Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 3 समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(पृष्ठ संख्या-32)
प्रश्न 1.
मैं खुश हूँ कि मैंने विज्ञान के विषय नहीं लिए वर्ना मैं भी अमेरिकी वर्चस्व का शिकार हो जाता। क्या आप बता सकते हैं क्यों?
उत्तर:
विज्ञान विषय के अध्ययनोपरान्त मैं वैज्ञानिक अथवा इंजीनियर अथवा डॉक्टर बनता। इस परिस्थिति में स्वयं को अमेरिकी वर्चस्व का शिकार होने से बचा नहीं सकता था क्योंकि इन क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी नेटवर्क का बोलबाला है।
(पृष्ठ संख्या-34)
प्रश्न 2.
क्या यह बात सही है कि अमेरिका ने अपनी जमीन पर कभी कोई जंग नहीं लड़ी ? कहीं इसी वजह से जंगी कारनामे करना अमेरिका के लिए बायें हाथ का खेल तो नहीं ?
उत्तर:
हाँ, यह बात पूरी तरह से सही है कि अमेरिका ने अपनी जमीन पर कोई जंग नहीं लड़ी। अपनी जमीन पर जंग न लड़ पाने के कारण उसे जंग से होने वाली अपार जन-धन की कमी की हानि नहीं हुई। उसके द्वारा अन्य देशों की जमीन पर लड़े युद्धों में उसे कोई विशेष जन-धन की हानि नहीं हुई। अतः इसके कारण उसकी शक्ति में कभी कोई कमी नहीं आयी। इसके अतिरिक्त अपनी जमीन पर युद्ध न लड़े जाने के कारण वहाँ की जनता को जंग से होने वाली जन-धन की हानि व उत्पन्न कष्टों की कोई जानकारी नहीं है। इस कारण वहाँ की जनता भी अपनी सरकार को जंग से रोकने का कभी कोई प्रयास नहीं करती। इन सब कारणों से जंगी कारनामे करना अमेरिका के लिए आसान कार्य अर्थात् बायें हाथ का खेल बन गया है।
(पृष्ठ संख्या-35)
प्रश्न 3.
यह तो बड़ी बेतुकी बात है ! क्या इसका यह मतलब लगाया जाए कि लिट्टे आतंकवादियों के छुपे होने का शुबहा (सन्देह) होने पर श्रीलंका पेरिस पर मिसाइल दाग सकता है?
उत्तर:
1. 9/11 की घटना के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि विश्व के अन्य अनेक पश्चिमी देशों में भी आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध के अंग के रूप में 'ऑपरेशन फ्रीडम' अभियान चलाकर अनेक लोगों को गिरफ्तार करके गोपनीय स्थलों पर बनी जेलों में भरकर उन पर अमानवीय अत्याचार किए तथा उनसे संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिनिधियों तक को नहीं मिलने दिया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने यह सिर्फ सन्देह के आधार पर ही किया था।
2. लड़की इसे बेतुकी बात इसलिए कहती है कि आतंकवादियों को किसी देश में छुपे होने के केवल सन्देह मात्र के आधार पर सम्बन्धित देश में बमों की वर्षा करना एक जघन्य आपराधिक क्रियाकलाप तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोरी का खुला चित्र प्रस्तुत करता है।
(पृष्ठ संख्या -36)
प्रश्न 4.
क्या अमेरिका में भी राजनीतिक वंश परम्परा चलती है या यह सिर्फ एक अपवाद है ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में राजनीतिक वंश-परम्परा नहीं चलती। संयुक्त राज्य अमेरिका एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। देश के मतदाता प्रत्येक चार वर्षों के समयान्तराल.पर अपना राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) चुनते हैं। एच. डब्ल्यू. बुश के राष्ट्रपति बनने के पश्चात् उनके पुत्र जॉर्ज डब्ल्यू. बुश का राष्ट्रपति बनना एक अपवाद मात्र है।
प्रश्न 5.
