Rajasthan Board RBSE Class 12 Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन Important Questions and Answers.
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बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
विपणन का विनिमय कार्य है-
(अ) क्रय एवं विक्रय करना
(ब) संग्रहण
(स) परिवहन
(द) पैकेजिंग।
उत्तर:
(अ) क्रय एवं विक्रय करना
प्रश्न 2.
विपणन का प्रमुख उद्देश्य है-
(अ) उत्पाद के बाजार हिस्से में वृद्धि करना
(ब) व्यवसाय की आय में वृद्धि करना
(स) विपणन कार्यों को कुशलतापूर्वक पूरा करना
(द) उपर्युक्त सभी उद्देश्य।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी उद्देश्य।
प्रश्न 3.
विपणन की आधुनिक अवधारणा है-
(अ) उत्पाद अवधारणा
(ब) विपणन अवधारणा
(स) सामाजिक विपणन अवधारणा
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) सामाजिक विपणन अवधारणा
प्रश्न 4.
"विपणन को एक दिन में सीखा जा सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें दक्षता प्राप्त करने के लिए समय लगता है।" यह परिभाषा है-
(अ) फिलिप कोटलर
(ब) स्टेण्टन
(स) डॉ. आर.एस. डॉवर
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) फिलिप कोटलर
प्रश्न 5.
विपणन की सामाजिक अवधारणा का मुख्य केन्द्रबिन्दु है-
(अ) उत्पाद की गुणवत्ता, निष्पादन उत्पाद का स्वरूप
(ब) उपभोक्ता की आवश्यकताएँ
(स) उत्पादन में वृद्धि
(द) उपभोक्ता की आवश्यकताएँ तथा समाज कल्याण
उत्तर:
(द) उपभोक्ता की आवश्यकताएँ तथा समाज कल्याण
प्रश्न 6.
विपणन की वह अवधारणा जिसमें दीर्घ अवधि समाज कल्याण का भी ध्यान रखा जाता है, कहलाती है-
(अ) उत्पादन अवधारणा
(ब) विक्रय अवधारणा
(स) समाज मूलक विपणन अवधारणा
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) समाज मूलक विपणन अवधारणा
प्रश्न 7.
विपणन प्रबन्ध द्वारा उपयोगिता का सृजन किया जाता है-
(अ) स्वामित्व उपयोगिता
(ब) स्थान उपयोगिता
(स) समय उपयोगिता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 8.
विपणन मिश्रण का तत्त्व नहीं है-
(अ) उत्पाद
(ब) उत्पादक
(स) मूल्य
(द) स्थान।
उत्तर:
(ब) उत्पादक
प्रश्न 9.
पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन करना जिससे उत्पाद में एकरूपता तथा अनुकूलता आती है, कहलाता है-
(अ) विपणन नियोजन
(ब) उत्पाद का रूपांकन एवं विकास
(स) प्रमापीकरण एवं ग्रेड तय करना
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(स) प्रमापीकरण एवं ग्रेड तय करना
प्रश्न 10.
आधुनिक विपणन का मुख्य स्तम्भ माना जाता है-
(अ) विपणन नियोजन
(ब) प्रमापीकरण
(स) पैकेजिंग एवं लेबलिंग
(द) उत्पाद का रूपांकन एवं विकास।
उत्तर:
(स) पैकेजिंग एवं लेबलिंग
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक उत्पाद की पैकेजिंग का क्या उद्देश्य होता है?
उत्तर:
पैकेजिंग का उद्देश्य उत्पाद के वितरण की विभिन्न अवस्थाओं के दौरान वस्तु को सुरक्षित पहुँचाना और ग्राहकों को वस्तुएँ मूल गुणों के साथ उपलब्ध कराना।
प्रश्न 2.
विज्ञापन का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
विज्ञापन का अभिप्राय सम्भावित उपभोक्ताओं को किसी विशेष उत्पाद, सेवा अथवा विचार की पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करवाना है ताकि वे उसे क्रय करने के लिए प्रेरित हों।
प्रश्न 3.
प्रायः उपभोक्ता, सीधे उत्पादक से वस्तुएँ क्रय करने को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन यह सदैव सम्भव नहीं होता है। इसके लिए उत्तरदायी विभिन्न लक्ष्यों को समझाइये एवं कारण दीजिये कि ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
सामान्यतः बाजार का क्षेत्र विस्तृत होने, मध्यस्थों का अभाव होने तथा फुटकर विक्रय केन्द्रों के अभाव के कारण उपभोक्ताओं को उत्पादकों से सीधे वस्तुएँ क्रय करना सम्भव नहीं है।
प्रश्न 4.
विपणन बाजार में किसी व्यवसाय की ख्याति बनाने में किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर:
विपणन ग्राहकों को उचित मूल्य पर, उचित समय व स्थान पर एवं अच्छी किस्म की वस्तुओं को उपलब्ध कराकर व्यवसाय की ख्याति बढ़ाता है।
प्रश्न 5.
विपणन के किन्हीं तीन उद्देश्यों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
प्रश्न 6.
व्यक्तिगत विक्रय अवधारणा को समझाइये।
उत्तर:
व्यक्तिगत विक्रय में क्रेता व विक्रेता दोनों प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने होते हैं। विक्रेता अपने उत्पाद को क्रेता के समक्ष प्रस्तुत करता है, उसकी विशेषताओं का वर्णन करता है और सम्भावित क्रेता के सन्देहों को दूर करके उन्हें सन्तुष्ट करता है।
प्रश्न 7.
विपणन प्रबन्ध से क्या आशय है?
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध से अभिप्राय उन क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण से है जो उत्पादक एवं उपभोक्ता अथवा उत्पाद एवं सेवा के उपयोगकर्ता के बीच में वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को सुगम बनाते हैं।
प्रश्न 8.
'विपणन मिश्रण' के एक तत्त्व के रूप में 'उत्पाद मिश्रण' को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद मिश्रण का अर्थ उत्पाद के सम्बन्ध में लिये जाने वाले निर्णयों के योग से है। ये निर्णय मुख्यतः ब्राण्डिंग, पैकेजिंग, लेबलिंग, रंग, डिजाइन, किस्म, आकार, विक्रय पश्चात् सेवा आदि के सम्बन्ध में होते हैं।
प्रश्न 9.
विपणन की उत्पादन अवधारणा का क्या आशय है?
उत्तर:
विपणन अवधारणा के अनुसार विपणन उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन है जो वस्तु एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता/प्रयोगकर्ता तक वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह को नियन्त्रित करती हैं।
प्रश्न 10.
वर्तमान सन्दर्भ में विपणन प्रबन्ध को परिभाषित कीजिये।
उत्तर:
"विपणन प्रबंध बाजार का चयन करने एवं प्रबंध की अधिक श्रेष्ठ ग्राहक मूल्य पैदा करने, सुपुर्दगी करने एवं सम्प्रेषण करने के माध्यम से ग्राहकों को पकड़ना, उन्हें अपना बनाए रखना एवं उनमें वृद्धि करने की कला एवं विज्ञान है।" (फिलिप कोटलर)
प्रश्न 11.
विपणन एवं विक्रय के बीच अन्तर करें।
उत्तर:
विपणन का उद्देश्य ग्राहकों को सन्तुष्टि प्रदान करके लाभ अर्जित करना, जबकि विक्रय का उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं का अधिकतम विक्रय करना है।
प्रश्न 12.
व्यापक अर्थ में बाजार शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बाजार से अभिप्राय किसी वस्तु अथवा सेवा के वास्तविक एवं सम्भावित विक्रेताओं एवं क्रेताओं के समूह से है।
प्रश्न 13.
विपणन के आधुनिक अर्थ को बतलाइये।
उत्तर:
विपणन एक ऐसी सामाजिक क्रिया एवं प्रक्रिया है जिसमें लोग वस्तु एवं सेवाओं का मुद्रा अथवा किसी ऐसी वस्तु में विनिमय करते हैं जिसका उनके लिए कुछ मूल्य है।
प्रश्न 14.
विपणन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
"यह एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अनुसार लोगों के समूह उत्पादों का सृजन कर उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं जिनकी उनको आवश्यकता है तथा उन वस्तु एवं सेवाओं का स्वतन्त्रता से विनिमय करते हैं जिनका कोई मूल्य है।"
(फिलिप कोटलर)
प्रश्न 15.
विपणन की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 16.
विनिमय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विनिमय से अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से दो या दो से अधिक पक्ष किसी अन्य पक्ष से इच्छित वस्तु अथवा सेवा प्राप्त करने के लिए एकजुट हो जाते हैं जो कुछ किसी अन्य वस्तु के बदले में देना चाहता है।
प्रश्न 17.
विनिमय की दो पूर्व आवश्यकताएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 18.
विपणन के विनिमय सम्बन्धी कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 19.
विपणन के भौतिक वितरण कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 20.
विपणन किसका किया जा सकता है ?
उत्तर:
भौतिक पदार्थों, सेवाओं, विचारों, व्यक्ति, स्थान, अनुभव, सम्पत्तियाँ, घटनाएँ तथा सूचना इत्यादि का।
प्रश्न 21.
विपणनकर्ता किसे कहते हैं?
उत्तर:
कोई भी व्यक्ति जो विनिमय प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है, विपणनकर्ता कहलाता है।
प्रश्न 22.
विपणन के प्रमुख उद्देश्य बतलाइये। (कोई चार)
उत्तर:
प्रश्न 23.
विपणन की अवधारणा के विकास के क्रम को बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 24.
उत्पाद अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
उत्पाद अवधारणा यह बतलाती है कि व्यापारिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे उत्पादों को बनाया जाये जो उच्च गुणवत्ता वाले हों।
प्रश्न 25.
विपणन अवधारणा के दो प्रमुख स्तम्भ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 26.
उत्पाद के रूपांकन की उपयोगिता बतलाइये।
उत्तर:
उत्पाद का रूपांकन लक्षित उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद को और अधिक आकर्षित बनाने में सहायक होता है, उत्पाद की उपयोगिता को बढ़ाता है तथा उत्पाद को अधिक प्रतियोगी बनाता है।
प्रश्न 27.
प्रमापीकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रमापीकरण का अर्थ है पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन करना जिससे उत्पाद में एकरूपता तथा अनुकूलता आती है।
प्रश्न 28.
प्रमापीकरण का महत्त्व बतलाइये।
उत्तर:
प्रमापीकरण क्रेताओं को यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ पूर्व निर्धारित गुणवत्ता, मूल्य एवं पैकेजिंग के मानकों के अनुसार हैं। इससे उत्पादों के निरीक्षण, जाँच एवं मूल्यांकन की आवश्यकता कम हो जाती है।
प्रश्न 29.
श्रेणीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
श्रेणीकरण यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ एक विशेष गुणवत्ता वाली हैं तथा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को ऊँचे मूल्य पर बेचने में सहायक होता है।
प्रश्न 30.
पैकेजिंग क्या है ?
उत्तर:
पैकेजिंग एक प्रकार की क्रियाओं का समूह है जो उत्पाद के लिए एक उचित कंटेनर के डिजाइन तथा उत्पादन से सम्बन्ध रखता है अर्थात् उत्पाद के पैकेज का रूपांकन करना पैकेजिंग कहलाता है।
प्रश्न 31.
पैकेजिंग के मुख्य कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 32.
ब्रांडिंग क्या है?
उत्तर:
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक उत्पाद काम, शर्त, चिह्न, डिजाइन अथवा मिश्रित डिजाइन के रूप में जाना जाता है जिससे एक उत्पाद की पहचान बनती है।
प्रश्न 33.
उत्पाद के मूल्य से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उत्पाद का मूल्य वह राशि है जिसका भुगतान उत्पाद को प्राप्त करने के लिए ग्राहक को करना होता है।
प्रश्न 34.
ग्राहक समर्थन सेवाओं को लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 35.
विक्रय संवर्धन की प्रमुख पद्धतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 36.
विपणन मिश्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
विपणन मिश्र विपणन माध्यों का समूह है जिसे व्यावसायिक संस्था लक्षित बाजार में विपणन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रयोग करती है।
प्रश्न 37.
विपणन मिश्रण के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 38.
उत्पाद क्या है?
उत्तर:
उत्पाद का अर्थ है वस्तु अथवा सेवाएँ अथवा अन्य कोई भी पदार्थ जिसका मूल्य है, जिन्हें बाजार में बिक्री के लिए प्रस्तावित किया जाता है।
प्रश्न 39.
विपणन मिश्र के एक मुख्य घटक के रूप में स्थान से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
स्थान विपणन मिश्र के सम्बन्ध में सभी दिशाओं के समूह को उत्पाद के विषय में बतलाता है ताकि उत्पाद को ग्राहकों को क्रय करने के लिए उपलब्ध करवाया जा सके।
प्रश्न 40.
उत्पाद के क्षेत्र को बतलाइये।
उत्तर:
वर्तमान में उत्पाद में भौतिक पदार्थों के साथ-साथ सेवा, विचार, व्यक्ति, स्थान भी सम्मिलित है।
प्रश्न 41.
उपभोक्ता वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ? कोई चार नाम लिखिए।
उत्तर:
वे उत्पाद जिन्हें अन्तिम उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ता अपनी निजी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की पूर्ति के लिए क्रय करता है, उपभोक्ता उत्पाद कहलाते हैं, जैसे-कपड़ा, पंखा, खाने के पदार्थ, टूथपेस्ट।
प्रश्न 42.
सुविधा उत्पाद के अर्थ को समझाइये।
उत्तर:
वे उपभोक्ता वस्तुएँ जिन्हें उपभोक्ता बारबार खरीदता है, तुरन्त खरीदता है तथा बिना अधिक समय एवं श्रम के खरीदता है, सुविधा उत्पाद कहलाती हैं।
प्रश्न 43.
गैर-टिकाऊ उत्पादों के अर्थ को उदाहरण देते हुए समझाइये।
उत्तर:
ऐसे उपभोक्ता उत्पाद जिनका उपयोग एक बार अथवा कुछ ही बार में हो जाता है गैर-टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। उदाहरण के लिए नहाने व कपड़े धोने का साबुन, टूथपेस्ट, स्टेशनरी का सामान, सर्फ डिटर्जेंट।
प्रश्न 44.
टिकाऊ उत्पाद से आप क्या समझते हैं ? चार उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सभी मूर्त उपभोक्ता उत्पाद जिनको बारबार उपयोग में लाया जा सकता है, टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-सिलाई की मशीन, वाशिंग मशीन, फ्रिज, टी.वी.।
प्रश्न 45.
सेवाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सेवाओं से अभिप्राय उन क्रियाओं, लाभ अथवा सन्तुष्टि से है, जिनकी बिक्री की जा सकती है जैसे वकील व डॉक्टर की सेवा, ड्राईक्लीन करना, घड़ी की मरम्मत करना।
प्रश्न 46.
औद्योगिक उत्पाद किसे कहते हैं ?
उत्तर:
औद्योगिक उत्पाद वे उत्पाद होते हैं जिनका अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए आगत के रूप में प्रयोग किया जाता है। जैसे-कच्चा माल, औजार आदि।
प्रश्न 47.
ब्रांड से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ब्रांड नाम, शब्द, चिह्न, प्रतीक अथवा इनमें से कुछ का मिश्रण है जिसका प्रयोग किसी एक विक्रेता अथवा विक्रेता समूह के उत्पादों, वस्तु एवं सेवाओं की पहचान बनाने के लिये किया जाता है।
प्रश्न 48.
ब्रांड नाम क्या है?
उत्तर:
ब्रांड का वह भाग जिसे बोला जा सकता है, ब्रांड नाम कहलाता है।
प्रश्न 49.
ब्रांड चिह्न किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ब्रांड का वह भाग जिसे पुकारा नहीं जा सकता है लेकिन जिसे पहचाना जा सकता है, ब्रांड चिह्न कहलाता है।
प्रश्न 50.
ब्रांडिंग से विपणनकर्ताओं को प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 51.
पैकेजिंग के स्तर बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 52.
लेबलिंग का अर्थ बतलाइये।
उत्तर:
लेबल उत्पाद पर एक सरल-सी पर्ची लगाने से है जो गुणवत्ता या मूल्य जैसी कुछ सूचनाएँ दिखाती है, से लेकर जटिल ग्राफिक्स जो ब्रांड उत्पादों के पैकेज पर होते हैं।
प्रश्न 53.
मूल्य की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
मूल्य क्रेता द्वारा भुगतान की गई अथवा विक्रेता द्वारा प्राप्त की गई वह राशि है जो वह उत्पाद 'अथवा सेवा के क्रय के बदले में देता है।
प्रश्न 54.
कीमत निर्धारण के प्रमुख तत्त्व बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 55.
कीमत निर्धारण के प्रमुख उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 56.
वितरण माध्यम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वितरण माध्यम से अभिप्राय उन व्यापारियों, एजेण्ट एवं व्यावसायिक संस्थानों के दल से है जो उत्पादों को भौतिक रूप से एवं उनके स्वामित्व को मिलाकर निर्दिष्ट स्थानों तक पहुँचाते हैं।
प्रश्न 57.
वितरण माध्यों की उपयोगिता बतलाइये।
उत्तर:
वितरण माध्य निर्माता एवं उपभोक्ता के बीच की विभिन्न समय, स्थान एवं अधिकार बाधाओं को दूर कर वस्तुओं के आवागमन को सम्भव बनाते हैं।
प्रश्न 58.
वितरण माध्यों के विभिन्न कार्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 59.
प्रत्यक्ष माध्य (शून्य स्तरीय) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब बिना किसी मध्यस्थ को सम्मिलित कर वस्तुओं को सीधे निर्माता से ग्राहक को उपलब्ध कराया जाता है, इसे प्रत्यक्ष माध्य या शून्य स्तरीय श्रृंखला कहते हैं।
प्रश्न 60.
वितरण माध्यम के चयन को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्त्वों को गिनाइये।।
उत्तर:
प्रश्न 61.
भौतिक वितरण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भौतिक वितरण में वे सभी क्रियाएँ (परिवहन, भण्डारण, माल का रख-रखाव एवं स्कन्ध नियन्त्रण) आती हैं जो वस्तुओं को निर्यात से ले जाकर ग्राहक तक पहुँचाने के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 62.
प्रवर्तन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
प्रवर्तन विपणन मिश्र का वह महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसके माध्यम से विपणनकर्ता बाजार में वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 63.
प्रवर्तन मिश्र से क्या आशय है ?
उत्तर:
प्रवर्तन मिश्र से अभिप्राय संगठन द्वारा अपने सम्प्रेषण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी प्रवर्तन तकनीकों को मिलाकर प्रयोग करना है। ये तकनीकें हैंविज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, विक्रय संवर्द्धन एवं प्रचार।
प्रश्न 64.
विज्ञापन की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये। (कोई दो)
उत्तर:
प्रश्न 65.
विज्ञापन के कोई दो उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 66.
विज्ञापन की सीमाएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 67.
विज्ञापन की किन्हीं चार आलोचनाओं को लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 68.
वैयक्तिक विक्रय की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 69.
वैयक्तिक विक्रय के लाभ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 70.
विक्रय संवर्द्धन के मुख्य उद्देश्य बतलाइये। (कोई दो)
उत्तर:
प्रश्न 71.
विक्रय संवर्द्धन के कोई दो प्रमुख लाभ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 72.
विक्रय संवर्द्धन की कोई दो प्रमुख सीमाएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 73.
विज्ञापन एवं वैयक्तिक विक्रय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन सम्प्रेषण अवैयक्तिक स्वरूप है, जबकि वैयक्तिक विक्रय सम्प्रेषण का व्यक्तिगत स्वरूप है।
प्रश्न 74.
प्रचार क्या है ?
उत्तर:
जब वस्तुओं की माँग या संस्था की ख्याति में वृद्धि करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ तथा संदेश लोगों तक अव्यक्तिगत रूप से पहुँचाये जाते हैं तथा संदेश से संबंधित व्यक्ति या संस्था द्वारा कोई भुगतान नहीं किया जाता है तो वह प्रचार कहलाता है।
प्रश्न 75.
एक अच्छे ब्रांड नाम की विशेषताओं को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 76.
सुविधा उत्पादों की विशेषताओं को बतलाइये।
उत्तर:
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
वितरण के 'द्वि-स्तरीय माध्यम' को चार्ट द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
वितरण का द्वि-स्तरीय माध्यम-
वितरण के द्वि-स्तरीय माध्यम में थोक विक्रेता तथा फुटकर विक्रेता निर्माता एवं ग्राहक के बीच कड़ी का कार्य करते हैं। इससे अधिक विस्तृत बाजार क्षेत्र में कार्य हो पाता है।
प्रश्न 2.
एक विक्रेता के रूप में, आप द्वारा विक्रय संवर्द्धन हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली किन्हीं दो क्रियाओं को समझाइए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन हेतु हम निम्न दो क्रियाएँ प्रयोग में लायेंगे-
(1) छूट-हम अपने अतिरिक्त माल को निकालने के लिए अपने माल को विशेष मूल्य अर्थात् कुछ छूट पर बेचेंगे। यह विक्रय संवर्द्धन की सामान्यतया उपयोग में लायी जाने वाली तकनीक है। उदाहरण के लिए एक कार निर्माता होने के नाते हम अपनी एक विशेष ब्रांड की कारों को एक सीमित अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान कर उन्हें बेचेंगे।
(2) कटौती-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक में हम अपने उत्पाद को मूल्य सूची में दिये गये मूल्य से भी कम मूल्य पर माल बेचेंगे। उदाहरण के लिए एक रेडीमेड कपड़ों की निर्माता कम्पनी होने पर हम अपने कपड़े की खरीद पर 50 प्रतिशत छूट देंगे जो मूल्य सूची में दिये गये मूल्य से भी कम होगा।
प्रश्न 3.
वितरण के 'शून्य स्तरीय माध्यम' को चार्ट द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
वितरण का शून्य स्तरीय माध्यम (प्रत्यक्ष माध्यम)
प्रश्न 4.
आपकी राय में, विपणन एवं विक्रय में क्या अन्तर है? (कोई दो बिन्दु)
उत्तर:
विपणन एवं विक्रय में अन्तर-
1. प्रक्रिया का भाग-विपणन विक्रय से कहीं अधिक व्यापक शब्द है जिसमें कई क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जैसे ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना, इनकी पूर्ति के लिए उत्पाद को विकसित करना, मूल्यों का निर्धारण करना एवं सम्भावित क्रेताओं को इनके क्रय के लिए तैयार करना। जबकि विक्रय विपणन प्रक्रिया का केवल अंग मात्र है तथा इसमें वस्तुओं का अधिग्रहण एवं स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित होता है।
2. उददेश्य-विपणन का उद्देश्य ग्राहकों की इच्छाओं की अधिकतम सन्तुष्टि पर जोर देना होता है, जबकि विक्रय का उद्देश्य या केन्द्र-बिन्दु मुख्यतः वस्तुओं का स्वामित्व अधिकार एवं अधिग्रहण का विक्रेता से उपभोक्ता उपयोगकर्ता को हस्तान्तरण होता है।
प्रश्न 5.
उत्पादों को मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा जा सकता है। चार्ट द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 6.
उपभोक्ता उत्पाद हेतु उपयुक्त वितरण माध्यम को चार्ट द्वारा प्रदर्शित कीजिये।
अथवा
उपभोक्ता उत्पाद में उपयुक्त वितरण माध्य का एक चित्र बनाइये।
उत्तर:
उपभोक्ता उत्पाद में उपयुक्त वितरण माध्यम
प्रश्न 7.
आप एक पैन उत्पादनकर्ता हैं, इसके उत्पाद लेबल पर लिखी जाने वाली विविध जानकारियों के नाम बताइये।
उत्तर:
लेबल पर लिखी जाने वाली सामग्री-
पैन उत्पादनकर्ता को अपने उत्पाद के लेबल पर निम्न के सम्बन्ध में जानकारियाँ लिखी जानी चाहिए-
प्रश्न 8.
