Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 जल संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी प्रश्नोत्तर:
(पृष्ठ सं. 63)
प्रश्न 1.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहन सिंचाई से मृदा में लवणता बढ़ रही है और भौमजल सिंचाई में कमी आ रही है। इसके कृषि पर संभावित प्रभाव की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उक्त राज्यों में गहन सिंचाई से मृदा लवणता में वृद्धि तथा भौमजल सिंचाई में कमी के कारण कृषि पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।
(a) उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता में कमी आ जाने से सिंचाई के लिये आवश्यक जल की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो सकेगी जिससे कृषि उत्पादन में गिरावट आने की सम्भावना है।
(b) मृदा में लवणता बढ़ने से उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जिससे प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में कमी होगी। इन क्षेत्रों में सेम की समस्या उत्पन्न हो रही है।
प्रश्न 2.
गंगा और इसकी सहायक नदियों पर बसे हुए प्रमुख नगरों और उनके मुख्य उद्योगों को ढूंढ़िए और बताइए।
उत्तर:
गंगा और इसकी सहायक नदियों पर बसे प्रमुख नगर तथा उनके मुख्य उद्योगों का विवरण निम्नवत् है।
मुख्य नगर |
कार्यरत प्रमुख उद्योग |
दिल्ली |
वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इन्जीनियरिंग व रसायन |
मथुरा |
तेल शोधन |
आगरा |
चमड़ा, सूती वस्त्र तथा फाउन्ड्री |
कानपुर |
चमड़ा, सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र तथा उर्वरक |
वाराणसी |
सूती वस्त्र, रेशमी वस्त्र |
दुर्गापुर |
लौह - इस्पात |
जमशेदपुर |
लौह - इस्पात |
हावड़ा |
जूट |
कोलकाता |
जूट, सूती वस्त्र, कागज, पेट्रो-रसायन |
(पृष्ठ सं. 66)
प्रश्न 3.
अपने घर में विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग में लाए गए जल की मात्रा को देखिए और वे तरीके बताइए जिनसे विभिन्न कार्यों के लिए इस जल का पुनः उपयोग और पुनः चक्रण किया का सकता हो।
उत्तर:
हमारे घर में अलग-अलग कार्यों हेतु जल का प्रयोग किया जाता है। यथा-स्नानागार में, बर्तन साफ करने हेतु, कपड़े धोने हेतु, भोजन बनाने हेतु। इन सभी कार्यों में किसी न किसी प्रकार जल अतिरिक्त बचता है अर्थात् काम आने के बाद शेष रह जाता है। नहाने, कपड़े धोने, बर्तन साफ करने के बाद बचे पानी को घर के बगीचे में काम लिया जा सकता है या फिर उसे जल पुनर्भरण टैंक में एकत्रित कर भूमिगत जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
(पृष्ठ सं. 69)
प्रश्न 4.
राष्ट्रीय जल नीति 2012 तथा गंगा संरक्षण के बारे में वेबसाइट से सूचनाएँ एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
भारत की पहली जल नीति 1987 में आई जिसे 2002 व 2012 में संशोधित किया गया था। राष्ट्रीय जल नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरन्तर विकास का आधार माना गया। इसमें एकीकृत जल संसाधनों के नियोजन, विकास और प्रबंधन की इकाई के रूप में नदी बेसिन/उप बेसिन को शामिल किया गया। इस नीति के तहत नदी के एक भाग को पारिस्थिति की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संरक्षित किये जाने का प्रावधान है।
इसी में गंगा नदी में वर्ष भर जल स्तर बनाये रखने के लिए एक स्थान पर पानी जमा करने से बचना चाहिए जिससे नागरिकों को स्वच्छता और स्वास्थ्य की देखभाल लिए पीने योग्य पानी की आपूर्ति हो सके। राष्ट्रीय जल नीति में जल के अंतर्बेसिन स्थानांतरण का प्रयोग केवल उत्पादन बढ़ाने के लिए ही नहीं बल्कि मानवीय जरूरतों को पूरा करने तथा सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए भी आवश्यक है।
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए
(i) निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है?
(क) अजैव संसाधन
(ख) अनवीकरणीय संसाधन
(ग) जैव संसाधन
(घ) चक्रीय संसाधन।
उत्तर:
(घ) चक्रीय संसाधन।
(ii) निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उपयोग (% में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है?
