RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण Important Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Biology Chapter 18 Important Questions शरीर द्रव तथा परिसंचरण


I. रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न (Fill in the blanks type questions)

प्रश्न 1. 
प्लाज्मा में 90 - 92 प्रतिशत जल तथा .............................. प्रतिशत प्रोटीन पदार्थ होते हैं। 
उत्तर:
6 - 8

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प्रश्न 2. 
वयस्क अवस्था में लाल रुधिर कणिकाएँ .............................. में बनती हैं। 
उत्तर:
लाल अस्थिमज्जा

प्रश्न 3. 
श्वेत रुधिर कोशिकाओं में .............................. की संख्या सबसे अधिक होती है। 
उत्तर:
न्यूट्रोफिल

प्रश्न 4. 
इओसिनोफिल .............................. से बचाव करती है। 
उत्तर:
संक्रमण

प्रश्न 5. 
शिरा आलिन्द पर्व (SAN) एक मिनट में .............................. क्रिया विभव पैदा करता है। 
उत्तर:
70 - 75

प्रश्न 6. 
खिलाड़ियों का हृदय निकास सामान्य व्यक्ति से ..............................  होता है। 
उत्तर:
अधिक

प्रश्न 7. 
उच्च रक्त चाप मस्तिष्क तथा .............................. जैसे अंगों को प्रभावित करता है। 
उत्तर:
वृक्क

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प्रश्न 8. 
धमनियों के अन्दर कैल्सियम, वसा तथा अन्य रेशीय ऊतकों के जमा होने के कारण .............................. रोग हो जाता है। 
उत्तर:
हद धमनी

प्रश्न 9. 
लाल रुधिर कणिकाओं का कब्रिस्तान (Graveyard) .............................. को कहते हैं। 
उत्तर:
प्लीहा

प्रश्न 10. 
प्लेटलेट्स की संख्या में कमी के कारण .............................. में विकृति आ जाती है।
उत्तर:
स्कंदन।

II. सत्य व असत्य प्रकार के प्रश्न (True and False type questions) 

प्रश्न 1. 
एक स्वस्थ मनुष्य में लाल रुधिर कणिकाएँ लगभग 50 से 55 लाख प्रति धन्न मिमी. होती हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2. 
ल्यूकोसाइट को हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण तथा रंगहीन होने से श्वेत रुधिर कोशिकाएँ कहते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 3. 
बी और टी दोनों प्रकार की लिम्फोसाइट शरीर की प्रतिरक्षा के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4. 
प्रतिरक्षी वे प्रोटीन पदार्थ हैं जो प्रतिजन के विरुद्ध पैदा होते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5. 
Rh एंटीजन रीसेस बन्दर में पाया गया। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 6. 
मगरमच्छ का हृदय तीन कक्षों से मिलकर बना होता है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 7. 
बायें आलिन्द व बायें निलय के रन्ध्र (निकास) पर मिट्ल कपाट पाया जाता है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8. 
हृदय चक्र के दौरान दो महत्त्वपूर्ण ध्वनियाँ स्टेथेस्कोप द्वारा सुनी जा सकती हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 9. 
धमनी तीन परतों से मिलकर बनी होती हैं जिन्हें अन्तःस्तर कंचुक, मध्य कंचुक एवं बाह्य कंचुक कहते हैं। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 10. 
मेड्यूला ऑब्लांगाटा के विशेष तंत्रिका केन्द्र स्वायत्त तंत्रिका के द्वारा हृदय की क्रियाओं को संयमित कर सकता है। (सत्य/असत्य) 
उत्तर:
सत्य

III. निम्न को सुमेलित कीजिए (Match the following)

स्तम्भ - I में दिये गये पदों का स्तम्भ - II में दिये गये पदों के साथ सही मिलान कीजिए

प्रश्न 1. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. प्लाज्मा

(i) हीमोग्लोबिन

B. R.B.C.

(ii) एल्बूमीन

C. बेसोफिल

(iii) मेगाकेरियोट्स

D. थ्रोम्बोसाइटस

(iv) हिस्टामीन


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. प्लाज्मा

(ii) एल्बूमीन

B. R.B.C.

(i) हीमोग्लोबिन

C. बेसोफिल

(iv) हिस्टामीन

D. थ्रोम्बोसाइटस

(iii) मेगाकेरियोट्स


प्रश्न 2. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. AB समूह

(i) सर्वदाता

B. O समूह

(ii) सर्वग्राही

C. Rh कारक

(iii) रक्त स्कंदन

D. Ca++

(iv) रीसेस बन्दर


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. AB समूह

(ii) सर्वग्राही

B. O समूह

(i) सर्वदाता

C. Rh कारक

(iv) रीसेस बन्दर

D. Ca++

(iii) रक्त स्कंदन


प्रश्न 3. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. मछलियाँ

(i) चार कक्षीय हृदय

B. मेंढक

(ii) दो कक्षीय हृदय

C. मगरमच्छ

(iii) तीन कक्षीय हृदय

D. मनुष्य

 


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. मछलियाँ

(ii) दो कक्षीय हृदय

B. मेंढक

(iii) तीन कक्षीय हृदय

C. मगरमच्छ

(i) चार कक्षीय हृदय

D. मनुष्य

(i) चार कक्षीय हृदय


प्रश्न 4. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. SA नोड

(i) मिट्रल कपाट

B. दायाँ AV छिद्र

(ii) दायाँ आलिन्द

C. एकल परिसंचरण तन्त्र

(iii) त्रिदल कपाट

D. बायाँ AV छिद्र

(iv) मछलियाँ


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. SA नोड

(ii) दायाँ आलिन्द

B. दायाँ AV छिद्र

(iii) त्रिदल कपाट

C. एकल परिसंचरण तन्त्र

(iv) मछलियाँ

D. बायाँ AV छिद्र

(i) मिट्रल कपाट


RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

प्रश्न 5. 

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. पेसमेकर

(i) शिरा

B. अपूर्ण परिसंचरण

(ii) SAN

C. लसिका तंत्र

(iii) मेंढक

D. अशुद्ध रुधिर

(iv) दूसरा परिसंचरण


उत्तर:

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

A. पेसमेकर

(ii) SAN

B. अपूर्ण परिसंचरण

(iii) मेंढक

C. लसिका तंत्र

(iv) दूसरा परिसंचरण

D. अशुद्ध रुधिर

(i) शिरा


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
पिता का रक्त वर्ग A तथा माता का रक्त वर्ग भी A हो तो उनकी सन्तान का एक वर्ग कौन - कौनसे होंगे? लिखिए।
उत्तर - A व O वर्ग। 

प्रश्न 2. 
दोहरा रक्त परिसंचरण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक परिसंचरण चक्र पूरा होने में रक्त का हदय से दो बार गुजरना दोहरा रक्त परिसंचरण चक्र कहलाता है।

प्रश्न 3. 
रक्त के छनाव को क्या कहते हैं? इसकी एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
रक्त के छनाव को लसीका कहते हैं। इसमें RRC अनुपस्थित होती है।

प्रश्न 4. 
अस्थिमज्जा की विशेष कोशिका का नाम लिखिए जिसके विखण्डन से प्लेटलेट्स का निर्माण होता है।
उत्तर:
मैगाकेरियोट साइट कोशिका के विखण्डन से प्लेटलेट्स का निर्माण होता है।

प्रश्न 5. 
लिम्फोसाइट कितने प्रकार की होती है? नाम लिखिए।
उत्तर:
लिम्फोसाइट दो प्रकार की होती है- 

  • B - लिम्फोसाइट 
  • T - लिम्फोसाइट।

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प्रश्न 6. 
लाल रुधिर कणिकाओं की मनुष्य में आकृति किस प्रकार की होती है?
उत्तर:
लाल रुधिर कणिकाओं की मनुष्य में आकृति उभयावतल (बाइकोनकेव) होती है।

प्रश्न 7. 
मनुष्य में प्रति 100 मिली. रक्त में लगभग कितना हीमोग्लोबिन पाया जाता है?
उत्तर:
मनुष्य में प्रति 100 मिली. रक्त में लगभग 12 से 16 ग्राम हीमोग्लोबिन पाया जाता है।

प्रश्न 8. 
मनुष्य में RRC की औसत आयु कितनी होती है? 
उत्तर:
मनुष्य में RBC की औसत आयु 120 दिन होती है।

प्रश्न 9. 
हिस्टामीन, सिरोटोनिन एवं हिपैरिन किस कणिका के द्वारा सावित किया जाता है?
उत्तर:
बेसोफिल द्वारा हिस्टामीन, सिरोटोनिन एवं हिपैरिन सावित किया जाता है।

प्रश्न 10. 
इओसिनोफिल्स का कोई एक कार्य लिखिए। 
उत्तर:
यह संक्रमण से बचाव करने का कार्य करती है।

प्रश्न 11.
शिरा आलिन्द पर्व (SAN) एक मिनट में कितना क्रिया विभव पैदा करता है?
उत्तर:
शिरा आलिन्द पर्व (SAN) एक मिनट में 70 - 75 क्रिया विभव पैदा करता है।

प्रश्न 12. 
हद चक्र के दौरान लब व डब की ध्वनि किस उपकरण द्वारा सुनी जा सकती है?
उत्तर:
हद चक्र के दौरान लब व डब की ध्वनि स्टेथेस्कोप उपकरण से सुनी जा सकती है।

प्रश्न 13. 
ईसीजी में P तरंग को किस रूप में प्रदर्शित किया जाता है?
उत्तर:
ईसीजी में P तरंग को आलिन्द के उद्दीपन/विधुवण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न 14. 
मनुष्य का सामान्य रक्त दाब कितना होता है? 
उत्तर:
मनुष्य का सामान्य रक्त दाब/रक्त चाप 120/80 होता है।

प्रश्न 15. 
हद निकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हद के निलय द्वारा प्रति मिनट पम्प किए गए रक्त आयतन को हृद निकास (Cardiac out - put) कहते हैं।

प्रश्न 16. 
विस्पंदन आयतन किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक हद चक्र के दौरान प्रत्येक निलय द्वारा लगभग 70 मिली. रक्त हर बार पम्प किया जाता है, इसे विस्पंदन आयतन या स्ट्रोक कहते हैं।

प्रश्न 17. 
हदय में विद्युत क्रिया का आलेख किसके द्वारा किया जाता है?
उत्तर:
हृदय में विद्युत क्रिया का आलेख इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (विद्युत हद आलेख मशीन) के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 18. 
आंत्र अंकुर में उपस्थित लैक्टियल वसा को किस ऊतक द्रव द्वारा अवशोषित किया जाता है?
उत्तर:
आंत्र अंकुर में उपस्थित लैक्टियल वसा को लसीका (Lymph) द्वारा अवशोषित किया जाता है।

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प्रश्न 19. 
ऐसे दो प्राणी का नाम लिखिए जिसमें अपूर्ण दोहरा परिसंचरण पाया जाता है।
उत्तर:

  • मेंडक 
  • कछुआ। 

प्रश्न 20. 
प्लाज्मा में एल्बुमिन प्रोटीन का कार्य लिखिए।
उत्तर:
प्लाज्मा में उपस्थित एल्यूमिन प्रोटीन परासरणी संतुलन का कार्य करती है।

प्रश्न 21. 
प्लाज्मा में पाई जाने वाली कोई दो मुख्य प्रोटीन के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. फाइबिनोजन 
  2. ग्लोबुलिन।

प्रश्न 22. 
श्वेत रुधिर कोशिकाओं में सबसे अधिक पाई जाने वाली कणिकाओं का नाम लिखिए।
उत्तर:
श्वेत रुधिर कोशिकाओं में सबसे अधिक न्यूट्रोफिल कणिकाओं की संख्या होती है।

प्रश्न 23. 
नोडल ऊतक द्वारा बिना किसी बाह्य प्रेरणा से क्रिया विभव पैदा करने में सक्षम होते हैं, इसे क्या कहते हैं?
उत्तर:
नोडल ऊतक द्वारा बिना किसी बाह्य प्रेरणा के क्रिया विभव पैदा करने में सक्षम होते हैं। इसे स्वउत्तेजनशील (आटोएक्साइटेबल) कहते हैं।

प्रश्न 24. 
अर्धचन्द्राकार कपाट के बन्द होने से उत्पन्न ध्वनि को क्या कहते हैं?
उत्तर:
इसे दूसरी ध्वनि या डब कहते हैं।

प्रश्न 25. 
बीमार व्यक्ति के मानक ईसीजी प्राप्त करने के मशीन से रोगी तीन विद्यत लीड द्वारा कौन से अंगों से जोड़ा जाता है?
उत्तर:
दोनों कलाइयाँ एवं बाई ओर की एड़ी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
लसीका किसे कहते हैं? T कोशिकाएँ एवं B कोशिकाओं में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
लसीका (Lymph): रक्त केशिकाएँ शरीर के प्रत्येक अंग तथा ऊतक तक नहीं पहुंच पाती हैं, सिर्फ प्लाज्मा और श्वेताणु रक्त केशिकाओं की दीवार (जो एण्डोथिलियम स्तर से बनी होती है) में से छनकर ऊतक कोशिकाओं के बीच के स्थान में पहुंच जाती है, यही छना हुआ द्रव लसीका (Lymph) कहलाता है।
T - कोशिकाओं एवं B - कोशिकाओं में अन्तर (Differences between T - cells and B - cells) 

T - कोशिकाएँ (T - cells)

B - कोशिकाएँ (B - cells)

1. T कोशिकाएँ थाइमस ग्रन्थि में परिपक्व होती हैं।

लसीकाभ अंगों में जैसे टॉन्सिलों में परिपक्व होती हैं।

2. ये कोशिकाएँ प्रतिजनों को पहचान कर उन्हें नष्ट कर देती हैं।

एंटीजनों की पहचान अपनी सतह पर संवेदी अंगों के द्वारा करती हैं।

3. ये सीधे आक्रमण करती हैं।

आक्रमण के लिए बड़ी संख्या में प्रतिरक्षी उत्पन्न करती हैं।

4. जीवनकाल 3 - 4 वर्ष का होता है।

प्रतिरक्षी थोड़े ही समय तक जीवित रहती है।


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प्रश्न 2. 
"यदि Rh -ve माताएँ एक से अधिक बार Rh +ve शिशु से युक्त गर्भधारण करती हैं, तो Rh कारक के कारण गम्भीर समस्या पैदा हो जाती है।" कारण सहित समझाइए।
उत्तर:
Rh कारक वंशागत होता है। Rh+ प्रभावी तथा Rh- अप्रभावी होता है। Rh- माता से उत्पन्न Rh+ शिशु पिता से Rh कारक प्राप्त करता है। गर्भस्थ Rh+ शिशु से प्रसव के समय Rh ऐन्टीजन माता के रुधिर में प्रवेश कर जाते हैं। माता के रुधिर में इस ऐन्टीजन के कारण एन्टी -Rh ऐन्टीबॉडी उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः ऐन्टीबॉडी इतनी अधिक मात्रा में नहीं होती जो प्रथम बार उत्पन्न शिशु को हानि पहुंचा सके, लेकिन बाद में गर्भधारण की स्थिति में माता के रुधिर से एन्टी Rh ऐन्टीबॉडी अपरा द्वारा गर्भस्थ शिशु के रुधिर में पहुँचकर शिशु के रक्ताणुओं का लयन कर देती है। गर्भस्थ शिशु या नवजात शिशु के इस घातक रोग को इरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस कहते हैं। इस रोग से ग्रसित शिशु को रीसस शिशु कहते हैं। सामान्यतः इसका जन्म समयपूर्व होता है तथा इसमें रक्ताल्पता पाई जाती है।

