उन्हें लागू करने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं बचता है।
प्रश्न 5.
"नियोजन में निर्णय रचना निहित है।" कैसे?
उत्तर:
नियोजन विभिन्न विकल्पों में से प्रत्येक विकल्प का पूर्ण परीक्षण तथा मूल्यांकन करके उनमें से किसी एक सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करता है।
प्रश्न 6.
नियोजन प्रक्रिया में 'विकल्पों के चुनाव' को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
यह निर्णय लेने का उपयुक्त बिन्दु है। इसके अन्तर्गत प्रबन्धक विभिन्न विकल्पों में से किसी एक सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करता है।
प्रश्न 7.
'कार्यक्रम' शब्द को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
कार्यक्रम एक परियोजना के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण होते हैं जो आवश्यक उद्देश्यों, नीतियों, कार्यविधियों, नियमों, कार्यों, मानवीय तथा भौतिक संसाधनों तथा किसी कार्य को करने के बजट की रूपरेखा बनाते हैं।
प्रश्न 8.
'व्यूहरचना' से आपका क्या आशय है ?
उत्तर:
व्यूहरचना से आशय उस योजना से है जो संगठन को प्रतिस्पर्धी वातावरण सफल बनाने के लिए बनायी जाती है एवं एक व्यावसायिक संस्थान की रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 9.
प्रबन्ध प्रकार्य नियोजन की एक सीमा लिखिये।
उत्तर:
नियोजन में भारी लागत आती है। यह धन या समय के रूप में ही हो सकती है।
प्रश्न 10.
“नियोजन निर्णय लेने को सरल बनाता है।" समझाइये।
उत्तर:
नियोजन लक्ष्यों का निर्धारण करता है तथा भविष्य की दशाओं पर भविष्यवाणी करता है। अतः सर्वोत्तम निर्णय लिये जा सकते हैं।
प्रश्न 11.
नियोजन प्रक्रिया में एक चरण के रूप में 'एक विकल्प का चयन करना' से क्या आशय होता है ?
उत्तर:
उद्देश्य प्राप्ति के लिए उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करना है जो योजना के निर्णय का कार्य करता है।
प्रश्न 12.
"नियोजन में चयन शामिल है।" संक्षेप में व्याख्या कीजिये। ...
उत्तर:
नियोजन के अन्तर्गत उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन किया जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि नियोजन में चयन शामिल है।
प्रश्न 13.
नियोजन (Planning) को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
नियोजन प्रबंधक को विचार देता है कि अमुक कार्य को कैसे किया जाए। यह निश्चय कराता है कि भविष्य में क्या करना है तथा कैसे करना है? यह सृजनात्मकता एवं नवप्रवर्तन से अति निकट से जुड़ा हुआ है।
प्रश्न 14.
नीति एवं कार्यविधि में एक अन्तर बतलाइये।
उत्तर:
नीतियाँ संस्था के किसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु मार्गदर्शक सिद्धान्त निर्धारित करती हैं, जबकि कार्यविधियाँ उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग या ढंग बतलाती हैं।
प्रश्न 15.
योजना के एक तत्त्व (प्रकार) के रूप में 'नीति' का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
नीतियों का अर्थ उन सामान्य विवरण अथवा सहमतियों से है जो व्यावसायिक उपक्रम के कार्यों अथवा निर्णयों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करती हैं।
प्रश्न 16.
नियोजन की कोई दो मर्यादाएँ बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 17.
नियोजन प्रक्रिया के प्रथम दो कदमों को बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 18.
उद्देश्य एवं नीतियों में अन्तर बताइये।
उत्तर:
उद्देश्य व्यावसायिक योजना के लक्ष्यों की व्याख्या करते हैं, जबकि नीतियाँ उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए की जाने वाली कार्यवाही का मार्गदर्शन करती हैं।
प्रश्न 19.
नियोजन के प्रकार बताइये।
उत्तर:
प्रश्न 20.
नियोजन के किन्हीं दो लक्षणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
प्रश्न 21.
"नियोजन, सृजनशीलता को प्रतिबन्धित करता है।" व्याख्या करें।
उत्तर:
नियोजन केवल योजना के अनुसार ही चलने पर अत्यधिक जोर देता है। प्रबन्धक इसमें अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकते हैं।
प्रश्न 22.
नियोजन अनिश्चितता के जोखिम को कैसे कम करता है?
उत्तर:
चूँकि नियोजन में वातावरण का अध्ययन करके भावी घटनाओं एवं जोखिमों का अनुमान लगाया जाता है। फलतः व्यवसाय की अनिश्चितताओं में कमी की जा सकती है।
प्रश्न 23.
नियोजन की सीमा के रूप में 'कठोरता' की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
नियोजन के अन्तर्गत जो योजनाएँ बनायी जाती हैं उनमें परिवर्तन करने की अवस्था में नहीं रहते हैं । क्योंकि नियोजन में योजनाओं का कठोरता से पालन किया जाता है।
प्रश्न 24.
नियोजन के महत्त्व को स्पष्ट करने वाले कोई दो तत्त्व लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 25.
नियोजन की कोई दो सीमाएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 26.
पूर्वानुमान क्या है?
उत्तर:
पूर्वानुमान से तात्पर्य भावी परिस्थितियों का आकलन एवं मूल्यांकन करके भावी लक्ष्यों का निर्धारण करना है।
प्रश्न 27.
विधि (Method) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विधि कार्यविधि का एक अंग है, जो कार्यविधि के प्रत्येक चरण को पूरा करने के लिए अपनायी जाती है।
प्रश्न 28.
बजट किसे कहते हैं ?
उत्तर:
बजट से तात्पर्य योजना के उस रूप से है जिसमें परिणामों की आँकड़ों में या परिमाणात्मक रूप से व्याख्या की जाती है।
प्रश्न 29.
कार्यविधि क्या है?
उत्तर:
कार्यविधि उन विभिन्न चरणों की क्रमबद्ध श्रृंखला है जो किसी विशिष्ट को पूरा करने के लिए निर्धारित की जाती है।
प्रश्न 30.
विकल्पों की खोज क्यों की जाती है ?
उत्तर:
नियोजन प्रक्रिया के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के विकल्पों की खोज सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चयन के लिए की जाती है।
प्रश्न 31.
अनुवर्तन से क्या आशय है?
उत्तर:
अनुवर्तन से आशय योजना के क्रियान्वयन पर निगरानी रखने तथा योजना के परिणामों की नियोजन के उद्देश्यों से तुलना करने से है।
प्रश्न 32.
नियोजन को प्रबन्ध के कार्यों का आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके बिना प्रबन्ध के अन्य कार्य; जैसे-संगठन, समन्वय, निर्देशन, अभिप्रेरण तथा नियन्त्रण आदि प्रारम्भ किये जा सकते हैं।
प्रश्न 33.
नियोजन की प्रकृति के दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 34.
नियोजन की आवश्यकता बतलाइये। (कोई दो बिन्दु)
उत्तर:
प्रश्न 35.
नियोजन के प्रमुख तत्त्व या अंग बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 36.
नियोजन के सन्दर्भ में उद्देश्य का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
नियोजन में सबसे पहला कार्य उद्देश्यों का निर्धारण करना है। उद्देश्य वह है जिसे आप क्रिया के अंततः-परिणाम के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं।
प्रश्न 37.
'नियमों' एवं 'नीतियों' में अन्तर बतलाइये।
उत्तर:
नियमों का पालन अक्षरशः करने का प्रयास किया जाता है, जबकि नीतियों में कुछ परिवर्तन करके भी उन्हें लागू किया जा सकता है।
प्रश्न 38.
प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संस्था में कार्य कैसे सम्पन्न करना है? इसकी विस्तृत विधि, प्रक्रिया बतलाती है। ये प्रक्रियाएँ एक विशिष्ट कालानुक्रमिक क्रम में होती हैं।
प्रश्न 39.
नियोजन किससे अति निकट से जुड़ा हुआ रहता है ?
उत्तर:
नियोजन सृजनात्मकता तथा नवप्रवर्तन से अति निकट से जुड़ा हुआ है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
नियोजन क्या है ?
उत्तर:
नियोजन का अर्थ-नियोजन का अर्थ पहले से यह निश्चय करना है कि भविष्य में क्या करना है तथा कैसे करना है। यह सृजनात्मकता तथा नवप्रवर्तन से अति निकट से जुड़ा हुआ है। नियोजन की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब किसी एक क्रिया को पूरा करने के लिए अनेक विकल्प विद्यमान हों। यथार्थ में, नियोजन से तात्पर्य उद्देश्यों का निर्धारण तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित कार्यविधि को विकसित करने से है। नियोजन सभी प्रबन्धकीय निर्णयों तथा कार्यवाहियों को दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। ये पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विवेकपूर्ण मार्ग भी सुलभ कराते हैं।
सार रूप में, नियोजन से आशय उद्देश्यों तथा लक्ष्यों का निर्धारण तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए एक कार्यविधि का निरूपण करने से है। यह क्या करना है तथा कैसे करना है, दोनों से सम्बन्धित है।
प्रश्न 2.
