RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 21 तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 21 तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Biology Chapter 21 Important Questions तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय


I. रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न (Fill in the blanks type questions) 

प्रश्न 1. 
रासायनिक सिनैप्स पर आवेगों के संचरण में भाग लेने वाले रसायन .......................... कहलाते हैं। 
उत्तर:
न्यूरोट्रांसमीटर

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प्रश्न 2. 
मानव नेत्र गोलक की दीवारें .......................... परतों से बनी होती हैं। 
उत्तर:
तीन

प्रश्न 3. 
कर्ण पटह झिल्ली .......................... ऊतकों की बनी होती है। 
उत्तर:
संयोजी

प्रश्न 4. 
लैन्स के सामने आइरिस से घिरा हुआ एक छिद्र होता है, जिसे .......................... कहते हैं। 
उत्तर:
प्यूपिल

प्रश्न 5. 
एक जोड़ी सेम के आकार के अंग को .......................... कहते हैं।
उत्तर:
प्राण बल्ब

प्रश्न 6. 
तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण .......................... द्वारा होता है। 
उत्तर:
सिनेप्सिस

प्रश्न 7. 
प्रतिवर्ती क्रियाओं का संचालन .......................... द्वारा किया जाता है। 
उत्तर:
मेरुरज्जु

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प्रश्न 8. 
विराम स्थिति में प्लाज्मा झिल्ली पर इस विभवान्तर को .......................... कहते हैं। 
उत्तर:
विराम कला विभव

प्रश्न 9. 
पश्च मस्तिष्क पोंस, अनुमस्तिष्क और .......................... का बना होता है। 
उत्तर:
मेड्यूला ऑब्लांगेटा

प्रश्न 10. 
अंध बिन्दु के पार्श्व में आँख के पिघले ध्रुव पर पीला वर्णक बिन्दु होता है जिसे .......................... कहते हैं।
उत्तर:
मैक्यूला ल्यूटिया।

II. सत्य व असत्य प्रकार के प्रश्न (True and False type questions)

प्रश्न 1. 
मानव तंत्रिका तंत्र तीन भागों में विभेदित किया गया है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2. 
कायिक तंत्रिका तंत्र उद्दीपनों को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से शरीर के अनैच्छिक अंगों व चिकनी पेशियों में पहुंचाता है। (सत्य/असत्य)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
रासायनिक सिनेप्स पर, पूर्व एवं पश्च सिनेप्टिक न्यूरोन्स की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा पृथक् होती हैं जिसे सिनेष्टिक दरार कहते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 4. 
मस्तिष्क की आन्तरिक परत पायामैटर कहलाती है।(सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5. 
हाइपोथेलेमस शरीर के तापमान व खाने-पीने का नियंत्रण करते है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 6. 
कार्पोरा क्वाड्रीजेमीना पश्च मस्तिष्क का भाग है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 7. 
कोरॉइड (रक्त पटल) में अनेक रक्त वाहिनियाँ पाई जाती हैं तथा ये हल्के नीले रंग की दिखाई देती हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
नेत्र गोलक की आन्तरिक परत रेटिना पर प्रतिबिम्ब नहीं बनता है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 9. 
कार्निया और लैंस के बीच के कोष्ठ (भाग) को जलीय कोष्ठ (एक्वस चेम्बर) कहते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 10. 
यूस्टोकियन नलिका मध्य कर्ण गुहा को फेरिक्स से जोड़ती है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

III. निम्न को सुमेलित कीजिए (Match the following)

स्तम्भ - I में दिये गये पदों का स्तम्भ - II में दिये गये पदों के साथ सही मिलान कीजिए

प्रश्न 1. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. अग्न मस्तिष्क

(i) कार्पोक्वाड्रोजेमीना

B. मध्य मस्तिष्क

(ii) प्रमस्तिष्क

C. पश्च मस्तिष्क

(iii) निस्सल कणिकाएं

D. न्यूरोन

(iv) अनुमस्तिष्क


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. अग्न मस्तिष्क

(ii) प्रमस्तिष्क

B. मध्य मस्तिष्क

(i) कार्पोक्वाड्रोजेमीना

C. पश्च मस्तिष्क

(iv) अनुमस्तिष्क

D. न्यूरोन

(iii) निस्सल कणिकाएं


प्रश्न 2. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. लिम्बिक तंत्रिका तंत्र

(i) कपाल व मेरु तंत्रिका

B. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र

(ii) एमिगडाला

C. परिधीय तंत्रिका तंत्र

(iii) मेरुम्जु

D. स्वाधीन तंत्रिका तंत्र

(iv) अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. लिम्बिक तंत्रिका तंत्र

(ii) एमिगडाला

B. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र

(iii) मेरुम्जु

C. परिधीय तंत्रिका तंत्र

(i) कपाल व मेरु तंत्रिका

D. स्वाधीन तंत्रिका तंत्र

(iv) अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र


प्रश्न 3. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. दृक तंत्रिका

(i) प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है

B. आइरिस

(ii) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को संवेदना भेजती है

C. प्यूपिल

(iii) रेटीना पर प्रकाश को केन्द्रित करती है

D. लैन्स

(iv) प्रकाश प्रवेश द्वार बनाती है


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. दृक तंत्रिका

(ii) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को संवेदना भेजती है

B. आइरिस

(i) प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है

C. प्यूपिल

(iv) प्रकाश प्रवेश द्वार बनाती है

D. लैन्स

(iii) रेटीना पर प्रकाश को केन्द्रित करती है


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प्रश्न 4. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. प्रमस्तिष्क

(i) सन्तुलन

B. अनुमस्तिष्क

(ii) स्मरण

C. मेड्यूला ऑब्लांगेटा

(iii) समस्थापन

D. हाइपोथेलेमस

(iv) अनैधिक क्रियाएँ


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. प्रमस्तिष्क

(ii) स्मरण

B. अनुमस्तिष्क

(i) सन्तुलन

C. मेड्यूला ऑब्लांगेटा

(iv) अनैधिक क्रियाएँ

D. हाइपोथेलेमस

(iii) समस्थापन


प्रश्न 5. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. श्वान कोशिकाएँ

(i) सोमा

B. निस्सल कणिकाएँ

(ii) तंत्रिकाक्ष

C. अन्तस्थ बटन

(iii) प्रमस्तिष्क

D. कार्पस कैलोसम

(iv) समपार्श्विक तन्तु (Collateral fibres)


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. श्वान कोशिकाएँ

(ii) तंत्रिकाक्ष

B. निस्सल कणिकाएँ

(i) सोमा

C. अन्तस्थ बटन

(iv) समपार्श्विक तन्तु (Collateral fibres)

D. कार्पस कैलोसम

(iii) प्रमस्तिष्क


प्रश्न 6. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. ड्यूरामेटर

(i) नेत्र

B. रेटिना

(ii) मस्तिष्क

C. घुटने को झटकना

(iii) कर्ण

D. कोर्टिका अंग

(iv) प्रतिवृत्ति क्रिया


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. ड्यूरामेटर

(ii) मस्तिष्क

B. रेटिना

(i) नेत्र

C. घुटने को झटकना

(iv) प्रतिवृत्ति क्रिया

D. कोर्टिका अंग

(iii) कर्ण


प्रश्न 7. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. मध्य कर्ण

(i) काँक्लिया (Cochlea)

B. अन्त: कर्ण

(ii) कर्ण अस्थिकाएँ

C. मेरु तंत्रिकाएँ

(iii) प्रकाशनाही कोशिकाएँ

D. शलाका व शंकु

(iv) मिश्रित तंत्रिकाएँ


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. मध्य कर्ण

(ii) कर्ण अस्थिकाएँ

B. अन्त: कर्ण

(i) काँक्लिया (Cochlea)

C. मेरु तंत्रिकाएँ

(iv) मिश्रित तंत्रिकाएँ

D. शलाका व शंकु

(iii) प्रकाशनाही कोशिकाएँ


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
तन्त्रिका तन्त्र किस अतिविशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है?
उत्तर:
तन्त्रिका तन्त्र तंत्रिकोशिका अतिविशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं से बना होता है।

प्रश्न 2.
हाइड्रा में तन्त्रिका तन्त्र किस रूप में होता है?
उत्तर:
हाइड्रा में तन्त्रिका तन्त्र तन्त्रिका जाल (Nerve net) के रूप में होता है।

प्रश्न 3. 
मानव का तन्त्रिका तन्त्र कौनसे दो भागों में विभाजित होता है?
उत्तर:

  • केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र 
  • परिधीय तन्त्रिका तन्त्र।

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प्रश्न 4. 
परिधीय तन्त्रिका तन्त्र में पाई जाने वाली दो प्रकार की तन्त्रिकाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:

  • संवेदी या अभिवाही 
  • चालक/प्रेरक या अपवाही।

प्रश्न 5. 
एक तन्त्रिका कोशिका में कितने तंत्रिकाक्ष निकलते हैं? 
उत्तर:
एक तंत्रिका कोशिका में एक तंत्रिकाक्ष निकलता है। 

प्रश्न 6. 
तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण किस भ्रूणीय स्तर से होता है?
उत्तर:
तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण भूणीय स्तर एक्टोडर्म (Ectoderm) से होता है।

प्रश्न 7. 
मनुष्य में प्रतिवर्ती क्रियाओं को कौन नियन्त्रित करता है?
उत्तर:
मनुष्य में प्रतिवर्ती क्रियाओं को मेरुरज्जु (Spinal cord) नियन्त्रित करता है।

प्रश्न 8. 
सिनैप्स किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो न्यूरोन्स के बीच वाले सन्धि स्थानों को सिनप्स (युग्मानुबंधन) कहते हैं।

प्रश्न 9. 
तन्त्रिका आवेग संचरण में प्रयुक्त तन्त्रिकाप्रेषी पदार्थ का नाम लिखिए।
उत्तर:
तन्त्रिका आवेग संचरण में प्रयुक्त तन्त्रिकाप्रेषी पदार्थ का नाम एसीटिलकोलीन है।

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प्रश्न 10. 
तन्त्रिका आवेग किसे कहते हैं?
उत्तर:
उद्दीपन के कारण तन्त्रिका कोशिकाओं का उत्तेजित होना तन्त्रिका आवेग कहलाता है।

प्रश्न 11. 
विध्रुवित अवस्था (Depolarized stage) किसे कहते हैं?
उत्तर:
तन्त्रिका तन्तु बाहर की तरफ ऋणावेशित एवं भीतर की तरफ धनावेशित हो तो इसे विधुवित अवस्था (Depolarized stage) कहते हैं।

प्रश्न 12. 
नेत्र में पाये जाने वाले शलाका एवं शंकु कोशिका तन्तु के कार्य लिखिए।
उत्तर:
शलाका का कार्य: यह प्रकाश व अंधेरे में विभेद करता है।
शंकु का कार्य: इसके द्वारा रंगभेद का ज्ञान किया जाता है।

प्रश्न 13. 
निसल कणिकायें कहाँ पायी जाती हैं? इनका कार्य लिखिए।
उत्तर:
निसल कणिकायें न्यूरोन के कोशिका काय (Soma) में पायी जाती हैं। इनका कार्य उत्सर्जन व पोषण में सहायक है।

प्रश्न 14. 
उस कपाल तन्त्रिका का नाम लिखिये जो नेत्र गोलक से मस्तिष्क तक आवेगों को पहुंचाते हैं।
उत्तर:
दुक तन्त्रिका (Optic nerve)।

प्रश्न 15. 
कर्ण की अस्थिकाओं को निकाल देने पर सुनने की क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कर्ण की अस्थिकाओं को निकाल देने से मनुष्य की श्रवण क्रिया नहीं हो पायेगी।

प्रश्न 16. 
रोडोप्सिन के प्रोटीन भाग व रंगा भाग को क्या कहते है?
उत्तर:
रोडोप्सिन के प्रोटीन भाग को ऑप्सिन (Opsin) तथा रंगा भाग को रेटीनीन (Retinene) कहते हैं।

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प्रश्न 17. 
कार्पस कैलोसम क्या है? यह कहां पाया जाता है?
उत्तर:
मनुष्य में प्रमस्तिष्क गोलाओं को जोड़ने वाली अनुप्रस्थ पट्टी को कार्पस कैलोसम कहते हैं।

प्रश्न 18.
स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
शरीर की अनैच्छिक क्रियाओं के नियमन एवं संचालन से सम्बद्ध तन्त्रिका तन्त्र को स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 19. 
उदीपन (Stimulus) किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाह्य या आन्तरिक वातावरण में होने वाली कोई परिघटना जो तन्त्रिका या देह को उत्तेजित करने में सक्षम होती है उसे उद्दीपन कहते हैं।