प्रश्न 3. 
मनुष्य के रुधिर परिसंचरण तन्त्र में कौनसी दो विशेषताएँ मिलती हैं? समझाइए।
उत्तर:
मनुष्य के रुधिर परिसंचरण तन्त्र में निम्न दो विशेषताएं मिलती हैं:
(1) O2 युक्त रुधिर तथा O2 रहित रुधिर हृदय तथा रक्तवाहिनियों में कभी नहीं मिलता या हमेशा पृथक् रहता है।

(2) रक्त शरीर में एक चक्र पूरा करने में हदय से दो बार गुजरता है। पहली बार शरीर का समस्त अशुद्ध रुधिर दाहिने आलिन्द तथा निलय में होकर फेफड़ों में जाता है तथा दूसरी बार फेफड़ों से फुफ्फुस शिराओं द्वारा शुद्ध रुधिर बायें आलिन्द में होकर बायें निलय में और वहाँ से एक महाधमनी द्वारा समस्त शरीर में आ जाता है।

प्रश्न 4. 
एकल परिसंचरण को आरेख बनाकर समझाइए।
उत्तर:
इस प्रकार का परिसंचरण महलियों में पाया जाता है। मछलियों के हृदयों में दो ही कक्ष होते हैं जिसमें क्रमश: एक आलिन्द (Auricle) तथा एक निलय (Ventricle) होता है। मछलियों में हृदय विऑक्सीजनित (Deoxygenated) रुधिर को पम्प करता है जो क्लोमो द्वारा ऑक्सीजनित (Oxygenated) होकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाया जाता है तथा वहाँ से विऑक्सीजनित रुधिर हृदय में वापस आता है। इस क्रिया को एकल परिसंचरण (Single circulation) कहते हैं। रुधिर का हृदय में एक बार आना एकल परिसंचरण कहलाता है।
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 1

प्रश्न 5. 
मानव रक्त परिसंचरण का आरेखीय चित्र बनाइए। 
उत्तर:
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 2

प्रश्न 6. 
परिसंचरण कितने प्रकार का होता है? नाम लिखिए एवं रुधिर के कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
परिसंचरण दो प्रकार का होता है, जिन्हें क्रमश: खुला परिसंचरण तंत्र (Open circulatory system) एवं बंद परिसंचरण तंत्र (Closed circulatory system) कहते हैं।
रुधिर के कार्य (Functions of Blond):

  1. गैसीय परिवहन (Transport of Gases): लाल रुधिर कणिकाएँ हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन व कार्बन डाईऑक्साइड का परिवहन करती हैं।
  2. पोषक पदार्थों का परिवहन (Transport of nutrients): रुधिर के द्वारा पचे हुए पोषक पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाया जाता है।
  3. उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन (Transport of Excretory Products): रुधिर, शरीर में बने उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन कर इन्हें शरीर से बाहर निकालने में भूमिका निभाते हैं।
  4. दैहिक ताप नियंत्रण (Control of Body Temperature): रुधिर समस्त शरीर का एक समान ताप बनाये रखने में सहायता करता है।
  5. रोगों से प्रतिरक्षा (Defence against diseases): रुधिर विभिन्न रोगों के रोगाणुओं से शरीर को एन्टीबॉडीज बनाकर फैगोसाइटोसिस (Phagocytosis) क्रिया द्वारा रक्षा करता है।
  6. रक्त का स्कन्दन (Clotting of Blood): रुधिर में स्कन्दन कारक होते हैं अत: यह चोट लगने पर स्वयं की और शरीर की रक्षा करता है किन्तु शरीर के भीतर स्कन्दन होने से स्वयं को रोकता है।

प्रश्न 7.
मनुष्य के हृदय की बाह्य संरचना का चित्र बनाकर संक्षिप्त में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हृदय की बाह्य संरचना (External Structure of Heart): मानव का हृदय औसतन एक बन्द मुट्ठी के समान होता है। इसका वजन 300 ग्राम के लगभग है। यह वक्ष गुहा में कुछ बायीं ओर दोनों फेफड़ों के मध्य फुफ्फुस मध्यावकाश में स्थित होता है। हृदय के ऊपर पाये जाने वाले आवरण को हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। पेरिकार्डियम की भीतरी परत विसरल स्तर (Visceral Layer) कहलाती है तथा बाहरी परत को पैराइटल परत (Parietal Layer) कहते हैं। इन दोनों स्तरों के बीच एक लसदार द्रव्य भरा होता है जिसे परिहृदय तरल (Pericardial Fluid) कहते हैं।
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 3

प्रश्न 8. 
एंजिना पेक्टोरिस एवं हृदय आघात को समझाइए।
उत्तर:
एंजिना पेक्टोरिस एवं हृदय आघात (Angina Pectoris and Heart Slack):
यह जदय पेशियों की एक प्रकार की ऐंठन है। हृदय पेशियों को जब किसी कारण से O2 की आपूर्ति बन्द हो जाती है या बहुत कम O2 मिलती है तब ये मृत हो जाती हैं। इससे सीने एवं हृदय में कष्टकारी दर्द होता है। दर्द का कारण ह्रदय पेशियों में लैक्टिक अम्ल की मात्रा में वृद्धि होना है। ऐसी स्थिति घातक होती है। हृदय आघात के कई कारण हो सकते हैं - कोरोनरी धमनी में थक्का बन जाने के कारण (थ्रोम्बोसिस) या रुधिर वाहिका में रुकावट आ जाने के कारण यह रोग हो जाता है। व्यक्ति का अधिक मोटा होना, धूम्रपान, उच्च रुधिर दाब, कम व्यायाम, रुधिर में कोलेस्टेरॉल की मात्रा अधिक होना ऐसे कारक हैं, जिनसे हृदय आघात का खतरा बढ़ जाता है।

RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

प्रश्न 9. 
लसीका तन्त्र किसे कहते हैं? लसीका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लसीका तन्त्र को सहायक या दूसरा परिसंचरण तन्त्र भी कहते हैं। यह तन्य लसीका केशिकाओं (Lymph Capillaries), लसीका वाहिनियों (Lymph Vessels), लसीका गाँठे (Lymph nodes) व अन्य लसीका अंगों का बना होता है।

लसीका के कार्य (Functions of Lymph):

  1. यह रक्त व ऊतक द्रव के बीच बिचौलिया (Middle man) का कार्य करता है।
  2. कोशिकाओं के चारों तरफ जलीय वातावरण बनाकर कोशिका के बाहर एवं भीतर रसाकर्षण सन्तुलन बनाये रखता है।
  3. इसमें उपस्थित श्वेत रुधिर कणिकाएँ जीवाणुओं का भक्षण करती हैं और शरीर की रोगाणुओं से रक्षा करती हैं।
  4. छोटी आंत से वसा का अवशोषण लसिका केशिकाओं में होता हैं।
  5. रुधिर के प्लाज्मा के अंश को जो धमनी कोशिकाओं से बाहर निकलकर ऊतक द्रव्य में आ जाता है, वापस रुधिर परिसंचरण तन्त्र में भेजती है।
  6. लसिका शरीर के कोमल अंगों की रक्षा में सहायक होता है। यह हृदयावरणी गुहा तथा देह गुहा के अंगों को नम बनाये रखता है तथा अंगों के बीच परस्पर रगड़ से बचाव करता है।
  7. ऊतक द्रव से प्रोटीन को पुनः रक्त में लौटाता है।

प्रश्न 10. 
हाइपरटेंशन किसे कहते हैं? धमनी काठिन्य एवं एथिरोकाठिन्य रोग में कोई चार अन्तर लिखिए।
उत्तर:
हाइपरटेंशन (Hypertension): उच्च रक्त दाब की स्थिति को हाइपरटेंशन (Hypertension) कहते हैं।
धमनी काठिन्य एवं एथिरोकाठिन्य में अन्तर (Differences between Arteriosclerosis and Atherosclerosis) 

धमनी काठिन्य (Arteriosclerosis)

एथिरोकाठिन्य (Atherosclerosis)

1. धमनियों का कैल्सियम लवण व कोलेस्ट्रोल जमा होने के कारण कड़ा हो जाना।

धमनी की अन्त:भित्ति पर लिपिड (कोलेस्ट्रोल) की परत का जमा होना।

2. छोटी व मध्यम धमनियों में हो सकता है।

बड़ी व मध्यम आकार की धमनी में होता है।

3. धमनी गुहा पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है।

धमनी की गुहा संकरी हो जाती है।

4. धमनी की गुहा संकरी हो जाती है। धमनी गुहा सख्त हो जाती है, अपनी लचक खो देती है एवं फट सकती है।

धमनी गुहा बंद हो सकती है जिसके कारण रक्त प्रवाह रुक सकता है।

 

प्रश्न 11. 
रुधिर लयन किसे कहते हैं? क्या कारण है लाल रुधिर कणिकाओं में ऑक्सीय श्वसन नहीं होता है?
उत्तर:
रुधिर लयन (Haemolysis):
लाल रक्ताणुओं की प्लाज्माकला अर्ध पारगम्य होती है। यदि इन्हें अल्प वलीय (hypotonic) तरल जैसे- 0.5% नमक का घोल या आसुत जल में रखें, तो द्रव इनके भीतर प्रवेश कर जायेगा, इसके फलस्वरूप ये फूलकर फट जायेंगे तथा हीमोग्लोबिन बाहर निकल आता है। इसे रुधिर लयन (haemolysis) कहते हैं। कभी - कभी अपघटन में लाल रक्ताणुओं का पदार्थ विसरण द्वारा बाहर निकल आता है और रुधिराणु की आकृति ज्यों की त्यों बनी रहती। इन खाली खोखों को मरीचिका या घोस्ट (Shadow or ghost) कहते हैं। लाल रुधिर कणिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया की अनुपस्थिति के कारण ऑक्सीश्वसन नहीं हो पाता है।

प्रश्न 12.
यदि किसी व्यक्ति कारुधिर दाब बार - बार मापने पर रुधिर दाब 140/90 या अधिक आता है तो यह क्या प्रदर्शित करता है? समझाइए।
उत्तर:
यदि किसी व्यक्ति का रुधिर दाब बार - बार मापने पर रुधिर दाब 140/90 या अधिक आता है तो वह अति तनाव प्रदर्शित करता है। उच्च रुधिर दाब हृदय की बीमारियों को जन्म देता है तथा अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों जैसे मस्तिष्क तथा वृक्क जैसे अंगों को प्रभावित करता हैं। अति तनाव रुधिर दाब की वह अवस्था है, जिसमें रक्त दाब सामान्य (120/80) से अधिक है। इस मापदण्ड में 120 मिमी. एच.जी. (मिलीमीटर में मर्करी दबाव) को प्रकुंचन या पम्पिंग दाब और 80 मिमी. एच.जी. को अनुशिथिलन या विराम काल (सहज) रुधिर दाब (Blood Pressure) कहते हैं।

प्रश्न 13. 
शिरा आलिन्द नोड व आलिन्द निलय नोड में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिरा आलिन्द नोड व आलिन्द निलय नोड़ में अन्तर (Differences between Sinuauricular Node and Auriculo Ventricular Node) 

शिरा आलिन्द नोड (Sinu Auricular Node)

आलिन्द निलय नोड (Auriculo Ventricular Node)

1. इसे SA नोड कहते हैं।

इसे AV नोड कहते हैं।

2. यह दायें आलिन्द की दीवार पर स्थित होती है।

यह इन्टरऑरिकुलर सेप्टम के पिछले सिरे पर निलय के पास स्थित होता हैं।

3. यह हदय की धड़कन को आरम्भ करता है। इसे गति चालक कहते हैं।

यह हृदय के आवेग की तरंगों को ग्रहण करके हिस बण्डल के पेशी तन्तुओं में संचालन करता है।

4. इसमें पुरकिन्जे तन्तु एवं हिस बण्डल नहीं होते हैं।

इसमें पुरकिन्जे तन्तु तथा हिस बण्डल होते हैं।

5. मैड्यूला में स्थित कार्डियक केन्द्र इसका नियन्त्रण करता है।

यह SA नोड से उत्पन्न हदय आवेग तरंगों से उत्तेजित होता है।

 

प्रश्न 14. 
समूहन (Agglutination) किसे कहते हैं? रुधिर समूहों के मध्य प्रतिक्रिया को आरेख की सहायता से प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
समूहन (Agglutination): यदि किसी व्यक्ति के रुधिर में उससे भिन्न रुधिर समूह का रुधिर मिला दिया जाता है तो ऐन्टीजन - ऐन्टीबॉडी प्रतिक्रिया के कारण उसके रक्ताणु परस्पर चिपक कर गुच्छे बना लेते हैं। इस प्रतिक्रिया को समूहन कहते हैं। रुधिर समूहों के मध्य प्रतिक्रिया निम्न हैं -
→ = समूहन क्रिया अनुपस्थित; रक्ताधान संभव 
------> = समूहन क्रिया उपस्थित; रक्ताधान संभव नहीं
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प्रश्न 15. 
रीसस शिशु (Rhesus Baby) किसे कहते हैं? इस शिशु को बचाने के कोई दो उपाय लिखिए।
उत्तर:
रीसस शिशु- इरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस रोग से ग्रसित शिशु को रीसस शिशु कहते हैं। सामान्यतः इस शिशु का जन्म समय से पूर्व होता है एवं इसमें रक्ताल्पता पाई जाती है। 
शिशु को बचाने के उपाय:

  • शिशु के सम्पूर्ण रक्त को स्वस्थ रुधिर द्वारा प्रतिस्थापित करके शिशु को बचाया जा सकता है।
  • प्रसव से ठीक पूर्व लगभग 72 घण्टे के भीतर Rh- माता को ऐन्टी Rh- ऐन्टीबॉडी का इन्द्रावेनस इन्जेक्शन देकर भी शिशु को बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 16. 
प्लाज्मा क्या है? प्लाज्मा के कार्य लिखिए।
उत्तर:
प्लाज्मा (Plasma)- यह हल्के पीले रंग का तरल होता है जो रुधिर-प्रोटीनों, जैसे ऐल्बुमिन, ग्लोबुलिन और फाइब्रिनोजन से बना होता है।
प्लाज्मा के कार्य (Functions of Plasma):

