These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 16 पाचन एवं अवशोषण will give a brief overview of all the concepts.
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→ पाचन (Digestion): जटिल पोषक पदार्थों को जल अपघटन द्वारा सरल पोषक पदार्थों में बदलने की क्रिया को पाचन कहते हैं
→ पाचन तंत्र (Digestive System): मानव के पाचन तंत्र का निर्माण आहार नाल एवं सहायक पाचक ग्रन्थियों द्वारा होता है।
→ मनुष्य की आहारनाल (Alimentary Canal): लम्बी कुण्डलित एवं पेशीय रचना होती है, जो मुँह से लेकर गुदा तक फैली होती है। मनुष्य में आहारनाल जीवित अवस्था में साढ़े चार मीटर लम्बी होती है। आहारनाल के प्रमुख भाग निम्न हैं
→ दन्त एवं दन्त विन्यास: मनुष्य के दोनों जबड़ों में दाँत होते हैं। दन्त विन्यास गर्तदन्ती (Thecodont), द्विबार दन्ती (Diphyodont) एवं विषमदन्ती (Heterodont) होता है। दाँत चार प्रकार के होते हैं
→ दंतसूत्र-स्तनियों में दन्त विन्यास एक सूत्र के रूप में व्यक्त किया जाता है, इसे दंत सूत्र (Dental formula) कहते हैं।
दंतसूत्र-[I\frac{2}{2} C \frac{1}{1} ; Pm \frac{2}{2} ; M \frac{3}{3}] × 2 = 32
→ दाँत के भाग-दाँत के तीन भाग होते हैं
→ दाँत का शिखर एक मोटे सफेद चमकदार तथा अत्यन्त कठोर इनेमल (Enamel) के आवरण से ढका रहता है।
→ लार ग्रन्थियाँ-मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती
→ लार ग्रन्थियों के कार्य
→ आमाशय-यह एक 'J' आकार की थैलीनुमा रचना होती है। आमाशय को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया
→ फण्डिक भाग (Fundic part) की ग्रन्थियों में दो विशेष प्रकार की ग्रन्थिल कोशिकाएँ पाई जाती हैं
→ आंत्र (Intestine):
यह आहारनाल का सबसे लम्बा भाग है। इसे दो भागों में बाँटा गया है
→ यकृत (Liver)-मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि है। यह उदर में मध्य पट के ठीक नीचे स्थित होती है और इसमें दो पालियाँ (Lobes) होती हैं। यकृत कोशिकाएँ पित्त रस का निर्माण करती हैं। पित्त में पित्त लवण, म्यूसिन, लेसिथिन कोलेस्ट्रोल एवं पित्त वर्णक पाये जाते हैं।
→ यकत के कार्य (Functions of Liver)
→ अग्न्याशय (Pancreas):
यह एक मिश्रित ग्रन्थि है अथवा संयुक्त ग्रन्थि कहलाती है। अग्न्याशय द्वारा अग्न्याशयिक रस उत्पन्न किया जाता है जो भोजन को पचाने में सहायता करता है। अग्न्याशय में निम्न एंजाइम पाये जाते हैं
→ पाचन क्रिया (Digestion):
पाचन क्रिया आहारनाल में होती है। भोजन के विभिन्न घटक आहारनाल के विभिन्न भागों में पचते हैं । उक्त कार्य विभिन्न प्रकार के विशिष्ट एंजाइम भोजन पर क्रिया करते हैं।
→ मुखगुहा में लार में उपस्थित एमाइलेज मांड (Starch) को पचाकर माल्टोस (डाइसैकेराइड) में बदल जाती है। इसके बाद भोजन ग्रसनी से होकर बोलस के रूप में ग्रसिका में प्रवेश करता है जो आगे क्रमाकुंचन द्वारा आमाशय तक ले जाया जाता है।