प्रश्न 20. 
मेरु तन्त्रिकायें किस प्रकृति की होती हैं? 
उत्तर:
मेरु तन्त्रिकायें मिश्रित प्रकृति की होती हैं।

प्रश्न 21. 
क्रेनियो सैक्रल बहिर्गमन किस तन्त्रिका तन्त्र को कहा जाता है?
उत्तर:
क्रेनियो सैक्रल बहिर्गमन परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र को कहते हैं।

प्रश्न 22. 
देहलीज उद्दीपन (Threshold Stimulus) किसे कहते हैं?
उत्तर:
तन्त्रिका तन्तु को उद्दीपित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम उद्दीपन शक्ति को देहलीज उद्दीपन (Threshold Stimulus) कहते हैं।

प्रश्न 23. 
मनुष्य में कितनी जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं? 
उत्तर:
मनुष्य में 12 जोड़ी कपाल तन्त्रिकाएँ पाई जाती हैं। 

प्रश्न 24. 
मनुष्य के कर्ण को कितने भागों में विभक्त किया गया हैं?
उत्तर:
मनुष्य के कर्ण को तीन भागों में विभक्त किया गया है। 

प्रश्न 25. 
मध्य कर्ण में उपस्थित अस्थियों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  • मैलियस 
  • इन्कस 
  • स्टैपीज़। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
तन्त्रिका तंत्र के कोई चार महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए। 
उत्तर:
तत्रिका तंत्र के महत्त्वपूर्ण चार कार्य निम्न हैं-

  1. यह संवेदी अंगों के माध्यम से हमें बाहर की दुनिया के विषय में सूचना देता रहता है।
  2. यह हमें याद रखने, सोचने तथा क्यों और कैसे समझने की क्षमता प्रदान करता है।
  3. यह समस्त ऐच्छिक पेशीय क्रियाकलापों जैसे कि दौड़ना, बोलना, लिखना आदि का नियन्त्रण करता है।
  4. यह अनैच्छिक, क्रियाकलापों जैसे कि श्वास लेना, हृदय का स्पंदन आदि का नियमन करता है।

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प्रश्न 2. 
आँख की निम्न संरचनाओं के कार्य बताइये
(क) परितारिका (आइरिस) 
(ख) सिलियरी पेशियाँ
(ग) तारा प्यूपिल
(घ) रेटिना। 
उत्तर:
(क) संकुचित होकर प्यूपिल को चौड़ा कर देती है।
(ख) निकट से देखने में सहायता करती है/संकुचित होकर लेन्स को मोटा करती है।
(ग) आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियन्त्रित करता है।
(घ) तन्त्रिका आवेग बनाकर उन्हें दृक तन्त्रिकाओं में भेजती है।

प्रश्न 3. 
मस्तिष्क के ऊपर से मस्तिष्कावरण को हटा दिया जाये तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मस्तिष्क के ऊपर से मस्तिष्कावरण को हटा देने पर मस्तिष्क बाहरी आघातों एवं विभिन्न चोटों से क्षतिग्रस्त हो जायेगा । साथ ही मस्तिष्क को पोषण भी प्रदान नहीं होगा। प्रमस्तिष्क मेरु द्रव जो पायामेटर में स्थित अन एवं पश्च रक्तक जालिकाओं द्वारा स्लावित किया जाता है उसका निर्माण भी बंद हो जायेगा।

प्रश्न 4. 
मध्य मस्तिष्क के कार्य लिखिये।
उत्तर:
मध्य मस्तिष्क के कार्य: इस भाग में चार दृक् पिण्ड दृष्टि ज्ञान का केन्द्र होते हैं। इसके अतिरिक्त श्रवण प्रतिवर्ती क्रियाओं के नियन्त्रण केन्द्र भी यहीं स्थित रहते हैं। ये दृक् पिण्ड अन एवं पश्च पादों की ऐच्छिक पेशियों का भी नियन्त्रण करते हैं। श्वसन क्रिया में सहायक पेशियां इन्टरकास्टल पेशियों (Intercostal Muscles) का नियन्त्रण भी इसी मध्य मस्तिष्क द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5. 
आइरिस की गति, लार स्रवण, हृदय स्पंदन तथा आंत्र क्रमाकुचन गति को परानुकम्पी तन्त्रिका तन्त्र किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
परानुकम्पी तंत्रिका तन्त्र का निम्न प्रभाव है:

  1. आइरिस - पुतली का संकीर्णन 
  2. लार लवण - खाव को बढ़ाता है 
  3. हृदय स्पंदन - को धीमा करता है 
  4. आंत्र क्रमाकुंचन-तरंग गति की दर को बढ़ाता है। 

प्रश्न 6. 
मेरुरज्जु के कार्यों का वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
मेरुरज्जु के कार्य-

  1. संवेदी आवेगों को मस्तिष्क की ओर ले जाने हेतु मार्ग प्रदान करना।
  2. प्रेरक आवेगों को मस्तिष्क से ले जाने हेतु मार्ग प्रदान करना।
  3. ऐसी प्रतिवर्ती क्रियाओं (Reflex Reactions) का नियमन व संचालन करना जिनमें मस्तिष्क सम्बन्धित नहीं होता है।

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प्रश्न 7. 
कार्य के आधार पर तन्त्रिकाओं के प्रकार बताइए। 
उत्तर:
कार्य के आधार पर तन्त्रिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

  1. संवेदी तन्त्रिकाएँ (Sensory Nerves): ऐसी तत्रिकाएं जो तन्त्रिकीय आवेग को संवेदी अंगों से मस्तिष्क की ओर ले जाती हैं, उन्हें संवेदी तन्त्रिकाएँ कहते हैं।
  2. प्रेरक तन्त्रिकाएँ (Motor Nerves): ऐसी तन्त्रिकाएँ जो तन्त्रिकीय आवेग को मस्तिष्क से अथवा मेरुरज्जु से अपवाहक अंगों (Effector Organs) तक ले जाती हैं, उन्हें चालक या प्रेरक तन्त्रिकाएँ कहते हैं।
  3. मिश्रित तन्त्रिकाएँ (Mixed Nerves): ऐसी तन्त्रिकाएँ जो संवेदी व प्रेरक दोनों के समान कार्य करती हैं, उन्हें मिश्रित तन्त्रिकाएँ कहते हैं।

प्रश्न 8. 
क्रिस्टा और मैक्यूला में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
क्रिस्टा और मैक्यूला में अन्तर:

क्रिस्टा

मैक्यूला

1. यह अर्धचन्द्राकार नलिकाओं के एम्यूला में पाये जाते हैं।

वेस्टीब्यूल (सैक्यूलस तथा यूट्रीकुलस) में पाये जाते हैं।

2. कुल संख्या में तीन होते हैं।

ये सिर्फ दो होती हैं।

3. आटोलिथ नहीं पाया जाता है।

ऑटोलिथ पाया जाता है।

4. लम्बे ऑडीटरी रोम पाये जाते हैं।

ऑडीटरी रोम छोटे होते हैं।

प्रश्न 9. 
प्रतिवर्ती क्रियाओं के कोई पाँच उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रियाओं के उदाहरण:

  1. अचानक तेज आवाज सुनने पर मुंह खुल जाना। 
  2. ठंड से सिकुड़ना। 
  3. छींकना एवं खाँसना। 
  4. अच्छे भोजन को देखने पर लार का लावण। 
  5. अचानक तेज रोशनी पर आँखों का सिकुड़ना।

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प्रश्न 10. 
मुख में भोजन आते ही लार निकलने लगती है, कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह क्रिया एक प्रतिवर्ती क्रिया है जो मेरुरज्जु के द्वारा नियन्त्रित होती है। इसमें मस्तिष्क भाग नहीं लेता है। जैसे ही भोजन मुंह में लेते हैं तो यह भोजन मुख गुहा की श्लेष्मिक कला के संवेदी गुच्छ के सम्पर्क में आकर एक उद्दीपन संवेदी तन्त्रिकाओं को देता है। ये संवेदी तन्त्रिकाएँ इस उद्दीपन को मेरुरज्जु में पहुँचाती हैं। मेरुरज्जु की तन्त्रिका की पृष्ठमूल में से होते हुए यह संवेदना जब मेरुरज्जु में पहुँचती है तो वह एक आदेश अपवाही तन्त्रिका को देती है, जो अधरमूल के द्वारा इस आदेश को लार प्रन्थियों को देती है तथा लार ग्रन्थियां लार सावित करना प्रारम्भ कर देती हैं।

प्रश्न 11. 
लिंबिक तंत्र किसे कहते हैं? इसके कार्य लिखिए।
उत्तर:
लिंबिक तंत्र (Limbic system): लिंबिक तंत्र प्रमस्तिष्क के निचले बॉर्डर तथा अग्रमस्तिष्क पश्च के फर्श पर पाया जाता है। इसे भावनात्मक मस्तिष्क अथवा जन्तु मस्तिष्क भी कहते हैं।
यह निम्न संरचनाओं से मिलकर बना होता है - जैसे एमिगडाला, हिप्पोकेम्पस आदि।
लिंबिक तंत्र का कार्य (Function of Limbic system): यह हाइपोथेलेमस से मिलकर लैंगिक व्यवहार, मनोभावना की अभिव्यक्ति जैसे उत्तेजना, खुशी, गुस्सा, भय, आकर्षण, नाराजगी, शोक, पसन्द करना, अधीनता, मनन करना इत्यादि का नियंत्रण करता है।

प्रश्न 12. 
प्रमस्तिष्क मेरु द्रव के कार्य लिखिए। 
उत्तर:
प्रमस्तिष्क मेरु द्रव के कार्य-

  1. यह मस्तिष्क को अवलम्बन प्रदान करता है तथा बाहरी आपातों से सुरक्षा करता है।
  2. इन्हें नम बनाये रखता है।
  3. यह मस्तिष्क एवं रक्त के मध्य पोषक पदार्थों, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों के आदान - प्रदान के माध्यम का कार्य करता है।
  4. यह हानिकारक रोगाणुओं से मस्तिष्क एवं मेरुरज्णु की सुरक्षा करता है।
  5. मस्तिष्क की बीमारियों के निदान में सहायता करता है। 

प्रश्न 13.
हाइपोथेलेमस के कोई चार कार्य लिखिये। 
उत्तर:
हाइपोथेलेमस के चार कार्य-

  1. यह शरीर के ताप तथा समस्थापन (Homeostatis) का नियन्त्रण करता है।
  2. इसमें स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के उच्च केन्द्र होते हैं, जो भूख, प्यास, नींद, भावनाओं, संतुष्टि, क्रोध, प्रसन्नता आदि पर मस्तिष्क के नियन्त्रण को दर्शाता है।
  3. यह तन्त्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तन्त्र में सम्बन्ध स्थापित करता है।
  4. इसकी कुछ तन्त्रिका स्रावी कोशिकायें वेसोप्रेसिन तथा ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन का स्रावण करती हैं, जो पीयूष ग्रन्थि द्वारा रुधिर में मुक्त होते हैं।

प्रश्न 14. 
मेडुला ऑब्लांगेटा के कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
मेडुला ऑब्लांगेटा के कार्य: यह मस्तिष्क का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग माना गया है क्योंकि शरीर की समस्त अनैच्छिक क्रियाओं (Involuntary Activities) का नियन्त्रण इस भाग द्वारा किया जाता है, अर्थात् हृदय स्पंदन, श्वसन दर, उपापचय, श्रवण, सन्तुलन, आहार नाल की क्रमाकुंचन गति, रक्त वाहिनियों के फैलने व सिकुड़ने की क्रिया, विभिन्न कोशिकाओं की स्त्रावण क्रिया तथा भोजन निगलने की गति इत्यादि समस्त क्रियाएँ इस भाग के नियन्त्रण में रहती हैं। नेत्रों व पश्च पादों की पेशियों का नियन्त्रण भी इसी भाग के द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह भाग मस्तिष्क के शेष भाग एवं मेरुरज्जु के मध्य सभी प्रेरणाओं के संवहन मार्ग का कार्य करता है। छींकना, खाँसी, उल्टी, उबासी एवं निगलना आदि का भी नियन्त्रण किया जाता है। 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
मेनिन्जेज या तालिकाएँ क्या होती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण मस्तिष्क (Brain) तथा मेरुरज्जु (Spinal cord) द्वारा होता है। इन अंगों में तंत्रिकाओं से प्राप्त संवेदनाओं का विश्लेषण होता है। ये अंग तंत्रिकीय नियंत्रण केन्द्रों (Nervous Control Centres) का कार्य करते हैं।
मस्तिष्क (Brain): मनुष्य के मस्तिष्क का भार लगभग 1.4 किग्रा. होता है। मस्तिष्क अस्थियों से निर्मित कपाल द्वारा घिरा होता है। मस्तिष्क के चारों ओर से तन्तुमय संयोजी ऊतक से निर्मित झिल्लियों द्वारा घिरा होता है, जिन्हें मस्तिष्कावरण (Meninges) कहते हैं।
मस्तिष्कावरण मस्तिष्क को विभिन्न चोटों, दुर्घटना एवं बाहरी आघातों से सुरक्षा तथा पोषण प्रदान करता है। यह निम्नलिखित आवरणों द्वारा निर्मित होता है:

  1. ड्यूरामेटर (Duramater): यह प्रथम तथा सबसे बाहरी झिल्ली होती है जो दृढ़ एवं मोटी होती है और क्रेनियल अस्थियों के निकट सम्पर्क में स्थित रहती है। ड्यूरामेटर एवं क्रेनियम अस्थियों के बीच एक संकरी गुहा होती है जिसे एपिड्यूरल गुहा (Epidural Space) कहते हैं।
  2. एरेक्नॉइड (Arachnoid): इस मध्य झिल्ली में रक्त केशिकाओं का सघन जाल फैला रहता है। ड्यूरामेटर व एरेक्नॉइड के बीच पाई जाने वाली गुहा को सबड्यूरल गुहा (Subdural Space) कहते हैं। इस गुहा में भरे द्रव को प्रमस्तिष्क मेरु द्रव (Cerebro Spinal Fluid) कहते हैं।
  3. पायामेठर (Piamater): यह तृतीय एवं अन्तिम झिल्ली है जो मस्तिष्क व मेरुरज्जु से चिपकी रहती है। एरेक्नॉइड व पायामेटर के बीच पायी जाने वाली गहा को सब - एरेक्नॉइड गहा (Sub arachnoid Space) कहते हैं। इस गुहा में प्रमस्तिष्क मेरु द्रव भरा रहता है।

प्रमस्तिष्क मेरु द्रव एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य के मस्तिष्क में लगभग 150 मिली. पाया जाता है। इसमें प्रोटीन, ग्लूकोज, यूरिया तथा क्लोराइड्स के अलावा पोटैशियम, सोडियम, कैल्सियम के बाइकार्बोनेट, सल्फेट, फॉस्फेट, क्रिएटिनिन तथा यूरिक अम्ल भी सूक्ष्म मात्रा में पाये जाते हैं। यह द्रव आगे से पीछे की ओर बहता है तथा यहाँ से यह सब - एरेनाइड गुहा में होता हुआ अंत में ड्यूरामेटर के रक्त पात्रों के माध्यम से वापस रक्त में जाता है। प्रमस्तिष्क मेरु द्रव के निम्नलिखित कार्य करता है-

  1. यह मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु की बाह्य आघातों से सुरक्षा कर उन्हें सहारा प्रदान करता है व इन्हें नम बनाये रखता है।
  2. यह मस्तिष्क एवं रक्त के मध्य पोषक पदार्थों, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य उत्सर्जी पदार्थों के आदान - प्रदान के माध्यम का कार्य करता है।
  3. यह हानिकारक रोगाणुओं से मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु की सुरक्षा तथा मस्तिष्क की बीमारियों के निदान (Diagnosis) में सहायता करता है। प्रमस्तिष्क मेरुद्रव की मात्रा अधिक बढ़ जाने के कारण मस्तिष्कावरण शोथ (Meningitis) रोग हो जाता है।

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प्रश्न 2. 
न्यूरॉन का नामांकित चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण तन्त्रिका कोशिकाओं अथवा न्यूरोन्स (Neurons) द्वारा होता है। यह तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक एवं - क्रियात्मक इकाई है।
न्यूरोन एक सूक्ष्मदर्शी संरचना है जो तीन भागों से मिलकर बना होता है-

  1. सोमा (Soma) अथवा कोशिकाकाय: यह कोशिका का प्रमुख भाग होता है जिसमें एक केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य पाया जाता है। केन्द्रक में एक स्पष्ट केन्द्रिका (Nucleolus) होती है जबकि कोशिकाद्रव्य में निस्सल कणिकाएं (Nissles Granules) एवं न्यूरोफाइब्रिल्स (Neurofibrils) नामक सूक्ष्म तन्तु पाये जाते हैं। सोमा से दो प्रकार के प्रवध निकलते हैं जिन्हें क्रमश: दूमिकाएं (Dendrites) एवं तन्त्रिकाक्ष (Axon) कहते हैं।
  2. द्रुमिकाएं (Dendrites): ये छोटे शाखित प्रवर्ध होते हैं। इनमें संदेश सोमा की ओर चलता है।
  3. तन्त्रिकाक्ष (Axon): यह एक बड़ा प्रवर्ध होता है जो सोमा से निकलता है। तन्त्रिकाक्ष में सन्देश सोमा से दूर चलते हैं।

तन्विकाक्ष अपने अधिकांश भाग में एक श्वेत, अकोशिकीय मोटे आवरण द्वारा आवरित रहते हैं। इस आवरण को मज्जा - आच्छद (Medullary Sheath) कहते हैं। यह श्वान कोशिकाओं (Schwann Cells) द्वारा निर्मित होता है जो मज्जा आच्छद के भीतर की ओर उपस्थित होती हैं। मज्जा - आच्छद के बाहर की ओर तन्त्रिकाच्छद 
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(Neurilemma) नामक आवरण पाया जाता है। सोमा के प्रवर्थ व इसके आवरणों को संयुक्त रूप से तन्त्रिका तन्तु (Nerve Fibre) कहा जाता है। जिन तन्त्रिका तन्तुओं में मज्जा - आच्छद उपस्थित होता है उन्हें मज्जावृत तन्तु (Medulated Fibres) कहते हैं। कुछ बहुत छोटे व्यास वाले तन्तुओं में मज्जा - आच्छद का अभाव होता है। ऐसे तन्तुओं को मज्जारहित तन्तु (Non Medulated Fibres) कहा जाता है। मज्जाआच्छद में स्थान - स्थान पर संकीर्णन (Constriction) पाये जाते हैं, जिन्हें रेनवीयर की पर्व सन्धियाँ (Nodes of Ranvier) कहते हैं। दो पर्व सन्धियों के बीच वाले भाग को इन्टरनोड (Internode) कहते हैं। तन्त्रिकाक्ष में कहीं - कहीं पर पार्श्व शाखायें उत्पन्न होती हैं। इन्हें संपाश्विक तन्तु (Collateral Fibres) कहते हैं। अपने दूरस्थ सिरे पर तन्त्रिकाक्ष शाखित हो जाता है तथा प्रत्येक शाखा के अन्तिम सिरे पर अन्तस्थ बटन (Terminal Button) नामक सूक्ष्म विवर्धन पाया जाता है।
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ये साइनेप्टिक बटन दूसरे न्यूरोन के डेन्ड्रोन के शीर्ष की बटनों से कार्यकारी सम्बन्ध का निर्माण करते हैं जिसे सिनैप्स कहते हैं। सोमा से निकलने वाले प्रवर्षों की संख्या के आधार पर तन्त्रिका कोशिका अध्रुवीय (Nonpolar), एकध्रुवीय (Unipolar), द्विध्रुवीय (Bipolar) तथा बहुधुवीय (Multi - polar) होते हैं। एकध्रुवीय तन्त्रिका कोशिका में दुमिका एवं तन्धिकाक्ष एक ही स्थान से निकलते हैं। ऐसी तन्त्रिकोशिकाएँ प्राणियों की भूणावस्था में पाई जाती हैं। द्विध्रुवीय तन्त्रि कोशिका में सोमा के एक सिरे से दुमिकाएँ तथा दूसरे सिरे से तन्त्रिकाक्ष निकलता है। ऐसी तन्त्रि - कोशिकाएँ नेत्र के दृष्टिपटल में पायी जाती हैं। यहधूवीय तन्त्रिकोशिका में दुमिकाएँ अनेक स्थानों से, तन्त्रिकाक्ष एक स्थान से उत्पन्न होते हैं। ऐसी तन्त्रि - कोशिकाएँ मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु (Spinal Cord) में होती है।
कार्य: यह शरीर के अन्दर तन्त्रिका आवेगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाने का कार्य करता है।

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प्रश्न 3. 
तन्त्रिका आवेग किसे कहते हैं? तन्त्रिका आवेगों की उत्पत्ति व संचरण को समझाइए।
उत्तर:
तंत्रिका आवेगों की उत्पत्ति व संचरण (Generation and Conduction of Nerve Impulse):
अनेक प्रकार के बाह्य उद्दीपन संवेदी तंत्रिका कोशिकाओं को प्रेरित कर देते हैं। इस उद्दीपन के कारण तंत्रिका कोशिकाओं का उतेजन ही तंत्रिका आवेग (Nerve impulse) कहलाता है। आवेग का तंत्रिका तन्तुओं में संवहन एक विद्युत - रासायनिक (Electro - chemical) घटना है जिससे तंत्रिका आवेग, तंत्रिका तन्तुओं में विद्युत - रासायनिक तरंगों (Electrochemical Waves) के रूप में संचारित होते हैं।

तंत्रिका तंतु को उद्दीपित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम उद्दीपन शक्ति को देहलीज उद्दीपन (Threshold Stimulus) कहते हैं। विश्रान्ति काल में तंत्रिका ध्रुवित अवस्था (Polarised stage) में रहती है। जिसमें बाहर की ओर धनात्मक आवेश पाया जाता है। इस समय बाहरी सतह पर Na+ की अधिकता पाई जाती है। बाहर की ओर Na+ लगभग भीतर की तुलना में 10 - 12 गुना अधिक होते हैं। तंत्रिका तन्तु के भीतर की ओर ऋणात्मक आवेश पाया जाता है। यह कार्बनिक आयनों के कारण होता है। विश्रान्ति अवस्था के विभव को विश्रान्ति कला विभव (Resting membrane potential) कहते हैं। यह - 70 mV से -86 mV तक होता है।

विश्रामावस्था में एक्सॉन झिल्ली K+ के लिए Na+ की तुलना में 20 गुना अधिक पारगम्य होती है। इसके कारण Na+ के अन्तप्रवाह की तुलना में K+ का बहिप्रवाह विसरण द्वारा अधिक होता है। इसमें साम्यता बनाये रखने के लिए सोडियम पम्प कार्य करता है। इस दौरान 3 Na+ को बाहर की ओर व 2K+ को भीतर की ओर पम्प किया जाता है।

उद्दीपित होने पर एक्सोलेमा की पारगम्यता में परिवर्तन आ जाता है। Na+ भीतर प्रवेश करते हैं वह बाहर निकलते हैं लेकिन Na+ का अन्तप्रवाह K+ के बहिप्रवाह से अधिक होता है। इसके कारण तन्त्रिका तन्तु बाहर की तरफ ऋणावेशित एवं भीतर की तरफ धनात्मक हो जाते हैं। इसे विधूवित अवस्था (Depolarized Stage) कहते हैं। इस समय उत्पन्न विभव को सक्रिय विभव (Action Potential) कहते हैं। यह + 30 mv तक होता है। यह सक्रिय विभव, अन्य भागों के लिए उद्दीपन का कार्य करता है। जैसे विध्रुवण तरंग तंत्रिका तन्तु पर आगे की तरफ़ संचरित होती है तो पिछले भागों में उद्दीपन का प्रभाव समाप्त होकर तंत्रिका तन्तु कला पुन: अपनी विश्रान्ति अवस्था में लौट आती है। इस क्रिया में K+ बाहर आते हैं तथा Na+ आयन पुन: बाहर की तरफ को भेजे जाते हैं। इस अवस्था को पुनर्बुवण (Repolarisation) कहते हैं।

इस दौरान ध्रुवीकरण, विध्रुवीकरण व पुनध्रुवीकरण क्रमबद्ध रूप से होते हैं। मनुष्य में सामान्य परिस्थिति में तंत्रिकीय आवेग का संचरण 45 मीटर/सेकण्ड से होता है। माइलिन आच्छद तन्तुओं में संचरण अधिक तीव्र होता है। क्योंकि यह पर्व संधि से पर्व संधि पर संचारित होता है, इसे साल्टेटोरियल आवेग संचरण कहते हैं।

