Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 7 समकालीन विश्व में सरक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(पृष्ठ संख्या - 100)
प्रश्न 1.
मेरी सुरक्षा के बारे में किसने फैसला किया? कुछ नेताओं और विशेषज्ञों ने? क्या मैं अपनी सुरक्षा का फैसला नहीं कर सकता?
उत्तर:
हालांकि व्यक्ति स्वयं अपनी सुरक्षा का फैसला कर सकता है, लेकिन यदि यह फैसला नेताओं एवं विशेषज्ञों द्वारा किया जाए तो हम उनके अनुभव एवं अनुसन्धान का लाभ उठाते हुए उचित निर्णय ले सकते हैं।
प्रश्न 2.
आपने 'शान्ति सेना' के बारे में सुना होगा। क्या आपको लगता है कि 'शान्ति सेना' का होना स्वयं में एक विरोधाभासी बात है ?
उत्तर:
हमने अनेक बार दूरदर्शन पर देखा तथा समाचार पत्रों में शान्ति सेना के बारे में पढ़ा है। पाठ्यपुस्तक में दिए गए कार्टून के द्वारा यह दर्शाने का प्रयास किया गया है कि जो सैनिक शक्ति का प्रतीक है, जिसकी कमर पर बन्दूक और युद्ध सामग्री है, वह कबूतर पर सवार है। कबूतर को शान्ति का प्रतीक अथवा शान्तिदूत माना जाता है। वस्तुतः शक्ति अर्थात् बल के आधार पर शान्ति स्थापित नहीं की जा सकती है। यदि इसे किसी प्रकार स्थापित कर भी दिया गया तो वह शान्ति अस्थायी होगी तथा वह कुछ समयावधि गुजरने के बाद एक नवीन संघर्ष, तनाव अथवा हिंसात्मक घटनाओं को उदित करेगी।
(पृष्ठ संख्या - 102)
प्रश्न 3.
जब कोई नया देश परमाणु शक्ति-सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें क्या रवैया अख्तियार करती हैं ?
उत्तर:
जब कोई नया देश परमाणु शक्ति-सम्पन्न होने की दावेदारी करता है तो बड़ी ताकतें उसके प्रति दुश्मनी तथा दोषारोपण का रवैया अख्तियार करती हैं।
प्रश्न 4.
हमारे पास यह कहने के क्या आधार हैं कि परमाण्विक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता है परन्तु कुछ पर नहीं ?
उत्तर:
हम निम्न दो आधारों पर कह सकते हैं कि परमाण्विक हथियारों से लैस कुछ देशों पर तो विश्वास किया जा सकता है लेकिन कुछ पर नहीं
(1) जो देश परमाणु शक्ति: सम्पन्न बिरादरी के पुराने सदस्य हैं वे कहते हैं कि यदि बड़ी शक्तियों के पास परमाणु हथियार हैं तो उनमें पारस्परिक भय होगा, जिस कारण वे इन हथियारों का प्रयोग नहीं करेंगे।
(2) परमाणु शक्ति: सम्पन्न देश नये परमाणु शक्ति सम्पन्न होने की दावेदारी करने वाले देशों पर यह आरोप लगाते हैं कि वे आतंकवादियों की गतिविधियाँ नहीं रोक सकते। यदि किसी गलत सत्ता, समूह का व्यक्ति सेनाध्यक्ष/राष्ट्राध्यक्ष बन गया तो उसके समय में परमाणु हथियार किसी गलत व्यक्ति के हाथों में जा सकते हैं जो अपने पागलपन की वजह से सम्पूर्ण मानव जाति तथा आर्थिक संसाधनों को खतरे की खाई में धकेल देगा।
(पृष्ठ संख्या - 106)
प्रश्न 5.