एंडी सिंगर द्वारा बनाए गए दोनों कार्टूनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम कार्टून में चार चित्र हैं। चित्र में अमेरिकी राष्ट्राध्यक्ष किसी भी देश के प्रमुख को बुलाकर उसे विश्वास दिलाते हैं कि वे राष्ट्रों की समानता तथा लोकतन्त्र में आस्था रखते हैं। दूसरे चित्र में अमेरिकी प्रतिनिधि जबर्दस्ती करता है क्योंकि छोटे तथा कमजोर राष्ट्र के प्रतिनिधि ने उसका कहना नहीं माना। तीसरे चित्र में छोटे राष्ट्र का प्रतिनिधि नीचे गिरने के बाद अमेरिकी प्रतिनिधि से अपने ऊपर हुए हमले का कारण जानना चाहता है। चौथे चित्र में अमेरिका उस कमजोर राष्ट्र को बताता है कि उसे (अमेरिका को) उससे हमले का खतरा था।
द्वितीय कार्टून में दर्शाया गया है कि यद्यपि अमेरिका में लोकतान्त्रिक व्यवस्था है तथापि विदेशी देश के प्रति एक तानाशाह की तरह व्यवहार करता है। वह वस्तुतः मित्रवत् तथा समानता अर्थात् बराबरी का व्यवहार नहीं करता। यदि अमेरिकी इशारों पर कठपुतली की तरह चलते रहोगे तो दोस्ती का प्रत्येक क्षेत्र में लाभ उठाते रहोगे। यदि अमेरिका से मित्रता खत्म हो जाएगी तो न तो अमेरिका स्वेच्छा से आपको तेल बेचने देगा और न ही आपकी निर्धनता को कम कराने में सहायक होगा। जो देश अमेरिकी निर्णय के अनुरूप प्रत्येक फैसला नहीं लेता; वहाँ अमेरिका या तो शासन के खिलाफ बगावत करा देता है अथवा सैन्य तानाशाही स्थापित कराके अपने विरोधी को मौत के घाट उतरवा देता है। जो मित्र राष्ट्र अमेरकी शर्तों का अनुसरण करते हैं, उन्हें अमेरिकी मीडिया अपनी सुर्खियों में रखता है; नहीं तो लगातार उनकी निन्दा की जाती है। अमेरिका किसी राष्ट्र में गृहयुद्ध तथा बरबादी के लिए शत्रुतापूर्ण कदम उठाने में भी किंचितमात्र भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करता है।
(पृष्ठ संख्या-37)
प्रश्न 6.
फौजी की वर्दी और दुनिया का नक्शा यह कार्टून क्या बताता है ?
उत्तर:
यह कार्टून विश्व स्तर पर सैन्य शक्ति के रूप में अमेरिकी वर्चस्व को बताता है।
प्रश्न 7.
शीतयुद्ध के बाद हुए उन संघर्षों/युद्धों की सूची बनाएँ जिसमें अमेरिका ने निर्णायक भूमिका निभाई।
उत्तर:
शीतयुद्ध के बाद निम्नांकित संघर्षों/युद्धों में अमेरिका ने निर्णायक भूमिका निभाई:
(पृष्ठ संख्या-38)
प्रश्न 8.
अमेरिका के अंगूठे तले' शीर्षक का यह कार्टून वर्चस्व के आमफहम अर्थ को ध्वनित करता है। अमेरिका वर्चस्व की प्रकृति के बारे में यह कार्टून क्या कहता है ? कार्टूनिस्ट विश्व के किस हिस्से के बारे में इशारा कर रहा है ?
उत्तर:
उक्त कार्टून अमेरिकी वर्चस्व की दादागीरी प्रकृति को बता रहा है। अमेरिकी राजनीति पूर्णरूपेण शक्ति एवं उसकी मनमानी के आस-पास घूमती है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वह अपनी सर्वोच्च सैन्य शक्ति तथा मजबूत वित्तीय शक्ति के बलबूते प्रत्येक देश के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी मनमर्जी चलाना चाहता है।
प्रश्न 9.
'वर्चस्व' जैसे भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल क्यों करें ? हमारे शहर में इसके लिए 'दादागीरी' शब्द चलता है। क्या यह शब्द ज्यादा अच्छा नहीं रहेगा ?
उत्तर:
'दादागीरी' का तात्पर्य सीमित अर्थों में लिया जाता है, जबकि वर्चस्व एक व्यापक अर्थों वाला शब्द है। राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक मामलों में अमेरिकी प्रभाव अथवा दबदबे के लिए 'वर्चस्व' शब्द प्रयुक्त किया जाना अधिक अच्छा रहेगा।
(पृष्ठ संख्या-39)
प्रश्न 10.
विश्व की अधिकांश सशस्त्र सेनाएँ अपनी सैन्य कार्यवाही के क्षेत्र को विभिन्न कमानों में बाँटती हैं। हर 'कमान' के लिए अलग-अलग कमाण्डर होते हैं। इस मानचित्र में अमेरिकी सशस्त्र सेना के पाँच अलग-अलग कमानों के सैन्य कार्यवाही के क्षेत्र को दिखाया गया है। इससे पता चलता है कि अमेरिकी सेना का कमान क्षेत्र सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका तक सीमित नहीं बल्कि इसके विस्तार में समूचा विश्व शामिल है। अमेरिका की सैन्य शक्ति के बारे में यह मानचित्र क्या बताता है ?