विपणन के किन्हीं दो कार्यों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन के कार्य-
1. बाजार सम्बन्धी सूचनाओं को एकत्रित करना तथा विश्लेषण करना-विपणन का एक प्रमुख कार्य बाजार सम्बन्धी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना है। ग्राहकों की आवश्यकताओं की ङ्केपहचान करना तथा वस्तु एवं सेवाओं के सफल विपणन के लिए विभिन्न निर्णय लेना आवश्यक है। संगठन के अवसर एवं कठिनाइयाँ तथा उसकी सुदृढ़ता एवं कर्मचारियों का विश्लेषण करना तथा यह निर्णय लेना कि किन अवसरों का लाभ उठाने के लिए कार्य किया जाये, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह कार्य विपणन का है।
2. विपणन नियोजन-व्यावसायिक संगठन के विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विपणनकर्ता का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा क्षेत्र उचित विपणन योजना का निर्माण करना है। उदाहरण के लिए वाशिंग मशीन का विपणनकर्ता देश में अपनी 5 प्रतिशत भागीदारी को बढ़ाकर अगले तीन वर्षों में 15 प्रतिशत करना चाहता है तो इसके लिए उसे एक पूरी विपणन योजना तैयार करनी होगा। यह विपणन योजना तैयार करने का प्रमुख कार्य विपणन का है।
प्रश्न 9.
एक फर्म में विपणन की भूमिका की व्याख्या कीजिये।
उत्तर:
एक फर्म में विपणन की भूमिका-
प्रश्न 10.
एक अच्छे ब्राण्ड की तीन विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
एक अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ-
1. संक्षिप्त नाम-ब्राण्ड नाम संक्षिप्त होना चाहिए। इसका उच्चारण करना, बोलना, पहचान करना एवं याद करना सरल होना चाहिए, जैसे लेक्मे, वी.आई.पी., रिन आदि।
2. उत्पाद के लाभ एवं गुणों की जानकारी देने वाला-एक अच्छा ब्राण्ड वही माना जाता है जिससे उत्पाद के लाभों एवं गुणों का पता लगे। यह उत्पाद के कार्यों के अनुरूप होना चाहिए जैसे-ईजी, जेंटिल, प्रोमिस, बूस्ट।
3. लोच-ब्राण्ड का नाम पर्याप्त लोच वाला होना चाहिए जिससे कि उत्पाद श्रृंखला में नये उत्पादों को जोड़ा जाये, उनके लिए भी इसे प्रयोग में लाया जा सके। जैसे कोलगेट, मैगी।
प्रश्न 11.
निम्नांकित आधारों पर विक्रय एवं विपणन में अन्तर बतलाइये
(i) प्रारम्भ
(ii) इच्छाओं का ज्ञान
उत्तर:
(i) प्रारम्भ-विक्रय उत्पादन के बाद प्रारम्भ होता है, जबकि विपणन का कार्य उत्पादन से पूर्व प्रारम्भ हो जाता है।
(ii) इच्छाओं का ज्ञान-विक्रय में ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पहले से ही जानकारी नहीं मिलती, जबकि विपणन द्वारा ग्राहकों की इच्छाओं व आवश्यकताओं की पहले से ही जानकारी मिलती है।
प्रश्न 12.
समाज एवं राष्ट्र के लिए विपणन प्रबन्ध के महत्त्व को निम्नांकित आधारों पर स्पष्ट कीजिए-
(1) रोजगार में वृद्धि
(2) सामाजिक परिवर्तन का साधन
उत्तर:
(1) रोजगार में वृद्धि-विपणन प्रबन्ध रोजगार में वृद्धि करता है। यह विपणन की विभिन्न क्रियाओं जैसे विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन, पैकिंग, वितरण, बाजार अनुसंधान आदि के माध्यम से देश में रोजगार बढ़ाता है। इसके अलावा यह अपने विपणन सम्बन्धी अप्रत्यक्ष कार्यों, जैसे-यातायात, संचार, बैकिंग, बीमा, भण्डारण आदि में सहयोग करके भी रोजगार में वृद्धि करता है।
(2) सामाजिक परिवर्तन का साधन-विपणन सामाजिक परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। विपणन प्रबन्ध विपणन की सहायता से लोगों को नई-नई वस्तुएँ उपलब्ध कराता है। समाज में मिलावट, जमाखोरी, भ्रामक विज्ञापन आदि बुराइयों से मुक्ति दिलाता है। इस प्रकार यह सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है।
प्रश्न 13.
विपणन की 'उत्पादन अवधारणा' का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
उत्पादन अवधारणा–विपणन की यह प्रारम्भिक एवं प्राचीनतम अवधारणा है। यह अवधारणा उस समय प्रचलित रहती थी जबकि माल का उत्पादन बहुत सीमित होता था, बाजार में वस्तुएँ माँग की तुलना में बहुत कम उपलब्ध होती थीं। औद्योगिक क्रान्ति के प्रारम्भिक दिनों में माल का विक्रय करना कोई समस्या नहीं थी। जो भी व्यक्ति यदि वस्तुओं का उत्पादन करता हो ये बिक जाती थीं इसलिए व्यावसायिक क्रियाएँ वस्तुओं के उत्पादन पर केन्द्रित थीं। यह विश्वास किया जाता था कि बड़ी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन कर अधिकतम लाभ कमाया जा सकता है। यह भी धारणा थी कि ग्राहक उन वस्तुओं को ही खरीदेंगे जिनका मूल्य उनकी सामर्थ्य के अनुसार होगा। इस प्रकार से किसी व्यावसायिक इकाई की सफलता की कुंजी उत्पाद की उपलब्धता एवं सामर्थ्य में होना मानी जाती है।
प्रश्न 14.
एक अच्छे ब्राण्ड के तीन लाभ बतलाइये।
उत्तर:
एक अच्छे ब्राण्ड के लाभ-
1. गारण्टी का बीमा-सामान्यतया अच्छे ब्राण्ड वाली वस्तुओं की उपयोगिता के बारे में गारण्टी दी जाती है कि यदि वस्तु में कथित उपयोगिता न हो तो वस्तु को बदलने अथवा उसका मूल्य वापस करने की गारण्टी दी जाती है। फलतः उपभोक्ताओं को वस्तु अच्छी किस्म की मिलती है। इस प्रकार ब्राण्ड गारण्टी बीमे का कार्य करती है।
2. प्रतिस्पर्धा से बचाव-अच्छे ब्राण्ड वाली वस्तुओं के क्रेताओं में ब्राण्ड के प्रति लगाव एवं वफादारी पैदा हो जाती है। उपभोक्ता उसी ब्राण्ड की वस्तु खरीदते हैं। उपभोक्ता को ये आदतें उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा से बचाती हैं।
3. स्थायी माँग बनाना-निर्माता द्वारा तथा मध्यस्थों द्वारा ब्राण्ड वाली वस्तुओं का विक्रय किये जाने से उनकी माँग स्थायी हो जाती है। इस प्रकार अच्छा ब्राण्ड वस्तुओं की स्थायी माँग बनाने में सहायक होता है।
प्रश्न 15.
वितरण के प्रत्यक्ष माध्यमों का क्या अर्थ है? वितरण माध्यम की किन्हीं चार प्रत्यक्ष विधियों की सूची बनाइये।
उत्तर:
वितरण के प्रत्यक्ष माध्यमों का अर्थ-जब निर्माता या उत्पादक अपनी वस्तुओं का वितरण स्वयं के संगठन एवं साधनों के द्वारा करता है तो यह वितरण का प्रत्यक्ष माध्यम कहलाता है। इसमें उत्पादक तथा उपभोक्ता के बीच प्रत्यक्ष सम्पर्क रहता है। प्रत्यक्ष माध्यम में उत्पादक स्वयं की दुकानें खोलकर उपभोक्ताओं को वस्तुएँ बेचता है। वह स्वयं के विक्रयकर्ता भी रखता है जो घर-घर जाकर उसकी वस्तुएँ बेचते हैं।
वितरण माध्यम की प्रत्यक्ष विधियाँ-
प्रश्न 16.
विपणन की बिक्री अवधारणा का क्या आशय है?
उत्तर:
विपणन की बिक्री अवधारणा-विपणन की बिक्री अवधारणा का तात्पर्य यह है कि ग्राहकों को अपने हाल पर छोड़ देने से बात नहीं बन सकती। उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के लिए विशेष प्रयास किये जाने आवश्यक हैं। जब व्यवसाय बड़े पैमाने पर होने लगता है, पूर्ति में वृद्धि होने लगती है, तो विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता भी बढ़ने लगती है। फलतः ऐसी स्थिति में वस्तुएँ खरीदने के लिए ग्राहकों को आकर्षित करना और उन पर ध्यान देना और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
इस अवधारणा की यह मान्यता है कि ग्राहक तब तक वस्तु को क्रय नहीं करेगा या फिर पर्याप्त मात्रा में क्रय नहीं करेगा जब तक कि इसके लिए उसे अच्छे ढंग से प्रभावित एवं अभिप्रेरित नहीं किया जाये। इस प्रकार इस अवधारणा में उत्पादों की बिक्री के लिए विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं विक्रय संवर्द्धन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाना आवश्यक माना जाने लगा। इसी अवधारणा को ध्यान में रखते हुए व्यावसायिक संस्थाएँ अपने विपणन प्रयास ग्राहकों को लुभाने, समझाने, आकर्षित करने और वस्तुएँ खरीदने के लिए प्रेरित करने में लगाती हैं।
प्रश्न 17.
कुछ उत्पादों में निश्चित एवं अद्वितीय लक्षण होते हैं। वे विशिष्ट वर्ग के ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। उत्पाद के प्रकार की पहचान कीजिये तथा इसकी विशेषताओं की सूची तैयार कीजिये।
उत्तर:
विशिष्ट उत्पाद-विशिष्ट उत्पाद वे उत्पाद होते हैं जिनके कुछ विशेष निश्चित एवं अद्वितीय लक्षण होते हैं जिनके कारण ग्राहक इन्हें विशेष रूप से खरीदना चाहते हैं । इनके ब्रांड को अत्यधिक पसन्द करते हैं। ऐसे उत्पादों के क्रय में क्रेता अधिक समय एवं श्रम लगाने को भी तैयार रहते हैं जैसे कार, फ्रिज, मोबाइल फोन, टीवी आदि।
विशेषताएँ-
प्रश्न 18.
लेबलिंग के तीन कार्य बताइये।
उत्तर:
लेबलिंग के कार्य-
(1) उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान करानालेबलिंग का एक कार्य उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना है। सामान्य सूचनाएँ जो लेबलों पर दी जाती हैं वे हैं-निर्माता का नाम, पता, पैक करते समय वजन, उत्पाद तिथि का अधिकतम फुटकर मूल्य एवं बैंच संख्या। इनसे उत्पाद की पहचान आसानी से हो जाती है।
(2) उत्पादों का श्रेणीकरण-लेबल का एक कार्य उत्पाद को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करना होता है। कभी-कभी विपणनकर्ता उत्पाद को विशिष्टताओं अथवा गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट देते हैं। उदाहरण के लिए चाय की विभिन्न किस्मों के कुछ ब्राण्ड पीले, लाल एवं हरे लेबल वर्गों में बाँटकर बेचे जाते हैं।
(3) उत्पादन के प्रवर्तन में सहायता-सही रूप से अनुरूपित लेबल ध्यान आकर्षित करता है एवं इसके कारण भी लोग वस्तु का क्रय करते हैं। कई उत्पादों के लेबल पर विक्रय संवर्द्धन संदेश लिखे रहते हैं जैसे एक शेविंग क्रीम के पैकेट के लेबल पर लिखा होता है '40 प्रतिशत अतिरिक्त मुफ्त'।
प्रश्न 19.
लेबलिंग के तीन लाभ बताइये।
उत्तर:
लेबलिंग के लाभ-
1. वस्तु के बारे में जानकारी होना-लेबलिंग का एक प्रमुख लाभ यह है कि इससे ग्राहकों को वस्तु की किस्म की जानकारी हो जाती है। एक निर्माता कम्पनी जब अनेक किस्म की वस्तुएँ बना रही होती है तो वह उनके लिए अलग-अलग लेबल का प्रयोग करती है। फलतः ग्राहक के लिए अच्छी किस्म की वस्तुएँ खरीदना आसान हो जाता है।
2. उपभोक्ताओं को सन्तुष्टि-लेबल के द्वारा निर्माता के उत्पादों को भिन्न-भिन्न आकारों, रूपों, वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इससे उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकता के अनुरूप सन्तुष्ट किया जा सकता है।
3. धोखेबाजी से छुटकारा-अनेक उत्पादों पर लेबल लगाना एवं उन लेबलों में विस्तृत सूचनाएँ देना कानूनन जरूरी होता है। इससे उपभोक्ताओं के साथ धोखेबाजी नहीं हो पाती है।
प्रश्न 20.
पैकेजिंग के कार्य बताइये।
उत्तर:
पैकेजिंग के कार्य-
प्रश्न 21.
विपणन मिश्रण का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण का अर्थ-विपणन मिश्रण से तात्पर्य ऐसे समस्त विपणन निर्णयों से है जो विक्रय को प्रोत्साहित करते हैं। विभिन्न विपणन क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए बनायी गई नीतियों के योग को विपणन मिश्रण कहते हैं। अन्य शब्दों में, विपणन मिश्रण विपणन माध्यों का समूह है जिसका फर्म लक्षित बाजार में विपणन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयोग करती है।
"निर्माताओं द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लाने वाली नीतियाँ विपणन मिश्रण का निर्माण करती हैं।" इस प्रकार विपणन मिश्रण विभिन्न तत्त्वों या घटकों से मिलकर बनता है जिनको मुख्यत: चार वर्गों में विभक्त किया गया है-उत्पाद, मूल्य, स्थान एवं प्रवर्तन।
प्रश्न 22.
खिलौनों की बिक्री हेतु आपके द्वारा चुने गये विज्ञापन माध्यम के कारण बतलाइये।
उत्तर:
खिलौनों की बिक्री हेतु हम निम्न विज्ञापन माध्यमों को चुनेंगे-
विज्ञापन माध्यम चुने जाने के कारण-
प्रश्न 23.
विनिमय के लिए किन-किन शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है ?
उत्तर:
विनिमय के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है-
प्रश्न 24.
विपणन किसका किया जा सकता है?
अथवा
विपणन की विषय-वस्तु को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विपणन किसका किया जा सकता है? कोई भी उत्पाद हो, वह उपयोगिताओं का समूह है। सन्तुष्टि का स्रोत भी होता है। इसे मानवीय इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह केवल भौतिक पदार्थों (कार, ब्रेड, बटर, पेन्सिल) तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि अन्य दूसरी चीजों, जैसेसेवाएँ, विचार, स्थान आदि जिन्हें सम्भावित ग्राहकों को बेचा जा सकता है, भी इसमें सम्मिलित हैं। इस प्रकार विपणन के क्षेत्र में कोई भी चीज जो क्रेता के लिए कुछ मूल्य रखती है उत्पाद कहलाती है।
यह भौतिक हो सकता है, जिसे देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है या फिर अभौतिक हो सकता है, जैसे-एक डॉक्टर, वकील की सेवाएँ। उत्पादों का तो विपणन हो ही सकता है। इसके अतिरिक्त सेवा, व्यक्ति जैसे राजनीतिक पार्टियाँ किसी उम्मीदवार विशेष को वोट देने के लिए तैयार करती हैं या कोई विचार (जैसे रक्तदान के लिए प्रेरित करना) या पर्यटन स्थल पर जाने के लिए कहना, का भी विपणन हो सकता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि किसी भी चीज का विपणन किया जा सकता है। यदि उसका दूसरों के लिए कुछ मूल्य है। यह एक उत्पाद, सेवा, व्यक्ति, स्थान, विचार, घटना, संगठन या अनुभव या सम्पत्ति कुछ भी हो सकता है।
प्रश्न 25.
विपणनकर्ता किसे कहा जाता है ?
अथवा
कोई भी व्यक्ति जो विनिमय प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाता है, विपणनकर्ता माना जाता है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर:
विपणनकर्ता से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो वस्तु एवं सेवाओं की विनिमय प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है। सामान्यतः विनिमय प्रक्रिया में विक्रेता ही अधिक सक्रिय होता है क्योंकि उसके प्रयास अधिक से अधिक विक्रय करने के लिए होते हैं। वह क्रेताओं को वस्तुएँ खरीदने के लिए तरह-तरह से प्रेरित करता है। लेकिन कभी-कभी विनिमय प्रक्रिया में क्रेता भी अधिक सक्रिय भूमिका निभाता है। इस सम्बन्ध में हम कह सकते हैं कि आपूर्ति की अपूर्व स्थिति में क्रेता विक्रेता को उसे अपना माल बेचने के लिए तैयार करता है।
उदाहरण के लिए रक्षा उत्पादों के लेन-देन में क्रेता ही विक्रेता को माल बेचने के लिए तैयार करता है। इसी ङ्केप्रकार 'आणाविक इंधन' अथवा 'भारी जल' के लिए क्रेता ही विक्रेता को विक्रय के लिए तैयार करता है। अतः इस प्रकार के मामलों में क्रेता को विपणनकर्ता माना जायेगा। अतः हम यह कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति जो विनिमय प्रक्रिया में अधिक सक्रिय भूमिका निभाता है वह विपणनकर्त्ता ही कहलाता है।
प्रश्न 26.
विपणन प्रबन्ध का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध का अर्थ-सामान्य शब्दों में विपणन प्रबन्ध का अर्थ है, विपणन कार्य का प्रबन्धन। वस्तुतः विपणन प्रबन्ध से अभिप्राय उन क्रियाओं के नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण से है जो उत्पादक एवं उपभोक्ता अथवा उत्पाद एवं सेवा के उपयोगकर्ता के बीच वस्तु एवं सेवाओं के विनिमय को सुगम बनाते हैं। विपणन प्रबन्ध बाजार में विपणन से इच्छित परिणाम प्राप्त करने पर केन्द्रित रहता है।
फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन प्रबन्ध बाजार का चयन करने एवं प्रबन्ध की अधिक श्रेष्ठ ग्राहक मूल्य पैदा करने, सुपुर्दगी करने एवं सम्प्रेषण करने के माध्यम से ग्राहकों को पकड़ना, उन्हें अपना बनाये रखना एवं उनमें वृद्धि करने की कला एवं विज्ञान है।"
यथार्थ में विपणन प्रबन्ध विभिन्न कार्य करता है जैसे विपणन गतिविधियों का विश्लेषण एवं नियोजन करना, विपणन नियोजन का क्रियान्वयन तथा नियन्त्रण तन्त्र की स्थापना करना। यह कार्य इस प्रकार से किये जाते हैं कि संगठन के उद्देश्यों को न्यूनतम लागत पर प्राप्त किया जा सके।
प्रश्न 27.
विपणन प्रबन्ध द्वारा उपयोगिता का सृजन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
1. समय उपयोगिता-जब निर्माताओं द्वारा उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुरूप माल तैयार किया जाता है तो यह जरूरी नहीं कि उनका माल तुरन्त ही बिक जाये। अतः उपभोक्ताओं की सुविधा एवं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए विपणन प्रबन्ध उन्हें जब भी जरूरत होती है, माल उपलब्ध करवाता है। इस प्रकार वस्तुओं को उत्पादन से लेकर विक्रय तक की अवधि के लिए भण्डारगृहों में रखवाकर समय उपयोगिता का सृजन करता है।
2. स्वामित्व उपयोगिता-विपणन प्रबन्ध द्वारा अपनी विक्रय की क्रिया के माध्यम से उत्पादक की वस्तुओं को उपभोक्ताओं को बेचा जाता है और इसके माध्यम से वस्तुओं का स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित करके स्वामित्व उपयोगिता का सजन करता है।
3. स्थान उपयोगिता-विपणन प्रबन्ध द्वारा वस्तुओं को उत्पादन स्थान से उपयोग स्थान तक पहुँचा कर वस्तु में स्थान उपयोगिता का सृजन किया जाता है। इसके लिए उसके द्वारा परिवहन के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 28.
विपणन के उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
विपणन के उद्देश्य-
1. माँग का सृजन करना-विपणन एक ऐसा सचेत प्रयास है जिससे ग्राहकों की आवश्यकताओं, चाहत व इच्छाओं का पता लगता है। तत्पश्चात् उत्पादक उसी के अनुरूप उत्पादन करते हैं। विपणन उत्पादों अथवा सेवाओं की उपयोगिता का ज्ञान ग्राहकों को करवाकर माँग में सृजन का कार्य करता है।
2. बाजार का अंश-विपणन का एक उद्देश्य उत्पाद के बाजार अंश को बढ़ाना भी है। वर्तमान प्रतिस्पर्धी युग में सभी व्यावसायिक संस्थाएँ बाजार का एक उचित भाग अपने अधिकार में रखना चाहती हैं। विपणन इस उद्देश्य की प्राप्ति में उनका सहयोग करता है।
3. ख्याति-विपणन का एक उद्देश्य बाजार में व्यावसायिक संस्था की ख्याति में वृद्धि करना भी है। यह अच्छे गुण वाले उत्पादों को उचित मूल्य पर बाजार में बिकवाने में सहायता करता है। विपणन उपभोक्ताओं को उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उन्हें सन्तुष्टि प्रदान कर विक्रय बढ़ाता है, संस्था की ख्याति में वृद्धि होती है।
4. उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि द्वारा बिक्री बढ़ाना-विपणन दीर्घकालीन लक्ष्यों, जैसे-लाभ, स्थायित्व तथा विकास की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। इनकी प्राप्ति ग्राहक सन्तुष्टि से ही हो सकती है।
प्रश्न 29.
विपणन अवधारणा की मुख्य विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
विपणन अवधारणा की मुख्य विशेषताएँ-
प्रश्न 30.
उत्पाद का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
उत्पाद का अर्थ-सामान्य अर्थ में, उत्पाद शब्द को उसकी भौतिक विशेषताओं के रूप में उपयोग किया जाता है जैसे हमने कार खरीदी है, सैलफोन, फ्रिज या एल.सी.डी. टी.वी. खरीदा है। विपणन में उत्पाद मूर्त एवं अमूर्त दोनों प्रकार की विशेषताओं का मिश्रण है, जिनका मूल्य देकर विनिमय किया जा सकता है तथा जो ग्राहक की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि कर सकता है। उत्पाद में भौतिक पदार्थों के साथ-साथ सेवा विचार, व्यक्ति, स्थान भी सम्मिलित हैं। अतः उत्पाद को इस प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं कि कुछ भी जो आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बाजार में बिक्री के लिए प्रस्तावित किया जा सकता है, उत्पाद कहलाता है। ग्राहक की दृष्टि से उत्पाद अनेक उपयोगिताओं का समूह है जिसका क्रय उसकी कुछ आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की क्षमता के कारण किया जाता है।
प्रश्न 31.
सुविधा उत्पाद क्या हैं? इनकी मुख्य विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
सुविधा उत्पाद का अर्थ-वे उपभोक्ता वस्तुएँ जिन्हें उपभोक्ता बार-बार और तुरन्त बिना अधिक समय एवं श्रम को खर्च के खरीदता है, सुविधा उत्पाद कहलाते हैं जैसे समाचार पत्र, दवाइयाँ आदि।
विशेषताएँ-
प्रश्न 32.
क्रय योग्य उत्पादों की मुख्य विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
क य योग्य उत्पादों की मुख्य विशेषताएँ
प्रश्न 33.
सेवाओं से आपका क्या तात्पर्य है? सेवाओं के प्रमुख लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
सेवाओं से तात्पर्य-सेवाओं से अभिप्राय उन क्रियाओं लाभ अथवा सन्तुष्टि से है जिनकी बिक्री की जा रही है जैसे डाक सेवाएँ, डॉक्टर व वकील की सेवाएँ, ड्राई-क्लीन करना, घड़ी की मरम्मत कराना, बाल काटना इत्यादि।
लक्षण-
प्रश्न 34.
औद्योगिक उत्पादों के वर्गीकरण को समझाइये।
उत्तर:
औद्योगिक उत्पादों का वर्गीकरण-
1. माल एवं पुर्जे-इनमें वे वस्तुएँ सम्मिलित हैं जो पूरी तरह से विनिर्माताओं के उत्पादों के भाग बन जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-(1) कच्चा माल-इनमें कृषि उत्पाद (रुई, गन्ना, तिलहन) तथा प्राकृतिक उत्पाद (कच्चा पैट्रोल, कच्चा लोहा) सम्मिलित हैं। (2) निर्मित वस्तुएँ एवं पुर्जे-इनमें घटक पदार्थ-(काँच, लोहा, प्लास्टिक) एवं घटक पुर्जे (टायर, बिजली के बल्ब) आदि सम्मिलित हैं।
2. पूँजीगत वस्तुएँ-ये वे वस्तुएँ हैं जिनका प्रयोग तैयार माल के उत्पादन में किया जाता है। ये हैं-(1) संयन्त्र या प्रतिस्थापित जैसे उत्तोलक मुख्य कम्प्यूटर एवं (2) उपकरण जैसे हाथ के औजार, व्यक्तिगत उपयोग के कम्प्यूटर आदि।
3. आपूर्ति एवं व्यावसायिक सेवाएँ-ये कम समय तक टिकने वाली वस्तु एवं सेवाएँ होती हैं जो तैयार वस्तुओं को विकसित करने अथवा उनके प्रबन्धन में सहायक होती हैं। इनमें सम्मिलित हैं-(1) रखरखाव एवं मरम्मत की वस्तुएँ, जैसे-रंग-रोगन, कीलें आदि (2) परिचालन सहायक आपूर्ति, जैसे-कम्प्यूटर, स्टेशनरी, कागज आदि।
प्रश्न 35.
