RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

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RBSE Class 12 Political Science Chapter 4 Notes भारत के विदेश संबंध

→ भारत की अन्तर्राष्ट्रीय संदर्भ में स्थिति

  • भारत को स्वतंत्रता कठोर एवं चुनौतीपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में प्राप्त हुई थी।
  • उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद विश्व के मानचित्र पटल पर कुछ नए देशों का उदय हुआ था। नए देशों के सामने लोकतंत्र बनाये रखने की तथा अपनी जनता की भलाई करने की दोहरी चुनौती थी। 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरन्त पश्चात भारत ने जो विदेश नीति अपनाई उनमें इन दोनों बातों की झलक पाते हैं। अंग्रेजी सरकार अपने पीछे अन्तर्राष्ट्रीय विवादों की एक पूरी विरासत छोड़ गई थी। बँटवारे के कारण अलग से दबाव पैदा हुए थे तथा गरीबी समाप्त करने का कार्य भी किया जाना शेष था। 
  • एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ था। ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करने व शांति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा।
  • एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का प्रभाव पड़ता है। विकासशील देशों के पास अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक संसाधनों का अभाव होता है। 
  • द्वितीय विश्व युद्ध के तुरन्त बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की इच्छानुसार अपनी विदेशी नीति बनायी क्योंकि उन्हें इन देशों से अनुदान या कर्ज मिल रहा था। इस कारण से दुनिया के विभिन्न देश दो गुटों में बँट गए। एक गुट संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके समर्थक देशों के प्रभाव में रहा तो दूसरा गुट सोवियत संघ के प्रभाव में। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

→ गुटनिरपेक्षता की नीति

  • सम्पूर्ण विश्व में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष चल रहे थे और भारत के राष्ट्रवादी नेता दुनिया के अन्य उपनिवेशों में मुक्ति संग्राम चला रहे नेताओं के संपर्क में थे। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंडियन नेशनल आर्मी (आई. एन. ए.) का गठन किया था। 
  • भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेण्डा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में सन् 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और उसके क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। 
  • नेहरूजी की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना तथा तीव्र गति से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुट निरपेक्षता की नीति अपनाकर प्राप्त करना चाहते थे। 
  • भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों से अपने को दूर रखना चाहता था। सन् 1956 में जब ग्रेट ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया तो भारत ने इस नव-औपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध का नेतृत्व किया था। नेहरू के दौर में भारत ने एशिया और अफ्रीका के नव-स्वतन्त्र देशों के साथ संपर्क बनाए। सन् 1940 और 1950 के दशकों में नेहरूजी बड़े मुखर स्वर में एशियाई एकता का समर्थन करते रहे तथा भारत ने नेहरू के नेतृत्व में मार्च 1947 में एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन (एशियन रिलेशंस कांफ्रेंस) का आयोजन किया। 
  • • भारत चाहता था कि इंडोनेशिया, डच औपनिवेशिक शासन से शीघ्र मुक्त हो जाए। इसके लिए भारत ने सन् 1949 में
  • इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन किया।
  • इंडोनेशिया के शहर बांडुग में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन सन् 1955 में हुआ। आमतौर पर इसे 'बांडुंग सम्मेलन' के नाम से जाना जाता है। अफ्रीका और एशिया के नव स्वतंत्र देशों के साथ भारत के बढ़ते संपर्क का यह चरम बिन्दु था।
  • बांडुंग सम्मेलन में ही गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की नींव पड़ी।
  • गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम सम्मेलन सितम्बर 1961 में बेलग्रेड में सम्पन्न हुआ। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में नेहरूजी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी। 