उत्तर:
उक्त मानचित्र अमेरिका की सैन्य शक्ति के अनूठेपन तथा बेजोड़ता को बताता है। चित्र में अमेरिकी सशस्त्र सेना की छः कमान हैं:
अमेरिका सशस्त्र सेना की कमान संरचना से स्पष्ट है कि वह सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी हमला करने में सक्षम है। अमेरिका सैन्य क्षमता एकदम सही समय में अचूक एवं घातक आक्रमण करने की है। अमेरिकी सेना युद्धभूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रहकर अपने शत्रु को उसी के घर में अपाहिज (पंगु) बनाने की क्षमता रखती है।
(पृष्ठ संख्या-41)
प्रश्न 11.
यह देश इतना धनी कैसे हो सकता है ? मुझे तो यहाँ बहुत से गरीब लोग दीख रहे हैं ! इनमें अधिकांश अश्वेत हैं।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में पर्याप्त संख्या में गरीब लोग भी दिखाई पड़ते हैं। यहाँ अधिकांश अश्वेत लोग गरीबी में अपना जीवनयापन कर रहे हैं। यहाँ पर्याप्त आर्थिक असमानता व गरीबी विद्यमान है। लेकिन किसी देश की सम्पन्नता का एकमात्र पैमाना वहाँ की आर्थिक असमानता को नहीं बनाया जा सकता। किसी देश की समृद्धि का पैमाना उसका सकल घरेलू उत्पाद तथा विश्व अर्थव्यवस्था व विश्व व्यापार में हिस्सेदारी में निर्धारित होता है। यदि संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थिति को देखें तो इन सब में वह मजबूत स्थिति में है। तुलनात्मक क्रय शक्ति के आधार पर 2018 में अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद विश्व का 15.01 प्रतिशत था। वहीं, 2018 में विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिकी हिस्सेदारी 21 प्रतिशत एवं विश्व के कुल व्यापार में हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त अमेरिका विश्व के अधिकांश देशों को ऋण उपलब्ध कराता है। इन सब तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका एक धनी देश है। । हालांकि अमेरिका में गरीब लोग भी हैं, जिनमें अधिकांश अश्वेत हैं, लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका की 21 प्रतिशत की सहभागिता है। विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिकी प्रभाव है। अमेरिका विश्व के अधिकांश देशों को अपनी शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराता है।
(पृष्ठ संख्या-42)
प्रश्न 12.
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत वैश्विक व्यापार के नियम तय किए गए थे। क्या ये नियम अमेरिकी हितों के अनुकूल बनाए गए थे? ब्रेटनवुड प्रणाली के बारे में और जानकारी जुटाएँ।
उत्तर:
ब्रेटनवुड प्रणाली के अन्तर्गत वैश्विक व्यापार के नियम निर्धारित किए गए थे। इन नियमों को अमेरिकी हितों के अनुकूल बनाया गया था। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्धों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए कुंछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये। इसके द्वारा औद्योगिक विश्व में आर्थिक स्थिरता एवं पूर्ण रोजगार को बनाये रखा जाये। इस फ्रेमवर्म पर जुलाई 1944 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित न्यू हेम्पशायर के ब्रेटनवुड्स नामक स्थान पर संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन में सहमति बनी थी। सदस्य देशों के विदेश व्यापार में लाभ और घाटे से निपटने के लिए ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में ही अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की गई। युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक अर्थात् विश्व बैंक का गठन किया गया; इसलिए विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को 'ब्रेटनवुड्स ट्विन' भी कहा जाता है।
(पृष्ठ संख्या-43)
प्रश्न 13.
बड़ी विचित्र बात है ! अपने लिए जीन्स खरीदते समय तो मुझे अमेरिका का ख्याल तक नहीं आता! फिर मैं अमेरिकी वर्चस्व के चपेट में कैसे आ सकती हूँ?
उत्तर:
हालांकि जीन्स खरीदते समय संयुक्त राज्य अमेरिका का ख्याल नहीं आता, लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका एक सांस्कृतिक उत्पाद के बलबूते दो पीढ़ियों के बीच दूरियाँ उत्पन्न करने में सफल सिद्ध हुआ। यह उसके वर्चस्व का ही प्रतिफल है।
प्रश्न 14.
उक्त तीनों तस्वीरें (पा. पु. पृ. 43) कहाँ की हैं ? इस तस्वीरों में अमेरिकी वर्चस्व के तत्वों को ढूँढ़ें। स्कूल से घर लौटते समय क्या आप रास्ते में ऐसी चीजों की पहचान कर सकते हैं ?
