RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

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RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

→ प्राथमिक सर्वेक्षण के द्वारा सूचनाओं को जानने के लिए सूचनाओं को स्थानिक स्तर पर एकत्रित किया जाता है। प्राथमिक सर्वेक्षण को क्षेत्रीय सर्वेक्षण भी कहा जाता है। ये भौगोलिक अन्वेषण के प्रमुख घटक होते हैं। सर्वेक्षण की यह विधि पृथ्वी को मानव के आवास के रूप में समझने के लिए आधारभूत कार्यविधि है जो पर्यवेक्षण, रेखाचित्रण, मापन और साक्षात्कार आदि के द्वारा सम्पन्न होती है। 

→ क्षेत्रीय सर्वेक्षण क्यों आवश्यक है ?
अन्य विज्ञानों की तरह भूगोल भी एक क्षेत्र-वर्णनी विज्ञान है इसलिए यह आवश्यक होता है कि सुनियोजित क्षेत्रीय सर्वेक्षण भौगोलिक अन्वेषण को सम्पूरकता प्रदान करें। ये सर्वेक्षण स्थानीय स्तर पर स्थानिक वितरण के प्रारूप, उनके साहचर्य और सम्बन्धों के बारे में हमारी समझ को बढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय सर्वेक्षण द्वितीयक स्रोतों द्वारा अनुपलब्ध स्थानीय स्तर की सूचनाओं के एकत्रण में भी सहायक होते हैं।

RBSE Class 12 Geography Practical Notes chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण 

→ क्षेत्रीय सर्वेक्षण की कार्य विधि
क्षेत्रीय सर्वेक्षण की कार्य विधि कार्यात्मक दृष्टि से निम्नलिखित अन्तर्सम्बन्धित चरणों में पूरी होती है
(1) समस्या को परिभाषित करना-अध्ययन की जाने वाली समस्याओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए। इस उद्देश्य की प्राप्ति समस्या की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए कथनों से की जा सकती है।

(2) उद्देश्य-सर्वेक्षण को अत्यधिक विशिष्टीकृत करने के लिए उसके उद्देश्यों को सूचीबद्ध किया जाता है।

(3) प्रयोजन-संदर्भित भौगोलिक क्षेत्र, अन्वेषण की समय-सारणी और सर्वेक्षण के प्रयोजन को सीमांकित करने की आवश्यकता होती है। अध्ययन के पूर्व परिभाषित उद्देश्यों तथा विश्लेषण, अनुमान एवं उनकी अनुप्रयोज्यता की सीमाओं के संदर्भ में इस प्रकार का बहुआयामी सीमांकन आवश्यक है।

(4) विधियाँ एवं तकनीकें-चयनित समस्या के विषय में सूचनाएँ कई विधियों से प्राप्त होती हैं। इनमें मानचित्रों एवं अन्य आँकड़ों सहित द्वितीयक सूचनाएँ, क्षेत्रीय पर्यवेक्षण और लोगों के साक्षात्कार से प्राप्त आँकड़ा उत्पाद सम्मिलित हैं
(i) अभिलिखित एवं प्रकाशित आँकड़े-ये आँकड़े समस्या के विषय में आधारभूत सूचनाएँ प्रदान करते हैं। इन्हें विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी अभिकरणों और संगठनों द्वारा एकत्रित तथा प्रकाशित किया जाता है। सर्वेक्षण का प्रारूप तैयार करने हेतु भू-कर मानचित्र एवं स्थलाकृतिक पत्रक आँकड़े आधार प्रदान करते हैं। ग्राम पंचायतों या राजस्व अधिकारियों के पास उपलब्ध सरकारी अभिलेखों का उपयोग करके सर्वेक्षण क्षेत्र के परिवारों, लोगों, भू-सम्पत्तियों आदि की सूची बनाई जा सकती है। इसी तरह भू-स्वरूप, जल प्रवाह, भूमि उपयोग, वनस्पति, बस्तियों, आवागमन व संचार मार्गों, सिंचाई सुविधाओं आदि जैसे भौतिक व सांस्कृतिक भू-दूश्यों से सम्बन्धित आवश्यक लक्षणों को स्थलाकृतिक मानचित्रों से अनुरेखित किया जा सकता है।