  1. पाचन के उत्पादों को छोटी आंतों से विभिन्न ऊतकों तक पहुंचाता है।
  2. रुधिर का अम्ल क्षार सन्तुलन बनाये रखता है। 
  3. रुधिर में तरल पदार्थों को बनाये रखता है।
  4. रुधिर के स्कन्दन के लिए आवश्यक कारक (फाइबिनोजन) प्रदान करता है।
  5. प्रतिरक्षियों (इम्यूनोग्लोबिनो) के जरिये शरीर को प्रतिरक्षण प्रदान करता है। ये प्रतिरक्षी एक प्रकार के WBC द्वारा बनाए जाते हैं और बाद में इन्हें प्लाज्मा में छोड़ दिया जाता है।
  6. हार्मोनों को अन्त:सावी नन्थियों से उनके लक्ष्य अंगों तक पहुंचाता है।
  7. ऊतकों में होने वाले अपशिष्ट उत्पादों को उत्सर्जन अंगों तक पहुंचाता है।
  8. ऊष्मा को सारे शरीर में वितरित करके तापमान सामान्य बनाए रखता है।

प्रश्न 17. 
इरिथोपोइसिस किसे कहते हैं? इरिथ्रोसाइट्स एवं थोम्बोसाइट्स के कार्य लिखिए।
उत्तर:
इरिथोपोइसिस (Erythropoisis)- शरीर में इरिथ्रोसाइट्स के निर्माण की प्रक्रिया को इरिथ्रोपोइसिस कहते हैं। भ्रूणावस्था में इरिथ्रोसाइट्स का निर्माण यकृत (Liver), प्लीहा (Spleen) एवं थाइमस (Thymus) द्वारा किया जाता है। जबकि वयस्क में यह कार्य लाल अस्थि मज्जा (Red Bon marrow) में सम्पन्न होता है।
इरिथ्रोसाइट्स के कार्य (Functions of Erythrocytes):

  1. ये ऑक्सीजन (O2) को फेफड़ों (Lungs) से विभिन्न ऊतकों (tissues) तक पहुँचाती हैं।
  2. ये कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) को शरीर की कोशिकाओं से फेफड़ों तक पहुँचाती हैं।
  3. ये रुधिर की विस्कासिता (Viscocity) को नियमित करती हैं।
  4. हीमोग्लोबिन एक उभय प्रतिरोधी तन्त्र (buffer system) की तरह कार्य करता है, जिससे इरिथ्रोसाइट्स रुधिर के pH को नियमित बनाये रखने के कार्य में मदद करती है।


थोम्बोसाइट्स (Thrombocytes) के कार्य:

  • थ्रोम्बोसाइट्स रुधिर के थक्का (Coagulation) बनने में सहायक होती हैं।
  • ये थ्रोम्बस बनने (Thrombus formation) की क्रिया को उत्तेजित करती हैं।
  • ये आसन्न (Adhesive) गुण के कारण रक्त वाहिनियों की एण्डोथिलियम सतह की सुरक्षा करती हैं।
  • इनके द्वारा सावित सिरोटोनिन (Serotonin) एवं 5 - H.T. (5 - Hydrotryptamine) वेसोकॉन्सट्रिक्शन (Vasconstriction) अर्थात् रक्त वाहिनियों के व्यास को घटाने का कार्य करती है।

प्रश्न 18. 
मनुष्य के हृदय स्पन्दन के संचालन में वेगस की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
मनुष्य के हृदय की स्पन्दन दर में वृद्धि या कमी स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के सान्निध्य में जाने वाली वेगस केनियल तन्त्रिका (Vagus Cranial Nerve) के द्वारा नियन्त्रित की जाती है। वेगस तन्त्रिका के अन्तिम सिरे से ऐसिटोकोलिन नामक तत्त्व का साव होता है जो शिरा आलिन्द पर्व को संदमित करके हदय स्पन्दन को कम करता है। स्पन्दन दर में वृद्धि हेतु तन्त्रिका तन्तु नोरएड्रीनेलिन नामक तत्त्व का लावण करते हैं।

प्रश्न 19. 
ECG प्राप्त करने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ECG प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ नामक उपकरण प्रयोग में लेते हैं। इस तकनीक में संचलन जैली (Conducting Jelly) का प्रयोग करते हुए उपकरण के तीन इलेक्ट्रोड क्रमशः मरीज के वक्ष, कलाई तथा पैरों पर लगाये जाते हैं। इनसे प्राप्त विद्युत संकेत क्षीण प्रकृति (Low amplitude) के होते हैं जिनको उपकरण में लगी उपयुक्त प्रणाली से अभिवद्भित (Amplify) पर संवेदी रिकार्डर में रिकार्ड कर लिया जाता हैं।

प्रश्न 20. 
थिबेसियस कपाट तथा हिज के बण्डल की स्थिति स्पष्ट करो।
उत्तर:
थिबेसियस कपाट- बायें अग्न महाशिरा छिद्र के पास कोरोनरी शिरा छिद्र पर पाया जाता है।
हिज के बण्डल- आलिन्द - निलय पर्व से तन्तुओं के निकलने वाले समूह को हिज का बण्डल कहते हैं। इस बण्डल के तन्तु निलयों की भित्ति में फैले होते हैं।

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प्रश्न 21. 
मानव रुधिर वर्गों के नाम लिखो तथा बताओ यदि माँ का A तथा पिता B वर्ग का है तो बच्चों में कौन सा वर्ग होगा?
उत्तर:
मानव रुधिर वर्गों के नाम निम्न हैं- 
(1) A, (2) B, (3) A B, (4) O
बच्चों में O, A, B तथा A B रुधिर वर्ग होगा।

प्रश्न 22. 
रुधिर परिसंचरण तन्त्र किसे कहते हैं? एकल परिसंचरण व दोहरे परिसंचरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रुधिर परिसंचरण तन्त्र: मनुष्य में O2 व CO2, पोषक पदार्थों, उत्सर्गी पदार्थों का खावी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में पहुंचाने वाले तन्त्र को रुधिर परिसंचरण तंत्र कहते हैं।
एकल परिसंचरण व दोहरे परिसंचरण में अन्तर (Differences between Single Circulation and Double Circulation)

एकल परिसंचरण (Single Circulation)

दोहरा परिसंचरण (Double Circulation)

1. एक पूरे चक्र में रुधिर हदय से एक बार गुजरता है।

रुधिर हदय से दो बार गुजरता है।

2. हदय विऑक्सीजनित (Deoxygenated) रुधिर को पम्प करता है।

हृदय विऑक्सीजनित रुधिर को फेफड़ों के लिए पम्प करता है एवं ऑक्सीजनित (Oxygenated) रुधिर को शरीर में भेजता है।

3. गिल्स द्वारा रुधिर को ऑक्सीजनित किया जाता है।

फेफड़ों द्वारा रुधिर को ऑक्सीजनित किया जाता है।

4. इस प्रकार का परिसंचरण मछलियों में पाया जाता है।

इस प्रकार का परिसंचरण स्तनधारियों, पक्षी वर्ग, सरीसृप आदि में पाया जाता है।

5. हृदय में दो कक्ष होते हैं जिन्हें क्रमश: आलिन्द व निलय कहते हैं।

हृदय में चार कक्ष होते हैं जिन्हें क्रमशः दो आलिन्द व दो निलय कहते हैं।


प्रश्न 23. 
रुधिर दाब एवं नब्ज या नाड़ी (pulse) को समझाइए।
उत्तर:
प्रकुंचन (हृदय के संकुचन) के दौरान निलय संकुचित हो जाते हैं और रक्त को बलपूर्वक धमनियों में प्रवाहित कर देते हैं और ये धमनियाँ रुधिर को सारे शरीर में ले जाती हैं। धमनियों में प्रवाहित हो रहा रुधिर उनकी प्रत्यास्थ भित्तियों पर दबाव डालता है। इसी दबाव को रुधिर दाब (Blood Pressure) कहते हैं। निलयों के संकुचन के समय रुधिर दाब अधिक ऊँचा होता है और उसे प्रकुंचनी दाब (Systolic pressure) कहते हैं। निलयों में जब शिथिलन होता है तब यह दाब घट जाता है। इस अपेक्षा निम्न दाब को अनुशिथिलनी दाब (diastolic pressure) कहते हैं। रुधिर दाब को मापने वाले यंत्र को स्फिग्मोमैनोमीटर (Sphyemomanometer) कहते हैं। रुधिर दाब के पठनांक 120/80 का अर्थ है कि व्यक्ति का प्रकुंचनी दाब 120 mm पारा तथा अनुशिथिलनी दाब 80 mm पारा है। एक स्वस्थ वयस्क का प्ररूपी पठनांक 120/80 mm पारा होता है।

अनुशिथिलनी तथा प्रकुंचनी दाबों का अन्तर कलाई पर धमनियों की धड़कन के रूप में महसूस किया जा सकता है। कलाई पर इस धड़कन को नब्ज या नाड़ी (Pulse) कहते हैं। कलाई पर एक स्थान के ऊपर महसूस की जाने वाली धड़कन (प्रकुंचन के कारण) की प्रति मिनट संख्या को नाड़ीदर कहते हैं। यह संख्या हृदय - स्पन्दों की संख्या के बराबर होती है। अर्थात् सामान्य वयस्क में लगभग 72 स्पंद प्रति मिनट।

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प्रश्न 24. 
एक सामान्य ECG का आरेख बनाते हुए इसके घटकों को समझाइए।
उत्तर:
ई.सी.जी. में हदय के विभिन्न कक्षों या भागों के सकुंचन तथा शिथिलन के समय होने वाली विद्युतीय गतिविधियों के संकेत एक निश्चित पैटर्न की तरंगों के रूप में प्राप्त होते हैं। इन तरंगों को PQRS एवं T तरंगें कहते हैं। प्रत्येक वर्ण (Letter) हृदय पेशियों में घटित एक विशिष्ट अवस्था का द्योतक है।

  • P - तरंग - आलिन्द विध्रुवण की घटना को दर्शाती है।
  • QRS तरंग सम्मिश्र - निलयो विध्रुवण को दर्शाती है।
  • T तरंग चित्र - निलयी पुनः ध्रुवण को दर्शाती है। 

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
रुधिर वाहिकाएँ किसे कहते हैं? ये कितने प्रकार की होती है? इनका तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रुधिर वाहिकाएँ: रुधिर को लाने - ले जाने वाली नलिकाओं को रुधिर वाहिकाएँ कहते हैं। रुधिर वाहिका की भित्ति में तीन परतें होती हैं - बाह्य कंचुक, मध्य कंचुक और अन्त: कंचुक। रुधिर - वाहिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं-

  • धमनी 
  • केशिकाएँ और 
  • शिराएँ।

अपनी संरचना और रुधिर - बहाव की दर के सन्दर्भ में इन तीनों वाहिकाओं में अन्तर होते हैं, जैसा कि तालिका में दर्शाया गया है -
धमनी, केशिका और शिरा की संरचना और कार्य की तुलना

धमनियाँ

केशिकाएँ

शिराएँ

1. रुधिर को हृदय से दूर ले जाती हैं।

धमनियों को शिराओं से जोड़ती हैं। रुधिर और ऊतकों के बीच पदार्थों का आदान - प्रदान यहीं होता है।

रुधिर को हृदय की ओर लाती हैं।

2. मध्य कंचुक मोटी और प्रत्यास्थ पेशी ऊतक की बनी होती हैं।

इनमें मध्य कंचक नहीं होती। एकमात्र ऊतक जो मौजूद होता है वह शल्की एंडोथीलियम होता है। प्रत्यास्थ रेशे नहीं होते।

मध्य कंचक अपेक्षाकृत रूप में पतली होती है और उसमें केवल थोड़ी - सी ही पेशियाँ होती हैं। केवल थोड़े - से प्रत्यास्थ रेशे होते हैं।

3. अर्धचंद्राकार कपाट नहीं होते।

अर्धचंद्राकार कपाट नहीं होते।

अर्धचंद्राकार कपाट थोड़े - थोड़े अंतराल पर मौजूद होते हैं जो रुधिर के विपरीत दिशा में बहने को रोकते हैं।

4. रुधिर - दाब उच्च होता है और स्पंदी होता है।

रुधिर - दाब हल्की होता जाता है और स्पंदी नहीं होता।

रुधिर - दाब मंद होता है और स्पंदी नहीं होता।

5. रुधिर तेजी से बहता है।

रुधिर की गति मंद हो जाती है।

रुधिर मंद गति से बहता है।

6. रुधिर का आयतन उच्च होता है।

रुधिर का आयतन कम होता है।

रुधिर आयतन में वृद्धि।

7. रुधिर ऑक्सीजनित, केवल फुफ्फुस धमनी को छोड़कर।

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ऑक्सीजनित और विऑक्सीजनित दोनों प्रकार के रुधिर मिश्रित।

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रुधिर विऑक्सीजनित केवल फुफ्फुस शिरा को छोड़कर।

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प्रश्न 2.
संगठित पदार्थ से क्या तात्पर्य है? रुधिर में पाई जाने वाली कणिकाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संगठित पदार्थ (Formed Elements):
लाल रुधिर कोशिकाएँ (Red blood cells), श्वेत रुधिर कोशिकाएँ (White blood cells) तथा रुधिर पट्टिकाणु (Blood Platelets) को संयुक्त रूप से संगठित पदार्थ (Formed Elements) कहते हैं। ये रुधिर का 45 प्रतिशत भाग बनाते हैं।

(A) लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC): इन्हें इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) भी कहते हैं। इनकी संख्या बहुत अधिक होती है। कुल रुधिर कणिकाओं में से लगभग 99 प्रतिशत होती हैं। इनका व्यास 7 से 8 µ तथा मोटाई लगभग 2 µm होती है। ये आकार में वृत्ताकार, डिस्कीरूपी, उभयावतल (Biconcave) एवं केन्द्रक रहित होती हैं। इनमें केन्द्रक के अतिरिक्त माइटोकॉण्ड्रिया, अन्तःप्रद्रव्यी जालिका एवं गॉल्जीकॉय आदि का अभाव होता है। वयस्क पुरुष में 50 - 55 लाख प्रति घन मिमी. और महिला में लगभग 45 लाख प्रति घन मिमी. होती हैं । केन्द्रक की अनुपस्थिति के कारण इनमें हीमोग्लोबिन (haermoglobin) अधिक पाया जाता है। यह कणिकाओं के कोशिकाद्रव्य में पाया जाता है एवं श्वसन वर्णक (respiratory pigment) का कार्य करता है। हीमोग्लोबिन की प्रोटीन ग्लोबिन (globin) होती है जो हीम (haem) नामक लाल रंगा पदार्थ से जुड़ी रहती है। रुधिर का लाल रंग हीम के कारण ही होता है। हीमोग्लोबिन का प्रत्येक अणु ग्लोबिन की चार पॉलिपेप्पटाइड श्रृंखलाओं तथा फेरस (Fe+2) आयन युक्त हीम के चार अणुओं से मिलकर बनता है। हीमोग्लोबिन, ऑक्सीजन से संयोग करके ऑक्सी हीमोग्लोबिन नामक यौगिक बनाता है। इनका संयोग ऑक्सीजन के आंशिक दाव पर निर्भर करता है। इनमें कार्बोनिक एनहाइड्रेस भी काफी मात्रा में पाया जाता है। एक स्वस्थ मनुष्य में हीमोग्लोबिन की मात्रा औसतन 12 से 16 ग्राम प्रति 100 मिलिलीटर होती है।
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इरिथ्रोसाइटस के निर्माण की प्रक्रिया को इरिथ्रोपोइसिस (Erythropoiesis) या हीमोपोइसिस (Haemopoiesis) कहते हैं। भ्रूणावस्था में इरिथ्रोसाइटस का निर्माण यकृत, प्लीहा, थाइमस आदि अंगों में होता है लेकिन वयस्क अवस्था में इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) (लम्बी अस्थियाँ जैसे फीमर, उरोस्थि, कपालीय अस्थियाँ आदि) में होता है। इरिथ्रोसाइटस का जीवनकाल 120 दिन का होता है। नष्ट हुई लाल रुधिर कणिकाओं का विघटन प्लीहा में किया जाता है। इसलिए प्लीहा को रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान (Graveyard of RBCs) कहते हैं। हीमोग्लोबिन के प्रोटीन भाग (ग्लोबिन) को एमीनो अम्लों में तोड़ा जाता है। हीम समूह के लोह युक्त को यकृत में संग्रहित कर लिया जाता है तथा शेष भाग को बिलिरुबिन (Bilirubin) एवं बिलिवर्डिन (Billiverdin) नाम के पित वर्णकों में परिवर्तित कर उत्सर्जित कर दिया जाता है।