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प्रश्न 4. 
मानव मस्तिष्क का सेजिटल काट का नामांकित चित्र बनाकर अग्र मस्तिष्क एवं मध्य मस्तिष्क का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अन मस्तिष्क (Fore Brain):
1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum): यह पूरे मस्तिष्क के अस्सी प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। यह अनुलम्ब विदर (Longitudinal Fissure) की सहायता से दो भागों में विभाजित होता है जिन्हें क्रमशः दायां व बायां प्रमस्तिष्क गोलार्ध (Cerebral hemisphere) कहते हैं। दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्ध कार्पस केलोसम (Corpus Callosum) द्वारा जुड़े होते हैं। प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्ध तीन गहरी दरारों द्वारा चार पालियों या पिण्डों (Lobes) में बंटा होता है।
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  • अग्रललाट पाली (Frontal Lobe): यह सबसे आगे की ओर स्थित होता है तथा सबसे बड़ा होता है। अग्न ललाट पाली टेम्पोरल पाली (Temporal lobe) से एक विदर (fissure) की सहायता से पृथक् होती है जिसे सिल्वियस विदर (Sylvias fissure) कहते हैं।
  • भित्तीय पाली (Parietal Lobe): यह अन ललाट पाली के पीछे स्थित होता है। इस पाली को पाव कपाल खण्ड भी कहते हैं। अग्नललाट पाली एवं भित्तीय पाली के बीच पाई जाने वाली विदर रोलेन्डो का विदर (Central Sulcus or Fissure of Rolando) कहलाती है। इस प्रकार भित्तीय पाली एवं ऑक्सीपिटल के बीच विदर को पैराइटो ऑक्सीपिटल विदर (Parieto - occipitul fissure) कहते हैं।
  • टेम्पोरल पाली (Temporal Lobe): यह भित्तीय पाली के नीचे तथा सामने की ओर होता है। अग्रललाट पाली एवं टेम्पोरल पाली के बीच पाई जाने वाली विदर को पार्श्व सेरीबल विदर (Lateral Cerebral Fissure) कहते हैं।
  • ऑक्सीपिटल पाली (Occipital Lobe): यह भित्तीय पाली से पैराइटो - ऑक्सीपिटल विदर द्वारा विभेदित होती है। यह अपेक्षाकृत छोटी पाली होती है।

घ्राण प्रमस्तिष्क (Rhinencephalon): प्रमस्तिष्क गोलाधों के सभी क्षेत्र जो प्राण सम्बन्धी अनुक्रियाओं से सम्बद्ध होते हैं, संयुक्त रूप से घ्राण मस्तिष्क बनाते हैं। प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्ध में अग्र ललाटी या पालि में धंसा एक - एक घ्राण पिण्ड (olfactory lobe) तथा घ्राण क्षेत्र (olfactory tract) पाये जाते हैं।

प्रमस्तिष्क का बाहरी भाग धूसर द्रव्य (Grey matter) से निर्मित तथा 2 से 4 मिमी, मोटा होता है, जिसे प्रमस्तिष्क वल्कुट (Cerebral Cortex) कहते हैं। यह पूरी सतह पर अनेक वलनों में वलित रहता है। ये वलन प्रमस्तिष्क गोलाद्धों की सतह का क्षेत्रफल लगभग तीन गुना बढ़ा देते हैं। वल्कुट का प्राण मस्तिष्क को घेरने वाला भाग आकीपलियम (Archipallium) तथा शेष विस्तृत भाग नियोपैलियम (Neopallium) कहलाता है। गोलाधों की भित्ति का आन्तरिक भाग प्रमस्तिष्क मेड्यूला (Cerebral medulla) कहलाता है जो कि श्वेत द्रव्य (White matter) से बना होता है। प्रमस्तिष्क की गुहा पावं निलय कहलाती है।

प्रमस्तिष्क के कार्य (Functions of Cerebrum):
संवेदन कार्य (Sensory Functions): संवेदी क्षेत्र केन्द्रीय विदर के पीछे स्थित होता है। यह शरीर के विभिन्न भागों से ताप, स्पर्श, दर्द, चुभन आदि संवेदी उत्तेजनाओं को ग्रहण करता है। मानव मस्तिष्क में श्रवण संवेदी क्षेत्र टेम्पोरल पालि में, दृष्टि संवेदना केन्द्र अनुकपाल पालि में तथा प्राण संवेदी क्षेत्र टेम्पोरल पालि के भीतर भाग में स्थित रहते है। इसके अलावा बोध अनुभव केन्द्र पैराइटल पालि में स्थित होता है जिसमें स्पर्श, ताप, चुभन, दर्द आदि का आभास होता है।

प्रेरक कार्य (Motor Functions): प्रेरक क्रियाओं का संचालन एवं नियंत्रण भी प्रमस्तिष्क के प्रेरक केन्द्र द्वारा होता है। प्रेरक केन्द्र फ्रन्टल पालि के अग्र भाग के केन्द्रीय विदर के पास स्थित होता है। इस भाग में पिरैमिड के आकार की कोशिकाएं पाई जाती हैं जो शरीर के सभी ऐच्छिक पेशियों की गति का संचालन एवं नियमन करती हैं।

अतः प्रमस्तिष्क मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग है। यह बुद्धिमत्ता (Intelligence), याददाश्त (Memory), चेतना (Consciousness), अनुभव (Experience), विश्लेषण क्षमता (Analytic ability), तर्कशक्ति (Reasoning) तथा वाणी (Voice speech) आदि उच्च मानसिक कार्यकलापों के केन्द्र का कार्य करता है। प्रमस्तिष्क में संवेदी, प्रेरक तथा समन्वय स्थापक विशिष्ट क्षेत्र पाये जाते है।

2. अग्र मस्तिष्क पश्च (Diencephalon):
यह प्रमस्तिष्क एवं मध्य मस्तिष्क के बीच स्थित होता है। इसे थैलामेनसेफेलोन (Thalamencephalon) भी कहते हैं। इसमें पाई जाने वाली गुहा को डायोसील (Diocoel) या तृतीय निलय (Third Ventricle) कहते हैं। इसके तीन भाग होते हैं-
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(अ) एपीथेलेमस (Epithalamus): तृतीय गुहा की छत को एपीथेलेमस कहते हैं। इसमें एक रक्तक जालक होता है। इसकी मध्य रेखा पर पीनियल काय (pineal body) होती है तथा दोनों ओर धूसर द्रव्य से निर्मित थैलेमिक केन्द्रक (Thalamic nucleus) होता है। पीनियल ग्रन्थि द्वारा मिलैटोनिन (Melatonin) हार्मोन का स्त्रावण किया जाता है।
(ब) थैलेमस (Thalamus): यह धूसर द्रव्य के पिण्ड (mass) का एक जोड़ा तृतीय निलय की पार्श्व दीवार के ऊपरी भाग को बनाता है। यह 3 सेमी. लम्बा और डाइएनसेफेलॉन का 80% भाग होता है। थैलेमस संवेदी आवेगों के लिए मुख्य प्रसारण केन्द्र होता है जो कि मेरुरज्जु, मस्तिष्क स्तम्भ (Brain Stem) तथा सेरीबेलम से सेरीब्रल वल्कुट तक पहुंचते हैं। यह कुछ संवेदनाओं जैसे दर्द, ताप तथा दाब की तीव्र संवेदनाओं को भी स्वीकार करता है । इस भाग के निम्न कार्य हैं-
(क) ये संवेदी सूचनाएं जैसे- दृष्टि, स्वाद, श्रवण, स्पर्श, ताप, दबाव, कम्पन, पीड़ा आदि सूचनाओं का प्रसारण केन्द्र है।
(ख) यह स्वयं स्पर्श, दाय, पीड़ा व ताप, हर्ष (pleasantness) एवं विषाद या दुःख (sorrow) आदि की संवेदना की व्याख्या करने में समर्थ है।
(ग) इसके कुछ केन्द्रकों का स्मृति, भावुकता तथा बोध ज्ञान से सम्बन्ध होता है।

(स) हाइपोथैलेमस (Hypothalamus): यह डाइएनसेफेलॉन की पार्श्व दीवारों का निचला भाग तथा तृतीय निलय (डायोसील) का फर्श बनाता है। इसे मस्तिष्क के अधर तल से ही देखा जा सकता है। इसमें तंत्रिका कोशिकाओं (cytons) के लगभग एक दर्जन बड़े - बड़े केन्द्रक होते हैं। पूर्ण हाइपोथैलेमस चार भागों में बँटा होता है-

  • मैमिलरी बॉडी (Mammilary Body): यह मध्य मस्तिष्क के निकट स्थित पिछला भाग होता है जिसमें दो छोटे गोल से उभार होते हैं। यह प्राण संवेदनाओं से सम्बन्धित प्रतिवर्ती क्रियाओं के प्रसारण केन्द्र का काम करता है।
  • केन्द्रीय भाग (Tuberal Region): यह हाइपोथैलेमस का सबसे चौड़ा मध्यवती भाग है। इसके तल पर धूसर द्रव्य का ट्यूबर साइनेरियम (Tuber Cinerium) नामक उभार तथा कीपक (infundibulum) होता है जो पीयूष ग्रन्थि के हाइपोथेलेमस को जोड़ता है।
  • अधि दृक भाग (Supra optic Region): यह दृक काइऐज्मा (Optic chaisma) के ठीक ऊपर स्थित भाग है जिसकी तंत्रिका कोशिकाओं के अक्ष तन्तु पश्च पीयूष ग्रन्थि में जाते हैं।
  • पूर्व दृक भाग (Pre - optic Region): यह अधिक भाग के आगे स्थित होता है।


हाइपोथैलेमस के कार्य (Functions of Hypothalamus):

  • यह तंत्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तन्त्र में सम्बन्ध स्थापित रखता है।
  • इसमें स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के उच्च केन्द्र होते हैं जो भूख, प्यास, नींद, भावनाओं, सन्तुष्टि, वृत्ति, क्रोध, प्रसन्नता आदि पर मस्तिष्क के नियंत्रण को दर्शाते हैं।
  • यह शरीर के ताप तथा समस्थापन (Homeostasis) का नियंत्रण करता है।
  • इसकी कुछ तंत्रिका स्रावी (Neuro Secretory) कोशिकाएँ वेसोप्रेसिन (Vasopressin) तथा ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) नामक हार्मोन्स का स्रावण करती हैं जो पश्च पीयूष ग्रन्धि द्वारा रुधिर में मुक्त होते हैं।
  • इसकी तंत्रिका खावी कोशिकाओं द्वारा सावित मोचन एवं निरोधी न्यूरोहार्मोन्स, पीयूष ग्रन्थि की स्रावण क्रिया को नियंत्रित करते हैं। 

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प्रश्न 5. 
प्रतिवती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
किसी उद्दीपन के प्रति स्वायत्त एवं स्वचलित होने वाली अनुक्रिया को प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहते हैं। यह एक अनैच्छिक क्रिया है अर्थात् यह बिना सोचे - विचारे तत्काल होती है। यह परिधीय तन्त्रिकीय उद्दीपन के फलस्वरूप केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र के विशेष भाग की अनुपस्थिति में होती है।

सन् 1933 में मार्शल हाल (Marshall Hall) ने इन अनैच्छिक क्रियाओं को प्रतिवर्ती क्रिया का नाम दिया।
प्रतिवती क्रिया.की कार्यविधि (Mechanism of reflex action): प्रत्येक मेरु तंत्रिका के दो मूल होते हैं - संवेदी तन्तुओं से निर्मित पृष्ठ मूल (Dorsal root) तथा चालक तन्तुओं से बना अधर मूल (Venteral root)।
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जब कभी हाथ की त्वचा में पिन चुभाई जाती है या अम्ल गिर जाता है तो त्वचा में उपस्थित संवेदी अंग उत्तेजित हो उठते हैं तथा ये संवेदनाएँ मेरु तन्त्रिका के पृष्ठ मूल में से होती हुई मेरुरज्णु के धूसर द्रव्य में पहुँचती हैं। यहाँ से इन पीड़ा संवेदनाओं का विश्लेषण कर प्रत्युत्तर चालक तन्त्रिका कोशिकाओं में पहुँचता है, तत्पश्चात् ये प्रेरणाएँ मेरु तन्त्रिका के अधर - मूल के तन्तुओं के माध्यम से हाथ की पेशियों में पहुंचा दी जाती हैं, जिससे पेशियों में संकुचन होना प्रारम्भ हो जाता है, फलस्वरूप हाथ में गति होती है। इस तरह प्रमस्तिष्क को बिना सूचना पहुँचाये ही उद्दीपन के प्रति कार्य पूर्ण हो जाता है। इस प्रकार की अनैच्छिक क्रियाओं में संवेदी अंग से लेकर अपवाहक अंग (Effective organ) तक तन्त्रिका आवेग के परिपथ को प्रतिवर्ती चाप (Reflex arch) कहते हैं।

