These comprehensive RBSE Class 11 Biology Notes Chapter 10 कोशिका चक्र और कोशिका विभाजन will give a brief overview of all the concepts.
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→ कोशिका विभाजन (Cell division):
कोशिका सिद्धान्त के अनुसार एक कोशिका का निर्माण पूर्ववर्ती कोशिका से होता है। इस प्रक्रिया को कोशिका विभाजन कहते हैं।
→ कोशिका चक्र (Cell cycle):
घटनाओं का अनुक्रम जिसमें कोशिका अपने जीनोम का द्विगुणन व अन्य संघटकों का संश्लेषण और तत्पश्चात् विभाजित होकर दो नई संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है, इसे कोशिका चक्र कहते
→ कोशिका चक्र की दो मूल प्रावस्थाएँ होती हैं
→ अंतरावस्था को तीन प्रावस्थाओं में विभाजित किया गया है
→ प्रशांत प्रावस्था (G1):
प्रौढ़ प्राणियों में कुछ कोशिकाएँ विभाजित नहीं होती हैं जैसे हृदय कोशिका और अनेक दूसरी कोशिकाएँ कभी-कभी विभाजित होती हैं, ऐसा तब ही होता है जब क्षतिग्रस्त या मृत कोशिकाओं को बदलने की आवश्यकता होती है। ये कोशिकाएँ जो आगे विभाजित नहीं होती हैं, G1 अवस्था से निकलकर निष्क्रिय अवस्था में पहुँचती हैं जिसे कोशिका चक्र की प्रशांत प्रावस्था कहते हैं। समसूत्री विभाजन–जनक व संतति कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या बराबर होती है इसलिए इसे सम विभाजन भी कहते हैं। यह विभाजन कायिक कोशिकाओं में होता है।
→ समसूत्री विभाजन को चार अवस्थाओं में विभाजित किया गया है
→ पूर्वावस्था (Prophase):
पूर्वावस्था में गुणसूत्र संघनित होने लगते हैं। साथ ही तारककेन्द्र विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं। केन्द्रक आवरण व केन्द्रिक विलोपित हो जाते हैं व तर्कतंतु दिखना प्रारम्भ हो जाते हैं।
→ मध्यावस्था (Metaphase):
मध्यावस्था में गुणसूत्र मध्य पट्टिका पर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं।
→ पश्चावस्था (Anaphase):
पश्चावस्था के दौरान गुणसूत्र बिन्दु विभाजित हो जाते हैं और अर्धगुण-सूत्र विपरीत ध्रुवों की ओर चलना प्रारम्भ कर देते हैं।
→ अंत्यावस्था (Telophase):
अर्धगुणसूत्रों के ध्रुवों पर पहुँचने के बाद गुणसूत्रों का लंबा होना प्रारम्भ हो जाता है व केन्द्रिक तथा केन्द्रक आवरण पुनः स्पष्ट होने लगते हैं। यह अवस्था अंत्यावस्था कहलाती है।
→ कोशिकाद्रव्य विभाजन (Cytokinesis) केन्द्रक विभाजन के बाद कोशिकाद्रव्य का विभाजन होता है, इसे कोशिकाद्रव्य विभाजन कहते हैं। अतः सूत्री विभाजन को सम विभाजन कहते हैं, जिसके द्वारा संतति कोशिका में पितृ कोशिकाओं के समान गुणसत्रों की संख्या बरकरार रहती है।
→ अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis):
ऐसा कोशिका विभाजन जिसमें बनने वाली पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्र संख्या मातृ कोशिका की आधी रह जाती है, अर्धसूत्री विभाजन कहलाता है। अर्धसूत्री विभाजन के द्वारा द्विगुणित मातृ कोशिका से चार अगुणित पुत्री कोशिकाएँ बनती हैं। यह विभाजन लैंगिक जनन करने वाले प्राणियों में गुणसूत्रों की संख्या को निश्चित एवं अपरिवर्तित बनाये रखता है।
→ अर्धसूत्री विभाजन को दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है