लाल रुधिर कणिकाओं के कार्य (Functions of RRC):

  1. ये ऑक्सीजन को फेफड़ों (lungs) से विभिन्न ऊतकों (tissues) तक पहुँचाती हैं।
  2. ये कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को शरीर की कोशिकाओं से फेफड़ों तक पहुँचाती हैं।
  3. ये रुधिर की विस्कासिता (Viscocity) को नियमित करती हैं।
  4. हीमोग्लोबिन एक उभय प्रतिरोधी तन्त्र (Buffer system) की तरह कार्य करता है, जिससे इरिथ्रोसाइटस रुधिर के pH को नियमित बनाये रखने के कार्य में मदद करती हैं।

(B) श्वेत रुधिर कोशिकाएँ (White blood cells): इन्हें ल्यूकोसाइट (Leucocytes) भी कहते हैं। इनमें हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण तथा रंगहीन होने से इन्हें श्वेत रुधिर कोशिकाएँ कहते हैं। ये लाल रभिर कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी अनियमित (irregular) एवं परिवर्तनशील आकार (changeable shape) के परन्तु संख्या में बहुत कम, औसतन इनकी संख्या लगभग 6000 - 8000 प्रति घन मिमी. होती है। इनमें केन्द्रक पाया जाता है। केन्द्रक की उपस्थिति के कारण इन्हें वास्तविक कोशिकाएँ (True cells) कहते हैं। अन्य कोशिकाओं के समान इनमें माइटोकॉन्ड्रिया एवं गॉल्जीकाय पाये जाते हैं। इनका आकार लगभग 8 से 15µ होता है। इनका जीवनकाल 4 - 5 दिनों से कई दिनों तक हो सकता है। अमीबीय गति इनका विशेष लक्षण होता है।
श्वेत रक्ताणुओं को राइट्स (Wrights) के अनुसार निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया गया है -
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(I) कणिकामय श्वेत रक्ताणु (Granulocytes): इनके कोशिकाद्रव्य में विशिष्ट अभिरंजक ग्रहण करने वाली अनेक कणिकाएँ पाई जाती हैं। इसलिए इन्हें कणिकामय श्वेत रक्ताणु (Granulocytes) कहते हैं। इनका आकार गोल परन्तु सक्रिय रूप से अमीबॉय (Amoehoid) होती है। इनका केन्द्रक 2 - 5 परस्पर जुड़े हुए पिण्डों (lobes) में बंटा और असममित (Asymmetrical) होता है। इसी कारण से इन्हें पॉली मार्कोन्यूक्लिअर रक्त कणिकाएँ कहते हैं। इनका औसतन आकार 10 से 12 µ होता है। कुल श्वेताणुओं की संख्या का लगभग 65 प्रतिशत ये कोशिकाएँ होती हैं। इन कोशिकाओं का निर्माण RBC की भांति लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) की मजाकोरक या माइलोब्लास्ट (myeloblasts) या रेटिकुलर कोशिकाओं (reticular cells) होता है।

इन कोशिकाओं को अभिरंजक (Stain) के प्रति धनात्मक सक्रियता के आधार पर तीन प्रकार की होती है -
(1) इओसिनोफिल्स (Eosinophils): इनके कोशिका द्रव्य में अम्लीय अभिरंजक (Acidic Dye) जैसे इओसिन (Eosin) ग्रहण करने वाले कण पाये जाते हैं। मनुष्य के रक्त में 2 - 3 प्रतिशत इओसिनोफिल्स पाये जाते हैं। इनका व्यास लगभग 10 - 15 µ होता है। इनका केन्द्रक दो स्पष्ट पिण्डों (lobes) में बंटा होता है जो एक महीन सूत्र या तन्तु द्वारा जुड़े रहते हैं।
इनका औसत जीवनकाल (average life span) लगभग 8 - 12 दिन होता है। ये संक्रमण से बचाव करती हैं एवं एलर्जी (allergy) प्रतिक्रिया आदि में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।

(2) बेसोफिल्स (Basophils): मनुष्य में इनकी संख्या लगभग 0.5 - 1 प्रतिशत होती है। इनका व्यास भी लगभग 10 - 15 µ होता है। इनका केन्द्रक बड़ा ७ (Kidney shaped) या 'S' आकार का तथा 2 - 3 पिण्डों का बना होता है। इनके कोशिकाद्रव्य में कणिकाएँ बड़ी किन्तु संख्या में कम होती हैं जो क्षारीय प्रकृति की होती हैं। ये क्षारीय अभिरंजक (Basic stain) जैसे मैथाइलीन ब्लू (Methylene Blue), हिमेटॉक्सलिन को ग्रहण करती हैं। ये हिस्टामिन, सिरोटोनिन एवं हिपेरिन उत्पन्न करती हैं। इनका औसत जीवनकाल 12 से 15 दिन होता है।
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(3) न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils): कणिकामय श्वेत रुधिराणुओं में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। इनका प्रतिशत लगभग 60 - 65 होता है। प्रति घन मिमी. रुधिर में 4000 से 5000 होती हैं। इनका व्यास 12 - 15 µ होता है। इनकी कणिकाएँ छोटी एवं संख्या में अधिक होती हैं, ये उदासीन अभिरंजक (Neutral stain) द्वारा अभिरंजित की जाती हैं। इनका केन्द्रक 2 से 5 या अधिक पिण्डों का बना होता है जो एक सूत्र द्वारा जुड़े रहते हैं। इस कारण इन्हें पॉलिमारफोन्यूक्लिअर ल्यूकोसाइटस (Polymorphonuclear leucocytes) भी कहते हैं। महिलाओं में कुछ न्यूट्रोफिल्स के केन्द्रक से एक सूक्ष्म गोल सा पिण्ड जुड़ा रहता है, जिसे ड्रम स्टिक (Drum stick) कहते हैं। यह बार काय (Bar body) की भाँति, एक X क्रोमोसोम के रूपान्तरण के फलस्वरूप बनता है। ये सबसे सक्रिय श्वेत रुधिराणु हैं। ये कोशिका पारण (diapedesis) की क्रिया द्वारा केशिकाओं (Capillaries) से बाहर निकलकर अमीबीय गति (amoeboid movement) प्रदर्शित करती हैं। ये कोशिकाएँ हानिकारक बाहरी पदार्थों एवं जीवाणुओं (Bacteria) का भक्षण (Phagocytosis) करती हैं। इनका जीवनकाल 2 से 4 दिन होता है।

(II) कणिकाविहीन श्वेतरक्ताणु (Agranulocytes): इनके कोशिका द्रव्य में कणिकाओं का अभाव होता है। इनमें सिर्फ एक केन्द्रक होता है जो गोल या वृक्काकार (Kidney Shaped) होता है। एक केन्द्र क होने के कारण इन्हें मोनोन्यूक्लिअर ल्यूकोसाइट (Mononuclear leucocytes) कहते हैं। ये सम्पूर्ण ल्यूकोसाइट का लगभग 25 से 30 प्रतिशत भाग बनाती हैं। इनका निर्माण थाइमस (Thymus), प्लीहा (Spleen) एवं लसिका गांठों (Lymph noodles) में होता है। इनका औसतन आकार 8 - 20µm होता है।

केन्द्रक की स्थिति एवं आकार के आधार पर ये निम्न दो प्रकार की होती हैं -
(1) लिम्फोसाइटस (Lymphocytes)- ये समस्त ल्यूकोसाइटस का लगभग 20 से 25 प्रतिशत भाग बनाती हैं। इनका आकार 8 से 16 µ होता है। इनका केन्द्रक बडा गोल या एक तरफ से पिचका हुआ होता है जो केन्द्र में स्थित होता है। कोशिका द्रव्य बहुत कम होता है। ये अन्य ल्यूकोसाइटस से कम भ्रमणशील होती हैं। ये थायमस ग्रन्थि एवं लसीका ऊतकों में ऐसी कोशिकाओं से उत्पन्न की जाती हैं जिनका उद्भव अस्थि मज्जा से होता है। इनका जीवनकाल 2 से 100 दिनों तक या अधिक हो सकता है।
लिम्फोसाइटस दो प्रकार की होती हैं-

  • B - लिम्फोसाइटस 
  • T - लिम्फोसाइटस।

इनका प्रमुख कार्य बीटा (Beta) एवं गामा (Gama) ग्लोब्युलिन (Globulins) का निर्माण करना होता है। गामा ग्लोब्यूलिन से एण्टीबॉडी (antibodies) का निर्माण होता है, जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधकता (immunity) उत्पन्न होती है। लिम्फोसाइटस द्वारा प्रतिविष (antitoxins) भी उत्पन्न किये जाते हैं। प्रतिविष रोगाणुओं द्वारा उत्पन्न विषैले पदार्थ को नष्ट करते हैं। ये वसा के स्थानान्तरण में मदद करते हैं।

(2) मोनोसाइटस (Monocytes)- ये संख्या में 4 से 10 प्रतिशत, परन्तु इनका परिमाण लगभग 15 से 20 µ (सबसे बड़ा) होता है। इनका केन्द्रक बड़ा अंडाकार, वृक्काकार या वृत्ताकार होता है तथा परिधि की ओर (Eccentric) स्थित होता है। कोशिकाद्रव्य लिम्फोसाइटस की तुलना में अधिक होता है। ये न्यूटोफिल्स की तरह शरीर में प्रवेश करने वाले सूक्ष्म जीवों का अन्त:ग्रहण (ingestion) कर भक्षण (phagocytosis) करती हैं। ये मृत कोशिकाओं के निस्तारण का भी कार्य करते हैं और अपमार्जक (scavangers) या मेहत्तर कहलाते हैं। इन्हें घुमक्कड़ कोशिकाएँ कहते हैं। प्रतियन मिमी. रुधिर में इनकी संख्या 200 - 700 तक होती है।

(C) रुधिर प्लेटलेट्स (Blood platelets)- ये बहुत ही छोटे (व्यास 2 - 4 µm) होते हैं। इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा (red bone marrow) में पाई जाने वाली महाकेन्द्रक कोशिकाएँ या मेगा कैरिओसाइटस (mega karyocytes) से कलियों के रूप में बनकर इससे पृथक् हुए टुकड़ों के रूप में होता है। इनकी आकृति अनियमित होती है एवं केन्द्रक का अभाव होता है। इनकी संख्या लगभग 1.5 से 3.5 लाख प्रति घन मिमी. तथा जीवनकाल 5 - 7 दिन होता है। स्तनधारियों के अतिरिक्त सभी कशेरुकियों में प्लेटलेट्स के स्थान पर तर्कु कोशिकाएँ (Spindle cells) या थोम्बोसाइट (Thrombocytes) पाई जाती हैं। इनकी औसत संख्या में कमी होने की अवस्था को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (Thrombocytopenia) कहते हैं। 

घाव पर फटी हुई रुधिर वाहिनियों से जब ये बाहर निकलकर हवा के सम्पर्क में आती हैं, तो ये स्वयं टूटकर निम्न कार्यों में मदद करती हैं-

  • ये रक्त के स्कन्दन (clotting) में सहायता करती हैं जिससे रक्त वाहिनियों के कटे भाग से रक्त स्त्राव बन्द हो जाता है।
  • शरीर के अन्दर यदि किसी कारण रक्तवाहिनी से रक्त निकलने लग जाये तो प्लेटलेट्स परस्पर चिपककर डॉट की भाँति, उसे बन्द कर देती है, ऐसी डॉट को शॉम्बस (Thrombus) कहते हैं।
  • ये सिरोटोनिन (Serotonin) एवं 5 - हाइड्रो ट्रिप्टामीन (5 - Hydro tryptamine) सावित करती हैं। ये रक्त वाहिनियों को संकुचित करके इनका व्यास घटाते हैं।
  • इनके अपघटन से बिम्बाणु कारक (Platelet factor) अथवा प्रोश्रोम्बो प्लास्टिन (Prothromboplastin) पदार्थ मुक्त करती है जो रक्त स्कंदन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

रुधिर के कार्य (Functions of Blood): रुधिर के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. गैसीय परिवहन (Transport of gases)- नाल रुधिर कणिकाएँ हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन व कार्बन डाईऑक्साइड का परिवहन करती हैं।
  2. पोषक पदार्थों का परिवहन (Transport of nutrients)- रुधिर के द्वारा पचे हुए पोषक पदार्थ शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाये जाते हैं।
  3. उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन (Transport of Excretory products)- रुधिर, शरीर में बने उत्सर्जी पदार्थों का परिवहन कर इन्हें शरीर से बाहर निकालने में भूमिका निभाते हैं।
  4. अन्य उपयोगी पदार्थों का परिवहन (Transport of Other useful Substances)- रुधिर एन्जाइम, हाइमोन्स, स्कन्दी कारक आदि का परिवहन कर अनेक उपयोगी क्रियाओं में सहायता करता हैं।
  5. दैहिक ताप नियंत्रण (Control of body temperature)- रुधिर समस्त शरीर का एकसमान ताप बनाये रखने में सहायता करता है।
  6. घावों का भरना (Healing of wounds)- यह शरीर पर हुए जख्म या चोटों को भरने में सहायता करता है।
  7. रोगों से प्रतिरक्षा (Defence angainst diseases)- रुधिर विभिन्न रोगों के रोगाणुओं से शरीर की एन्टीबॉडीज बनाकर फेगोसाइटोसिस (Phogocytosis) क्रिया द्वारा रक्षा करता है।
  8. आयनों का नियमन (Regulation of ions)- रुधिर शरीर में ऊतकों व कोशिकाओं की सतह पर आयनिक सन्तुलन बनाने में सहायक होता है।
  9. pH नियमन (Maintenance to pH)- रुधिर में उपस्थित प्रोटीन उभयधर्मी प्रकृति के होते हैं । अतः रुधिर का pH इनके द्वारा एक समान रखा जाता है।
  10. जल सन्तुलन (Water balance)- रुधिर शरीर में ऊतकों व कोशिकाओं के भीतर जल की मात्रा का नियमन करने में सहायता करता है।
  11. रुधिर दाब का नियमन (Regulation of blood pressure)- रुधिर की मात्रा में वृद्धि या कमी पर रुधिर दाब का नियमन किया जाता है।
  12. लसिका निर्माण (Lymph formation)- रुधिर लसिका निर्माण में सहायता कर ऊतकों को अनेक पदार्थों के परिवहन व शरीर को रोगमुक्त रखने में सहायता करता है।
  13. रक्त का स्कन्दन (Clotting of Blood)- रुधिर में स्कन्दन कारक होते हैं। अत: यह चोट लगने पर स्वयं की और शरीर की रक्षा करता है किन्तु शरीर के भीतर स्कन्दन होने से स्वयं को रोकता है।