उक्त कार्टन किसकी कृति है ? "जाएँ तो जाएँ कहाँ" शीर्षक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उक्त कार्टून प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट एंडी, केगल्स सिंगर की कृति है। उक्त शीर्षक की व्याख्या करते हुए हम कह सकते हैं कि मानव अस्तित्व, विश्वशान्ति, सुरक्षा, विकास तथा संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की चिन्ता करने वाले माँग करते हैं कि क्या बड़ी शक्तियाँ अथवा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन शान्ति विभाग के लिए कुछ लाख डॉलर दे सकते हैं तो उनका उत्तर नहीं में होता है। तर्क दिया जाता है कि शान्ति विभाग हेतु कुछ लाख डॉलर देना उनकी सहनशक्ति अथवा क्षमता से बाहर है। एक बार वे लोग व्यवस्थापिका के समक्ष जाकर शान्ति-अहिंसा विधेयक पारित किये जाने की माँग करते हैं, लेकिन उन्हें निराशा ही मिलती है। फिर वे सत्ताधारियों से अहिंसा विभाग की स्थापना की माँग करते हैं, लेकिन उन्हें दुर्भाग्यवश निराश ही होना पड़ता है। अब वे पूछते हैं कि जाएँ तो जाएँ कहाँ।
प्रश्न 6.
मानवता, शान्ति एवं अहिंसा के मित्र क्या दो माँग कर रहे हैं?
उत्तर:
मानवता, शान्ति एवं अहिंसा के मित्र निम्न दो माँगें कर रहे हैं।
प्रश्न 7.
अमेरिका में सुरक्षा पर तो भारी-भरकम खर्च होता है, जबकि शान्ति से जुड़े मामलों पर बहुत ही कम खर्च किया जाता है। यह कार्टून इस स्थिति पर एक टिप्पणी करता है क्या हमारे देश में हालत इससे कुछ अलग हैं ?
उत्तर:
विश्व का सर्वाधिक धनी देश संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी आथिक सम्पत्ति का उपयोग सुरक्षा पर अधिक करता है। अमेरिकी सन्दर्भ में यह उचित ही प्रतीत होता है क्योंकि उनके देश में नागरिक समस्याएँ कम हैं और देश की जनता पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर है। लेकिन हमारे देश में अमेरिका की अपेक्षा स्थिति अलग है। भारत एक विकासशील देश है जहाँ गरीबी नामक राक्षस अपना पूरा मुँह खोले पड़ा है।
देश में बेरोजगारी दिन: प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही है। अमेरिका तथा उस जैसी बड़ी शक्तियों के मुकाबले हमारे देश में सुरक्षा पर बहुत कम प्रतिशत धनराशि खर्च होती है। भारत सरकार आदिवासियों, पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, वृद्धों, महिलाओं, कृषि, किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य, शहरी विकास तथा औद्योगिक विकास के लिए अधिक चिन्तित है। इसके बावजूद भी हमें विपुल धनराशि सुरक्षा पर व्यय करनी ही पड़ती है।
(पृष्ठ संख्या - 108)
प्रश्न 8.
मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात हो तो हम हमेशा बाहर क्यों देखते हैं ? क्या हमारे अपने देश में इसके उदाहरण नहीं मिलते ?
उत्तर:
रवांडा के नरसंहार, कुवैत पर इराकी हमले तथा पूर्वी तिमूर में इण्डोनेशियाई सेना के रक्तपात इत्यादि घटनाओं पर तो हमने मानवाधिकारों के उल्लंघन की दुहाई दे डाली, लेकिन अपने देश में समय - समय पर हुए मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों पर चुप्पी साध ली। इसकी प्रमुख वजह मानवीय प्रवृत्ति प्रतीत होती है, क्योंकि हमें दूसरों की बुराई तलाशने में आनन्द की अनुभूति होती है, जबकि अपने द्वारा की गयी गलत बात भी सही लगती है।
प्रश्न 9.
क्या गैर - बराबरी के बढ़ने का सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर कुछ असर पड़ता है ?
उत्तर:
हाँ, खुशहाली तथा बदहाली का काफी नजदीकी सम्बन्ध होता है और गैर - बराबरी बढ़ने का सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर काफी प्रभाव पड़ता है।
(पृष्ठ संख्या - 111)
प्रश्न 10.
