These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 14 पादप में श्वसन will give a brief overview of all the concepts.
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→ श्वसन क्रिया के लिए प्राणियों के जैसा विशिष्ट तन्त्र पौधों में नहीं पाया जाता है। रन्ध्र तथा वातरन्ध्र के द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है। पौधों की सभी सजीव कोशिकाएँ वायु के सम्पर्क में रहती हैं।
→ जटिल कार्बनिक अणुओं के ऑक्सीकरण द्वारा C-C आबंधों के टूटने से जब कोशिका से ऊर्जा की अधिक मात्रा निकलती है तो उसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं। श्वसन क्रिया के लिए ग्लूकोज सबसे अधिक उपयोगी क्रियाधार है। वसा व प्रोटीन भी क्रियाधार है जिनसे भी ऊर्जा निकलती है। कोशिकीय श्वसन की प्रारम्भिक प्रक्रिया कोशिका द्रव्य में होती है। प्रत्येक ग्लूकोज का अणु एंजाइम उत्प्रेरित शृंखलाओं की अभिक्रियाओं द्वारा पाइरुविक अम्ल के 2 अणुओं में टूट जाता है, इस प्रक्रिया को ग्लाइकोलिसिस कहते हैं। पाइरुवेट का भविष्य O2, की उपलब्धता पर निर्भर करता है । अनॉक्सी परिस्थितियों में किण्वन द्वारा लैक्टिक अम्ल या ऐल्कोहॉल बनते हैं। किण्वन क्रिया अनेक प्रोकैरियोटिक, एककोशिकीय यूकैरियोट व अंकुरित बीजों में अनॉक्सी परिस्थितियों में सम्पन्न होता है।
यूकैरियोट जीवों में O2 की उपस्थिति में ऑक्सी श्वसन होता है। पाइरुविक अम्ल का माइटोकोण्ड्रिया में परिवहन के बाद एसीटाइल Co.A में रूपान्तरण होता है व CO2, निकलती है, फिर एसीटाइल Co.A2, TCA पथ या क्रेब्स चक्र में प्रवेश करता है, जो माइटोकोण्ड्रिया आधात्री में होता है। क्रेब्स चक्र में NADH+H+ तथा NADH, बनते हैं, इन अणुओं व NADH+H+ जो ग्लाइकोलिसिस के दौरान बनते हैं। इनकी ऊर्जा का उपयोग ATP के संश्लेषण में होता है। यह माइटोकोण्ड्रिया के अन्तः झिल्ली पर स्थित वाहकों के तन्त्र, जिसे इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र कहते हैं, के द्वारा सम्पन्न होती है, जब इलेक्ट्रॉन इस तन्त्र से होकर गुजरता है तो निकलने वाली ऊर्जा से ATP का संश्लेषण होता है, इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण कहते हैं, इस प्रक्रिया में अन्ततः अन्तिम इलेक्ट्रॉन ग्राही O2, होता है, जो जल में अपचयित हो जाता है।
→ श्वसनी पथ में उपचयी अथवा अपचयी दोनों भाग लेते हैं, इस कारण इसे ऐंफीबोलिक पथ कहते हैं। श्वसन गुणांक श्वसन के दौरान में आने वाले श्वसनीय क्रियाधार पर निर्भर करता है।
→ श्वसन में स्थितिज ऊर्जा (potential energy), गतिज ऊर्जा (kinetic energy) में परिवर्तित होती है।
→ श्वसन के समय शुष्क भार में कमी आती है।
→ सबसे अधिक ऊर्जा का विमोचन वसा के ऑक्सीकरण से होता है।
→ ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र के मध्य एसीटाइल Co.A बनता है।
→ ऑक्सीकरणीय फॉस्फेटीकरण की क्रिया ऑक्सीसोम में होती है।
→ विभज्योतक कोशिकाओं में परिपक्व कोशिकाओं की अपेक्षा श्वसन दर अधिक होती है।
→ घायल होने पर श्वसन दर बढ़ जाती है।
→ 180 ग्राम ग्लूकोज के पूर्ण ऑक्सीकरण से 264 ग्राम CO2, विमोचित होती है।
→ क्रेब्स चक्र में α-कीटोग्लूटेरिक अम्ल का विकार्बोक्सीकरण तथा डीहाइड्रोजिनेशन आदि दोनों क्रियाएँ होती हैं।
→ श्वसन दर को कम रखने के लिए फलों व सब्जियों को शीतगृहों में रखा जाता है।
→ विषाणु में श्वसन क्रिया नहीं होती है।
→ पकने वाले फलों के असामान्य रूप से बढ़ते श्वसन दर को क्लीमेक्ट्रिक (climacteric) कहते हैं।
→ इथाइलीन से श्वसन क्लीमेक्ट्रिक (respiratory climacteric) बढ़ता है।
→ गेलूसक ने किण्वन की खोज की।
→ ETS का आखिरी इलेक्ट्रॉनग्राही ऑक्सीजन है।
→ O2 की उपस्थिति में अनॉक्सी श्वसन का ऑक्सीश्वसन में अचानक परिवर्तन पाश्चर प्रभाव (Pasteur effect) कहलाता है।
→ प्रोकेरियोट में श्वसन मीसोसोम्स तथा कोशिका द्रव्य में होता है।
→ R.Q. का मापन गेनोंग रेस्पाइरोमीटर से करते हैं।