प्रतिवर्ती चाप में निम्नलिखित रचनाएं सम्मिलित रहती हैं-

  1. संबेदी अंग (Sensory organ): जन्तु के संवेदी अंग बाह्य अथवा आन्तरिक पर्यावरण से उद्दीपन प्राप्त कर उद्दीप्त हो जाते हैं।
  2. संवेदी न्यूरोन (Sensory neuron): इनके कोशिका काय (Cyton) स्पाइनल तंत्रिका के पृष्ठ मूल गुच्छक (Dorsal root ganglion) में स्थित रहते हैं तथा इनके एक्सॉन ही स्पाइनल तन्विका की पृष्ठ मूल बनाते हैं। ये आवेगों को तन्त्रिका आवेगों के रूप में संवेदी अंगों से मेरुरज्जु तक ले जाते हैं।
  3. सहबंधक न्यूरोन (Association neuron): ये मेरुरज्जु के धूसर द्रव्य में स्थित होते हैं तथा संवेदी न्यूरोन्स को चालक न्यूरोन्स से जोड़ने का कार्य करते हैं। तन्त्रिका आवेग को ये संवेदी न्यूरोन्स से चालक न्यूरोन्स को प्रेषित करते हैं।
  4. चालक न्यूरोन (Motor neuron): ये प्राय: मेरुरज्जु के अधर भंग के धूसर द्रव्य में उपस्थित रहते हैं। इनके एक्सॉन सम्मिलित रूप से एकत्रित होकर चालक तन्त्रिका तन्तु बनाते हैं जो कि स्पाइनल तन्त्रिका के अधरमूल में से होकर कार्य कर अंगों में पहुंचकर समाप्त हो जाते हैं। ये कोशिकाएँ सहबंधक न्यूरोन से तन्त्रिकीय आवेग को ग्रहण कर उन्हें कार्यकर अंगों में ले जाते हैं।
  5. कार्यकर अंग (Effector organs): ये अंग प्राप्त हुई तन्त्रिकीय आवेगों के अनुसार प्रक्रिया सम्पन्न करते हैं।

उपर्युक्त उदाहरण में केवल एक संवेदी तथा एक चालक तन्तु ही भाग लेता है। अतः इस प्रकार की प्रतिवर्ती क्रिया को मोनोसिनैष्टिक रिफ्लेक्स (Monosynaptic reflex) कहते हैं। परन्तु अधिकांश प्रतिवर्ती क्रियाओं के कई संवेदी व कई चालक तन्तु कार्यरत रहते हैं तथा इन तन्तुओं के मध्य विशेष प्रकार की सहबंधक न्यूरोन्स सिनेप्स बनाती हैं। अत: इस प्रकार की जटिल प्रतिवर्ती क्रियाओं को पोली सिनैप्टिक रिफ्लेक्स (Polysynaptic reflexes) कहा जाता है।

प्रतिवी क्रियाओं के प्रकार (Types of reflex actions):

  • सरल प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Simple reflex actions)
  • प्रतिबंधित प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Conditional reflex actions)

सरल प्रतिवर्ती क्रियाएँ प्रायः प्राणियों में जन्म से ही उपस्थित एवं स्वाभाविक रूप से सम्पन्न होती हैं। जैसे-

  1. घुटनों का झटकना (Knee Jerk): पटेला के टेण्डन खिंचना, यह पटेलर रिफ्लेक्स कहलाता है। 
  2. आँखों का झपकना 
  3. जलने या चुभने से हाथ को जल्दी हटा लेना 
  4. खांसी, छींक और जंभाई 
  5. गिरने से शरीर को तुरन्त सन्तुलित करना।

इनका संचालन स्पाइनल कॉर्ड द्वारा नियंत्रित किया जाता है, किन्तु कुछ ऐसी प्रतिवती क्रियाएँ भी होती हैं, जिन्हें जन्तु अपने अनुभव एवं निरन्तर अभ्यास से उपार्जित करता है, जैसे - साइकिल चलाना अर्थात् ये क्रियाएँ आवश्यकतानुसार स्वत: ही प्रभावी हो उठती हैं। इन क्रियाओं का अध्ययन इवान पावलोव ने किया।

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प्रश्न 6. 
नेत्र की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाइए एवं इसकी संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नेत्र के भाग (Parts of an eye):
नेत्र गोलक (Eyeball): नेत्र गोलक खोखला होता है तथा इसकी भित्ति तीन स्तरों की बनी होती है। बाहर से भीतर ये क्रमशः दृढ़ पटल (Sclerotic), रक्तक पटल (Choroid) तथा रेटिना (Retina) कहलाते हैं।

(1) दृढ़ पटल (Sclerotic Coat): यह नेत्र - गोलक की दीवार का सबसे बाहरी स्तर होता है तथा प्राय: दो भागों में बांटा जा सकता है कानिया (Cornea) जो नेत्र कोटर से लगभग 1/5 भाग बाहर उभरी होती है तथा महीन पारदर्शक झिल्ली के रूप में होती है। शेष 4/5 भाग जो नेत्र कोटर के अन्दर रहता है, स्क्ले रा (Sclera) कहलाता है तथा मजबूत तन्तुमय संयोजी ऊतक का बना होता है। स्क्लेरोटिक स्तर नेत्र गोलक को सुरक्षा एवं आकृति प्रदान करता है।

(2) कोरॉएड स्तर अर्थात् रक्तक पटल (Choroid Coat): यह नेत्र गोलक का मध्य स्तर होता है जो कोमल संयोजी ऊतक द्वारा बना होता है। इसकी कोशिकाओं में रंगा कणिकायें पाई जाती हैं तथा इन्हीं के कारण आँखों में रंग दिखाई देता है। खरहे में रंगा कणिकाएं प्रायः लाल होती हैं परन्तु मनुष्य में काली, नीली, भूरी होती हैं। कोरॉएड स्तर में रक्त केशिकाओं (Blood Capillaries) का जाल पाया जाता है। कार्निया (Cornea) क्षेत्र को छोड़ कर यह स्तर स्क्ले रोटिक स्तर से चिपका रहता है। कार्निया के आधार पर कोरॉएड स्तर स्क्लेरोटिक स्तर से अलग होकर भीतर की ओर इसके सामने एक गोलाकार पट्टी बनाता है जिसे आइरिस या उपतारा (Iris) कहते हैं। आइरिस के मध्य में एक बड़ा छिद्र होता है, जिसे पुतली अथवा तारा (Pupil) कहते हैं। पूरी आइरिस पर अरेखित अरीय प्रसारी पेशियाँ (Radial Dilatary Muscles) फैली रहती हैं, जिनके संकुचन से पुतली का व्यास बढ़ता है।

इसी प्रकार आइरिस पट्टी के स्वतन्त्र किनारे पर पुतली के चारों ओर अरेखित वर्तुल स्फिंक्टर पेशियाँ (Circular Sphincter Muscles) फैली होती हैं जिनके संकुचन से पुतली का व्यास घट जाता है। अतः आइरिस एक कैमरे के डाएफ्राम (Diaphragm) की भांति अपने छिद्र अर्थात् पुतली के व्यास को घटाबढ़ाकर आवश्यकतानुसार गोलक में जाने वाले प्रकाश की मात्रा का नियमन करती है। आइरिस के ठीक पीछे इसकी आधार रेखा पर कोरॉएड स्तर पर मोटी धारी के समान फला होता है। इस भाग को सिलियरी काय (Ciliary Body) कहते हैं तथा इसमें वर्तुल एवं अरीय पेशियां होती हैं जिनके कारण सिलियरी काय संकुचनशील होती है। सिलियरी काय से अनेक महीन एवं लचीले निलम्बन रजु (Suspensory Ligaments) निकलते हैं जो नेत्र गोलक की गुहा में स्थित लैन्स (Lens) से संलग्न होती है।

(3) रेटिना या दृष्टि पटल (Retina): यह नेत्र गोलक की भित्ति का सबसे भीतरी भाग होता है। यह नेत्र गोलक के पश्च भाग में स्थित होता है एवं कोरॉएड स्तर को ढके रहता है। रेटिना तीन स्तरों की बनी होती है अर्थात् बाहर से भीतर की ओर।

(1) प्रकाशग्राही कोशिकाएँ (Photoreceptor cells): यह परत लम्बी - लम्बी संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है। ये कोशिकाएँ परत में खड़ी स्थिति में होती हैं। परत की कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं। इनमें से कुछ अपेक्षाकृत लम्बी होती हैं तथा रंगा स्तर से लगी रहती हैं, इन्हें शलाकायें (Rods) कहते हैं। इसके विपरीत अधिकांश कोशिकाएँ अपेक्षाकृत चौड़ी तथा कुछ चपटी होती हैं तथा इनके नुकीले सिरे रंगा स्तर तक पहुँच नहीं पाते हैं। इन्हें शंकु (Cones) कहते हैं।
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प्रत्येक शलाका एवं शंकु का भीतरी सिरा पतला होकर एक महीन तन्त्रिका तन्तु में विभेदित होता है जो शीघ्र शाखान्वित होकर इस स्तर की दूसरी परत के तन्तुओं से साइनेप्सीस बनाता है। शलाकाओं (Rods) द्वारा प्रकाश एवं अन्धकार के भेद का ज्ञान होता है। इसके विपरीत शंकुओं (Cones) द्वारा रंगभेद का ज्ञान होता है। इस परत की कोशिकाओं में भी कुछ रंगा कणिकाएँ होती हैं।

(2) द्विधुवीय तन्त्रिका कोशिका परत (Bipolar Neuronic Layer): द्विध्रुवीय न्यूरॉन की परत अनेक द्विधुवीय (Bipolar) तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है। इन न्यूरॉन के डैण्ड्राइट (Den drites) शनाकाओं एवं शंकुओं के तन्तुओं से अनेक साइनेप्स बनाते हैं। इसी प्रकार इन तन्त्रिका कोशिकाओं के एक्सॉन (Axons) संवेदी स्तर की तीसरी गुच्छिकीय परत के तन्त्रिका तन्तुओं से साइनेप्सीस (Synapses) बनाते हैं।

(3) गुच्छिकीय परत (Ganglionic Layer): यह परत भी द्विध्रुवीय न्यूरॉन की बनी होती है। परन्तु यहाँ तन्त्रिका कोशिकाएँ अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं। इन न्यूरॉन के बाहर डैण्ड्राइट ऊपरी परत के एक्सॉन से साइनेप्सीस (Synapses) बनाते हैं तथा भीतरी अपेक्षाकृत लम्ये एक्सॉन नेत्र - गोलक के आधार भाग के तन्तुओं में स्वयं परिवर्तित हो जाते हैं तथा गोलक को बेध कर बाहर निकलते हैं। इस आधार भाग को अन्ध बिन्दु (Blind Spot) कहते हैं, क्योंकि इस स्थान पर गोलक की परतों का अभाव होता है तथा यह भाग प्रतिबिम्ब बनाने में सहयोग नहीं देता है।

लेन्स (Lens): आइरिस के ठीक पीछे नेत्र गोलक की गुहा में एक बड़ा पारदर्शक व क्रिस्टेलाइन (Crystalline) किन्तु लचीला लेन्स (Lens) होता है। लेन्स द्विउन्नतोदर (Biconvex) होता है तथा दोनों ओर उभरा होता है। लेन्स पर एक पारदर्शक एवं महीन संयोजी ऊतक का खोल होता है जिसे लेन्स - खोल (Lens Capsule) कहते हैं। लेन्स सिलियरी काय के लचीले निलम्बन रजुओं (Suspensory Ligaments) द्वारा गोलक की गुहा में सधा रहता है। साथ ही ये रजु लेन्स को थोड़ा - सा आगे - पीछे आवश्यकतानुसार सरकाते भी हैं।

लेन्स तथा कॉर्निया के बीच की नेत्र - गोलक की गुहा में अपेक्षाकृत अधिक तरल पारदर्शक द्रव्य भरा होता है, जिसे तेजो - जल (Aqueous Humour) कहते हैं। इसी प्रकार लेन्स एवं रेटिना के बीच पारदर्शक किन्तु अपेक्षाकृत लसदार गाढ़ा द्रव भरा होता है, जो काचर - जल (Vitreous Humour) कहलाता है।