यहाँ जो मुद्दे दिखाये गए हैं उनसे दुनिया कैसे उबरे ?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक में दिए गए चित्र में आतंकवाद तथा प्राकृतिक आपदाओं के मुद्दे चित्रित किये गये हैं। आतंकवाद तथा प्राकृतिक आपदाएँ कोई नवीन मुद्दे नहीं हैं। आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्य-पूर्व यूरोप, लातिनी अमेरिका तथा दक्षिण एशिया में हुई हैं। इससे छुटकारा पाने के लिए विश्व को एकजुट होकर इसे जड़ से उखाड़ फेंकने हेतु रचनात्मक कार्य करने होंगे। आतंकवादियों की माँगों को ठुकराकर उनकी आर्थिक शक्ति पर प्रहार करना होगा। प्रत्येक देश को यह प्रतिज्ञा लेनी होगी कि किसी भी परिस्थिति में आतंकवादियों को अपनी सीमा में शरण नहीं देनी है। इसी तरह प्राकृतिक आपदाओं के दौरान भी विश्व जगत को आपदाग्रस्त देश की बिना किसी शर्त एवं भेदभाव के आधार पर भरपूर मदद करनी होगी।
(पृष्ठ संख्या - 112)
प्रश्न 11.
विश्व के विस्थापित लोगों को कहाँ शरण दी गई है ?
उत्तर:
विश्व के विस्थापित लोगों को अमेरिका (16%), एशिया और पैसिफिक (11%), अफ्रीका (30%), मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका (26%), तथा यूरोप (17%) में शरण दी गई है।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों को उनके अर्थ से मिलाएँ।
(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्लिडग मेजर्स - CBMs) |
(क) कुछ खास हधियारों के इस्तेमाल से परहेज। |
(2) अरन्र नियन्त्रण। |
(ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा मामलों पर सूचनाओं के आदान-प्रदान की नियमित प्रक्रिया। |
(3) गठबन्धन |
(ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अपरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना। |
(4) निरस्रीकरण। |
(घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकुश। |
उत्तर:
(1) विश्वास बहाली के उपाय (कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (CBMs) - (ख) राष्ट्रों के बीच सुरक्षा मामलों पर सूचनाओं के आदान - प्रदान की नियमित प्रक्रिया।
(2) अस्त्र नियन्त्रण - (घ) हथियारों के निर्माण अथवा उनको हासिल करने पर अंकश।
(3) गठबन्धन - (ग) सैन्य हमले की स्थिति से निबटने अथवा उसके अवरोध के लिए कुछ राष्ट्रों का आपस में मेल करना।
(4) निःस्त्रीकरण - (क) कुछ खास हथियारों के इस्तेमाल से परहेज।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसको आप सुरक्षा का परम्परागत सरोकार / सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार सतरे की स्थिति नहीं' का दर्जा देंगे समकालीन विश्व में सुरक्षा 175
(क) चिकनगुनिया/डेंगू बुखार का प्रसार
(ख) पड़ोसी देश से कामगारों की आमद
(ग) पड़ोसी राज्य से कामगारों की आमद
(घ) अपने इलाके को राष्ट्र बनाने की माँग करने वाले समूह का उदय।
(ङ) अपने इलाके को अधिक स्वायत्तता दिये जाने की माँग करने वाले समूह का उदय
(च) देश की सशस्त्र सेना को आलोचनात्मक नजर से देखने वाला अखबार।
उत्तर:
(क) सुरक्षा का अपारम्परिक सरोकार।
(ख) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार।
(ग) खतरे की स्थिति नहीं।
(घ) सुरक्षा का पारम्परिक सरोकार।
(ङ) खतरे की स्थिति नहीं।
(च) खतरे की स्थिति नहीं।
प्रश्न 3.
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में क्या अन्तर है? गठबन्धनों का निर्माण करना और उनको बनाये रखना इनमें से किस कोटि में आता है?