→ चीन के साथ सम्बन्ध

  • पाकिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों के विपरीत स्वतंत्र भारत ने चीन के साथ अपने रिश्तों की शुरुआत बड़े मित्रतापूर्ण ढंग से की।
  • सन् 1949 की चीनी क्रान्ति के पश्चात् भारत, चीन की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता देने वाला प्रथम देश था। 
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों (जिन्हें पंचशील के नाम से जाना जाता है) की घोषणा भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू व चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने संयुक्त रूप से 29 अप्रैल, 1954 में की। दोनों देशों के बीच मजबूत सम्बन्धों की दिशा में यह एक अच्छा कदम था। 
  • चीन ने सन् 1950 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इससे भारत और चीन के बीच ऐतिहासिक रूप से जो एक मध्यवर्ती राज्य बना चला आ रहा था, वह समाप्त हो गया। 
  • तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा ने भारत से सन् 1959 में राजनीतिक शरण माँगी और भारत ने उन्हें शरण दे दी। तिब्बत मध्य एशिया का प्रसिद्ध पठार है। ऐतिहासिक रूप से तिब्बत, भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मुद्दा रहा है। चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। सन् 1954 में जब भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर हुए तो इसके प्रावधानों में एक बात यह भी शामिल थी कि दोनों देश एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करेंगे। 
  • चीन ने 'स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र' बनाया है और इस क्षेत्र को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत, चीन का अभिन्न अंग है। वे मानते हैं कि तिब्बत की पारंपरिक संस्कृति और धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ साम्यवाद का विस्तार करना चाहता है। 
  • भारत और चीन के बीच एक सीमा विवाद भी उठ खड़ा हुआ था। भारत का दावा था कि चीन के साथ सीमा-रेखा का मामला अंग्रेजी-शासन के समय ही सुलझाया जा चुका है। चीन ने भारतीय भू-क्षेत्र में पड़ने वाले दो क्षेत्रों जम्मू-कश्मीर के लद्दाख वाले हिस्से के अक्साई-चीन और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश हिस्सों पर अपना अधिकार जताया।
  • अरुणाचल प्रदेश को उस समय नेफा या उत्तर-पूर्वी सीमांत कहा जाता था। सन् 1957 से 1959 के बीच चीन ने अक्साई-चीन क्षेत्र पर कब्जा कर लिया तथा इस इलाके में उसने रणनीतिक बढ़त हासिल करने के लिए एक सड़क का निर्माण किया। 
  • सन् 1962 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर भारत पर अचानक हमला कर दिया और नेफा व लद्दाख में एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। 
  • भारत-चीन युद्ध से भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को चोट पहुँची लेकिन इसके साथ-साथ राष्ट्रीय भावना भी बलवती हुई। कुछ प्रमुख सैन्य कमांडरों ने या तो इस्तीफा दे दिया या अवकाश ग्रहण कर लिया। नेहरूजी के करीबी सहयोगी तथा तत्कालीन रक्षामंत्री वी. के. कृष्णमेनन को भी मंत्रिमंडल छोड़ना पड़ा। भारत-चीन संघर्ष का प्रभाव विपक्षी दलों पर भी हुआ। इस युद्ध और चीन-सोवियत संघ के बीच बढ़ते मतभेद से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के अंदर बड़ी उठा-पटक मची। सोवियत संघ का पक्षधर गुट भाकपा में ही रहा और उसने कांग्रेस के साथ नजदीकियाँ बढ़ाईं।
  • दूसरा गुट कुछ समय के लिए चीन का पक्षधर रहा तथा यह गुट कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार की नजदीकी के विरुद्ध था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सन् 1964 में टूट गई। इस पार्टी के भीतर जो गुट चीन का पक्षधर था उसने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) बनाई।
  • भारत-चीन युद्ध के बाद नागालैण्ड को राज्य का दर्जा दिया गया। मणिपुर और त्रिपुरा यद्यपि केन्द्र शासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार प्राप्त हुआ।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

→ पाकिस्तान के साथ सम्बन्ध

  • कश्मीर मामले को लेकर पाकिस्तान के साथ बँटवारे के तुरंत बाद ही संघर्ष छिड़ गया था। सन् 1947 में ही कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच एक छाया-युद्ध छिड़ गया था। यह संघर्ष पूर्ण रूप से व्यापक युद्ध का रूप न ले सका।
  • विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के मध्य नदी जल में हिस्सेदारी को लेकर चला आ रहा एक लंबा विवाद सुलझा लिया गया। नेहरू और जनरल अयूब खान ने सिंधु नदी जल संधि पर सन् 1960 में हस्ताक्षर किए।
  • दोनों देशों के बीच सन् 1965 में कहीं ज्यादा गंभीर किस्म के सैन्य-संघर्ष की शुरुआत हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से इस युद्ध का अंत हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री तथा पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 ई. में ताशकंद समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई। 