नियोजन एक मानसिक अभ्यास है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन एक मानसिक अभ्यास हैनियोजन में दूरदर्शिता को साथ लेते हुए मस्तिष्क के अनुप्रयोग की आवश्यकता होती है। बुद्धिमत्तापूर्ण कल्पना एवं ठोस निर्णय भी आवश्यक होते हैं। यह मानसिक चिंतन की क्रिया है, क्योंकि नियोजन में जो कार्य करना है उसका निर्णय लिया जाता है। नियोजन के लिए सोच क्रमानुसार तथा तत्त्वों एवं पूर्वानुमानों के विश्लेषण पर आधारित होनी चाहिए। नियोजन के लिए तार्किक तथा नियमित विचारधारा की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3.
नियोजन उद्देश्यपूर्ण होता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक संस्थाओं की स्थापना उद्देश्य प्राप्त करने के लिए ही होती है। विशिष्ट उद्देश्य, लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किये जाने वाले क्रिया-कलापों के साथ योजनाओं में निर्धारित किये जाते हैं। अतः नियोजन उद्देश्यपूर्ण होता है। नियोजन तब तक निरर्थक होता है जब तक यह संस्थानों के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग प्रदान नहीं करता है। नियोजन के द्वारा ही उद्देश्यों तथा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्यों, साधनों, कार्यविधियों आदि का निर्धारण किया जाता है। नियोजन का मूल उद्देश्य संस्था के उद्देश्यों को न्यूनतम लागत एवं प्रयासों से अधिकतम सफलता के साथ पूरा करना तथा संस्था की कार्यकुशलता में वृद्धि करना होता है। अत: नियोजन उद्देश्यपूर्ण होता है।
प्रश्न 4.
नियोजन में निर्णयन सम्मिलित है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
नियोजन में निर्णयन सम्मिलित है-बिना निर्णय लिये नियोजन किया ही नहीं जा सकता है। निर्णयन से तात्पर्य उपलब्ध विकल्पों में से किसी श्रेष्ठ विकल्प का चयन करना है। नियोजन निश्चित रूप से विभिन्न विकल्पों तथा क्रियाओं में से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करता है। यदि केवल एक ही सम्भावित लक्ष्य या केवल एक ही कार्य करने की विधि हो तो नियोजन की कोई आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि वहाँ कोई अन्य विकल्प ही नहीं है। नियोजन की आवश्यकता केवल उसी समय होती है जब विकल्प होते हैं। यथार्थ में यह मान लिया जाता है कि हर क्रिया का विकल्प अवश्य उपलब्ध होता है। अतः नियोजन प्रत्येक विकल्प का पूर्ण परीक्षण तथा मूल्यांकन के उपरान्त ही उनमें से किसी एक सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि निर्णयन नियोजन में अन्तर्निहित है।
प्रश्न 5.
आपकी राय में एक अच्छी नीति में कौन-कौनसी विशेषताएँ होनी चाहिए? किन्हीं छः विशेषताओं को बताइये।
अथवा
एक अच्छी नीति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एक अच्छी नीति की विशेषताएँ-
प्रश्न 6.
नीतियों एवं कार्य-विधियों में कोई चार अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नीतियों एवं कार्यविधियों में अन्तर
1. मार्गदर्शन-नीतियाँ निर्णयन में प्रबन्धकों का मार्गदर्शन करती हैं जबकि कार्यविधियाँ, कार्यों के निष्पादन में अधीनस्थों का मार्गदर्शन करती हैं।
2. निर्धारण-नीतियाँ प्रायः संगठन के उच्चस्तरीय प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जबकि कार्यविधियाँ प्रायः मध्यस्तरीय एवं निम्नस्तरीय प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
3. क्षेत्र-नीतियों का क्षेत्र कार्यविधियों की तुलना में अधिक व्यापक होता है। कार्यविधियाँ नीतियों के भीतर रहकर निर्धारित की जाती हैं।
4. आधार-नीतियाँ व्यावसायिक संगठन के उद्देश्यों एवं व्यूह-रचनाओं पर आधारित होती हैं। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा व्यूह-रचनाओं को लागू करने के लिए नीतियाँ बनायी जाती हैं, जबकि कार्यविधियों का निर्धारण नीतियों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
प्रश्न 7.
नियोजन के किन्हीं दो तत्त्वों या संघटकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोजन के तत्त्व या संघटक
1. उद्देश्य-नियोजन का सबसे पहला एवं महत्त्वपूर्ण घटक उद्देश्य है; क्योंकि नियोजन में सर्वप्रथम उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। उद्देश्य, प्रबन्ध का वह गंतव्य स्थान है जहाँ उसे भविष्य में पहुँचना है। उद्देश्य सम्पूर्ण व्यावसायिक नियोजन के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। संगठन में विभिन्न विभाग या इकाइयाँ अपने-अपने उद्देश्य अलग रख सकते हैं।
2. नीतियाँ-नीतियाँ सामान्य कथन हैं जो विचारों का मार्गदर्शन अथवा एक विशिष्ट दिशा में आगे बढ़ने के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। सामान्य शर्तों में व्यक्त की गई व्यूह-रचना, नीति विश्लेषण का आधार होती है। वस्तुतः नीतियाँ विस्तृत पैरामीटर्स की व्याख्या करती हैं जिनके अन्तर्गत प्रबन्धक कार्य कर सकते हैं। प्रबन्धक नीतियों को अपनाने तथा निर्वाचन के लिये उपयोग में ला सकता है। इस प्रकार नीतियाँ उच्च प्रबन्धकों के विचारों और उनके द्वारा अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों को कुछ वक्तव्यों या निर्देशों के रूप में व्यक्त कर देती हैं।
प्रश्न 8.
नियोजन व पूर्वानुमान में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन व पूर्वानुमान में अन्तर
प्रश्न 9.
नियम और कार्यविधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियम और कार्यविधि में अन्तर
प्रश्न 10.
कार्यविधि तथा पद्धति में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कार्यविधि (Procedure) तथा पद्धति (Method) में अन्तर
प्रश्न 11.
उद्देश्य तथा नीतियों में कोई चार अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य तथा नीतियों में अन्तर
प्रश्न 12.
बजट किसे कहते हैं?
उत्तर:
बजट-एक योजना के रूप में बजट अपेक्षित परिणामों की गणनात्मक शब्दों में विवेचना है। इसमें इच्छित परिणामों की प्राप्ति के लिए समय, सामग्री, धन तथा अन्य साधनों के उपयोग की योजना- दी हुई रहती है। दूसरे शब्दों में, बजट एक ऐसी योजना है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति के लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं और इन्हें प्राप्त करने के समय, धन और अन्य साधनों के व्यय के अनुमान दिये जाते हैं। बजट का संचालन नियन्त्रण प्रक्रिया का अंग है। इसके फलस्वरूप, प्रबन्धक वास्तविक प्रगति की बजट की प्रगति से तुलना कर सकते हैं और यह निश्चित कर सकते हैं कि यदि कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सके तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
प्रश्न 13.
व्यूह-रचना से क्या आशय है?
उत्तर:
व्यूह-रचना-व्यू ह-रचना अथवा मोर्चाबन्दी से आशय उस योजना से है जो कठिन एवं विपरीत परिस्थितियों में विजय प्राप्त करने के लिए बनायी जाती है। यह संगठन को प्रतिस्पर्धी वातावरण में सफल बनाने के लिए बनायी जाती है। जब दो या अधिक संस्थाएँ एक ही उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आपस में प्रतियोगिता करती हैं तो प्रत्येक संस्था यह प्रयत्न करती है कि दूसरी संस्था की योजना का मुकाबला कर सके। अतः व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए व्यूह-रचनाओं का निर्माण किया जाता है।
प्रश्न 14.
नीतियों से क्या आशय है ?
उत्तर:
नीतियाँ-नियोजन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नीतियाँ बनायी जाती हैं। ये नीतियाँ उच्च प्रबन्धकों के विचारों और उनके द्वारा अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों को कुछ वक्तव्यों या निर्देशों के रूप में व्यक्त कर देती हैं। अधीनस्थ अधिकारी उस नीति से सम्बन्धित विषयों पर निर्णय लेते समय उस नीति में स्पष्ट किये गये सिद्धान्तों का ध्यान रखते हैं और उसमें दी गई निर्णय सीमाओं के भीतर निर्णय लेते हैं। यद्यपि नीतियाँ उद्देश्यों की भाँति ही निर्णय के कार्य में मार्गदर्शन का कार्य करती हैं लेकिन ये उद्देश्यों से भिन्न होती हैं; क्योंकि उद्देश्य नियोजन की मंजिल है जबकि नीतियाँ इस मंजिल पर पहुँचने की विधियाँ । नीतियाँ नियमों से भी भिन्न होती हैं। संगठन के स्तर के आधार पर नीतियाँ, उच्च प्रबन्ध की नीतियाँ, क्षेत्रीय नीतियाँ तथा विभागीय नीतियों में विभाजित की जा सकती हैं।
प्रश्न 15.
