These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय will give a brief overview of all the concepts.
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→ श्वसन (Respiration): वह क्रम है जिसमें O2, व CO2, का विनिमय होता है, रक्त द्वारा इन गैसों का परिवहन होता है तथा ऊर्जायुक्त पदार्थों के ऑक्सीकरण में कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग एवं CO2, का निर्माण किया जाता है।
C6H12O6 + 6O2 → 6CO2 + 6H2O + ऊर्जा
→ श्वसन अंग (Respiratory Organs): शरीर में श्वसन से सम्बन्धित अंग जो गैसों के विनिमय के लिए आवश्यक होते हैं उन्हें श्वसन अंग कहते हैं । विभिन्न श्वसनांग मिलकर श्वसन तंत्र (Respiratory System) बनाते हैं।
→ प्राणियों में गैसों के आदान-प्रदान के लिए चार प्रकार की संरचनाएँ पायी जाती हैं, जो निम्न हैं
→ नासिका-मनुष्य में दो नासाछिद्र होते हैं। इस अवस्था को द्विवासीय (Dirhynous) कहते हैं। दोनों नासामार्गों के बीच खड़ी पट्टी पायी जाती है जिसे नासापट्ट कहते हैं।
→ ग्रसनी (Pharynx): मुख ग्रासन गुहिका का पश्च भाग ग्रसनी कहलाता है, जो भोजन व श्वसन के लिए सामान्य मार्ग बनाता है।
→ स्वरयंत्र (Larynx): स्तनियों में ध्वनि उत्पादक अंग लैरिंक्स कहलाता है, यह श्वासनली के अग्र छोर पर स्थित होता है। इसकी भित्ति में चार उपास्थियाँ होती हैं
→ श्वासनली (Trachea):
→ ब्रोंकाई (Bronchi):
दायें तथा बायें ब्रोन्काई श्वासनली के द्विशारवन से बनते हैं तथा इनकी संरचना श्वासनली के समान .. होती है। प्रत्येक ब्रांकस (Bronchus) अपनी ओर के फेफड़े में प्रवेश करने के पश्चात् शाखाओं में बँट जाता है, इनको ब्रॉन्क्रिओल्स (Bronchioles) कहते हैं।
→ फेफड़े (Lungs):
मनुष्य में एक जोड़ी मुख्य श्वसन अंग हैं। ये कोमल, स्पंजी एवं गुलाबी रंग के होते हैं। फेफड़े प्लूरल गुहा (Pleural Cavity) में स्थित होते हैं । इसके ऊपर पाये जाने वाले आवरण को फुफ्फुसावरण (Pleura) कहते हैं।
→ श्वसन में निम्न चरण सम्मिलित हैं
→ संवातन अथवा श्वासोच्छ्वास (Breathing):
वायुमण्डल में शुद्ध वायु को फेफड़ों तक पहुँचाने एवं अशुद्ध वायु को फेफड़ों से बाहर निकालने की क्रिया को श्वासोच्छ्वास (Breathing) कहते हैं। यह दो चरणों में होती है
फेफड़ों में स्वयं फूलने व पिचकने की क्षमता नहीं होती है क्योंकि इनमें पेशियों का अभाव होता है। उपर्युक्त दोनों क्रियाएँ वक्षीय गुहा के आयतन के घटने-बढ़ने से पूरी होती हैं। इस कार्य को पसलियों से जुड़ी अन्तरापर्युक पेशियाँ एवं डायफ्राम करता है।
→ अन्तरापर्शक पेशियाँ (Inter-coastal Muscles):
प्रत्येक दो पसलियों के बीच दो प्रकार की अन्तरापर्युक पेशियाँ पाई जाती हैं
→ डायाफ्राम:
यह गुम्बदाकार संरचना होती है जो वक्ष गुहा व उदर गुहा के बीच स्थित होता है। इससे अरीय पेशियाँ जुड़ी होती हैं। इन पेशियों के संकुचन में डायाफ्राम चपटा हो जाता है व वक्षीय गुहा का आयतन चौड़ा हो जाता है।
→ संवातन की दर एवं गहराई को मष्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित श्वसन केन्द्र द्वारा शारीरिक कोशिकाओं की ऑक्सीजन आवश्यकतानुसार समायोजित की जाती है।
→ गैसीय विनिमय-फेफड़ों में ग्रहण की वायु के आंशिक दाबों में अन्तर होता है इसलिए विसरण द्वारा गैसीय विनिमय होता
ऑक्सीजन का परिवहन ऑक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में होता है। CO2, का परिवहन बाइकार्बोनेट्स, कार्बएमीनो यौगिकों एवं स्वतंत्र विलयन के रूप में होता है।
→ क्लोराइड शिफ्ट (Chloride Shift):
