RBSE Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 8 Social Science Solutions History Chapter 6 बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक

RBSE Class 8 Social Science बुनकर, लोहा बनाने वाले और फैक्ट्री मालिक InText Questions and Answers

गतिविधि (पृष्ठ 69) 

प्रश्न 1.
आपकी राय में कैलिको अधिनियम का यह नाम 'कैलिको अधिनियम' क्यों रखा गया? इस नाम से इस बारे में क्या पता चलता है कि कौन से कपड़े पर पाबंदी लगाई जा रही थी? 
उत्तर:

  • इस अधिनियम का नाम 'कैलिको अधिनियम' इसलिए रखा गया क्योंकि इसके द्वारा सूती वस्त्रों पर, जिसे यूरोप में प्रायः कैलिको के नाम से जाना जाता था, प्रतिबंध लगाया गया था। 
  • कैलिको नाम भारत के कालीकट से निकला था। अतः इससे पता चलता था कि भारतीय सूती वस्त्र पर पाबन्दी लगाई गई थी। 

गतिविधि (पृष्ठ 72) 

प्रश्न 1.
स्रोत 1 और 2 (पाठ्यपुस्तक में ) को देखें। अर्जी भेजने वालों ने अपनी भूखमरी के लिए किन परिस्थितियों को जिम्मेदार बताया है? 
उत्तर:

  • अर्जी भेजने वाले लोग बुनकर तथा कताई कामगार हैं तथा किसी अन्य पेशे के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। 
  • न केवल उनके पूर्वज बल्कि वे भी कंपनी से पेशगी। की रकम प्राप्त करते थे, जिसे रोक दिया गया है। औरांग (वर्कशॉप) बंद कर दिए गए हैं। 
  • कपड़ों के ऑर्डर नहीं होने से अब सूत खरीदने वाले बुनकर कताई वालों के घर नहीं आते हैं। 
  • अगर कताई कामगार अपनी सूत बाजार में भेजते हैं तो पहले के मुकाबले अब इन्हें एक-चौथाई दाम भी नहीं मिलता है।

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गतिविधि (पृष्ठ 75) 

प्रश्न 1.
नवाबों और राजाओं की हार से लौह एवं इस्पात उद्योग कैसे प्रभावित होता था? 
उत्तर:
नवाब और राजा लोग तलवारों एवं कवचों का प्रयोग करते थे। ब्रिटिश द्वारा भारत विजय के उपरांत तलवार एवं कवच बनाने वाले उद्योग का पतन हो गया तथा इंग्लैंड से आयात किए जाने वाले लोहे एवं इस्पात ने भारतीय कारीगरों द्वारा बनाए जाने वाले लोहे एवं इस्पात की जगह ले ली। 

आइए कल्पना करें-पृष्ठ 79 

प्रश्न 1.
कल्पना करें कि आप उन्नीसवीं सदी के आखिर के भारतीय बुनकर हैं। भारतीय फैक्ट्रियों में बने कपड़े बाजार में छाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में आप अपनी जिंदगी में क्या बदलाव लाएँगे?
उत्तर:
ऐसी स्थिति में हम अपनी जिन्दगी में निम्न बदलाव लायेंगे-

  • हम ऐसे कपड़ों का उत्पादन शुरू करेंगे जो मशीनों द्वारा तैयार नहीं किए जा सकते हैं। 
  • हम जटिल किनारियों वाली साड़ियाँ तथा परंपरागत बुनाई वाले कपड़े तैयार करेंगे। इन कपड़ों की रईसों तथा मध्यवर्ग के लोगों के बीच अच्छी माँग होगी। 
  • उक्त कार्य नहीं कर पाने की स्थिति में हम फैक्ट्री में रोजगार प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।

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फिर से याद करें-

प्रश्न 1. 
यूरोप में किस तरह के कपड़ों की भारी माँग थी?
उत्तर:
यूरोप में छापेदार भारतीय सूती कपड़े की भारी माँग थी। इन्हें यूरोपीय व्यापारी शिंट्ज, कोसा (या खस्सा) और बंडाना कहते थे। 

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प्रश्न 2. 
जामदानी क्या है? 
उत्तर:
जामदानी एक तरह का प्रायः सलेटी और सफेद रंग का बारीक मलमल होता है, जिस पर करघे में सजावटी चिह्न बुने जाते हैं। इसकी बुनाई के लिए आमतौर पर सूती और सोने के धागों का इस्तेमाल किया जाता था। 