→ आमाशय में मुख्यतः प्रोटीन का पाचन होता है। सरल शर्कराओं, ऐल्कोहॉल और दवाओं का भी आमाशय में अवशोषण होता है।
→ काइम (Chyme) क्षुद्रांत्र के ग्रहणी भाग में प्रवेश करता है| जहाँ अग्न्याशयी रस, पित्त और अन्त में आंत्ररस के एंजाइमों द्वारा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का पाचन पूरा होता है। इसके बाद भोजन छोटी आंत्र के अग्र क्षुदांत्र और इलियम में| जाता है।
→ पाचन के पश्चात् कार्बोहाइड्रेट, ग्लूकोज जैसे मोनोसेकेराइड में परिवर्तित हो जाते हैं। अंततः प्रोटीन टूटकर ऐमीनोअम्लों में तथा वसा, वसीय अम्लों और ग्लिसरोल में परिवर्तित हो जाते हैं। आंत्र उत्पादों का पाचित आंत्र अंकुरों के उपकला स्तर द्वारा शरीर में अवशोषित हो जाता है। अपचित भोजन (मल) त्रिकांत्र कपाट (Ileoceacal valve) द्वारा वृहदांत्र की अंधनाल में प्रवेश करता है। इलियोसीकल कपाट मल को वापस नहीं जाने देता है।
→ बड़ी आंत्र में अधिकांश जल का अवशोषण हो जाता है। अपचित भोजन अर्ध ठोस होकर मलाशय और गुदानाल में पहुँचता है और अंततः गुदा द्वारा बहिःक्षेपित हो जाता है।
→ पाचन तंत्र के विकार-आंत्र नलिका का शोथ जीवाणुओं और विषाणुओं के संकुचन से होने वाला एक सामान्य रोग या विकार है। आंत्र का संक्रमण परजीवियों जैसे फीताकृमि, गोलकृमि, सूत्रकृमि, हुकवर्म, पिनवर्म आदि द्वारा होता है।
ये विकार निम्न हैं
→ मनुष्य में तीसरे मोलर दाँत को अक्कल दाढ़ (Wisdom teeth) कहते हैं।
→ यकृत (Liver) को हीपर (Hepar) भी कहते हैं।
→ प्लेटीपस (Platypus) में होंठों का अभाव होता है।
→ ग्रसनी की पार्श्व भित्ति पर 6 लसीका गांठे (Limph nodes) पायी जाती हैं, जिन्हें टांसिल्स (Tonsils) कहते हैं।
→ एपिग्लोटिस (Epiglottis) एक ट्रेफिक पुलिसमैन (traffic policeman) की तरह कार्य करता है जो भोजन को ग्लोटिस में नहीं जाने देता है।
→ मांसाहारी (Carnivores) का यकृत शाकाहारियों (Herbivores) की तुलना में अधिक बड़ा होता है, क्योंकि इन्हें अधिक वसा का पाचन होता है।
→ मस्तिष्क में मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla Oblongata) उपस्थित लारीय केन्द्र (Salivary centre) लार स्रावण को नियन्त्रित करता है।
→ मल में उपस्थित दुर्गन्ध इन्डोल (Indole), स्केटोल (Skatol) एवं ट्रिफ्टोफेन (Tryptophan) आदि पदार्थों के कारण होता चूहे व घोड़े में पित्ताशय (Gall-bladder) का अभाव होता है।
→ मांसाहारी जन्तु जैसे कुत्ता, बिल्ली, शेर, लोमड़ी की लार ग्रन्थियों में लारीय एमाइलेज एन्जाइम नहीं पाया जाता है।
→ मल का भूरा रंग स्टरकोबिलिन (Stercobilin) के कारण होता है।
→ पित्त रस में किसी प्रकार के एन्जाइम नहीं होते हैं।
→ दाँतों का निर्माण करने वाली कोशिकाएँ ओडोन्टोब्लास्ट (Odontoblasts) कहलाती हैं।
→ हाथियों के हाथीदाँत (Tusk) अपर इन्साइजर्स (Upper incisors) से बनते हैं।