गोलक, लेन्स तथा कार्निया की मध्य आयाम अक्ष (Longitudinal Middle Axis) दुक अक्ष (Optic Axis) कहलाता है तथा इसी अक्ष पर किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब सबसे स्पष्ट बनता है। दृक अक्ष पर स्थित नेत्र के भाग को मध्यवर्ती भाग अर्थात् एरिया सेन्ट्रैलिस (Area Centralis) कहते हैं क्योंकि ऐरिया सेन्ट्रैलिस पीला दिखाई देता है, इसलिए इसे पीत बिन्दु (Yellow Spot) की संज्ञा दी जाती है। इसे मैक्यूला ल्यूटिया भी कहते हैं। मध्यवर्ती भाग की रेटिना में एक छोटासा गट्ठा होता है जिस मध्यवता गत अथवा फीविया सेन्ट्रलिस (Fovia Centralis) कहते हैं। मध्यवर्ती गर्त में केवल शंकु (Cones) उपस्थित होते हैं तथा शलाकाओं का पूर्ण अभाव होता है। 

प्रश्न 7.
मनुष्य के कर्ण का नामांकित चित्र बनाते हुए इसकी रचना को समझाइए।
उत्तर:
कर्ण (The Ear):
मनुष्य के कर्ण की संरचना: मनुष्य के सिर पर दोनों ओर पार्श्व में एक जोड़ी कान होते हैं। कान सुनने के साथ - साथ सन्तुलन का कार्य भी करते हैं। कर्ण को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  • बाह्य कर्ण 
  • मध्य कर्ण 
  • अन्तःकर्ण।

1. बाह्य कर्ण (External Ear): यह कान का सबसे बाहरी भाग होता है। इसके दो भाग होते हैं-

  • कर्ण पल्लब या पिन्ना (Ear Pinna) 
  • बाह्य कर्ण कुहर (External Auditory Meatus)।

(i) कर्ण पल्लव (Ear Pinna): कर्ण का बाहरी भाग होता है जो लचीली उपास्थि का बना होता है। मनुष्य में कर्ण पल्लव अगतिशील होता है। यह बाह्य ध्वनि तरंगों को एकत्रित करके बाह्य कर्ण कुहर में भेजने का कार्य करता है।

(ii) बाह्य कर्ण कुहर (External Auditory Meatus): यह 2.5 से 3.0 सेमी. लम्बी होती है। इसके भीतरी सिरे पर पतली दृढ़ झिल्ली पाई जाती है जिसे कान का पर्दा अथवा कर्ण पटह (Ear drum) कहते हैं। यह बाह्य कर्ण को मध्य कर्ण से अलग करती है। इस दीवार में कर्णमाम (Earwax) अथवा सोरुमान स्त्रावित करने वाली सेरुमिनस प्रन्थि (Ceruminous gland) होती है। इसका स्राव धूल व बाहा जीवाणुओं आदि से सुरक्षा करता है। बाह्य कर्ण कुहर ध्वनि तरंगों को कर्ण पटह तक पहुँचाने का कार्य करता है।
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2. मध्य कर्ण (Middle Ear): कर्ण पटह और आन्तरिक कर्ण के बीच के भाग को मध्य कर्ण कहते हैं। मध्य कर्ण की गुहा को कर्ण गुहा (Tympanic Cavity) कहते हैं। मध्य कर्ण में तीन छोटी अस्थियाँ होती हैं। पिछली अस्थि जो कि कर्ण पटह से जुड़ी रहती है और हथौड़ी रूपी होतीहै, यह मैलियस (Malleus) कहलाती है। इसका दूसरा सिरा निहाई (Anvil) के आकार की अस्थि से जुड़ा रहता है जिसे इन्कस (Incus) कहते हैं। इस इन्कस का चौड़ा सिरा मैलियस व पतला सिरा तीसरी अस्थि स्टेपीज से जुड़ा रहता है। स्टेपीज का आकार घोड़े की जीन की रकाव के समान होता है। इसमें एक छिद्र होता है। स्टेपीज का दूसरा सिरा फेनेस्ट्रा ओवैलिस (Fenestra Ovalis) पर मढ़ी हुई एक झिल्ली पर सधा रहता है। इसी के ठीक नीचे एक दूसरा अण्डाकार छिद्र फेनेस्ट्रा रोटन्डस (Fenestra Rotundus) स्थित रहता है। ये दोनों ही छिद्रमय रचनायें एक झिल्ली से ढकी रहती हैं।

(3) अन्तः कर्ण (Internal Ear): यह कर्ण का सबसे भीतरी भाग होता है। इसके दो भाग होते हैं जिन्हें क्रमश: 

  • अस्थिल गहन (Bony Labyrinth) 
  • कला गहन (Membranous Labyrinth) कहते हैं।

(i) अस्थिल गहन (Bony Labyrinth): सम्पूर्ण कला गहन के चारों ओर श्रवण कोष की टेम्पोरल अस्थि से निर्मित अस्थिल घेरा होता है। इसे अस्थिल गहन कहते हैं। कला गहन व अस्थिल गहन के मध्य की संकरी गुहा, परिलसिका भरा रहता है। अस्थि गहन के बाहर की ओर झिल्ली से मढ़े फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं फेनेस्ट्रा रोटण्डस छिद्र होते हैं। इनके द्वारा कला गहन मध्य कर्ण से सम्बन्धित रहती है।
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(ii) कला गहन (Membranous Labyrinth): प्रत्येक कला गहन में एक वेस्टीब्यूल स्वयं यूटीकुलस तथा सैक्यूलस (Utriculus and Sacculus) नामक द्विकोषीय रचनाओं से बना होता है। ये दोनों रचनायें सैक्यूलो - यूट्रिकुलर नाल (Sacculo - utricular Canal) द्वारा परस्पर सम्बन्धित रहती हैं। यूट्रीकुलस से तीन अर्द्धचन्द्राकार नलिकाएँ निकलती हैं जिन्हें स्थिति अनुसार अग्र अर्द्धचन्द्राकार नलिका (Anterior Semicircular Canal), पश्च अर्द्धचन्द्राकार नलिका (Posterior Semicircular Canal) तथा बाह्य अर्द्धचन्द्राकार नलिका (External Semicircular Canal) कहते हैं। अन एवं पश्च अर्द्धचन्द्राकार नलिकाएँ प्रायः यूट्रिकुलस के एक ही स्थान से विकसित होकर कुछ दूरी तक जुड़ी रहती हैं। दोनों नलिकाओं के इस संयुक्त भाग को क्रस कम्यून (Crus Commune) कहा जाता है।

एम्पुला (Ampulla): प्रत्येक एम्पुला में एक संवेदी केन्द्र होता है जिसे क्रिस्टा (Crista) कहते हैं। यह संवेदी कोशिकाओं का बना होता है जो संवेदी रोमयुक्त होता है।
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प्रत्येक अर्द्धचन्द्राकार नलिका का दूरस्थ सिरा फूलकर एम्पुला नामक रचना का निर्माण करता है। यूट्रीकुलस तथा सैक्यूलस में भी एम्पुला के समान रचनाएँ पाई जाती हैं जिन्हें मैक्यूली (Maculae) कहते हैं। ये रचनाएँ आधार कोशिकाओं तथा रोमयुक्त संवेदी कोशिकाओं की बनी होती हैं।
कोक्लिया की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Cochlea): सैक्यूलस के पावं अधर सतह से एक लम्बी कुण्डलित स्प्रिंगनुमा रचना विकसित होती है जिसे कोक्लिया की नली या कोक्लिया (Cochlear Duct or Cochlea) कहते हैं। इस नली की प्रत्येक कुण्डली के बीच में लिगामेन्ट या तन्तु स्थित रहते हैं जिनसे इसकी विशिष्ट कुण्डलाकार आकृति का नियमन किया जाता है। कोक्लिया की नली चारों ओर से अस्थि कोश द्वारा घिरी रहती है। 

कोक्लिया की नली रीसनर्स कला (Reissner's Membrane) तथा आधार कला (Basement Membrane) द्वारा तीन गुहाओं में विभाजित रहती है-

  • इसका ऊपरी भाग या कक्ष स्कैला वैस्टीब्यूलाई (Scala Vestibuli)
  • मध्य भाग प्रमाण मध्या या स्केला मीडिया (Scala Media)
  • निचला भाग मध्य कर्ण सोपान या स्केला टिम्पेनाई (Scala Tympani) कहलाता है।

स्केला वेस्टीब्यूलाई तथा स्केला टिम्पेनाई में पेरिलिम्फ (Perilymph) भरा रहता है किन्तु ये दोनों गुहाएँ एक - दूसरे से एक छिद्र द्वारा सम्बद्ध रहती हैं जिसे हेलीकोट्रेमा (Helicotrema) कहा जाता है।

कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) बेसिलर कला के एपिथिलियम स्तर पर मध्य रेखा की पूरी लम्बाई पर एक संवेदी अनुलम्ब उभार के रूप में पाया जाता है। इसमें अवलम्बी कोशिकाओं (Supporting Cells) व स्तम्भ संवेदी कोशिकाओं (Columnar Sensory Cell) की तीन पंक्तियाँ बाहर की ओर व एक पंक्ति भीतर की ओर होती है। स्तम्भ संवेदी कोशिकाओं व अवलम्बी कोशिकाओं के बीच कुछ रिक्त स्थान पाये जाते हैं । इन रिक्त स्थानों में पाये जाने वाले द्रव को कार्टिलिम्फ (Cortilymph) कहते हैं।
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अवलम्बी कोशिकाएँ निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

  1. डीटर की कोशिकाएँ (Dieter's Cells) 
  2. खम्भ की कोशिकाएँ (Pillar's Cells) 
  3. हेन्सन की कोशिकाएँ (Hensen's Cells)।

स्तम्भ संवेदी कोशिका के स्वतन्त्र सिरे पर रोम पाये जाते हैं। इन्हें स्टीरियोसिलिया (Stereocilia) कहते हैं। इन कोशिकाओं के अधर तल पर श्रवण तन्त्रिका (Auditory Nerve) की शाखायें पायी जाती हैं। यहाँ पायी जाने वाली शाखा को कॉक्लियर शाखा कहते हैं।
कारटाई के अंग के ऊपर एक टेक्टोरियल झिल्ली (Tactorial Membrane) पायी जाती है। यह एक तन्तुमय झिल्ली है। संवेदी कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे इस टेक्टोरियल झिल्ली में फंसे रहते हैं।

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प्रश्न 8. 
कोक्लिया के काट का नामांकित चित्र बनाइए एवं कर्ण द्वारा सुनने की क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
कर्ण (The Ear):
मनुष्य के कर्ण की संरचना: मनुष्य के सिर पर दोनों ओर पार्श्व में एक जोड़ी कान होते हैं। कान सुनने के साथ - साथ सन्तुलन का कार्य भी करते हैं। कर्ण को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  • बाह्य कर्ण 
  • मध्य कर्ण 
  • अन्तःकर्ण।

(1)बाह्य कर्ण (External Ear): यह कान का सबसे बाहरी भाग होता है। इसके दो भाग होते हैं-

  • कर्ण पल्लब या पिन्ना (Ear Pinna) 
  • बाह्य कर्ण कुहर (External Auditory Meatus)।

(i) कर्ण पल्लव (Ear Pinna): कर्ण का बाहरी भाग होता है जो लचीली उपास्थि का बना होता है। मनुष्य में कर्ण पल्लव अगतिशील होता है। यह बाह्य ध्वनि तरंगों को एकत्रित करके बाह्य कर्ण कुहर में भेजने का कार्य करता है।