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प्रश्न 3. 
रक्त समूह क्या है? ABO समूह को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
रक्त समूह (Blood Groups):
सभी मनुष्य में रक्त समान नहीं होता व एक - दूसरे से कई प्रकार की भिन्नता हो सकती है। रक्ताणुओं की सतह पर पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रतिजन (Antigen) के आधार पर रक्त को कई विभिन्न समूहों में बाँटा जा सकता है। ऐन्टीजन या एग्लुटिनोजन (Agglutinogen) ऐसे पदार्थ होते हैं जो ऐन्टीबॉडी (Antibody) या ऐग्लुटिनिन (Agglutinin) नामक पदार्थों का निर्माण प्रेरित करते हैं। मनुष्य में ऐन्टीजन के दो प्रमुख समूह होते हैं, जिन्हें ABO समूह तथा Rh समूह कहते हैं।
ABO समूह (ABO Grouping):
प्रतिजन (Antigen) के आधार पर रक्त को चार समूहों में वर्गीकृत किया गया है -

  1. रुधिर समूह A- इस समूह में प्रतिजन A तथा प्रतिरक्षी (Antibody) b पाई जाती है। प्रतिजन A के कारण इसे रुधिर समूह A एवं O स्वीकार होता है। यह रुधिर समूह A व AB रुधिर समूहों वालों को दिया जा सकता है।
  2.  रुधिर समूह B- रुधिर समूह में प्रतिजन B एवं प्रतिरक्षी a पाई जाती है। यह रुधिर वर्ग B एवं O को ही स्वीकार करता है। इस समूह को B एवं AB रुधिर समूह वाले को दिया जा सकता है।
  3. रुधिर समूह AB- इस रुधिर समूह में प्रतिजन A एवं B पाया जाता है लेकिन प्रतिरक्षी (Antibody) का अभाव होता है। यह रुधिर समूह A, B, AB एवं O सभी रुधिर समूह को स्वीकार कर लेता है, परन्तु इसे रुधिर वर्ग AB वाले को ही दिया जा सकता है। AB समूह द्वारा सभी समूहों का रक्त स्वीकार किये जाने के कारण इस रुधिर समूह को सर्वग्राही (Universal Recipient) कहते हैं।
  4. रुधिर समूह O- रुधिर समूह O में प्रतिजन (Antigen) का अभाव होता है लेकिन प्रतिरक्षी (Antibody) a एवं b दोनों ही पाई जाती हैं। यह रुधिर समूह केवल O रुधिर समूह को ही स्वीकार करता है। परन्तु इस रुधिर समूह को सभी समूह (A, B, AB, O) को दिया जा सकता है। इसी क्षमता के

आधार पर O रुधिर समूह को सर्वदाता (Universal Donor) कहते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के रुधिर में उससे भिन्न रुधिर समूह का रुधिर मिला दिया जाता है तो प्रतिजन (Antigen) प्रतिरक्षी (Antibody) प्रतिक्रिया के कारण उसके रक्ताणु परस्पर चिपककर गुच्छे बना लेते हैं। इस प्रतिक्रिया को समूहन (Agglutination) कहते हैं। यदि किसी व्यक्ति को रुधिर समूह मिलान किये बिना ही रुधिर दे दिया जाये तो उक्त क्रिया के कारण उसकी मृत्यु हो सकती है। मनुष्य के शरीर में किसी दुर्घटना या रोग के कारण रुधिर की कमी होने पर किसी स्वस्थ मनुष्य के रुधिर को रोगी के शरीर में पहुँचाकर रुधिर की कमी को दूर किया जाता है। एक व्यक्ति के रुधिर को दूसरे व्यक्ति को देने की क्रिया को रुधिर आधान (Blood transfusion) कहा जाता है, जो व्यक्ति रुधिर देता है उसे दाता (Donor), जो ग्रहण करता है, उसे ग्राही (Recipient) कहते हैं। रुधिर आधान से पूर्व दाता और ग्राही के रुधिर समूहों का मिलान करना आवश्यक होता है।
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→ = समूहन क्रिया अनुपस्थित रक्ताधान संभव 
------> = समूहन क्रिया उपस्थित; रक्ताधान संभव नहीं
रुधिर समूहों के रुधिर के परस्पर मिलने से होने वाली प्रतिक्रियाओं को ऊपर चित्र 18.3 में दर्शाया गया है। यदि भिन्न रक्त समूह वाले रुधिर मिलाये जाते हैं तो उनमें समूहन की क्रिया होती है। उदाहरणार्थ, यदि समूह A के रुधिर को B समूह के साथ मिलाते हैं तो समूह A के प्लाज्मा में उपस्थित प्रतिरक्षी (Antibody) b, समूह B की प्रतिजन (Antigen) B से क्रिया करती है तथा समूह B के प्लाज्मा में उपस्थित ऐन्टीबॉडी, रुधिर समूह A को ऐन्टीजन से क्रिया करती है तथा समूहन हो जाता है। रुधिर आधान के समय दाता रुधिर के ऐन्टीजन और ग्राही के ऐन्टीबॉडी को ध्यान में रखा जाता है क्योंकि केवल दाता के रक्ताओं का ही समूहन होता है। रुधिर के वे समूह जो मिश्रित होने पर समूहन प्रदर्शित करते हैं, असंयोज्य (Non - Compatible) समूह कहलाते हैं तथा वे समूह जो समूहन नहीं दर्शाते, वे संयोज्य (Compatible) समूह कहलाते हैं।

प्रश्न 4. 
रक्त - स्कंचन किसे कहते हैं? इसकी क्रियाविधि को आरेख की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
रक्त - स्कंदन (Coagulation of Blood):
शरीर के किसी स्थान पर चोट लगने या कटने से रक्त का बहना कुछ समय के बाद बन्द हो जाता है। यह क्रिया रक्त का थक्का बनना या स्कंदन (clotting) कहलाती है। 
रक्त - स्कंदन की क्रिया - विधि (Mechanism of blood clotting): सामान्यतया रक्त में हिरिन नामक प्रतिस्कंद (Anticoagulants) की उपस्थिति के कारण रक्त - स्कंदन रक्त वाहिनियों के भीतर नहीं होता है। रक्त स्कंदन एक जटिल जैव रासायनिक क्रिया है। मनुष्य में 3 से 10 मिनट (औसत 6 मिनट) में रक्त स्कंदन हो जाता है।
रक्त स्कंदन में निम्न प्रमुख चरण पाये जाते हैं -
1. प्रोथ्रोम्बिन को सक्रिय करने वाले कारकों का निर्माण (अर्थात् प्रोथ्रोम्बिनेज का निर्माण): चोट लगने वाले ऊतक द्वारा थ्रोम्बोप्लास्टिन (Thromboplastin) नामक प्रोटीन का स्रावण होता है। थ्रोम्बोप्लास्टिन VII एवं x स्कंदन कारकों को सक्रिय कर देता है। इन्हें सभी Ca+2 के साथ मिलकर प्रोथ्रोम्बिन सक्रियक (Prothrombin activator) अथवा प्रोथोम्बिनेज (Prothrombinase) कहते हैं। देखिए नीचे चित्र में -
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2. निष्क्रिय प्रोपोम्बिन का सक्रिय श्रोम्बिन में बदलना: प्रोनोम्बिन Ca+2 व प्रोथ्रोम्बिनेज एन्जाइम की उपस्थिति में सक्रिय थोम्बिन में बदल जाता है।

3. फाइब्रोनोजन का फाइब्रिन में परिवर्तन एवं थक्का निर्माण: सक्रिय थ्रोम्बिन की उपस्थिति में पहले फाइब्रिनोजन एक विलयशील फाइब्रिन पॉलीमर में बदलता है। यह विलेयशील अथवा घुलनशील होता है। इसके बाद यह अघुलनशील फाइब्रिन तन्तुओं में बदल जाता है। इस प्रकार बने फाइब्रिन के रेशे घायल स्थान के ऊपर जाल बना लेते हैं। इस जाल में रुधिर कणिकाएँ उलझ जाती हैं और यह थक्का (clot) का रूप ले लेता है, जिससे रुधिर का बहाव रुक जाता है। थक्का के सिकुड़ने पर हल्के पीले रंग का निकला तरल पदार्थ सीरम (Serum) कहलाता है।

स्कंदन का महत्व (Significance of Coagulation) 

  1. प्रत्येक प्राणी के जीवनकाल में रुधिर का स्कंदन या थक्का (Coagulation of blood or clotting) बनना एक महत्त्वपूर्ण घटना है। 
  2. यह क्षतिग्रस्त वाहिनियों के प्रति एक सुरक्षात्मक उपाय है। 
  3. शरीर में चोट लगने पर क्षतिग्रस्त स्थान से रुधिर बाहर निकलना प्रारम्भ हो जाता है। 
  4. यदि शरीर से आवश्यकता से अधिक मात्रा में रुधिर निकलता रहे तो व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। 
  5. रक्त के थक्का बनने की क्रिया के कारण छोटे - छोटे जख्मों से अत्यधिक रक्तस्राव नहीं हो पाता है। 
  6. इसके महत्त्व को अच्छी प्रकार से उन मनुष्यों में समझा जा सकता है जिनका रुधिर का थक्का बनाने में असमर्थ होता है या फिर यह इतने धीरे - धीरे होता है कि थोड़ी चोट लगने पर भी घातक रूप में अत्यधिक रक्त बाहर निकलता है। इस रोग को हीमोफिलिया (Haemophilia) कहते हैं।

प्रश्न 5. 
हद चक्र किसे कहते हैं? इसकी विभिन्न घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
Rh समूह (Rh Grouping):
सन् 1940 में लैण्डस्टीनर (Landsteiner) तथा वीनर (Weiner) ने रीसस (Rhesus) बन्दर की लाल रुधिर कणिकाओं में एक अन्य कारक (Factor) का पता लगाया था। इसे Rh- कारक या Rh- एन्टीजन नाम दिया गया। Rh संकेत का प्रयोग रीसस शब्द को दर्शाने के लिए किया जाता है। जिन व्यक्तियों के लाल रक्ताणुओं पर Rh एन्टीजन पाया जाता है उन्हें Rh धनात्मक (Rh+) तथा जिनमें इसका अभाव होता है, उन्हें Rh ऋणात्मक (Rh-) कहते हैं। यह लगभग 80 प्रतिशत मनुष्यों में पाया जाता है। Rh एन्टीजन के विरुद्ध प्लाज्मा में प्राकृतिक रूप से कोई एन्टीबॉडी या एग्लुटिनिन नहीं पाई जाती है। यदि Rh व्यक्ति को बार - बार Rh+ रुधिर दिया जाता है तो Rh- व्यक्ति में ऐन्टी - Rh ऐन्टीबॉडी या एग्लूटिनिन उत्पन्न हो जाते हैं। इस क्रिया को आइसोइम्यूनाइजेशन (Isoimmunization) कहते हैं क्योंकि ऐन्टीजन एवं एन्टीबॉडी दोनों एक ही जाति के होते हैं।

यदि Rh- माताएँ एक से अधिक बार Rh+ शिशु से युक्त गर्भधारण करती हैं तो Rh कारक के कारण गम्भीर समस्या पैदा हो जाती है। Rh कारक वंशागत होता है। Rh+ प्रभावी तथा Rh- अप्रभावी होता है। Rh- माता से उत्पन्न Rh+ शिशु पिता से Rh कारक प्राप्त करता है। गर्भस्थ Rh+ शिशु से प्रसव के समय Rh ऐन्टीजन माता के रुधिर में प्रवेश कर जाते हैं। माता के रुधिर में इस ऐन्टीजन के कारण एन्टी - Rh ऐन्टीबॉडी उत्पन्न हो जाती है। सामान्यत: ऐन्टीबॉडी इतनी अधिक मात्रा में नहीं होती जो प्रथम बार उत्पन्न शिशु को हानि पहुंचा सके, लेकिन बाद में गर्भधारण की स्थिति में माता के रुधिर से एन्टी Rh ऐन्टीबॉडी अपरा (Placenta) द्वारा गर्भस्थ शिशु के रुधिर में पहुँचकर शिशु के रुधिर कणिकाओं का लयन (Haemolysis) कर देती है। 
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गर्भस्थ शिशु या नवजात शिशु के इस घातक रोग को इरिथ्रोब्लास्टोसिस फीटेलिस (Erythroblastosis foetalis) कहते हैं। इस रोग से ग्रसित शिशु को रीसस शिशु (Rhesus baby) कहते हैं। सामान्यत: इसका जन्म समय पूर्व होता है तथा इसमें रक्ताल्पता पाई जाती है। शिशु के सम्पूर्ण रक्त को स्वस्थ रुधिर द्वारा प्रतिस्थापित करके शिशु को बचाया जा सकता है। प्रसव से ठीक पूर्व लगभग 72 घण्टे के भीतर Rh- माता को एन्टी Rh- ऐन्टीबॉडी का इन्ट्रावेनस इन्जेक्शन देकर भी शिशु को बचाया जा सकता है।

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प्रश्न 6. 
निवाहिका तन्त्र क्या है? मनुष्य के निवाहिका तन्त्र का संक्षिप्त में वर्णन करो एवं महत्त्व लिखो।
उत्तर:
एक पूरे रक्त परिसंचरण चक्र में रक्त हृदय से दो बार गुजरता है तथा फिर अंगों में पहुँचता है। इस प्रकार के परिसंचरण को द्विसंचरण अथवा दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं।
रुधिर का प्रवाह धमनियों तथा शिराओं द्वारा होता है। परिसंचरण का परिपथ निश्चित होता है। हृदय में शद्ध एवं अशद्ध रुधिर भी पूर्ण पृथक रहता है। हृदय के दायीं ओर (दायां आलिन्द एवं दायां निलय) अशुद्ध रुधिर तथा बायीं ओर (बायां आलिन्द एवं बायां निलय) शुद्ध रुधिर होता है। शुद्ध व अशुद्ध रुधिर को ले जाने व लाने के लिए शरीर में वाहिकाओं के दो परिपथ होते हैं -

1. फुफ्फुसीय परिपथ (Pulmonary Circuit): फुफ्फुसीय धमनियाँ जो दायें निलय से अशुद्ध रुधिर फेफड़ों में ले जाती हैं तथा फुफ्फुस शिराएँ जो शुद्ध रुधिर फेफड़ों से बायें आलिन्द में लाती हैं, मिलकर फुफ्फुसीय परिपथ बनाती हैं। इस प्रकार हृदय से फेफड़ों व फेफड़ों से हृदय के मध्य परिसंचरण के पथ को फुफ्फुसीय परिपथ कहते हैं।

