These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 4 प्राणि जगत will give a brief overview of all the concepts.
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→ वर्गीकरण के आधार (Basis of Classification):
मूलभूत लक्षण जैसे संगठन के स्तर, सममिति, कोशिका संगठन, गुहा, खण्डीभवन, पृष्ठरज्जु आदि प्राणि जगत के वर्गीकरण के आधार हैं। इन लक्षणों के अतिरिक्त कई ऐसे भी लक्षण हैं जो संघ या वर्ग के विशिष्ट लक्षण होते हैं।
→ सममिति (Symmetry):
प्राणी को सममिति के आधार पर निम्न प्रकार से श्रेणीबद्ध किया गया है
→ द्विकोरकी (Diploblastic):
जिन जन्तुओं में एक्टोडर्म व एण्डोडर्म नामक दो जनन स्तर पाये जाते हैं उन्हें द्विकोरकी या द्विस्तरीय जन्तु कोशिका कहते हैं।
→ त्रिकोरकी (Triploblastic):
जिन जन्तुओं मे एक्टोडर्म, एण्डोडर्म व मीसोडर्म नामक तीन जनन स्तर पाये जाते हैं उन्हें त्रिकोरकी या त्रिस्तरीय जन्तु कहते हैं। उदाहरण टीनिया सोलियम।
→ देहगुहा (Coclom):
इसके आधार पर जन्तुओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है
→ खण्डीभवन (Segmentation):
कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ओर श्रेणीबद्ध खण्डों में विभाजित रहता है, जिनमें कुछेक अंगों की क्रमिक पुनरावृत्ति होती है। उस प्रक्रिया को खण्डीभवन कहते हैं। उदाहरण केंचुआ।
→ पृष्ठ रज्जु (Notochord):
→ संघ पोरीफेरा (Phylum Porifera):
इस संघ के प्राणियों को सामान्यतः स्पंज कहते हैं। ये बहुकोशिक प्राणी होते हैं तथा कशाभी कीपकोशिका (कोएनोसाइट) मुख्य लक्षण हैं।
→ संघ सीलेन्टरेटा (Phylum Coelenterata):
इन प्राणियों में स्पर्शक दंश कोशिका पाई जाती है। ये सामान्यतया जलीय, स्थिर या स्वतंत्र तैरने वाले होते हैं । दंश कोशिका स्थिरक, रक्षा तथा शिकार पकड़ने में सहायक है।
→ संघ टीनोफोरा (Phylum Ctenophora):
संघ टीनोफोरा को सामान्यतः समुद्री अखरोट या कंकाल जैली कहते हैं । ये सभी समुद्रवासी अरीय सममिति, द्विकोरक जीव होते हैं । शरीर में आठ बाह्य पक्ष्माभी कंकाल पट्टिका होती है जो चलन में सहायता करती है। जीवसंदीप्ति इस संघ की मुख्य विशेषता हैं ।
→ संघ प्लेटीहेल्मिन्थीज (Platyhelminthes):
चपटे कृमिप्राणियों का शरीर चपटा तथा द्विपार्श्व सममिति वाला होता है। परजीवी प्राणी में अंकुश तथा चूषक पाये जाते हैं। ज्वाला कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जन क्रिया होती है। ये प्राणी द्विलिंगी होते हैं।
→ संघ एस्केलमिन्थीज (Phylum Aschelminthes):
गोल कृमि--इन्हें गोल कृमि कहते हैं। ये द्विपार्श्व सममिति, त्रिकोरकी तथा कूटप्रगुही प्राणी होते हैं। इनका शरीर संगठन अंगतन्त्र स्तर का है। प्राणी एकलिंगी होते हैं।
→ संघ एनेलिडा (Phylum Annelida):
इस संघ के प्राणी त्रिकोरकी क्रमिक पुनरावृत्ति, विखण्डित, खण्डित तथा गुहीय प्राणी होते हैं। इनका शरीर सतह स्पष्टतः खण्ड अथवा विखण्डों में बंटा होता है। उत्सर्जन अंग नेफ्रिडिया होते हैं।
→ संघ आर्थोपोडा (Phylum Arthropoda):