विपणन की व्यावसायिक इकाई में भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विपणन की व्यावसायिक इकाई में भूमिका-विपणन की आधुनिक अवधारणा की किसी व्यावसायिक इकाई के उद्देश्यों की प्राप्ति में अहम भूमिका होती है। संस्था लाभ अर्जन के लिए है अथवा गैर-लाभ वाले विपणन के माध्यम से उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त कर सकते हैं। इसकी सहायता से संगठन की क्रियाएँ ग्राहकों की आवश्यकताओं पर केन्द्रित रहती हैं। किस वस्तु का उत्पादन किया जाये अथवा बिक्री की जाये, ग्राहकों की आवश्यकताओं का विश्लेषण व्यावसायिक इकाई को करना होगा।
उत्पाद का अनुरूपण भी सम्भावित ग्राहकों की आवश्यकतानुसार किया जायेगा। इनको उन वितरण माध्यों के माध्यम से उपलब्ध कराया जायेगा जो ग्राहकों के लिए सुविधाजनक हैं। इनका मूल्य भी ग्राहक की क्रय-शक्ति के अनुसार होगा। वस्तुतः विपणन व्यवसाय का वह आदर्श है जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति कर उनकी सहायता करता है। यह एक सर्वविदित सत्य है कि एक सन्तुष्ट ग्राहक किसी व्यावसायिक संस्था की अमूल्य सम्पत्ति है। इस प्रकार से विपणन का किसी फर्म के अस्तित्व एवं विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है।
प्रश्न 36.
देश की अर्थव्यवस्था में विपणन की भूमिका को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
देश की अर्थव्यवस्था में विपणन की भूमिका-विपणन किसी देश के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लोगों को नयेनये कार्य करने तथा ग्राहकों की आवश्यकता की वस्तुओं के उत्पादन के लिए उद्योग-धन्धे लगाने के लिए प्रेरित करता है। विपणन उत्पादन एवं उपभोग के स्तर में असमानता के कारण उत्पन्न उच्च मूल्य के कारण पैदा कठिनाइयों को दूर करने में सहायता करता है। यह कुशल वितरण व्यवस्थाओं के द्वारा वस्तुओं के सुगम प्रवाह को सुनिश्चित करता है। अन्य शब्दों में, विपणन सही प्रकार के उत्पाद एवं सेवाओं जिनका एक फर्म को उत्पादन करना चाहिए, मूल्य जिन पर उत्पादों को बेचना चाहिए तथा माध्य जिनके द्वारा उत्पादों को अन्तिम ङ्केउपभोग अथवा उपयोग के स्थान पर पहुँचाना चाहिए, का पता करने में सहायता करता है। व्यवसाय एवं उपभोग के केन्द्रों में आपसी ताल-मेल जो विपणन द्वारा सम्भव है, आर्थिक गतिविधि को गति प्रदान करता है।
प्रश्न 37.
एक व्यावसायिक इकाई को अपने उत्पाद के ब्रांड के नाम का चयन करते समय किनकिन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
प्रश्न 38.
मूल्य निर्धारण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मूल्य निर्धारण का अर्थ-सामान्यतः मूल्य निर्धारण से तात्पर्य उस कार्य से है जिसके अनुसार किसी उत्पाद या सेवा का मूल्य निर्धारित किया जाता है।
किसी समय विशेष पर ग्राहकों के लिए उत्पाद के मूल्य को परिणामात्मक में (रुपये में) परिवर्तित करने की कला कीमत निर्धारण है। वस्तुतः मूल्य निर्धारण वह कार्य एवं प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी उत्पाद या सेवा के मूल्य को मौद्रिक रूप में निर्धारित किया जाता है। यह प्रक्रिया उत्पाद या सेवा को बाजार में विक्रय हेतु प्रस्तुत करने से पूर्व प्रारम्भ होती है। इस प्रक्रिया में मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों, मूल्यों को प्रभावित करने वाले घटकों, उत्पाद का मौद्रिक मूल्य, मूल्य नीतियों एवं व्यूह-रचनाओं आदि को निर्धारित किया जाता है।
निष्कर्ष के रूप में, मूल्य निर्धारण वह प्रक्रिया है जिसमें मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों, उपलब्ध मूल्य लोचशीलता, उत्पाद का मौद्रिक मूल्य, मूल्य नीतियों एवं व्यूह-रचनाओं आदि का निर्धारण करना तथा मूल्य नीतियों एवं व्यूह-रचनाओं का क्रियान्वयन एवं नियन्त्रण करना सम्मिलित है।
प्रश्न 39.
जनसम्पर्क विभाग के कोई तीन कार्य लिखिए।
उत्तर:
जनसम्पर्क विभाग के तीन कार्य निम्नलिखित हैं-
1. प्रेस सम्पर्क-संगठन के बारे में सूचना को प्रेस में सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है समाचार बनाने हेतु एक कहानी का विकास तथा अनुसंधान कौशल आवश्यक है तथा जनसंचार माध्यमों को प्रेस प्रकाशनी स्वीकृत कराना एक कठिन कार्य है। जनसम्पर्क विभाग कंपनी के बारे में सही तथ्य तथा सही तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु जनसंचार माध्यमों के सम्पर्क में रहता है अन्यथा यदि समाचार अन्य स्रोतों से लिए जाएं तो वे विकृत हो सकते हैं।
2. उत्पाद प्रचार-नये उत्पादों के प्रचार हेतु विशेष प्रयास आवश्यक होते हैं तथा कंपनी को ऐसे कार्यक्रम प्रायोजित करने होते हैं। जनसम्पर्क विभाग ऐसी घटनाओं के प्रायोजनों का प्रबंध करता है। समाचार सम्मेलनों, संगोष्ठियों तथा प्रदर्शनियों जैसी खेल-कूद तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आयोजन द्वारा कंपनी अपने नये उत्पादों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकती है।
3. निगमित सम्प्रेषण-जनता तथा संगठन में कर्मचारियों के साथ सम्प्रेषण के माध्यम से संगठन को अपनी छवि को संवर्धित करने की आवश्यकता होती है यह सामान्यतः संवादपत्रों, वार्षिक प्रतिवेदनों, विवरणिकाओं, लेखों तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से किया जाता है। लक्ष्य बाजारों तक उनकी पहुँच तथा प्रभाव हेतु कंपनियाँ इन साधनों पर विश्वास करती हैं। व्यापार संघों अथवा व्यापार मेलों की सभाओं में कंपनियों के कार्यकारियों द्वारा दिए भाषणों से कंपनी की छवि वर्धित होती है। यहाँ तक कि टी.वी. चैनलों के साथ साक्षात्कार तथा जनसंचार द्वारा पूछताछ के प्रत्युत्तर देना जनसम्पर्क बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है।
प्रश्न 40.
विज्ञापन के प्रमुख लाभ बतलाइये।
उत्तर:
विज्ञापन के प्रमुख लाभ-
1. बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचाना-विज्ञापन एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से सन्देश दूर-दूर फैले बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचा जा सकता है।
2. स्पष्टता-वर्तमान समय में कला, कम्प्यूटरडिजाइन एवं ग्राफिक्स में विकास के साथ विज्ञापन सम्प्रेषण के सशक्त माध्यम के रूप में विकसित हो चुका है। विशेष प्रभावोत्पादन (आकर्षक रूप-रंग, छपाई व चित्रों का प्रयोग) के कारण सरल उत्पाद एवं सन्देश भी बहुत आकर्षक लगने लगते हैं।
3. ग्राहक सन्तुष्टि एवं विश्वास में वृद्धिविज्ञापन का एक लाभ यह भी है कि यह सम्भावित क्रेताओं में विश्वास पैदा करता है। उत्पाद की गुणवत्ता को सुनिश्चित करता है। इसलिए ग्राहक अधिक सन्तोष का अनुभव करते हैं।
4. मितव्ययता-विज्ञापन बड़ी संख्या में लोगों तक पहुँचाने के लिए कम खर्चीला सम्प्रेषण का साधन है। व्यापकता के कारण विज्ञापन का कुल व्यय सम्प्रेषण द्वारा बनाये गये सम्बन्धों में बड़ी संख्या में बाँट दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप प्रति लक्षित इकाई लागत कम हो जाती है।
प्रश्न 41.
विनिमय की कोई पाँच शर्ते लिखिए।
उत्तर:
विनिमय की पाँच शर्ते अग्रलिखित हैं-
उपरोक्त बातें विनिमय की आवश्यक शर्ते हैं। विनिमय का होना या न होना दोनों पक्षों के विनिमय क्रिया की उपयुक्तता पर निर्भर करता है फिर भले ही इससे पक्षों को लाभ होता है या फिर कम-से-कम उनको कोई हानि नहीं होनी चाहिए।
प्रश्न 42.
वैयक्तिक विक्रय के प्रमुख लाभ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 43.
विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख सीमाएँ बतलाइये।
उत्तर:
प्रश्न 44.
प्रमापीकरण के किन्हीं चार उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्रमापीकरण के उद्देश्य-प्रमापीकरण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 45.
विपणन एवं विक्रय में कोई चार अन्तर बताइये।
अथवा
विपणन व विक्रय में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विपणन एवं विक्रय में अन्तर-
1. प्रक्रिया का भाग बनाम व्यापक अर्थविपणन विक्रय से कहीं अधिक व्यापक है। इसमें कई क्रियाएँ सम्मिलित हैं, जैसे-ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना, इनकी पूर्ति के लिए उत्पाद को विकसित करना, मूल्यों का निर्धारण करना तथा सम्भावित क्रेताओं को इनके क्रय के लिए तैयार करना, जबकि विक्रय विपणन प्रक्रिया का एक अंग मात्र है तथा इसमें वस्तुओं का अधिग्रहण एवं स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित होता है।
2. स्वामित्व/अधिकार हस्तान्तरण बनाम ग्राहकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि-विपणन का अत्यधिक जोर ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की अधिकतम सन्तुष्टि पर होता है, जबकि विक्रय का अत्यधिक जोर मुख्यतः वस्तुओं का स्वामित्व/अधिकार एवं अधिग्रहण का विक्रेता से उपभोक्ता एवं उपयोगकर्ता को हस्तान्तरण करने पर होता है।।
3. लाभ बनाम ग्राहक सन्तुष्टि-विपणन में ग्राहक की सन्तुष्टि तथा उसके माध्यम से लम्बी अवधि में लाभ में वृद्धि पर ध्यान दिया जाता है, जबकि विक्रय का अधिकतम जोर अधिकतम विक्रय के द्वारा अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। इस प्रकार विपणन संगठन ग्राहक सन्तुष्टि के माध्यम से अधिक लाभ प्राप्त करने को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है, जबकि विक्रय की सभी क्रियाएँ अधिकतम विक्रय द्वारा अधिकतम लाभ कमाने को महत्त्वपूर्ण मानती हैं।
4. प्रारम्भ एवं अन्त-विपणन की क्रियाएँ वस्तु के उत्पादन से काफी पहले प्रारम्भ हो जाती हैं तथा वस्तुओं के विक्रय के पश्चात् भी चलती रहती हैं, जबकि विक्रय क्रियाएँ उत्पाद के विकसित कर लेने के पश्चात् प्रारम्भ होती हैं।
प्रश्न 46.
विपणन प्रबन्ध प्रक्रिया के कोई तीन बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध प्रक्रिया के कोई तीन बिन्दु निम्नलिखित हैं-
1. बाजार का चयन जैसे एक विनिर्माता 5 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए तैयार सिले सिलाए वस्त्रों को तैयार करना तय करता है;
2. बाजार के चयन में प्रबंध प्रक्रिया ग्राहक बनाने उन्हें अपना बनाए रखने एवं उनकी संख्या में वृद्धि पर केंद्रित होती है, इसका अर्थ हुआ विपणनकर्ता को अपने उत्पाद के लिए माँग पैदा करनी होती है जिससे कि ग्राहक उत्पाद का क्रय करें, उन्हें फर्म के उत्पादों से संतुष्ट करना होता है तथा और नए ग्राहक बनाने होते हैं जिससे कि फर्म और ऊँचा उठे।
3. उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तंत्र ग्राहकों के लिए अधिक श्रेष्ठ मूल्यों का निर्माण, विकास एवं सम्प्रेषण माध्यम है। इसका अर्थ हुआ कि विपणन प्रबंधक का प्राथमिक कार्य वस्तुओं को अधिक उपयोगी बनाना है जिससे कि ग्राहक वस्तु एवं सेवाओं की ओर आकर्षित हों, संभावित ग्राहकों को इनके संबंध में बताएँ तथा उन्हें इन उत्पादों को खरीदने के लिए तैयार करें।
प्रश्न 47.
व्यक्तिगत विक्रय क्या है ? व्यक्तिगत विक्रय के लक्षण बताइये।
अथवा
वैयक्तिक विक्रय से आप क्या समझते हैं ? वैयक्तिक विक्रय के प्रमुख लक्षण बतलाइये।
उत्तर:
वैयक्तिक विक्रय या व्यक्तिगत विक्रय का अर्थ-वैयक्तिक विक्रय में बिक्री के उद्देश्य से एक या एक से अधिक सम्भावित ग्राहकों से बातचीत के रूप में सन्देश का मौखिक प्रस्तुतीकरण समाहित है। यह सम्प्रेषण का वैयक्तिक स्वरूप है। वस्तुतः वैयक्तिक विक्रय किसी विक्रयकर्ता या विक्रय प्रतिनिधि द्वारा किसी उत्पाद, सेवा या विचार के सम्बन्ध में किसी ग्राहक या सम्भावित ग्राहक के समक्ष व्यक्तिगत रूप से आमनेसामने प्रस्तुतीकरण है।
रॉय बारटैल के अनुसार, “अधिकांश लोग सोचते हैं कि विक्रय एवं बात करना एक ही होते हैं। लेकिन सर्वाधिक प्रभावी विक्रयकर्ता जानते हैं कि सुनना उनके कार्य का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है।"
इस प्रकार वैयक्तिक विक्रय दो व्यक्तियों द्वारा आमने-सामने सन्देशों का आदान-प्रदान है जिसमें विक्रेता सम्भावित क्रेताओं को अपनी संस्था के उत्पाद या सेवा को क्रय करने या किसी विचार को अपनाने हेतु सविनय प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है।
विशेषताएँ-वैयक्तिक विक्रय की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 48.
पैकेजिंग के तीन लाभों की विवेचना कीजिए।
अथवा
पैकेजिंग के चार प्रमुख लाभ बताइये।
उत्तर:
पैकेजिंग के लाभ-पैकेजिंग के प्रमुख लाभ निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. स्वास्थ्य एवं स्वच्छता बनाये रखने का ऊँचा होता स्तर-देश में लोगों का जीवन स्तर ऊँचा होता जा रहा है। जिसके कारण अधिक से अधिक लोग अब पैक की हुई वस्तुएँ ही खरीदते हैं। इससे वस्तुएँ फ्रेश रहती हैं और मिलावट की सम्भावना कम से कम रहती है।
2. स्वयंसेवा दुकानें--स्वयंसेवी फुटकर स्टोर आजकल काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं विशेषकर महानगरों, बड़े शहरों एवं कस्बों में। इसके कारण व्यक्तिगत विक्रय के माध्यम से विक्रय संवर्द्धन की पारम्परिक भूमिका अब पैकेजिंग निभा रहा है।
3. उत्पादों का विभेदीकरण-पैकेजिंग उत्पादों में अन्तर करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। पैकेज का रंग, आकार, पदार्थ आदि के कारण ग्राहक उत्पाद की गुणवत्ता में अन्तर सही ढंग से समझ पाता है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद के पैकेज को देखकर ही उसकी गुणवत्ता का पता लगाया जा सकता है।
4. नवीनता के अवसर-पैकेजिंग के क्षेत्र में आये परिवर्तनों ने देश के विपणन परिदृश्य को पूर्ण रूप से बदल दिया है। अब ऐसे पैकेजिंग को विकसित कर लिया गया है जिसमें उत्पादों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वर्तमान में दूध, औषधि तथा पेय पदार्थों आदि के क्षेत्र में भी पैकेजिंग में काफी नवीनता आयी है।
प्रश्न 49.
विपणन प्रबन्ध के किन्हीं तीन उद्देश्यों को संक्षेप में समझाइये।
अथवा
विपणन प्रबन्ध के चार प्रमुख उद्देश्य बतलाइये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य-विपणन प्रबन्ध के प्रमुख उद्देश्य अग्रलिखित हैं-
1. माँग का सृजन करना-विपणन अनेक तरीकों से माँग का सृजन करता है। उत्पादक या निर्माता पहले यह पता लगाते हैं कि ग्राहक क्या चाहते हैं और फिर ग्राहकों की इच्छानुसार उत्पादन करते हैं। उत्पादों एवं सेवाओं की बिक्री उचित कीमतों पर विभिन्न बाजारों के क्रय के अनुसार की जाती है। उत्पादों अथवा सेवाओं की उपयोगिता का ज्ञान ग्राहकों को पहले ही दे दिया जाता है।
2. बाजार का अंश-विपणन एक इकाई को बाजार से अपनी स्थिति को अच्छी तरह से प्रदर्शित करने में सहायक होता है। बहुत से प्रलोभन तरीकों का प्रयोग उत्पाद को लोकप्रिय बनाने के लिए किया जाता है। ग्राहकों की माँग का उचित मूल्य तथा गुणवत्ता के सम्बन्ध में ध्यान रखा जाता है। आक्रामक विक्रय बढ़ाने के तरीकों का प्रयोग किया जाता है। ये सब क्रियाएँ एक संस्था को बाजार में उचित हिस्सा प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
3. ख्याति-विपणन एक संस्था को बाजार में एक निश्चित समय के अन्तराल पर ख्याति बनाने में सहायक होता है। विपणन मुख्य रूप से संस्था की प्रतिष्ठा के निर्माण के तरीकों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए उत्पादों का विज्ञापन, उचित मूल्य, उच्च गुण तथा सरल बाजार आदि क्रियाओं से सर्वप्रिय बनाया जा सकता है।
4. उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि द्वारा बिक्री बढ़ाना-विपणन दीर्घकालीन लक्ष्यों जैसे लाभ, स्थायित्व तथा विकास की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। इसकी प्राप्ति ग्राहकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से हो सकती है। एक संस्था के सभी मूलभूत कार्यों जैसे उत्पादन, वित्त, विपणन आदि का उद्देश्य आपस में सामन्जस्य करके ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करना और लाभ कमाना है। आधुनिक विपणन ग्राहकों से ही शुरू होता है और ग्राहकों पर ही समाप्त होता है।
प्रश्न 50.
विपणन की अवधारणा के स्तम्भ बताइए।
उत्तर:
विपणन की अवधारणा के निम्न स्तम्भ-
इस प्रकार से विपणन की अवधारणा का केंद्र बिंदु ग्राहक की चाहत है तथा व्यावसायिक इकाई के अधिकतम लाभ के उद्देश्य की प्राप्ति ग्राहक की संतुष्टि से प्राप्त की जा सकती है। विपणन का उद्देश्य ग्राहक को आकृष्ट कर लाभ कमाना है।
प्रश्न 51.
उत्पाद मिश्र क्या है ? उत्पाद मिश्र की विशेषताओं को संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर:
उत्पाद मिश्र का अर्थ-'उत्पाद मिश्र' का अर्थ किसी संस्था द्वारा विपणित किये जाने वाले उत्पादों की पूर्ण सूची से होता है। यदि एक संस्था साबुन, ब्लेड, रेजर, हेयर ऑयल, क्रीम, शेविंग क्रीम, टूथब्रश, टूथपेस्ट, नेल पॉलिश आदि वस्तुओं का उत्पादन अथवा विक्रय करती है तो विपणन हेतु प्रस्तुत इन समस्त वस्तुओं की पूर्ण सूची अथवा समूह उत्पाद मिश्र कहलाता है।
विशेषताएँ-उत्पाद मिश्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 52.
विपणन प्रबन्ध दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
विभिन्न प्रकार की विपणन अवधारणाओं में अन्तर बतलाइये।
प्रश्न 53.
औद्योगिक उत्पादों की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
उत्तर:
औद्योगिक उत्पादों की प्रमुख विशेषताएँ-
प्रश्न 54.
ब्रांड, ब्रांड नाम, ब्रांड चिह्न तथा ट्रेडमार्क का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रांड का अर्थ-ब्रांड नाम, शब्द, चिह्न, प्रतीक अथवा इनमें से कुछ का मिश्रण है जिसका प्रयोग किसी एक विक्रेता अथवा विक्रेता समूह के उत्पादों, वस्तु एवं सेवाओं की पहचान बनाने के लिए किया जाता है तथा इससे इन वस्तु एवं सेवाओं का प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों से अन्तर किया जा सकता है। उदाहरणार्थ कुछ प्रचलित ब्रांड हैं-बाटा, लाइफबॉय, डनलप आदि।
ब्रांड नाम-ब्रांड का वह भाग. जिसे बोला जा सकता है ब्रांड नाम कहलाता है अर्थात् ब्रांड नाम एक ब्रांड का मौखिक उच्चारण है जैसे एशियन पेंट, नटराज पेंसिल।
ब्रांड चिह्न-ब्रांड का वह भाग जिसे पुकारा नहीं जा सकता है लेकिन जिसे पहचाना जा सकता है, ब्रांड चिह्न कहलाता है। यह एक प्रतीक, आकार, अलग रंगरूप में होता है। उदाहरण के लिए जीवन बीमा निगम का योग-क्षमा, इण्डियन एयरलाइन्स का हाथ जोड़ता महाराजा।
ट्रेडमार्क-ब्रांड अथवा उसके किसी भाग को यदि कानूनी संरक्षण प्राप्त हो जाता है तो उसे ट्रेडमार्क कहते हैं। यह संरक्षण किसी अन्य फर्म द्वारा इसके प्रयोग के विरुद्ध मिलता है। क्योंकि जिस व्यावसायिक इकाई ने अपने ब्रांड का पंजीयन करा लिया है उसे इसके उपयोग करने का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में देश में कोई अन्य फर्म इस नाम या चिह्न का प्रयोग नहीं कर सकती।
प्रश्न 55.
ब्रांड तथा ट्रेडमार्क में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्रांड तथा ट्रेडमार्क में अन्तर
ब्रांड तथा ट्रेडमार्क में कुछ आधारभूत अंतर निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 56.
वितरण माध्यों के कार्यों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
वितरण माध्यों के कार्य-
1. छाँटना-मध्यस्थ कई निर्माताओं से माल एकत्रित करते हैं जो समान गुणवत्ता, प्रकृति अथवा आकार के नहीं होते। वितरण के माध्यमों के द्वारा अलग-अलग वस्तुओं को उनकी गुणवत्ता, रंग, किस्म, प्रकृति के आधार पर छाँटा जाता है।
2. एकत्रित करना-वितरण माध्यमों द्वारा एक जैसे माल को बड़ी मात्रा में संग्रहित किया जाता है जिससे वस्तुओं की आपूर्ति के प्रवाह में निरन्तरता बनाये रखी जा सकती है।
3. बँटवारा करना-एक जैसी वस्तुओं या माल को एक जगह एकत्रित करने के पश्चात् सम्भालने के उद्देश्य से तथा ग्राहकों को बेचने के लिए तथा लेबलिंग व ब्रांडिंग के दृष्टिकोण से छोटे-छोटे समूहों में बाँटा जाता है।
4. वर्गीकृत करना-मध्यस्थ पुनः बिक्री हेतु वस्तुओं को वर्गीकृत करते हैं। निर्माता जिस प्रकार की वस्तुएँ रखते हैं तथा वस्तुओं का जो मिश्रण उपभोक्ता चाहते हैं उनमें अन्तर पाया जाता है। उदाहरण के लिए एक क्रिकेट के खिलाड़ी को बल्ला, गेंद, विकेट, ग्लव्ज, हैलमेट, टी-शर्ट एवं जूतों की आवश्यकता होती है। शायद ही कोई निर्माता हो जो इन सभी चीजों का उत्पादन करता हो। मध्यस्थ ही इन सभी चीजों को विभिन्न निर्माताओं से एकत्रित कर इन्हें ग्राहकों को उनकी पसन्द के अनुसार मिलाकर उपलब्ध कराता है।
5. उत्पाद प्रवर्तन-अधिकांश विज्ञापन एवं अन्य विक्रय संवर्द्धन क्रियाओं की व्यवस्था निर्माता ही करते हैं। वस्तुओं की बिक्री बढ़ाने के लिए मध्यस्थ भी प्रदर्शन, विशिष्ट प्रदर्शन, प्रतियोगिता आदि क्रियाओं में भाग लेते हैं।
6. सौदा करना-वितरण माध्य का एक महत्त्वपूर्ण कार्य निर्माता तथा ग्राहकों में इस प्रकार से सौदा कर देना है कि दोनों ही सन्तुष्ट हो जायें। वह ग्राहक से मूल्य, गुणवत्ता, गारण्टी एवं अन्य सम्बन्धित बातों का सौदा करते हैं।
7. जोखिम उठाना-वस्तुओं के वितरण की प्रक्रिया में व्यापारी मध्यस्थ वस्तुओं को अपने नाम से लेते हैं। इससे मूल्य एवं माँग में उतार-चढ़ाव, टूट-फूट, नष्ट हो जाना आदि जोखिम को वही उठाता है।
प्रश्न 57.