नियोजन में 'प्रक्रिया' को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन में 'प्रक्रिया'-नियोजन में प्रक्रिया से आशय दैनिक गतिविधियों के संचालन से है। दैनिक गतिविधियों में किसी कार्य को किस प्रकार सम्पन्न करना है, इसका तरीका अथवा विस्तृत विधि, प्रक्रिया ही बतलाती है। ये प्रक्रियाएँ एक विशिष्ट कालानुक्रमिक क्रम में होती हैं। जैसे उत्पादन से पहले माल मँगाने की कोई प्रक्रिया हो सकती है। विशेष परिस्थितियों में प्रक्रियाओं के चुनाव के विशिष्ट ढंग हैं। वे सामान्यतया आंतरिक लोगों के अनुसरण के लिए होते हैं। कार्य जो करता है या कार्य का क्रम सामान्यतः पूर्वनिर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नीति का दबाव ही होता है। नीतियाँ तथा प्रक्रिया दोनों आपस में एक दूसरे से संबंधित हैं। इस प्रकार प्रक्रिया का अर्थ विस्तृत नीतिगत ढाँचे के अंतर्गत कार्य करने से है।
प्रश्न 16.
कार्यविधि किसे कहते हैं?
उत्तर:
कार्यविधि-स्थायी व निरन्तर नियोजन की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी कार्यविधि भी है। कार्यविधि वह प्रणाली या तरीका है, जिसके अनुसार कार्यवाही की जाती है। कार्यविधि की व्याख्या नीति व्याख्या से अधिक निश्चयात्मक होती है; क्योंकि इसमें उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले प्रयत्नों का निश्चित समय क्रम दिया रहता है। इस प्रकार क्रम-निर्धारण कार्यविधि का अनिवार्य अंग है। कार्यविधि नीति से भिन्न होती है क्योंकि कार्यविधि वास्तविक कार्यवाही का मार्गदर्शन करती है, जबकि नीति निर्णय प्रक्रिया में मदद देती है। यथार्थ में कार्यविधि यह निश्चय करती है कि कोई काम किस क्रम में, कब-कब तथा किसके द्वारा किया जाएगा।
प्रश्न 17.
प्रमाप (मानक) से आप क्या समझते
उत्तर:
प्रमाप (मानक) का अर्थ-प्रमाप या मानक किसी भी कार्य का वह आदर्श स्तर है जिसकी कार्य का निष्पादन करने वाले व्यक्ति से निष्पादन करने की अपेक्षा की जाती है, संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबन्धक सभी कार्यों के लिए प्रमाप या मानक निर्धारित कर देते हैं और अधीनस्थों से उन प्रमापों के अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा करते हैं। नियोजन के अन्तर्गत इन प्रमापों का वास्तविक कार्य-परिणामों से तुलना की जाती है और विचलनों को ज्ञात करके सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है। इस प्रकार प्रमाप कार्य की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। प्रमापों के निर्धारण के बिना प्रबन्धकों द्वारा उपक्रम की क्रियाओं पर नियन्त्रण करना कठिन होता है। अतः प्रमाप पूर्ण सावधानी के साथ निर्धारित किये जाने चाहिए।
प्रश्न 18.
नियोजन प्रक्रिया के प्रथम चार चरणों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
नियोजन प्रक्रिया के प्रथम चार चरण-
1. उद्देश्यों का निर्धारण-सर्वप्रथम नियोजन प्रक्रिया के अन्तर्गत उद्देश्यों का निर्धारण किया जाना चाहिए। ये उद्दद्देश्य पूरे संगठन तथा प्रत्येक विभाग के लिए निर्धारित किये जाने चाहिए। इसके साथ ही सभी विभागों की इकाइयों तथा कर्मचारियों के उद्देश्यों का स्पष्टीकरण होना चाहिए। इनकी जानकारी भी होनी चाहिए।
2. विकासशील आधार-उद्देश्य निर्धारण के पश्चात् इस चरण में भविष्य के विषय में कुछ आधार या अवधारणाएँ बना लेनी चाहिए। क्योंकि अवधारणाएँ ही वे भौतिक आधार हैं जिन पर योजनाएँ तैयार की जाती हैं। ये भौतिक आधार पूर्वानुमान, वर्तमान योजना या नीतियों के विषय में कोई भूतकालीन सूचना हो सकती है। आधार विकसित करने में पूर्वानुमान महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि यह सूचनाएँ एकत्रित करने की तकनीक है। एक सफल नियोजन के लिए यथार्थ पूर्वानुमान लगाया जाना आवश्यक है।
3. कार्यवाही की वैकल्पिक विधियों की पहचान करना-नियोजन प्रक्रिया के इस चरण में कार्यवाही की वैकल्पिक विधियों की पहचान की जाती है। कार्यवाही करने तथा लक्ष्यों को प्राप्त करने की अनेक विधियाँ हो सकती हैं। जो भी कार्यवाही हाथ में ली जाये वह जानीपहचानी तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
4. विकल्पों का मूल्यांकन करना-नियोजन प्रक्रिया के इस चरण में प्रत्येक विकल्प के गुण एवं दोषों की जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए। एक ही विकल्प के कई रूप हो सकते हैं जिनकी आपस में तुलना करनी चाहिए। प्राप्त किये जाने वाले उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक विकल्प के पक्ष एवं विपक्ष के दोनों पहलुओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। विकल्पों का मूल्यांकन उनकी सम्भाव्यता तथा परिणामों को ध्यान में रख कर किया जाता है।
प्रश्न 19.
नियोजन की चार विशेषताएँ समझाइये।
अथवा
नियोजन के किन्हीं चार लक्षणों का उल्लेख कीजिये।
अथवा
नियोजन की कोई तीन विशेषताएँ दीजिये।
उत्तर:
नियोजन की विशेषताएँ-
1. नियोजन का केन्द्र-बिन्दु लक्ष्य प्राप्त करना होता है-नियोजन का केन्द्र- बिन्दु लक्ष्य प्राप्त करना होता है अर्थात् नियोजन उद्देश्यपूर्ण होता है। नियोजन तब तक निरर्थक होता है जब तक यह संस्थानों में पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहयोग प्रदान नहीं करे।
2. नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य हैनियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है और यह प्रबन्ध के अन्य कार्यों को आधार प्रदान करता है क्योंकि निर्धारित नियोजन के ढाँचे के अन्तर्गत ही समस्त प्रबन्धकीय कार्यों की निष्पत्ति की जाती है।
3. नियोजन सर्वव्यापी है-नियोजन संस्थानों के सभी विभागों तथा प्रबन्धन के सभी स्तरों पर वांछनीय होता है। यह न तो उच्च स्तरीय प्रबन्धन का और न ही किसी विशेष विभाग का अनन्य कार्य है। लेकिन नियोजन का क्षेत्र विभिन्न स्तरों तथा विभिन्न विभागों में भिन्न होता है।
4. नियोजन अविरत है-यद्यपि योजनाएँ एक विशिष्ट समय के लिए तैयार की जाती हैं जैसे एक माह के लिए, एक वर्ष के लिए। उस समय के पूरा हो जाने पर नवीन आवश्यकतानुसार या भविष्य की आवश्यकतानुसार नयी योजना बनाने की आवश्यकता होती है। अतः नियोजन कभी समाप्त नहीं होने वाली क्रिया है। यह एक निरन्तर प्रक्रिया है। नियोजन की यह निरन्तरता नियोजन चक्र से सम्बन्धित है।
प्रश्न 20.
नियोजन की कोई चार सीमाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
नियोजन की प्रमुख सीमाएँ
1. नियोजन दृढ़ता उत्पन्न करता है-एक स्थान में एक लक्ष्य को निश्चित समय में पाने के लिए सुनियोजित योजना तैयार की जाती है। यही योजनाएँ भविष्य में कार्य करने की विधि निर्धारित करती हैं।
2. नियोजन दृढ़ता उत्पन्न करता है-संस्था में लक्ष्य को निश्चित समय में प्राप्त करने के लिए सुनियोजित योजना तैयार की जाती है। यही योजनाएँ भविष्य में कार्य करने की विधि निर्धारित करती हैं। प्रबन्धक इनमें परिवर्तन करने की स्थिति में नहीं रहते हैं। नियोजन में इस तरह की दृढ़ता परेशानी ही पैदा करती है।
3. नियोजन में भारी लागत आती है-नियोजन एक खचीली व्यवस्था है। क्योंकि नियोजन के लिए विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण करना पड़ता है। इसमें पर्याप्त शक्ति, समय एवं धन खर्च किया जाता है। यही कारण है कि छोटी संस्थाएँ तो धनाभाव के कारण नियोजन को अपना ही नहीं पाती हैं।
4. परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता-व्यावसायिक वातावरण परिवर्तनशील है। कुछ भी स्थाई नहीं है। इसमें बहुत से आयाम सम्मिलित हैं जैसे-आर्थिक, राजनैतिक, भौतिक कानूनी तथा सामाजिक आयाम।
प्रश्न 21.
