These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 21 तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय will give a brief overview of all the concepts.
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→ तन्त्रिका तन्त्र (Nervous System):
यह एक द्रुतगामी सेवा' (High Speed or No Delay Service) की भांति वातावरणीय परिवर्तनों की सूचना को दूर-संचार तारों (Telecommunication Wires) की भांति तन्त्रिकाओं द्वारा विद्युत प्रेरणाओं या आवेगों (Electricals Impulses) के रूप में मिली या प्राप्त सेकण्डों में प्रसारित करके शरीर की उन सभी प्रतिक्रियाओं का संचालन करता है जिनका तुरन्त होना आवश्यक होता है।
→ तंत्रिकीय तंत्र ऐसे व्यवस्थित जाल तंत्र गठित करता है, जो त्वरित समन्वय हेतु बिंदु दर बिंदु जुड़ा रहता है। अंतःस्रावी तंत्र हारमोन द्वारा रासायनिक समन्वय बनाता है। तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण तन्त्रिका ऊतक से होता है जो प्रमुख रूप से तन्त्रिका कोशिकाओं (Nerve Cells or Neuron) व न्यूरोग्लिया (Neuroglea) से बनता है। मनुष्य के तन्त्रिका तन्त्र को दो भागों में बांटा गया है
→ केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र (Central Nervous System):
यह तन्त्र दो अंगों मस्तिष्क (Brain) व मेरुरज्जु (Spinal Cord) से मिलकर बना होता है।
→ परिधीय तत्त्न्न्त्रिका तन्र (Peripheral Nervous System):
मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तन्त्रिकायें (Cranial Nerves) तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तन्त्रिकायें (Spinal Nerves) मिलकर परिधीय तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण करती हैं।
→ स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र-शरीर क्रिया अथवा संरचना एवं कार्यिकी की दृष्टि से यह दो भागों में बांटा गया है
→ मस्तिष्क की संरचना (Structure of Brain):
मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे कोमल अंग है जिसका भार लगभग 1.4 कि.ग्रा. होता है। यह अस्थियों से निर्मित कपाल में सुरक्षित होता है। मस्तिष्क के चारों ओर तीन झिल्लियां पाई जाती हैं। बाह्य झिल्ली को दृढ़तानिका (Duramater), मध्य झिल्ली को जालतानिका (Arachnoid) तथा आन्तरिक झिल्ली को मृदुतानिका (Piamater) कहते हैं।
→ मनुष्य का मस्तिष्क तीन भागों में विभेदित किया गया है
(a) अग्र मस्तिष्क (Fore Brain):
अग्र मस्तिष्क में घ्राण पालियाँ, प्रमस्तिष्क गोलार्ध, अग्र मस्तिष्क पश्च अथवा डाइएनसेफैलॉन आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
(b) मध्य मस्तिष्क या मीसेनसेफेलोन-यह चार पिण्डों (Optic lobes) से बना होता है जिन्हें सम्मिलित रूप से कार्पोराक्वाड्री जेमिना कहते हैं।
(c) पश्च मस्तिष्क या रोम्बेनसेफेलॉन-तीन प्रमुख भागों में बँटा रहता है
ऊतकीय दृष्टि से मस्तिष्क के प्रत्येक भाग में एवं गुहा के चारों ओर दो प्रमुख स्तरों अर्थात् धूसर द्रव्य एवं श्वेत द्रव्य की बनी दीवार पाई जाती है। द्रव्य नानमेड्यूलेटेड तन्त्रिका तन्तु तथा बहुत अधिक तन्त्रिका कोशिकाओं का बना होता है।
→ मनुष्य के मस्तिष्क के कार्य
→ मेरु तन्त्रिकाओं की संख्या कशेरुक दण्ड में उपस्थित कशेरुकाओं की संख्या के बराबर 31 जोड़ी होती हैं । ये सभी तन्त्रिकाएं मिश्रित प्रकार की होती हैं।