→ बांग्लादेश युद्ध

  • सन् 1971 ई. में पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने वर्तमान बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया। भारत ने बांग्लादेश के 'मुक्ति संग्राम' को नैतिक समर्थन व भौतिक सहायता प्रदान की। 
  • दिसम्बर 1971 में भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में 90,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तान सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
  • बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय के साथ भारतीय सेना ने अपनी ओर से एक तरफा युद्ध विराम घोषित कर दिया। 
  • 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय के उपरांत इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता बढ़ गयी और अधिकांश राज्यों के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी कांग्रेस को बड़े बहुमत से विजय प्राप्त हुई। 
  • 2 जुलाई 1972 को भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के मध्य शिमला समझौता हुआ। 

→ भारत की परमाणु नीति

  • भारत ने मई 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया। भारत का मत था कि वह अणु शक्ति का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए करेगा। 
  • सन् 1999 के शुरुआती महीनों में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों पर मुजाहिदीनों ने कब्जा कर लिया था। इससे भारत-पाकिस्तान के मध्य संघर्ष छिड़ गया। इसे 'करगिल संघर्ष' के नाम से जाना जाता है। 
  • भारत ने मई 1998 में द्वितीय परमाणु परीक्षण किया तथा दुनिया को यह जताया कि उसके पास भी सैन्य उद्देश्यों के लिए अणु शक्ति के इस्तेमाल की क्षमता है। 
  • भारत की परमाणु नीति में सैद्धान्तिक तौर पर यह बात स्वीकार की गयी है कि भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु हथियार रखेगा लेकिन वह हथियारों का पहले प्रयोग नहीं करेगा। भारत की परमाणु नीति में यह बात दुहराई गई है भारत वैश्विक स्तर पर लागू एवं भेद-भावविहीन परमाणु निःशस्त्रीकरण के प्रति वचनबद्ध है ताकि परमाणु हथियारों से विहीन विश्व की रचना हो। 
  • विदेश नीति के सन्दर्भ में भारतीय राजनीति में विभिन्न दलों के मध्य राष्ट्रीय अखण्डता, अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा की सुरक्षा एवं राष्ट्रीय हित के मामलों पर व्यापक सहमति है।

→ उपनिवेशवाद:
उपनिवेशवाद का अर्थ है-किसी समृद्ध एवं शक्तिशाली राष्ट्र द्वारा अपने विभिन्न हितों को साधने के लिए किसी निर्बल किन्तु प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण राष्ट्र के विभिन्न संसाधनों का शक्ति के बल पर उपभोग करना। उपनिवेशवाद में उपनिवेश की जनता एक विदेशी राष्ट्र द्वारा शासित होती है, उसे शासन में कोई राजनीतिक अधिकार नहीं होता।

→ संप्रभुता:
संप्रभुता से तात्पर्य राज्य की उस शक्ति से है, जिसके कारण राज्य अपनी सीमाओं के अन्तर्गत कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है। राज्य के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति अथवा समुदाय राज्य के ऊपर नहीं है। बाहरी दृष्टि से संप्रभुता का अर्थ है राज्य किसी बाहरी सत्ता के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण से स्वतंत्र होता है। 

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

→ गुटनिरपेक्षता की नीति:
गुटनिरपेक्षता का तात्पर्य है किसी भी गुट में शामिल न होना तथा किसी भी गुट या राष्ट्र के कार्य की सराहना या आलोचना, बिना सोचे-समझे न करना। वास्तव में गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने वाला राष्ट्र अपने लिए एक स्वतंत्र विदेश नीति का निर्धारण करता है। 

→ विकासशील देश:
विकासशील देश उन देशों को कहा जाता है जहाँ पर विकास की शुरुआत हुई होती है, अर्थात जहाँ विकास हो रहा होता है। विकासशील देशों में भारत, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश आते हैं।

→ इण्डियन नेशनल आर्मी:
उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद के विरुद्ध कुछ शक्तियों के साथ मिलकर साझी लड़ाई लड़ने के लिए नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जो आजाद हिन्द फौज का गठन किया था, उसे इण्डियन नेशनल आर्मी (आई. एन. ए.) कहा जाता है।