"नियोजन कर्मचारियों को दिशानिर्देश प्रदान करता है।" स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नियोजन का सम्बन्ध पहले से ही निर्धारित कार्यविधि से होता है। यह कर्मचारियों को यह दिशा निर्देश प्रदान करता है कि उन्हें क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है एवं किस प्रकार से करना है। कार्य कैसे किया जाना है, का पहले से ही वर्णन करके नियोजन कार्य के लिए निर्देशन प्रदान करता है। नियोजन के माध्यम से कर्मचारी पहले से ही यह जान जाते हैं कि उन्हें किस दिशा में आगे बढ़ना है। इसके साथ ही यदि लक्ष्यों को सही रूप में समझाया गया है तो कर्मचारियों को यह ज्ञात होता है कि संगठन को क्या करना है तथा लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए? विभिन्न विभाग तथा संगठन के व्यक्ति कार्य में सामन्जस्य स्थापित करने में समर्थ होते हैं। यदि कोई योजना नहीं होगी तो कर्मचारियों की कार्य करने की दिशाएँ भिन्न होंगी तथा संगठन अपने उद्देश्यों को प्रभावी एवं कुशलतापूर्वक प्राप्त नहीं कर सकता है। इस प्रकार यह कहा जाता है कि नियोजन कर्मचारियों को दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
प्रश्न 22.
"नियोजन प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है।" समझाइये।
अथवा
"नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है।" स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नियोजन प्रबन्ध के अन्य कार्यों के लिए आधार प्रदान करता है। निर्धारित नियोजन के ढाँचे के अन्तर्गत ही. समस्त प्रबन्धकीय कार्यों की निष्पत्ति की जाती है। अतः नियोजन अन्य कार्यों यथा संगठन, समन्वय, नियुक्तिकरण, सम्प्रेषण, निर्देशन एवं नियन्त्रण से पहले आता है। प्रबन्ध के विभिन्न कार्य आपस में परस्पर सम्बन्धित अवश्य हैं और समान रूप से महत्त्वपूर्ण भी हैं किन्तु फिर भी नियोजन सभी के लिए आधार प्रदान करता है। वास्तविक रूप में नियोजन वह प्राथमिक या प्रारम्भिक कार्य है जिसके लिए प्रबन्ध प्रक्रिया के अन्य कार्यों को करने की आवश्यकता होती है। इसीलिए प्रो. हैरी ने लिखा है कि, "नियोजन से कार्यों को निर्धारित किये बिना संगठन के लिए कुछ नहीं होगा, अभिप्रेरणा के लिए भी कोई नहीं होगा तथा नियन्त्रण की आवश्यकता भी नहीं होगी।"
इसके अतिरिक्त नियोजन में इस बात का निर्णय किया जाता है कि क्या करना है, कहाँ करना है, कब करना है, कैसे करना है और किस व्यक्ति के द्वारा किया जाना है, सम्मिलित है। बिना नियोजन के किसी भी कार्य को करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
प्रश्न 23.
उपयुक्त उदाहरण का उपयोग करते हुए योजना के प्रकार के रूप में उददेश्य एवं नीति को समझाइये।
उत्तर:
1. उद्देश्य- नियोजन का एक प्रमुख घटक या तत्त्व उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। उद्देश्य, प्रबन्धन का वह गंतव्य स्थान है जहाँ उसे भविष्य में पहुँचना है। उद्देश्य संस्थान के आदि हैं तथा प्रबन्धन जिन्हें अपने प्रयत्नों से प्राप्त करना चाहता है वे अन्त हैं। अतः उद्देश्य वह है जिसे आप क्रिया के अन्ततः परिणाम के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए, एक संगठन का उद्देश्य बिक्री को 10% बढ़ाना हो सकता है या व्यापार में विनियोजित पूँजी पर 20% सन्तुलित लाभ अर्जित करना चाहते हैं वे नियोजन का अन्तिम लक्ष्य दिखाते हैं। प्रबन्धन की अन्य क्रियाएँ भी इन उद्देश्यों की ओर ही निर्देशित हैं। वे सामान्यतया संस्थान के उच्चस्तरीय प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं तथा वे विस्तृत, सामान्य, परिणामों पर केन्द्रित होती हैं। वे भविष्य के क्रियाकलापों को परिभाषित करते हैं जिन्हें पाने के लिए संस्थान संघर्षरत रहते हैं। उद्देश्यों को किसी खास अवधि में व्यक्त किया जाना चाहिए।
2. नीतियाँ- नीतियाँ सामान्य कथन हैं जो विचारों का मार्गदर्शन अथवा एक विशिष्ट दिशा में अग्रसर होने के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। यदि कोई सुस्थापित नीति होती है तो समस्याओं अथवा मतभेदों का समाधान आसानी से किया जा सकता है। वास्तव में नीतियाँ किसी विशेष समाज या अवस्था के लिए सामान्य प्रतिक्रियाएँ हैं। वस्तुतः नीतियाँ विस्तृत प्राचल (पैरामीटर्स) की व्याख्या करती हैं जिनके अन्तर्गत प्रबन्धक कार्य कर सकते हैं। प्रबन्धक नीतियों को अपनाने तथा निर्वाचन के लिए उपयोग में ला सकता है। उदाहरण के लिए, क्रय नीति के अन्तर्गत लिये गये निर्णय माल के निर्माण या क्रय के रूप में हो सकते हैं। क्या कम्पनी को पैकेजेज की आवश्यकता पूर्ति के लिए स्वयं निर्माण करना चाहिए या क्रय करना चाहिए? सार रूप में, नीतियाँ उच्च प्रबन्धकों के विचारों और उनके द्वारा अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों को कुछ वक्तव्यों या निर्देशों के रूप में व्यक्त कर देती हैं।
प्रश्न 24.
नियोजन प्रक्रिया में निहित कार्यों की सूची तैयार कीजिये।
उत्तर:
नियोजन प्रक्रिया में निहित कदम
प्रश्न 25.
नियोजन में निम्न को समझाइए-
(i) व्यूह रचना
(ii) कार्यक्रम
उत्तर:
(i) व्यूह-रचना-व्यूह -रचना एक व्यावसायिक संस्थान की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। यह संगठन के दीर्घकालीन निर्णय तथा निर्देशन में सम्बन्ध स्थापित करती है। अत: यह कहा जा सकता है कि व्यूहरचना एक व्यापक योजना है जो संगठन के उद्देश्यों को पूरा करती है। जब कभी एक व्यूह-रचना तैयार की जाती है तो व्यावसायिक पर्यावरण को ध्यान में रखना आवश्यक होता है; क्योंकि व्यावसायिक पर्यावरण में होने वाला परिवर्तन व्यूह-रचना को प्रभावित करता है।
(ii) कार्यक्रम-कार्यक्रम वह योजना है जिसमें उन सभी क्रियाओं का व्यवस्थित क्रमबद्ध विवरण होता है जिनसे किसी विशिष्ट कार्य या उद्देश्य की पूर्ति की जानी है। इसका निर्माण संस्था की नीतियों में बतलायी गई मार्गदर्शक बातों के आधार पर किया जाता है। अन्य शब्दों में, कार्यक्रम एक परियोजना के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण होते हैं जो आवश्यक उद्देश्यों, नीतियों, कार्यविधियों, नियमों, कार्यों, मानवीय तथा भौतिक संसाधनों तथा किसी कार्य को करने के बजट की रूपरेखा बनाते हैं। कार्यक्रम में संगठन की सभी क्रियाएँ तथा नीतियाँ सम्मिलित होती हैं कि वे व्यवसाय की कुल योजना में कैसे सहयोग करेंगी। कार्यक्रम में इस बात का भी उल्लेख होता है कि कौनसी क्रिया, किसके द्वारा, किस समय, किन साधनों से, किस विधि से पूर्ण की जायेगी।
प्रश्न 26.
नियोजन क्या है ?
उत्तर:
नियोजन क्या है ? नियोजन का अर्थ पहले से ही यह निश्चित करना है कि भविष्य में क्या करना है तथा कैसे करना है। यह सृजनात्मकता तथा नवप्रवर्तन से अतिनिकट से जुड़ा हुआ है। नियोजन हम कहाँ खड़े हैं तथा कहाँ पहुँचना है ? इन दोनों के बीच एक सेतु का कार्य करता है। नियोजन की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब किसी एक क्रिया को पूरा करने के लिए अनेक विकल्प विद्यमान हों। यथार्थ में, नियोजन से तात्पर्य उद्देश्यों का निर्धारण तथा उन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित कार्यविधि को विकसित करने से है। नियोजन सभी प्रबन्धकीय निर्णयों तथा कार्यवाहियों को दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। ये पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विवेकपूर्ण मार्ग भी सुलभ कराते हैं।
सार रूप में, नियोजन से आशय उद्देश्यों तथा लक्ष्यों का निर्धारण तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए एक कार्यविधि का निरूपण करने से है। यह क्या करना है तथा कैसे करना है, दोनों से सम्बन्धित है।
प्रश्न 27.
