RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

RBSE Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट InText Questions and Answers

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

(पृष्ठ संख्या 104)

प्रश्न 1. 
गरीब जनता पर सचमुच भारी मुसीबत आई होगी। आखिर गरीबी हटाओ के वादे का हुआ क्या?
उत्तर:
इंदिरा गाँधी ने सन् 1971 के आम चुनाव में 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था। लेकिन इस नारे के बावजूद भी सन् 1971 - 72 के बाद के वर्षों में भी देश की सामाजिक - आर्थिक दशा में विशेष सुधार नहीं हुआ। बांग्लादेश के संकट से भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ा था। लगभग 80 लाख लोग पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पार करके भारत आ गए थे। इसके बाद पाकिस्तान से युद्ध भी करना पड़ा। 'गरीबी हटाओ' का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गाँधी की राजनीतिक रणनीति थी। इसके सहारे वे अपने लिए देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की नींव तैयार करना चाहती थी। इसी कारण 'गरीबी हटाओ' का वादा असफल सिद्ध हुआ। 

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(पृष्ठ संख्या 107)

प्रश्न 2. 
क्या प्रतिबद्ध न्यायपालिका और प्रतिबद्ध नौकरशाही का मतलब यह है कि न्यायाधीश व सरकारी अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हों।
उत्तर:
प्रतिबद्ध न्यायपालिका व प्रतिबद्ध नौकरशाही का यही अर्थ है कि न्यायाधीश व अधिकारी शासक दल के प्रति निष्ठावान हो, इन्हें शासक दल के अनुसार कार्य करना पड़ता है। शासक दल के निर्देशों के अनुसार यह कार्य करते हैं, चाहे कार्य संवैध गानिक रूप से अनुकूल नहीं हो। 

(पृष्ठ संख्या 108)

प्रश्न 3. 
यह तो सेना से सरकार के खिलाफ बगावत करने को कहने जैसा जान पड़ता है? क्या यह बात लोकतांत्रिक है?
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण (जेपी) की अगुवाई में विपक्षी दलों ने इंदिरा गाँधी के इस्तीफे के लिए दबाव डाला। इन दलों ने 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल प्रदर्शन किया। जेपी ने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों का आह्वान किया कि वे सरकार के अनैतिक और अवैधानिक आदेशों का पालन न करें। इससे भी सरकारी कामकाज के ठप्प हो जाने का अंदेशा पैदा हुआ। देश का राजनीतिक मिजाज अब पहले से कहीं ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ हो गया। सरकार ने इन घटनाओं के मद्देनजर जवाब में 'आपातकाल' की घोषणा कर दी। यद्यपि .यह बात अलोकतांत्रिक है परन्तु तकनीकी रूप से देखें तो ऐसा करना सरकार की शक्तियों के दायरे में था क्योंकि हमारे संविधान में सरकार को आपातकाल की स्थिति में विशेष शक्तियाँ प्रदान की गयी हैं। अतः गम्भीर संकट की स्थिति में आपातकाल की घोषणा जरूरी हो गयी थी। 

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(पृष्ठ संख्या 109)

प्रश्न 4. 
क्या राष्ट्रपति को मंत्रिमण्डल की सिफारिश के बगैर आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए थी? कितनी अजीब बात है।
उत्तर:
25 जून, 1975 की रात में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल लागू करने की सिफारिश की। राष्ट्रपति ने तुरन्त यह उद्घोषणा कर दी। सुबह बड़े पैमाने पर विपक्षी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई। 26 जून की सुबह 6 बजे एक विशेष बैठक में मंत्रिमण्डल को इन बातों की सूचना दी गयी, लेकिन तब तक बहुत कुछ हो चुका था। आपातकाल से संविधान में वर्णित आपातकाल के प्रावधानों के कुछ अर्थगत उलझाव भी प्रकट हुए, जिन्हें बाद में सुधार लिया गया। अब 'अंदरूनी' आपातकाल सिर्फ 'सशस्त्र विद्रोह' की स्थिति में लगाया जा सकता है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपातकाल की घोषणा की सलाह मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को लिखित में दे। 