2. दैहिक परिपथ (Systemic Circuit): महाधमनी एवं उसकी शाखाएँ जो बायें निलय से शुद्ध रुधिर को शरीर में पहुँचाती हैं तथा महाशिराएं व उनमें रक्त लाने वाली अन्य शिराएँ जो दायें आलिन्द में अशुद्ध रुधिर को शरीर से लाती हैं, मिलकर दैहिक परिपथ बनाती हैं। यह हृदय से शरीर व शरीर से हृदय के मध्य होता है।

इस प्रकार मनुष्य में रुधिर के परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं, क्योंकि शरीर में परिसंचरण पूर्ण होने के लिए रुधिर हदय में से दो बार गुजरता है। पहले अशुद्ध रुधिर शरीर के विभिन्न भागों से हृदय के दायें भाग में आता है, जिसे फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजा जाता है। फेफड़ों में शुद्ध होने के बाद रुधिर पुनः हृदय के बायें भाग में आता है जहाँ इसे शरीर के भागों में भेजा जाता है।
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हदय की पेशियों को रुधिर आपूर्ति हृदय धमनियों (Coronary arteries) द्वारा होती है। ये अशुद्ध रुधिर हृदय शिराओं द्वारा एकत्रित करके हद साइनस (Coronary Sinus) में लाया जाता है। इद साइनस से रुधिर दायें आलिन्द में आता है। हृदय के इस परिपथ को हृद परिसंचरण (Coronary circulation) कहते हैं। सामान्यतया शिरायें विभिन्न अंगों से रक्त लाकर हृदय में छोड़ती हैं। कुछ शिरायें हृदय में न जाकर अन्य अंग में प्रवेश कर जाती हैं तथा इसी अंग में केशिकाओं में विभाजित होकर रक्त का वितरण कर देती हैं, ऐसी शिरा को निवाहिका शिरा (Portal vein) कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम उस शिरा को निवाहिका शिरा कहेंगे जिसका आरम्भ एवं अन्त केशिकाओं एवं उनके द्वारा निर्मित जालिकामय रचना में होता है तथा इनकी शाखाओं से निर्मित केशिकाओं के समूह को निवाहिका तन्त्र (Portal System) कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है  - यकृत निवाहिका तन्त्र एवं वृक्क निवाहिका तन्त्र।

मनुष्य में यकृत निवाहिका उपतन्त्र (Hepatic portal sub system) पाया जाता है जिसके अन्तर्गत आहारनाल (Alimentary Canal) के विभिन्न भागों से रक्त एकत्रित करके यकृत में लाया जाता है।
इस तन्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित शिराएँ आहारनाल के विविध भागों से रक्त एकत्रित करके यकृत निवाहिका शिरा बनाती हैं -

  • प्लीहा जठर या लीनोगेस्ट्रीक शिरा (Lienogastric Vein)- प्लीहा व आमाशय से रक्त एकत्रित करती है।
  • ग्रहणी अग्नाशयी शिरा (Duodeno - Pancreatic Vein)- यह ग्रहणी तथा अग्नाशय से रक्त लाती है।
  • अग्र आंत्रयोजनी शिरा (Anterior mesenteric Vein)- यह कोलन सीकम व क्षुद्रान्त्र से रक्त एकत्रित करती है।
  • पश्च आंत्रयोजनी शिरा (Posterior mesenteric Vein)- यह मलाशय व गुदा से रक्त लाती है।

उपर्युक्त सभी शिराएँ संयुक्त होकर यकृत निवाहिका शिरा बनाती हैं,जो यकृत के बायें पिण्ड में प्रवेश करके अनेक केशिकाओं में विभक्त हो जाती हैं। इन केशिकाओं के पुन: संयोजन से तीन यकृती शिराओं का निर्माण होता है जो रक्त को यकृत से पश्च महाशिरा में पहुँचाती हैं।
यकृत निवाहिका तन्त्र का महत्व (Significance of hepatic portal system):

  1. आंघ से एकत्रित रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है जिसका यकृत में ग्लाइकोजन के रूप में संग्रह कर लिया जाता है।
  2. आहार नाल में उपस्थित जीवाणु कई प्रकार के विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। उनका निर्विषीकरण (detoxification) यकृत में हो जाता है।
  3. प्रोटीन के पाचन से बने अमीनो अम्लों को यकृत में लाया जाता है, जिनसे शरीर की आवश्यकता के अनुसार प्रोटीन का निर्माण किया जाता है तथा शेष अमीनो अम्लों का विएमीनीकरण या डिएमीनेशन (deamination) कर दिया जाता है, जिससे अमोनिया उत्पन्न होती है। यकृत कोशिकाओं द्वारा अमोनिया व CO2 से यूरिया का संश्लेषण कर दिया जाता है।
  4. रक्त में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है।

प्रश्न 7. 
हृदय की आन्तरिक संरचना का चित्र बनाकर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव परिसंचरण तंत्र (Human Circulatory System):
हृदय (Heart): हृदय की उत्पत्ति मीजोडर्म (mesoderm) से होती है। मानव का हृदय औसतन एक बन्द मुट्ठी के समान होता है। इसका वजन 300 ग्राम के लगभग होता है। यह वक्ष गुहा में कुछ बायीं ओर दोनों फेफड़ों के मध्य फुफ्फुस मध्यावकाश में स्थित होता है। हृदय के ऊपर पाये जाने वाले आवरण को हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। पेरिकार्डियम की भीतरी परत विसरल स्तर (Visceral Layer) कहलाती है तथा बाहरी परत को पैराइटल परत (Parietal Layer) कहते हैं। इन दोनों स्तरों के बीच एक लसदार द्रव्य भरा होता है जिसे परिहृदय तल (Pericardial fluid) कहते हैं।
हृदय की आन्तरिक संरचना का अध्ययन इसकी क्षैतिज अनुलम्ब काट की सहायता से किया जाता है। हृदय की भित्ति तीन स्तरों से निर्मित होती है। सबसे बाहरी तन्तुमय स्तर को ऐपीकार्डियम (Epicardium) कहते हैं। मध्य मोटा पेशी स्तर मायोकार्डियम (Myocardium) तथा भीतरी स्तर को एन्डोकार्डियम (Endocardium) कहते हैं। हृदय की भित्ति में संयोजी ऊतक एवं रुधिर केशिकाएँ पाई जाती हैं।

हमारे हृदय में चार कक्ष होते हैं जिसमें दो कक्ष अपेक्षाकृत छोटे तथा ऊपर को पाये जाते हैं, जिन्हें आलिन्द (Auricle) कहते हैं तथा दो कक्ष अपेक्षाकृत बड़े होते हैं जिन्हें निलय (Ventricle) कहते हैं। आलिन्दों की भित्ति अपेक्षाकृत पतली होती है तथा आलिन्द दाहिने एवं बायें भागों में एक मध्य पट्टी के द्वारा पूर्ण रूप से बंटे होते हैं। इस पट्टी को अन्तरा - आलिन्द पट (Inter - auricular septum) कहते हैं। इस पट्टी पर एक छोटा - सा गड्ढा होता है, जिसे फॉसा ऑवेलिस (Fosa ovalis) कहते हैं। भ्रूणीय अवस्था में इसके स्थान पर एक रन्ध्र पाया जाता है जिसे फोरामेन ऑवेलिस (Formen ovalis) कहते हैं। इस कारण भ्रूणीय अवस्था में रुधिर फेफड़ों में शुद्धीकरण हेतु जाने के बजाय रक्त सीधे दायें आलिन्द से बायें आलिन्द में चला जाता है, क्योंकि भ्रूण में फेफड़े क्रियाशील नहीं होते हैं। परन्तु जन्म के बाद यह छिद्र बन्द हो

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जाता है तथा केवल एक गड्ढा रह जाता है तथा दाहिने आलिन्द से रक्त दाहिने निलय से होता हुआ फेफड़ों में आता है। दाहिने आलिन्द (Right auricle) की पृष्ठ भित्ति में उपस्थित तीन पृथक् छिद्रों द्वारा दो अग्र महाशिरायें (Pre Caval) तथा एक पश्च महाशिरा (Post Caval) आलिन्द में खुलती है। अग्र महाशिराओं के छिद्रों के बीच में एक यूस्टे कियन कपाट (Eustachian Valve) स्थित होता है, जो तीनों महाशिराओं के छिद्रों का नियमन करता है। यूस्टेयन कपाट के नजदीक ही दाहिने आलिन्द की भित्ति पर एक छोटी - सी साइनू ऑरिक्यूलर घुण्डी (Sinu Auricular Node) होती है। इसी प्रकार की एक अन्य घुण्डी जिसे अधः घुण्डी (Lower Node) अथवा आरिक्यूलो - वेन्ट्रीक्यूलर घुण्डी (Auriculo ventricular Node) कहते हैं, अन्तरा आलिन्द पट्टी के आधार भाग पर स्थित होती है।

दोनों घुण्डियाँ (Nodes) तन्त्रिका तन्तु युक्त पेशियों की बनी होती हैं। इनसे तन्तु निकलकर क्रमश: आलिन्दों एवं निलयों की पेशियों में जाते हैं। दोनों घुण्डियाँ तन्तुओं द्वारा परस्पर जुड़ी रहती हैं तथा साथ ही साइनू - ऑरिक्यूलर घुण्डी (SAN) मस्तिष्क की वेगस तथा तन्त्रिका रज्जु की कार्डियक तन्त्रिका से सम्बन्धित होती है। हृदय के स्पंदन (Beating) का नियमन साइनू - आरिक्यूलर घुण्डी (SAN) करती है, इसलिए इसे स्पन्दन केन्द्र (पेसमेकर) भी कहते हैं। बायें आलिन्द में एक सह-छिद्र द्वारा फेफड़ों से आई दो पल्मोनरी शिरायें खुलती हैं।

निलयों की भित्ति आलिन्दों की भित्ति से अपेक्षाकृत बहुत मोटी एवं पेशीय होती है तथा हृदय पेशियों (Cardiac Muscles) की बनी होती है। निलय दाहिने एवं बायें असमान भागों में एक तिरछी अन्तरानिलय पट्टी (Interventricular Septum) द्वारा बंटा होता है। दोनों दाहिने एवं बायें निलय अपनी तरफ के आरिनन्दों से एक - एक बड़े आलिन्द निलय छिद्र (Auriculo Ventricular Aperature) द्वारा सम्बन्धित होते हैं। दोनों आलिन्द निलय छिद्रों में झिल्ली समान कपाट स्थित होते हैं। दाहिने आलिन्द निलय छिद्र का कपाट तीन पट्टियों (Flaps) का बना होता है। अत: इसे त्रिदल कपाट अर्थात् ट्राइकस्पिड कपाट (Tricuspid Valve) कहते हैं। बायें आलिन्द - निलय छिद्र पर स्थित कपाट दो पट्टियों का बना होता है। इसलिए इसे द्विदल कपाट अर्थात् बाईकस्पिड कपाट (Bicuspid Valve) कहते हैं। इसे मिटूल कपाट (Mitral Valve) भी कहते हैं। कपाटों की पट्टियाँ (Flaps) पतली झिल्ली रूपी हदय रज्जू (Chordae Tendinac) द्वारा निलयों की भीतरी भित्ति पर स्थित पेशी स्तम्भों अर्थात् पेपिलरी पेशियों से सम्बन्धित रहती है। आलिन्द निलयों में छिद्रों के कपाट रक्त को केवल आलिन्दों से निलयों में आने देते हैं तथा इसे विपरीत दिशा में जाने से रोकते हैं।

प्रश्न 8. 
द्वि - परिसंचरण किसे कहते हैं? आरेख द्वारा द्विपरिसंचरण को समझाइए।
उत्तर:
एक पूरे रक्त परिसंचरण चक्र में रक्त हृदय से दो बार गुजरता है तथा फिर अंगों में पहुँचता है। इस प्रकार के परिसंचरण को द्विसंचरण अथवा दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं।
रुधिर का प्रवाह धमनियों तथा शिराओं द्वारा होता है। परिसंचरण का परिपथ निश्चित होता है। हृदय में शद्ध एवं अशद्ध रुधिर भी पूर्ण पृथक रहता है। हृदय के दायीं ओर (दायां आलिन्द एवं दायां निलय) अशुद्ध रुधिर तथा बायीं ओर (बायां आलिन्द एवं बायां निलय) शुद्ध रुधिर होता है। शुद्ध व अशुद्ध रुधिर को ले जाने व लाने के लिए शरीर में वाहिकाओं के दो परिपथ होते हैं -

1. फुफ्फुसीय परिपथ (Pulmonary Circuit): फुफ्फुसीय धमनियाँ जो दायें निलय से अशुद्ध रुधिर फेफड़ों में ले जाती हैं तथा फुफ्फुस शिराएँ जो शुद्ध रुधिर फेफड़ों से बायें आलिन्द में लाती हैं, मिलकर फुफ्फुसीय परिपथ बनाती हैं। इस प्रकार हृदय से फेफड़ों व फेफड़ों से हृदय के मध्य परिसंचरण के पथ को फुफ्फुसीय परिपथ कहते हैं।

2. दैहिक परिपथ (Systemic Circuit): महाधमनी एवं उसकी शाखाएँ जो बायें निलय से शुद्ध रुधिर को शरीर में पहुँचाती हैं तथा महाशिराएं व उनमें रक्त लाने वाली अन्य शिराएँ जो दायें आलिन्द में अशुद्ध रुधिर को शरीर से लाती हैं, मिलकर दैहिक परिपथ बनाती हैं। यह हृदय से शरीर व शरीर से हृदय के मध्य होता है।

इस प्रकार मनुष्य में रुधिर के परिसंचरण को दोहरा परिसंचरण (Double circulation) कहते हैं, क्योंकि शरीर में परिसंचरण पूर्ण होने के लिए रुधिर हदय में से दो बार गुजरता है। पहले अशुद्ध रुधिर शरीर के विभिन्न भागों से हृदय के दायें भाग में आता है, जिसे फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजा जाता है। फेफड़ों में शुद्ध होने के बाद रुधिर पुनः हृदय के बायें भाग में आता है जहाँ इसे शरीर के भागों में भेजा जाता है।
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हदय की पेशियों को रुधिर आपूर्ति हृदय धमनियों (Coronary arteries) द्वारा होती है। ये अशुद्ध रुधिर हृदय शिराओं द्वारा एकत्रित करके हद साइनस (Coronary Sinus) में लाया जाता है। इद साइनस से रुधिर दायें आलिन्द में आता है। हृदय के इस परिपथ को हृद परिसंचरण (Coronary circulation) कहते हैं। सामान्यतया शिरायें विभिन्न अंगों से रक्त लाकर हृदय में छोड़ती हैं। कुछ शिरायें हृदय में न जाकर अन्य अंग में प्रवेश कर जाती हैं तथा इसी अंग में केशिकाओं में विभाजित होकर रक्त का वितरण कर देती हैं, ऐसी शिरा को निवाहिका शिरा (Portal vein) कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम उस शिरा को निवाहिका शिरा कहेंगे जिसका आरम्भ एवं अन्त केशिकाओं एवं उनके द्वारा निर्मित जालिकामय रचना में होता है तथा इनकी शाखाओं से निर्मित केशिकाओं के समूह को निवाहिका तन्त्र (Portal System) कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है  - यकृत निवाहिका तन्त्र एवं वृक्क निवाहिका तन्त्र।