(ii) क्षेत्रीय पर्यवेक्षण-क्षेत्रीय सर्वेक्षण से प्रभावित अन्वेषक द्वारा सूचनाएँ प्राप्त करने की क्षमता भू-दृश्य के अवबोध पर निर्भर करती है। क्षेत्रीय सर्वेक्षण का मूल उद्देश्य पर्यवेक्षण ही है जिससे भौगोलिक घटनाओं और संबंधों को आसानी से समझा जा सके। पर्यवेक्षण की परिपूर्णता के लिए सूचनाएँ प्राप्त करने की कुछ तकनीकें बहुत उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं; जैसे-रूपरेखा चित्रण व फोटोग्राफी। 

(iii) मापन-कुछ क्षेत्रीय सर्वेक्षणों में उसी स्थान पर लक्ष्यों अथवा घटनाओं के मापन की आवश्यकता होती है। इस कार्य में उपयुक्त उपकरणों का उपयोग किया जाता है जो अन्वेषक के लक्ष्यों की विशेषताओं के परिशुद्ध मापन में सहायक होते हैं। जैसे-फीता, मृदा के भार को मापने के लिए तौलने की मशीन, अम्लीयता या क्षारीयता के मापन के लिए pH मीटर की कागज पट्टी आदि।

(iv) साक्षात्कार-सामाजिक मुद्दों से जुड़े क्षेत्रीय सर्वेक्षणों में सूचनाओं का एकत्रण व्यक्तिगत साक्षात्कार द्वारा किया जाता है। व्यक्तिगत साक्षात्कार के माध्यम से सूचनाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया विषयक अवबोध सम्बन्धी योग्यता साक्षात्कार में सम्मिलित लोगों, अभिव्यक्ति के कौशल और सामाजिकता की अभिरुचि आदि से प्रभावित होती है। 

साक्षात्कार से सम्बन्धित कुछ प्रमुख बातें अनलिखित हैं
(क) विधियाँ-लोगों का साक्षात्कार अनेक विधियों से किया जाता है; जैसे-प्रश्नावली एवं अनुसूची अथवा सामाजिक व संसाधन मानचित्रण एवं वार्तालाप के द्वारा।
(ख) आधारभूत सूचनाएँ-साक्षात्कार का आयोजन करते समय अथवा आँकड़ों के एकत्रण के लिए आधारभूत सूचनाओं; जैसे-उत्तरदाता की स्थिति, सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि आदि को एकत्र किया जाता है।
(ग) व्याप्ति-सर्वेक्षण करते समय अन्वेषक को निर्णय करना होता है कि सर्वेक्षण सम्पूर्ण जनसंख्या के लिए अथवा समग्र के लिए आयोजित किया जाना है।
(घ) अध्ययन की इकाइयाँ-इनमें परिवार, भूमि का आकार, व्यापारिक इकाइयों जैसे प्राथमिक इकाइयाँ सम्मिलित की जाती हैं।
(ङ) प्रतिदर्श योजना-इसमें सर्वेक्षण के उद्देश्यों, जनसांख्यिकी भिन्नताओं, समय व व्यय की सीमाओं आदि को ध्यान में रखा जाता है।
(च) सावधानियाँ-क्षेत्र में साक्षात्कार या सहभागी मूल्यांकन विधियों आदि को पूर्ण निष्ठा व सावधानी से सम्पन्न करना चाहिए। साक्षात्कार के समय कोई अन्य व्यक्ति अपनी उपस्थिति से अथवा बीच-बीच में बोलकर हस्तक्षेप न करे, इसका ध्यान रखना चाहिए।

(5) संकलन एवं परिकलन-अर्थपूर्ण विवेचन एवं विश्लेषण द्वारा सर्वेक्षण के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्षेत्रीय कार्य के दौरान एकत्रित विभिन्न सूचनाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिए।

(6) मानचित्रकारी अनुप्रयोग-विभिन्न प्रकार की घटनाओं का दृश्य प्रभाव ज्ञात करने के लिए आरेख व आलेख अत्यन्त प्रभावी उपकरण होते हैं। सहायक सामग्री द्वारा वर्णन एवं विश्लेषण की पुष्टि होनी चाहिए।