उत्तर:
उक्त तीनों तस्वीरें जकार्ता (इंडोनेशिया) की हैं। ये तस्वीरें अमेरिका के सांस्कृतिक वर्चस्व तथा आर्थिक वर्चस्व को दर्शाती हैं। स्कूल से घर लौटते समय हम रास्ते में ऐसी चीजों को सरलता से पहचान सकते हैं।
(पृष्ठ संख्या-45)
प्रश्न 15.
उक्त दोनों चित्र (पा. पु. पृ. 45) किस प्रदर्शनी से लिए गए हैं ? इस प्रदर्शनी को कब और किसने आयोजित किया ? इस तरह के विरोध अमेरिकी सरकार पर किस सीमा तक अंकुश लगा पाते हैं ?
उत्तर:
उक्त चित्र 'इराक युद्ध की इंसानी कीमत' शीर्षक प्रदर्शनी से लिए गए हैं। इसका आयोजन 2004 में डेमोक्रेटिक पार्टी की वार्षिक बैठक के दौरान अमेरिकी फ्रैंड्स सर्विस कमेटी द्वारा किया गया। इस प्रकार के विरोधों से अमेरिका सरकार की कार्य प्रणाली पर किसी तरह का अंकुश नहीं लगता है।
प्रश्न 16.
जैसे ही मैं कहता हूँ कि मैं भारत से आया हूँ। ये लोग मुझसे पूछते हैं कि, क्या तुम कम्प्यूटर इंजीनियर हो ? यह सुनकर अच्छा लगता है।
उत्तर:
ऐसा इस कारण होता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय कम्प्यूटर इंजीनियर की अधिक माँग है। चूँकि भारतीयों ने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है; इसी वजह से संयुक्त राज्य अमेरिका में उनकी माँग है और मुझे भारतीय होने पर गौरव की अनुभूति होती है।
प्रश्न 17.
भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में नागरिक परमाणु समझौता हुआ है। इसके बारे में अखबारों से रिपोर्ट और लेख जुटाएँ। इस समझौते के समर्थक और विरोधियों के तर्कों का सार-संक्षेप लिखें।
उत्तर:
भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में परमाणु ऊर्जा के मामले पर एक समझौता हुआ इस मसले को लेकर लोकसभा में गर्मागर्म बहस हुई। समझौते के पक्ष में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा विपक्ष के अनेक राजनेताओं ने अपने वक्तव्यों (भाषणों) के माध्यम से सदन और देश को अपने-अपने विचारों से अवगत कराया। हालांकि हम सभी सदस्यों एवं राजनेताओं के विचारों को यहाँ नहीं दे सकते हैं, लेकिन तीन विभिन्न वैचारिक स्थितियों को इंगित करने वाले विचारों को संक्षेप में निम्न प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैंतर्कों का सार-संक्षेप
भारत सरकार ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हुए परमाणु समझौते का पुरजोर समर्थन किया तथा प्रधानमन्त्री ने सदन तथा देश की जनता को यह विश्वास दिलाया कि यह समझौता दोनों देशों के लिए लाभप्रद है तथा सरकार ने इसमें कोई ऐसी धारा नहीं रखने दी है; जिससे भारतीय सुरक्षा पर कभी भी किसी भी प्रकार की आँच आए।
प्रतिपक्ष में, मार्क्सवादियों तथा समाजवादियों ने शासन पर यह आरोप लगाने का प्रयास किया कि उसने अमेरिकी दबाव के समक्ष इराक व ईरान के मामले में उचित दृष्टिकोण नहीं अपनाया और अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी में मतदान के दौरान सरकार ने अमेरिका का पक्ष लिया। विरोधियों ने एक स्वर में कहा कि उन्हें भारत सरकार से ऐसी आशा नहीं थी। भारत को ईरान से गैस आपूर्ति की आवश्यकता है। हम अपनी इस आवश्यकता को पाकिस्तान के रास्ते से पूरा कर सकते थे, लेकिन भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के कारण ईरान कुछ नाराज हो गया, लेकिन कुल मिलाकर लोकसभा के समक्ष प्रमुख विरोधी दल-भाजपा ने इस समझौते का समर्थन किया। लेकिन सरकार से यह अपेक्षा भी की कि सरकार प्रत्येक परिस्थिति में भारतीय सुरक्षा तथा हितों को बनाए एवं बचाए रखे।
(पृष्ठ संख्या-47)
प्रश्न 18
अमेरिका इकलौती महाशक्ति के रूप में कब तक कायम रहेगा ? इसके बारे में आप क्या सोचते हैं ? अगर यह चित्र (पा. पु. पृ. 47) आप बनाते तो अगली महाशक्ति के रूप में किस देश को दिखाते ?