नियोजन किस प्रकार से निर्णयन में सहायक है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन निर्णयन में सहायक होता है; क्योंकि नियोजन के विभिन्न तत्त्वों, यथा-नीतियाँ, नियम, कार्यविधियाँ, बजट, कार्यक्रम आदि को ध्यान में रखकर ही संस्था के सभी सदस्य निर्णय करते हैं। संस्था के सभी सदस्य बिना किसी भेदभाव के एक समान निर्णय कर सकते हैं।
इसके साथ ही नियोजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है एवं उत्तम कार्यविधि का चुनाव किया जाता है। अतः प्रबन्धक भावी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय कर सकते हैं। फलतः नियोजन के कारण निर्णय उतावले नहीं हो सकते हैं।
नियोजन लक्ष्यों का निर्धारण करता है तथा भविष्य की दशाओं पर भविष्यवाणी करता है। अतः इसकी सहायता से बुद्धिमतापूर्ण निर्णय आसानी से लिये जा सकते हैं।
प्रश्न 28.
संक्षेप में समझाइये कि नियोजन किस प्रकार से समन्वय में सहायता करता है?
उत्तर:
नियोजन के कारण संस्था के उद्देश्य स्पष्ट हो जाते हैं, नीतियाँ एवं नियम निश्चित हो जाते हैं, कार्य-विधियाँ एवं कार्यक्रम भी तय रहते हैं। संस्था के सभी सदस्य उनको ठीक ढंग से जानने एवं समझने लग जाते हैं। इससे उन सभी कार्यों में प्रभावी समन्वय बना रहता है। प्रबन्धक भी सभी के कार्यों में आसानी से समन्वय स्थापित कर लेते हैं।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नियोजन द्वारा क्रिया स्तर पर लक्ष्यों, नीतियों, बजट, कार्यक्रमों, अधिकारों एवं उत्तरदायित्वों का निर्धारण करके विभिन्न क्रियाओं में एकरूपता लायी जा सकती है। . यथार्थ में, संस्था के विभिन्न कार्यों एवं क्रियाओं के मध्य प्रभावी समन्वय की स्थापना नियोजन द्वारा ही की जाती है।
प्रश्न 29.
नियोजन किस प्रकार से नियन्त्रण में सहायक है ? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
नियोजन से नियन्त्रण करना आसान हो जाता है। नियोजन एक ऐसा तंत्र है जिसके द्वारा एक प्रबन्धक अपने अधीनस्थों की कार्यक्षमता एवं कार्यों पर आसानी से नियन्त्रण स्थापित कर सकता है। नियोजन लक्ष्यों या मानकों की व्यवस्था करता है जिससे वास्तविक निष्पादन का आकलन करना सम्भव होता है। वास्तविक निष्पादन को मानकों से तुलना करने पर यह जानकारी प्राप्त हो सकती है कि क्या वास्तव में हमने लक्ष्यों की प्राप्ति कर ली है? यदि कुछ भिन्नता है तो नियन्त्रण की आवश्यकता हो सकती है। अतः यह कहा जा सकता है कि नियोजन, नियन्त्रण से पूर्व की आवश्यकता है। यदि कोई लक्ष्य या मानक नहीं हों तो भिन्नताओं का पता लगाना, जो नियंत्रण के आवश्यक अंग हैं, सम्भव नहीं होगा। सुधारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है कि लक्ष्यों या मानकों तथा भिन्नताओं में कितना अन्तर है? अत: नियोजन, नियन्त्रण का आधार होता है।
नियोजन स्वयं में नियन्त्रण भी है, क्योंकि विकल्पों की सम्भावनाओं को पहले से ही ज्ञात करके उन्हें उत्पन्न नहीं होने देने की व्यवस्था नियोजन द्वारा ही की जाती है।
प्रश्न 30.
क्या आप यह सोचते हैं कि बदलते पर्यावरण में नियोजन कार्य कर सकता है ?
उत्तर:
नियोजन की विभिन्न विशेषताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियोजन प्रत्येक बदलती हुई अवस्था में कार्य कर सकता है। नियोजन का केन्द्रबिन्दु सदैव लक्ष्य-प्राप्ति होता है। नियोजन उद्देश्यपूर्ण होने के कारण बदलते पर्यावरण में भी आवश्यक है। नियोजन सदैव से प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य रहा है। यह अन्य कार्यों को आधार भी प्रदान करता है। यदि नियोजन नहीं होगा तो प्रबन्ध के अन्य कार्यों को पूरा करवाने में कठिनाई आयेगी। नियोजन प्रत्येक संस्थान के सभी विभागों, सभी परिस्थितियों तथा प्रबन्धन के सभी स्तरों पर वांछनीय होता है। इसका क्षेत्र प्रत्येक स्तर पर अलग-अलग हो सकता है। परन्तु प्रत्येक विभागाध्यक्ष के लिए नियोजन कभी समाप्त नहीं होने वाला कार्य है। इसमें भविष्य में झाँकने तथा विश्लेषण व भविष्यवाणी (पूर्वानुमान) सम्मिलित है। नियोजन का उद्देश्य भविष्य की घटनाओं से संस्थान के हित में कुशलतापूर्वक सामना करना है। नयोजन में निर्णय लेना निहित है।
प्रश्न 31.
नियोजन की निम्न सीमाओं को समझाइये :
(i) परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता।
(ii) नियोजन रचनात्मकता को कम करता है।
उत्तर:
(i) परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता-व्यावसायिक वातावरण स्थायी नहीं होता है, यह परिवर्तनशील होता है। इसमें-आर्थिक, राजनैतिक, भौतिक, काननी तथा सामाजिक-अनेक आयाम सम्मिलित होते हैं। यदि इन आयामों में कोई परिवर्तन आता है तो वातावरण के रुझान का सही-सही मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। ऐसे में बाजार की प्रतियोगिता वित्तीय योजना को अस्त-व्यस्त कर देती है। इसके कारण बिक्री के लक्ष्य को बदलना पड़ता है तथा रोकड़ बजट में भी आवश्यक बदलाव करना होता है क्योंकि ये सभी बिक्री पर ही आश्रित होते हैं। नियोजन आगे आने वाले परिवर्तनों का पहले से ज्ञान नहीं रख सकता। अतः यह कहा जा सकता है कि परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता।
(i) नियोजन रचनात्मकता को कम करता हैनियोजन एक ऐसी क्रिया है जिसकी रचना उच्चस्तरीय प्रबन्धन के द्वारा की जाती है। मध्यस्तरीय तथा निम्नस्तरीय प्रबन्धक इन योजनाओं को कार्यान्वित करते हैं। ये प्रबन्धक उच्च प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित योजनाओं में कोई परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। उन्हें अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता भी नहीं होती है। इससे उनकी सृजनात्मकता अन्दर ही दब कर रह जाती है। इसी प्रकार कर्मचारी भी योजनाओं का निरूपण नहीं करते बल्कि केवल आज्ञा पालन ही करते हैं। अत: नियोजन रचनात्मकता को कम करता है।
प्रश्न 32.
नियमों को योजनाएँ क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
नियम एक प्रकार की योजनाएँ हैं जो विशिष्ट परिस्थितियों में की जाने वाली कार्यवाही को स्पष्ट करते हैं। ये कार्यवाही का मार्गदर्शन करते हैं लेकिन कार्यवाही से भिन्न होते हैं, क्योंकि इनमें कार्य करने का क्रम नहीं दिया जाता है। वस्तुतः नियम वे विशिष्ट विवरण हैं जो यह बतलाते हैं कि क्या करना है? वे किसी प्रकार की समझ-बूझ या ढिलाई की इजाजत नहीं देते हैं। ये प्रबन्धकों द्वारा लिये गये निर्णयों का प्रतिबिम्ब होते हैं कि अमुक कार्य निश्चित रूप से होना है तथा अमुक कार्य निश्चित रूप से नहीं होना है। ये सबसे सरल योजनाएँ होती हैं क्योंकि इनमें न तो कोई समझौता होता है और न ही कोई परिवर्तन, जब तक कि प्रबन्धन द्वारा कोई नीति सम्बन्धी निर्णय न लिया जाये।
प्रश्न 33.
नियोजन किस प्रकार नियन्त्रण को सम्भव बनाता है?