(पृष्ठ संख्या 112)

प्रश्न 5. 
अरे! सर्वोच्च न्यायालय ने भी साथ छोड़ दिया। उन दिनों सबको क्या हो गया था?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान लोग बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती नहीं दे सकते थे। गिरफ्तार लोगों या उनके पक्ष से किन्हीं और ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, लेकिन सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों को गिरफ्तारी का कारण बताना बिल्कुल जरूरी नहीं है। अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गयी ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

अप्रैल 1976 में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया तथा सरकार की दलील मान ली। इसका तात्पर्य यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिकों से जीवन और आजादी का अधिकार वापिस ले सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बंद हो गये। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में से एक माना गया। इस प्रकार यह देखकर लगता है कि आपातकाल में तानाशाहीपूर्ण रवैया हो गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने भी नागरिक अधिकारों के विरुद्ध फैसला दिया था। 

(पृष्ठ संख्या 113)

प्रश्न 6. 
जिन चंद लोगों ने प्रतिरोध किया, उनकी बात छोड़ दें - बाकियों के बारे में सोचें कि उन्होंने क्या किया! क्या कर रहे थे बड़े-बड़े अधिकारी, बुद्धिजीवी, सामाजिक-धार्मिक नेता और नागरिक?
उत्तर:
आपातकाल के दौरान प्रतिरोधस्वरूप कई घटनाएँ घटी। पहली लहर में जो राजनीतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गये थे वे 'भूमिगत' हो गये और उन्होंने सरकार के विरुद्ध मुहिम चलाई। सेंसरशिप को धता बताते हुए गुपचुप तरीके से अनेक न्यूज लेटर और लीफलेट्स निकले। पद्मभूषण से सम्मानित कन्नड़ लेखक शिवराम कारंत और पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी लेखक फणीश्वर नाथ 'रेणु' ने लोकतंत्र के दमन के विरोध में अपनी पदवी लौटा दीं। परन्तु मुखालफत और प्रतिरोध के इतने प्रभावी कदम कुछ ही लोगों ने उठाए। उस समय के बड़े-बड़े अधिकारियों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक - धार्मिक नेताओं और नागरिकों को भी आपातकाल के दौरान प्रतिरोध करना चाहिए था परन्तु उन दिनों वे सब क्यों चुप्पी साधे हुए थे। यदि वे सब लोग भी प्रतिरोध करते तो शायद आपातकाल के दौरान नागरिकों से जीवन और आजादी का अधिकार छीना नहीं जाता। 

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(पृष्ठ संख्या 115)

प्रश्न 7. 
अपने माता - पिता और परिवार के आस-पड़ोस के अन्य बड़े-बुजुर्गों से पूछिए कि 1975 - 77 के आपातकाल के दौरान उन पर क्या गुजरी थी। निम्नलिखित बिन्दुओं पर नोट्स तैयार कीजिए: 
1. ऐसे लोगों के निजी अनुभव जिनका संबंध आपातकाल से हो।
2. आपके इलाके में आपातकाल के समर्थन या विरोध में घटी कोई घटना। 
3. 1977 के चुनाव में ऐसे लोगों की भागीदारी। इन लोगों ने किसे वोट दिया और क्यों?
4. अपने नोट्स को एक साथ मिलाकर लिखिए और 'आपातकाल के दौरान मेरा गाँव/शहर' शीर्षक से एक सामूहिक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
(1) शीला के दादाजी ने आपातकाल के दौरान हुए अपने अनुभव बताते हुए कहा कि ऐसा लगता था कि देश पर कोई बहुत बड़ा संकट आ पड़ा है। एक दहशत भरा माहौल था। हर किसी के मन में यही आशंका थी कि पता नहीं क्या होगा? शाम के समय शहर की बिजली व्यवस्था ठप्प कर दी जाती थी। सब जगह 'ब्लैक आउट' का नजारा रहता था। गाड़ियों में तरह-तरह की घोषणाएँ करने वाले लोग घूमते रहते थे। लोगों ने अपने घरों के शीशे काले पुतवा लिए थे। हैलीकॉप्टर आदि शहर के ऊपर से निकलते तो ऐसा लगता था कि कहीं कोई आक्रमण तो नहीं हो रहा।