→ अर्धसूत्री विभाजन-I की पूर्व अवस्था लम्बी होती है व पाँच उप अवस्थाओं में विभाजित की गई है
मध्यावस्था-I के समय युगली मध्यावस्था पट्टिका पर व्यवस्थित हो जाते हैं। इसके पश्चात् पश्चावस्था-I में समजात गुणसूत्र अपने दोनों अर्धगुणसूत्रों के साथ विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं। प्रत्येक ध्रुव जनक कोशिका की तुलना में आधे गुणसूत्र प्राप्त करता है। अंत्यावस्था-I के समय केन्द्रक आवरण व केन्द्रिक पुनः दिखाई देने लगते हैं। अर्धसूत्री विभाजन-II सूत्री विभाजन के समान होता है। पश्चावस्था-II के समय संतति अर्धगुणसूत्र आपस में अलग हो जाते हैं। इस प्रकार अर्धसूत्री विभाजन के पश्चात् चार अगुणित कोशिकाएँ बनती हैं।
→ अर्धसूत्री विभाजन का महत्व:
अर्धसूत्री विभाजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लैंगिक जनन करने वाले जीवों की प्रत्येक जाति में विशिष्ट गुणसूत्रों की संख्या पीढ़ी दर पीढ़ी संरक्षित रहती है। यद्यपि विरोधाभासी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है। इसके द्वारा जीवधारियों की जनसंख्या में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आनुवंशिक विभिन्नताएँ बढ़ती जाती हैं। विकास प्रक्रिया की विभिन्नताएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं।
→ गुणसूत्रों की अगुणित (Haploid) संख्या को जीनोम (genome) कहते हैं। इसे n या X द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
→ जाइगोटीन अवस्था में समजात गुणसूत्र परस्पर जोड़े बनाते हैं, इस क्रिया को सूत्रयुग्मन (Synapsis) कहते हैं।
→ डिप्लोटीन अवस्था में क्रॉसिंग ओवर (Crossing over) की क्रिया होती है। इसमें क्रोमेटिड्स के बीच खण्डों का आदानप्रदान होता है। इस क्रिया को जीन विनिमय (exchange of genes) कहते हैं। इससे विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
→ जिस कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है उसे मिओसाइट (meiocyte) कहते हैं। काइएज्मेटा (chiasmata) की संख्या गुणसूत्रों की लम्बाई पर निर्भर करती है।
→ RNA ase एंजाइम प्रोफेज अवस्था में विष (Poison) की
→ माइटोसिस जिसमें तर्कु (spindle) में सेन्ट्रियोल एवं तारक किरणें (spindle fibres) नहीं होती हैं उसे एनएस्ट्रल माइटोसिस (anastral mitosis) कहते हैं।
→ सेन्ट्रिओल (centriole) के अभाव में होने वाला विभाजन एसेन्ट्रिक विभाजन (Acentric division) कहलाता है।
→ तारक किरणों (astral rays) के निर्माण हेतु कोशिकाद्रव्य में पर्याप्त मात्रा में सल्फर (S) होना आवश्यक है। कोशिका में अनियन्त्रित समसूत्री विभाजन से बने ऊतक को ट्यूमर (tumor) कहते है जो कैंसर (cancer) का कारण हो सकता है।
→ 37°C तापक्रम पर मनुष्य की कोशिकाओं के समसूत्री विभाजन में 20 घण्टे का समय लगता है। तंत्रिका ऊतक एवं मस्तिष्क की कोशिकाएँ विभाजित नहीं होती हैं। कुछ ऊतक ऐसे भी हैं जिनमें कोशिका विभाजन वयस्क अवस्था के बाद नहीं होती जैसे तंत्रिका ऊतक एवं मस्तिष्क की कोशिकाएँ।
→ राइबोन्यूक्लीएज (Ribonuclease) माइटोसिस को प्रोफेज अवस्था में रोकता है। माइटोसिस विष (Mitosis poison) माइटोसिस को संदमित (Inhibit) करते हैं। जैसे काल्चीसिन, मस्टर्ड गैस, इथाइलिन एवं राइबोन्यूक्लीएज।