उत्तर:
अमेरिका इकलौती महाशक्ति के रूप में तब तक कायम रहेगा जब तक कि उसको आर्थिक तथा सांस्कृतिक धरातल पर चुनौती नहीं मिलेगी। यह चुनौती स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक आन्दोलन तथा जनमत के परस्पर संयोग से प्रस्तुत होगी। मीडिया, बुद्धिजीवी, लेखक एवं कलाकार इत्यादि को अमेरिकी वर्चस्व के प्रतिरोध के लिए आगे आना होगा। ये एक विश्वव्यापी नेटवर्क बनाकर अमेरिकी नीतियों की आलोचना तथा प्रतिरोध कर सकते हैं। यदि यह चित्र हम बनाते तो अगली महाशक्ति के रूप में चीन अथवा भारत को दिखाते।
(पृष्ठ संख्या-48)
प्रश्न 19.
ये सारी बातें ईर्ष्या से भरी हुई हैं। अमेरिकी वर्चस्व से हमें परेशानी क्या है ? क्या यही कि हम अमेरिका में नहीं जन्मे ? या कोई और बात है ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्चस्व का प्रतिरोध करना कोई ईर्ष्या से भरी हुई बात नहीं है। कदम-कदम पर अमेरिका का दादागिरी का व्यवहार असहनीय है, जिसका प्रतिरोध किया जाना ही हमारे समक्ष एकमात्र विकल्प बचता है।उदाहरण के लिए, हम एक विश्व ग्राम में रहते हैं; जिसमें एक चौधरी रहता है और हम सब उसके पड़ोसी हैं। यदि चौधरी का व्यवहार असहनीय हो जाए तो भी विश्व ग्राम से चले जाने का विकल्प हमारे पास उपलब्ध नहीं है; क्योंकि यही एकमात्र गाँव है जिसे हम जानते हैं एवं रहने के लिए हमारे पास यही एक गाँव है। ऐसी स्थिति में प्रतिरोध ही एकमात्र विकल्प बचता है। ठीक इसी प्रकार सम्पूर्ण विश्व एक गाँव की तरह है तथा इसमें अमेरिका की स्थिति गाँव के चौधरी की तरह है। पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका वर्चस्व के साथ-साथ उसका अन्य देशों के साथ व्यवहार भी अच्छा नहीं रहा है; जो अन्य देशों के लिए असहनीय हो रहा है। ऐसी स्थिति में अमेरिका का प्रतिरोध करना ही हमारे पास एकमात्र विकल्प बचता है।
(पृष्ठ संख्या-49)
प्रश्न 20.
इतिहास हमें वर्चस्व के बारे में क्या सिखाता है ?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में वर्चस्व की स्थिति एक असामान्य परिघटना है। अन्तर्राष्ट्रीय राज व्यवस्था में विभिन्न देश शक्ति सन्तुलन के सन्दर्भ में अत्यधिक सतर्क रहते हैं। साधारणतया वे किसी एक देश को इतना शक्ति-सम्पन्न नहीं बनने देते; जिससे कि वह शेष राष्ट्रों के लिए भयंकर खतरा उत्पन्न करने लगे। इतिहास साक्षी है कि 1648 ई. में सम्प्रभु राज्य विश्व राजनीति के प्रमुख पात्र बने थे। तत्पश्चात् लगभग साढ़े तीन सौ वर्षों की समयावधि के दौरान केवल दो बार ऐसा हुआ; जब किसी एक देश ने अपने बलबूते अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वही प्रबलता प्राप्त की जो वर्तमान में अमेरिका को हासिल है। जहाँ यूरोप की राजनीति में 1660 से 1713 ई. तक फ्रांस का वर्चस्व था, वहीं 1860 ई. से 1910 ई. तक ब्रिटेन का दबदबा समुद्री व्यापार के बलबूते कायम हुआ था। . हमें इतिहास से यह भी ज्ञात होता है कि वर्चस्व अपने चरम बिन्दु के दौरान अजेय प्रतीत होता है, लेकिन यह सदैव के लिए कायम नहीं रहता है। शक्ति-सन्तुलन की राजनीति वर्चस्वशील देश की शक्ति को आगे आने वाले समय में कम कर देती है। उदाहरणार्थ, 1660 ई. में लुई 14वें के शासनकाल में फ्रांस अपराजेय था, लेकिन 1713 ई. तक इंग्लैण्ड, हैम्सबर्ग, आस्ट्रिया तथा रूस उसकी शक्ति के समक्ष चुनौती प्रस्तुत करने लगे। इसी तरह 1860 ई. में ब्रिटिश साम्राज्य सदैव के लिए सुरक्षित लगता था, लेकिन 1910 ई. तक जर्मन, जापान तथा अमेरिका उसकी ताकत को ललकारने लगे। उक्त आधार पर कहा जा सकता है कि आगामी 20 वर्षों में कुछ शक्तिशाली देशों का गठबन्धन अमेरिकी सूर्य की चमक को फीका कर देगा। धीरे-धीरे तुलनात्मक दृष्टिकोण से अमेरिका की शक्ति कमजोर होती चली जा रही है।
प्रश्न 1.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(क) इसका अर्थ किसी एक देश की अगुवाई या प्राबल्य है।
(ख) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेन्स की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था।
(ग) वर्चस्वशील देश की सैन्य शक्ति अजेय होती है।
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया।
उत्तर:
(घ) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया।
प्रश्न 2.