(7) प्रस्तुतीकरण-प्रस्तुतीकरण उन आँकड़ों के पोषक तथ्यों के अवकलन पर आधारित होता है जो सूचियों, सारणियों, सांख्यिकीय अनुमानों व मानचित्रों के रूप में किया जाता है। अन्त में अन्वेषण का सारांश अवश्य देना चाहिए। 

→ क्षेत्रीय सर्वेक्षण : एक चयनित अध्ययन
स्थानीय स्तरों पर स्वरूपों, प्रक्रियाओं एवं घटनाओं को समझने में क्षेत्रीय सर्वेक्षण का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। चयनित अध्ययन के लिए विषय का चयन उस क्षेत्र की प्रकृति व विशेषताओं पर निर्भर करता है जहाँ क्षेत्रीय सर्वेक्षण आयोजित किया जाता है। उदाहरण के लिए कम वर्षा तथा कृषिगत निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्रों में सूखा अध्ययन का मुख्य विषय है। पाठ्यक्रम में निम्नलिखित बिन्दुओं को सर्वेक्षण हेतु सम्मिलित किया गया है

  • भूमिगत जल की स्थिति में परिवर्तन,
  • पर्यावरण प्रदूषण,
  • मृदा क्षरण,
  • गरीबी,
  • सूखा व बाढ़,
  • ऊर्जा सम्बन्धी अध्ययन,
  • भूमि उपयोग सर्वेक्षण तथा उसमें परिवर्तन की पहचान। यहाँ पर हम सूखे व बाढ़ का ही चयनित अध्ययन करेंगे।

RBSE Class 12 Geography Practical Notes chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

→ विद्यार्थियों के लिए निर्देश:
विद्यार्थियों को कक्षा अध्यापक के परामर्श से क्षेत्रीय सर्वेक्षण के लिए ब्लू-प्रिन्ट (नील पत्र) तैयार करना चाहिए। इसमें सर्वेक्षण किये जाने वाले क्षेत्र का मानचित्र, सर्वेक्षण के उद्देश्य का विशिष्ट अवबोध तथा प्रश्नावली सम्मिलित की जानी चाहिए। अध्यापक द्वारा विद्यार्थियों को निम्नलिखित निर्देश देना चाहिए

  • क्षेत्र के लोगों के साथ शिष्ट व्यवहार करें।
  • जिन लोगों से मिलें उनसे मित्रवत् व्यवहार स्थापित करें।
  • बोधगम्य एवं सरल भाषा में प्रश्न करें।
  • जिन लोगों से आप मिलना चाहते हैं, उनसे ऐसे प्रश्न नहीं पूछे जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस लगे।
  • क्षेत्र के निवासियों से किसी प्रकार का वायदा नहीं करें।
  • प्रश्नों के उत्तर को तथा अन्य ब्यौरे को अभिलेखित करें।

→ गरीबी का क्षेत्रीय सर्वेक्षण : विस्तार, निर्धारक व परिणाम
समस्या:
गरीबी से आशय किसी भी दिए गए समय पर आय, सम्पत्ति, उपभोग या पोषण के संदर्भ में लोगों की अवस्था से है। सामान्यतः इसका अवबोध एवं सम्प्रेषण गरीबी रेखा के संदर्भ में किया जाता है, जो एक ऐसी क्रान्तिक सीमा की अवस्था है जिससे नीचे के लोगों को गरीब वर्ग में रखा जाता है। गरीबी के पहलू का असमानता से निकट का सम्बन्ध है जो कि इसका उत्पत्ति कारक भी है। इस प्रकार गरीबी न केवल एक निरपेक्ष बल्कि सापेक्षिक अवस्था भी है। एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में इसमें भिन्नताएँ भी पाई जाती हैं।

उद्देश्य:
निम्नांकित उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए गरीबी के विस्तार, निर्धारक एवं परिणाम का अध्ययन किया जा सकता

  • गरीबी रेखा के मापन के लिए समुचित मानदण्डों की पहचान करना।
  • आय, सम्पत्ति, व्यय, पोषण, संसाधनों तथा सेवाओं में अभिगम्यता के आधार पर लोगों के कल्याण के स्तर का मूल्यांकन करना।
  • गाँव और वहाँ के निवासियों की ऐतिहासिक तथा संरचनात्मक स्थितियों के संदर्भ में गरीबी की अवस्था की व्याख्या करना।
  • गरीबी के निहितार्थों का परीक्षण करना। 