प्रश्न 3. 
बंडाना क्या है? 
उत्तर:
बंडाना शब्द का प्रयोग गले या सिर पर पहनने वाले किसी चटक रंग के छापेदार गुलूबन्द के लिए किया जाता है। यह शब्द हिन्दी के 'बाँधना' शब्द से निकला है। इस श्रेणी में चटक रंगों वाले ऐसी बहुत सारी किस्म के कपड़े आते थे जिन्हें बाँधने और रंगसाजी की विधियों से ही बनाया जाता था। 

प्रश्न 4. 
अगरिया कौन होते हैं? 
उत्तर:
अगरिया लोहा बनाने वाले लोगों का एक समुदाय था। ये लोग लोहा गलाने की कला में निपुण थे। 

प्रश्न 5. 
रिक्त स्थान भरें : 
(क) अंग्रेजी का शिंट्ज शब्द हिंदी के .............. शब्द से निकला है। 
(ख) टीपू की तलवार ................. स्टील से बनी थी। 
(ग) भारत का कपड़ा निर्यात ............... सदी में गिरने लगा। 
उत्तर:
(क) छींट, 
(ख) वुट्ज, 
(ग) उन्नीसवीं। 

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आइए विचार करें-

प्रश्न 6. 
विभिन्न कपड़ों के नामों से उनके इतिहासों के बारे में क्या पता चलता है? 
उत्तर:
कपड़ों के नामों में इतिहास छुपा है। विभिन्न कपड़ों के नाम का अलग इतिहास है। यथा-

  • मस्लिन (मलमल)-यूरोप के व्यापारियों ने भारत से आये बारीक सूती कपड़े को सबसे पहले मौजूदा इराक के मोसूल शहर में अरब व्यापारियों के पास देखा था। अतः वे बारीक बुनाई वाले सभी कपड़ों को 'मस्लिन' (मलमल) कहने लगे। 
  • कैलिको-मसालों की तलाश में जब पहली बार पुर्तगाली भारत आए तो उन्होंने दक्षिण-पश्चिमी भारत में केरल के तट पर कालीकट में डेरा डाला। यहाँ से वे मसालों के साथ-साथ सूती कपड़ा भी लेते गए। कालीकट से जुड़े होने के आधार पर वे इस कपड़े को 'कैलिको' कहने लगे। बाद में प्रायः सभी प्रकार के सूती कपड़े को कैलिको ही कहा जाने लगा। 
  • शिंट्ज-अंग्रेजी का 'शिंट्ज' शब्द हिंदी के छींट' शब्द से निकला। 
  • बंडाना-यह शब्द भी हिंदी के शब्द 'बाँधना' से निकला है। 
  • अन्य-इनके अतिरिक्त भी अनेक कपड़े थे जिनका नामकरण उनके जन्म-स्थान के अनुसार किया जाता था। यथा-कासिम बाजार, पटना, कलकत्ता, उड़ीसा, चारपूर आदि। 

प्रश्न 7. 
इंग्लैंड के ऊन और रेशम उत्पादकों ने अठारहवीं सदी की शुरुआत में भारत से आयात होने वाले कपड़े का विरोध क्यों किया था? 
उत्तर:
अठारहवीं सदी की शुरुआत में इंग्लैंड में कपड़ा उद्योग के विकास की शुरुआत ही हुई थी। भारतीय वस्त्रों से प्रतियोगिता में अक्षम होने के कारण ब्रिटिश उत्पादक अपने देश में भारतीय वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाकर अपने लिए बाजार सुनिश्चित करना चाहते थे। 

अतः आरंभिक अठारहवीं सदी के आते-आते भारतीय वस्त्रों की लोकप्रियता से चिंतित ब्रिटिश ऊन तथा रेशम उत्पादकों ने भारतीय वस्त्रों के आयात का विरोध करना शुरू कर दिया। इसी दबाव में 1720 में ब्रिटिश सरकार ने एक कानून लाकर इंग्लैण्ड में छापेदार सूती वस्त्रों अर्थात् 'शिंट्ज' के उपयोग पर रोक लगा दी। इस अधिनियम को 'कैलिको अधिनियम' के नाम से जाना गया। 

प्रश्न 8. 
ब्रिटेन में कपास उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर किस तरह के प्रभाव पड़े?
उत्तर:
ब्रिटेन में कपास (सूती कपड़ा) उद्योग के विकास से भारत के कपड़ा उत्पादकों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े-