समकालीन विश्व व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(क) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं है, जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
(ख) अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में अमेरिका की चलती है।
(ग) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल प्रयोग कर रहे हैं।
(घ) जो देश अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ कठोर दण्ड देता है।
उत्तर:
(क) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके।
प्रश्न 3.
'ऑपरेशन इराकी फ्रीडम' (इराकी मुक्ति अभियान) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(क) इराक पर हमला करने के इच्छुक अमेरिकी अगुवाई वाले गठबन्धन में 40 से ज्यादा देश शामिल हुए।
(ख) इराक पर हमले का कारण बताते हुए कहा गया कि यह हमला इराक को सामूहिक संहार के हथियार बनाने से रोकने के लिए किया जा रहा है।
(ग) इस कार्रवाई से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।
(घ) अमेरिकी नेतृत्व वाले गठबन्धन को इराकी सेना से तगड़ी चुनौती नहीं मिली।
उत्तर:
(ग) इस कार्यवाही से पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुमति ले ली गई थी।
प्रश्न 4.
इस अध्याय में वर्चस्व के तीन अर्थ बताए गए हैं। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण बतायें। ये उदाहरण इस अध्याय में बताए गए उदाहरणों से अलग होने चाहिए।
उत्तर:
इस अध्याय में वर्चस्व के निम्नलिखित तीन अर्थ बताए गए है:
उदाहरण:
1. पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति पर्याप्त सौहार्द्रपूर्ण चल रही है, संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा पाकिस्तान को सैन्य सहायता देकर दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास सदैव जारी रहा है। इसके साथ ही क्यूबा मिसाइल संकट के समय में भी अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए उसने तत्कालीन सोवियत संघ को धमकी दी थी।
2. दबदबे वाला देश अपनी नौसेना की ताकंत से समुद्री व्यापार मार्गों पर आने-जाने के नियम तय करता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का जोर घट गया। अब यह भूमिका अमेरिकी नौसेना निभाती है। ढाँचागत ताकत के अर्थ में अमेरिका अनेक देशों को यह कह चुका है कि वह विश्व के सभी समुद्री मार्गों को विश्व व्यापार के लिए खुला रखें, क्योंकि मुक्त व्यापार समुद्री व्यापारिक मार्गों के खुले बिना सम्भव नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विभिन्न देशों को यह धमकी दी गई है।
3. टेलीविजन व इंटरनेट तथा सिनेमाघरों में हम अनेक कार्यक्रम व फिल्में देखते हैं, जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में अथवा उनके लोगों द्वारा तैयार किया गया होता है।
प्रश्न 5.