मनुष्य में यकृत निवाहिका उपतन्त्र (Hepatic portal sub system) पाया जाता है जिसके अन्तर्गत आहारनाल (Alimentary Canal) के विभिन्न भागों से रक्त एकत्रित करके यकृत में लाया जाता है।

इस तन्त्र के अन्तर्गत निम्नलिखित शिराएँ आहारनाल के विविध भागों से रक्त एकत्रित करके यकृत निवाहिका शिरा बनाती हैं -

  • प्लीहा जठर या लीनोगेस्ट्रीक शिरा (Lienogastric Vein)- प्लीहा व आमाशय से रक्त एकत्रित करती है।
  • ग्रहणी अग्नाशयी शिरा (Duodeno - Pancreatic Vein)- यह ग्रहणी तथा अग्नाशय से रक्त लाती है।
  • अग्र आंत्रयोजनी शिरा (Anterior mesenteric Vein)- यह कोलन सीकम व क्षुद्रान्त्र से रक्त एकत्रित करती है।
  • पश्च आंत्रयोजनी शिरा (Posterior mesenteric Vein)- यह मलाशय व गुदा से रक्त लाती है।

उपर्युक्त सभी शिराएँ संयुक्त होकर यकृत निवाहिका शिरा बनाती हैं,जो यकृत के बायें पिण्ड में प्रवेश करके अनेक केशिकाओं में विभक्त हो जाती हैं। इन केशिकाओं के पुन: संयोजन से तीन यकृती शिराओं का निर्माण होता है जो रक्त को यकृत से पश्च महाशिरा में पहुँचाती हैं।

यकृत निवाहिका तन्त्र का महत्व (Significance of hepatic portal system):

  1. आंघ से एकत्रित रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक होती है जिसका यकृत में ग्लाइकोजन के रूप में संग्रह कर लिया जाता है।
  2. आहार नाल में उपस्थित जीवाणु कई प्रकार के विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। उनका निर्विषीकरण (detoxification) यकृत में हो जाता है।
  3. प्रोटीन के पाचन से बने अमीनो अम्लों को यकृत में लाया जाता है, जिनसे शरीर की आवश्यकता के अनुसार प्रोटीन का निर्माण किया जाता है तथा शेष अमीनो अम्लों का विएमीनीकरण या डिएमीनेशन (deamination) कर दिया जाता है, जिससे अमोनिया उत्पन्न होती है। यकृत कोशिकाओं द्वारा अमोनिया व CO2 से यूरिया का संश्लेषण कर दिया जाता है।
  4. रक्त में प्रवेश करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है।

RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

प्रश्न 9. 
विद्युत हद लेख (Electrocardiograph) को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
विद्युत हृद लेख (Electrocardiograph):
यह चिकित्सा विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण तकनीक है जिसके द्वारा हृदय की कार्यशील अवस्था में तन्त्रिकाओं तथा पेशियों द्वारा उत्पन्न विद्युतीय संकेतों का अध्ययन कर उनको रिकार्ड किया जाता है। इस कार्य में प्रयुक्त उपकरण को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (Electro - CardioGram) कहते हैं। इस विधि में संचलन जैल (Conducting Jelly) का प्रयोग करते हुए उपकरण के तीन इलेक्ट्रोड क्रमश: मरीज के वक्ष, कलाई तथा पैरों पर लगाये जाते हैं। इनसे प्राप्त विद्युत संकेत क्षीण प्रकृति के होते हैं जिनको उपकरण में लगी उपयुक्त प्रणाली से अभिवृद्धित कर संवेदी चार्ट रिकार्ड पर रिकार्ड कर लिया जाता है।

RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 16

ई.सी.जी. में हृदय के विभिन्न कक्षों के संकुचन तथा शिथिलन के समय होने वाली विद्युतीय गतिविधियों के संकेत एक निश्चित पैटर्न की तरंगों के रूप में प्राप्त होता है। इन तरंगों को PQRS एवं T तरंगें कहते हैं। प्रत्येक वर्ण हृदय पेशियों में घटित एक विशिष्ट अवस्था का द्योतक है।
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RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 18

P= SAN में आवेश की उत्पत्ति 
P से Q तक = आलिन्दों का संकुचन
Q से R तक = AVN के आवेग 
R से 5 तक = हिज के बण्डलों में आवेग संचरण 
S से T तक = निलय के संकुचन को व्यक्त करता है 
T बिन्दु निलय के शिथिलन के प्रारम्भ को दर्शाता है।
ई.सी.जी. के उपयोग: इसके द्वारा हृदय की असामान्यता के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
ई.सी.जी. से हृदय धमनी सम्बन्धी रोग कोरोनरी थ्रोम्बोसिस, हृदयावरणी शूल, हृदयपेशी रुग्णता (कार्डियोमायोपेथी), मध्य हृदयपेशी शूल (मायोकार्डाइटिस) आदि के निदान में सहायक होती है।

प्रश्न 10. 
हृदय क्रिया का नियमन को चित्र की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
हृदय के लयबद्ध संकुचन को हृदय स्पंदन कहते हैं। हृदय की पेशियों का उद्दीपन स्वयं इसकी पेशियों से ही उत्पन्न होता है। इसलिए हदय स्पंदन को पेशीजनित (मायोजेनिक) कहा जाता है। हृदय में पेशियों के लयबद्ध संकुचन के लिए लयबद्ध आवेग उत्पन्न करने वाला तन्त्र पाया जाता है। यह तन्त्र आवेगों को हदय से संचरित करता है। यह तन्त्र हृदय पेशियों से निर्मित होता है। इसे हृदय चालन तन्त्र कहते हैं। इस तन्त्र का निर्माण शिरा आलिन्द पर्व (SAN), अन्तर पर्व सन्धि तन्तुओं, आलिन्द निलय पर्व (AVN), हिज के पूरल एवं पुरकिन्जे के तन्तु मिलकर करते हैं। शिरा आलिन्द पर्व (SAN) दायें आलिन्द के ऊर्ध्व महाशिरा के छिद्र के पास स्थित होता है।

हृदय के संकुचन के लिए आवश्यक आवेग इसी पर्व (Node) में उत्पन्न होते हैं। SAN में उत्तेजन की क्षमता होती है जिससे यह हृदय में स्वचालित लयबद्ध संकुचन उत्पन्न करती है। SAN से सक्रिय विभव का संचरण शीघ्र ही दोनों आलिन्दों की भित्तियों में फैल जाता है तथा आलिन्द लगभग एक साथ संकुचित हो जाते हैं। सक्रिय विभव या आवेग का SAN से संचरण अन्तर पर्व सन्धि तन्तुओं द्वारा AVN में भी होता है। AVN अन्तर आलिन्द पट पर दायें आलिन्द में स्थित होता है। AVN से आवेग को संचरण हिज के पूल एवं पुरकिन्जे तन्तुओं द्वारा दोनों निलयों की भित्ति में होता है। इन तन्तुओं द्वारा निलयों में संचरण तीव्र गति से होता है, लेकिन AVN में आवेग का संचरण धीमी गति से होता है, इसलिए आवेग निलय में कुछ विलम्ब से पहुंचते हैं। फलस्वरूप आलिन्दों का संकुचन पूर्ण हो जाने के बाद ही दोनों निलयों में आवेग संचारित होता है और निलयों का संकुचन होता है।

SAN हृदय की गति निर्धारक (पेसमेकर) का कार्य करता है। इसके आवेग उत्पन्न करने की दर 72 से 80 प्रति मिनट होती है जो AVN एवं अन्य तन्तुओं की उत्तेजनशीलता की दर से काफी अधिक होती है। इसलिए यह हृदय के अन्य संधि पर्वो व तन्तुओं के स्वउत्तेजनशीलता का नियंत्रण करके हृदय दर का नियमन करता हैं।

हृदय दर का नियमन निम्नलिखित प्रणालियों से होता है -
1. तन्त्रिकीय नियंत्रण (Nervous Control)- हृदय धड़कन की उत्पत्ति शिरा आलिन्द पर्व से होती है लेकिन स्पंदन की दर का नियमन मेड्यूला ऑब्लांगेटा (Medulla oblengata) में स्थित हृदय स्पंदन केन्द्र (Heart beat Centre) अथवा कार्डियक केन्द्र (Cardiac Centre) द्वारा होता है। क्रियात्मक रूप से इसके दो भाग होते हैं-

  1. कार्डियक निरोधक केन्द्र (Cardio inhibitory Centre) 
  2. कार्डियक त्वरक केन्द्र (Cardio acceleratory Centre)।

RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 19

कार्डियक त्वरक केन्द्र से एक जोड़ी सिम्पेथेटिक तंत्रिका द्वारा शरा आलिन्द पर्व को आवेग भेजता है जिससे हदय की धड़कन बढ़ जाती है। इस प्रकार कार्डियक निरोधक केन्द्र से एक जोड़ी पैरासिम्पेथेटिक तंत्रिका या वेगस अथवा संदमक तंत्रिका (Inhibitory nerve) द्वारा शिरा आलिन्द पर्व को आवेग भेजता है। इससे हृदय की धड़कन कम हो जाती है।

वेगस तन्त्रिका के अन्तिम सिरे से एसिटोकोलिन का स्त्राव होता है जो शिरा आलिन्द पर्व को संदमित करके हृदय स्पंदन को कम करता है व सिम्पेथेटिक तन्त्रिका द्वारा एडीनेलिन (Adrenalin) का खाव होता है जो शिरा आलिन्द पर्व को उद्दीप्त करके हृदय की धड़कन को बढ़ाता है।

2. हार्मोनों द्वारा नियंत्रण (Hormonal Control): एपिनेफ्रिन या एड्रिनेलिन एवं नॉर - एपिनेफ्रिन या नॉर - एड्रिनेलिन दोनों हृदय की दर को बढ़ाते हैं, यद्यपि एभिनेलिन का प्रभाव ज्यादा होता है। थॉयराक्सिन भी हृदय की दर को बढ़ाते हैं।

3. रासायनिक नियंत्रण (Chemical Control): कम pH, अधिक ताप व अधिक CO2 हृदय की दर को बढ़ाते हैं जबकि अधिक pH व कम ताप हृदय की दर को कम करते हैं।

प्रश्न 11. 
परिसंचरण से सम्बन्धित कौन - कौनसी विकृतियाँ हैं? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. एथेरोस्कलेरोसिस (Atherosclerosis): कभी - कभी, विशेष रूप से जबकि लम्बी अवधि तक अत्यधिक मात्रा में तला हुआ भोजन किया जाए, तब धमनियों की भीतरी भित्ति में वसा, कैल्शियम एवं रेशीय ऊतक जमने लगता है। इस प्रकार के जमाव को एधेरोमा (Atheroma) कहते हैं और विकार को एथेरोस्क्ले रोसिस कहते हैं। इसके कारण हृदय को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों की अवकाशिका संकरी पड़ जाती है जिसके फलस्वरूप हृदय की सामान्य कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है।

2. आर्टिरिओस्क्ले रोसिस (Arterio - sclerosis): बढ़ती हुई आयु के साथ-साथ, धमनियों की भित्तियाँ सख्त हो जाती हैं और उनमें लचीलापन नहीं रहता। इसके अलावा, हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों की भित्तियों के भीतर की तरफ वसा जमा हो जाती है। इस स्थिति को आर्टिरिओस्क्लेरोसिस कहते हैं। जिसके कारण हृदय की सामान्य कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए, हृदय की धमनियों की अवकाशिका को उसके भीतर नली का एक टुकड़ा (स्टेंट) लगाकर चौड़ा कर दिया जाता है। इसे बैलूनिंग ऐंजियोप्लास्टी कहते हैं। कभी - कभी धमनी को ही बदलना पड़ता है और इस उपचार को हार्ट बाई - पास (Heart by - pass) कहते हैं।

3. अलयबद्धता (Dysrhythmia): कभी - कभी हृदय में प्राकृतिक गति निर्धारक के स्पंदन अनियमित हो जाते हैं या आवेग के संचरण में कोई दोष आ जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है। इसके कारण हदय के कक्षों का स्पन्दन क्रमबद्ध नहीं हो पाता है। इस रोग का उपचार कृत्रिम गति निर्धारक लगाकर किया जा सकता है। डिजिटेलिस दवा भी लाभप्रद होती है।

4. हृदयशूल (Angina): इस रोग को एंजाइना पेक्टोरिस (Angina Pectoris) भी कहते हैं। हृदय पेशी में जब पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है तो सीने एवं हृदय में कष्टदायक दर्द होता है। ऐसी स्थिति घातक होती है। यह रोग महिला अथवा पुरुषों में किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन मध्यावस्था तथा वृद्धावस्था में यह सामान्यतः होता है। हृदयशूल रक्त के बहाव के प्रभावित होने से होती है।

5. संधिवातीय हृदय रोग (Rheumatic Heart diseases): इसमें संधिवातीय ज्वर (Rheumatic fever) के कारण हृदय के कपाट क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। बाल्यकाल में हो जाने वाली ऐसी क्षति बाद के जीवन में हृदय में गम्भीर असामान्यता उत्पन्न कर देती है। इस रोग का उपचार शल्यक्रिया द्वारा कपाटों के प्रतिस्थापन द्वारा हो सकता है। इस रोग का कारक स्ट्रेप्टोकोकल (Streptococcal) नामक जीवाणु है।

6. हृदपात (Heart failure): इस रोग में हृदय शरीर के विभिन्न भागों को आवश्यकतानुसार रुधिर की पर्याप्त पूर्ति नहीं कर पाता है। इसको कभी - कभी संकुलित हृदपात (Congestive Heart - failure) भी कहते हैं क्योंकि फुफ्फुस का संकुलन हो जाना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। हदपात (Heart failure) में हृदय पेशी को रक्त की आपूर्ति अचानक अपर्याप्त हो जाने से यकायक क्षति होती है। जबकि हृदयघात में हृदय की धड़कन बन्द हो जाती है।

हृदयघात के कई कारण हो सकते हैं - कोरोनरी धमनी में थक्का बन जाने के कारण (थ्रोम्बोसिस) या रुधिर वाहिका में रुकावट आ जाने के कारण यह रोग हो जाता है। व्यक्ति का अधिक मोटा होना, धूम्रपान, उच्च रुधिर दाब, कम व्यायाम, रुधिर में कोलेस्टेरॉल की मात्रा अधिक होना ऐसे कारक हैं, जिनसे हदयघात का खतरा बढ़ सकता है।