→ नाटो:
नाटो (NATO-North Atlantic Treaty Organization)-उत्तर अटलांटिक संधि संगठन का पूर्ण नाम है। यह एक __ सैन्य गुट है। शीतयुद्ध के दौरान अप्रैल 1949 में निर्मित इस संगठन में संयुक्त राज्य अमेरिका सहित 12 देश सम्मिलित थे। 

→ वारसा पैक्ट:
सोवियत संघ ने 'वारसा पैक्ट' नामक संधि संगठन बनाया था। इसकी स्थापना सन् 1955 में हुई थी। इसका मुख्य कार्य नाटो में सम्मिलित देशों का यूरोप में मुकाबला करना था।

→ पंचशील के सिद्धान्त:
पंचशील का अर्थ है- पाँच सिद्धान्त। ये सिद्धान्त भारतीय विदेश नीति के मूलाधार हैं। इन पाँच सिद्धान्तों के लिए 'पंचशील' शब्द का प्रयोग सबसे पहले 24 अप्रैल, 1954 को किया गया था। पंचशील के ये पाँच सिद्धान्त विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। 

→ तिब्बत विवाद:
ऐतिहासिक रूप से तिब्बत, भारत और चीन के बीच विवाद का एक बड़ा मसला रहा है। सन् 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के अधिकांश लोगों ने चीनी कब्जे का विरोध किया। सन् 1950 और 1960 के दशक में भारत के अनेक राजनीतिक दल और राजनेताओं ने तिब्बत की आजादी के प्रति अपना समर्थन जताया। 

→ स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र:
चीन ने 'स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र' बनाया है और इस क्षेत्र को वह चीन का अभिन्न अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत चीन का अभिन्न अंग है। तिब्बती, चीन के इस दावे को भी अस्वीकार करते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गई है। 

→ छाया-युद्ध:
सन् 1947 में कश्मीर में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच एक अप्रत्यक्ष युद्ध छिड़ गया था। परन्तु यह संघर्ष पूर्ण व्यापक युद्ध का रूप न ले सका। यह मसला फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के हवाले कर दिया गया। इसे ही छाया युद्ध कहा गया। 

→ सिंधु नदी जल संधि:
विश्व बैंक की मध्यस्थता से नदी जल में हिस्सेदारी को लेकर चला आ रहा भारत और पाकिस्तान के मध्य का एक लंबा विवाद सुलझा लिया गया। पं. जवाहरलाल नेहरू और अयूब खान ने सिंधु नदी जल संधि पर सन् 1960 में हस्ताक्षर किए। 

→ ताशकंद-समझौता:
1965 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष का अंत संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच सन् 1966 में ताशकंद समझौता हुआ। सोवियत संघ ने इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई।

→ मुक्ति संग्राम:
पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने सन् 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से मुक्त कराने के लिए संघर्ष छेड़ दिया। भारत ने बांग्लादेश के 'मुक्ति संग्राम' को नैतिक समर्थन तथा भौतिक सहायता दी। 

→ विदेश नीति:
विदेश नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो एक देश द्वारा अन्य देशों के प्रति अपनाई जाती है। इस प्रकार दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए जिन नीतियों का प्रयोग किया जाता है, उन नीतियों को उस देश की विदेश नीति कहते हैं। 

→ सैनिक गुट:
विश्व में अनेक सैनिक गुट बने जैसे नाटो, सेन्टो आदि। भारत का यह विचार रहा है कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है तथा ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधक हैं। 

→ करगिल संघर्ष:
सन् 1999 के प्रारंभिक महीनों में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों पर अपने को मुजाहिदीन बताने वाले पाकिस्तानियों ने कब्जा कर लिया था। इससे भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे “करगिल संघर्ष" कहा जाता है।

RBSE Class 12 Political Science Notes Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

→ शांतिपूर्ण सहअस्तित्व:
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है : बिना किसी मनमुटाव के मैत्रीपूर्ण ढंग से एक देश का दूसरे देश के साथ रहना। यदि भिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के साथ पड़ौसियों के समान नहीं रहेंगे तो विश्व में शांति की स्थापना नहीं हो सकती। 

→ निःशस्त्रीकरण:
नि:शस्त्रीकरण का अर्थ है- विनाशकारी हथियारों/अस्त्र-शस्त्रों के उत्पादन पर रोक लगाना तथा उपलब्ध विनाशकारी हथियारों को नष्ट करना। नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाए रखा जा सकता है तथा अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अक्टूबर 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पूर्ण परमाण्विक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी। 