उन तीन बातों का जिक्र करें जिनसे साबित होता है कि शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिकी प्रभुत्व का स्वभाव बदला है और शीतयुद्ध के वर्षों के अमेरिकी प्रभुत्व की तुलना में यह अलग है।
उत्तर:
निम्नलिखित बातों ये यह साबित होता है कि शीतयुद्ध की समाप्त के बाद अमेरिकी प्रभुत्व का स्वरूप बदला है! यह शीतयुद्ध के वर्षों में अमेरिकी प्रभुत्व की तुलना में अलग है:
1. संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय करवाना-संयुक्त राष्ट्र संघ में संयुक्त राज्य अमेरिका अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय करवाने में सफल रहा है। जब अगस्त 1990 में इराक ने कुवैत पर हमला कर उस पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया तो संयुक्त राज्य अमेरिका ने इराक को संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से समझाने की कोशिश की। समस्त कोशिशों के नाकाम होने पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुवैत को मुक्त कराने के लिए बल प्रयोग की अनुमति प्रदान कर दी। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अमेरिका को बल प्रयोग की अनुमति देना अमेरिकी प्रभुत्व के बदलते स्वरूप को दर्शाता है, क्योंकि शीतयुद्ध के दौरान अधिकांश मामलों में चुप्पी साधने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के लिहाज से यह एक नाटकीय फैसला था। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इसे 'नई विश्व व्यवस्था' की संज्ञा प्रदान की।':'प्रथम खाड़ी युद्ध से यह बात जाहिर हो गयी कि विश्व के शेष देश सैन्य क्षमता के मामले में अमेरिका से बहुत पीछे हैं। शीतयुद्ध के काल में सोवियत संघ इसके समकक्ष स्थिति में था।
2. संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की परवाह न करना-बिल क्लिटन के शासनकाल में संन् 1998 में नैरोबी (केन्या) तथा दारे-सलाम (तंजानिया) के अमेरिकी दूतावासों पर बमबारी के जवाब में अमेरिका द्वारा तय की गयी सैन्य कार्यवाही अमेरिकी वर्चस्व के बदले स्वरूप को बताती है। अमेरिका द्वारा आतंकवादी संगठन 'अलकायदा' को इस बमबारी का जिम्मेदार ठहराकर उसने सूडान व अफगानिस्तान स्थिति अलकायदा के ठिकाने पर कई बार क्रूज मिसाइलों से हमले किये। अमेरिका ने उक्त सैन्य कार्यवाही के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ से अनुमति लेने के अथवा इस सिलसिले में अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों की भी परवाह नहीं की। शीतयुद्ध के काल में ऐसा बिल्कुल सम्भव नहीं था।
3. विश्व के सभी महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों पर अपना दबदबा स्थापित करना-शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् अमेरिका ने विश्व के सभी महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों पर भी अपना दबदबा स्थापित कर लिया है। आज विश्व के महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय संगठन; जैसे-विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं विश्व व्यापार संगठन पर अमेरिकी वर्चस्व स्थापित है। शीतयुद्ध के काल में ऐसी स्थिति नहीं थी।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में मेल बैठाइए
(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच |
(क) तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ जंग |
(2)ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम |
(ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबन्धन |
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म |
(ग) सूडान पर मिसाइल से हमला |
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम |
(घ) प्रथम खाड़ी युद्ध। |
उत्तर:
(1) ऑपरेशन इनफाइनाइट रीच |
(ग) सूडान पर मिसाइल से हमला |
(2)ऑपरेशन एन्ड्यूरिंग फ्रीडम |
(क) तालिबान और अल-कायदा के खिलाफ जंग |
(3) ऑपरेशन डेजर्ट स्टार्म |
(घ) प्रथम खाड़ी युद्ध। |
(4) ऑपरेशन इराकी फ्रीडम |
(ख) इराक पर हमले के इच्छुक देशों का गठबन्धन |
प्रश्न 7.
अमेरिकी वर्चस्व की राह में कौन-से व्यवधान हैं ? क्या आप जानते हैं कि इनमें से कौन-सा व्यवधान आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण साबित होगा ?
उत्तर:
11 सितम्बर, 2001 की घटना के पश्चात् के वर्षों में ये व्यवधान एक प्रकार से निष्क्रिय जान पड़ने लगे थे, लेकिन धीरे-धीरे फिर प्रकट होने लगे। निःसन्देह विश्व में अमेरिका का वर्चस्व कायम है परन्तु अमेरिकी वर्चस्व की राह में मुख्य रूप से तीन व्यवधान हैं; जिनका विवरण निम्नलिखित है:
1. अमेरिका की संस्थागत बुनावट-अमेरिका में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त को अपनाया गया है अर्थात् यहाँ शासन के तीनों अंगों-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति का बँटवारा है। साथ ही शासन के तीनों अंगों के बीच अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाया गया है, जिसके अनुसार शासन का एक अंग, दूसरे अंग पर नियन्त्रण भी रखता है। यही बुनावट कार्यपालिका द्वारा सैन्यशक्ति के बे-लगाम प्रयोग पर अंकुश लगाने का काम करती है।
2. अमेरिकी समाज की उन्मुक्त प्रकृति-अमेरिकी वर्चस्व के सामने आने वाला दूसरा व्यवधान है-अमेरिकी समाज; जो अपनी प्रकृति में उन्मुक्त है। अमेरिका में जनसंचार के साधन समय-समय पर वहाँ के जनमत को एक विशेष दिशा में मोड़ने की भले ही कोशिश करें, लेकिन अमेरिका की राजनीतिक संस्कृति में शासन के उद्देश्य और तरीके को लेकर गहरा सन्देह भरा है। अमेरिका के विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश न रखने में यह बात बड़ी कारगर भूमिका निभाती है।
3. नाटो (उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन) द्वारा अंकुश-अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था में आज सिर्फ एक ही ऐसा संगठन है; जो सम्भवतया अमेरिकी ताकत पर अंकुश लगा सकता है और इस संगठन का नाम है-'नाटो'। अमेरिका का बहुत बड़ा हित लोकतान्त्रिक देशों के इस संगठन को कायम रखने से जुड़ा है क्योंकि इन देशों में बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है।हमारे विचार से अमेरिका के वर्चस्व पर (नाटो) का व्यवधान आगामी दिनों में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका के हित 'नाटो' में सम्मिलित देशों के साथ जुड़े हुए हैं। इन देशों में अमेरिका की तरह बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है। इसी कारण इस बात की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं कि 'नाटो' में सम्मिलित अमेरिका के साथी देश उसके वर्चस्व पर अंकुश लगा सकते इस प्रकार स्पष्ट होता है कि (नाटो) में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथी देश आगामी दिनों में सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवधान सिद्ध होंगे।
प्रश्न 8.