(ii) बाह्य कर्ण कुहर (External Auditory Meatus): यह 2.5 से 3.0 सेमी. लम्बी होती है। इसके भीतरी सिरे पर पतली दृढ़ झिल्ली पाई जाती है जिसे कान का पर्दा अथवा कर्ण पटह (Ear drum) कहते हैं। यह बाह्य कर्ण को मध्य कर्ण से अलग करती है। इस दीवार में कर्णमाम (Earwax) अथवा सोरुमान स्त्रावित करने वाली सेरुमिनस प्रन्थि (Ceruminous gland) होती है। इसका स्राव धूल व बाहा जीवाणुओं आदि से सुरक्षा करता है। बाह्य कर्ण कुहर ध्वनि तरंगों को कर्ण पटह तक पहुँचाने का कार्य करता है।
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(2) मध्य कर्ण (Middle Ear): कर्ण पटह और आन्तरिक कर्ण के बीच के भाग को मध्य कर्ण कहते हैं। मध्य कर्ण की गुहा को कर्ण गुहा (Tympanic Cavity) कहते हैं। मध्य कर्ण में तीन छोटी अस्थियाँ होती हैं। पिछली अस्थि जो कि कर्ण पटह से जुड़ी रहती है और हथौड़ी रूपी होतीहै, यह मैलियस (Malleus) कहलाती है। इसका दूसरा सिरा निहाई (Anvil) के आकार की अस्थि से जुड़ा रहता है जिसे इन्कस (Incus) कहते हैं। इस इन्कस का चौड़ा सिरा मैलियस व पतला सिरा तीसरी अस्थि स्टेपीज से जुड़ा रहता है। स्टेपीज का आकार घोड़े की जीन की रकाव के समान होता है। इसमें एक छिद्र होता है। स्टेपीज का दूसरा सिरा फेनेस्ट्रा ओवैलिस (Fenestra Ovalis) पर मढ़ी हुई एक झिल्ली पर सधा रहता है। इसी के ठीक नीचे एक दूसरा अण्डाकार छिद्र फेनेस्ट्रा रोटन्डस (Fenestra Rotundus) स्थित रहता है। ये दोनों ही छिद्रमय रचनायें एक झिल्ली से ढकी रहती हैं।

(3) अन्तः कर्ण (Internal Ear): यह कर्ण का सबसे भीतरी भाग होता है। इसके दो भाग होते हैं जिन्हें क्रमश: 

  • अस्थिल गहन (Bony Labyrinth) 
  • कला गहन (Membranous Labyrinth) कहते हैं।

(i) अस्थिल गहन (Bony Labyrinth): सम्पूर्ण कला गहन के चारों ओर श्रवण कोष की टेम्पोरल अस्थि से निर्मित अस्थिल घेरा होता है। इसे अस्थिल गहन कहते हैं। कला गहन व अस्थिल गहन के मध्य की संकरी गुहा, परिलसिका भरा रहता है। अस्थि गहन के बाहर की ओर झिल्ली से मढ़े फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं फेनेस्ट्रा रोटण्डस छिद्र होते हैं। इनके द्वारा कला गहन मध्य कर्ण से सम्बन्धित रहती है।
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(ii) कला गहन (Membranous Labyrinth): प्रत्येक कला गहन में एक वेस्टीब्यूल स्वयं यूटीकुलस तथा सैक्यूलस (Utriculus and Sacculus) नामक द्विकोषीय रचनाओं से बना होता है। ये दोनों रचनायें सैक्यूलो - यूट्रिकुलर नाल (Sacculo - utricular Canal) द्वारा परस्पर सम्बन्धित रहती हैं। यूट्रीकुलस से तीन अर्द्धचन्द्राकार नलिकाएँ निकलती हैं जिन्हें स्थिति अनुसार अग्र अर्द्धचन्द्राकार नलिका (Anterior Semicircular Canal), पश्च अर्द्धचन्द्राकार नलिका (Posterior Semicircular Canal) तथा बाह्य अर्द्धचन्द्राकार नलिका (External Semicircular Canal) कहते हैं। अन एवं पश्च अर्द्धचन्द्राकार नलिकाएँ प्रायः यूट्रिकुलस के एक ही स्थान से विकसित होकर कुछ दूरी तक जुड़ी रहती हैं। दोनों नलिकाओं के इस संयुक्त भाग को क्रस कम्यून (Crus Commune) कहा जाता है।

एम्पुला (Ampulla): प्रत्येक एम्पुला में एक संवेदी केन्द्र होता है जिसे क्रिस्टा (Crista) कहते हैं। यह संवेदी कोशिकाओं का बना होता है जो संवेदी रोमयुक्त होता है।
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प्रत्येक अर्द्धचन्द्राकार नलिका का दूरस्थ सिरा फूलकर एम्पुला नामक रचना का निर्माण करता है। यूट्रीकुलस तथा सैक्यूलस में भी एम्पुला के समान रचनाएँ पाई जाती हैं जिन्हें मैक्यूली (Maculae) कहते हैं। ये रचनाएँ आधार कोशिकाओं तथा रोमयुक्त संवेदी कोशिकाओं की बनी होती हैं।
कोक्लिया की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Cochlea): सैक्यूलस के पावं अधर सतह से एक लम्बी कुण्डलित स्प्रिंगनुमा रचना विकसित होती है जिसे कोक्लिया की नली या कोक्लिया (Cochlear Duct or Cochlea) कहते हैं। इस नली की प्रत्येक कुण्डली के बीच में लिगामेन्ट या तन्तु स्थित रहते हैं जिनसे इसकी विशिष्ट कुण्डलाकार आकृति का नियमन किया जाता है। कोक्लिया की नली चारों ओर से अस्थि कोश द्वारा घिरी रहती है। 

कोक्लिया की नली रीसनर्स कला (Reissner's Membrane) तथा आधार कला (Basement Membrane) द्वारा तीन गुहाओं में विभाजित रहती है-

  • इसका ऊपरी भाग या कक्ष स्कैला वैस्टीब्यूलाई (Scala Vestibuli)
  • मध्य भाग प्रमाण मध्या या स्केला मीडिया (Scala Media)
  • निचला भाग मध्य कर्ण सोपान या स्केला टिम्पेनाई (Scala Tympani) कहलाता है।

स्केला वेस्टीब्यूलाई तथा स्केला टिम्पेनाई में पेरिलिम्फ (Perilymph) भरा रहता है किन्तु ये दोनों गुहाएँ एक - दूसरे से एक छिद्र द्वारा सम्बद्ध रहती हैं जिसे हेलीकोट्रेमा (Helicotrema) कहा जाता है।
कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) बेसिलर कला के एपिथिलियम स्तर पर मध्य रेखा की पूरी लम्बाई पर एक संवेदी अनुलम्ब उभार के रूप में पाया जाता है। इसमें अवलम्बी कोशिकाओं (Supporting Cells) व स्तम्भ संवेदी कोशिकाओं (Columnar Sensory Cell) की तीन पंक्तियाँ बाहर की ओर व एक पंक्ति भीतर की ओर होती है। स्तम्भ संवेदी कोशिकाओं व अवलम्बी कोशिकाओं के बीच कुछ रिक्त स्थान पाये जाते हैं । इन रिक्त स्थानों में पाये जाने वाले द्रव को कार्टिलिम्फ (Cortilymph) कहते हैं।
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अवलम्बी कोशिकाएँ निम्न तीन प्रकार की होती हैं-

  • डीटर की कोशिकाएँ (Dieter's Cells) 
  • खम्भ की कोशिकाएँ (Pillar's Cells) 
  • हेन्सन की कोशिकाएँ (Hensen's Cells)।

स्तम्भ संवेदी कोशिका के स्वतन्त्र सिरे पर रोम पाये जाते हैं। इन्हें स्टीरियोसिलिया (Stereocilia) कहते हैं। इन कोशिकाओं के अधर तल पर श्रवण तन्त्रिका (Auditory Nerve) की शाखायें पायी जाती हैं। यहाँ पायी जाने वाली शाखा को कॉक्लियर शाखा कहते हैं।
कारटाई के अंग के ऊपर एक टेक्टोरियल झिल्ली (Tactorial Membrane) पायी जाती है। यह एक तन्तुमय झिल्ली है। संवेदी कोशिकाओं के स्वतन्त्र सिरे इस टेक्टोरियल झिल्ली में फंसे रहते हैं।

श्रवण की क्रिया (Mechanism of Hearing):
कर्ण के दोहरे कार्य में देह संतुलन एवं श्रवण क्रिया सम्मिलित रहती है किन्तु इसका प्राथमिक कार्य देह सन्तुलन ही माना गया है।
(1) संतुलन क्रिया (Equilibrium or Balancing): संतुलन का कार्य यूट्रिकुलस, सैक्यूलस व अर्धवृत्ताकार नलिकाओं द्वारा किया जाता है। जन्तुओं में दो प्रकार की संतुलन संवेदनायें पायी जाती है-

(i) स्थैतिक संतुलन (Static Balance): इस प्रकार का संतुलन आराम की स्थिति में देखा जा सकता है। इस संतुलन का सम्बन्ध मुख्यतया गुरुत्व (Gravity) के परिप्रेक्ष्य में शरीर की स्थिति से है व विशेषतया सिर की स्थिति से है।
शरीर व खास तौर से सिर की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञान, यूट्रिकुलस व सैक्यूलस के श्रवणकूटों के द्वारा किया जाता है। प्रवणकूटों (Cristae) के संवेदी रोम आटोकोनिया द्वारा संवेदित होते हैं। यहाँ से श्रवण तन्त्रिका के तन्तु इस संवेदना को मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं। फिर यहां से चालक तन्तुओं (Motor Fibres) द्वारा उत्पन्न प्रतिक्रिया की प्रेरणा शरीर की कंकाल पेशियों को भेजी जाती है। 
रेल अथवा मोटर के धक्के, लिफ्ट द्वारा चढ़ते अथवा उतरते समय हम इस संवेदना से प्रभावित होते हैं।

(ii) गतिज संतुलन (Dynamic Balance): गतिज संतुलन शरीर की गतिमान अवस्था से सम्बन्धित है। यह संतुलन अर्धवृत्ताकार नलिका के एम्मुला में पाये जाने वाले क्रिस्टा द्वारा प्राप्त होता है। शरीर की गति के साथ एम्पुला के एन्डोलिम्फ में तरंगें उत्पन्न होती हैं। इससे एम्मुला हिलकर संवेदी कोशिकाओं को उत्तेजित कर देता है। यहाँ से संवेदनायें मस्तिष्क तक पहुँचाई जाती हैं। मस्तिष्क टाँगों की पेशियों को संतुलन हेतु प्रेरित करता है।

(2) श्रवण - क्रिया (Mechanism of Hearing): इसका प्रमुख श्रेय कॉरटाई के अंग को जाता है। बाह्य वातावरण से उत्पन्न ध्वनि तरंगें बाद कर्ण द्वारा एकत्रित होकर कर्ण पटह से टकराती हैं। कर्ण पटह के इस कम्पन को मध्यकर्ण में स्थित तीनों अस्थियाँ फेनेस्ट्रा ओवेलिस के ऊपर स्थित झिल्ली को पहुंचाती हैं। स्टेपीज के कम्पन को स्केला वैस्टीब्यूलाई में स्थित पेरीलिम्फ में पहुँचा देता है। इस कारण कम्पन वेग अनुसार पेरीलिम्फ का दबाव कभी घटता है, कभी बढ़ता है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप रीजनर्स कला में कम्पन उत्पन्न हो जाते हैं, ठीक इसी समय स्कैला टिम्पेनाई (Scala Tympani) में दबाव बढ़ने से आधार कला (Basilar Membrane) में भी कम्पन होता है। इस तरह रीजनर्स तथा आधार कला के कम्पन से कोरटाई अंग की संवेदी कोशिकाएँ भी कम्पित हो उठती हैं। इन्हीं संवेदी कोशिकाओं से कम्पन प्रेरणाएँ प्राप्त कर श्रवण तन्त्रिका मस्तिष्क को पहुँचाती है। जहाँ इन कम्पनों का विश्लेषण कर मनुष्य ध्वनि को सुनने व समझने में सक्षम हो पाता है।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्न

प्रश्न 1. 
सिनेप्स से तंत्रिका आवेग के संचरण के लिए आवश्यक रसायन कहलाता है-
(a) एसीटाइलकोलिन 
(b) कोलीनेस्ट्रेज 
(c) कोलीन
(d) ऐसीटिक अम्ल 
उत्तर:
(a) एसीटाइलकोलिन 

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प्रश्न 2. 
पश्च मस्तिष्क में कौन - कौनसे भाग होते हैं-
(a) पोन्स + सेरीबेलम 
(b) हाइपोथैलेमस + सेरीबेलम 
(c) मेड्युला ऑब्लाँगेटा + सेरीबेलम
(d) मेड्युला ऑब्लाँगेटा + सेरीबेलम + पोन्स 
उत्तर:
(d) मेड्युला ऑब्लाँगेटा + सेरीबेलम + पोन्स