→ मनुष्य में कपाल तन्त्रिकाओं के 12 जोड़े पाये जाते हैं। ये तन्त्रिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
→ स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र-शरीर की आन्तरिक पर्यावरण के नियमन एवं संधारण से सम्बद्ध तन्त्रिका तन्त्र को स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र कहते हैं। यह हृदय वाहिनियों, आमाशय, आन्त्र, गर्भाशय, मूत्राशय, फेफड़े, स्वेद ग्रन्थियों, लार ग्रन्थियों, जठर ग्रन्थियों, यकृत, अग्न्याशय, नलिकाविहीन ग्रन्थियों इत्यादि की सक्रियता या अनैच्छिक क्रियाओं का नियन्त्रण करता है।
→ खतरे के समय अनुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र विशेष रूप से क्रियाशील हो जाता है।
→ सरल प्रतिवर्ती क्रियाएँ-प्रायः जन्म से ही उपस्थित व स्वाभाविक होती हैं । इनका संचालन मेरुरज्जु द्वारा नियन्त्रित किया जाता है। अनुबंधित प्रतिवर्ती क्रियाएँ-कुछ ऐसी प्रतिवर्ती क्रियाएँ भी होती हैं जिन्हें जन्तु अपने अनुभव एवं निरन्तर अभ्यास से उपार्जित करता है। ऐसी प्रतिवर्ती क्रियाएँ अनुबंधित प्रतिवर्ती क्रियाएँ कहलाती हैं, जैसे-साइकिल चलाना।
→ सिनैप्स (Synapse):
दो न्यूरॉन्स के बीच वाले सन्धि स्थानों को (सर चार्ल्स शैरिंगटन) ने युग्मानुबंधन या सिनैप्स नाम दिया।
→ तन्त्रिका आवेग (Nerve Impulse):
उद्दीपन के कारण तन्त्रिका कोशिकाओं का उत्तेजित होना तन्त्रिका आवेग कहलाता है। मनुष्य में तन्त्रिकीय आवेग का संचरण 45 मीटर/सेकण्ड होता
→ विराम कला विभव-स्थिर तन्त्रिकीय झिल्ली के दोनों ओर का विद्युत विभवांतर विरामकला विभव कहलाता है। सक्रिय विभव-तन्त्रिकाक्ष झिल्ली पर विद्युत विभवांतर प्रेरित उद्दीपन द्वारा संचारित होता है। इसे सक्रिय विभव कहते हैं।
→ ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense Organs) या ग्राही अंग (Receptor):
जन्तुओं के शरीर में ऐसे अंग पाये जाते हैं जो बाह्य वातावरण तथा आन्तरिक वातावरण से उद्दीपन (Stimuli) ग्रहण करते हैं और इन उद्दीपनों को ये अंग संवेदनाओं (Sensation) में बदल देते हैं, इन्हीं अंगों को ग्राही अंग या ज्ञानेन्द्रियाँ (Sense Organs) कहते हैं।
→ बाह्य संवेदी अंग (Exteroreceptors):
ग्राही अंग जो बाह्य वातावरण से उद्दीपन ग्रहण करते हैं, उन्हें बाह्य संवेदी अंग (External or Exteroreceptors) कहते हैं, जैसे आँख (eye), कर्ण (ear)।
→ प्रकाशग्राही अंग या नेत्र (Photoreceptors or Eye)मनुष्य में नासिका के ऊपरी भाग में प्रत्येक पार्श्व में एक-एक नेत्र स्थित होते हैं। नेत्र गोलक की खड़ी काट में उसकी आन्तरिक रचना आसानी से दिखाई पड़ती है। इसकी दीवार तीन स्तरों से बनी होती है
→ रेटिना (Retina):
सबसे भीतरी स्तर होता है। इसमें तीन स्तर होते हैं
→ शलाकाओं (Rods):
द्वारा प्रकाश एवं अंधकार के भेद का ज्ञान होता है। इसके विपरीत शंकुओं (Cones) द्वारा रंग भेद का ज्ञान होता है।
→ अंध बिन्दु (Blind Spot):
जिस स्थान पर दुक तन्त्रिका नेत्र गोलक से बाहर निकलती है, उस स्थान पर शलाका एवं शंकु अनुपस्थित होते हैं । इस स्थान पर प्रतिबिम्ब नहीं बनता है और यह स्थान अंध बिन्दु (Blind Spot) कहलाता है।
→ पीत बिन्दु (Yellow Spot):