यह प्राणी जगत का सबसे बड़ा संघ है जिसमें कीट समाहित हैं। इस संघ के प्राणियों का शरीर काइटिनी बाह्य कंकाल से ढका रहता है। इनमें संधियुक्त पाद पाये जाते हैं। परिसंचरण तंत्र खुला तथा उत्सर्जन मैलपिगी नलिकाओं द्वारा होता है।
→ संघ मोलस्का (Phylum Mollusca):
यह दूसरा सबसे बड़ा प्राणी संघ है। ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय होते हैं। शरीर कोमल होता है लेकिन Caco, के कठोर आवरण से ढका होता है। रैडुला पाया जाता है। क्लोम श्वसन व उत्सर्जन में सहायक एकलिंगी। परिवर्धन सामान्यतः लार्वा के द्वारा होता है।
→ संघ एकाइनोडर्मेटा (Phylum Echinodermata):
इनकी त्वचा कांटेदार होती है। इन प्राणियों का मुख्य लक्षण जल संवहन तन्त्र होता है। ये समुद्रवासी तथा अंगतन्त्र स्तर का संगठन होता है। सामान्यतः मुख अधर तल पर एवं मलद्वार पृष्ठ तल पर होता है। प्राणी त्रिकोरकी तथा प्रगुही प्राणी होते हैं। प्राणी एकलिंगी होते हैं।
→ संघ हेमीकार्डेटा (Phylum Hemichordata):
संघ के प्राणी कृमि के समान तथा समुद्री जीव हैं। ये द्विपार्श्व रूप से सममित, त्रिकोरकी तथा प्रगुही प्राणी हैं। इनका शरीर बेलनाकार तथा शुंड तथा कॉलर लम्बे वक्ष में विभाजित होता है। लार्वा टॉनेरिया।
→ संघ कार्डेटा (Phylum Chordata):
कशेरुकी संघ के प्राणियों में तीन मूलभूत लक्षण पाये जाते हैं
→ वर्ग साइक्लोस्टोमेटा (Class Cyclostomata):
ये एग्नेथा का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये अत्यन्त प्राचीन कार्डेटा होते हैं तथा मछलियों के बाह्य परजीवी होते हैं। नैथोस्टोमेटा को दो अधिवर्ग में विभाजित किया गया है
→ वर्ग कॉण्डिक्थीज (Class Chondrichthyes):
इनमें अन्त:कंकाल उपस्थित होता है। क्लोम छिद्र प्रच्छद से ढके नहीं होते हैं। जबड़े शक्तिशाली होते हैं । वायुकोष अनुपस्थित/ हृदय दो प्रकोष्ठ वाला होता है। सभी असमतापी प्राणी होते हैं। एकलिंगी प्राणी होते हैं।
→ वर्ग ओस्टिकथीज (Class Osteichthyes):
इस वर्ग की मछलियाँ लवणीय व अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाई जाती हैं। अन्तःकंकाल अस्थिल होता है। क्लोम छिद्र प्रच्छद से ढके होते हैं। वायुकोष उपस्थित/प्राणी एकलिंगी निषेचन बाह्य।
→ वर्ग एंफिबिया (Class Amphibia):
उभयचर—ये जल व स्थल दोनों आवासों में निवास करते हैं। इनका शरीर सिर व धड़ में विभक्त होता है। इनमें अवस्कर पाया जाता है। श्वसन क्लोम, फुफ्फुस तथा त्वचा के द्वारा होता है। हृदय में तीन प्रकोष्ठ पाये जाते हैं। असमतापी होते हैं। प्राणी एकलिंगी मेंढक का लार्वा टेडपोल कहलाता है।
→ वर्ग सरीसृप (Class Reptilia):
इस वर्ग के प्राणी सरक या रेंगकर गमन करते हैं। इनका शरीर शुष्क शल्क युक्त त्वचा से ढका रहता है। इसमें किरेटिन द्वारा निर्मित बाह्य त्वचीय शल्क पाये जाते हैं, ये असमतापी होते हैं, निषेचन आंतरिक होता है।
→ वर्ग एवीज (Class Aves):