प्रवर्तन मिश्रण के प्रमुख तत्त्वों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
प्रवर्तन मिश्रण के प्रमुख तत्त्व-
1. विज्ञापन-विज्ञापन एक अवैयक्तिक सम्प्रेषण है जिसका भुगतान एक पहचाने हुए समर्थक अर्थात् विपणनकर्ता (प्रायोजक) कुछ वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के लिए करता है। विज्ञापन का उद्देश्य उपभोक्ताओं को सूचना देना तथा उन्हें वस्तुएँ खरीदने के लिए प्रेरित करना होता है। विज्ञापन के सर्वसाधारण माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन एवं रेडियो हैं।
2. विक्रय संवर्द्धन-विक्रय संवर्द्धन से तात्पर्य लघु अवधि की अनियमित प्रेरणाओं से है जो क्रेताओं को वस्तु अथवा सेवाओं के तुरन्त क्रय करने के लिए दी जाती हैं। इनमें विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय तथा प्रचार को छोड़कर कम्पनी द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की अन्य सभी प्रवर्तन तकनीक सम्मिलित होती हैं।
3. वैयक्तिक विक्रय-वैयक्तिक विक्रय में विक्रय के उद्देश्य से एक या एक से अधिक सम्भावित ग्राहकों से बातचीत के रूप में सन्देश का मौखिक प्रस्तुतिकरण समाहित है। यह सम्प्रेषण का वैयक्तिक स्वरूप है। कम्पनियाँ बिक्री के उद्देश्य से सम्भावित ग्राहकों से सम्पर्क के लिए, उत्पाद के सम्बन्ध में जागरूकता पैदा करने के लिए तथा उत्पाद की पसन्द विकसित करने के लिए विक्रयकर्ताओं की नियुक्ति करती हैं।
4. प्रचार-यह अवैयक्तिक सम्प्रेषण का रूप होता है जिसमें किसी कम्पनी की ओर से भुगतान नहीं किया जाता है। इसके अन्तर्गत सूचना बिना मूल्य के प्रचार माध्यम से लोगों तक पहुँचायी जाती है।
प्रश्न 58.
विक्रय संवर्द्धन से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख लाभों एवं दोषों की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन का अर्थ-विक्रय संवर्द्धन से तात्पर्य लघु अवधि की अनियमित प्रेरणाओं से है जो क्रेताओं को वस्तु अथवा सेवाओं के तुरन्त क्रय करने के लिए दी जाती हैं। इसमें विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय तथा प्रचार को छोड़कर कम्पनी द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की अन्य सभी प्रवर्तन तकनीक सम्मिलित होती हैं।
कम्पनियाँ विशेष रूप से तैयार विक्रय संवर्द्धन तकनीक का उपयोग ग्राहकों के लिए, व्यापारी अथवा मध्यस्थ एवं विक्रयकर्ता के लिए करती हैं।
विक्रय संवर्द्धन के लाभ-
1. ध्यान आकर्षित करना-विक्रय संवर्द्धन क्रियाएँ प्रोत्साहन कार्यक्रमों का उपयोग कर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं।
2. नये उत्पाद के अवतरण में उपयोगी-जब भी किसी उत्पाद को बाजार में लाया जाता है तब विक्रय संवर्द्धन यन्त्र बहुत प्रभावी हो सकते हैं। यह लोगों को अपनी नियमित खरीद से हटाकर नये उत्पाद का उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है।
3. सभी प्रवर्तन विधियों में तालमेल-विक्रयसंवर्द्धन क्रियाओं को इस प्रकार संवारा जाता है कि ये फर्म के वैयक्तिक विक्रय एवं विज्ञापन कार्यों के पूरक का कार्य करें तथा फर्म के कुल मिलाकर प्रवर्तन कार्यों की प्रभावोत्पादकता में वृद्धि करें। विक्रय संवर्द्धन के दोष-
प्रश्न 59.
विपणन संप्रेषण को चित्र द्वारा दर्शाइये।
उत्तर:
प्रश्न 60.
टिकाऊपन के आधार पर उपभोक्ता वस्तुओं को कितने वर्गों में विभक्त करते हैं ?
उत्तर:
टिकाऊपन के आधार पर उपभोक्ता वस्तुओं को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है-टिकाऊ, गैर-टिकाऊ एवं सेवाएँ।
1. टिकाऊ उत्पाद-सभी मूर्त उपभोक्ता उत्पाद जिनको बार-बार उपयोग में लाया जा सकता है टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। इनके उदाहरण हैं रेफरीजरेटर, रेडियो, साईकल, सिलाई मशीन एवं रसोई उपकरण। इन वस्तुओं का उपयोग लंबे समय तक किया जाता है। इन पर लाभ भी अधिक मिलता है तथा इनके विक्रेताओं को बिक्री में अधिक परिश्रम करना होता है तथा गारंटी एवं बिक्री के बाद की सेवाएं प्रदान करनी होती हैं।
2. गैर-टिकाऊ उत्पाद-ऐसे उपभोक्ता उत्पाद जिनका उपयोग एक बार अथवा कुछ ही बार में हो जाता है गैर-टिकाऊ उत्पाद कहलाते हैं। उदाहरण के लिए कुछ उत्पाद हैं जिन्हें हम खरीदते हैं जैसे टूथपेस्ट, डिटर्जेंट, नंहाने का साबुन तथा स्टेशनरी का सामान आदि। विपणन की दृष्टि से इन उत्पादों पर लाभ कम मिलता है, इन्हें अधिकाधिक स्थानों पर उपलब्ध कराया जाता है तथा इनका भारी विज्ञापन करना होता है।
3. सेवाएँ-सेवाएँ अमूर्त होती हैं। सेवाओं से अभिप्रायः उन क्रियाओं लाभ अथवा संतुष्टि से है जिनकी बिक्री की जा रही है जैसे ड्राईक्लीन करना, घड़ी मरम्मत, बाल काटना, डाक सेवाएँ, डॉक्टर, आकीटेक्ट एवं वकील की सेवाएँ।
प्रश्न 61.
अधिकतम लाभ कमाने के अतिरिक्त फर्म के द्वारा कीमत निर्धारण के अन्य उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
अधिकतम लाभ कमाने के अतिरिक्त फर्म के द्वारा कीमत निर्धारण के अन्य उद्देश्य निम्न हो सकते हैं-
(क) बाजार में भागीदारी में अग्रणी-यदि किसी फर्म का उद्देश्य बाजार में बड़ी हिस्सेदारी प्राप्त करना है तो यह अपने उत्पादों के मूल्य को नीचे स्तर पर रखेगी जिससे कि ग्राहकों की संख्या अधिक हो।
(ख), प्रतियोगी बाजार में टिके रहना-यदि फर्म घनी प्रतियोगिता के कारण अथवा प्रतियोगी द्वारा एक अच्छे पूरक के ले आने के कारण बाजार में टिके रहने में कठिनाई अनुभव कर रही है तो यह अपने उत्पादों पर छूट दे सकती है अथवा प्रर्वतन योजना चला सकती है जिससे कि अपने संगृहित माल को निकाल सके।
(ग) उत्पाद गुणवत्ता में अग्रिम स्थान पानाइस स्थिति में साधारणतया उच्च गुणवत्ता एवं अनुसंधान एवं विकास पर किए गए उच्च व्यय को पूरा करने के लिए ऊँचे मूल्य पर माल बेचा जाता है।
इस प्रकार से हमने देखा कि फर्म की वस्तु एवं सेवा मूल्य उसके मूल्य निर्धारण उद्देश्यों से प्रभावित होता है।
प्रश्न 62.
जनसम्पर्क से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक संगठन के जनमत का प्रबंधन करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है जो विपणन विभाग द्वारा निष्पादित किया जाता है। व्यवसाय को अपने ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं तथा व्यापारियों से प्रभावी सम्प्रेषण करना होता है क्योंकि विक्रय तथा लाभ में वृद्धि करने हेतु ये साधन हैं। संगठन अथवा उसके उत्पादों के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने वालों के अलावा सामान्य जनता के अन्य सदस्य भी हैं, जिनकी आवाज अथवा मत समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। ये जनता, कंपनी और उसके उत्पाद में रुचि ले सकती है तथा उसके उद्देश्य को प्राप्त करने की व्यवसाय क्षमता पर प्रभाव डाल सकती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि जनमत तथा जनता के साथ कंपनी के संबंधों का नियमित आधार पर प्रबंधन किया जाए।
इसलिए जनता की नजरों में कंपनी की छवि तथा व्यक्तिगत उत्पादों के प्रवर्तन तथा संरक्षण हेतु कई प्रकार के कार्यक्रम जनसम्पर्कों में शामिल होते हैं। जनसम्पर्क विभाग कुछ नियत कार्यक्रम अपनाने हेतु उच्चस्तरीय प्रबंध को परामर्श भी देते हैं जिससे उनकी सार्वजनिक छवि में सुधार होता है और यह सुनिश्चित होता है कि नकारात्मक प्रचार न हो।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
एक अच्छे ब्राण्ड नाम की किन्हीं छः विशेषताओं को समझाइये।
उत्तर:
एक अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ
एक अच्छे ब्राण्ड की निम्नलिखित विशेषताएँ बतलायी जा सकती हैं-
1. संक्षिप्त नाम-ब्राण्ड नाम संक्षिप्त होना चाहिए। इसका उच्चारण करना, बोलना, पहचान करना एवं याद करना आसान होना चाहिए। जैसे पॉण्ड्स, रिन, विम, लेक्मे आदि।
2. लाभों एवं गुणों को प्रकट करने वाला-एक अच्छा ब्राण्ड नाम वही माना जाता है जो उत्पाद के लाभों एवं गुणों को प्रकट करने वाला होता है। यह उत्पाद के कार्यों के अनुरूप होना चाहिए। जैसे जेंटील, माई फेयरलेडी, गुडनाइट, रसिका एवं बूस्ट आदि।
3. भिन्नता-एक अच्छा ब्राण्ड नाम वही होगा जो भिन्नता लिये हुए होगा अर्थात् यह किसी दूसरे की नकल न हो। किसी भी अन्य ब्राण्ड से मिलता-जुलता भी नहीं होना चाहिए। जैसे लिरिल, सफारी, स्पिरिट, ओनिडा, निरमा, मर्फी आदि।
4. अपनाये जाने योग्य-ब्राण्ड नाम ऐसा होना चाहिए कि उसे पैकिंग, लेबलिंग की आवश्यकताओं, विज्ञापन के विभिन्न माध्यमों एवं भाषाओं में अपनाया जा सके।
5. पर्याप्त लोच-एक अच्छा ब्राण्ड नाम वही होता है जो पर्याप्त लोच वाला हो जिससे कि उत्पादक की उत्पाद श्रृंखला में जिन नये उत्पादों को जोड़ा जाये उनके लिए भी इसे उपयोग में लाया जा सके। दूसरे शब्दों में, ब्राण्ड ऐसा होना चाहिए जो उसी उत्पादक द्वारा उत्पादित अन्य उत्पादों के लिए भी उपयोग किया जा सकता हो। जैसे-मैगी, कोलगेट।
6. कानूनी संरक्षण योग्य-ब्राण्ड नाम ऐसा होना चाहिए जिसका पंजीयन कराया जा सके तथा जिसको कानूनी संरक्षण मिल सके। इसका वैधानिक रूप से 'ट्रेडमार्क' के रूप में पंजीकृत करवाया जा सके। दूसरों से मिलता-जुलता नहीं हो। यह अश्लील, भद्दा, अपमानजनक, धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही यह "Trade and Merchandise Marks Act, 1958" की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिए।
प्रश्न 2.
विज्ञापन के लाभों को समझाइए।
अथवा
विज्ञापन के लाभों एवं सीमाओं का वर्णन कीजिये।
अथवा
विज्ञापन से क्या आशय है ? इसके विविध लाभों को लिखिये।
उत्तर:
विज्ञापन का अर्थ-विज्ञापन प्रवर्तन के लिए सबसे सामान्य रूप से उपयोग में लायी जाने वाली तकनीक मानी जाती है। यह अवैयक्तिक सम्प्रेषण होते हैं जिसका भुगतान विपणनकर्ता (प्रायोजक) वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के लिए करते हैं। दूसरे शब्दों में, विज्ञापन से आशय ऐसे दृश्य, लिखित या मौखिक अवैयक्तिक सन्देशों से है जो जनता को क्रय के लिए प्रेरित करने हेतु संचार माध्यमों द्वारा जनसामान्य को प्रसारित किये जाते हैं। विज्ञापन के सर्वसाधारण माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो एवं टेलीविजन आदि हैं।
विज्ञापन की प्रमख विशेषताएँ-विज्ञापन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं, जो इसके अर्थ को और अधिक स्पष्ट करती हैं-
विज्ञापन के लाभ-विज्ञापन के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
विज्ञापन की सीमाएँ-विज्ञापन की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित बतलायी जा सकती हैं-
1. कम सशक्त-विज्ञापन सम्प्रेषण का एक अवैयक्तिक स्वरूप होता है। यह वैयक्तिक विक्रय की तुलना में कम प्रभावी व कम सशक्त माध्यम है क्योंकि लोगों पर ध्यान देने के लिए इसमें किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होता है।
2. प्रतिपोषण में कमी-विज्ञापन का सन्देश जो जनता को दिया जाता है उसका प्रभाव जनता पर कितना पड़ा, इसका मूल्यांकन करना कठिन होता है क्योंकि इसमें प्रसारित सन्देश की तुरन्त एवं सही प्रतिपोषण की कोई व्यवस्था नहीं है।
3. लोचपूर्णता का अभाव-विज्ञापन में सन्देश क्योंकि निर्धारित मानक का हो जाता है एवं विभिन्न ग्राहक समूहों की आवश्यकता के अनुसार नहीं ढाला जा सकता इसलिए विज्ञापन में लोच का अभाव होता है।
4. कम प्रभावी-जैसे-जैसे विज्ञापनों की संख्या में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे यह कठिन हो जाता है कि लक्षित लोग विज्ञापन के सन्देश को ग्रहण करें ही। अतः । इससे विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता प्रभावित होती जाती है। इसके साथ ही एक ही प्रकार की वस्तु के कई निर्माता होते हैं अतः उन सबके द्वारा अपनी वस्तु का किया गया विज्ञापन भी जनता पर कम प्रभाव डालता है।
प्रश्न 3.
विपणन से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषतायें समझाइये।
अथवा
विपणन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन का अर्थ-कुछ लोगों का मानना है कि वस्तुओं का क्रय और विपणन एक ही है। कुछ लोगों का मानना है कि विक्रय ही विपणन है तथा उनका मानना है कि विपणन की क्रिया किसी उत्पाद अथवा सेवा के उत्पादन के पश्चात् शुरू होती है। कुछ लोग इसकी व्याख्या वस्तु के व्यापार अथवा उनके रूपांकन के रूप में करते हैं। ये सभी व्याख्याएँ आंशिक रूप से सही हो सकती हैं लेकिन विपणन बहुत व्यापक अवधारणा है।
परम्परागत रूप में, विपणन को उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन माना जाता है जिनके कारण वस्तु एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचती हैं। विनिर्माण में लगी फर्मों को वस्तु एवं सेवाओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक ले जाने के लिए कई प्रक्रियाएँ करनी होती हैं जैसे उत्पाद का रूपांकन अथवा व्यापार, पैकेजिंग, भण्डारण, परिवहन, ब्रांडिंग, विक्रय, विज्ञापन एवं मूल्य निर्धारण। इन सभी क्रियाओं को विपणन प्रक्रिया कहते हैं।
विपणन मात्र उत्पादन के बाद की क्रिया नहीं है। इसमें कई वे क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो वस्तुओं के वास्तविक उत्पादन से पूर्व की जाती हैं तथा उनके विक्रय के पश्चात् भी जारी रहती हैं। वर्तमान में इस बात पर जोर है कि विपणन एक सामाजिक क्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग वस्तु एवं सेवाओं का मुद्रा अथवा किसी ऐसी वस्तु में विनिमय करते हैं जिसका उनके लिए कुछ मूल्य हो।
फिलिप कोटलर के अनुसार, "यह एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अनुसार लोगों के समूह उत्पादों का सृजन कर उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं जिनकी उनको आवश्यकता है तथा उन वस्तु एवं सेवाओं का स्वतन्त्रता से विनिमय करते हैं जिनका कोई मूल्य है।"
इस प्रकार विपणन एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसको लोग बातचीत कर दूसरों को एक विशेष प्रकार से व्यवहार के लिए प्रेरित करते हैं जैसे किसी उत्पाद अथवा सेवा को क्रय करना। वह उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालते।
विपणन की विशेषताएँ
1. अपेक्षा एवं आवश्यकता-विपणन प्रक्रिया व्यक्ति एवं समूह को वह जो कुछ चाहते हैं उसे प्राप्त करने में सहायक होती है। अतः लोगों को विपणन प्रक्रिया में लगने के लिए प्रेरित करने का प्राथमिक कारण उनकी कुछ-न-कुछ आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। अन्य शब्दों में, विपणन प्रक्रिया का पूरा ध्यान लोगों की एवं संगठनों की आवश्यकताओं पर होता है। एक विपणनकर्ता का कार्य किसी संगठन में लक्षित ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा उन उत्पाद एवं सेवाओं का विकास करना है जो इन अपेक्षाओं/अभावों की पूर्ति करते हैं।
2. उत्पाद का सृजन-विपणनकर्ता बाजार के लिए उत्पाद का निर्माण करता है। बाजार उत्पाद से अभिप्राय किसी वस्तु की अथवा सेवा की सम्पूर्ण प्रस्तावना से है, जिनके लक्षण हैं-आकार, गुणवत्ता, रुचि आदि जो एक निश्चित मूल्य पर, निश्चित स्थान व दुकान पर उपलब्ध है। बाजार में बेची जाने वाली वही वस्तु श्रेष्ठ मानी जाती है जिसका सृजन व विकास सम्भावित क्रेताओं की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के विश्लेषण के पश्चात् किया जाता है। इस प्रकार आधुनिक विपणन में विपणनकर्ता उत्पाद के सृजन का कार्य भी करता है।
3. ग्राहक के योग्य मूल्य-क्रेता किसी वस्तु को खरीदने का निर्णय लेने से पहले यह देखता है कि वह वस्तु. उसकी लागत की तुलना.में उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति कितने मूल्य तक करती है। विपणनकर्ता का यह एक महत्त्वपूर्ण कार्य है कि वह उत्पाद को इतना मूल्यवान बनाये जिससे कि ग्राहक अन्य प्रतियोगी वस्तुओं की तुलना में इनको पसन्द करे तथा इनके क्रय का निर्णय ले।
4. विनिमय पद्धति-विपणन प्रक्रिया विनिमय पद्धति के माध्यम से कार्य करती है। क्रेता एवं विक्रेता विनिमय प्रक्रिया के माध्यम से अपनी इच्छित तथा आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करते हैं। वर्तमान युग में वस्तुओं का उत्पादन अलग-अलग स्थानों पर होता है तथा उनका विवरण विभिन्न मध्यस्थों के माध्यम से एक विस्तृत क्षेत्र में किया जाता है जिसमें वितरण के विभिन्न स्तरों का विनिमय होता है। विनिमय को इसीलिए विपणन का सार कहा गया है।
5. विपणन क्रियाएँ गैर-लाभ संगठनों में प्रासंगिक-विपणन की क्रियाएँ व्यावसायिक संगठनों तक ही सीमित नहीं हैं। विपणन क्रियाएँ गैर-लाभ संगठन जैसे अस्पताल, स्कूल, स्पोर्ट्स-क्लब एवं सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। यह इन संगठनों को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।
प्रश्न 4.
जनसम्पर्क विभाग द्वारा पाँच कार्य को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जनसम्पर्क विभाग द्वारा निम्नलिखित पाँच कार्य किये जाते हैं-
1. प्रेस सम्पर्क-संगठन के बारे में सूचना को प्रेस में सकारात्मक तरीके से प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है समाचार बनाने हेतु एक कहानी का विकास तथा अनुसंधान कौशल आवश्यक है तथा जनसंचार माध्यमों को प्रेस प्रकाशनी स्वीकृत कराना एक कठिन कार्य है। जनसम्पर्क विभाग कंपनी के बारे में सही तथ्य तथा सही तस्वीर प्रस्तुत करने हेतु जनसंचार माध्यमों के सम्पर्क में रहता है अन्यथा यदि समाचार अन्य स्रोतों से लिए जाएं तो वे विकृत हो सकते हैं।
2. उत्पाद प्रचार-नये उत्पादों के प्रचार हेतु विशेष प्रयास आवश्यक होते हैं तथा कंपनी को ऐसे कार्यक्रम प्रायोजित करने होते हैं। जनसम्पर्क विभाग ऐसी घटनाओं के प्रायोजनों का प्रबंध करता है। समाचार सम्मेलनों, संगोष्ठियों तथा प्रदर्शनियों जैसी खेल-कूद तथा सांस्कृतिक घटनाओं के आयोजन द्वारा कंपनी अपने नये उत्पादों के प्रति ध्यान आकर्षित कर सकती है।
3. निगमित सम्प्रेषण-जनता तथा संगठन में कर्मचारियों के साथ सम्प्रेषण के माध्यम से संगठन को अपनी छवि को संवर्धित करने की आवश्यकता होती है यह सामान्यतः संवादपत्रों, वार्षिक प्रतिवेदनों, विवरणिकाओं, लेखों तथा दृश्य-श्रव्य सामग्री की सहायता से किया जाता है। लक्ष्य बाजारों तक उनकी पहुँच तथा प्रभाव हेतु कंपनियाँ इन साधनों पर विश्वास करती हैं। व्यापार संघों अथवा व्यापार मेलों की सभाओं में कंपनियों के कार्यकारियों द्वारा दिए भाषणों से कंपनी की छवि वर्धित होती है। यहाँ तक कि टी.वी. चैनलों के साथ साक्षात्कार तथा जनसंचार द्वारा पूछताछ के प्रत्युत्तर देना जनसम्पर्क बढ़ाने का एक अच्छा तरीका है।
4. लॉबी प्रचार-व्यवसाय तथा अर्थव्यवस्था से संबंधित नीतियों के बारे में संगठन को सरकारी कर्मचारियों, कंपनी मामलों के मंत्री उद्योग तथा वित्त से व्यवहार करना पड़ता है। औद्योगिक, दूरसंचार तथा कराधान नीतियों के निर्माण के समय सरकार मुख्य हित धारिकों के विचार आमंत्रित करती है तथा वाणिज्य एवं व्यापार संघों के साथ स्वस्थ संबंध रखना चाहती है। जनसम्पर्क विभाग उन विनियमों का संवर्धन अथवा विरोध करने में वास्तव में क्रियाशील होता है जो उस कंपनी/संगठन को प्रभावित करते हैं।
5. परामर्श-जनसम्पर्क विभाग प्रबंधन को उन सामान्य मामलों में परामर्श देता है जो जनता को प्रभावित करते हैं तथा किसी विशेष मामले पर कंपनी की स्थिति को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण, वन्यजीवन, बालअधिकार, शिक्षा इत्यादि जैसे कारणों में समय एवं धन का योगदान देकर कंपनी ख्याति बना सकती है। ये कारण-संबंधी क्रियाएँ जनसम्पर्क बढ़ाने तथा ख्याति निर्माण में सहायता करते हैं।
प्रश्न 5.