(2) विद्यार्थी अपने इलाके में आपातकाल के समर्थन या विरोध में घटी घटना का स्वयं पता लगाएँ तथा उसका वर्णन करें।

(3) सन् 1977 के चुनाव सिर्फ आपातकाल की कथा नहीं कहते हैं, बल्कि इसके आगे की भी कुछ बातों का संकेत करते हैं। रमन के दादाजी ने जनता पार्टी को वोट दिया था, क्योंकि 12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गाँधी से इस्तीफे की माँग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की। देश की राजनीतिक स्थिति अब पहले से कहीं ज्यादा कांग्रेस के खिलाफ हो गई थी। अतः उन्होंने जनता पार्टी को वोट दिया था।

(4) विद्यार्थी अपने - अपने नोट्स को मिलाकर लिखें तथा 'आपातकाल के दौरान मेरा गाँव/शहर' शीर्षक से एक सामूहिक रिपोर्ट तैयार करें। 

(पृष्ठ संख्या 121)

प्रश्न 8. 
अगर उत्तर और दक्षिण के राज्यों में मतदाताओं ने इतने अलग ढर्रे पर मतदान किया तो हम कैसे कहें कि 1977 के चुनावों का जनादेश क्या था?
उत्तर:
1977 के चुनावों में उत्तरी भारतीय राज्यों में कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा था जबकि दक्षिणी भारत के गिने - चुने राज्यों में कांग्रेस विजयी हुई थी। अधिकांश राज्यों की जनसंख्या जनता पार्टी के पक्ष में मतदान कर चुकी थी। इससे स्पष्ट होता है कि जनादेश कांग्रेस के खिलाफ था।

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प्रश्न 1.
बताएँ कि आपातकाल के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत
(अ) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की। 
(ब) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गए। 
(स) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनज़र आपातकाल की घोषणा की गयी थी। 
(द) आपातकाल के दौरान विपक्ष के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 
(ङ) सी.पी.आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया। 
उत्तर:
(अ) गलत, 
(ब) सही, 
(स) गलत, 
(द) सही, 
(ङ) सही। 

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन - सा आपातकाल की घोषणा के संदर्भ से मेल नहीं खाता है।
(अ) 'सम्पूर्ण क्रान्ति' का आह्वान
(ब) सन् 1974 की रेल - हड़ताल 
(स) नक्सलवादी आन्दोलन।
(द) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला 
(ङ) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष। 
उत्तर:
(स) नक्सलवादी आन्दोलन। 

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ:
(अ) सम्पूर्ण क्रान्ति (i) इंदिरा गाँधी 
(ब) गरीबी हटाओ (ii) जयप्रकाश नारायण 
(स) छात्र आन्दोलन (iii) बिहार आन्दोलन
(द) रेल हड़ताल (iv) जॉर्ज फर्नाडिस 
उत्तर:
(अ) (ii), (ब) (i), (स) (iii), (द) (iv) 

प्रश्न 4. 
किन कारणों से सन् 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
उत्तर:
सन् 1977 के चुनावों के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार में कोई विशेष तालमेल नहीं था। जनता पार्टी मूलतः इंदिरा गाँधी के मनमाने शासन के विरुद्ध विभिन्न पार्टियों का गठबंधन था। चुनाव के बाद नेताओं के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए होड़ मची। जगजीवन राम को कांग्रेसी सरकारों में मंत्री पद पर रहने का विशाल अनुभव था। बहरहाल मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने, लेकिन इससे जनता पार्टी के भीतर सत्ता की खींचतान खत्म नहीं हुई। 