पक्षी—इस वर्ग का मुख्य लक्षण शरीर के ऊपर पंखों की उपस्थिति तथा उड़ने की क्षमता रखते हैं । अग्र पाद पंखों में रूपान्तरित हो गये हैं। पश्च पाद पर शल्क उपस्थित होते हैं जो रूपान्तरित होकर चलने व तैरने तथा पेड़ों की शाखाओं को पकड़ने में सहायता करते हैं। अन्त:कंकाल की लम्बी अस्थियाँ खोखली होती हैं तथा वायुकोष युक्त होती हैं। प्राणी समतापी होते हैं। मूत्राशय का अभाव होता है। चोंच होती है लेकिन चोंच में दांत नहीं होते हैं।
→ वर्ग स्तनधारी (Class Mammalia):
इस वर्ग का सबसे मुख्य लक्षण दूध उत्पन्न करने वाली ग्रन्थि (स्तन ग्रन्थि) है जिनसे बच्चे पोषण प्राप्त करते हैं। बाह्य कर्ण तथा त्वचा पर बाल पाये जाते हैं। जबड़े में विभिन्न प्रकार के दांत जो गर्तदन्ती होते हैं । हृदय चार प्रकोष्ठ युक्त। निषेचन आन्तरिक। कुछ को छोड़कर बच्चे जन्म देते हैं (जरायुज) तथा परिवर्धन प्रत्यक्ष होता है।
→ नाल तन्त्र (canal system) का पाया जाना स्पंज का विशिष्ट लक्षण है।
→ फाइसेलिया तैराकों के लिए सबसे अधिक खतरनाक सीलेन्ट्रेट्स है।
→ टीनिया में आहारनाल नहीं होती है, क्योंकि यह पचित भोजन का अवशोषण देह की बाहरी सतह से करता है
→ मांसाहारी व्यक्ति में फीता कमि टेप वर्म होने की सम्भावना होती है।
→ संघ प्लेटीहैल्मिन्थीज में उत्सर्जन ज्वाला कोशिकाओं (flamecells) द्वारा होता है।
→ वूचेरिया का वाहक क्यूलेक्स मच्छर है। वूचेरिया द्वारा हाथी पाँव रोग होता है।
→ एनेलिडा के सदस्यों का शरीर नली के भीतर नली के समान होता है।
→ बिच्छू व मकड़ियों में श्वसन बुक लंग (book lung) द्वारा होता है।
→ बिच्छू (Scorpion) जरायुज (viviparous) जन्तु है।
→ डेन्टेलियम (Dentalium) को हाथी दाँत कवच कहते हैं।
→ लोलिगो सबसे बड़ा अकशेरुक है।
→ इकाइनोडर्मेटा में जल संवहनी तन्त्र (water vascular system) व हीमल तन्त्र पाया जाता है।
→ कार्डेटा जन्तु जगत का सबसे अन्तिम संघ (phylum) है।
→ कार्डेटा संघ में सर्वाधिक जीवित सदस्य मछली वर्ग (pisces) व सबसे कम सदस्य उभयचर वर्ग के हैं।
→ कार्डेटा संघ का सबसे बड़ा प्राणी (biggest animal) ब्लू व्हेल है एवं कार्डेटा का सबसे छोटा प्राणी पन्डाका (pandaka) मछली है।
→ मछली वर्ग में वीनस हृदय (venous heart) पाया जाता है।
→ राना टिग्रीना (Rana tigrina) को इण्डियन बुल फ्रोग (Indian bull frog) कहते हैं।
→ दक्थियोफिस (Ichthvophis) को अन्धा कर्मी (blind worm) कहते हैं। रेकोफोरस (Rhacophorous) उड़ने वाला मेंढक (flying frog) कहलाता है।
→ हायला (Hyla) वृक्षवासी मेंढक (tree frog) है।
→ एलाइटीज मेंढक को मिडवाइफ टोड (midwife toad) कहते हैं।
→ राना गोलियथ (Rana goliath) सबसे बड़ा मेंढक है।
→ कछुए का जीवन काल सबसे अधिक होता है। अजगर सबसे बड़ा साँप है जो विषहीन होता है। सभी समुद्रीय साँप विषैले होते हैं व अलवणीय जल के साँप विषहीन (non-poisionous) होते हैं। मानव का वैज्ञानिक नाम होमोसेपियन्स है।
→ स्तनियों की RBC केन्द्रकविहीन (non-nucleated) होती है
→ परन्तु ऊँट (camel) एवं लामा में केन्द्रक उपस्थित रहता है।
→ टारपीडो (Torpedo) मछली में विद्युत अंग (electric organs) पाये जाते हैं जो 50-60 बोल्ट तक विद्युत उत्पन्न करते हैं जो मनुष्य के लिए घातक हो सकता है।