→ पं. जवाहरलाल नेहरू :
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री। इन्होंने 29 अप्रैल, 1954 को चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई के साथ संयुक्त रूप से शतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धान्तों (पंचशील) पर हस्ताक्षर किये।। 

→ सी.राजगोपालाचारी :
स्वतंत्र भारत के प्रथम एवं अन्तिम भारतीय गर्वनर जनरल। इन्हें भारतरत्न से भी सम्मानित किया गया।

→ दलाई लामा : तिब्बत के धार्मिक नेता। तिब्बत पर चीनी आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में असफल सशस्त्र विद्रोह होने के पश्चात् भारत में शरण ली।

→ वी.के.कृष्ण मेनन :
पं. जवाहरलाल नेहरू सरकार में रक्षामंत्री रहे। सन् 1962 ई० में भारत-चीन युद्ध के पश्चात् अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। 

→ लाल बहादुर शास्त्री : 
पं. जवाहरलाल नेहरू के पश्चात् भारत के प्रधानमंत्री बने। इन्होंने सन् 1966 ई० में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के साथ ताशकन्द समझौता किया। 

→ इन्दिरा गाँधी : 
लाल बहादुर शास्त्री के पश्चात् भारत की प्रधानमंत्री बनीं। इन्होंने 2 जुलाई 1972 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए। 

→ अटल बिहारी वाजपेयी :
पूर्व प्रधानमंत्री। इन्होंने 1979 में विदेश मंत्री के रूप में चीन की यात्रा की थी।

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→ अध्याय में दी गईं महत्त्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ

  • 1947 ई.: भारत ने मार्च माह में एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन का आयोजन किया। 
  • 1949 ई.: भारत ने इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। चीनी क्रांति भी हुई।
  • 1950 ई.: चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • 1954 ई.: 29 अप्रैल को भारतीय प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू व चीन के प्रमुख चाऊ एन लाई ने पंचशील के सिद्धान्तों की संयुक्त घोषणा की।
  • 1955 ई.: इण्डोनेशिया के बांडुंग शहर में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन का आयोजन हुआ। 
  • 1956 ई.: ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्र पर आक्रमण किया। चीनी शासनाध्यक्ष चाऊ एन लाई भारत के आधिकारिक दौरे पर आए।
  • 1958 ई.: चीनी नियंत्रण के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। 
  • 1959 ई.: तिब्बती नेता दलाई लामा ने भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दी।
  • 1960 ई.: पं. जवाहरलाल नेहरू व पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए।
  • 1961 ई.: सितम्बर माह में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का प्रथम सम्मेलन बेलग्रेड में सम्पन्न हुआ। 
  • 1962 ई.: अक्टूबर माह में चीन ने भारत पर हमला किया। 
  • 1964 ई.: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ। चीन के समर्थकों ने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का गठन किया।
  • 1965 ई.: अप्रैल माह में पाकिस्तान ने गुजरात के कच्छ के रन में सैनिक हमला किया। 
  • 1966 ई.: भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एवं पाकिस्तान के जनरल अयूब खान के मध्य ताशकन्द समझौता हुआ। 
  • 1971 ई.: भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध हुआ। पाकिस्तान पराजित हुआ। 
  • 1972 ई.: 2 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी व पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के मध्य शिमला समझौता हुआ। 
  • 1973 ई.: अरब-इजराइल युद्ध हुआ। 
  • 1974 ई.: मई माह में भारत ने पोकरण (राजस्थान) में परमाणु परीक्षण किया।
  • 1976 ई.: भारत-चीन के मध्य पूर्ण राजनीतिक सम्बन्ध पुनः स्थापित हुए।
  • 1977 ई.: केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी। 
  • 1979 ई.: तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने चीन की यात्रा की।
  • 1998 ई.: मई माह में भारत ने परमाणु परीक्षण किए। 
  • 1999 ई.: इस वर्ष पाकिस्तानी सेना ने भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण रेखा के कई ठिकानों पर हमला किया। फलस्वरूप भारत-पाक के मध्य संघर्ष छिड़ गया जिसे 'करगिल की लड़ाई' के नाम से जाना जाता है।
Prasanna
Last Updated on Jan. 19, 2024, 9:19 a.m.
Published Jan. 18, 2024