→ विधियाँ एवं तकनीकें : द्वितीयक सूचनाएँ
क्षेत्र अध्ययन के लिए जाने से पहले गरीबी तथा क्षेत्र से जुड़े सामान्य तथा चयनित गाँवों से जुड़े साहित्य का अध्ययन कर लेना चाहिए। आर्थिक विकास, सामाजिक परिवर्तन तथा आर्थिक सर्वेक्षण से संबंधित प्रकाशित लेखों के माध्यम से गरीबी से जुड़े अनेक पहलुओं; जैसे-अर्थ, मापन, मानदण्डों, कारणों आदि की संकल्पनाओं को समझा जा सकता है।

मानचित्र:
गाँव एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्र की स्थलाकृति, अपवाह, जलाशय, बसाव, आवागमन व संचार के साधन व अन्य स्थलाकृतिक स्वरूपों जैसे-विस्तृत विवरण प्रदर्शक भिन्न 1 : 50,000 या 1 : 25,000 मापक वाले स्थलाकृतिक पत्रकों से अनुरेखित किया जाता है। ऐसे ही प्रदर्शक भिन्न 1 : 4,000 मापक वाले गाँव के भू-मानचित्रों तथा राजस्व अभिलेखों को राजस्व अधिकारियों से प्राप्त किए जा सकते हैं। ये मानचित्र क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य में भू-स्वामित्व के असमान वितरण की झलक देते हैं।

पर्यवेक्षण:
क्षेत्रीय सर्वेक्षण के आधारभूत उपकरण के रूप में गरीबी के दृश्य विधान का मानस दर्शन गहन पर्यवेक्षण के द्वारा किया जाता है। गरीबी से ग्रस्त लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली सामग्री की मात्रा व गुणवत्ता, वस्त्रों व आवासों की स्थिति, कुपोषण, भूख, बीमारी आदि सामान्य गतिविधियों को समझा जा सकता है। विभिन्न विचारों के प्रमाणीकरण के लिए फोटोग्राफी-रूपरेखा चित्रण, दृश्य-श्रव्य आलेख आदि की सहायता से किए गए पर्यवेक्षण गैर-सांख्यिकीय सूचनाओं के बहुमूल्य स्रोत होते हैं।

मापन:
कुछ परिस्थितियों में वास्तविक मापन की आवश्यकता होती है; जैसे-प्रतिदिन उपभोग की जाने वाली भोज्य सामग्री की मात्रा, लम्बाई व भार के परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य की स्थिति, पेयजल की मात्रा आदि।
व्यक्तिगत साक्षात्कार-गरीबी के अधिकांश माप परिवारों की सामूहिक परिस्थितियों पर आधारित होते हैं। अत: साक्षात्कार द्वारा आँकड़ों का संग्रह पारिवारिक स्तर पर होता है। परिवार से संबंधित सूचनाएँ परिवार के मुखिया या ज्ञानी सदस्य से साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त होती हैं।

RBSE Class 12 Geography Practical Notes chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण

सर्वेक्षण योजना:
कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या के आधार पर यदि सर्वेक्षण किए जाने वाले गाँव के सभी परिवारों का सर्वेक्षण प्रबन्धनीय हो तो समग्र का सर्वेक्षण करना चाहिए। सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए स्तरित प्रतिदर्श सर्वेक्षण उपयुक्त रहेगा। परिवारों का स्तरीकरण भू-स्वामित्व वर्गों, सामाजिक वर्गों, अधिवासों को जाल अथवा संकेन्द्रीय वृत्तों द्वारा विभाजित करके किया जा सकता है। 

निम्नलिखित तालिका प्रतिदर्श के लक्षणों सहित परिवारों की सूची प्रदर्शित करती है
RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण 1
→ संकलन एवं संगठन
आँकड़ों की प्रविष्टि तथा सारणीयन: एकत्रित सूचनाओं का क्षेत्रीय सर्वेक्षण समाप्त होने के पश्चात् संकलन एवं अग्रिम संगठन तथा विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है। यह कार्य विस्तृत पत्रक के स्वरूप में सुविधापूर्वक निष्पादित किया जा सकता है।