प्लाज्मा एवं RBC के बीच Cl- तथा HCO3, आयन के पारस्परिक आदान-प्रदान को क्लोराइड शिफ्ट कहते हैं।
→ कोशिका में आणविक-ऑक्सीजन अन्तिम हाइड्रोजन ग्राही के रूप में कार्य करती है तथा कार्बोनिक अम्लों के विकार्बोक्सीकरण द्वारा CO2, का निर्माण होता है।
→ श्वसन सम्बन्धी आयतन और क्षमताएँ-फेफड़ों के व्यावहारिक कार्यों को निर्धारित करने के लिए उनमें आयतन और क्षमताएँ पायी जाती हैं। इन्हें मापने के लिए स्पाइरोमीटर काम में लिया जाता है।
→ ऑक्सीहीमोग्लोबिन वियोजन वक्र:
हीमोग्लोबिन संतृप्ता व ऑक्सीजन के आंशिक दाब के मध्य सम्बन्ध को एक वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसे ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वियोजन वक्र कहते हैं। इसकी आकृति सिग्माकार (Sigmoid) अथवा S आकार की होती है।
→ श्वसन के विकार (Respiratory Disorders):
श्वसन सम्बन्धी निम्नलिखित विकार हैं
→ एक स्वस्थ मनुष्य एक मिनट में लगभग 12 से 16 बार सांस लेता है तथा 6000 से 8000 मिली. वायु प्रति मिनट लेता है।
→ नासा मार्गों की श्लेष्मिक कला में उपस्थित संवेदी कोशाओं के उद्दीपन के फलस्वरूप छींक (Sneezing) आती है।
→ फेफड़े वक्ष गुहा के जिस भाग में होते हैं उसे प्लरल गहा (Pleural Cavity) कहते हैं। यदि इनके बीच कहीं पर थोड़ासा तरल एकत्रित हो जाये तो श्वास क्रिया कठिन हो जाती है, इसे प्ल्यूरिसी (Pleurisy) कहते हैं।
→ मनुष्य में थाइरॉइड कार्टिलेज का अधर भाग फूलकर टेंटुआ या कण्ठमणि (Adams apple or Pomum adami) बनाता है।
→ मनुष्य में लगभग 75 करोड़ कूपिकाएँ पाई जाती हैं जिनकी कुल सतह 100 वर्गमीटर होती है।
→ डायफ्राम श्वसन के अतिरिक्त मूत्रत्याग (micturition), मलत्याग (defecation) एवं प्रसव (parturition) में भी मदद करता है।
→ जन्म के समय मनुष्य में श्वसन दर सबसे अधिक 35 प्रति मिनट होती है। श्वसन की क्रिया के नियंत्रण हेतु श्वास केन्द्र (respiratory centre) मस्तिष्क के मेड्यूला ऑब्लांगेटा में पाया जाता है।
→ असाधारण दशा से ही श्वास दर की तीव्रता को घटाने एवं बढ़ाने हेतु न्यूमोटोक्सिक केन्द्र होता है। वायुमण्डल में O2, की कमी से रक्त क्षीणता (anaemia) हो जाती है।
→ शरीर का ताप बनाये रखने हेतु आवश्यक ऊष्मा ATP से प्राप्त होती है। पुरुषों में स्वर पट्टियाँ (Vocal Cords) की लम्बाई 2.3 सेमी. तथा महिलाओं में 1.7 सेमी. होती है।
→ 6000 मीटर की ऊँचाई पर हवा का घनत्व काफी कम हो जाता है तथा 7000-7500 मीटर की ऊँचाई पर व्यक्ति को मूर्छा आने लगती है, इस कारण पर्वतारोही O2, के सिलेण्डर रखते हैं।
→ 11000 मीटर की ऊँचाई पर मनुष्य O2 के सिलेण्डरों की सहायता से भी जीवित नहीं रह सकता, इसी कारण हवाई जहाजों को वायुरुध (airtight) बनाया जाता है।
→ मनुष्य में 12 जोड़ी पसलियाँ एवं 11 जोड़ी अन्तरापथुक पेशियाँ (Inter-costal Muscles) पायी जाती हैं।
→ श्वसन की सामान्य दर (normal breathing) को यूप्नेइया (eupnea) कहते हैं।
→ कुछ समय हेतु श्वसन क्रिया का बन्द हो जाना एप्लेइया (apnea) कहलाता है।
→ श्वसन दर का सामान्य से कम होना हाइपोप्नेइया (hypopnea) कहलाता है।
→ श्वसन दर का सामान्य से अधिक होना हाइपरओप्नेइया (hyperopnea) कहलाता है।
→ कठिनता से श्वसन क्रिया का होना डिसप्नोइया (dyspnoea) कहलाता है।
→ ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता के कारण दम घुटना एस्फाइक्सीया (asphyxia) कहलाता है।
→ संवातन (Breathing) एक अनैच्छिक (Involuntary) क्रिया है।
→ हीमोसाइनिन, क्लोरोक्रुयोरिन एवं पिन्नेग्लोबिन वर्णन (Pigment) के कारण रक्त का रंग क्रमशः नीला, हरा एवं भूरा होता है।