विपणन एवं विक्रय में अन्तर लिखिये।
अथवा
'ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालना' तथा 'ग्राहक आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना', विपणन प्रबन्ध की दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं।
इन अवधारणाओं को पहचानकर दोनों में अन्तर्भेद कीजिये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध की अवधारणाएँ-
1. ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालनाविपणन प्रबन्ध की इस अवधारणा का सम्बन्ध विक्रय से है। विक्रय का आशय वस्तुओं एवं सेवाओं को ग्राहकों को विक्रय करने से है। इसमें ग्राहकों को वस्तुओं को अधिक से अधिक विक्रय करने पर जोर दिया जाता है। इसमें ग्राहकों से आदेश प्राप्त करने से लेकर वस्तुओं एवं सेवाओं को उन तक पहुँचाने तक की क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। इसे विपणन प्रबन्ध की पुरानी विचारधारा भी कहा जा सकता है।
2. ग्राहक की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना-विपणन प्रबन्ध की इस अवधारणा का सम्बन्ध विपणन से है। विपणन का अभिप्राय उन मानवीय क्रियाओं से है जो विभिन्न प्रक्रियाओं के द्वारा आवश्यकताओं एवं इच्छाओं की सन्तुष्टि के लिए मिलता है। विपणन ग्राहकों की आवश्यकताओं की खोज करने एवं उनको वस्तुओं तथा सेवाओं की विशेषताओं में परिणति करने की क्रिया है। तदुपरान्त उन अधिकाधिक ग्राहकों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं से अधिकाधिक आनन्द प्राप्त करना है।
इस प्रकार विपणन का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके द्वारा ग्राहकों की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित कर बनाये जाते हैं एवं स्वामित्व का हस्तान्तरण किया जाता है।
विपणन एवं विक्रय में अन्तर विपणन प्रबन्ध की इन दोनों अवधारणाओं में अन्तर को हम निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं-
1. अर्थ-विपणन का अर्थ वस्तुओं के उत्पादन से पूर्व एवं वितरण के बाद की क्रियाओं से है ताकि उपभोक्ता अधिक से अधिक सन्तुष्ट हो सके और लाभ कमाया जा सके, जबकि विक्रय या विक्रयण का अर्थ वस्तुओं एवं सेवाओं के हस्तान्तरण करने से होता है।
2. क्षेत्र-विपणन का क्षेत्र व्यापक है। इसमें कई क्रियाएँ सम्मिलित हैं जैसे ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना, इनकी पूर्ति के लिए उत्पाद को विकसित करना, मूल्यों का निर्धारण करना तथा सम्भावित क्रेताओं को इनके क्रय के लिए तैयार करना। विक्रय का क्षेत्र सुनिश्चित है। इसमें वस्तुओं का अधिग्रहण एवं स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित होता है।
3. स्वामित्व अधिकार हस्तान्तरण एवं ग्राहकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि-विपणन का अधिक जोर ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पहचान कर उनको सन्तुष्ट करने पर होता है, जबकि विक्रय का केन्द्र बिन्दु मुख्यतः वस्तुओं का स्वामित्व अधिकार एवं अधिग्रहण का विक्रेता से उपभोक्ता एवं उपयोगकर्ता को हस्तान्तरण होता है।
4. उद्देश्य-विपणन का उद्देश्य ग्राहक को सन्तुष्टि प्रदान कर लाभ कमाना होता है, जबकि विक्रय का उद्देश्य वस्तुओं एवं सेवाओं का विक्रय कर लाभ कमाना होता है।
5. आवश्यकताओं की पूर्ति-विपणन द्वारा ग्राहकों की भावी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पहचान कर उनको पूरा करने का प्रयास किया जाता है, जबकि विक्रय के द्वारा ग्राहकों की तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा करने पर ही जोर दिया जाता है।
6. प्रारम्भ एवं अन्त-विपणन प्रक्रिया की शुरुआत उस समय से ही हो जाती है जिस समय उत्पाद का उत्पादन करने का विचार मन में आता है और यह प्रक्रिया तब तक चलती. रहती है जब तक उत्पाद को उपभोक्ता को उपलब्ध नहीं करा दिया जाये और सन्तुष्टि प्राप्त नहीं कर ले, जबकि विक्रय प्रक्रिया का प्रारम्भ एवं अन्त उत्पाद के निर्माण के बाद से और उसके विक्रय तक ही होता है।
7. महत्त्व-विपणन में ग्राहक की आवश्यकतानुसार उत्पाद एवं अन्य रणनीतियों के विकास का प्रयत्न किया जाता है, जबकि विक्रय में ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालने पर जोर दिया जाता है।
8. रणनीति में अन्तर-विपणन में एकीकृत विपणन कार्यों को किया जाता है जैसे-उत्पाद के सम्बन्ध में रणनीति, प्रवर्तन मूल्य निर्धारण तथा वस्तुओं का वितरण, विक्रय में प्रवर्तन तथा तैयार करने के प्रयत्न सम्मिलित हैं।
9. महत्त्वपूर्ण मानना-विपणन में ग्राहक की सन्तुष्टि तथा उसके माध्यम से लम्बी अवधि में लाभ बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। वस्तुतः विपणन ग्राहक की सन्तुष्टि के माध्यम से अधिकतम लाभ प्राप्त करने को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मानता है, जबकि विक्रय की सभी क्रियाएँ अधिकतम विक्रय के लिए होती हैं जिससे कि फर्म के लाभ अधिकतम होते हैं। इस प्रकार विक्रय अधिकतम विक्रय के द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने को महत्त्वपूर्ण मानता है।
10. सम्बन्ध-विपणन का सम्बन्ध ग्राहक की सन्तुष्टि, वस्तुओं की सुपुर्दगी एवं उसके उपभोग से होता है, जबकि विक्रय का सम्बन्ध वस्तु या सेवा के हस्तान्तरण से होता है, साथ-साथ विक्रय मात्रा पर भी होता है।
11. इच्छाओं की जानकारी-विपणन में ग्राहकों, उपभोक्ताओं की इच्छा व आवश्यकताओं की जानकारी पहले से ही कर ली जाती है और उसी के अनुरूप उत्पादन कार्य किया जाता है, जबकि विक्रय में ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का पता पहले से नहीं लगाया जाता है केवल वस्तुओं को अधिक से अधिक मात्रा में विक्रय करने पर ही जोर दिया जाता है।
प्रश्न 6.
अच्छे जनसम्पर्क से प्राप्त होने वाले विपणन उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अच्छे जनसम्पर्क रखने से अग्रलिखित विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है-
1. जागरूकता पैदा करना-जनसम्पर्क विभाग द्वारा जनसंचार में उत्पाद को कहानियों तथा नाटकों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। बाजार में उत्पाद के पहुँचने से पूर्व अथवा जनसंचार में विज्ञापन से पूर्व इससे बाजार में स्थान बनाया जा सकता है। यह सामान्यतः लक्षित ग्राहकों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
2. विश्वास पैदा करना-यदि जनसंचार माध्यमों, चाहे वह प्रिंट हो अथवा इलैक्टॉनिक, में एक उत्पाद के बारे में कोई समाचार आता है तो वह सदैव विश्वसनीय माना जाता है तथा लोग उस उत्पाद पर विश्वास करते हैं क्योंकि वह समाचारों में है।
3. विक्रय-कर्मियों को प्रेरणा-यदि उत्पाद के प्रमोचन (लॉन्च) से पूर्व उसके बारे में फुटकर विक्रेताओं तथा डीलरों ने पहले से सुन रखा हो तो, विक्रय कर्मियों के लिए उनसे सौदा करना आसान हो जाता है। फुटकर विक्रताओं तथा डीलरों द्वारा भी यह महसूस किया जाता है कि इससे अंतिम उपभोक्ताओं को उत्पाद बेचना आसान हो जाता है।
4. संवर्द्धन लागतों में कमी-अच्छे जनसम्पर्क बनाये रखने की लागत विज्ञापन तथा प्रत्यक्ष डाक से काफी कम होती है। जनसंपर्क माध्यमों को संगठन तथा उसके उत्पाद के बारे में स्थान अथवा समय के लिए सहमत करने हेतु सम्प्रेषण तथा अंतरवैयक्तिक कौशलों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 7.
विपणन के किन्हीं छः कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
विपणन के निम्नलिखित कार्यों की व्याख्या कीजिये-
(1) बाजार सम्बन्धी सूचनाओं का एकत्रिकरण करना एवं उनका विश्लेषण करना,
(2) बाजार नियोजन,
(3) उत्पाद डिजाइन करना एवं उनका विकास, एवं
(4) उपभोक्ता सहायक सेवाएँ।
अथवा
विपणन के कार्यों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन के कार्य विपणन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. बाजार सम्बन्धी सूचनाओं को एकत्रित तथा विश्लेषण करना-विपणन का एक प्रमुख कार्य बाजार सम्बन्धी सूचना एकत्रित करना तथा उसका विश्लेषण करना है। ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना तथा वस्तु एवं सेवाओं के सफल विपणन के लिए विभिन्न निर्णय लेना आवश्यक है। संगठन के अवसर एवं कठिनाइयाँ तथा उसकी सुदृढ़ता एवं कमजोरियों का विश्लेषण करना तथा यह निर्णय लेना कि किन अवसरों का लाभ उठाने के लिए कार्य किया जाये, यह अधिक महत्त्वपूर्ण है। किसी संगठन को किस क्षेत्र में कार्य करना चाहिए या फिर अपनी गतिविधियों का विस्तार करना चाहिए, इसका निर्णय लेने के लिए संगठन की शक्तियों एवं कमजोरियों की ध्यान से जाँच करनी होती है जिसे बाजार के विश्लेषण की सहायता से किया जा सकता है।
कम्प्यूटर के विकास के कारण बाजार के सम्बन्ध में सूचनाएँ एकत्रित करने के लिए कम्प्यूटर का उपयोग किया जा रहा है।
2. विपणन नियोजन-व्यावसायिक संगठन के विपणन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विपणनकर्ता का एक और महत्त्वपूर्ण कार्य अथवा क्षेत्र उचित विपणन योजना का निर्माण करना है। उदाहरण के लिए माना वाशिंग मशीन का विपणनकर्ता जिसकी देश के बाजार में वर्तमान में 5 प्रतिशत भागीदारी है, अगले तीन वर्षों में इस भागीदारी को 15 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहता है तो इसके लिए उसे एक पूरी विपणन योजना तैयार करनी होगी जिसमें उत्पादन के स्तर में वृद्धि, वस्तुओं का प्रवर्तन आदि महत्त्वपूर्ण पक्ष सम्मिलित किये जायेंगे तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्रियान्वयन कार्यक्रम का भी निर्धारण करना होगा।
3. उत्पाद का रूपांकन (डिजाइन) एवं विकास करना-विपणन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद का रूपांकन (डिजाइन) एवं विकास करना भी है। उत्पाद का रूपांकन लक्षित उपभोक्ताओं के लिए उत्पाद को और अधिक आकर्षक बनाने में सहायक होता है। एक अच्छा स्वरूप उत्पाद की उपयोगिता को बढ़ा सकता है तथा बाजार में इसे और अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकता है।
4. प्रमापीकरण एवं ग्रेड तय करना-विपणन का एक कार्य उत्पाद का प्रमापीकरण एवं ग्रेडिंग करना भी है। प्रमापीकरण क्रेताओं को यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ पूर्व निर्धारित गुणवत्ता, मूल्य एवं पैकेजिंग के मानकों के अनुसार हैं। इससे उत्पादों के निरीक्षण, जाँच एवं मूल्यांकन की आवश्यकता कम हो जाती है।
ग्रेड निर्धारण उत्पाद की गुणवत्ता, आकार आदि महत्त्वपूर्ण विशेषताओं के आधार पर विभिन्न समूहों में वर्गीकृत करना है। यह विशेषकर उन उत्पादों के लिए आवश्यक होता है जिनका पूर्व निर्धारित विशिष्टताओं के अनुसार उत्पादन नहीं किया जाता जैसे गेहूँ, सेब आदि। ग्रेड निर्धारण यह सुनिश्चित करता है कि वस्तुएँ एक विशेष गुणवत्ता वाली हैं तथा उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को ऊँचे मूल्य पर बेचने में सहायक होता है।
5. पैकेजिंग एवं लेबलिंग-पैकेजिंग एवं लेबलिंग वर्तमान विपणन में इतने महत्त्वपूर्ण हो गये हैं कि इन्हें विपणन का स्तम्भ माना जाने लगा है। पैकेजिंग न केवल वस्तु को सुरक्षित रखता है बल्कि यह वस्तु प्रवर्तन के साधन कार्य भी करता है। कभी-कभी क्रेता पैकेजिंग से ही उत्पाद की गुणवत्ता का आकलन करते हैं। आज के समय में कोलगेट टूथपेस्ट, मैगी आदि उपभोक्ता ब्रांड की सफलता में पैकेजिंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
6. ब्रांडिंग-अधिकांश उपभोक्त उत्पादों के विपणन के लिए एक विपणनकर्ता द्वारा एक महत्त्वपूर्ण निर्णय यह लिया जाता है कि इनकी बिक्री किस ब्रांड नाम से की जाये? ब्रांड का नाम उत्पाद को अन्य उत्पादों से भिन्न बनाता है, जो किसी फर्म के उत्पाद को प्रतियोगी के उत्पाद से अन्तर का आधार बन जाता है, जिससे उत्पाद के लिए उपभोक्ता का लगाव पैदा होता है तथा इससे उसके विक्रय संवर्द्धन में सहायता मिलती है। किसी उत्पाद की सफलता में उसके सही ब्रांड नाम के चयन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्येक उत्पाद के लिए अलग-अलग ब्रांड नाम दिये जा सकते हैं या फिर सभी उत्पादों के लिए एक ब्रांड नाम दिया जा सकता है जैसे फिलिप्स बल्ब, वीडियोकोन आदि।
7. उपभोक्ता सहायक सेवाएँ या ग्राहक समर्थक सेवाएँ-विपणन का एक महत्त्वपूर्ण कार्य ग्राहक समर्थक सेवाओं का विकास करना भी है जैसे विक्रयोपरान्त सेवाएँ, ग्राहकों की शिकायतें दूर करना, रख-रखाव सेवाएँ, तकनीकी सेवाएं प्रदान करना एवं उपभोक्ता सेवाएँ आदि प्रदान करना। ये सभी सेवाएँ ग्राहकों को अधिकतम सन्तुष्टि प्रदान करती हैं जो वर्तमान समय में विपणन की सफलता का मूल आधार हैं। ग्राहक समर्थक सेवाएँ ग्राहकों द्वारा बार-बार वस्तुएँ खरीदने एवं उत्पाद के ब्रांड के प्रति स्वामिभक्ति विकसित करने में अत्यधिक प्रभावित होती हैं।
8. उत्पाद का मूल्य निर्धारण-विपणन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद का मूल्य निर्धारित करना भी होता है। उत्पाद का मूल्य ही एक ऐसा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जो बाजार में किसी उत्पाद की सफलता अथवा असफलता को प्रभावित करता है क्योंकि किसी वस्तु अथवा सेवा की माँग का उसके मूल्य से सीधा सम्बन्ध होता है। सामान्यतः यदि मूल्य कम होगा तो उत्पाद की माँग अधिक होगी, इसके विपरीत मूल्य के अधिक होने पर माँग कम हो जाती है। विपणनकर्ता को चाहिए कि वह मूल्य निर्धारण तत्वों का ठीक से विश्लेषण करके ही उत्पाद का मूल्य निर्धारित करे।
9. संवर्द्धन-वस्तु एवं सेवाओं के संवर्द्धन में अर्थात् बिक्री बढ़ाने में उपभोक्ताओं को संस्था के उत्पाद एवं उसकी विशेषताओं के सम्बन्ध में सूचना देना एवं उन्हें इन उत्पादों को क्रय करने के लिए प्रेरित करना भी सम्मिलित होता है। विक्रय संवर्द्धन के लिए विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय, विक्रय संवर्द्धन एवं प्रचार का उपयोग किया जा सकता है। वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवर्तन के सम्बन्ध में विपणनकर्ता को कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते हैं जैसे प्रवर्तन बजट तथा उन सभी प्रवर्तन विधियों का सम्मिश्रण जिनका उपयोग करना है।
10. वितरण-विपणन का एक कार्य वस्तुओं एवं सेवाओं के भौतिक वितरण के प्रबन्धन का भी है। इस सम्बन्ध में दो निर्णय लिये जाते हैं-(1) वितरण के माध्य अर्थात् विपणन मध्यस्थ (थोक व फुटकर विक्रेता) एवं (2) उत्पादों को उनके उत्पाद स्थलों से ग्राहक के उपभोग या उपयोग स्थल तक ले जाना। वस्तुओं के वितरण के सम्बन्ध में जो निर्णय लिये जाते हैं वे हैंसंग्रहित माल का प्रबन्धन अर्थात् माल के स्टॉक का स्तर, माल का गोदाम में भण्डारण तथा माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना ले जाना।
11. परिवहन-विपणन का एक कार्य परिवहन सम्बन्धी भी है। परिवहन का अर्थ है, माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना। सामान्यतः उत्पाद के उपभोक्ता दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं तथा इनके उत्पादन स्थल से अलग-अलग स्थानों पर होते हैं। इसीलिए इन्हें उन स्थानों पर ले जाया जाता है जहाँ इनकी उपभोग अथवा उपयोग के लिए आवश्यकता है। संस्था को अपनी परिवहन की आवश्यकताओं का विश्लेषण करते समय उत्पाद की प्रकृति, बाजार, जहाँ बेचना है, की लागत तथा स्थान तथा परिवहन के साधन तथा इससे जुड़े अन्य पहलुओं के सम्बन्ध में भी निर्णय लेना होता है।
12. संग्रहण अथवा भण्डारण-बाजार में समय एवं माँग के अनुसार उत्पादों का प्रवाह बना रहे इसके लिए उत्पादों के उचित भण्डारण की आवश्यकता है। माल की सुपुर्दगी में ऐसी देरी हो सकती है जिससे बचा नहीं जा सकता या फिर अचानक ही वस्तु की माँग की पूर्ति करनी हो सकती है। इन सबके लिए भी पर्याप्त मात्रा में माल का संग्रहण किया जाना आवश्यक होता है। विपणन के इस कार्य में जो एजेन्सियाँ सहायता करती हैं, वे हैं-निर्माता, थोक विक्रेता तथा फुटकर विक्रेता।
प्रश्न 8.
विक्रय संवर्द्धन की विभिन्न क्रियाओं की व्याख्या कीजिये।
अथवा
"मैगी नूडल्स के साथ एक खिलौना मुफ्त" यह विक्रय संवर्द्धन की किसी एक तकनीक का उदाहरण है। इस तकनीक का नाम बतलाइये एवं कोई दो अन्य तकनीक को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन की विभिन्न तकनीकें /क्रियाएँ
"मैगी नूडल्स के साथ एक खिलौना मुफ्त" यह विक्रय संवर्द्धन की प्रीमियम तकनीक कहलाती है। इस तकनीक को 'उत्पादों का मिश्रण' तकनीक नाम से भी जाना जाता है। प्रीमियम का अर्थ एक ऐसी वस्तु से होता है जो उत्पादक द्वारा किसी वस्तु के खरीदने पर ग्राहकों को दी जाती है। जैसे 5 किलो डिटर्जेन्ट पाउडर के साथ एक बड़ी प्लास्टिक की बाल्टी फ्री में देना।
विक्रय संवर्द्धन की कुछ विभिन्न तकनीकें या क्रियाएँ निम्नलिखित बतलाई जा सकती हैं-
1. छूट-निर्माता अपने अतिरिक्त माल को निकालने के लिए अपने माल को विशेष मूल्य अर्थात् कुछ छूट पर बेचता है। यह विक्रय संवर्द्धन की सामान्यतया उपयोग में लायी जाने वाली तकनीक है। उदाहरण के लिए एक कार निर्माता अपनी एक विशेष ब्रांड की कारों को एक सीमित अवधि के लिए कुछ छूट प्रदान कर उन्हें बेचता है।
2. कटौती-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक में व्यवसायी द्वारा अपने उत्पाद को मूल्य सूची में दिये गये मूल्य से भी कम मूल्य पर माल बेचता है। उदाहरण के लिए एक रेडीमेड कपड़ों की निर्माता कम्पनी अपने कपड़े की खरीद पर 50 प्रतिशत छूट दे।
3. वापसी-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक में विक्रयकर्ता मूल्य का एक भाग वापस ग्राहक को करने के लिए तैयार रहता है बशर्ते ग्राहक द्वारा क्रय का प्रमाण प्रस्तुत किया जाये। उदाहरण के लिए एक शेविंग क्रीम की निर्माता कम्पनी अपनी शेविंग क्रीम की खाली ट्यूब लौटाने पर पाँच रुपये वापस करने का वायदा करती है।
4. उत्पादों का मिश्रण-इस तकनीक में निर्माता किसी एक उत्पाद खरीदने पर उसके साथ दूसरा उत्पाद उपहारस्वरूप दे। जैसे एक 50 किलो गेहूँ के आटे का बैग खरीदने पर उसके साथ एक किलो चीनी दी जाये। इसी तरह रसोई में लगाये जाने वाली चिमनी के खरीदने पर उसके साथ एक गैस का चूल्हा दिया जाये।
5. क्वालिटी डील्स-कभी-कभी निर्माता एक ऐसी पैकिंग तैयार करता है जिससे क्रेता को उत्पाद अधिक मात्रा में कम मूल्य पर अथवा मुफ्त में मिलते हैं। जैसे तीन लक्स साबुन की टिकिया के साथ एक साबुन की टिकिया फ्री अर्थात् "तीन खरीदो एक मुफ्त पाओ।"
6. तुरन्त डा एवं घोषित उपहार-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक में ग्राहक द्वारा किसी उत्पाद के खरीदे जाने पर उसे कार्ड खुरचने का अवसर दिया जाता है, फिर उस कार्ड में लिखी चीज उपहार के रूप में दी जाती है जैसे एक एल.सी.डी. टी.वी. खरीदने पर एक कार्ड खरचें और उसमें लिखी हुई इनाम उपहारस्वरूप पायें।
7. लक्की ड्रा/किस्मत आजमाएँ-विक्रय संवर्द्धन की इस विधि में उत्पाद के क्रेता को लक्की ड्रा का कूपन या किस्मत आजमाने का कूपन दिया जाता है। जैसे एक निश्चित दुकान से निर्धारित मात्रा में माल खरीद कर एक लक्की ड्रा का टिकट पायें और इनाम में कार जीतें।
8. उपयोग योग्य लाभ-विक्रय संवर्द्धन की इस विधि में एक निश्चित मूल्य का माल खरीदने पर अतिरिक्त खरीदने पर छूट का वाउचर प्राप्त करें। अर्थात् 5000 रुपये का माल खरीदने पर या इससे अतिरिक्त माल खरीदने पर 100 रुपये की छूट प्राप्त करें।
9. मुफ्त नमूनों का वितरण-किसी नये ब्रांड को बाजार में लाते समय सम्भावित ग्राहकों को वस्तुओं के मुफ्त नमूनों का वितरण किया जाता है और उनमें वस्तुओं के प्रति विश्वास जमाने व खरीदने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया जाता है। जैसे नया डिटर्जेंट पाउडर बाजार में लाने से पहले उसके मुफ्त सेम्पल सम्भावित ग्राहकों में वितरित किये जायें।
10. शून्य प्रतिशत पर पूरा वित्तीयन-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, कार, वाशिंग मशीन आदि अनेक टिकाऊ वस्तुओं के कई विपणनकर्ताओं की सरल शून्य प्रतिशत पर पूरे वित्तीयन की योजनाएँ होती हैं। जैसे टेलीविजन खरीदें और 12 या 24 किस्तों में भुगतान करें।
11. प्रतियोगिता-विक्रय संवर्द्धन की इस लोकप्रिय तकनीक में प्रतियोगिताओं का आवेदन किया जाता है जिनमें कौशल अथवा किस्मत आजमाई समाहित होती है जैसे किसी पहेली को हल करना या कुछ प्रश्नों के उत्तर देना या वाक्यों को पूरा करना आदि।
12. मेले एवं प्रदर्शनियाँ-यह भी विक्रय संवर्द्धन की एक तकनीक है। ये स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय आधार पर आयोजित किये जाते हैं। इनमें निर्माता, उत्पादक एवं व्यापारी अपनी दुकानें लगाते हैं और बड़ी मात्रा में उपभोक्ताओं को वस्तुएँ बेचते हैं। जैसे राष्ट्रीय पुस्तक मेला, सहकारी प्रदर्शनी, हस्तकला प्रदर्शनी आदि।
13. अतिरिक्त मात्रा उपहार स्वरूप-उत्पाद की अतिरिक्त मात्रा उपहार में देना यह सामान्यतः सौंदर्य प्रसाधन निर्माता उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, एक शेविंग क्रीम पर 40 प्रतिशत अतिरिक्त देना।
14. पैकेजिंग-यदि वस्तु की पैकिंग सुन्दर, रंगीन, चमकते एवं चिकने पेपर से की जाये तो यह ग्राहक को आकर्षित करती है। इसके साथ ही वस्तु आकर्षक डिब्बों में पैक की जाती है तो भी ग्राहक आकर्षित होते हैं। यही नहीं, अच्छे पैकिंग से ग्राहक को वस्तु के ब्राण्ड, कीमत, गुण, मिश्रण एवं रखी जाने वाली सावधानियों की भी जानकारी हो जाती है। फलतः इससे वस्तुओं की अधिक बिक्री होती है, जैसे : प्लास्टिक के विशेष डिजाइन युक्त डिब्बे में चाय, कॉफी, टाफियाँ आदि होती हैं।
15. उपभोक्ता वस्तुएँ-विक्रय संवर्द्धन की इस तकनीक की यह मान्यता है कि उत्पादक या निर्माता जितनी अधिक सेवा उपभोक्ताओं को उपलब्ध कर पायेगा वे स्थायी उपभोक्ता बनेंगे। यह सेवा विक्रय से पूर्व तथा विक्रय करने के पश्चात् की जा सकती है। कुछ वस्तुओं का विक्रय तो तब ही सम्भव हो पाता है जबकि विक्रयोपरान्त सेवा उपलब्ध करवायी जाये। यह तकनीक मशीनों, कम्प्यूटर, टी.वी., फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि के लिए उपयोगी होती है।
प्रश्न 9.