7. उच्च रक्त दाब (High Blood Pressure): रक्त बंद नलिकाओं में बहता है। रक्त द्वारा रक्त नलिकाओं पर डाला जाने वाला दाब रुधिर दाब (B.P.) कहलाता है। सामान्य स्वस्थ मनुष्य में क्रमशः प्रकुंचन एवं अनुशिथिलन के समय धमनी में दाव क्रमश: 120 तथा 80 मिमी. (120/80) Hg के बराबर होता है। जब धमनी रुधिर का प्रकुंचन दाब 140 तथा अनुशिथिलन दाब 90 मिमी. Hg (140/90) से अधिक लगातार बना रहता है तब इसे उच्च रक्तदाब अथवा अति तनाव रक्त दाब कहते हैं। उच्च रक्त चाप हृदय की बीमारियों को जन्म देता है तथा अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों जैसे मस्तिष्क (Brain), हृदय (Heart) एवं वृक्क (Kidney) जैसे अंगों को प्रभावित करता है।

8. वेरिकोश शिराएँ (Vericose Veins): ऐसे व्यक्ति जिनको लम्बे समय तक खड़े रहकर कार्य करना पड़ता है, उनमें यह रोग हो सकता है। इसमें टांगों की शिराएँ खिंच जाती हैं तथा टेढ़ी - मेढ़ी हो जाती हैं और ठीक प्रकार से कार्य नहीं कर पाती हैं।

9. ल्यूकेमिया (Leukemia): यह एक प्रकार का रक्त कैंसर है जिसमें श्वेताणुओं का अनियंत्रित उत्पादन होने लगता है। इससे असामान्य श्वेताणुओं की संख्या बढ़ जाती है।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्न

प्रश्न 1. 
कॉर्डियक सिस्टम से सम्बन्धित निम्न कथनों का अध्ययन कर सही विकल्प का चयन कीजिए
A. मानव हृदय एक एक्टोडर्मल व्युत्पन्न है 
B. मिट्रल वाल्व, दाएँ आलिंद तथा बाएँ निलय के बीच के खुलने की जगह पर स्थित होते हैं 
C. SAN, दाएँ आलिंद के बाएँ ऊपरी कोने पर स्थित होता है 
D. स्ट्रॉक आयतन x हृदय दर = कार्डियक आवेग
(a) केवल A सही है 
(b) केवल A तथा B सही हैं 
(c) केवल B तथा C सही हैं 
(d) केवल D सही है।
(e) केवल B तथा D सही हैं 
उत्तर:
(d) केवल D सही है।

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प्रश्न 2. 
एक स्वस्थ मनुष्य में प्रारूपिक लब-डब हृदय ध्वनियाँ हृदय स्पन्दन के दौरान किस कारण उत्पन्न होती हैं।
(a) ट्राइकस्पिड कपाट तथा बाइकस्पिड कपाट के बन्द होने के कारण 
(b) एओर्टा से रक्त प्रवाह के कारण 
(c) ट्राइकस्पिड तथा सेमील्यूनर कपाट के बन्द होने के कारण
(d) सेमील्यूनर वाल्च बन्द होने के कारण 
उत्तर:
(c) ट्राइकस्पिड तथा सेमील्यूनर कपाट के बन्द होने के कारण

प्रश्न 3. 
निलय डाइस्टोल (Diastole) के दौरान
(a) आलिंद ढीले पड़ जाते हैं 
(b) हृदय सिकुड़ जाता है।
(c) हृदय रुधिर पम्प करता है 
(d) निलय शिथिल हो जाते हैं 
उत्तर:
(d) निलय शिथिल हो जाते हैं 

प्रश्न 4. 
मानवों में 'हिस - बंडल' नामक संरचना किस अंग में पायी जाती है-
(a) अग्न्याशय
(b) मस्तिष्क 
(c) हृदय
(d) वृक्क 
उत्तर:
(c) हृदय

प्रश्न 5. 
चित्र में मानव के रुधिर परिसंचरण का एक योजनाबद्ध आरेख दर्शाया गया है जिसमें चार भागों A से D का नामांकन किया गया है। सही नामांकन के साथ उसके सही कार्य के विकल्प को चुनिए
RBSE Class 11 Biology Important Questions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण 20
(a) D - पृष्ठ महाधमनी - रुधिर को हृदय से शरीर के भागों तक ले जाती है, PO2 = 95 mm Hg 
(b) A - फुफ्फुस शिरा - विऑक्सीजनित रुधिर को शरीर के भागों से लाती है, PO2 = 60 mm Hg 
(c) B - फुफ्फुस धमनी - रुधिर को हृदय से फेफड़ों तक ले जाती है, PO2 = 90 mm Hg 
(d) C - महाशिरा - रुधिर को शरीर के भागों से दाएँ आलिंद तक ले जाती है, PCO2 = 45 mm Hg
उत्तर:
(d) C - महाशिरा - रुधिर को शरीर के भागों से दाएँ आलिंद तक ले जाती है, PCO2 = 45 mm Hg

प्रश्न 6. 
धमनियों की सबसे अच्छी परिभाषा यह है कि वे ऐसी वाहिनियाँ होती हैं, जो-
(a) रक्त को एक अंतरंग अंग से दूसरे अंतरंग अंग में ले जाती हैं 
(b) ऑक्सीजनित रक्त को विभिन्न अंगों तक पहुँचाती हैं 
(c) रक्त को हृदय से दूर विभिन्न अंगों तक पहुँचाती हैं 
(d) कोशिकाओं में विभक्त होकर फिर से जुड़ते हुए एक शिरा बना लेती हैं 
उत्तर:
(c) रक्त को हृदय से दूर विभिन्न अंगों तक पहुँचाती हैं 

प्रश्न 7. 
सही कथन का चयन कीजिए-
(a) ECG में T - तरंग आलिंद की उत्तेजना को प्रदर्शित करती है 
(b) दिए गए समय अन्तराल में P तथा T तरंगों के योग से एक व्यक्ति के हृदय स्पंदन की दर को ज्ञात किया जा सकता है 
(c) P - तरंग का अन्त, सिस्टॉल के अन्त को चिह्नित करता है। 
(d) स्टैण्डर्ड ECG में एक व्यक्ति को तीन इलेक्ट्रिक लीड्स की सहायता से मशीन से जोड़ दिया जाता है 
(e) सामान्य ECG में सबसे उच्च शिखर को 'S' से प्रदर्शित करते हैं 
उत्तर:
(d) स्टैण्डर्ड ECG में एक व्यक्ति को तीन इलेक्ट्रिक लीड्स की सहायता से मशीन से जोड़ दिया जाता है 

प्रश्न 8. 
स्तनधारियों की महाधमनी (एओर्टा) में रुधिर दाब किस प्रक्रिया के दौरान सबसे अधिक होती है
(a) दाएं निलय के अनुशिथिलन (डायस्टोल) के दौरान 
(b) बाएँ निलय के प्रकुंचन के दौरान 
(c) दाएं आलिंद के अनुशिथिलन के दौरान
(d) बाएँ आलिंद के प्रकुंचन (सिस्टोल) के दौरान 
उत्तर:
(b) बाएँ निलय के प्रकुंचन के दौरान 

प्रश्न 9. 
रक्त दाब के सन्दर्भ में कौनसा कथन सही है -
(a) यदि वह 190/110 mm Hg हुआ तो उससे अति महत्त्वपूर्ण अंग जैसे कि मस्तिष्क तथा वृक्कों (गुर्दो) को हानि पहुँच सकती है 
(b) 130/90 mm Hg ऊँचा रक्त दाब माना जाता है जिसका उपचार किया जाना जरूरी है 
(c) 100/55 mm Hg एक आदर्श रक्त दाब है 
(d) 105/50 mm Hg रक्त दाब व्यक्ति को बहुत चुस्त बना
उत्तर:
(a) यदि वह 190/110 mm Hg हुआ तो उससे अति महत्त्वपूर्ण अंग जैसे कि मस्तिष्क तथा वृक्कों (गुर्दो) को हानि पहुँच सकती है

प्रश्न 10. 
यहाँ एक सामान्य मनुष्य का मानक ECG (विधुत हदलेख) का आरेख दिया गया है। P - तरंग (पी - वेव) दर्शाती है -
(a) प्रकुंचन का समापन 
(b) दोनों आलिंद संकुचित हो रहे हैं 
(c) निलय के संकुचन का आरम्भ हो रहा है
(d) प्रकुंचन का आरम्भ 
उत्तर:
(b) दोनों आलिंद संकुचित हो रहे हैं 

प्रश्न 11. 
फुफ्फुस धमनी के भीतर रुधिर दाब होता है -
(a) उतना ही जितना महाधमनी के भीतर होता है 
(b) कैराटिड के भीतर जितना होता है उससे अधिक होता है 
(c) फुप्फुस शिरा के भीतर जितना होता है उससे अधिक होता
(d) महाशिरा के भीतर जितना होता है उससे कम होता है 
उत्तर:
(c) फुप्फुस शिरा के भीतर जितना होता है उससे अधिक होता

प्रश्न 12. 
रक्तदाब/आयतन में कमी के कारण किसका मोचन नहीं होगा
(a) रेनिन (Renin) 
(b) एट्रियल नेट्रियुरेटिक कारक 
(c) ऐल्डोस्टेरोन
(d) ADH 
उत्तर:
(b) एट्रियल नेट्रियुरेटिक कारक 

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प्रश्न 13. 
कौनसा अंग RBC का कब्रिस्तान कहलाता है जहाँ वे मेक्रोफेजेज द्वारा नष्ट की जाती हैं-
(a) लाल अस्थिमज्जा 
(b) प्लीहा 
(c) वृक्क
(d) आंत्र 
उत्तर:
(b) प्लीहा

प्रश्न 14. 
यकृत निवाहिका शिरा द्वारा यकृत में रुधिर कहाँ से आता है -
(a) हृदय
(b) आमाशय 
(c) वृक्क
(d) आंत्र 
उत्तर:
(d) आंत्र 

प्रश्न 15. 
हृदय की गतिविधि को स्वायत्त तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में सही उत्तर का चयन कीजिए
(a) पेरासिम्मेथेटिक तंत्र हृदय दर तथा स्ट्रॉक वॉल्यूम को प्रेरित करता है 
(b) सिम्पेथेटिक तंत्र हृदय दर को तथा स्ट्रॉक वॉल्यूम को प्रेरित करता है 
(c) पेरासिम्पेथेटिक तंत्र हृदय दर को कम करता है परन्तु स्ट्रॉक वॉल्यूम को बढ़ाता है। 
(d) सिम्पेथेटिक तंत्र हृदय दर को कम करता है परन्तु स्ट्रॉक वॉल्यूम को बढ़ाता है 
उत्तर:
(b) सिम्पेथेटिक तंत्र हृदय दर को तथा स्ट्रॉक वॉल्यूम को प्रेरित करता है 

प्रश्न 16. 
निम्न में से कौनसा कथन सही नहीं है -
(a) एक व्यक्ति, जिसका रुधिर समूह 'O' है, के रुधिर प्लाज्मा में एण्टी A तथा एंटी B एंटीबॉडीज होती हैं 
(b) एक व्यक्ति, जिसका रुधिर समूह 'B' है, A रुधिर समूह वाले व्यक्ति को रुधिर दान नहीं कर सकता है 
(c) रुधिर समूह की रूपरेखा, रुधिर प्लाज्मा में एंटीबॉडीज की उपस्थिति के आधार पर की जाती है। 
(d) AB रुधिर समूह वाला एक व्यक्ति यूनिवर्सल ग्राही होता है 
उत्तर:
(c) रुधिर समूह की रूपरेखा, रुधिर प्लाज्मा में एंटीबॉडीज की उपस्थिति के आधार पर की जाती है। 

प्रश्न 17. 
कॉलम 'A' के अन्तर्गत दिए गए शब्दों को कॉलम 'B' के अन्तर्गत दिए गए उनके कार्यों से सुमेलित कर नीचे दिए गए विकल्पों में से सही का चयन कीजिए-

कॉलम 'A'

कॉलम 'B'

A. लिम्फेटिक सिस्टम

(i) ऑक्सीजिनेटेड रुधिर ले जाती है

B. पल्मोनरी शिरा

(ii) इम्यून रिस्पॉन्स

C. थ्रोम्बोसाइट्स

(iii) परिसंचरण तंत्र से ऊतक द्रव्य को वापस लाना

D. लिम्फोसाइट्स

(iv) रक्त का स्कंदन करना


विकल्प:
(a) A - (ii), B - (i), C - (iii), D - (iv) 
(b) A - (iii), B - (i), C - (iv), D - (ii) 
(c) A - (iii), B - (i), C - (ii), D - (iv)
(d) A - (ii), B - (i), C - (iii), D - (iv) 
उत्तर:
(b) A - (iii), B - (i), C - (iv), D - (ii) 

प्रश्न 18. 
नीचे चार कथन (A - D) दिये जा रहे हैं, जिनका सम्बन्ध मानव रुधिर परिसंचरण तंत्र से है
(A) शिराओं की तुलना में धमनियाँ अधिक मोटी दीवार वाली होती हैं एवं उनकी अवकाशिका संकीर्ण होती है 
(B) ऐंजाइना, छाती की तीव्र पीड़ा होती है जो मस्तिष्क में पूरा रक्त न पहुँच पाने के कारण होती है 
(C) AB रक्त समूह वाले व्यक्ति ABO तंत्र के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को रक्तदान दे सकते हैं 
(D) रक्त - स्कंदन की प्रक्रिया में कैल्शियम आयनों की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है ऊपर दिये गये कथनों में से कौनसे दो कथन सही हैं
(a) (A) तथा (D)
(b) (A) तथा (B) 
(c) (B) तथा (C)
(d) (C) तथा (D) 
उत्तर:
(a) (A) तथा (D)

प्रश्न 19. 
निम्नलिखित जन्तुओं में से किस एक में दो अलग परिसंचारी पथ होते हैं-
(a) छिपकली
(b) व्हेल
(c) शार्क
(d) मेंढक 
उत्तर:
(b) व्हेल

प्रश्न 20. 
स्तम्भ - I में दी गई मदों का स्तम्भ - II की मदों से मिलान कीजिए और नीचे दिए गये विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए-

स्तम्भ - I

स्तम्भ - II

(A) त्रिवलनी कपाट

(i) बाएं आलिंद एवं बाएं निलय के बीच

(B) द्विवलनी कपाट

(ii) दाहिने निलय एवं फुफ्फुसीय धमनी के बीच

(C) अर्धचन्द्र कपाटिका

(iii) दाहिने आलिंद एवं दाहिने निलय के बीच

 

(A)

(B)

(C)

(a)  (iii)

(i)

(ii)

(b) (i)

(iii)

(ii)

(c) (i)

(ii)

(iii)

(d) (ii)

(i)

(iii)


उत्तर:

(a)  (iii)

(i)

(ii)

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प्रश्न 21. 
सड़क हादसे के किसी एक रोगी को जिसका रक्त समूह मालूम नहीं है, तुरन्त रक्तदान की आवश्यकता है। उसके एक डॉक्टर मित्र ने तुरन्त अपना रक्त देने को कहा। इस रक्तदाता डॉक्टर का क्या रक्त समूह रहा होगा -
(a) रक्त समूह AR 
(b) रक्त समूह O 
(c) रक्त समूह A
(d) रक्त समूह B
उत्तर:
(b) रक्त समूह O 

Bhagya
Last Updated on Aug. 24, 2022, 9:56 a.m.
Published Aug. 22, 2022