उत्तर:
नियोजन नियन्त्रण को सम्भव बनाता है-नियोजन नियन्त्रण के मानकों को निर्धारित करने में सहायक होता है। यह नियन्त्रण को सम्भव बनाता है। नियोजन लक्ष्यों एवं मानकों की व्यवस्था करता है, जिससे वास्तविक निष्पादन का आकलन सम्भव होता है। वास्तविक निष्पादन को मानकों से तुलना करने पर हम यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि क्या वास्तव में हमने लक्ष्यों की प्राप्ति कर ली है? यदि कुछ अन्तर है तो नियन्त्रण की आवश्यकता हो सकती है। अतः हम यह कह सकते हैं कि नियोजन, नियन्त्रण की पूर्व आवश्यकता है। यदि कोई मानक निर्धारित नहीं किया जाता है तो विचलन या भिन्नता का पता नहीं लग सकता है और नियन्त्रण भी सम्भव नहीं हो सकता। दोष निवारक कार्यवाही की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है कि मानकों तथा भिन्नताओं में कितना अन्तर है। अत: यह कहा जा सकता है नियोजन ही नियन्त्रण को सम्भव बनाता है।
प्रश्न 34.
एकल प्रयोग योजना को समझाइये।
उत्तर:
एकल प्रयोग योजना एक बारी की घटना अथवा परियोजना हेतु विकसित की जाती है जो कि भविष्य में दोहराई नहीं जाती अर्थात् ये अनावृत्त परिस्थितियों हेतु होती हैं। इस योजना की अवधि परियोजना के प्रकार पर निर्भर करती है एवं इनका विस्तार एक सप्ताह अथवा एक माह हो सकता है। परियोजनाएँ कार्यक्रमों जैसे होती हैं परन्तु इनके क्षेत्र तथा जटिलता में अंतर होता है।
प्रश्न 35.
स्थायी योजना को समझाइये।
उत्तर:
एक स्थायी योजना एक समयावधि के दौरान नियमित रूप से घटित होने वाली क्रियाओं हेतु प्रयोग की जाती है। इससे अभिकल्पित किया जाता है कि एक संगठन के आंतरिक प्रचालन भली प्रकार से चल रहे हैं। यह योजना मुख्य रूप से नैत्यिक निर्णयन में कार्यकुशलता को बढ़ाती है। यह सामान्यतः एक बार विकसित की जाती है परन्तु जरूरत पड़ने पर समयसमय पर व्यवसाय की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संशोधित की जाती है। स्थायी योजनाओं में नीतियाँ. कार्यविधियाँ तथा नियम सम्मिलित हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक प्रबन्ध के रूप में नियोजन के महत्त्व के किन्हीं छः बिन्दुओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
नियोजन के महत्त्व के पाँच बिन्दुओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
प्रभावी प्रबन्ध के लिए नियोजन क्यों आवश्यक है?
अथवा
नियोजन के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर:
नियोजन का महत्त्व
नियोजन के महत्त्व को हम निम्न बिन्दुओं की सहायता से समझा जा सकते हैं-
1. नियोजन निर्देशन की व्यवस्था करता हैनियोजन कार्य कैसे किया जाता है, इसका पहले से मार्गदर्शन कराकर निर्देशन की व्यवस्था करता है। नियोजन उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से बतलाकर यह आश्वासन देता है कि वे एक मार्गदर्शक के रूप में यह बतलाते हैं कि किस दिशा में क्या कार्य करना है।
2. नियोजन अनिश्चितता की जोखिम को कम करता है-नियोजन एक ऐसी क्रिया है जो भविष्य में किये जाने वाले क्रियाकलापों का निश्चय करके, अनिश्चित घटनाओं तथा परिवर्तनों से व्यवहार करने का कार्य प्रशस्त करती है। परिवर्तनों तथा घटनाओं को रोका नहीं जा सकता लेकिन वे प्रत्याशित होती हैं तथा उनके लिए प्रबन्धकीय प्रतिक्रियाएँ विकसित की जा सकती हैं।
3. नियोजन अतिव्यापित तथा अपव्ययी क्रियाओं को कम करता है-नियोजन विभिन्न मण्डलों, विभागों तथा व्यक्तियों के क्रियाकलापों में सामंजस्य स्थापित करने का आधार प्रदान करता है। यह मतभेदों तथा शंकाओं को दूर करने में सहायता करता है। नियोजन में व्यर्थ एवं अनावश्यक क्रियाएँ या तो कम हो जाती हैं या समाप्त हो जाती हैं।
4. नियोजन, नव-प्रवर्तन विचारों को प्रोत्साहित करता है-नियोजन का महत्त्व इस रूप में भी है कि यह नव-प्रवर्तन विचारों को प्रोत्साहित करता है। यह प्रबन्ध के लिए प्रतियोगात्मक रुचि पैदा करने वाला कार्य है। यह व्यवसाय की उन्नति, विकास एवं भविष्य की कार्यवाहियों के लिए गाइड का काम करता है।
5. नियोजन निर्णयन को सरल बनाता हैनियोजन प्रबन्ध को भविष्य के विषय में जानकारी प्राप्त करने तथा तदनुसार कार्य करने की विभिन्न वैकल्पिक दशाओं में से चुनाव करने की स्वीकारोक्ति देने में सहायता प्रदान करता है। प्रबन्ध विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करके उनमें से सर्वोत्तम चुनाव करता है। इस प्रकार नियोजन निर्णयन को सरल बनाता है।
6. नियोजन नियन्त्रण के मानकों का निर्धारण करता है-नियोजन लक्ष्यों या मानकों की व्यवस्था करता है जिससे वास्तविक निष्पादन का आकलन सम्भव होता है। वास्तविक निष्पादन को मानकों से तुलना करने पर हम यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं कि क्या वास्तव में हमने लक्ष्यों की प्राप्ति कर ली है? यदि कुछ भिन्नता है तो नियन्त्रण की आवश्यकता हो सकती है। अत: यह कहा जा सकता है कि नियोजन, नियन्त्रण से पूर्व की आवश्यकता है।
प्रश्न 2.
नियोजन क्या है? नियोजन की प्रकृति की विवेचना कीजिये।
अथवा
नियोजन की क्या विशेषता है ? किन्हीं छः को समझाइये।
अथवा
नियोजन क्या है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएँ
अर्थ-नियोजन का अर्थ पहले से यह निश्चय करना है कि भविष्य में क्या करना है तथा कैसे करना है। यह सृजनात्मकता तथा नवप्रवर्तन से अतिनिकट से जुड़ा हुआ है। नियोजन, हम कहाँ खड़े हैं तथा हमें कहाँ पहुँचना है? इन दोनों के बीच एक सेतु का कार्य करता है। नियोजन की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब किसी एक क्रिया को पूरा करने के लिए अनेक विकल्प विद्यमान हों। यथार्थ में, नियोजन से तात्पर्य उद्देश्यों का निर्धारण तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए समुचित कार्यविधि विकसित करने से है। नियोजन सभी प्रबन्धकीय निर्णयों तथा कार्यवाहियों को दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। ये पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विवेकपूर्ण मार्ग भी सुलभ कराते हैं।
सार रूप में, नियोजन से आशय उद्देश्यों तथा लक्ष्यों का निर्धारण तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए एक कार्यविधि का निरूपण करने से है। यह क्या करना है तथा कैसे करना है, दोनों से सम्बन्धित है।
नियोजन की प्रकृति/विशेषताएँ
नियोजन की प्रकृति अथवा इसकी विशेषताओं को निम्न प्रकार से समझा सकते हैं-
1. नियोजन का केन्द्र-बिन्दु लक्ष्य-प्राप्ति होता है-नियोजन उद्देश्यपूर्ण होता है। नियोजन तब तक निरर्थक होता है जब तक वह संस्थानों के पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहयोग प्रदान नहीं करता है। इसलिए कहा जाता है कि नियोजन का केन्द्र-बिन्दु लक्ष्य-प्राप्ति होता है।
2. नियोजन प्रबंधन का प्राथमिक कार्य हैनियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है जिससे प्रबन्ध प्रक्रिया प्रारम्भ होती है। वास्तव में यही वह प्राथमिक कार्य है जिसके लिए प्रबन्ध प्रक्रिया के अन्य कार्यों को करने की आवश्यकता होती है।
3. नियोजन सर्वव्यापी है-नियोजन संस्थानों के सभी विभागों तथा प्रबन्धन के सभी स्तरों पर वांछनीय होता है। यह न तो उच्चस्तरीय प्रबन्धन का और न ही किसी विशेष विभाग का अनन्य कार्य है, लेकिन नियोजन का क्षेत्र विभिन्न स्तरों तथा विभिन्न विभागों में भिन्न-भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त, संस्था के संगठन, अभिप्रेरण एवं नियन्त्रण प्रक्रिया में भी नियोजन आवश्यक है। इतना ही नहीं, संस्था के वित्तीय, उत्पादन. वितरण, सामान्य प्रशासन जैसी प्रक्रियाओं में भी नियोजन किया जाता है।
4. नियोजन अविरत है-नियोजन कभी समाप्त नहीं होने वाली क्रिया है। यह एक निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है। यह एक के बाद अनेक कार्यों के लिए की जाती रहती हैं। ज्यों-ज्यों व्यवसाय का विकास होता जाता है, त्यों-त्यों नियोजन की प्रक्रिया बढ़ती ही चली जाती है। पुराने कार्यों की कमियों को दूर करने के लिए तथा नये एवं विकासमान कार्यों के लिए नियोजन की क्रिया चलती ही रहती है।
5. नियोजन भविष्यवादी है-नियोजन में तत्वतः दूरदर्शिता सन्निहित है तथा यह भविष्य के लिए तैयार की जाती है। नियोजन का उद्देश्य भविष्य की घटनाओं से संस्थान के हित में कुशलतापूर्वक सामना करना है। इसमें भविष्य में झाँकना तथा विश्लेषण व भविष्यवाणी (पूर्वानुमान) सम्मिलित है। अत: नियोजन पूर्वानुमान पर आधारित भविष्यमूलक कार्य है। उदाहरण के लिए, विक्रय पूर्वानुमान के अनुसार ही एक व्यावसायिक फर्म अपनी उत्पादन तथा विक्रय योजनाएँ तैयार करती है।
6. नियोजन में निर्णय रचना निहित है-नियोजन निश्चित रूप से विभिन्न विकल्पों तथा क्रियाओं में से सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करता है। यदि केवल एक ही सम्भावित लक्ष्य या केवल एक ही कार्य करने की विधि हो तो नियोजन की कोई आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि वहाँ कोई अन्य विकल्प ही नहीं है। नियोजन की आवश्यकता केवल उसी समय होती है जब विकल्प होते हैं । नियोजन में यह मान लिया जाता है कि हर क्रिया का विकल्प उपलब्ध है। अतः नियोजन प्रत्येक विकल्प का पूर्ण परीक्षण तथा मूल्यांकन करने के उपरान्त ही उनमें से किसी एक सर्वोत्तम का चुनाव करता है।
7. नियोजन एक मानसिक अभ्यास है-नियोजन करते समय अनेक मानसिक क्रियाएँ करनी होती हैं तथा यह निर्धारित करना पड़ता है कि किस प्रकार संस्था के उद्देश्यों को अधिकाधिक कुशलता से प्राप्त किया जा सकता है। नियोजन की समस्या के विश्लेषण, विकल्पों के निर्माण एवं मूल्यांकन तथा सर्वोत्तम विकल्प के चुनाव में मानसिक एवं बौद्धिक क्रियाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
प्रश्न 3.
