Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 3 ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना Textbook Exercise Questions and Answers.
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पाठगत प्रश्न गतिविधि (पृष्ठ 28)
प्रश्न 1.
आपको ऐसा क्यों लगता है कि कोलबुक बंगाल के उप-पट्टेदारों की स्थिति पर इतने चिंतित हैं? पिछले पन्नों (पाठ्यपुस्तक के) को पढ़कर संभावित कारण बताइए।
उत्तर:
(1) बंगाल की दीवानी प्राप्त हो जाने के बाद कंपनी को बंगाल से विशाल भू-राजस्व प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ। कम्पनी ने बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त तथा बाद में कुछ प्रान्तों में महालवारी बन्दोबस्त लागू किया।
(2) अंग्रेजों की नीति के कारण काश्तकार स्वयं को असहाय महसूस करने लगे। ताकतवर रैयत अथवा जमींदार जमीन को औरों को पट्टे पर देकर उनसे भारी लगान वसूल करते थे। उपपट्टेदार अथवा काश्तकार जमींदारों द्वारा बढ़ाए गए लगान का भुगतान कर पाने की स्थिति में नहीं रहते थे।
(3) यदि वे लगान नहीं चुकाते थे तो उन्हें उस भूमि को खोना पड़ता था। दूसरी तरफ यदि वे चुकाते थे, तो उन्हें कर्ज लेना पड़ता था।
(4) वे कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं थे क्योंकि लगान अदा करने के बाद उनके पास अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए पर्याप्त रकम भी नहीं बचती थी।
(5) इस प्रकार उपपट्टेदार अथवा काश्तकार कर्ज के एक कभी न खत्म होने वाले चक्र में फँसते चले जा रहे थे।
अतः बंगाल के काश्तकारों या उप-पट्टेदारों की स्थिति पर कोलबुक की चिंता उचित है। उसे महसूस होता था कि कंपनी की नीतियाँ न तो जमींदार तथा काश्तकार और न ही स्वयं कंपनी के हित में थीं तथा सभी इनसे बुरी तरह प्रभावित थे।
गतिविधि ( पृष्ठ 30)
प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आप कंपनी के प्रतिनिधि की हैसियत से कंपनी शासन के अंतर्गत ग्रामीण इलाकों की दशा पर एक रिपोर्ट इंग्लैंड भेज रहे हैं। रिपोर्ट में आप क्या लिखेंगे?
उत्तर:
निदेशक मंडल
ईस्ट इंडिया कंपनी
लंदन
महोदय
भारत में, कम्पनी शासन के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों की दशा के सन्दर्भ में मुझे यह कहना है कि-
(1) कंपनी ने जमींदारों के साथ स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था की शुरुआत की है। इससे कंपनी को एक नियमित तथा निश्चित भू-राजस्व की प्राप्ति होगी।
(2) जमींदारों से काश्तकारों के हितों का ध्यान रखने तथा भूमि सुधारों के लिए कहा गया है।
(3) किसानों को उन फसलों को उगाने की हिदायत दी गई है कि जिनकी कंपनी को अपने व्यापार के लिए आवश्यकता होती है।
(4) किसानों को कंपनी के लिए खेती करने हेतु अग्रिम राशि दी जा रही है।
(5) किसान अपनी फसलों की कीमत से संतुष्ट नहीं हैं। फसलों की कीमत बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है।
(6) कंपनी ने बुनकरों के साथ अनुबंध किया है जिसके अनुसार वे अपने वस्त्र कंपनी को अनुबंध में उल्लिखित कीमत पर बेचेंगे किसी अन्य को नहीं।
(7) ग्रामीण क्षेत्रों में लोग शांतिपूर्ण तरीके से जीवनयापन कर रहे हैं। कानून एवं व्यवस्था की स्थिति संतोषप्रद है।
जे. मैक्फर्सन
कंपनी प्रतिनिधि (भारत)
गतिविधि (पृष्ठ 36)
प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आप नील आयोग के सामने गवाही दे रहे हैं। डब्ल्यू. एस. सीटन कार आपसे पूछते हैं : "रैयत किस सूरत में नील की खेती कर सकते हैं?" आपका जवाब क्या होगा?
उत्तर:
उक्त प्रश्न के उत्तर में मेरा सम्भावित जवाब निम्न प्रकार होगा-श्रीमान् नील की खेती की वर्तमान शर्तों पर रैयत किसी भी सूरत में नील की खेती नहीं करेंगे। यदि उनके हितों का पूरा ध्यान रखा जाये तथा उनकी निम्न बातों को मान लिया जाये तो वे सम्भवतः नील की खेती करने को तैयार होंगे-
फिर से याद करें-
प्रश्न 1.
निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ-
रैयत |
ग्राम-समूह |
महाल |
किसान |
निज |
रैयतों की जमीन पर खेती |
रैयती |
बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती |
उत्तर:
रैयत |
किसान |
महाल |
ग्राम-समूह |
निज |
बागान मालिकों की अपनी जमीन पर खेती |
रैयती |
रैयतों की जमीन पर खेती |
प्रश्न 2.
रिक्त स्थान भरें :
(क) यूरोप में वोड उत्पादकों को .......... से अपनी आमदनी में गिरावट का खतरा दिखाई देता था।
(ख) अठारहवीं सदी के आखिर में ब्रिटेन में नील की माँग ............ के कारण बढ़ने लगी।
(ग) ............ की खोज से नील की अंतर्राष्ट्रीय माँग पर बुरा असर पड़ा।
(घ) चंपारण आंदोलन .............. के खिलाफ था।
उत्तर:
(क) नील के आयात
(ख) औद्योगीकरण
(ग) कृत्रिम रंगों
(घ) नील बागान मालिकों।
आइए विचार करें-
प्रश्न 3.
स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्थायी बंदोबस्त के मुख्य पहलू निम्नलिखित थे-
प्रश्न 4.
महालवारी व्यवस्था स्थायी बंदोबस्त के मुकाबले कैसे अलग थी?
उत्तर:
महालवारी व्यवस्था स्थायी बन्दोबस्त के मुकाबले निम्न प्रकार अलग थी-
प्रश्न 5.
राजस्व निर्धारण की नयी मुनरो व्यवस्था के कारण पैदा हुई दो समस्याएँ बताइए।
उत्तर:
मुनरो व्यवस्था की निम्न दो समस्याएँ थीं-
प्रश्न 6.
रैयत नील की खेती से क्यों कतरा रहे थे?
उत्तर:
रैयत नील की खेती करने से निम्नलिखित कारणों से कतरा रहे थे-
प्रश्न 7.
किन परिस्थितियों में बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया?
उत्तर:
बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी होने के लिए निम्न परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
(1) बंगाल में नील उत्पादक किसानों को बागान मालिक कम ब्याज दर पर नकद कर्जा देते थे। कर्जा लेने वाले रैयत को अपनी कम से कम 25 प्रतिशत जमीन पर नील की खेती करनी होती थी।
(2) किसान पहले इन कों से बहुत आकर्षित थे उन्हें जल्दी ही समझ में आ गया कि यह व्यवस्था बहुत कठोर थी। उन्हें नील की जो कीमत मिलती थी वह बहुत कम थी और कों का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता था।
(3) मार्च, 1859 में बंगाल के हजारों रैयतों ने नील की खेती से इनकार कर दिया। जैसे-जैसे विद्रोह फैला, रैयतों ने बागान मालिकों को लगान चुकाने से भी इनकार कर दिया। वे तलवार, भाले और तीर-कमान लेकर नील की फैक्ट्रियों पर हमला करने लगे। औरतें अपने बर्तन लेकर लड़ाई में कूद पड़ी।
(4) बागान मालिकों के लिए काम करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया गया। बागान मालिकों की तरफ से लगान वसूली के लिए आने वाले गुमाश्ता - एजेंट - की पिटाई की गई। रैयतों ने कसम खा ली कि न तो वे नील की खेती के लिए कर्जा लेंगे और न ही बागान मालिकों के लाठीधारी गुंडों से डरेंगे।
(5) बहुत सारे गाँवों में जिन मुखियाओं से नील के अनुबंधों पर जबरन दस्तखत कराए गए थे उन्होंने नील किसानों को इकट्ठा किया और लठियालों के साथ आमने-सामने की लड़ाई लड़ी। कई स्थानों पर रैयतों को बगावत के लिए उकसाते हुए खुद जमींदार गाँव-गाँव घूमने लगे। (6) क्षेत्र के मजिस्ट्रेट ऐशले ईडन ने एक नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया था कि रैयतों को नील के अनुबंध मानने के लिए मजबूर नहीं किया जायेगा।
(7) विद्रोहियों की गतिविधियों से चिन्तित होकर सरकार यूरोपीय बागान मालिकों की रक्षा के लिए आगे आई। नील उत्पादन व्यवस्था की जाँच के लिए एक आयोग का गठन किया गया जिसने अपनी जाँच में बागान मालिकों को दोषी पाया। आयोग ने रैयतों से कहा कि वे मौजूदा अनुबन्धों को पूरा करें लेकिन आगे से वे चाहें तो नील की खेती बन्द कर सकते हैं।
इस प्रकार इस विद्रोह के बाद बंगाल में नील का उत्पादन धराशायी हो गया।