प्रतिबिम्ब सबसे स्पष्ट इसी भाग पर बनता है। यह भाग मध्य क्षेत्र (Area Centralis) कहलाता है। इसका पीला रंग होने के कारण पीत बिन्दु (Yellow Spot) कहते हैं।
→ लेन्स (Lens):
रंगहीन, पारदर्शी व उभयोत्तल (Biconvex) होता है। लेन्स पर एक पारदर्शी एवं महीन संयोजी ऊतक का खोल होता है जिसे वीक्ष खोल (Lens capsule) कहते हैं।
→ नेत्र गोलक की गुहिकायें-नेत्र गोलक में लेन्स की उपस्थिति के कारण दो स्पष्ट गुहिकायें बन जाती हैं जिन्हें क्रमशः जलीय कक्ष (Aqueous Chamber) तथा काचाभ द्रव कक्ष (Vitreous Chamber) कहते हैं। इन दोनों कक्षों में क्रमशः नेत्रोद या ऐक्वस ह्य मर (Aqueous Humour) तथा काचाभ द्रव (Vitreous Humour) भरा रहता है जो नेत्र गुहा में निश्चित दबाव का नियमन करते हैं।
→ नेत्र की क्रिया-विधि-मनुष्य के रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिम्ब (Image) उल्टा, छोटा व वास्तविक बनता है। रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ संवेदित होकर दृक तन्त्रिकाओं द्वारा इस संवेदना को मस्तिष्क में पहुँचा देती हैं। मस्तिष्क में ही जन्तु को वस्तु का वास्तविक ज्ञान होता है।
→ समंजन (Accommodation):
वस्तु की दूरी के आधार पर, स्पष्ट देखने के लिये, नेत्र में लेन्स के व्यास में परिवर्तन कर फोकस दूरी को बदलने का समुचित प्रबन्ध होता है। इसी क्षमता को समायोजन (Accommodation) कहते हैं। एक नेत्री दृष्टि-जब एक ही वस्तु के दोनों आँखों में अलग-अलग प्रतिबिम्ब बनते हैं अर्थात् दो प्रतिबिम्ब बनते हैं तो उसे एक नेत्री दृष्टि कहते हैं। उदाहरण-मेंढक एवं खरगोश।
→ द्विनेत्री दृष्टि-इस प्रकार की दृष्टि में एक वस्तु का एक ही समय में दोनों नेत्र मिलकर एक ही प्रतिबिम्ब बनाते हैं । इस प्रकार नेत्रों में बने वस्तु के प्रतिबिम्ब एक ही मिल जाते हैं अतः एक वस्तु एक ही नजर आती है। उदाहरण—मानव।
→ श्रवण सन्तुलन अंग-स्तनधारियों में कर्ण या कान की संरचना सबसे अधिक जटिल होती है । यह ध्वनि तरंगों को ग्रहण करने के अतिरिक्त शरीर का सन्तुलन भी बनाये रखता है। मनुष्य के सिर पर दोनों ओर पार्श्व में एक जोड़ी कर्ण पाये जाते हैं।
→ प्रत्येक कर्ण के तीन भाग होते हैं—बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण तथा अन्तःकर्ण। प्रत्येक बाह्य कर्ण में एक नली के आकार का कर्ण मार्ग स्थित रहता है जो कर्ण पटह या टिम्पेनम तक जाता है । मध्य कर्ण में तीन कर्ण अस्थियाँ स्थित रहती हैं जिन्हें क्रमश: मैलियस, इन्कस तथा स्टेपीस कहते हैं।
→ अन्तः कर्ण को कलागहन या मेम्ब्रेनस लेबिरन्थ कहते हैं। प्रत्येक कलागहन में एक वेस्टीब्यूल तथा तीन अर्द्धचन्द्राकार नली होती हैं । वेस्टीब्यूल स्वयं यूट्रीकुलस तथा सैक्युलस नामक द्विकोषीय रचनाओं से बना होता है।
→ प्रत्येक अर्द्धचन्द्राकार नलिका का दूरस्थ सिरा फूलकर एम्पुला नामक रचना का निर्माण करता है। VIIIवीं घ्राण कपाल तन्त्रिका (Auditory Cranial Nerve) की शाखाएँ वेस्टीब्यूल, अर्द्धचन्द्राकार नालों तथा कोक्लिया की नली को जाती हैं।
→ कर्ण के यूट्रिकुलस, सैक्युलस व तीनों अर्द्धचन्द्राकार नलिकायें शरीर का संतुलन बनाये रखने का कार्य करती हैं। राइसनर (Reissner's Membrane) तथा आधार कला के कम्पन से कोर्टी अंग (Organ of Corti) संवेदी कोशिकाओं से कम्पन प्रेरणाएँ प्राप्त कर तन्त्रिका मस्तिष्क को पहुँचाती हैं।
→ वयस्क मनुष्य के मस्तिष्क का भार 1400 ग्राम होता है।