नियोजन की प्रमुख सीमाओं का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
नियोजन की प्रमुख सीमाएँ
कभी-कभी नियोजन अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में सफल नहीं होता है। ऐसा नियोजन की निम्नलिखित सीमाओं के कारण होता है-
1. नियोजन दृढ़ता उत्पन्न करता है-संस्था में लक्ष्य को निश्चित समय में प्राप्त करने के लिए सुनियोजित योजना तैयार की जाती है। यही योजनाएँ भविष्य में कार्य करने की विधि निर्धारित करती हैं। प्रबन्धक इनमें परिवर्तन करने की स्थिति में नहीं रहते हैं। नियोजन में इस तरह की दृढ़ताएँ परेशानियाँ ही पैदा करती हैं।
2. परिवर्तनशील वातावरण में नियोजन प्रभावी नहीं रहता-व्यावसायिक वातावरण परिवर्तनशील है। वातावरण के विभिन्न घटक हैं; जैसे-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, कानूनी और बौद्धिक घटक। इन घटकों में होने वाले परिवर्तनों का समायोजन नियोजन में कर पाना कठिन होता है। फलतः नियोजन सफल नहीं हो पाता है।
3. नियोजन रचनात्मकता को कम करता हैनियोजन एक ऐसी क्रिया है जिसकी रचना शीर्षस्तरीय प्रबन्धन के द्वारा की जाती है। शेष प्रबन्धन के स्तर इन योजनाओं को कार्यान्वित करते हैं। मध्यस्तरीय प्रबन्धन तथा अन्य निर्णायकगण न तो इनमें कोई विचलन करने के लिए अधिकृत होते हैं और न ही आपकी इच्छानुसार कार्य करने के लिए अनुमति मिलती है। इस तरह से बहुत-सी पहल-क्षमता तथा सृजनात्मकता जो उनके अन्दर छिपी रहती है वह दबकर रह जाती है। इस प्रकार नियोजन रचनात्मकता को कम कर देता है।
4. नियोजन में भारी लागत आती है-नियोजन एक खर्चीली व्यवस्था है। क्योंकि नियोजन के लिए विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण करना पड़ता है। इसमें पर्याप्त शक्ति, समय एवं धन खर्च होता है। यही कारण है कि छोटे व्यावसायिक संगठन वित्तीय अभाव में नियोजन को नहीं अपना पाते हैं।
5. नियोजन समय नष्ट करने वाली प्रक्रिया हैकभी-कभी योजनाएँ तैयार करने में इतना समय बर्बाद हो जाता है कि उनके लागू करने के लिए पर्याप्त समय ही नहीं बचता है। अतः लोगों का यह मानना है कि नियोजन समय नष्ट करने वाली प्रक्रिया है।
6. नियोजन सफलता का आश्वासन नहीं हैसामान्यतया प्रबन्धकों की यह प्रवृत्ति होती है कि वे पहले से जाँची एवं परखी गई सफल योजनाओं पर ही भरोसा करते हैं। लेकिन यह हमेशा उचित नहीं होता है कि कोई योजना जो पहले सफल रही हो वह आगे भी सफल ही रहे। इस प्रकार की झूठी सुरक्षा की भावना सफलता के बजाय असफलता ही देती है।
प्रश्न 4.
नियोजन के विभिन्न संघटकों (तत्त्वों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियोजन के विभिन्न संघटक (तत्त्व)
नियोजन के प्रमुख संघटक या तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. उददेश्य-नियोजन का एक प्रमुख घटक या तत्त्व उद्देश्यों का निर्धारण करना होता है। उद्देश्य, प्रबन्धन का वह गंतव्य स्थान है जहाँ उसे भविष्य में पहुँचना है। उद्देश्य संस्थान के आदि हैं तथा प्रबन्धन जिन्हें अपने प्रयत्नों से प्राप्त करना चाहता है वे अन्त हैं। अतः उद्देश्य वह है जिसे आप क्रिया के अन्ततः परिणाम के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं। प्रबन्धन की अन्य क्रियाएँ भी इन उद्देश्यों की ओर ही निर्देशित हैं। वे सामान्यतया संस्थान के उच्चस्तरीय प्रबन्धकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं तथा वे विस्तृत, सामान्य, परिणामों पर केन्द्रित होती हैं। वे भविष्य के क्रियाकलापों को परिभाषित करते हैं जिन्हें पाने के लिए संस्थान संघर्षरत रहते हैं।
2. नीतियाँ-नीतियाँ सामान्य कथन हैं जो विचारों का मार्गदर्शन अथवा एक विशिष्ट दिशा में अग्रसर होने के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। यदि कोई सुस्थापित नीति होती है तो समस्याओं अथवा मतभेदों का समाधान आसानी से किया जा सकता है। वास्तव में नीतियाँ किसी विशेष समाज या अवस्था के लिए सामान्य प्रतिक्रिया हैं। नीतियाँ विस्तृत प्राचल (पैरामीटर्स) की व्याख्या करती हैं जिनके अन्तर्गत प्रबन्धक कार्य कर सकते हैं। सार रूप में, नीतियाँ उच्च प्रबन्धकों के विचारों और उनके द्वारा अपनाये जाने वाले सिद्धान्तों को कुछ वक्तव्यों या निर्देशों के रूप में व्यक्त कर देती हैं।
3. व्यूह-रचना-व्यूह-रचना एक व्यावसायिक संस्थान की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। यह संगठन के दीर्घकालीन निर्णय तथा निर्देशन में सम्बन्ध स्थापित करती है। अतः यह कहा जा सकता है कि व्यूह-रचना एक व्यापक योजना है जो संगठन के उद्देश्यों को पूरा करती है। जब कभी एक व्यूह-रचना तैयार की जाती है तो व्यावसायिक पर्यावरण को ध्यान में रखना आवश्यक होता है; क्योंकि व्यावसायिक पर्यावरण में होने वाला परिवर्तन व्यूह-रचना को प्रभावित करता है। ए.डी. चान्दलर जूनियर के शब्दों में, "व्यूह-रचना में एक उपक्रम के आधारभूत लक्ष्यों या उद्देश्यों का निर्धारण तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कार्यविधि तय करना और संसाधनों का वितरण करना सम्मिलित होता
4. प्रक्रिया-कोई कार्य कैसे सम्पन्न करना है? इसकी विस्तृत विधि, प्रक्रिया ही कहलाती है। ये प्रक्रियाएँ एक विशिष्ट कालानुक्रमिक क्रम में होती हैं। जैसे उत्पादन से पहले माल मँगाने की कोई प्रक्रिया हो सकती है। विशेष परिस्थितियों में प्रक्रियाओं के लिए चुनाव के विशिष्ट ढंग हैं। वे सामान्यतया आन्तरिक लोगों के अनुसरण के लिए होते हैं। नीतियाँ तथा प्रक्रिया दोनों आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।
5. विधि-विधि उन निर्धारित तरीकों या व्यवहारों को उपलब्ध कराती है जिनके द्वारा उद्देश्य के अनुसार एक कार्य को निष्पादित किया जाता है। यह प्रक्रिया के एक चरण के एक घटक से निपटता है तथा यह स्पष्टीकृत करता है कि यह चरण कैसे निष्पादित करना है। यह विधि प्रत्येक कार्य के लिए अलग-अलग हो सकती है। उपयुक्त विधि का चुनाव कर लिया जाता है तो समय, धन तथा प्रयासों की बचत होती है और क्षमता बढ़ती है। कर्मचारियों को प्रशिक्षण, पर्यवेक्षक से उच्च स्तर के प्रबन्धक स्तर तक प्रदान करने हेतु विभिन्न विधियों को अपनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, उच्च स्तर पर प्रबन्धकीय अभिमुखीकरण कार्यक्रम, व्याख्यान और संगोष्ठियां आदि आयोजित की जा सकती हैं, जबकि पर्यवेक्षक स्तर पर कार्य प्रशिक्षण प्रविधि तथा कार्याभिमुख प्रशिक्षण प्रविधियाँ औचित्यपूर्ण होती हैं।