  • अब भारतीय वस्त्रों को यूरोपीय तथा अमेरिकी बाजारों में ब्रिटिश वस्त्रों से मुकाबला करना पड़ा। 
  • ब्रिटेन में आयात किए जाने वाले भारतीय कपड़ों पर भारी सीमा शुल्क लगा दिया गया, अतः भारत के कपड़ा उत्पादकों के लिए इंग्लैंड को कपड़ों का निर्यात करना बहुत अधिक मुश्किल होने लगा। 
  • इंग्लैण्ड में बने सूती कपड़े ने उन्नीसवीं सदी की शुरुआत तक भारतीय कपड़े को अफ्रीका, अमरीका तथा यूरोप के परम्परागत बाजारों से बाहर कर दिया जिससे भारत में हजारों बुनकर बेरोजगार हो गये। 

प्रश्न 9. 
उन्नीसवी सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग का पतन क्यों हुआ? 
उत्तर:
उन्नीसवीं सदी में भारतीय लौह प्रगलन उद्योग के पतन के निम्नलिखित कारण थे-

  • नवाबों व राजाओं की हार-भारत में नवाबों व राजाओं की हार से परम्परागत हथियारों के लिए लोहे की माँग कम हो गई थी तथा लौह प्रगालकों को राजाओं का संरक्षण समाप्त हो गया था। 
  • नये वन कानून-उन्नीसवीं सदी में नए वन कानून लागू किए गए। जब औपनिवेशिक सरकार ने लोगों को सुरक्षित वनों में प्रवेश करने से रोका तो लौह प्रगालकों के लिए कोयला बनाने हेतु लकड़ी प्राप्त करना तथा लौह अयस्क प्राप्त करना कठिन हो गया। 
  • भारी कर-कुछ क्षेत्रों में सरकार ने वनों में जाने की छूट दी। किंतु लौह प्रगालकों को अपनी प्रत्येक भट्टी के लिए वन विभाग को भारी करों की अदायगी करनी पड़ती थी। 
  • ब्रिटेन से आयात-उन्नीसवीं सदी के अंत तक लोहा एवं इस्पात का ब्रिटेन से आयात किया जाने लगा। फलतः स्थानीय लौह प्रगालकों द्वारा उत्पादित लोहे की माँग कम हो गई। 
  • लोहा-इस्पात कारखानों का उदय-बीसवीं सदी के आरंभ तक लोहे एवं इस्पात का उत्पादन करने वाले कारीगरों को लोहा-इस्पात कारखानों का उदय होने से एक नई तरह की प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा। 

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प्रश्न 10. 
भारतीय वस्त्रोद्योग को अपने शुरुआती सालों में किन समस्याओं से जूझना पड़ा? 
उत्तर:
शुरुआती सालों में भारतीय वस्त्रोद्योग को निम्न समस्याओं से जूझना पड़ा-
(1) भारतीय वस्त्रोद्योग. के लिए ब्रिटेन से आयात किए जाने वाले सस्ते वस्त्रों से मुकाबला करना कठिन हो गया। 

(2) अधिकतर देशों में सरकारों ने आयात पर अधिक-से अधिक सीमा शुल्क लगा कर अपने यहाँ औद्योगीकरण को प्रोत्साहित किया। इससे प्रतियोगिता खत्म हो जाती थी तथा सम्बन्धित देश के नवस्थापित उद्योगों को सुरक्षा मिलती थी। भारत की औपनिवेशिक सरकार ने यहाँ के स्थानीय उद्योगों को इस तरह की सुरक्षा देने से साफ इनकार कर दिया।

प्रश्न 11. 
पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को किस बात से मदद मिली? 
उत्तर:
पहले महायुद्ध के दौरान अपना स्टील उत्पादन बढ़ाने में टिस्को को निम्न बातों से मदद मिली-

  • 1914 में प्रथम महायुद्ध की शुरुआत होने पर ब्रिटेन में उत्पादित इस्पात की खपत यूरोप में युद्ध की माँगों की पूर्ति में होने लगी। अतः ब्रिटेन से भारत में आयात होने वाले इस्पात में भारी कमी आई। 
  • भारतीय रेलवे भी पटरियों की आपूर्ति हेतु 'टिस्को' पर आश्रित हो गया। 
  • महायुद्ध के लंबा खिंचते जाने के कारण टिस्को को युद्ध के लिए गोलों के खोल और रेलगाड़ियों के पहिए बनाने का काम भी सौंप दिया गया। 
  • 1919 तक स्थिति यह हो गई थी कि टिस्को में बनने वाले 90 प्रतिशत इस्पात को औपनिवेशिक सरकार ही खरीद लेती थी। 
  • समय बीतने के साथ-साथ टिस्को समूचे ब्रिटिश साम्राज्य में इस्पात का सबसे बड़ा कारखाना बन गया था।
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Last Updated on May 31, 2022, 8:26 p.m.
Published May 30, 2022