भारत-अमेरिका समझौते से सम्बन्धित बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिए गए हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत-अमेरिकी सम्बन्ध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
उत्तर:
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस मुद्दे पर जोरदार बहस हुई। हमारे देश के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के विचारों से सहमत होकर हम भारत-अमेरिकी सम्बन्धों के बारे में निम्नलिखित भाषण तैयार कर सकते हैं-महोदय, हम सब जानते हैं कि शीतयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् विश्व राजनीति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं।सन् 1991 में सोवियत संघ विघटित हो गया। उससे अलग हुए गणराज्यों ने स्वतन्त्र राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर लिया। रूस को सोवियत संघ का उत्तराधिकारी राज्य स्वीकार किया गया। रूस को सुरक्षा परिषद् में सोवियत संघ की सीट मिली। लेकिन रूस संयुक्त राज्य अमेरिका की बराबरी नहीं कर पा रहा है। जितना शक्तिशाली तत्कालीन सोवियत संघ था; उतना शक्तिशाली अकेला रूस नहीं रह गया है। आज विश्व दो ध्रुवीय की अपेक्षा एकध्रुवीय हो गया है। सम्पूर्ण विश्व राजनीति संयुक्त राज्य अमेरिका के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। आज विश्व में अमेरिका का दबदबा सिर्फ सैन्य शक्ति एवं आर्थिक बढ़त के बूते ही नहीं बल्कि अमेरिका की सांस्कृतिक मौजूदगी भी इसका एक कारण है। शीतयुद्ध के वर्षों में भारत अमेरिकी गुट के विरुद्ध खड़ा था। उस दौरान भारत का निकट मित्र सोवियत संघ था। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् हमने पाया कि लगातार कटुतापूर्ण होते अन्तर्राष्ट्रीय माहौल में हम मित्रविहीन हो गये हैं। इसी अवधि में हमने अपनी अर्थव्यवस्था का उदारीकरण कर उसे वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा है। इस नीति के तहत हाल के वर्षों में प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि दर के कारण भारत अब अमेरिका सहित कई देशों के लिए आकर्षक आर्थिक सहयोगी बन गया है।
सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में भारत के कुल निर्यात का लगभग 65 प्रतिशत अमेरिका को होता है। इसके अतिरिक्त भारत के अनेक नागरिक अमेरिका की तकनीकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में संलग्न हैं। भारत ने हाल के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कई समझौते किये हैं, जिससे दोनों देशों के मध्य सम्बन्धों में सुधार हुआ है। हाल में ही भारत और अमेरिका के मध्य परमाणु ऊर्जा के मुद्दे पर भी समझौता हुआ है, जिससे दोनों देशों को और अधिक निकट ला दिया। इतनी निकटता के बावजूद हम सब जानते हैं कि अमेरिका की नीति हमेशा अपना वर्चस्व स्थापित करने की रही है। हमें इस बात से सावधान रहना होगा। हमारा देश भी एक विश्वशक्ति और महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। हमारा मत है कि अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हमारे सम्बन्ध अच्छे होने चाहिए, लेकिन यह भी आवश्यक है कि हमें देश की सुरक्षा के साथ किसी भी कीमत पर समझौता नहीं करना चाहिए। जहाँ तक मेरा मानना है कि भारत-अमेरिकी परमाणु ऊर्जा समझौते में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे हमें अपने देश की सुरक्षा के साथ समझौता करना पड़े। आज भारत और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा समझौता देश हित में है।
प्रश्न 9.
“यदि बड़े और संसाधन सम्पन्न देश अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पाएँगी।" इस कथन की जाँच करें और अपनी राय बताएँ।
उत्तर:
हमारे विचार में यह कथन पूर्णतः सत्य है कि "यदि बड़े और संसाधन सम्पन्न देश अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ, अमेरिकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध। कर पाएँगी।" क्योंकि