आपातकाल का विरोध जनता पार्टी को कुछ दिनों के लिए एकजुट रख सका। इस पार्टी के आलोचकों ने कहा कि जनता पार्टी के पास किसी दिशा, नेतृत्व अथवा एक साझे कार्यक्रम का अभाव था। जनता पार्टी की सरकार कांग्रेस द्वारा अपनाई गई नीतियों में कोई बुनियादी बदलाव नहीं ला सकी। जनता पार्टी बिखर गयी और मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार ने 18 माह में ही अपना बहुमत खो दिया। कांग्रेस पार्टी के समर्थन पर दूसरी सरकार चरण सिंह के नेतृत्व में बनी, लेकिन बाद में कांग्रेस पार्टी ने समर्थन वापिस लेने का फैसला किया। इस वजह से चरण सिंह की सरकार मात्र चार महीने तक सत्ता में रही। सत्ता के बीच हुई इस उठा - पटक के कारण जनवरी 1980 में लोकसभा के लिए नए सिरे से मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े।

प्रश्न 5. 
जनता पार्टी ने सन् 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गयी थी और इसके क्या निष्कर्ष थे?
उत्तर:
शाह जाँच आयोग-शाह जाँच आयोग का गठन '25 जून, 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गयी कार्रवाई तथा सत्ता के दुरुपयोग, अतिचार और कदाचार के विभिन्न आरोपों के विविध पहलुओं' की जाँच के लिए किया गया था। इस आयोग का गठन मई 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री जे. सी. शाह की अध्यक्षता में किया। आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जाँच की तथा हजारों गवाहों के बयान दर्ज किए। गवाहों में इंदिरा गाँधी भी शामिल थीं। वे आयोग के सामने उपस्थित हुईं, परन्तु उन्होंने आयोग के सवालों का जवाब देने से इंकार कर दिया। भारत सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत दो अंतरिम रिपोर्टों और तीसरे एवं अन्तिम रिपोर्ट की सिफारिशों, पर्यवेक्षणों और निष्कर्षों को स्वीकार किया। यह रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों में भी विचार के लिए रखी गयी।

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प्रश्न 6. 
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
अथवा 
भारत में 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के चार कारण बताइए। (राजस्थान बोर्ड 2013)
अथवा 
देश में आपातकाल लगाने के दो प्रमुख कारण कौन-से थे? व्याख्या कीजिए। (राजस्थान बोर्ड 2015) 
उत्तर:
राष्ट्रीय आपातकाल के प्रमुख कारण:
1. 1974 के जनवरी माह में गुजरात के छात्रों ने खाद्यान्न, खाद्य तेल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमत तथा उच्च पदों पर जारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। छात्र-आंदोलन में बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ भी शरीक हो गईं। इस आंदोलन ने विकराल रूप धारण कर लिया। ऐसे में गुजरात में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस आंदोलन की बागडोर मोरारजी देसाई के हाथों में थी।

2. 1974 के मार्च माह में बढ़ती हुई कीमतों, खाद्यान्न के अभाव, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार में छात्रों ने आंदोलन छेड़ दिया। छात्रों ने अपने आंदोलन की अगुवाई के लिए जयप्रकाश नारायण को बुलावा भेजा था। जेपी ने छात्रों का निमंत्रण इस शर्त पर स्वीकार किया कि आंदोलन अहिंसक रहेगा और अपने को सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रखेगा। इस प्रकार छात्र - आंदोलन ने एक राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया और उसके भीतर राष्ट्रव्यापी अपील आई। जीवन के हर क्षेत्र के लोग अब आंदोलन से आ जुड़े। जयप्रकाश नारायण ने बिहार की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की माँग की। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दायरे में सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान किया ताकि उन्हीं के शब्दों में 'सच्चे लोकतंत्र' की स्थापना की जा सके।

3. रेलवे कर्मचारियों के संघर्ष से संबंधित राष्ट्रीय समन्वय समिति ने जॉर्ज फर्नान्डिस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया। सरकार इन माँगों के खिलाफ थी। ऐसे में भारत के इस सबसे बड़े सार्वजनिक उद्यम के कर्मचारी 1974 के मई महीने में हड़ताल पर चले गए। रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल से मजदूरों के असंतोष को बढ़ावा मिला।