(क) तमिलनाडु
(ख) कर्नाटक
(ग) आन्ध्र प्रदेश
(घ) केरल।
उत्तर:
(क) तमिलनाडु
(iii) देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है?
(क) सिंचाई
(ख) उद्योग
(ग) घरेलू उपयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) सिंचाई
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) यह कहा जाता है कि भारत में जल संसाधनों में तेजी से कमी आ रही है। जल संसाधनों की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में जल की कमी के लिए उत्तरदायी कारकों में निम्नलिखित कारक महत्त्वपूर्ण हैं।
(ii) पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
पंजाब तथा हरियाणा राज्यों के कुल बोये गये क्षेत्रफल का अधिकांश भाग सिंचित है, जबकि तमिलनाडु राज्य में भी यही स्थिति है। उक्त राज्यों में गेहूँ तथा चावल की कृषि के लिए पर्याप्त सिंचाई उपलब्ध करायी जाती है। इन राज्यों में हरित-क्रान्ति के प्रभाव के कारण भी भौमजल का अधिक उपयोग किया जा रहा है। अत: सिंचाई उक्त राज्यों में भौमजल के सर्वाधिक विकास के लिए उत्तरदायी कारक है।
(iii) देश के कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की सम्भावना क्यों है?
उत्तर:
देश के कुल उपयोग किये गये जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की सम्भावना इसलिए है क्योंकि भविष्य में भारत में हो रहे आर्थिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए देश में औद्योगिक तथा घरेलू सेक्टरों में जल का उपयोग बढ़ने की सम्भावना है। जो कृषि पर लोगों की घटती निर्भरता का सूचक भी है।
(iv) लोगों पर संदूषित जल/गन्दे पानी के उपभोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं?
उत्तर:
संदूषित जल/गन्दे पानी के उपभोग से मानवीय स्वास्थ्य पर अनेक प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं। प्रदूषित जलजनित बीमारियों में हैजा, अतिसार, हेपेटाइटिस तथा आँतों में कृमि प्रमुख रूप से सम्मिलित हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी कारक बताइए।
उत्तर:
भारत में जल संसाधनों की उपलब्धता-भारत में साल भर की वर्षा से प्राप्त जल की कुल मात्रा 4000 घन किमी. है, जबकि धरातलीय जल तथा पुनः पूर्तियोग्य भूमिगत जल से देश में 1869 घन किमी. जल की उपलब्धता है। इसमें से केवल 1122 घन किमी. जल (60 प्रतिशत) का उपयोग मानव लाभदायक कार्यों में कर सकता है। धरातलीय जल संसाधनों की उपलब्धता-धरातलीय जल संसाधनों की उपलब्धता का प्रमुख स्रोत नदियाँ हैं।
भारत में सभी नदी बेसिनों में औसत अनुमानित वार्षिक प्रवाह 1869 घन किमी. है जिसमें से केवल 690 घन किमी. (32%) भाग का उपयोग ही वर्तमान में मानव द्वारा किया जा सकता है। गंगा, ब्रह्मपुत्र तथा सिंधु नदियाँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग एक-तिहाई भाग पर विस्तृत हैं जिनमें कुल धरातलीय जल संसाधनों का 60 प्रतिशत जल मिलता है।
भौम जल संसाधन - देश में कुल पुनः पूर्तियोग्य भौमजल की मात्रा लगभग 432 घन किमी. है। जिसका लगभग प्रतिशत भाग गंगा तथा ब्रह्मपुत्र बेसिनों में मिलता है। भारत के उत्तरी-पश्चिमी प्रदेशों तथा दक्षिणी भारत के नदी बेसिनों में भौमजल का उपयोग अपेक्षाकृत अधिक किया जाता है।
भारत में जलीय संसाधनों के स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी कारक:
1. वार्षिक वर्षा की मात्रा भारत में प्राप्त होने वाली वार्षिक वर्षा भारत के जल ग्रहण क्षेत्र के आकार के साथ-साथ इस क्षेत्र में धरातलीय जल तथा भौमजल की मात्रा को प्रमुख रूप से प्रभावित करती है। अतः वर्षा की क्षेत्रीय भिन्नता जलीय संसाधनों के स्थानिक वितरण को प्रभावित करने वाला सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक है।
2. आर्थिक विकास का स्तर: भारतीय क्षेत्र या प्रदेश के आर्थिक विकास का स्तर प्रत्यक्ष रूप में धरातलीय जल संसाधनों तथा भौमजल संसाधनों के उपभोग के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः आर्थिक विकास के स्तरों की भिन्नता जलीय संसाधनों के स्थानिक वितरण को प्रभावित करती है।