अथवा
सुरक्षा की परम्परागत तथा अपरम्परागत अवधारणाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में निम्नलिखित अन्तर हैं।
परम्परागत सुरक्षा |
अपारम्परिक सुरक्षा |
1. परम्परागत सुरक्षा की धारणा का सम्बन्ध मुख्यतं: बाहरी खतरों से होता है। |
1. अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा का सम्बन्ध न केवल बाहरी खतरों से है बल्कि अन्य खतरनाक खतरों को भी सम्मिलित किया जाता है। |
2. पंरम्परागत सुरक्षा की धारणा में सैन्य खतरों को किसी देश के लिए सबसे अधिक खतरनाक समझा जाता है। |
2. अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में सैन्य खतरों को ही नहीं बल्कि मानवीय अस्तित्व पर चोट करने वाले व्यापक खतरों व आशंकाओं को भी खतरनाक समझा जाता है। |
3. परग्परागत सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र होता है। वह देश सैन्य आक्रमण की धमकी देकर सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता और क्षेत्रीय अखण्डता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा उत्पन्न करता है। |
3. अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में खतरे का स्रोत विदेशी राष्ट्र के साथ-साथ कोई अन्य भी हो सकता है। |
4. परम्परागत सुरक्षा की धारणा में एक देश की सेना व नागरिकों को दूसरे देश की सेना से खतरा होता है। |
4. अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में देश के नागरिकों से विदेशी सेना के साथ-साथ अपने देश की सरकारों के हाथौं से भी बचाना आवश्यक होता है। |
5. परम्परागत सुरक्षा की धारणा में बाहरी खतरे या आक्रमण से निपटने के लिए सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं-(i) आत्मसमर्पण करना, (ii) आक्रमणकारी राष्ट्र की बात मानना, (iii) आक्रमणकारी राष्ट्र को युद्ध में हराना। |
5. अपारम्परिक सुरक्षा की धारणा में एक राष्ट्र प्राकृतिक आपदाओं, आतंकवाद एवं महामारियों को समाप्त करके अपनी जनता को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। |
गठबन्धनों का निर्माण एवं उनको बनाये रखना-सैनिक गठबन्धनों का निर्माण करना तथा उन्हें बनाये रखना परम्परागत सुरक्षा की धारणा के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है। यह सैन्य सुरक्षा का एक साधन है।
प्रश्न 4.
तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
तीसरी दुनिया के देशों एवं विकसित देशों में सुरक्षा के पारम्परिक व अपारम्परिक खतरों में अन्तर है। तीसरी दुनिया के देश वे देश हैं, जो दक्षिणी गोलार्द्ध के एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका महाद्वीपों में स्थित हैं। ये देश विकासशील अथवा अल्पविकसित हैं तथा पूर्व में उपनिवेशवाद के शिकार रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद स्वतन्त्र हुए ये देश अधिकांशतः गरीब तथा आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं।
इसके विपरीत विकसित देश उत्तरी गोलार्द्ध में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में स्थित हैं तथा वे उपनिवेशवादी शोषण का शिकार नहीं रहे। साथ ही ये देश आर्थिक रूप से सम्पन्न देश हैं। उक्त स्थिति के कारण इन विकसित व तीसरी दुनिया के देशों में सुरक्षा सम्बन्धी खतरों में अन्तर है। जहाँ विकसित देशों की जनता को केवल बाहरी खतरों की आशंका रहती है वहीं तीसरी दुनिया के देशों को आन्तरिक व बाहरी दोनों प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त तीसरी दुनिया की जनता को पर्यावरण असन्तुलन के कारण विकसित देशों की जनता की अपेक्षा अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न 5.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए परम्परागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरम्परागत?
उत्तर:
आतंकवाद 21वीं शताब्दी में विश्व स्तर पर सुरक्षा की नई चुनौती है। यह अपरम्परागत सुरक्षा के खतरों की श्रेणी में आता है। वैसे तो आतंकवाद का अस्तित्व काफी पुराना है, लेकिन विश्व के राष्ट्रों व जनता की सुरक्षा की चुनौती के रूप में इसने सबका ध्यान तब आकर्षित किया जब 11 सितम्बर, 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर आतंकवादियों ने हमला किया। आतंकवादी घटनाएँ तब से विभिन्न देशों में घटित होती रही हैं, आतंकवाद का उद्देश्य जनमानस को आतंकित करना अथवा उसमें भय व्याप्त करना है। जब कोई राजनीतिक सन्दर्भ या स्थिति किसी समूह को नापसन्द होती है तो आतंकवादी समूह बल-प्रयोग के द्वारा उसे बदलने का प्रयास करता है।
पिछले वर्षों में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्यपूर्व, यूरोप, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में घटित हुईं। आतंकवादी घटनाओं से निपटने के लिए विश्व के राष्ट्र क्षेत्रीय अथवा वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग का प्रयास कर रहे हैं। चूँकि यह एक नई छिपी हुई चुनौती है, अतः इसका सामना परम्परागत सैन्य तरीकों से नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
सुरक्षा के परम्परागत दृष्टिकोण के हिसाब से बताएं कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मंडरा रहा हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं ?