4. 12 जून, 1975 के दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने एक फैसला सुनाया। इस फैसले में उन्होंने लोकसभा के लिए इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को असंवैधानिक करार दिया। उच्च न्यायालय के इस फैसले का मतलब यह था कि कानूनन अब इंदिरा गाँधी सांसद नहीं रही। 24 जून, 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस फैसले पर आंशिक स्थगनादेश सुनाते हुए कहा कि जब तक इस फैसले को लेकर अपील की सुनवाई नहीं होती तब तक इंदिरा गाँधी सांसद बनी रहेगी, लेकिन वे लोकसभा की कार्रवाई में भाग नहीं ले सकती हैं।

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प्रश्न 7. 
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केंद्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से संभव हुआ?
अथवा 
1977 में केन्द्र में विपक्षी दलों की सरकार बनने के कारणों की व्याख्या कीजिए। (राजस्थान बोर्ड 2017)
उत्तर:
सन् 1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी, ऐसा निम्नलिखित कारणों से संभव हुआ।

  1. आपातकाल लागू होने के पहले ही बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक-दूसरे के समीप आ रही थीं। चुनाव के पहले इन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक नया दल बनाया। नयी पार्टी ने जय प्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकारा। कांग्रेस के कुछ नेता भी जो आपातकाल के विरुद्ध थे, इस पार्टी में सम्मिलित हुए।
  2. कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवन राम के नेतृत्व में एक नई पार्टी बनाई। इस पार्टी का नाम 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' था तथा बाद में यह पार्टी जनता पार्टी में शामिल हो गयी। 
  3. 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र तथा आपातकाल के दौरान की गयी ज्यादतियों पर जोर दिया।
  4. आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी अधिनियमों के तहत हजारों लोगों की गिरफ्तारी तथा प्रेस की सेंसरशिप की पृष्ठभूमि में जनमत कांग्रेस के विरुद्ध था। जनता पार्टी के गठन के कारण यह भी सुनिश्चित हो गया कि गैर-कांग्रेसी वोट एक ही जगह पड़ेंगे अर्थात् काँग्रेस के लिए मुसीबत उत्पन्न हो गयी थी।
  5. इंदिरा गाँधी के छोटे पुत्र संजय गाँधी का बिना किसी आधिकारिक पद पर रहते हुए प्रशासन में हस्तक्षेप करना तथा दिल्ली से झुग्गी झोंपड़ियों को हटाना व जबरदस्ती नसबंदी का अभियान चलाना।

प्रश्न 8. 
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्षों पर आपातकाल का क्या असर हुआ? 
(अ) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर 
(ब) कार्यपालिका और न्यायपालिका के सम्बन्ध 
(स) जनसंचार माध्यमों के कामकाज 
(द) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ।।
उत्तर:
(अ) आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गये। उनके पास अब यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। सरकार ने निवारक नज़रबंदी अधिनियमों का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया। इस प्रावधान के अन्तर्गत लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया गया कि वे कोई अपराध कर सकते हैं। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे।

(ब) आपातकाल के दौरान कार्यपालिका एवं न्यायपालिका एक-दूसरे के सहयोगी हो गये। इस दौरान न्यायपालिका कुछ हद तक सरकार के प्रति वफादार भी रही। न्यायपालिका, कार्यपालिका के आदेशों का पालन करने वाली संस्था की जैसी स्थिति में पहुँच गयी थी।

(स) आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। जनसंचार माध्यमों का कामकाज बाधित हुआ। समाचार-पत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले सरकार से अनुमति लेना आवश्यक है। इसे 'प्रेस सेंसरशिप' के नाम से जाना गया। 'इण्डियन एक्सप्रेस' और 'स्टेट्समैन' जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छापने से रोका जाता था उनकी जगह ये अखबार में खाली छोड़ देते थे। ‘सेमिनार' और 'मेनस्ट्रीम' जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने की जगह बंद होना उचित समझा।