3. धरातलीय स्वरूप भारतीय भूभाग का धरातलीय स्वरूप भी जलीय संसाधनों के उपभोग को प्रभावित करता है। जहाँ समतल मैदानी भागों में जलीय संसाधनों का उपभोग प्रभावी ढंग से किया जाता है, जबकि असमतल पठारी व पर्वतीय भागों में जलीय संसाधनों के उपभोग के सीमित अवसर ही उपलब्ध हैं।
(ii) जल - संसाधनों का ह्रास सामाजिक द्वन्द्वों और विवादों को जन्म देता है। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
भारत की तेजी से बढ़ती जा रही जनसंख्या के कारण एक ओर ज़ल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि तथा घरेलू निस्तारणों के मिश्रण से प्रदूषित होता जा रहा है। जल-संसाधनों का इस तरह सतत् रूप से ह्रास होता जा रहा है तथा उनकी उपलब्धता सीमित होती जा रही है जिसके कारण जल संसाधनों के आवंटन तथा नियन्त्रण को लेकर अनेक सामाजिक द्वन्द्वों तथा विवादों को बल मिला है। भारत के महानगरीय क्षेत्रों तथा सीमित जल संसाधन उपलब्धता वाले क्षेत्रों में जल की आपूर्ति को लेकर लड़ाई-झगड़े होना आज एक सामान्य बात हो गई है। दूसरी ओर इससे अनेक अन्तर्राष्ट्रीय व अन्तर्राज्यीय जल विवाद भी उत्पन्न हो गये हैं जिनमें निम्न जल विवाद उल्लेखनीय हैं।
वर्तमान में भारत का प्रत्येक राज्य अपने यहाँ प्रवाहित नदी के जल पर अपना अधिकार समझता है। वह यह समझने को तैयार नहीं कि नदियों का जल एक राष्ट्रीय सम्पदा है। राज्यों के इसी रवैये के कारण भारत में अधिकांश अन्तर्राज्यीय जल विवाद हल नहीं हो पा रहे हैं।
(iii) जल संभर प्रबन्धन क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत् पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है?
उत्तर:
जल संभर प्रबन्धन से आशय-"प्रमुख रूप से धरातलीय और भौमजल संसाधनों का कुशल प्रबन्धन जल संभर प्रबन्धन कहलाता है।" विस्तृत अर्थ में जल संभर प्रबन्धन के अन्तर्गत सभी प्राकृतिक (जैसे-भूमि, जल, पौधे तथा प्राणियों) और जल संभर सहित मानवीय संसाधनों के संरक्षण, पुनरुत्पादन और विवेकपूर्ण उपयोग को सम्मिलित किया जाता है। जल संभर प्रबन्धन का प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा समाज के मध्य सन्तुलन स्थापित करना है।
सतत् पोषणीय विकास में जल संभर प्रबन्धन की भूमिका: सतत् पोषणीय विकास की संकल्पना की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग की दर प्राकृतिक संसाधनों के नवीनीकरण की दर से अधिक नहीं होनी चाहिए, जबकि जल संभर प्रबन्धन का प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों तथा समाज के मध्य सन्तुलन स्थापित करना है। स्पष्ट है कि जल संभर विकास तथा सतत् पोषणीय विकास के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध है।
भारत के कुछ क्षेत्रों में राज्य तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा अनेक जल संभर विकास व प्रबन्धन कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं। इनमें से कुछ कार्यक्रम गैर-सरकारी संगठनों द्वारा भी चलाये जा रहे हैं। हरियाली, नीरू-मीरू तथा अरवारी पानी संसद भारत के कुछ उल्लेखनीय जल संभर कार्यक्रम हैं जो स्थानीय लोगों के सहयोग से सफलतापूर्वक संचालित किये जा रहे हैं।
भारत के कुछ क्षेत्रों में संचालित की जा रही विभिन्न जल संभर परियोजनाओं ने सम्बन्धित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था तथा पर्यावरण का कायाकल्प करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। लेकिन इस क्षेत्र में देश में बहुत कुछ करना अभी शेष है। देश की आम जनता के बीच जल संभर विकास व प्रबन्धन के लाभों का प्रचार-प्रसार कर जन जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है। वस्तुतः सतत् पोषणीय विकास में जल संभर प्रबन्धन उपागम एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।