उत्तर:
सुरक्षा की पाम्परिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे खतरनाक माना जाता है। परम्परागत धारणा के अन्तर्गत मुख्य रूप से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बल के प्रयोग की आशंका पर अधिक बल दिया जाता है। इस धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुँचता है और सैन्य बल से ही सुरक्षा को कायम रखा जा सकता है। इसीलिए परम्परागत सुरक्षा के अन्तर्गत शक्ति सन्तुलन, सैनिक गठबन्धन तथा अन्य किसी तरीके से सैन्य शक्ति के विकास आदि पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
मूल रूप से किसी राष्ट्र के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं: आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किये मान लेना अथवा युद्ध से होने वाले विनाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित करना। इन विकल्पों के आलोक में सुरक्षा नीति का सम्बन्ध युद्ध की आशंका को रोकने से होता है जिसे अपरोध कहते हैं और युद्ध को सीमित रखने तथा उसे समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है। संक्षेप में, परम्परागत सुरक्षा रणनीति में मुख्य तत्व विरोधी के सैन्य आक्रमण के खतरे को समाप्त करने अथवा सीमित करने से होता है।
प्रश्न 7.
'शक्ति सन्तुलन' क्या है ? कोई देश इसे कैसे कायम करता है ?
अथवा
शक्ति सन्तुलन बनाए रखने के दो उपाय बतलाइए।
उत्तर:
शक्ति सन्तुलन से आशय: आपात स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए युद्ध की परिस्थिति उत्पन्न होने पर अपने सम्भावित शत्रु से टक्कर लेने के लिए पहले ही अन्य देशों का सहयोग प्राप्त करके उसे अपने पक्ष में बनाये रखना शक्ति सन्तुलन कहलाता है। शक्ति सन्तुलन की स्थिति में शत्रु को करारा जवाब दिया जा सकता है।
शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के उपाय: एक देश अग्रलिखित उपायों द्वारा शक्ति सन्तुलन को कायम रख सकता है।
(i) गठबन्धन बनाना-शक्ति सन्तुलन बनाये रखने का प्रमुख तरीका गठबन्धन बनाना है। कोई देश अन्य देश या देशों से गठबन्धन करके अपनी शक्ति को बढ़ा लेता है। फलस्वरूप क्षेत्र विशेष में शक्ति सन्तुलन बना रहता है।
(ii) शस्त्रीकरण व निःशस्त्रीकरण: शक्ति सन्तुलन शस्त्रीकरण द्वारा भी बनाये रखा जा सकता है। एक राष्ट्र शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए दूसरे राष्ट्रों से सैनिक शस्त्र प्राप्त कर सकता है।
इसका प्रयोग किसी सम्भावित आक्रमण अथवा शत्रु को दूर करने के लिए किया जा सकता है। वर्तमान समय में शस्त्रीकरण की दौड़ ने भयंकर रूप धारण कर लिया है। सम्पूर्ण विश्व पर महाविनाश का खतरा मँडरा रहा है। फलस्वरूप आज शस्त्रीकरण को छोड़कर निःशस्त्रीकरण पर बल दिया जाने लगा है, ताकि सम्पूर्ण विश्व में शान्ति स्थापित हो सके। अतः शक्ति सन्तुलन बनाये रखने के लिए विभिन्न राष्ट्रों ने समय-समय पर शस्त्रीकरण व निशस्त्रीकरण पर जोर दिया है।
प्रश्न 8.