विपणन की परम्परागत विचारधारा तथा आधुनिक विचारधारा को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
विपणन की परम्परागत विचारधाराविपणन की परम्परागत विचारधारा के अनुसार विपणन से तात्पर्य माल को उत्पादक या निर्माता से उपभोक्ता तक पहुँचाने के कार्यों से लगाया जाता है। विक्रेता बाजार की स्थिति में माल की आपूर्ति कम होती है परन्तु माँग अधिक होती है और माल बेचना या न बेचना विक्रेता की इच्छा से प्रभावित होता है। ऐसे बाजार में विपणन कार्य का क्षेत्र भी संकुचित रहता है। ऐसी स्थिति में केवल वाणिज्यिक क्रियाएँ अर्थात् क्रय-विक्रय तथा इसमें सहायक क्रियाओं को पूरा करना ही विपणन माना जाने लगा है।
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार, "विपणन उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन करना है जो उत्पाद करने उपभोक्ता या उपभोक्ता के बीच वस्तुओं अथवा सेवाओं के प्रवाह का नियमन करती है।"
विपणन में वे सभी प्रयास सम्मिलित हैं जो वस्तुओं एवं सेवाओं के स्वामित्व हस्तान्तरण को प्रभावित करते हैं और उनके भौतिक वितरण की व्यवस्था करते हैं।
विशेषताएँ-
आधुनिक विपणन विचारधारा-विपणन की आधुनिक विचारधारा को विस्तृत एवं ग्राहक-अभिमुखी विचारधारा के नाम से जाना जाता है।
विपणन उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की खोज करने एवं उस खोज को वस्तुओं और सेवाओं के विशेष विवरणों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है जिसमें इन वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग उत्पन्न की जाती है और फिर उस माँग में वृद्धि की जाती है।
फिलिप कोटलर तथा आर्मस्ट्रांग के अनुसार, "विपणन एक सामाजिक एवं प्रबन्धकीय प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति तथा समूह उत्पादों एवं मूल्य के सृजन एवं विनिमय द्वारा वह प्राप्त करते हैं जिनकी उन्हें आवश्यकता है।"
विशेषताएँ-
प्रश्न 10.
विपणन प्रबन्ध दर्शन के विकास को संक्षेप में समझाइये।
अथवा
विपणन की विभिन्न अवधारणाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध दर्शन का विकास
अथवा
विपणन की विभिन्न अवधारणाएँ
विपणन प्रबन्ध दर्शन अथवा विपणन अवधारणाओं का विकास एक लम्बे समय में निम्न प्रकार से हुआ है-
1. उत्पादन की अवधारणा-औद्योगिक क्रान्ति के ङ्केप्रारम्भिक दिनों में औद्योगिक उत्पादों की मांग बढ़ने लगी थी लेकिन उस समय उत्पादकों की संख्या सीमित थी। परिणामस्वरूप.पूर्ति से माँग अधिक.थी। माल का विक्रय करना कोई समस्या नहीं थी। जो भी व्यक्ति यदि वस्तुओं का उत्पादन' करता तो वह बिक जाती थी। इसलिए व्यावसायिक क्रियाएँ वस्तुओं के उत्पादन पर जोर देती थीं। यह विश्वास किया जाता था कि वस्तुओं का बड़ी मात्रा में उत्पादन कर अधिकतम लाभ कमाया जा सकता है। यह भी धारणा थी कि ग्राहक उन वस्तुओं को खरीदेंगे जिनका मूल्य उनकी सामर्थ्य के अनुसार होगा। इस प्रकार उत्पादन अवधारणा के अनुसार किसी व्यावसायिक इकाई की सफलता की कुंजी उत्पाद की उपलब्धता एवं सामर्थ्य में होना मानी जाती थी।
2. उत्पाद की अवधारणा-उत्पादन क्षमता पर अधिक जोर दिये जाने के कारण पूर्ति में वृद्धि हुई। जैसे जैसे पूर्ति में वृद्धि हुई ग्राहक उन वस्तुओं की माँग करने लगा जो गुणवत्ता, आवश्यकता पूर्ति तथा लक्षण की दृष्टि से उत्तम थीं। अतः औद्योगिक इकाइयाँ उत्पादन की मात्रा के स्थान पर उत्पाद की गुणवत्ता को अधिक महत्त्व देने लगीं। व्यावसायिक क्रिया के केन्द्र-बिन्दु अब निरन्तर गुणवत्ता में सुधार तथा उत्पाद को नया स्वरूप प्रदान करना हो गया। इस प्रकार उत्पाद की अवधारणा में उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार औद्योगिक इकाई के अधिकतम लाभ प्राप्त करने की कुंजी बन गई।
3. बिक्री की अवधारणा-जैसे-जैसे समय बीतता गया विपणन के क्षेत्र में परिवर्तन आया। व्यवसाय अब और अधिक बड़े पैमाने पर होने लगा जिससे उत्पाद की पूर्ति में और वृद्धि हुई। फलतः विक्रेताओं के बीच प्रतियोगिता भी बढ़ी। अब क्योंकि बड़ी संख्या में विक्रेता अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं का विक्रय कर रहे थे इसलिए उत्पाद की उपलब्धता एवं गुणवत्ता व्यवसाय के अस्तित्व एवं इसके विकास को सुनिश्चित करने के लिए अपर्याप्त थे। फलतः वस्तु को क्रय करने के लिए ग्राहक को आकर्षित करना तथा उस पर जोर देना अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया।
इस अवधारणा के अनुसार ग्राहक तब तक वस्तु को क्रय नहीं करेगा या पर्याप्त मात्रा में क्रय नहीं करेगा जब तक कि उसे इसके लिए भली-भाँति प्रभावित एवं अभिप्रेरित न किया जाये। ग्राहक उनके ही उत्पादों को खरीदें इसके लिए अब व्यवसायियों के लिए आक्रामक विक्रय एवं प्रवर्तन करना अनिवार्य हो गया है। इस अवधारणा में उत्पादों की बिक्री के लिए विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं विक्रय प्रवर्तन जैसी विक्रय संवर्द्धन तकनीकों का प्रयोग आवश्यक माना जाने लगा। अब व्यावसायिक इकाइयाँ अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने के लिए आक्रामक विक्रय पद्धतियों पर अधिक ध्यान देने लगीं। ङ्के।
4. विपणन की अवधारणा विपणन की अवधारणा का मानना है कि बाजार में किसी भी संगठन की सफलता की कुंजी उपभोक्ता की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि है। इसके अनुसार दीर्घ अवधि में कोई भी संगठन यदि अपने अधिकतम लाभ के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है तो उसे अपने वर्तमान तथा सम्भावित क्रेताओं की आवश्यकताओं को पहचान कर उनकी प्रभावी रूप से सन्तुष्टि करनी होगी।
विपणन अवधारणा का आधार है कि उत्पाद एवं सेवाएँ उनके गुण, पैकिंग अथवा ब्रांड के कारण नहीं खरीदी जातीं बल्कि यह ग्राहक की कुछ विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं इसलिए खरीदी जाती हैं। किसी भी संगठन की सफलता की पहली आवश्यकता ग्राहक की आवश्यकताओं को समझ कर उसके अनुसार कार्य करना है।
5. विपणन की सामाजिक अवधारणा-वर्तमान समय में यह व्यवसाय की दूरदर्शिता की कमी मानी जायेगी यदि यह केवल उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति करे। इसे दीर्घ आवधिक समाज कल्याण की बड़ी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। विपणन की सामाजिक अवधारणा की मान्यता है कि किसी भी संगठन का कार्य बाजार की आवश्यकताओं की पहचान कर उनकी प्रभावी ढंग से तथा भली-भाँति सन्तुष्टि करना है जिससे कि उपभोक्ता एवं समाज का दीर्घ आवधिक कल्याण हो सके। इस प्रकार से विपणन की सामाजिक अवधारणा विपणन की अवधारणा का विस्तार है जिसमें दीर्घ आवधिक समाज कल्याण का भी ध्यान रखा जाता है।
ग्राहक सन्तुष्टि के अतिरिक्त इसमें विपणन के सामाजिक, नैतिक एवं प्राकृतिक पक्षों पर भी ध्यान दिया जाता है। इस प्रकार विपणन की सामाजिक अवधारणा इस बात पर बल देती है कि विपणन कार्यों से ग्राहकों की सन्तुष्टि एवं संस्था के लक्ष्यों की पूर्ति के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के हितों एवं कल्याण में वृद्धि भी होनी चाहिए।
प्रश्न 11.
विपणन प्रबन्ध के प्रमुख कार्यों एवं उद्देश्यों को बतलाइये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्ध के प्रमुख कार्य
विपणन प्रबन्ध के कार्य वे कार्य होते हैं जो विपणन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किये जाते हैं। संक्षेप में, विपणन प्रबन्ध के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
1. विपणन क्रियाओं का नियोजन करनासर्वप्रथम विपणन लक्ष्यों अथवा विपणन क्रियाओं को पूरा करने के लिए उनका नियोजन किया जाता है। यहाँ नियोजन का तात्पर्य यह निश्चित करने से है कि विभिन्न विपणन क्रियाओं को कब, कैसे, कहाँ व किसके द्वारा किया जाये?
2. विपणन क्रियाओं का संगठन करना-विभिन्न विपणन क्रियाओं (क्रय, एकत्रीकरण, विक्रय, संग्रहण, परिवहन, पैकिंग, मूल्य निर्धारण, विज्ञापन, विपणन अनुसंधान आदि) को पूरा करने के लिए उन्हें कुछ समूहों में विभाजित कर दिया जाता है। एक जैसी क्रियाओं को पूरा करने के लिए एक विशेष पद स्थापित किया जाता है। यह भी निश्चित कर दिया जाता है कि कौन किसका अधिकारी व अधीनस्थ होगा।
3. विपणन क्रियाओं के लिए नियुक्तियाँ करना-विपणन प्रबन्ध द्वारा इस कार्य के अन्तर्गत विभिन्न विपणन क्रियाएँ करने के लिए नियुक्तियाँ की जाती हैं। बड़ी संस्थाओं में नियुक्ति कार्य के लिए अलग से मानव संसाधन विभाग स्थापित किया जाता है। विपणन प्रबन्ध अपने विभाग से सम्बन्धति मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानव संसाधन प्रबन्धक या सेविवर्गीय प्रबन्धक की सहायता करता है।
4. विपणन क्रियाओं का निर्देशन करनानिर्देशन का अर्थ विभिन्न पदों पर काम करने वाले व्यक्तियों का उचित मार्गदर्शन करने से है ताकि वे अपने कार्य को कुशलतापूर्वक ढंग से पूरा कर सकें।
5. विपणन क्रियाओं का नियन्त्रण करनाविपणन क्रियाओं के नियन्त्रण का अर्थ विपणन क्रियाओं की समय-समय पर समीक्षा करने से है ताकि विचलनों का पता लगाया जा सके। ऋणात्मक विचलन आने पर तुरन्त सुधारात्मक कार्यवाही करके विचलन को दूर किया जाता है।
विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य-
विपणन प्रबन्ध के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. माँग का सृजन करना-विपणन अनेक तरीकों से माँग का सृजन करता है। उत्पादक या निर्माता पहले यह पता लगाते हैं कि ग्राहक क्या चाहते हैं और फिर ग्राहकों की इच्छानुसार उत्पादन करते हैं।
2. बाजार का अंश-विपणन एक इकाई को बाजार से अपनी स्थिति को अच्छी तरह से प्रदर्शित करने में सहायक होता है। बहुत से प्रलोभन तरीकों का प्रयोग उत्पाद को लोकप्रिय बनाने के लिए किया जाता है। ग्राहकों की माँग का उचित मूल्य तथा गुणवत्ता के सम्बन्ध में ध्यान रखा जाता है। आक्रामक विक्रय बढ़ाने के तरीकों का प्रयोग किया जाता है। ये सब क्रियाएँ एक संस्था को बाजार में उचित हिस्सा प्राप्त करने में सहायक होती हैं।
3. ख्याति-विपणन एक संस्था को बाजार में एक निश्चित समय के अन्तराल पर ख्याति बनाने में सहायक होता है। विपणन मुख्य रूप से संस्था की प्रतिष्ठा के निर्माण के तरीकों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता है। उदाहरण के लिए उत्पादों का विज्ञापन, उचित मूल्य, उच्च गुण तथा सरल बाजार आदि क्रियाओं से सर्वप्रिय बनाया जा सकता है।
4. उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि द्वारा बिक्री बढ़ाना-विपणन दीर्घकालीन लक्ष्यों जैसे लाभ, स्थायित्व तथा विकास की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है। इसकी प्राप्ति ग्राहकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि से हो सकती है। एक संस्था के सभी मूलभूत कार्यों जैसे उत्पादन, वित्त, विपणन आदि का उद्देश्य आपस में सामन्जस्य करके ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करना और लाभ कमाना है। आधुनकि विपणन ग्राहकों से ही शुरू होता है और ग्राहकों पर ही समाप्त होता है।
प्रश्न 12.
विपणन की भूमिका को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
विपणन की भूमिका
संगठन चाहे लाभ अर्जन करने वाला हो अथवा गैरलाभ अर्जन करने वाला, विपणन की इनके उद्देश्यों की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। विपणन उपभोक्ताओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। यह उन वस्तु एवं सेवाओं को उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराता है जो उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। इससे उनके जीवन स्तर में वृद्धि होती है। इसकी देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। संक्षेप में, विपणन की भूमिका को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-
व्यावसायिक इकाई में विपणन की भूमिका-किसी व्यावसायिक इकाई के उद्देश्यों की प्राप्ति में विपणन की अहम भूमिका होती है। संगठन चाहे लाभ अर्जन करने के लिए अथवा गैर-लाभ वाले विपणन के माध्यम से उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से प्राप्त कर सकते हैं। इसकी सहायता से संगठन की क्रियाएँ ग्राहकों की आवश्यकताओं पर केन्द्रित रहती हैं। उदाहरण के लिए कोई संस्था किस उत्पाद या सेवा की बिक्री करे यह ग्राहकों की आवश्यकता पर निर्भर करेगा। इसका निर्णय करने के लिए कि किस वस्तु का उपादन किया जाये अथवा बिक्री की जाये, ग्राहकों की आवश्यकताओं का विश्लेषण करना होगा।
उत्पाद का अनुरूपण सम्भावित ग्राहकों की आवश्यकतानुसार किया जायेगा। इनको उन वितरण केन्द्रों के माध्यम से उपलब्ध कराया जायेगा जो ग्राहकों के लिए सुविधाजनक हैं तथा इनका मूल्य भी ग्राहक की क्रय शक्ति के अनुसार होगा। यथार्थ में, विपणन व्यवसाय का वह आदर्श है जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं की पूर्ति कर उनकी सहायता करता है। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि एक सन्तुष्ट ग्राहक किसी भी व्यावसायिक संस्था की अमूल्य सम्पत्ति है। विपणन ही ग्राहकों को सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है। इस प्रकार विपणन का किसी फर्म के अस्तित्व एवं विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
अर्थव्यवस्था में विपणन की भूमिका-विपणन देश के आर्थिक विकास में एक उत्प्रेरक का कार्य करता है तथा लोगों के जीवन स्तर को उठाने में सहायक होता है। यह किसी देश के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लोगों को नये-नये कार्य करने तथा ग्राहकों की आवश्यकता की वस्तुओं के उत्पादन के लिए उद्यम लगाने के लिए प्रेरित करता है। विपणन उत्पादन एवं उपयोग के स्तर में असमानता के कारण उत्पन्न उच्च मूल्य के कारण पैदा कठिनाइयों को दूर करने में सहायता करता है। यह कुशल वितरण व्यवस्थाओं के द्वारा वस्तुओं के सुगम प्रवाह को सुनिश्चित करता है।
विपणन सही प्रकार के उत्पाद एवं सेवाओं जिनका एक फर्म को उत्पादन करना चाहिए, मूल्य जिन पर उत्पादों को बेचना चाहिए तथा माध्यम जिनके द्वारा उत्पादों को अन्तिम उपभोग अथवा उपयोग के स्थान तक पहुँचाना चाहिए, पता करने में सहायता करता है। व्यवसाय एवं उपभोग के केन्द्रों का सुन्दर तालमेल आर्थिक गतिविधियों को गति प्रदान करता है जिससे आय में वृद्धि होती है, उपभोग अधिक होता है तथा बचत एवं निवेश में वृद्धि होती है।
प्रश्न 13.
ब्रांडिंग से आप क्या समझते हैं ? इसके लाभ बतलाइये।
अथवा
ब्रांडिंग से विपणनकर्ताओं एवं ग्राहकों को प्राप्त होने वाले लाभों को समझाइये। (प्रत्येक हेतु तीन)
उत्तर:
ब्रांडिंग का अर्थ-यदि उत्पादों को उनके लाक्षणिक नाम से बेचा जाता है तो विपणनकर्ताओं को अपने प्रतियोगियों के उत्पादों से अन्तर करना कठिन हो जाता है। इसलिये अधिकांश विपणनकर्ता अपने उत्पादों को कोई खास नाम देते हैं जिससे कि उनके उत्पादों को अलग से पहचाना जा सकता है तथा प्रतियोगी उत्पादों से भी उनका अन्तर किया जा सकता है। किसी उत्पाद को नाम, चिह्न अथवा कोई प्रतीक आदि देने की प्रक्रिया को ब्रांडिंग कहा जाता है।
सामान्यतः किसी उत्पाद के नामकरण की प्रक्रिया को ही ब्रांडिंग के नाम से जाना जाता है। विस्तृत अर्थ में, ब्रांडिंग वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत किसी उत्पाद की पहचान बनाने हेतु उसके किसी नाम, प्रतीक चिह्न, संकेताक्षर या अंक को निर्धारित किया जाता है।
ब्रांडिंग के लाभ
यद्यपि ब्रांडिंग के कारण वस्तु की लागत में वृद्धि हो जाती है फिर भी इससे विपणनकर्ताओं एवं ग्राहकों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैंविणनकर्ताओं को लाभ-
1. उत्पाद में अन्तर्भेद करने में सहायक-ब्रांडिंग किसी भी कम्पनी को अपने उत्पादों को अपने प्रतियोगियों के उत्पादों से भिन्न दर्शाने में सहायक होता है। इससे कम्पनी अपने उत्पादों के बाजार को सुरक्षित एवं नियन्त्रित कर सकती है।
2. विज्ञापन एवं प्रदर्शन कार्यक्रमों में सहायकब्रांड कम्पनी को अपने विज्ञापन एवं प्रदर्शन कार्यक्रमों में सहायता प्रदान करती है। ब्रांड नाम के बिना विज्ञापनकर्ता उत्पाद वर्ग के सम्बन्ध में ही जानकारी दे सकता है लेकिन अपने उत्पादों की बिक्री के लिए आश्वस्त नहीं हो सकता।
3. विभेदात्मक मूल्य निर्धारण-ब्रांडिंग के कारण कम्पनी उस मूल्य पर अपना माल बेच सकती है जो उसके प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों के मूल्य से भिन्न हो सकता है क्योंकि यदि ग्राहक किसी ब्रांड को पसन्द करने लगते हैं तो वह इसके आदी हो जाते हैं तथा वे इसके लिए थोडा अधिक भुगतान करने के लिए तैयार रहते हैं।
4. नये उत्पादों से परिचित कराना आसान-यदि पहले से ही प्रचलित ब्रांड के नाम से कोई नया उत्पाद बाजार में लाया जाता है तो इस ब्रांड को प्राप्त गौरव का लाभ मिलता है तथा इसके अद्भुत प्रारम्भ की सम्भावना बन जाती है। इसलिए अनेक कम्पनियाँ जिनके पूर्व स्थापित ब्रांड नाम हैं अपने नये उत्पादों को इसी ब्रांड नाम से बाजार में लाते हैं। उदाहरणार्थ सैमसंग ने टी. वी., वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव आदि उत्पादों को यही ब्रांड नाम दिया है।
ग्राहकों को लाभ-
1. उत्पाद की पहचान करने में सहायक-ब्रांडिंग के कारण ग्राहक उत्पादों की अलग-अलग पहचान कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति उत्पाद के किसी विशेष ब्रांड से सन्तुष्ट है जैसे टूथपेस्ट, कॉफी को खरीदते समय उसे हर बार इनकी जाँच करने की आवश्यकता नहीं है।
2. गुणवत्ता सुनिश्चित करना-ब्रांडिंग गुणवत्ता के एक विशेष स्तर को सुनिश्चित करता है। जब भी ग्राहक गुणवत्ता में अन्तर पाता है तो वह विनिर्माता अथवा विपणनकर्ता को इसकी शिकायत कर सकता है। इससे ग्राहक में विश्वास पैदा होता है। इससे उसकी सन्तुष्टि में वृद्धि होती है।
3. सामाजिक सम्मान का प्रतीक-कुछ ब्रांड अपनी गुणवत्ता के परिणामस्वरूप सम्मान का प्रतीक माने जाते हैं। इन ब्रांड उत्पादों के उपभोक्ता इनके प्रयोग करने में गौरव का अनुभव करते हैं तथा इससे उनकी सन्तुष्टि के स्तर में वृद्धि होती है।
प्रश्न 14.