6. नियम-नियम वे विशिष्ट विवरण होते हैं जो यह बतलाते हैं कि क्या करना है? वे किसी प्रकार के समझौते या लचीलापन की इजाजत नहीं देते हैं। ये प्रबन्धकों द्वारा लिये गये निर्णयों के प्रतिबिम्ब होते हैं कि अमुक कार्य निश्चित रूप से होना है। इस प्रकार स्पष्ट है कि नियम एक ऐसा पूर्व निर्णय है जो यह बतलाता है कि अमुक परिस्थितियों में क्या करना है और क्या नहीं करना है। इसके सम्बन्ध में न तो कोई समझौता होता है और न ही कोई परिवर्तन, जब तक कि कोई नीति सम्बन्धी निर्णय न लिया जाये।
7. कार्यक्रम-कार्यक्रम एक परियोजना के विषय में विस्तृत विवरण होते हैं जो आवश्यक उद्देश्यों, नीतियों, कार्यविधियों, नियमों, कार्यों, मानवीय तथा भौतिक संसाधनों तथा किसी कार्य को करने के बजट की रूपरेखा बतलाते हैं। कार्यक्रम में संगठन की सभी क्रियाएँ तथा नीतियाँ सम्मिलित होती हैं, कि वे व्यवसाय की कुल योजना में किस प्रकार सहयोग करेंगी।
8. बजट-एक योजना के रूप में बजट अपेक्षित परिणामों की गणनात्मक शब्दों में विवेचना है। इससे इच्छित परिणामों की प्राप्ति के लिए समय, सामग्री, धन तथा अन्य साधनों के उपयोग की योजना दी हुई रहती है। दूसरे शब्दों में, बजट एक ऐसी योजना है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति के लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं और इन्हें प्राप्त करने के समय, धन और अन्य साधनों के व्यय के अनुमान दिये जाते हैं। बजट का संचालन नियन्त्रण प्रक्रिया का अंग है। इसके परिणामस्वरूप, प्रबन्धक वास्तविक प्रगति की बजट की प्रगति से तुलना कर सकते हैं और यह निश्चित कर सकते हैं कि यदि कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं किये जा सके तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है।
प्रश्न 5.
क्या नियोजन करने में बड़ी भारी लागत चुकानी पड़ती है ? समझाइये।
उत्तर:
जब नियोजन किया जाता है तथा इसे व्यावसायिक संगठन में कार्यान्वित किया जाता है तो इसमें बड़ी भारी लागत आती है। यह लागत धन के रूप में हो सकती है या समय के रूप में भी। उदाहरण के लिए, परिशुद्धता की जाँच में बहुत अधिक समय लगना स्वाभाविक होता है। विस्तृत योजनाओं की वैज्ञानिक गणनाओं के लिए तथ्य तथा अंकों को ज्ञात करने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी लागत यह सफाई भी नहीं दे पाती है कि योजना के क्रियान्वयन से संस्था को लाभ होगा या हानि। कभी-कभी नियोजन की व्यवहार्यता को परखने के लिए बहुत से आकस्मिक व्यय जैसे परिषद् कक्ष बैठकें, व्यावसायिक विशेषज्ञों के साथ वाद-विवाद तथा प्रारम्भिक खोज-बीन करने पड़ते हैं। इन सब पर अधिक लागत आती है।
इसके साथ ही कभी-कभी योजनाएँ तैयार करने में इतना समय बर्बाद हो जाता है कि उनके लागू करने के लिए पर्याप्त समय बचता नहीं है। इस तरह नियोजन पर किये जाने वाला खर्चा भी बढ़ जाता है और उसकी उपयोगिता भी नहीं रहती है।
बहुत से विद्वानों का यह भी मत है कि नियोजन सफलता का आश्वासन नहीं होता है। यह हमेशा उचित नहीं होता कि कोई योजना जो पहले सफल हो चुकी है वही आगे भी सफल होगी। यदि योजना के क्रियान्वयन में अनजान तत्त्वों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो इससे असफलता ही हाथ लगती है। नियोजन के लिए विभिन्न प्रकार की सूचनाओं का संकलन एवं विश्लेषण करना पड़ता है जिसमें पर्याप्त शक्ति, समय एवं धन खर्च किया जाता है।
नियोजन की सफलता के लिए संगठन में पर्याप्त मात्रा में मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का होना आवश्यक है। यदि किसी संगठन में इन संसाधनों का अभाव होता है तो नियोजन सफल नहीं हो पाता है।
नियोजन की सफलता पर संगठन के बाह्य वातावरण के घटकों यथा आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, तकनीकी एवं वैधानिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ता है। इन बाह्य परिस्थितियों का पूर्वानुमान करके ही नियोजन किया जाता है। यदि यह पूर्वानुमान गलत हो जाता है तो नियोजन असफल हो जाता है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नियोजन में यदि पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जाती है तो इसकी बड़ी भारी लागत चुकानी पड़ती है।
प्रश्न 6.
योजना कितने प्रकार की होती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
योजना दो प्रकार की होती है-
1. एकल प्रयोग योजना
2. स्थायी योजना
व्यवसाय प्रचालन के संबंध में कोई निर्णय लेने अथवा किसी परियोजना को प्रारंभ करने से पूर्व एक संगठन को योजना बनानी होती है। योजनाओं को प्रयोग तथा नियोजन अवधि की लंबाई के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ योजनाएँ अल्पकालिक होती हैं तथा प्रचालन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होती हैं। ये योजनाएँ एकल प्रयोग योजनाओं तथा स्थायी योजनाओं में वर्गीकृत की जा सकती हैं।
1. एकल प्रयोग योजना-एकल प्रयोग योजना एक बारी की घटना अथवा परियोजना हेतु विकसित की जाती है जो कि भविष्य में दोहराई नहीं जाती. अर्थात् ये अनावृत परिस्थितियों हेतु होती हैं। इस योजना की अवधि परियोजना के प्रकार पर निर्भर करती है एवं इनका विस्तार एक सप्ताह अथवा एक माह हो सकता है। परियोजनाएँ कार्यक्रमों जैसे होती हैं परन्तु इनके क्षेत्र तथा जटिलता में अंतर होता है। उदाहरणार्थ-एक कार्यक्रम में चरणों, अन्य छोटे निर्माण कार्यों से व्यवहार करने हेतु एक नया विभाग खोलने के लिए आवश्यक कार्यविधियों को पहचानना सम्मिलित है।
2. स्थायी योजना-एक समयावधि के दौरान नियमित रूप से घटित होने वाली क्रियाओं हेतु प्रयोग की जाती है। इससे अभिकल्पित किया जाता है कि एक संगठन के आंतरिक प्रचालन भली प्रकार से चल रहे हैं। यह योजना मुख्य रूप से नैत्यिक निर्णयन में कार्यकुशलता को बढ़ाती है। यह सामान्यतः एक बार विकसित की जाती परंतु जरूरत पड़ने पर समय-समय पर व्यवसाय की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संशोधित की जाती है। स्थायी योजनाओं में नीतियाँ, कार्यविधियाँ तथा नियम सम्मिलित हैं।
अर्थात् एकल प्रयोग तथा स्थायी योजनाएँ प्रचालन नियोजन प्रक्रिया के भाग हैं। इस आधार पर कि योजनाएँ क्या प्राप्त करने हेतु बनी हैं, योजनाएँ उद्देश्य, व्यूहरचना, नीति, कार्यविधि, विधि, नियम, कार्यक्रम तथा बजट के रूप में वर्गीकृत की जा सकती हैं।