सैन्य गठबन्धन के क्या उद्देश्य होते हैं ? किसी ऐसे सैन्य गठबन्धन का नाम बताएँ जो अभी मौजूद है। इस गठबन्धन के उद्देश्य भी बताएँ।
उत्तर:
सैन्य संगठन का उद्देश्य पारम्परिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है-सैन्य गठबन्धन बनाना। सैन्य गठबन्धन में कई देश शामिल होते हैं। सैन्य गठबन्धन का मुख्य उद्देश्य विपक्षी शत्रु के आक्रमण को रोकना अथवा उससे रक्षा के लिए सामूहिक सैन्य कार्यवाही करना होता है। आमतौर पर सैन्य गठबन्धन, सन्धि पर आधारित होते हैं, जिसमें इस बात का लिखित रूप में उल्लेख होता है कि एक राष्ट्र पर आक्रमण अन्य सदस्य राष्ट्रों पर भी आक्रमण समझा जाएगा।
विद्यमान सैन्य गठबन्धन: संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व वाले पूँजीवादी गुट का प्रमुख सैन्य संगठन NATO (North Atlantic Treaty Organisation) अथवा उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल, 1949 में हुई थी। साम्यवादी गुट का रूस के नेतृत्व में 'वारसा सन्धि' (WARSAW Pact) प्रमुख गठबन्धन था जो 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद समाप्त कर दिया गया परन्तु 'नाटो' (NATO) अभी अस्तित्व में है। वर्तमान में नाटो' संगठन में संयुक्त राज्य अमेरिका सहित यूरोप के 30 देश शामिल हैं। नाटो के चार्टर में 14 धाराएँ हैं।
इस संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं।
प्रश्न 9.
पर्यावरण के तेजी से हो रहे नुकसान से देशों की सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो गया है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? उदाहरण देते हुए अपने तर्कों की पुष्टि करें।
उत्तर:
सुरक्षा के अपारम्परिक खतरों में एक प्रमुख पर्यावरण का लगातार बढ़ रहा प्रदूषण है। पर्यावरण प्रदूषण की प्रकृति वैश्विक है। इसके दुष्परिणामों की सीमा राष्ट्रीय नहीं है। वैश्विक पर्यावरण की समस्याओं से मानव जाति को सुरक्षा का खतरा उत्पन्न हो गया है। वैश्विक पर्यावरण की चुनौती निम्न कारणों से है।
(1) कृषि योग्य भूमि, जलस्रोत तथा वायुमण्डल के प्रदूषण से खाद्य उत्पादन में कमी आई है तथा यह मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। वर्तमान में विकासशील देशों की एक अरब बीस करोड़ जनता को स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है।
(2) धरती के ऊपर वायुमण्डल में ओजोन गैस की कमी के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए गम्भीर खतरा मँडरा रहा है।
(3) परन्तु सबसे अधिक खतरे का कारण ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक ताप वृद्धि) की समस्या है। जिसका कारण प्रदूषण है तथा प्रदूषण के कारण विश्व के तापमान में लगातार वृद्धि होना है। उदाहरण के लिए; वैश्विक ताप वृद्धि से ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल जायेगी। अगर समुद्रतल दो मीटर ऊपर उठता है तो बांग्लादेश का 20 प्रतिशत हिस्सा डूब जायेगा, कमोवेश पूरा मालदीव समुद्र में डूब जायेग्म तथा थाईलैण्ड की 50% आबादी जलमग्न हो जायेगी। उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि पर्यावरण के नुकसान से देशों की सुरक्षा को गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है। इन खतरों का सामना सैन्य तैयारी से नहीं किया जा सकता। इसके लिए विश्व स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
प्रश्न 10.
देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार की सुरक्षा अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार करें।
उत्तर:
वर्तमान में सुरक्षा की पारम्परिक धारणा सार्थक नहीं रह गयी है, क्योंकि सैन्य खतरों के अतिरिक्त सुरक्षा के लिए खतरे; जैसे-आतंकवाद, पर्यावरण क्षरण (ग्लोबल वार्मिंग), जातीय संघर्ष, महामारी, निर्धनता व गरीबी तथा जनता के मूल मानवाधि कारों का हनन आदि उत्पन्न हो गये। इस नये खतरों का सामना आण्विक हथियारों से नहीं किया जा सकता। आण्विक हथियारों की उपयोगिता पाम्परिक सैन्य आक्रमण की आशंका को रोकने में हो सकती है, परन्तु आज के समय में सुरक्षा के जो नवीन खतरे हैं उन्हें परमाणु शक्ति द्वारा नहीं रोका जा सकता।
उदाहरण के लिए; आतंकवाद एक गुप्त युद्ध है। आतंकवाद की स्थिति में किसके विरुद्ध परमाणु हथियारों का प्रयोग किया जायेगा अथवा पर्यावरण के क्षेत्र में वैश्विक तापवृद्धि को रोकने अथवा विश्व निर्धनता या एड्स जैसे महामारियों की रोकथाम में परमाणु शक्ति कैसे कारगर होगी। वैसे भी शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद परमाणु हथियारों की दौड़ धीमी पड़ गई है। अतः यह कथन उपयुक्त है कि सुरक्षा के वर्तमान खतरों का सामना करने में परमाणु हथियारों की उपयोगिता सीमित रह गयी है।
प्रश्न 11.
भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी जानी चाहिए-पारम्परिक या अपारम्परिक ? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे ?
उत्तर:
यदि भारतीय परिदृश्य पर गौर किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय सुरक्षा को पारम्परिक व अपारम्परिक दोनों ही प्रकार के खतरे हैं। अतः पाम्परिक व अपारम्परिक दोनों ही प्रकार की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। उदाहरण के लिए; भारत के लिए पड़ोसी देशों विशेषकर पाकिस्तान व चीन से पारम्परिक सैन्य खतरा बना हुआ है। पाकिस्तान ने 1947-48, 1965, 1971 तथा सन् 1999 में तथा चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला किया था। पाकिस्तान अपनी सैन्य क्षमता का विस्तार कर रहा है तथा चीन की सैन्य क्षमता भारत से अधिक है। दूसरी तरफ भारत के कई क्षेत्रों, यथा-कश्मीर, नागालैण्ड, असम आदि में अलगाववादी हिंसक गुट तथा कुछ क्षेत्रों में नक्सलवादी समूह सक्रिय हैं। अतः भारत की आन्तरिक सुरक्षा को भी खतरा है। ये खतरे पारम्परिक खतरों की श्रेणी में शामिल हैं।
जहाँ तक अपारम्परिक सुरक्षा का सम्बन्ध है, भारत में प्रमुख चुनौती पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी गतिविधियों से है। आतंकवाद का निरन्तर भारत में विस्तार हो रहा है। अयोध्या व काशी में विस्फोट, मुम्बई में विस्फोट या संसद पर तथा पुलवामा में आतंकवादी हमला इसके उदाहरण हैं। अतः भारत को आतंकवाद से निबटने के लिए अपारम्परिक सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। अपारम्परिक सुरक्षा की दृष्टि से एड्स कोरोना जैसी महामारियों की रोकथाम, मानवाधिकारों की रक्षा, जातीय व धार्मिक संघर्ष, निर्धनता व स्वास्थ्य की समस्या का समाधान भी आवश्यक है। निष्कर्षतः भारत में पारम्परिक व अपारम्परिक दोनों ही सुरक्षा तत्वों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
प्रश्न 12.
नीचे दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो सम्बन्ध दिखाया गया है, उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
दिये गये चित्र में युद्धरूपी सूअर द्वारा आतंकवादी बच्चों को दूध पिलाते दिखाया गया है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि युद्ध द्वारा ही आतंकवाद को जन्म मिलता है तथा युद्ध अथवा संघर्ष की स्थिति में आतंकवाद पोषित होता है तथा फलता-फूलता है। अतः चित्र में आतंकवाद व युद्ध के मध्य दर्शाया गया सम्बन्ध उचित है। इस सम्बन्ध के पक्ष में कई तर्क दिये जा सकते हैं। प्रथम, युद्ध दो पक्षों के बीच वैचारिक अथवा हितों की असहमति से उपजा संघर्ष है। इसमें जो पक्ष कमजोर होता है वह अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए आतंकवाद का सहारा लेता है।
दूसरा यदि हम वर्तमान में विश्व स्तर पर आतंकवाद को देखें तो स्पष्ट है कि उसके पीछे किसी विचारधारा व हितों का संघर्ष निहित है। उदाहरण के लिए; मध्यपूर्व में अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप के कारण इराक, ईरान, फिलिस्तीन व लेबनान में आतंकवादी गतिविधियों को बल मिला। इसी प्रकार जब सोवियत संघ की सेनाओं ने अफगानिस्तान में घुसपैठ की तो निर्वासित कट्टरपंथियों को संयुक्त राज्य अमेरिका व पाकिस्तान ने सहायता पहुँचाई। यही कट्टरपंथी तालिबान के नाम से सम्पूर्ण विश्व में आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न है। भारत-पाकिस्तान के मध्य सैन्य संघर्ष की स्थिति के कारण कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा मिला है।