RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Political Science Solutions Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

RBSE Class 12 Political Science शीतयुद्ध का दौर InText Questions and Answers

क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

(पृष्ठ संख्या-5)

प्रश्न 1. 
प्रत्येक प्रतिस्पर्धी गुट से कम-से-कम तीन देशों की पहचान कीजिए। 
उत्तर:
नाटो सदस्य - नॉर्वे, इटली, स्पेन। वारसा पैक्ट सदस्य - पोलैण्ड, रोमानिया, चेकोस्लोवाकिया।

RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 शीतयुद्ध का दौर

प्रश्न 2. 
अध्याय चार में दिए गए यूरोपीय संघ के मानचित्र को देखिए और उन चार देशों को पहचानें; जो पहले 'वारसा सन्धि' के सदस्य थे और अब यूरोपीय संघ के सदस्य हैं।
उत्तर:

  1. पोलैण्ड, 
  2. हंगरी, 
  3. बुल्गारिया, 
  4. रोमानिया।

प्रश्न 3. 
इस मानचित्र की तुलना यूरोपीय संघ के मानचित्र अथवा विश्व के मानचित्र से कीजिए। इस तुलना के बाद क्या आप तीन ऐसे नए देशों की पहचान कर सकते हैं; जो शीतयुद्ध के बाद अस्तित्व में आए?
उत्तर:

  1. चेक गणराज्य, 
  2. स्लोवाकिया, 
  3. एस्टोनिया।

(पृष्ठ संख्या-6)

प्रश्न 4. 
निम्नलिखित तालिका में तीन-तीन देशों के नाम उनके गुटों को ध्यान में रखकर लिखिएपूँजीवादी गुट, साम्यवादी गुट तथा गुटनिरपेक्ष आन्दोलन। 
उत्तर:
पूँजीवादी गुट:

  1. संयुक्त राज्य अमेरिका, 
  2. ब्रिटेन, 
  3. फ्रांस। 

साम्यवादी गुट:

  1. सोवियत संघ, 
  2. रोमानिया, 
  3. बुल्गारिया।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन:

  1. भारत, 
  2. इण्डोनेशिया, 
  3. मिस्र। 

(पृष्ठ संख्या-7)

प्रश्न 5. 
उत्तरी और दक्षिणी कोरिया अभी तक क्यों विभाजित हैं; जबकि शीतयुद्ध के दौर के बाकी विभाजन मिट गए हैं? क्या कोरिया के लोग चाहते हैं कि विभाजन बना रहे?
उत्तर:
राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते दोनों देश अभी तक विभाजित हैं। हालाँकि कोरिया के लोग विभाजन के पक्षधर नहीं हैं। 

(पृष्ठ संख्या-12)

प्रश्न 6. 
पाँच ऐसे देशों के नाम बताएँ जो दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हुए। 
उत्तर:

  1. भारत, 
  2. पाकिस्तान, 
  3. श्रीलंका, 
  4. म्यांमार, 
  5. घाना।

RBSE Class 12 Political Science शीतयुद्ध का दौर  Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
शीतयुद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है? 
(क) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उनके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी।
(ख) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था। 
(ग) शीतयुद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की। 
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे। 
उत्तर:
(घ) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे। 

प्रश्न 2. 
निम्न में से कौन-सा कथन गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
(क) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतन्त्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।। 
(ख) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना। 
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना। 
(घ) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना। 
उत्तर:
(ग) वैश्विक मामलों में तटस्थता की नीति अपनाना।

प्रश्न 3. 
नीचे महाशक्तियों द्वारा बनाए सैन्य संगठनों की विशेषता बताने वाले कुछ कथन दिए गए हैं। प्रत्येक कथन के सामने सही या गलत का चिह्न लगाएँ
(क) गठबन्धन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था। 
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था। 
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था। 
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं। 
उत्तर:
(क) गठबन्धन के सदस्य देशों को अपने भू-क्षेत्र में महाशक्तियों के सैन्य अड्डे के लिए स्थान देना जरूरी था। (✓)
(ख) सदस्य देशों को विचारधारा और रणनीति दोनों स्तरों पर महाशक्ति का समर्थन करना था। (✓)
(ग) जब कोई राष्ट्र किसी एक सदस्य देश पर आक्रमण करता था तो इसे सभी सदस्य देशों पर आक्रमण समझा जाता था। (✓)
(घ) महाशक्तियाँ सभी सदस्य देशों को अपने परमाणु हथियार विकसित करने में मदद करती थीं। (x)