पैकेजिंग के विभिन्न स्तरों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पैकेजिंग पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
अथवा
पैकेजिंग से आप क्या समझते हैं ? इसके महत्त्व एवं कार्य बतलाइये।
उत्तर:
पैकेजिंग का अर्थ-पैकेजिंग का अर्थ है किसी उत्पाद के डिब्बे के आवरण को डिजाइन करना एवं उसका उत्पादन कार्य। अन्य शब्दों में, पैकेजिंग का अर्थ है वस्तुओं को इनके आकार, वजन तथा प्रकृति के अनुसार डिब्बों, बोतलों, टिनों, बोरियों आदि में भरना या कागज आदि में लपेटना। तरल या द्रव पदार्थों जैसे तेल, घी आदि को टिनों या बोतलों में भरा जाता है तथा चावल, गेहूँ, चना आदि को बोरियों में भरा जाता है।
पैकेजिंग की कई उत्पादों के सफल विपणन अथवा इसकी असफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है विशेषतः उपभोक्ता अस्थायी उत्पाद। इतिहास इस बात का साक्षी है कि विगत वर्षों में कुछ सफल उत्पादों की सफलता के कारणों का विश्लेषण करें तो यह पता लग जायेगा कि इसमें पैकेजिंग की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
पैकेजिंग के स्तर
पैकेजिंग के तीन स्तर होते हैं-
1. प्राथमिक पैकेजिंग- इसका अर्थ उत्पाद की सीधी पैकेजिंग से है। कुछ मामलों में प्राथमिक पैकेज में ही वस्तुओं को तब तक रखा जाता है जब तक कि उपभोक्ता उनका उपयोग नहीं कर ले जैसे मौजों के लिए प्लास्टिक पैकेट। कुछ मामलों में उत्पाद के समाप्त होने तक उसे पैकेज में ही रखा जाता है जैसे माचिस की डिब्बी आदि।
2. द्वितीयक पैकेजिंग-यह वस्तु को सुरक्षित रखने के लिए एक अतिरिक्त परत होती है जिसे उस समय तक रखा जाता है जब तक कि इसका उपयोग प्रारम्भ न हो जाये जैसे शेविंग क्रीम की ट्यूब सामान्यतया कागज के बॉक्स में रखी होती है। जब उपभोक्ता शेविंग क्रीम का प्रयोग करना शुरू करता है तो वह बॉक्स को तो फेंक देता है लेकिन ट्यूब की देखरेख करता है।
3. परिवहन के लिए पैकेजिंग-वस्तुओं के संग्रहण, पहचान तथा परिवहन के लिए भी पैकेजिंग आवश्यक है। उदाहरण के लिए एक साबुन का निर्माता साबुनों को फुटकर विक्रेता तक 10, 20 अथवा 30 की इकाई की तह लगाकर बक्सों में भेजता है।
पैकेजिंग का महत्त्व
वस्तु एवं वस्तुओं के विपणन में पैकेजिंग का निम्न कारणों से अत्यधिक महत्त्व माना जाता है-
(1) स्वास्थ्य एवं स्वच्छता बनाये रखने का ऊँचा होता स्तर-देश में लोगों का जीवन स्तर ऊँचा होता जा रहा है। जिसके कारण अधिक से अधिक लोग अब पैक की हुई वस्तुएँ ही खरीदते हैं। इससे वस्तुएँ फ्रेश रहती हैं और मिलावट की सम्भावना कम से कम रहती है।
(2) स्वयंसेवा दुकानें-स्वयंसेवी फुटकर स्टोर आजकल काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं विशेषकर महानगरों, बड़े शहरों एवं कस्बों में। इसके कारण व्यक्तिगत विक्रय के माध्यम से विक्रय संवर्द्धन की पारम्परिक भूमिका अब पैकेजिंग निभा रहा है।
(3) उत्पादों का विभेदीकरण-पैकेजिंग उत्पादों में अन्तर करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम है। पैकेज का रंग, आकार, पदार्थ आदि के कारण ग्राहक उत्पाद की गुणवत्ता में अन्तर सही ढंग से समझ पाता है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद के पैकेज को देखकर ही उसकी गुणवत्ता का पता लगाया जा सकता है।
(4) नवीनता के अवसर-पैकेजिंग के क्षेत्र में आये परिवर्तनों ने देश के विपणन परिदृश्य को पूर्ण रूप से बदल दिया है। अब ऐसे पैकेजिंग को विकसित कर लिया गया है जिसमें उत्पादों को लम्बी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है। वर्तमान में दूध, औषधि तथा पेय पदार्थों आदि के क्षेत्र में भी पैकेजिंग में काफी नवीनता आयी है।
पैकेजिंग के कार्य
पैकेजिंग के कुछ प्रमुख कार्य निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. उत्पाद की पहचान करना-पैकेजिंग उत्पादों की पहचान करने में बहुत सहायता करता है। उदाहरण के लिए, लाल रंग में कोलगेट या फिर चार्मिस क्रीम इनके पैकिंग के कारण आसानी से पहचाने जाते हैं।
2. उत्पाद संरक्षण-पैकेजिंग वस्तु को नष्ट होने, रिसने, चोरी चले जाने, नुकसान पहुँचाने, जलवायु के प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करता है। वस्तुओं के संग्रहण, वितरण एवं परिवहन के दौरान इस प्रकार की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
3. उत्पाद के उपयोग में आसानी-पैकेज का आकार एवं स्वरूप उत्पाद के उपयोग को आसान बना देता है।
4. उत्पाद प्रवर्तन-प्रवर्तन के उददेश्य से भी पैकेजिंग का उपयोग किया जाता है। पैकेजिंग में आकर्षक रंगों का प्रयोग, फोटो या फिर छपी हुई फोटो का उपयोग क्रय के समय ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए किया जा सकता है। कभी-कभी पैकिंग बिक्री बढाने में विज्ञापन से भी अच्छा कार्य कर जाती है। स्वयंसेवी स्टोरों में पैकेजिंग की यह भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
प्रश्न 15.
लेबलिंग क्या है ? इसके विभिन्न कार्यों को संक्षेप में बतलाइये।
उत्तर:
लेबलिंग का अर्थ-वस्तुओं के विपणन में एक महत्त्वपूर्ण कार्य पैकेज पर लगाने के लिए लेबल के स्वरूप को तय करना है। लेबल उत्पाद पर एक सरल सी पर्ची लगाने जो उत्पाद की गुणवत्ता या मूल्य जैसी कुछ सूचनाओं की जानकारी प्रदान करती है, से लेकर जटिल ग्राफिक्स जो ब्रांड उत्पादों के पैकेज पर होते हैं (एक डिटर्जेंट पाउडर के लेबल पर उपभोक्ताओं के विचार जानने के लिए एक स्त्री द्वारा पेन को पेश करना)। लेबल उत्पाद के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी देते हैं जैसे उत्पाद के घटक, उपयोग पद्धति आदि।
उत्पाद के पैकेट पर लेबल इसलिए लगाया जाता है ताकि उसकी पहचान हो सके तथा ग्राहकों को कुछ सूचना मिल सके। कभी-कभी उत्पाद पर बड़ा लेबल लगाया जाता है जिससे अधिक सूचनाओं की जानकारी दी जाती है। इस प्रकार एक लेबल उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान है। एक लेबल अपने मूल स्तर पर उन सूचनाओं का संग्रह है जिन्हें ग्राहकों को पहुँचाना होता है।
लेबलिंग के कार्य
लेबलिंग अथवा लेबल के प्रमुख कार्य निम्नलिखित बतलाये जा सकते हैं-
1. उत्पाद का विवरण एवं विषय-वस्तु-उत्पाद पर लगा हुआ लेबल उस उत्पाद के सम्बन्ध में आवश्यक विवरण एवं विषय-वस्तु की जानकारी प्रदान करता है। उदाहरण के लिए लेबल पर एक लोकप्रिय बांड झुलसा देने वाली गर्मी के पाउडर का वर्णन है कि पाउडर किस प्रकार झुलसा देने वाली गर्मी से बचाव करता हैं एवं बैक्टिरिया एवं संक्रामक रोग नियन्त्रित करता है। इसमें इस पाउडर को घाव या कटे हुए पर नहीं लगाने के लिए भी सावधान किया हुआ है। इसी प्रकार नारियल के तेल के एक ब्रांड के पैकेज पर घोषणा होती है कि यह शुद्ध नारियल का तेल है जिसमें मेंहदी, आँवला व नींबू मिला है तथा बतलाता है कि यह किस प्रकार से बालों के लिए उपयोगी है। इस प्रकार लेबल का एक महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद की उपयोगिता, उपयोग करने में सावधानियाँ तथा इसके विभिन्न घटकों का वर्णन करना होता है।
2. उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान करानालेबल का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान कराना है। उदाहरण के लिए किसी उत्पाद का ब्रांड नाम उसके पैकेज पर छपा है, जैसे-बिस्कुट, मैगी। इससे अनेक पैकेटों में से अपने पसन्द की ब्रांड की पहचान की जा सकती है। अन्य सामान्य सूचनाओं की जानकारी जैसे निर्माता का नाम, पता, पैक करते समय वजन, उत्पादन तिथि, अधिकतम फुटकर मूल्य एवं बैच संख्या की जानकारी लेबल से हो जाती है।
3. उत्पादों का श्रेणीकरण-लेबल उत्पादों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत करने का कार्य भी करता है। कभी-कभी विपणनकर्ता उत्पाद को विशिष्टताओं अथवा गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँट देते हैं। जैसे टाटा चाय की विभिन्न किस्मों के कुछ ब्रांड विभिन्न रंगों के लेबल वर्गों में बाँटकर बेचे जाते हैं।
4. उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता-सही रूप से डिजाइन किया हुआ लेबल ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करता है एवं इसके कारण भी लोग वस्तु को खरीदते हैं । कम्पनियाँ जब विक्रय संवर्द्धन योजना प्रारम्भ करती हैं तो लेबल उसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए एक शेविंग क्रीम के पैकेज के लेबल पर लिखा होता है 50% अतिरिक्त मुफ्त। यह लेबल उत्पाद के प्रवर्तन में सहायक होता है।
5. कानून सम्मत जानकारी देना-लेबलिंग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य कानूनी रूप से अनिवार्य सूचना देना है। जैसे सिगरेट के पैकेट पर संवैधानिक चेतावनी "सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।" इस प्रकार की सूचना को आवश्यकता प्रक्रिया नीत खाद्य, नशीले पदार्थ एवं तम्बाकू उत्पादों में देनी होती है। खतरनाक अथवा जहरीले पदार्थों में लेबल पर उचित सुरक्षा सम्बन्धी चेतावनी देने की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 16.
मूल्य/कीमत निर्धारण के निर्धारक तत्त्वों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मूल्य/कीमत निर्धारण के निर्धारक तत्त्व
मूल्य/कीमत निर्धारण के प्रमुख निर्धारक तत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. वस्तु की लागत-किसी वस्तु अथवा सेवा के मूल्य को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में से एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व इसकी लागत है। इस लागत में वस्तु के उत्पादन, वितरण एवं विक्रय की लागत सम्मिलित होती है। सामान्यतया सभी विपणन इकाइयाँ कम से कम दीर्घ काल में तो अवश्य ही अपनी पूरी लागत को वसूलना चाहती हैं। इसके अलावा वे लागत के अतिरिक्त लाभ भी कमाना चाहती हैं। यह सब उनके अस्तित्व को बनाये रखने के लिए आवश्यक भी है। लागत स्थायी, परिवर्तनशील एवं अर्द्ध-परिवर्तनशील हो सकती है।
स्थिर लागत वह लागत है जो संस्था की क्रियाओं के स्तर जैसे उत्पादन विक्रय की मात्रा के परिवर्तन के साथ नहीं बदलती। जो लागत व्यवसाय की मात्रा के अनुपात में बढती-घटती है उसे परिवर्तनशील लागत कहते हैं। अर्द्ध-परिवर्तनीय लागत वे लागत हैं जो उत्पादन की मात्रा के साथ बढ़ती-घटती तो हैं लेकिन समान अनुपात में नहीं हैं। एक निर्धारित व्यवसाय स्तर जैसे बिक्री की मात्रा अथवा उत्पादन की मात्रा पर स्थायी, अर्द्ध-स्थायी एवं परिवर्तनशील लागतों को मिलाकर कुल लागत बनती है।
2. उपयोगिता एवं माँग-क्रेता जो मूल्य चुकाना चाहता है उसका निचला स्तर उत्पाद की लागत पर निर्भर करता है जबकि उत्पाद की उपयोगिता एवं माँग की तीव्रता उसके ऊपर के स्तर का निर्धारण करेगी। वास्तव में उत्पाद के मूल्य में क्रेता व विक्रेता दोनों के हित परिलक्षित होने चाहिए। क्रेता अधिक से अधिक उतना भुगतान करने को तैयार होगा जितनी कि कम से कम मूल्य के बदले में प्राप्त उत्पाद की उसके लिए उपयोगिता है। उधर विक्रेता कम से कम लागत की वसूली करना चाहेगा। माँग के नियम के अनुसार उपभोक्ता ऊँची कीमत की तुलना में कम मूल्य पर अधिक मात्रा में क्रय करते हैं। किसी वस्तु का मूल्य उसकी माँग की लोच पर निर्भर करता है। इस प्रकार उत्पाद की उपयोगिता और माँग उसके मूल्य निर्धारण के लिए एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्त्व होता है।
3. बाजार में प्रतियोगिता की सीमा-न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य सीमा के बीच में मूल्य कहाँ निश्चित किया जायेगा, यह प्रतियोगिता की प्रकृति एवं उसकी तीव्रता पर निर्भर करेगा। यदि प्रतियोगिता कम है तो मूल्य ऊँचा होगा और यदि स्वतन्त्र प्रतियोगिता है तो मूल्य कम होगा। किसी उत्पाद का मूल्य तय करने से पहले प्रतियोगियों के मूल्य एवं उनकी सम्भावित प्रतिक्रिया को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। मूल्य निर्धारण से पहले प्रतियोगी उत्पादों का मूल्य ही नहीं बल्कि उनकी गुणवत्ता एवं अन्य लक्षणों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
4. सरकार एवं कानूनी नियम-मूल्य निर्धारण में अनुचित व्यवहार के विरुद्ध जन-सामान्य के हितों की रक्षा के लिए, सरकार हस्तक्षेप कर वस्तुओं के मूल्यों का नियमन कर सकती है। किसी भी उत्पाद को सरकार आवश्यक वस्तु घोषित कर उसके मूल्य का नियमन कर सकती है। अतः कीमत निर्धारण में सरकार एवं कानूनी नियम भी एक प्रमुख निर्धारण घटक माना जाता है।
5. मूल्य निर्धारण का उद्देश्य-किसी भी वस्तु अथवा सेवा का मूल्य निश्चित करने को प्रभावित करने वाला मुख्य तत्त्व मूल्य निर्धारण का उद्देश्य भी है। यदि संस्था यह निर्णय लेती है कि अल्प अवधि में अधिक लाभ कमाया जाये तो वह अपने उत्पादों का अधिकतम मूल्य लेगी। लेकिन वह चाहती है कि लम्बी अवधि में अधिकतम कुल लाभ प्राप्त किया जाये तो वह प्रति इकाई कम मूल्य ही रखेगी जिससे कि यह बाजार के बड़े भाग पर कब्जा कर सके तथा बढ़ी हुई बिक्री द्वारा अधिक लाभ कमा सके। इसके साथ ही यदि किसी संस्था का उद्देश्य बाजार में बड़ी हिस्सेदारी प्राप्त करना है तो यह अपने उत्पादों के मूल्य कम रखेगी क्योंकि इससे ही उसके ग्राहकों की संख्या बढ़ेगी।
यदि संस्था अत्यधिक प्रतिस्पर्धा के कारण या प्रतियोगी द्वारा एक अच्छे पूरक के ले आने के कारण बाजार में टिके रहने में कठिनाई अनुभव कर रही है तो यह अपने उत्पादों पर छूट दे सकती है या प्रवर्तन योजना चला सकती है जिससे कि अपने संग्रहित माल को निकाल सके। उत्पाद गुणवत्ता में अग्रिम स्थान पाने के लिए सामान्यतया उच्च गुणवत्ता एवं अनुसन्धान व विकास पर किये गये उच्च व्यय को पूरा करने के लिए ऊँचे मूल्य पर माल बेचा जायेगा। इस प्रकार संस्था की वस्तु एवं सेवा का मूल्य या कीमत उसके मूल्य निर्धारण के उद्देश्यों से भी प्रभावित होता है।
6. विपणन पद्धतियाँ-वस्तु या सेवा की मूल्य निर्धारण प्रक्रिया पर विपणन के अन्य घटक जैसे वितरण प्रणाली, विक्रयकर्ताओं की गुणवत्ता, विज्ञापन की गुणवत्ता एवं कितना विज्ञापन किया गया है, विक्रय संवर्द्धन के कार्य, पैकिंग किस प्रकार की है, उत्पाद की अन्य उत्पादों से भिन्नता, उधार की सुविधा एवं ग्राहक सेवा का भी प्रभाव पड़ता है। जैसे यदि कोई संस्था माल को निःशुल्क घर पहुँचाने की सुविधा प्रदान करती है तो इसे मूल्य निर्धारण में कुछ छूट मिल जाती है।
प्रश्न 17.
भौतिक वितरण से क्या अभिप्राय है? भौतिक वितरण के विभिन्न घटकों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
भौतिक वितरण का अर्थ-वस्तुओं के उत्पाद पैकिंग किये जाने, ब्रांडिंग किये जाने, मूल्य निर्धारित किये जाने तथा प्रवर्तन के पश्चात् इनको सही स्थान पर, सही मात्रा में एवं सही समय पर ग्राहक को उपलब्ध कराना आवश्यक होता है। यह विपणनकर्ताओं का दायित्व है कि वस्तुओं को उस स्थान पर उपलब्ध कराया जाये जहाँ ग्राहक उन्हें खरीदना चाहता है। वस्तुओं को उनके उत्पादन के स्थल से वितरण स्थल तक पहुँचाना भौतिक वितरण कहलाता है जो कि विपणन मिश्र का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। भौतिक वितरण में वे सभी क्रियाएँ आती हैं जो वस्तुओं को निर्माता से लेकर बाजार ग्राहक तक पहुँचाने के लिए आवश्यक हैं। भौतिक वितरण में सम्मिलित महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ हैंपरिवहन, भण्डारण, माल का रख-रखाव एवं स्कन्ध नियन्त्रण। इन्हें भौतिक वितरण के मुख्य घटक भी माना जाता है।
भौतिक वितरण के घटक
1. आदेश देना-क्रेता-विक्रेता सम्बन्धों में आदेश देना भौतिक वितरण का प्रथम एवं महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है। उत्पाद का प्रवाह वितरण के विभिन्न माध्यमों से ग्राहकों की ओर होता है जबकि आदेश इसके विपरीत दिशा में चलता है। एक अच्छी वितरण प्रणाली वह है जिसमें आदेश की पूर्ति उपयुक्त समय व स्थान पर तथा शीघ्र होती है। ऐसा नहीं होने पर वस्तुएँ ग्राहक के पास देर से पहुँचेंगी या फिर गलत मात्रा में वर्णन के अनुसार नहीं होंगी। ग्राहक असन्तुष्ट भी होगा और व्यवसाय को हानि होगी।
2. परिवहन-परिवहन वस्तु एवं कच्चे माल को उत्पादन बिन्दु से बिक्री के स्थान तक ले जाने का माध्यम है। यह वस्तुओं के भौतिक वितरण के प्रमुख तत्त्वों में से एक है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वस्तुओं के भौतिक रूप से उपलब्ध कराये बिना बिक्री कार्य पूरा नहीं हो सकता है। परिवहन के साधनों का चुनाव करते समय यह देख लेना चाहिए कि साधन, गति, विश्वसनीयता, योग्यता, उपलब्धता तथा लागत के हिसाब से ठीक है। जैसे नष्ट होने वाले पदार्थों के लिए तेज गति से चलने वाले वाहनों को प्राथमिकता दी जाती है।
3. भण्डारण-भौतिक वितरण का एक प्रमुख घटक भण्डारण भी है। भण्डारण वस्तुओं को संग्रहण एवं वर्गों में विभक्त करने का कार्य है जिससे समय उपयोगिता का सृजन होता है। भण्डारण क्रिया का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं को उचित स्थान पर एवं उचित मात्रा में रखना एवं उनके संग्रहण की व्यवस्था भी करना है। सामान्यतया वस्तुओं के उत्पादन के समय एवं उनके उपभोग के समय में अन्तर हो सकता है। इसलिए भण्डारण की आवश्यकता होती है। अपने ग्राहकों की सेवा के सम्बन्ध में किसी भी व्यावसायिक संस्था की सफलता इस बात पर अधिक निर्भर करती है कि उसके भण्डारगृह कहाँ स्थित हैं और ग्राहकों को उनकी आवश्यकतानुसार पर्याप्त मात्रा में, सही समय एवं स्थान पर उपलब्ध होती है या नहीं। लेकिन व्यावसायिक संस्था को भण्डारण की लागत तथा ग्राहक की सेवा स्तर में सन्तुलन रखना होगा।
जिन उत्पादों को लम्बी अवधि के लिए संग्रहण की आवश्यकता है जैसे कृषि उत्पाद उनके लिए भण्डारगृह उत्पादन के समीप ही स्थित होते हैं। इससे वस्तुओं के परिवहन की लागत कम आती है। दूसरी ओर जो उत्पाद भारी होते हैं तथा जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना कठिन होता है जैसे मशीनें, मोटरवाहन तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुएँ जैसे बेकरी का सामान, मांस, सब्जियों को बाजार के समीप ही केन्द्रों पर रखा जाता है।
4. संग्रहित माल पर नियंत्रण-भण्डारण से सम्बन्धित निर्णय से स्टॉक में रखे माल के सम्बन्ध में निर्णय जुड़ा है। यह निर्णय ही निर्माताओं की सफलता की कुंजी है। विशेषतः उन मामलों में जिनमें प्रति इकाई लागत बहुत ऊँची है। स्टॉक में रखे माल के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण निर्णय इस सम्बन्ध में लेना होता है कि इसका स्तर क्या हो अर्थात् कितनी मात्रा में स्टॉक संग्रहित करके रखा जाये? जितनी अधिक मात्रा स्टॉक में रखे माल की होगी उतनी ही अच्छी सेवा ग्राहक की कर पायेंगे। लेकिन माल को स्टॉक में रखने की लागत एवं ग्राहक सेवा में सन्तुलन बनाये रखने की आवश्यकता है। कम्प्यूटर एवं सूचना तकनीकी के क्षेत्र में तरक्की के कारण अधिक माल के संग्रहण की आवश्यकता कम होती जा रही है। वर्तमान में अधिक से अधिक कम्पनियों में समय की आवश्यकतानुसार माल के संग्रह सम्बन्धी निर्णय की अवधारणा लोकप्रिय हो रही है।
इसके साथ ही संग्रहित माल के स्तर का निर्णय इस बात पर निर्भर करता है कि उत्पाद की माँग कितनी होगी? माँग का यदि सही अनुमान लगा लिया गया तो इससे सम्बन्ध एवं लागत के स्तर को न्यूनतम रखा जा सकता है। इससे न केवल व्यावसायिक संस्था रोकड़ प्रवाह को बल्कि उत्पादन क्षमता को एक समान स्तर पर बनाये रखने में सहायक होती है।
प्रश्न 18.