→ पायामेटर व एरेक्नॉइड आपस में मिलकर लेप्टोमेनिजेज का निर्माण करते हैं।
→ तन्त्रिका कोशिकाओं की लम्बाई एक फुट तक हो सकती है। भूख व तृप्ति केन्द्र हाइपोथेलेमस में स्थित होते हैं।
→ तन्त्रिकीय संचरण में एसिटिल कोलिन आवश्यक है।
→ प्रकाश संवेदना का तन्त्रिका आवेग में बदलना एक जैविक क्रिया हैं।
→ पारिस्थितिक प्रतिवर्ती क्रिया का अध्ययन सर्वप्रथम पैवलॉव ने किया। न्यूरोन में पाई जाने वाली निसल कणिकाएँ उत्सर्जन व पोषण में सहायक हैं।
→ मस्तिष्क में श्वसन केन्द्र मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित होता है। यदि वेगस तन्त्रिका की सप्लाई काट दें तो हृदय स्पंदन सामान्य रहती है।
→ ऐच्छिक व तीव्र श्वाश्वोच्छवास का तन्त्रिका आवेग प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध से होता है। मृग (Dear) में शरीर के अनुपात में सर्वाधिक बड़ी आँखें पाई जाती हैं।
→ मनुष्य में निमेषक झिल्ली अवशेषी रचना के रूप में पाई जाती है। इसे प्लीका सेमीन्यूलेरिस कहते हैं।
→ गाय, भैंस, बिल्ली, शेर, चीता आदि में कोराऍड परत चमकीली दिखाई देती है इसे टेपेटम ल्यूसिडियम कहते हैं।
→ मेंढक में केवल स्टेपीज पाई जाती है जबकि मनुष्य में सेलियस, इन्कस एवं स्टेपीज पाई जाती हैं।
→ गमन के समय सन्तुलन बनाये रखने में अन्त:कर्ण सहायक है।
→ हमारा कान 150-20,000 साइकिल/सेकण्ड की तरंग गति की तरंगों को सुन सकता है।
→ दृष्टि में प्रकाश को रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है।
→ सेरीबेलम को छोटा मस्तिष्क भी कहते हैं।
→ मानव में दृक पिण्ड ठोस होते हैं जिनमें दृक गुहा नहीं होती है।
→ बुद्धिमत्ता गुणांक (I.Q.) मानसिक उम्र और वास्तविक उम्र का अनुपात होता है जो 100 से गुणित होता है।
→ न्यूरोन में जन्म के बाद विभाजन बंद हो जाता है।
→ जब एक व्यक्ति शराब पीता है तो उसके पश्च मस्तिष्क का सेरीबेलम अनियंत्रण में उत्तरदायी होता है।
→ मानव में कॉर्पस कैलोसम का विकास न होना या कम विकास होना एक न्यूरोलोजिकल बीमारी उत्पन्न करता है, जिसे साइजोफ्रिनिया कहते हैं।
→ EEG इलेक्ट्रोएनसेफेलोग्राम सेरीब्रल कार्टेक्स का विद्युतीय निरूपण EEG कहलाता है।
→ आँखों में अनियंत्रित गतियाँ, अन्तःकर्ण की बीमारी मीनियर्स रोग के लक्षण हैं।
→ रात्रिचर जन्तु जैसे श्रू, हैज, रोडेन्टस (कुतरने वाले जन्तु) तथा चमगादड़ इत्यादि में कोन्स कोशिकाएँ नहीं पाई जाती हैं।
→ मक्खियाँ पराबैंगनी प्रकाश में भी देख सकती हैं।
→ सामान्य नेत्रों को या दोष रहित नेत्रों को इमीट्रापिक नेत्र (emmetropic eye) कहते हैं।
→ रंगीन दृष्टि मछलियों, सरीसृपों तथा उभयचरों में पाई जाती है।
→ मोनोक्यूलर विजन-मेंढक, खरगोश व घोड़े में पाया जाता है जबकि बाईनोक्यूलर विजन-प्राइमेटस, कपि व बन्दरों में पाया जाता है।
→ स्टाई-सीबेशियस ग्रन्थियों में संक्रमण, जिससे आँखों में जलन होने लगती है।
→ एट्रापिन एक रासायनिक द्रव है जिसे चिकित्सक द्वारा आँख टेस्ट करने से पहले प्यूपिल के शिथिलिन हेतु उपयोग किया जाता है।
→ कॉर्निया ग्राफटिंग-कॉर्निया को मृत मनुष्य की आँख से निकाल सकते हैं। इसे संग्रहित कर सकते हैं। एक अन्य व्यक्ति की दृष्टि बनाये रखने के लिए प्रत्यारोपण भी किया जाता है।
→ कॉर्निया का प्रत्यारोपण सफल है क्योंकि इसमें रक्त वाहिनियाँ अनुपस्थित होती