(द) पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गईं। पुलिस हिरासत में कई लोगों की मौत हुई। नौकरशाही मनमानी करने लगी। बड़े अधिकारी समय की पाबंदी और अनुशासन के नाम पर तानाशाही दृष्टिकोण से प्रत्येक मामले में मनमानी करने लगे। पुलिस और नौकरशाही ने जनता पर जबरदस्ती परिवार नियोजन को थोपा। बिना किसी कानून कायदे के ढाँचे गिराए गए। रिश्वतखोरी बढ़ गयी। 

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प्रश्न 9. 
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर:
आपातकाल के दौरान भारत की दलीय प्रणाली में कुछ समय के लिए ऐसा नजर आया कि राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राजनीतिक प्रणाली दो दलीय प्रणाली हो जाएगी। सी.पी.आई. कांग्रेस की तरफ झुक गई थी तथा शेष सभी दल, जैसे- भारतीय जनसंघ, कांग्रेस (ओ), समाजवादी, रिपब्लिकन, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी इत्यादि दल जनता पार्टी में मिल गए। इस तरह अब दो ही दल या गठबंधन दिखाई देने लगे थे। 18 महीने के आपातकाल के बाद जनवरी 1977 में सरकार ने चुनाव कराने का फैसला किया।

विपक्ष को चुनावी तैयारी का बड़ा कम समय मिला, लेकिन राजनीतिक बदलाव की गति बहुत तेज थी। सन् 1977 के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी ने चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गयी ज्यादतियों पर जोर दिया। पर विभिन्न दलों के नेताओं के निजी स्वार्थों तथा सत्ता प्राप्ति की खींचतान ने 18 माह में ही जनता पार्टी को धराशायी कर दिया और यह गठजोड़ फिर बिखर गया। इस बार और भी कुछ नए दल बन गए।

प्रश्न 10. 
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें 1977 के चुनावों के दौरान भारतीय लोकतंत्र, दो दलीय व्यवस्था के जितना नज़दीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अंगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरन्त बाद कांग्रेस दो टुकड़ों में बँट गई ......... जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची ........ डेविड बटलर, अशोक लाहिड़ी और प्रणव रॉय।
(अ) किन वजहों से सन् 1977 में भारत की राजनीति दो - दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ब) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थीं। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो-दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बता रहे हैं?
(स) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?
उत्तर:
(अ) 1977 में भारत की राजनीति दो: दलीय प्रणाली के समान इसलिए जान पड़ रही थी क्योंकि सभी कांग्रेस के विरोधी दल जय प्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रान्ति या जनता पार्टी में शामिल हो गए तथा दूसरी ओर कांग्रेस उनकी विरोधी थी।

(ब) लेखकगण इस दौर को द्वि: दलीय प्रणाली के नजदीक. इसलिए बता रहे हैं क्योंकि कांग्रेस कई टुकड़ों में बँट गयी व जनता पार्टी में भी फूट हो गयी लेकिन फिर भी इन दोनों प्रमुख पार्टियों के नेता संयुक्त नेतृत्व और साझे कार्यक्रम व नीतियों की बात करने लगे। इन दोनों गुटों की नीतियाँ एक जैसी थीं। वामपंथी मोर्चे में सी.पी.एम., सी.पी.आई., फॉरवर्ड ब्लॉक, रिपब्लिकन पार्टी की नीतियों पर कार्यक्रमों को हम इनसे अलग मान सकते हैं।

(स) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा:

  1.  कांग्रेस में फूट इसलिए पैदा हो गयी क्योंकि अनेक कांग्रेसी इंदिरा गाँधी की तानाशाही को पसन्द नहीं करते थे। कांग्रेस (आई), कांग्रेस (ओ), कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी, उत्कल कांग्रेस आदि कई गुट पहले भी यथार्थ में अलग - अलग थे।
  2. जनता पार्टी में फूट इसीलिए पैदा हो गयी क्योंकि जनता पार्टी में अनेक विचारधाराओं और पार्टियों व नीतियों के लोग शामिल थे।
Prasanna
Last Updated on Jan. 12, 2024, 9:14 a.m.
Published Jan. 11, 2024