प्रवर्तन मिश्र से आपका क्या अभिप्राय है? इसके अवयवों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवर्तन मिश्र का अर्थ-प्रवर्तन मिश्र से अभिप्राय व्यावसायिक संगठन द्वारा अपने सम्प्रेषण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी प्रवर्तन तकनीकों को मिलाकर प्रयोग करने से है। विपणनकर्ता अपनी संस्था या कम्पनी के उत्पादों के सम्बन्ध में ग्राहकों को सूचित करने एवं खरीदने के लिए तैयार करने के लिए सम्प्रेषण की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करता है। दूसरे शब्दों में, प्रवर्तन मिश्र से तात्पर्य उन सभी क्रियाओं से है जिनसे किसी संस्था तथा उसके उत्पादों के प्रति ग्राहकों एवं भावी ग्राहकों में अनुकूल एवं सम्मोहन विचार उत्पन्न किये जाते हैं। इसके अन्तर्गत विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विक्रय संवर्द्धन एवं प्रचार सम्मिलित हैं। कोई भी व्यावसायिक संस्था इन तत्त्वों या अवयवों को किस प्रकार से और कितनी मात्रा में उपयोग कर सकेगी यह अनेक तत्त्वों पर निर्भर करेगा जैसे बाजार की प्रकृति, वस्तु की प्रकृति, प्रवर्तन का बजट, प्रवर्तन के उद्देश्य आदि।
प्रवर्तन मिश्र के मुख्य अवयव
प्रवर्तन मिश्र के मुख्य अवयव निम्नलिखित हैं-
1. विज्ञापन-विज्ञापन प्रवर्तन के लिए सबसे सामान्य रूप से उपयोग में लायी जाने वाली तकनीक है। यह अवैयक्तिक सम्प्रेषण होता है जिसका भुगतान विपणनकर्ता (प्रायोजक) कुछ वस्तु एवं सेवाओं के प्रवर्तन के लिए करते हैं। दूसरे शब्दों में, विज्ञापन से आशय ऐसे दृश्य, लिखित या मौखिक अवैयक्तिक सन्देशों से है जो जनता को क्रय के लिए प्रेरित करने हेतु जनसंचार माध्यमों द्वारा जन सामान्य को प्रसारित किये जाते हैं। विज्ञापन के सर्वसाधारण माध्यम समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, टेलीविजन एवं रेडियो हैं।
विशेषताएँ-विज्ञापन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-
2. वैयक्तिक विक्रय-वैयक्तिक विक्रय में बिक्री के उद्देश्य से एक या एक से अधिक सम्भावित ग्राहकों से बातचीत के रूप में सन्देश का मौखिक प्रस्तुतीकरण समाहित है। यह सम्प्रेषण का वैयक्तिक स्वरूप है। वस्तुतः वैयक्तिक विक्रय किसी विक्रयकर्ता या विक्रय प्रतिनिधि द्वारा किसी उत्पाद, सेवा या विचार के सम्बन्ध में किसी ग्राहक या सम्भावित ग्राहक के समक्ष व्यक्तिगत रूप से आमने-सामने प्रस्तुतीकरण है।
पैट्रीशिया फ्रिप के अनुसार, "यदि आप दीर्घ अवधि के लिए सफल उद्यम का निर्माण करना चाहते हैं तो आप बिक्री को बंद नहीं समझें बल्कि संबंधों की शुरुआत समझें।"
इस प्रकार वैयक्तिक विक्रय दो व्यक्तियों द्वारा आमने-सामने सन्देशों का आदान-प्रदान है जिसमें विक्रेता सम्भावित क्रेताओं को अपनी संस्था के उत्पाद या सेवा को क्रय करने या किसी विचार को अपनाने हेतु सविनय प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है।
विशेषताएँ-विक्रय की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
3. विक्रय संवर्द्धन-यह प्रवर्तन मिश्र का एक मुख्य घटक है। विक्रय संवर्द्धन से तात्पर्य लघु अवधि प्रेरणाओं से है, जो क्रेताओं को वस्तु अथवा सेवाओं के तुरन्त क्रय करने के लिए प्रेरित करने के लिए होती है। इनमें विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय एवं प्रचार को छोड़कर व्यावसायिक संस्था द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने की अन्य सभी प्रवर्तन तकनीक सम्मिलित होती हैं। यथार्थ में विक्रय संवर्द्धन में विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय व प्रचार के अतिरिक्त वे सभी अल्पकालीन क्रियाएँ तथा तकनीकें सम्मिलित हैं जिनसे उपभोक्ताओं, व्यापारियों या मध्यस्थों, विक्रय दल के सदस्यों, संस्थागत क्रेताओं को प्रोत्साहित एवं प्रेरित किया जा सके तथा उत्पाद या सेवा के तत्काल विक्रय को सम्भव बनाया जा सके। विक्रय संवर्द्धन तकनीकों में मुफ्त नमूने, प्रीमियम, भेंट, पुरस्कार, छूट, प्रदर्शन, सजावट, क्रियात्मक प्रदर्शन आदि सम्मिलित हैं।
विशेषताएँ-विक्रय संवर्द्धन की प्रमुख विशेषताएँ हैं-
4. प्रचार-प्रवर्तन मिश्र की एक तकनीक के रूप में प्रचार विज्ञापन के समान ही गैर-वैयक्तिक सम्प्रेषण है, किन्तु यह विज्ञापन के विपरीत बिना किसी भुगतान के सम्प्रेषण है। जब भी किसी उत्पाद या सेवा के सम्बन्ध में जन समाचार माध्यमों के पक्ष में समाचार आता है तो इसे प्रचार कहते हैं । अन्य शब्दों में, जब वस्तुओं की माँग या संस्था की ख्याति में वृद्धि करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ तथा सन्देश लोगों तक अवैयक्तिक रूप से पहुँचाये जाते हैं तथा सन्देश से सम्बन्धित व्यक्ति या संस्था द्वारा कोई भुगतान नहीं किया जाता है, तो वह प्रचार कहलाता है। प्रचार के लिए रेडियो, टीवी, समाचार-पत्र, रंगमंच आदि किसी भी साधन का उपयोग किया जा सकता है।
विशेषताएँ-प्रचार की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-
प्रश्न 19.
विज्ञापन के उद्देश्य एवं कार्यों को संक्षेप में समझाइये।
उत्तर:
विज्ञापन के उददेश्य एवं कार्य
विज्ञापन के कुछ प्रमुख उद्देश्य एवं कार्य निम्नलिखित हैं-
प्रश्न 20.
वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन में वैयक्तिक विक्रय की भूमिका (लाभों) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वैयक्तिक विक्रय की भूमिका
वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन में वैयक्तिक विक्रय की भूमिका को निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है-
I. व्यवसायी को लाभ-व्यवसायी के लिए वैयक्तिक विक्रय की भूमिका या महत्त्व या लाभ निम्नलिखित हो सकते हैं-
II. ग्राहकों को लाभ-ग्राहकों के लिए वैयक्तिक विक्रय की भूमिका या लाभ अग्रलिखित हो सकते हैं-
1. आवश्यकताओं की पहचान में सहायता करना-वैयक्तिक विक्रय ग्राहकों को उनकी आवश्यकताओं को पहचान करने एवं इनकी किस प्रकार से सर्वोच्च ढंग से सन्तुष्टि की जा सकती है, इसका ज्ञान कराता है।
2. नवीनतम जानकारी प्रदान करना-वैयक्तिक विक्रय की सहायता से ग्राहकों को मूल्यों में परिवर्तन, उत्पाद की उपलब्धता एवं कमी एवं नये उत्पादों के सम्बन्ध में नवीनतम जानकारी प्राप्त होती है जिसके कारण क्रय सम्बन्धी उचित निर्णय लिये जा सकते हैं।
3. ग्राहकों को प्रेरित करना-वैयक्तिक विक्रय ऐसे नये उत्पादों के क्रय के लिए प्रेरित करता है जो उनकी आवश्यकताओं को और अच्छे ढंग से पूरा कर सकती है। परिणामस्वरूप ग्राहकों के जीवन स्तर में अधिक सुधार होता है।
4. विशिष्ट परामर्श-वैयक्तिक विक्रय की सहायता से ग्राहकों की विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के सम्बन्ध में विशेषज्ञ सलाह एवं दिशा-निर्देश प्राप्त होते हैं, जिससे वे वस्तुओं एवं सेवाओं को अधिक अच्छी तरह से क्रय कर सकते हैं।
III. समाज के लिए लाभ-वैयक्तिक विक्रय से समाज को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं-
1. सम्भावित माँग में परिवर्तन-वैयक्तिक विक्रय समाज की दबी हुई माँग को मूर्त रूप प्रदान करता है। इस चक्र के कारण ही समाज की आर्थिक क्रियाओं का पोषण होता है जिससे अधिक रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, आय में वृद्धि होती है और अधिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन होता है। इस रूप में वैयक्तिक विक्रय आर्थिक विकास पर प्रभाव डालता है।
2. रोजगार के अवसर-वैयक्तिक विक्रय विक्रय के क्षेत्र में बेरोजगार नवयुवकों को अधिक आय एवं रोजगार के अवसर प्रदान करता है।
3. उत्पाद का मानकीकरण-वैयक्तिक विक्रय विभिन्नता लिये हुए समाज में उत्पाद के मानकीकरण एवं उपभोग में एकरूपता में वृद्धि करता है।
4. जीवन-वृत्ति के अवसर प्रदान करना-वैयक्तिक विक्रय नवयुवकों एवं महिलाओं के लिए आकर्षक जीवनवृत्ति का स्रोत बनता जा रहा है। यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें उन्नति के अच्छे अवसर, कार्य सन्तुष्टि सुरक्षा, सम्मान, विभिन्नता, रुचि एवं स्वतन्त्रता के अवसर प्रदान करता है।
5. विक्रयकर्ताओं का स्थानान्तरण-विक्रयकर्ताओं में स्थान परिवर्तन बहुत अधिक होता है जिससे देश में यात्रा एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 21.
विज्ञापन तथा प्रचार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन तथा प्रचार में अन्तर
प्रश्न 22.
निम्न पर संक्षेप में लिखिए-
(i) विपणन उत्पाद,
(ii) विपणन मिश्र,
(iii) विशिष्टता लिये हुए उत्पाद,
(iv) उत्पाद की लागत मूल्य निर्धारण के तत्त्व के रूप में,
(v) भण्डारण,
(vi) प्रवर्तन मिश्र,
(vii) प्रचार,
(viii) लेबलिंग।
उत्तर:
(i) विपणन उत्पाद-सामान्य अर्थ में, उत्पाद शब्द से तात्पर्य उत्पाद के भौतिक एवं मूर्त गुणों से है। विपणन में उत्पाद मूर्त एवं अमूर्त गुणों का मिश्रण होता है जिनका मूल्य के बदले में विनिमय हो सकता है तथा जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के योग्य है। इसमें वह सबकुछ होता है जिसे बाजार में आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए बिक्री हेतु लाया जाता है। इस प्रकार उत्पाद उपयोगिताओं का समूह है अथवा सन्तुष्टि का स्रोत है जिसे मानवीय इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाया जाता है। उत्पादों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है-उपभोक्ता उत्पाद तथा औद्योगिक उत्पाद । वे उत्पाद जिन्हें अन्तिम उपभोक्ता अथवा उपयोगकर्ता अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु क्रय करते हैं, उन्हें उपभोक्ता उत्पाद कहते हैं। औद्योगिक उत्पाद उन उत्पादों को कहते हैं जिन्हें दूसरे उत्पादों के उत्पादन के लिए आगत के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
वे क्रियाएँ, लाभ अथवा सन्तुष्टि (जैसे घड़ियों की मरम्मत करना, कपड़ों की सिलाई करना, ड्राईक्लीन करना आदि) का विक्रय किया जाता है, इन्हें सेवा कहते हैं।
(ii) विपणन मिश्र-सामान्य अर्थ में, विभिन्न विपणन क्रियाओं को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए बनायी गई नीतियों के योग को विपणन मिश्रण कहते हैं। डॉ. आर.एस. डॉवर के अनुसार, “निर्माताओं या उत्पादकों द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग में लायी जाने वाली नीतियाँ विपणन मिश्रण का कार्य निर्माण करती हैं।"
विपणन मिश्र में कई प्रकार के निर्णय एक साथ लेने होते हैं। विपणन मिश्र को दो प्रकार के तत्त्व प्रभावित करते हैं-
(a) नियन्त्रण योग्य तत्त्व-विपणन निर्णय जिन पर संस्था का नियन्त्रण होता है नियन्त्रण योग्य तत्त्व कहलाते हैं जैसे वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए कौनसे माध्यम का चुनाव किया जायेगा, कौनसा ब्रांड अपनाया जायेगा आदि।
(b) अनियन्त्रण योग्य तत्त्व-विपणन सम्बन्धी वे तत्त्व जिन पर संस्था का कोई नियन्त्रण नहीं होता अनियन्त्रण योग्य तत्त्व कहलाते हैं जैसे वातावरण के तत्त्व।
(iii) विशिष्टता लिये हुए उत्पाद-विशिष्ट उत्पाद वे उत्पाद होते हैं जिनके कुछ विशेष लक्षण होते हैं, जिसके कारण इनको विशेष रूप से खरीदना चाहते हैं। इनके ब्रांड को अत्यधिक पसन्द करते हैं तथा इनके क्रेता भी बड़ी संख्या में होते हैं। ऐसे उत्पादों को खरीदने में क्रेता भी अधिक समय एवं श्रम लगाते हैं। उदाहरण के लिए माना कोई दुर्लभ पेंटिंग या प्राचीन मूर्ति को खरीदने के लिए कुछ लोग अधिक समय, श्रम करने तथा दूर-दूर की यात्रा तक को तैयार हो जाते हैं। ऐसी वस्तुओं की माँग तुलना में बेलोच होती है। अर्थात् यदि मूल्यों में वृद्धि भी होती है तो भी माँग घटती नहीं है।
इस प्रकार विशिष्ट उत्पादों की माँग सीमित होती है, उत्पाद महंगे होते हैं। इनकी बिक्री कम ही स्थानों पर उपलब्ध होती है। बहुत से विशिष्ट उत्पादों के लिए बिक्री के पश्चात् की सेवाओं का बहुत महत्त्व है।
(iv) उत्पाद की लागत मूल्य निर्धारण के तत्त्व के रूप में जब भी किसी ग्राहक द्वारा कोई उत्पाद खरीदा जाता है तो इसके लिए उसे कुछ धन-राशि का भुगतान करना होता है। यह धन-राशि वह कुल मूल्य है जो ग्राहक उत्पाद को प्राप्त करने अथवा उसका उपयोग करने के बदले में चुकाता है। इसे उत्पाद का मूल्य कहते हैं। इसी प्रकार से सेवाओं के बदले में जो धन-राशि चुकता की जाती है वहाँ उन सेवाओं का मूल्य होता है। जैसे परिवहन सेवा के बदले भाड़ा, बीमा पॉलिसी का प्रीमियम। किसी भी फर्म द्वारा वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में मूल्य निर्धारण का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
मूल्य निर्धारित किये बिना उत्पाद बाजार में आ ही नहीं सकता है। मूल्य निर्धारण कई बार उत्पाद की माँग के नियामक का कार्य करता है। सामान्यतः यह देखा गया है कि किसी उत्पाद की कीमत में वृद्धि से उसकी माँग घट जाती है और कीमत के घटने से माँग में वृद्धि हो जाती है। मूल्य निर्धारण प्रतियोगिता के लिए एक प्रभावी हथियार माना जाता है। फर्म की आयगत प्राप्ति एवं लाभ को प्रभावित करने वाला यह एकमात्र महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है। अधिकांश विपणनकर्ता अपनी वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य निश्चित करने को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं।
(v) भण्डारण-भण्डारण वस्तुओं को संग्रहित करने एवं वर्गों में विभक्त करने का कार्य है जिससे समय उपयोगिता का सृजन होता है। भण्डारण का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं को उचित स्थान पर रखना एवं उनके संग्रहण की व्यवस्था करना है। कच्चे माल को खरीदने से लेकर तैयार माल को बेचने तथा उसके उपभोग में लेने के समय तक कुछ समय लग जाता है। इस अवधि में माल को सुरक्षित रखने तथा समय पर उपलब्ध कराने के लिए भण्डारण की आवश्यकता होती है। सामान्यतया किसी कम्पनी के जितने अधिक भण्डार-गृह होंगे ग्राहकों के पास विभिन्न स्थानों पर माल पहुँचने में उतना ही कम समय लगेगा लेकिन भण्डारण की उतनी ही लागत बढ़ जायेगी और भण्डार-गृह यदि कम संख्या में होंगे तो इसके विपरीत होगा। अतः व्यावसायिक संस्था को भण्डारण की लागत तथा ग्राहक की सेवा स्तर में सन्तुलन बनाये रखना पड़ता है तभी वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकती है।
(vi) प्रवर्तन मिश्र-सामान्यतः विपणनकर्ता अपनी कम्पनी के उत्पादों के सम्बन्ध में ग्राहकों को सूचित करने एवं खरीदने के लिए प्रेरित करने के लिए प्रवर्तन की विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करता है। इन तकनीकों में विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय, विक्रय संवर्द्धन एवं प्रचार मुख्य हैं। इन तकनीकों को ही प्रवर्त. मिश्र के तत्त्व के नाम से जाना जाता है। विपणनकर्ता द्वारा प्रवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उनके विभिन्न मिश्रणों का उपयोग किया जा सकता है। जो कम्पनियाँ उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन कर रही हैं वे विज्ञापन का अधिक प्रयोग कर सकती हैं। जो कम्पनियाँ औद्योगिक वस्तुओं का विक्रय कर रही हैं वे व्यक्तिगत विक्रय का अधिक उपयोग कर सकती हैं । व्यावसायिक संस्था इन तकनीकों का किस प्रकार और कितना उपयोग करे यह मुख्य रूप से उसके बाजार की प्रकृति, वस्तु की प्रकृति, कम्पनी के प्रवर्तक कार्यक्रमों का बजट तथा प्रवर्तन के उद्देश्य आदि पर निर्भर है।
(vii) प्रचार-प्रचार एक गैर-वैयक्तिक सम्प्रेषण का साधन है। इसके लिए किसी के द्वारा भुगतान नहीं किया जाता है। जब भी किसी उत्पाद अथवा सेवा के सम्बन्ध में जन समाचार माध्यमों के पक्ष में समाचार आता है तो इसे प्रचार कहते हैं। उदाहरण के लिए यदि एक कार का निर्माता एक ऐसी कार विकसित करने में सफलता प्राप्त कर लेता है जो पैट्रोल के स्थान पर पानी से चलती है और टी.वी., रेडियो अथवा समाचार पत्र समाचार के रूप में इसे प्रसारित अथवा प्रकाशित करे तो इसे प्रचार कहा जायेगा। क्योंकि कार का निर्माता समाचार माध्यमों द्वारा इस उपलब्धि की सूचना देने से लाभान्वित होगा।
लेकिन उसे इसकी कोई कीमत नहीं चकानी होगी, क्योंकि प्रचार में सूचना एक स्वतन्त्र स्रोत के माध्यम से दी जाती है जैसे कि प्रेस द्वारा समाचार, कहानी अथवा झलकी के रूप में सन्देश विज्ञापन में दिये गये सन्देश की तुलना में अधिक विश्वसनीय माना जाता है। यह उन लोगों तक भी पहुँचता है जो अन्यथा भुगतान द्वारा सम्प्रेषण पर ध्यान नहीं देते हैं। लेकिन प्रवर्तन माध्यम के रूप में यह विपणन फर्म के नियन्त्रण में नहीं होता है। साथ ही समाचार माध्यम सूचना के केवल उस भाग का प्रसार करते हैं जो समाचार के योग्य होते हैं तथा जो निश्चित क्षेत्र में किसी प्रकार की उपलब्धि माने जाते हैं।
(viii) लेबलिंग-उत्पाद के पैकेट के ऊपर चिपकी पर्ची या टैग पर बहुत-सी जानकारी होती है जैसे उत्पाद का नाम, रेखाचित्र, प्रयोग का तरीका, बेचने का अधिकतम मूल्य आदि । इसको लेबल कहा जाता है। यह उत्पाद की पहचान तथा जानकारी में सहायक सिद्ध होती है। इससे ग्राहकों को न केवल उसकी पहचान होती है वरन् कुछ जानकारियाँ भी प्राप्त होती हैं। उत्पाद के लेबल साधारण टैगफार्म में आ सकते हैं जैसे कि स्थानीय उत्पाद जैसे दालें, चावल अथवा नमकीन फुटकर व्यापारियों द्वारा पैक किये जाते हैं। कभी-कभी उत्पाद पर बड़ा लेबल लगाया जाता है जिससे अधिक सूचनाओं को दिखाया जाता है। लेबल उत्पाद अथवा ब्रांड की पहचान है। यह अपने मूल स्तर पर उन सूचनाओं का संग्रह है जिसे ग्राहकों तक पहुँचाना होता है । इसके द्वारा उन सूचनाओं को भी दिया जाता है जिन्हें देना निर्माताओं के लिए कानूनन जरूरी होता है।
प्रश्न 23.
विपणन की परिभाषा दीजिए। यह विक्रय से किस प्रकार भिन्न है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन का अर्थ एवं परिभाषाएँपरम्परागत रूप में विपणन को उन व्यावसायिक क्रियाओं का निष्पादन माना जाता है जिनके कारण वस्तु एवं सेवाएँ उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुँचती हैं। अन्य शब्दों में, वस्तु एवं सेवाओं को उत्पादक से उपभोक्ता तक ले जाने के लिए कई क्रियाएँ करनी होती हैं जैसे उत्पाद का रूपांकन अथवा व्यापार, पैकेजिंग, भण्डारण, परिवहन, ब्रांडिंग, विज्ञापन एवं मूल्य निर्धारण। इन सभी क्रियाओं को विपणन कहते हैं।
व्यापक अर्थ में, विपणन मात्र उत्पादन के बाद की ही क्रिया नहीं है। इसमें कई वे क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं जो वस्तुओं के वास्तविक उत्पादन से पूर्व की जाती हैं तथा उनके विक्रय के पश्चात् भी जारी रहती हैं।
उदाहरण के लिए उपभोक्ता की आवश्यकता की पहचान करना, उत्पादन के विकास के लिए सूचना एकत्रित करना, उपयुक्त उत्पाद पैकेज का रूपांकन करना तथा ब्रांड नाम देना आदि ऐसी क्रियाएँ हैं जिन्हें वास्तविक उत्पादन को प्रारम्भ करने से पहले किया जाता है। इसी प्रकार बिक्री की पुनरावृत्ति के लिए ग्राहकों से अच्छे सम्बन्धों के लिए कई क्रियाएँ की जाती हैं।
वर्तमान में विपणन एक सामाजिक क्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोग वस्तु एवं सेवाओं का मुद्रा अथवा किसी ऐसी वस्तु में विनिमय करते हैं जिसका कुछ मूल्य है।
फिलिप कोटलर के अनुसार, “विपणन एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके अनुसार लोगों के समूह उत्पादों का सृजन कर उन वस्तुओं को प्राप्त करते हैं जिनकी उनको आवश्यकता है तथा उन वस्तु एवं सेवाओं का स्वतन्त्रता से विनिमय करते हैं जिनका कोई मूल्य है।"
स्टेण्टन के अनुसार, “विपणन उन समस्त आपसी प्रभावकारी व्यावसायिक क्रियाओं की सम्पूर्ण प्रणाली है जो विद्यमान अथवा भावी ग्राहकों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करने वाली वस्तुओं अथवा सेवाओं का नियोजन करने, उनका मूल्य निर्धारण करने, उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए की जाती है।"
इस प्रकार विपणन एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसको लोग बातचीत कर दूसरों को एक विशेष प्रकार से व्यवहार के लिए प्रेरित करते हैं।'
विपणन तथा विक्रय में अन्तर विपणन तथा विक्रय में अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. प्रक्रिया का भाग-विपणन विक्रय से कहीं अधिक व्यापक शब्द है जिसमें कई क्रियाएँ सम्मिलित हैं जैसे ग्राहकों की आवश्यकताओं की पहचान करना, इनकी पूर्ति के लिए उत्पाद को विकसित करना, मूल्यों का निर्धारण करना एवं सम्भावित क्रेताओं को इनके क्रय के लिए तैयार करना। जबकि विक्रय विपणन प्रक्रिया का केवल अंग मात्र है तथा इसमें वस्तुओं का अधिग्रहण एवं स्वामित्व विक्रेता से क्रेता को हस्तान्तरित होता है।
2. उद्देश्य-विपणन का उद्देश्य ग्राहकों की इच्छाओं एवं आवश्यकताओं की अधिकतम सन्तुष्टि पर जोर देना होता है, जबकि विक्रय का उद्देश्य या केन्द्रबिन्दु मुख्यतः वस्तुओं का स्वामित्व अधिकार एवं अधिग्रहण का विक्रेता से उपभोक्ता उपयोगकर्ता को हस्तान्तरण होता है।
3. अधिकतम जोर-विपणन में ग्राहक की सन्तुष्टि द्वारा लम्बी अवधि में लाभ में वृद्धि करने पर अधिक जोर दिया जाता है, जबकि विक्रय में अधिकतम विक्रय के द्वारा अधिकतम लाभ अर्जित करने पर जोर दिया जाता है।
4. क्रियाओं का प्रारम्भ एवं अन्त-विपणन क्रियाएँ वस्तु के उत्पादन से काफी पहले प्रारम्भ हो जाती हैं तथा वस्तुओं के विक्रय के पश्चात् भी चलती रहती हैं, जबकि विक्रय क्रियाएँ उत्पाद के विकसित करने के पश्चात् प्रारम्भ होती हैं।
5. महत्त्व-विपणन में ग्राहक की आवश्यकतानुसार उत्पाद एवं अन्य रणनीतियों के विकास का प्रयत्न किया जाता है, जबकि विक्रय में ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालने पर जोर दिया जाता है।
6. रणनीति-विपणन में एकीकृत विपणन कार्यों को किया जाता है यथा उत्पाद के सम्बन्ध में रणनीति, प्रवर्तन मूल्य निर्धारण तथा वस्तुओं का वितरण, जबकि विक्रय में प्रवर्तन तथा तैयार करने के प्रयत्न सम्मिलित हैं।
7. अवधारणा-विपणन विस्तृत अवधारणा है, जबकि विक्रय संकुचित अवधारणा है।
8. ग्राहक सन्तुष्टि-विपणन में केवल उन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जो ग्राहकों की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट कर सकें, जबकि विक्रय में ग्राहक सन्तुष्टि पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।