These comprehensive RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले will give a brief overview of all the concepts.
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→ लिंग पर आधारित असमानता - सामाजिक असमानता का लैंगिक असमानता सम्बन्धी रूप हर जगह नजर आता है। लैंगिक असमानता को स्वाभाविक ( प्राकृतिक) और अपरिवर्तनीय मान लिया जाता है। लेकिन लैंगिक असमानता का आधार स्त्री-पुरुष की जैविक बनावट नहीं वरन् इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।
→ धर्म पर आधारित असमानता - भारत समेत अनेक देशों में अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं। धार्मिक विभाजन प्रायः राजनीति के मैदान में अभिव्यक्त होता है। लेकिन यदि शासन सभी धर्मों के साथ समान बरताव करता है तो उसके ऐसे कामों में कोई बुराई नहीं है।
साम्प्रदायिकता-साम्प्रदायिकता की समस्या तब उठ खड़ी होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है या जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने | लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलम्बियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। राजनीति को धर्म से इस तरह जोड़ना ही साम्प्रदायिकता है।
→ साम्प्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है -
→ धर्मनिरपेक्ष शासन - भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना। इसमें शामिल हैं
→ जातिगत असमानताएँ - जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है। इसमें जन्म आधारित ऊँच-नीच की व्यवस्था तथा व्यवसाय, विवाह और खान-पान की पृथकता पाई जाती है।
→ वर्ण-व्यवस्था - वर्ण व्यवस्था अन्य जाति-समूहों से भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है।
→ जाति प्रथा में परिवर्तन - भारत में आर्थिक विकास, शहरीकरण, साक्षरता, शिक्षा के विकास, पेशा चुनने की आजादी और जमींदारी व्यवस्था के कमजोर पड़ने आदि कारणों से जाति-व्यवस्था की पुरातन मान्यता में बदलाव आ रहा है। लेकिन जाति प्रथा के कुछ पुराने पहलू अभी भी विद्यमान हैं, ये हैं-जातिगत विवाह तथा निम्न जातियों को दबाकर रखने की स्थिति।
→ राजनीति में जाति - राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है