→ सत्यापन एवं संगतता की जाँच: आँकड़ों की शुद्धता को सुनिश्चित करने के लिए उनकी प्रविष्टियाँ करने के पश्चात् कुछ प्रविष्टियों की यादृच्छिक जाँच करना आवश्यक होता है।

→ सूचकों की संगणना:
गरीबी की स्थिति का विश्लेषण करने के पूर्व उपलब्ध प्रचलित मूल्यों का उपयोग करते हुए सूचकों का संगठन एवं अनुपात की गणना करना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसमें अग्रिम विश्लेषण के लिए पारिवारिक स्तर पर सूचकों के समूह की संगणना की जाती है।

→ दृश्य प्रस्तुति:
प्रमुख विशेषताओं के वितरण प्रारूप को दिखाने के लिए संक्षिप्त तालिकाओं, आरेखों एवं रेखाचित्रों का उपयोग किया जा सकता है। गाँव में गरीबी के वितरण प्रारूप को दर्शाने में भी इनका उपयोग किया जा सकता है। भू-स्वामित्व अथवा जाति आधारित वर्गीकरणों सहित पारिवारिक सामाजिक वर्गों के आधार पर तालिकाएँ बनाई जा सकती हैं। गरीबी की रेखा से ऊपर व नीचे के परिवारों को लारेंज वक्र द्वारा दिखाया जा सकता है। इसे गाँव के परिवारों की सम्पत्तियों, आय तथा व्यय दर्शाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।

→ विषयक मानचित्र:
गाँव तथा अधिवासों की राजस्व सीमाओं में कृषिगत भूमि के साथ-साथ अकृषिगत भूमि का क्षेत्रीय वितरण क्षेत्र वर्णिनी मानचित्र के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। इस मानचित्र की सहायता से प्राकृतिक संसाधनों पर लोगों का नियंत्रण दर्शाया जाता है।

→ सांख्यिकीय विश्लेषण:
परिवार स्तरीय संकेतकों से कुछ तात्पर्य निकालने के लिए कई सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। जैसे-साधारण समान्तर माध्य औसत, परिस्थितियों को इंगित करता है, जबकि विचरण गुणांक विभिन्न पारिवारिक वर्गों में सामाजिक-आर्थिक कल्याण में विसंगति के विस्तार को दिखाता है। दो चरों के मध्य संबंध की गहनता का मापन सह-संबंध गुणांक के आधार पर कर सकते हैं।

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→ प्रतिवेदन लेखन:
छात्र अपने अध्यापक द्वारा निर्देशित क्रमबद्ध तरीके से सभी विश्लेषित सामग्री का उपयोग करते हुए व्यक्तिवार या वर्गवार प्रतिवेदन प्रस्तुत करेंगे। इसमें उपयुक्त मानचित्रों, आरेखों, आलेखों, फोटोग्राफ और रेखाचित्र का भी प्रयोग किया जाता है। कथनों की पुष्टि के लिए यथोचित तथ्यों की सूची तथा पूर्व रचनाओं के संदर्भ भी दिए जाते हैं।

→ सूखे का क्षेत्रीय अध्ययन : बेलगाँव जिला (कर्नाटक) का एक अध्ययन:
किसी भी क्षेत्र में सूखा तभी पड़ता है जब लगातार कई महीनों अथवा वर्षों तक धरातल से जल का ह्रास संग्रहण से अधिक होता है। मरुस्थल के कुछ भाग में वर्षा लगभग कभी नहीं होती। सूखा लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है। सूखे की विशिष्ट परिभाषा देना कठिन है लेकिन गुणात्मक रूप से आर्द्रता की लम्बी अवधि तक तीक्ष्ण कमी को कृषिगत सूखे के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
"सूखा जलवायुगत शुष्कता की ऐसी भीषण परिस्थिति है जो मृदा की नमी व जल को पादपों, पशुओं व मानव जीवन के लिए न्यूनतम आवश्यक स्तर से भी कम कर दे।"
RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 5 क्षेत्रीय सर्वेक्षण 2
सामान्य रूप से उष्ण व शुष्क पवनें सूखे के लिए जिम्मेदार होती हैं। सूखे के बाद अचानक हानिकारक बाढ़ भी आ सकती है। सूखे को मानवीय दुर्दशा के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। सामान्य रूप से सूखे का सम्बन्ध अर्द्ध-शुष्क परिस्थितियों से होता है, लेकिन यह उन क्षेत्रों में भी हो सकता है जहाँ वर्षा व नमी का पर्याप्त स्तर रहता है। व्यापक अर्थ में कृषि, पशुओं, उद्योगों अथवा मानव की सामान्य जलीय आवश्यकताओं में किसी भी कमी को सूखा कहा जाता है। इसका कारण जल आपूर्ति में कमी, जल का प्रदूषण, अपर्याप्त संग्रहण या परिवहन सुविधाएँ अथवा असाधारण माँग आदि में से कोई भी हो सकता है।