प्रश्न 3. 
मस्तिष्क के निम्नलिखित क्षेत्रों में से कौनसा क्षेत्र उसके कार्य के साथ सही प्रकार से मेल नहीं खाता है-
(a) सेरीबेलम - भाषा समझना 
(b) कॉपर्स कैलोसम - बाएँ और दाएँ सेरीबल कॉर्टेक्स के मध्य संयोजन 
(c) सेरीब्रम - परिकलन और चिन्तन
(d) मेडुला ऑब्लॉनोटा - समस्थापन नियंत्रण
उत्तर:
(a) सेरीबेलम - भाषा समझना 

प्रश्न 4. 
तन्त्रिका आवेग की सर्वाधिक तीव्र गति किसमें होती है-
(a) मेड्यूलेटेड तन्त्रिका 
(b) नॉन - मेड्यूलेटेड तन्त्रिका
(c) क्रेनियल तन्त्रिका 
(d) स्पाइनल तन्त्रिका 
उत्तर:
(a) मेड्यूलेटेड तन्त्रिका 

प्रश्न 5. 
तन्त्रिका आवेग किसकी गति के साथ आरम्भ होता है-
(a) K+
(b) Mg+
(c) Ca+
(d) Na+ 
उत्तर:
(d) Na+

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प्रश्न 6. 
सही जोड़ी बनाइये:

सूची - I

सूची - II

A. सैक्रल नर्व

1 जोड़ा

B. थॉरसिक नर्व

8 जोड़ा

C. कॉकसीजीयल नर्व

7 जोड़ा

D. सरवाइकल नर्व

12 जोड़ा

E. लम्बर नर्व

5 जोड़ा


(a) A - 4, B - 1, C - 3, D - 2, E - 5 
(b) A - 5, B - 3, C - 1, D - 4, E - 2 
(c) A - 3, B - 4, C - 2, D - 5, E - 1 
(d) A - 2, B - 5, C - 3, D - 1, E - 4
(e) A - 5, B - 4, C - 1, D - 2, E - 5 
उत्तर:
(e) A - 5, B - 4, C - 1, D - 2, E - 5 

प्रश्न 7. 
निम्नलिखित में से कौनसा कथन सही है-
(a) न ही हॉर्मोन्स, तंत्रिकीय क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और न ही तंत्रिकाएँ अन्तःस्त्रावी क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं 
(b) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ तंत्रिकीय क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं जबकि इसको विपरीत सही नहीं है। 
(c) न्यूरॉन्स अन्तःस्रावी ग्रन्धियों को नियंत्रित करती हैं जबकि इसका विपरीत सही नहीं है 
(d) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ तंत्रिकीय क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं तथा तंत्रिका तंत्र अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों को नियंत्रित करता है 
उत्तर:
(d) अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ तंत्रिकीय क्रियाओं को नियंत्रित करती हैं तथा तंत्रिका तंत्र अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों को नियंत्रित करता है 

प्रश्न 8. 
निम्नलिखित में से किस एक संरचना को, उसके पाये जाने वाले स्थान तथा उसके कार्य के साथ सही मिलाया गया है-

संरचना

स्थान

कार्य

(a) यूस्टेशियन नलिका

भीतरी कान का अग्र भाग

कर्णपटह झिल्ली के दोनों ओर वायु दाब को समान बनाये रखना

(b) अनुमस्तिष्क

मध्य मस्तिष्क

श्वसन तथा आमाशयी खावों का नियंत्रण

(c) हाइपोथैलेमस

अग्र मस्तिष्क

शरीर के तापमान तथा खाने - पीने की उत्तेजना का नियंत्रण

(d) अंध बिन्दु

उस स्थान के समीप जहाँ दृष्टि तंत्रिका आँख से बाहर आती है

शलाकाएँ एवं शंकु उपस्थित होते हैं परन्तु यहाँ पर निष्क्रिय हैं


उत्तर:

(c) हाइपोथैलेमस

अग्र मस्तिष्क

शरीर के तापमान तथा खाने - पीने की उत्तेजना का नियंत्रण

प्रश्न 9. 
दिए गए चित्र एक्सॉन टर्मिनल तथा सिनैप्स में A, B, C, D तथा E को क्रमश: दर्शाइए
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 21 तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय 11
(a) एक्सॉन टर्मिनल, सिनेप्टिक क्लेफ्ट, सिनेष्टिक वेसाइकल, न्यूरोट्रांसमीटर तथा रिसेप्टर 
(b) एक्सॉन टर्मिनल, सिनेप्टिक वेसाइकल, सिनेप्टिक क्लेफ्ट, रिसेप्टर तथा न्यूरोट्रांसमीटर 
(c) सिनेष्टिक क्लेफ्ट, सिनेप्टिक वेसाइकल, एक्सॉन टर्मिनल, न्यूरोट्रांसमीटर तथा रिसेप्टर 
(d) सिनेप्टिक क्लेफ्ट, एक्सॉन टर्मिनल, सिनेप्टिक वेसाइकल, न्यूरोट्रांसमीटर तथा रिसेप्टर 
(e) सिनेप्टिक वेसाइकल, एक्सॉन टर्मिनल, सिनेप्टिक क्लेफ्ट, रिसेप्टर तथा न्यूरोट्रांसमीटर 
उत्तर:
(b) एक्सॉन टर्मिनल, सिनेप्टिक वेसाइकल, सिनेप्टिक क्लेफ्ट, रिसेप्टर तथा न्यूरोट्रांसमीटर 

प्रश्न 10. 
मेरुरज्जु की अग्न होर्न कोशिकाएँ यदि नष्ट हो जाएं तो इसके परिणाम स्वरूप किसका लोप होगा-
(a) ऐच्छिक प्रेरक प्रतिवर्त 
(b) संधायी प्रतिवर्त 
(c) समावेशी (इंटीग्रेटिंग) प्रतिवर्त
(d) संवेदी प्रतिवर्त 
उत्तर:
(a) ऐच्छिक प्रेरक प्रतिवर्त 

प्रश्न 11. 
जब कभी कोई कोशिका (न्यूरॉन) विश्राम अवस्था में होती है, यानि उसमें आवेग का संवहन नहीं हो रहा होता, तय एक्सॉन झिल्ली की क्या दशा होती है-
(a) K+ आयनों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पारगम्य तथा Na+ आयनों के लिए लगभग अपारगम्य 
(b) Na+ आयनों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पारगम्य तथा K+ आयनों के लिए लगभग अपारगम्य 
(c) Na+ तथा K+ दोनों प्रकार के आयनों के लिए समानतः पारगम्य 
(d) Na+ तथा K+ दोनों आयनों के लिए अपारगम्य 
उत्तर:
(a) K+ आयनों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पारगम्य तथा Na+ आयनों के लिए लगभग अपारगम्य

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प्रश्न 12. 
मोटर न्यूरॉन द्वारा पेशी तन्तु का उद्दीपन कहाँ पर होता है-
(a) पेशीरेशक
(b) पेशीद्रव्य जालिका 
(c) तंत्रिका - पेशी संधि 
(d) अनुप्रस्थ नलिकाएँ 
उत्तर:
(c) तंत्रिका - पेशी संधि 

प्रश्न 13. 
तंप्रेषियों के ग्राही स्थान कहाँ पर स्थित होते हैं-
(a) सिनेप्टिक आशयों की शिल्लियों में 
(b) पूर्व - सिनेप्टिक झिल्ली में 
(c) तंत्रिकाक्ष के सिरों पर 
(d) पश्च सिनेष्टिक झिल्ली पर
उत्तर:
(d) पश्च सिनेष्टिक झिल्ली पर

प्रश्न 14. 
मायलिन आच्छद किसके द्वारा उत्पन्न होता है-
(a) श्वान कोशिकाएँ एवं ऑलिगोडेंड्रोसाइट्स 
(b) तारा कोशिका एवं श्वान कोशिकाएँ 
(c) ऑलिगोडेंड्रोसाइट्स एवं अस्थिशोषक
(d) अस्थिशोषक एवं तारा कोशिकाएँ 
उत्तर:
(a) श्वान कोशिकाएँ एवं ऑलिगोडेंड्रोसाइट्स 

प्रश्न 15. 
नीचे मानव कॉक्लिया (कर्णावर्त) के एक एकल पाश के अनुप्रस्थ सेक्शन का आरेखीय चित्र दिया गया है-
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निम्नलिखित में से किस एक विकल्प में तीन नामांकित भागों में सही नाम दिए हैं-
(a) D : संवेदी रोम कोशिकाएँ, A : अंतर लसीका, B : टेक्टोरियल झिल्ली 
(b) A : परिलसीका, B : टेक्टोरियल झिल्ली, C : अन्तर लसीका 
(c) B : टेक्टोरियल झिल्ली, C : परिलसीका, D : स्रावी कोशिकाएँ 
(d) C : अंतर लसीका, D : संवेदी रोम की कोशिकाएँ, A : सीरम
उत्तर:
(b) A : परिलसीका, B : टेक्टोरियल झिल्ली, C : अन्तर लसीका

प्रश्न 16. 
मानव नेत्र की शलाका प्रकार की प्रकाशग्राही कोशिकाओं में पाया जाने वाला बैंगनी लाल वर्णक रोडोप्सिन किसका व्युत्पाद होता है-
(a) विटामिन A
(b) विटामिन B1 
(c) विटामिन C
(d) विटामिन D 
उत्तर:
(a) विटामिन A

प्रश्न 17. 
मानव नेत्र के चार भाग A, B, C और D आरेख में दर्शाए गए हैं। भाग की सही पहचान के साथ-साथ उसके कार्य/लक्षण के विकल्प को चुनिए-
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(a) D - रक्तक पटल (कॉरॉइड) - इसका अगला भाग पक्ष्माभ काय बनाता है 
(b) A - रेटिना - प्रकाशमाही शलाका (रॉड) तथा शंकु (कोन) होते हैं 
(c) B - अंध बिन्दु - इसमें केवल कुछ शलाकाएँ तथा शंकु होते
(d) C - जलीय कक्ष - उस प्रकाश को परावर्तित कर देता है जो लेंस में से होकर गुजर नहीं पाता
उत्तर:
(b) A - रेटिना - प्रकाशमाही शलाका (रॉड) तथा शंकु (कोन) होते हैं 

प्रश्न 18. 
मानव नेत्र में प्रकाशसंवेदी यौगिक बना होता है-
(a) ग्वानोसिन और रेटिनॉल से 
(b) ओप्सिन और रेटिनल से 
(c) ओप्सिन और रेटिनॉल से
(d) ट्रांसड्यूसिन और रेटिनीन से 
उत्तर:
(b) ओप्सिन और रेटिनल से 

प्रश्न 19. 
सही कथन चुनिए-
(a) ग्राही क्रमिक विभव उत्पन्न नहीं करते हैं। 
(b) नोसिसेप्टर दाब में परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं 
(c) मीजनर कणिकायें तापनाही होती हैं। 
(d) मानव नेत्र में प्रकाशनाही अंधेरे में विध्रुवित हो जाते हैं और प्रकाश के उद्दीपन की अनुक्रिया में अतिध्रुवित हो जाते हैं 
उत्तर:
(d) मानव नेत्र में प्रकाशनाही अंधेरे में विध्रुवित हो जाते हैं और प्रकाश के उद्दीपन की अनुक्रिया में अतिध्रुवित हो जाते हैं 

प्रश्न 20. 
मानव नेत्र में पारदर्शी लेंस किसके द्वारा अपने स्थान पर रहता
(a) पक्ष्माभ काय से जुड़े स्नायुओं द्वारा 
(b) आइरिस से जुड़े स्नायुओं द्वारा 
(c) आइरिस से जुड़ी चिकनी पेशियों द्वारा 
(d) पक्ष्याभ काय से जुड़ी चिकनी पेशियों द्वारा
उत्तर:
(a) पक्ष्माभ काय से जुड़े स्नायुओं द्वारा 

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प्रश्न 21. 
मानव कान का वह कौनसा भाग है जिसकी सुनने में तो कोई भूमिका नहीं होती, पर अन्यथा वह बहुत ही आवश्यक है-
अथवा 
निम्नलिखित में से कौनसा एक बैलेन्सिंग अंग है-
(a) यूस्टेको नलिका 
(b) कॉर्टी - अंग 
(c) प्रघ्राण उपकरण (वेस्टिबुलर उपकरण) 
(d) कर्णास्थियाँ
उत्तर:
(c) प्रघ्राण उपकरण (वेस्टिबुलर उपकरण)

Bhagya
Last Updated on Aug. 29, 2022, 9:48 a.m.
Published Aug. 27, 2022