प्रश्न 4. 
नीचे कुछ देशों की एक सूची दी गई है। प्रत्येक के सामने लिखिए कि वह शीतयुद्ध के दौरान किस गुट से जुड़ा था?
(क) पोलैण्ड 
(ख) फ्रांस
(ग) जापान 
(घ) नाइजीरिया
(ङ) उत्तरी कोरिया 
(च) श्रीलंका। 
उत्तर:

(क) पोलैण्ड 

साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)

(ख) फ्रांस

पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)

(ग) जापान 

पूँजीवादी गुट (संयुक्त राज्य अमेरिका)

(घ) नाइजीरिया 

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन

(ङ) उत्तरी कोरिया 

साम्यवादी गुट (सोवियत संघ)

(च) श्रीलंका

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन


प्रश्न 5. 
शीतयुद्ध से हथियारों की होड़ और हथियारों पर नियन्त्रण-ये दोनों ही प्रक्रियाएँ पैदा हुईं। इन दोनों प्रक्रियाओं के क्या कारण थे?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् दो महाशक्तियों का उदय हुआ। ये महाशक्तियाँ थीं-संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ। पूँजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका एवं साम्यवादी सोवियत संघ का महाशक्ति बनने की होड़ में एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े होना शीतयुद्ध का कारण बना। शीतयुद्ध के दौरान पूँजीवादी तथा साम्यवादी दोनों ही गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा एवं प्रतिद्वन्द्विता समाप्त नहीं हुई थी। इसी वजह से परस्पर अविश्वास की परिस्थितियों में दोनों गठबन्धनों ने हथियारों का भारी भण्डारण करते हुए लगातार युद्ध की तैयारियाँ की। दोनों ही गुट अपने-अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु हथियारों के बड़े भण्डारण को जरूरी 'समझते थे। दोनों ही गुट परमाणु हथियारों से सम्पन्न थे तथा वे इसके प्रयोग के दुष्परिणामों से भली-भाँति परिचित भी थे। दोनों महाशक्तियाँ जानती थीं कि यदि प्रत्यक्ष युद्ध लड़ा गया तो दोनों को भारी नुकसान होगा और इनमें से किसी के भी विश्व विजेता बनने की सम्भावनाएँ बहुत कम हैं, क्योंकि दोनों ही गुटों के पास पर्याप्त मात्रा में परमाणु बम थे। अतः दोनों महाशक्तियों ने हथियारों पर नियन्त्रण के लिए अस्त्र-शस्त्रों की प्रतिस्पर्धा को समाप्त करने के प्रयास किए।

प्रश्न 6. 
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं? तीन कारण बताइए।
उत्तर:
महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ निम्न कारणों से सैन्य गठबन्धन रखती थीं:

  1. महत्त्वपूर्ण संसाधन हासिल करना-महाशक्तियों को छोटे देशों से तेल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि प्राप्त होता था।
  2. भू-क्षेत्र-महाशक्तियाँ इन छोटे देशों के यहाँ अपने हथियारों की बिक्री करती थीं और इनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सेना का संचालन करती थीं।
  3. सैनिक ठिकाने-छोटे देशों में अपने सैनिक ठिकाने बनाकर दोनों महाशक्तियाँ परस्पर एक-दूसरे गुट की जासूसी करती थीं।