सूखे का प्रभाव, उसकी भीषणता, अवधि तथा प्रभावित क्षेत्र के विस्तार पर निर्भर करता है। इसका प्रभाव सामाजिक व आर्थिक विकास के स्तर पर भी निर्भर करता है। जो समाज विकसित तथा आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं, वे सूखे के साथ समायोजन कर लेते हैं। गरीब और पिछड़े लोग जो एक ही फसल और पशु चारण अर्थव्यवस्था पर निर्भर रहते हैं, सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
सूखे के सबसे खराब प्रभावों में धरातलीय जल व खाद्यान्नों में कमी प्रमुख है। फसल खराब होने से भूख व कुपोषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। सूखे के कारण भूख से मरने वालों की संख्या बढ़ जाती है तथा कृषकों द्वारा आत्महत्या की घटनाएँ भी घटित होती हैं।

→ उद्देश्य:
सूखे का मूल्यांकन करने एवं परिमाण जानने के लिए क्षेत्रीय सर्वेक्षण निम्नलिखित उद्देश्य से किया जाता है
(क) ऐसे क्षेत्रों की पहचान करना जहाँ सूखे की पुनरावृत्ति होती है।
(ख) प्राकृतिक आपदा के रूप में सूखे को अनुभव करना।
(ग) सूखा प्रभावित क्षेत्र के लोगों को सूखे से निपटने के लिए सुझाव देना।

→ उपकरण व तकनीकें : द्वितीयक सूचनाएँ:
सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सूखे के वर्षों के लिए वर्षा, फसलोत्पादन तथा जनसंख्या से संबंधित मानचित्र व आँकड़े निम्न सरकारी व अर्द्ध-सरकारी कार्यालयों से प्राप्त करने चाहिए

  • भारतीय दैनिक ऋतु मानचित्र/रिपोर्ट, भारतीय मौसम विभाग, पुणे।
  • भारतीय ऋतु कालदर्श, भारतीय मौसम विभाग, पुणे।
  • बेलगाँव जिला गजट, बेंगलुरु, 1987.
  • जनगणना रिपोर्ट, भारत सरकार।
  • जिला रिपोर्ट, कर्नाटक सरकार।
  • सांख्यिकीय सारांश, आर्थिक एवं सांख्यिकीय ब्यूरो कर्नाटक, बंगलुरु।

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→ मानचित्र:
सूखा प्रभावित क्षेत्रों के प्र०भि० 1 : 50,000 तथा वृहत् मापन मानचित्रों से नित्यवाही तथा अनित्यवाही नदियों, जलाशयों, बस्तियों, भूमि उपयोग एवं अन्य भौतिक व सांस्कृतिक लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है।

→ प्रेक्षण:
प्रेक्षण का तात्पर्य है चारों ओर दृष्टिपात करना, लोगों से बाचतीत करना तथा जलाभाव, फसल खराब होने, चारे । की कमी, भूख से मृत्यु, किसानों द्वारा आत्महत्या आदि के सम्बन्ध में किए गए प्रेक्षण का अभिलेखन करना।
इसके पश्चात् अन्य आवश्यक कार्य जैसे फोटोचित्र व रेखाचित्र, मापन, साक्षात्कार, सारणीयन आदि किया जाता है।

→ प्रतिवेदन का प्रस्तुतीकरण:
इसमें क्षेत्रीय सर्वेक्षण की अवधि में एकत्रित सूचनाओं का अभिलेखन विस्तृत प्रतिवेदन के रूप में होता है जिसमें सूखे के कारण तथा परिमाण एवं अर्थव्यवस्था व लोगों के जीवन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव सम्मिलित होते हैं ।

Prasanna
Last Updated on Jan. 5, 2024, 9:17 a.m.
Published Jan. 5, 2024