प्रश्न 7.
कभी-कभी कहा जाता है कि शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था और इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में एक उदाहरण दें।
उत्तर:
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद दो महाशक्तियाँ-संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ का उदय हुआ, जो कि अलग-अलग विचारधारा वाले देश थे। ऐसे में किसी भी देश के लिए एकमात्र विकल्प यह था कि वह अपनी सुरक्षा के लिए किसी एक महाशक्ति के साथ जुड़ा रहे। शीतयुद्ध सीधे तौर पर शक्ति के लिए संघर्ष था, इसका विचारधारा से कोई सम्बन्ध नहीं था। हम इस बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हैं, क्योंकि विश्व के साम्यवादी विचारधारा वाले देश सोवियत संघ के गुट में शामिल हुए और पश्चिमी देश जो कि पूँजीवादी विचारधारा के थे, वे संयुक्त राज्य अमेरिका के गुट में सम्मिलित हुए। सन् 1990 में सोवियत संघ के विघटन के साथ ही शीतयुद्ध समाप्त हो गया तथा एक विचारधारा का भी पतन हो गया।

प्रश्न 8. 
शीतयुद्ध के दौरान भारत की अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति विदेश नीति क्या थी? क्या आप मानते हैं कि इस नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया?
अथवा 
अमेरिका और सोवियत संघ की अगुवाई वाले दोनों खेमों से भारत ने दूरी क्यों बनाए रखी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीत युद्ध के दौरान भारत ने अपने-आपको दोनों गुटों-अमेरिका व सोवियत संघ से अलग रखा तथा नव स्वतन्त्रता प्राप्त देशों का भी किसी भी गुट में जाने का विरोध किया। अपनी इस नीति के क्रियान्वयन हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति अपनायी। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के नेता के रूप में शीतयुद्ध के दौरान भारत ने अमेरिका और सोवियत संघ के प्रति अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत निम्न स्तरों पर अपनी भूमिका का निर्वाह किया

1. गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति के अन्तर्गत भारत ने स्वयं को दोनों महाशक्तियों-संयुक्त राज्य अमेरिका व सोवियत संघ की खेमेबन्दी से अलग रखा। लेकिन शीतयुद्ध कालीन प्रतिद्वंद्विता की पकड़ ढीली करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप भी किया।

2. भारत ने दोनों गुटों के मध्य मौजूद मतभेदों को दूर करने का प्रयास किया तथा मतभेदों को पूर्णव्यापी युद्ध का रूप देने से भी रोका।

3. भारत के राजनयिकों एवं नेताओं का उपयोग अक्सर शीतयुद्ध के दौर के प्रतिद्वन्द्वियों के मध्य संवाद स्थापित करने तथा मध्यस्थता करने के लिए भी हुआ। उदाहरणस्वरूप 1950 के दशक के प्रारम्भ में कोरियाई युद्ध के समय ऐसा ही हुआ।

4. भारत ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में सम्मिलित देशों को भी इस प्रकार के मध्यस्थता के कार्यों में संलग्न रखा।

5. भारत ने शीतयुद्ध के दौरान उन क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को भी सक्रिय बनाए रखने का प्रयास किया जो अमेरिका व सोवियत संघ के गुट से नहीं जुड़े थे। हमारे तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्वतन्त्र एवं परस्पर सहयोगी राष्ट्रों के एक सच्चे 'राष्ट्रकुल' के ऊपर गहरा विश्वास जताया ताकि वह शीतयुद्ध को समाप्त करने के प्रयास में एक सकारात्मक भूमिका का निर्वाह कर सके। हाँ, हम मानते हैं कि भारत द्वारा अपनायी गयी गुटनिरपेक्ष नीति ने भारत के हितों को आगे बढ़ाया। इस नीति के कारण भारत ऐसे निर्णय ले सका जिससे कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके हितों की पूर्ति हो सकी। साथ ही वह सदैव ऐसी स्थिति में रहा कि यदि कोई एक महाशक्ति उसका अथवा उसके हितों का विरोध करे तो दूसरी महाशक्ति उसको सहयोग करती रहे। स्पष्ट है कि शीतयुद्ध के दौरान भारत अपने हितों के लिए लगातार सजग रहा।

प्रश्न 9. 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को तीसरी दुनिया के देशों ने तीसरे विकल्प के रूप में समझा। जब शीतयुद्ध अपने शिखर पर था तब इस विकल्प ने तीसरी दुनिया के देशों के विकास में कैसे मदद पहुँचाई?
उत्तर:
शीतयुद्ध की वजह से विश्व दो प्रतिद्वन्द्वी गुटों में बँटा हुआ था। इसी सन्दर्भ में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने एशिया, अफ्रीका और लातिनी अमेरिका के उन नव-स्वतन्त्र देशों को एक तीसरा विकल्प दिया। यह विकल्प था-दोनों महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने का अर्थात् गुटनिरपेक्षता का। महाशक्तियों के गुटों से अलग रहने की इस नीति का अभिप्राय यह नहीं था कि इस आन्दोलन से जुड़े देश अपने को अन्तर्राष्ट्रीय मामलों से अलग-थलग रखते थे अथवा तटस्थता का पालन करते थे। गुटनिरपेक्षता का अर्थ-पृथकतावाद नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय रहने का आन्दोलन है। तीसरी दुनिया के देशों के विकास में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विशेष भूमिका निभायी है।

शीतयुद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की अपने सदस्य देशों के विकास में भूमिका':
1. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन में शामिल अधिकांश देशों को अल्प-विकसित देश' का दर्जा मिला था। इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और अधिक विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी।

2. इसी दृष्टिकोण से नव आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से सम्बन्धित सम्मेलन में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें कहा गया था कि सुधारों से:

  1. अल्प-विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियन्त्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं।
  2. अल्प-विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजारों तक होगी, वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमन्द होगा।
  3. पश्चिमी देशों से मँगाई जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी। 
  4. अल्प-विकसित देशों की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में भूमिका बढ़ेगी। 

3. गुटनिरपेक्षता की प्रकृति धीरे-धीरे बदली और इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा।

4. बेलग्रेड में हुए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं थे, 1970 के दशक के मध्य तक आर्थिक मुद्दे प्रमुख हो उठे। इसके कारण गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आर्थिक दबाव समूह बन गया। उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि तीसरी दुनिया के देशों को आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से शक्तिशाली बनाने में तथा सभी नव स्वतन्त्र देशों को अपनी-अपनी विदेश नीति निर्धारित करने में इस गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने विशेष भूमिका को निभाया।

प्रश्न 10. 
"गुटनिरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है।" आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
गुटनिरपेक्षता की नीति शीतयुद्ध के सन्दर्भ में विकसित हुई थी। शीतयुद्ध के अन्त और सोवियत संघ के विघटन से एक अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन और भारत की विदेश नीति की मूल भावना के रूप में गुटनिरपेक्षता की प्रासंगिकता तथा प्रभावकारिता में थोड़ी कमी आयी है, लेकिन अभी भी इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का महत्त्व गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान में प्रासंगिकता-गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान प्रासंगिकता को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

1. गुटनिरपेक्षता इस बात की पहचान पर टिकी है कि उपनिवेश की स्थिति से स्वतन्त्र हुए देशों के बीच ऐतिहासिक जुड़ाव है और यदि ये देश साथ आ जाएँ तो एक सशक्त ताकत बन सकते हैं।

2. गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण किसी भी गरीब और छोटे देश को किसी महाशक्ति का अनुसरण करने की जरूरत नहीं है।

3. कोई भी देश अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति अपना सकता है। 

4. गुटनिरपेक्ष देशों को आज भी परस्पर सहयोग की आवश्यकता है, इसके लिए इस मंच की उन्हें अति आवश्यकता है। 

5. संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव से मुक्त रहने के लिए इन निर्गुट राष्ट्रों का आपसी सहयोग और भी अधिक आवश्यक है।

6. यह नीति आज भी गुटनिरपेक्ष देशों को सुरक्षा प्रदान करती है, साथ ही विश्व में नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता पर बल देती है।

7.वास्तव में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन मौजूद असमानताओं से निपटने के लिए एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतन्त्र-धर्मी बनाने के संकल्प पर भी टिका है। अतः शीतयुद्ध के बाद भी इसके सदस्य देशों की लगातार बढ़ती संख्या इसकी वर्तमान समय में प्रासंगिकता को दर्शाती है।

Prasanna
Last Updated on Jan. 11, 2024, 9:29 a.m.
Published Jan. 10, 2024