RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

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RBSE Class 12 Geography Practical Notes Chapter 3 आंकड़ों का आलेखी निरूपण

→ मानचित्र अनेक आँकड़ों के एकत्रीकरण, संकलन व प्रक्रमण द्वारा तैयार किए जाते हैं। आलेख, आरेख और मानचित्र प्रदर्शित तथ्यों के बीच अर्थपूर्ण तुलनाओं को बनाने में हमारी क्षमताओं में वृद्धि करते हैं। 

→ आँकड़ों का प्रदर्शन
आँकड़ों द्वारा उन तथ्यों की विशेषताओं का वर्णन किया जाता है जो वे प्रदर्शित करते हैं। वर्तमान समय में अर्थशास्त्री, भूगोलविद् और संसाधन वैज्ञानिक आँकड़ों का अधिक प्रयोग करते हैं। तालिकाबद्ध (सारणी) के अतिरिक्त आँकड़े आलेखीय या आरेखीय रूप में भी प्रदर्शित किये जाते हैं। आलेख, आरेख, मानचित्र और चार्ट द्वारा आँकड़ों के रूपान्तरण को आँकड़ों का प्रदर्शन कहते हैं। आँकड़ों के प्रस्तुतीकरण का यह स्वरूप किसी भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत जनसंख्या वृद्धि, वितरण, लिंगानुपात, जनसंख्या घनत्व, आयु-लिंग संयोजन तथा व्यावसायिक संरचना आदि के प्रतिरूप को आसान बनाता है। 

→ आलेखों, आरेखों और मामचित्रों के चित्रांकन के सामान्य नियम
आलेखों, आरेखों और मानचित्रों के चित्रांकन के सामान्य नियम इस प्रकार हैं

  • उपयुक्त विधि का चयन-आँकड़े विभिन्न प्रकार की विषय-वस्तु जैसे-तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि एवं वितरण, विभिन्न उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और व्यापार आदि को दर्शाते हैं। उपयुक्त आलेख विधि द्वारा आँकड़ों को उपयुक्त ढंग से प्रदर्शित करने की आवश्यकता होती है। जैसे-तापमान और जनसंख्या वृद्धि को रेखाग्राफ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जनसंख्या, वर्षा तथा उत्पादन आदि को दण्ड आरेख द्वारा दर्शाना सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। इसी तरह जनसंख्या घनत्व वर्णमात्री मानचित्र द्वारा सर्वाधिक अनुकूल ढंग से प्रदर्शित किया जाता है।
  • उपयुक्त मापनी का चयन-मापनी का प्रयोग आरेख तथा मानचित्रों पर आँकड़ों की माप को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। मापनी का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए, जिससे मापनी न तो बहुत बड़ी हो और न ही बहुत छोटी हो।
  • अभिकल्पना-अभिकल्पना एक महत्त्वपूर्ण मानचित्र कला सम्बन्धी कार्य है। मानचित्र कला सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण अभिकल्पना घटक निम्नलिखित हैं

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→ शीर्षक
तैयार आरेख या मानचित्र का शीर्षक, क्षेत्र का नाम, प्रयुक्त आँकड़ों का सन्दर्भ वर्ष और आरेख के शीर्षक को दर्शाता है। साधारणतया शीर्षक, उपशीर्षक और संदर्भित वर्ष निचित्र अथवा आरेख में सबसे ऊपर व बीच में दर्शाया जाता है। 

→ निर्देशिका
निर्देशिका अथवा सूचिका मानचित्र या आरेख के लिए महत्त्वपूर्ण घटक है। इसके द्वारा मानचित्रों में उपयोग किये गये रंगों, छाया, प्रतीकों और चिह्नों की व्याख्या की जाती है। सामान्य रूप से एक निर्देशिका मानचित्र पत्रक पर नीचे बायीं या दायीं ओर दर्शाई जाती है। 

→ दिशा
मानचित्र पर उत्तर दिशा के प्रतीक को निर्दिष्ट स्थान पर अंकित करना चाहिए। आरेखों की रचनाआरेख और मानचित्र को निम्नांकित प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  • एक-आयामी आरेख जैसे-रेखाग्राफ, दण्डआरेख, आयु-लिंग पिरामिड आदि।
  • द्वि-आयामी आरेख जैसे-वृत्त आरेख और आयताकार आरेख।
  • त्रि-आयामी आरेख जैसे-घन और गोलाकार आरेख। 

कुछ सर्वाधिक प्रचलित आरेख व मानचित्र इस प्रकार हैं
रेखाग्राफ-रेखाग्राफ साधारणतया तापमान, वर्षा, जनसंख्या वृद्धि, जन्म-दर और मृत्यु-दर से सम्बन्धित आँकड़ों को प्रदर्शित करता है।

→ रेखाग्राफ की रचना
रेखाग्राफ की रचना करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है
(क) आँकड़ों को पूर्णांक में बदलकर सरल बना लेना चाहिए।
(ख) समय (वर्ष/महीना) क्रम चरों को x अक्ष-पर और आँकड़ों के मूल्य/मात्रा को y-अक्ष पर अंकित करें।
(ग) उपर्युक्त मापनी चुनकर y-अक्ष पर आँकड़ों को अंकित करें।
(घ) x-अक्ष पर मापनी के अनुसार वर्ष या महीना दर्शाएँ।
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उदाहरण: निम्नलिखित तालिका में दिये गये आँकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए एक रेखाग्राफ की रचना कीजिए।
तालिका-भारत में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर, 1901-2011 
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(ii) बहुरेखा चित्र-बहुरेखा चित्र एक रेखाग्राफ है जिसमें दो या दो से अधिक चरों की तत्काल तुलना के लिए रेखाओं की बराबर संख्या द्वारा दर्शाया जाता है; जैसे-विभिन्न फसलों, गेहूँ, चावल, दाल की उत्पादन वृद्धि दर अथवा विभिन्न राज्यों की जन्म-दर और मृत्यु-दर, जीवन संभाव्यता अथवा लिंग अनुपात आदि। इनको एक अलग रेखा प्रतिरूप; जैसे-सीधी रेखा (-), टूटी रेखा (- - - ), बिन्दु रेखा (.....) अथवा विभिन्न रंगों की रेखा का प्रयोग करके विभिन्न चरों के मानों को प्रदर्शित किया जा सकता है।

(iii) दण्ड आरेख-इसे स्तम्भ आरेख भी कहते हैं। दण्ड आरेख की रचना करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए
(क) सभी स्तम्भों अथवा दण्डों (खानों) की चौड़ाई बराबर होनी चाहिए।
(ख) सभी स्तम्भ बराबर दूरी पर स्थापित होने चाहिए।
(ग) सभी स्तम्भों को एक-दूसरे से अलग व आकर्षक बनाने के लिए रंगों अथवा प्रतिरूपों से छायांकित किया जा सकता है।

(iv) साधारण दण्ड आरेख-साधारण दण्ड आरेख की रचना तत्काल तुलना के लिए की जाती है। आँकड़ों को व्यवस्थित करके चढ़ते और उतरते हुए क्रम में रचना करना उपयुक्त माना जाता है। लेकिन समय क्रम के आँकड़े समय अन्तराल के अनुक्रम . में ही प्रदर्शित किये जाते हैं।

उदाहरण: थिरुवनन्तपुरम् के वर्षा के आँकड़ों को दिखाने के लिए साधारण दण्ड आरेख बनाइये।
तालिका-थिरुवनन्तपुरम की औसत मासिक वर्षा
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रचना: एक ग्राफ पेपर पर x और Y अक्ष खींचते हैं। 5 सेण्टीमीटर के अन्तराल पर Y-अक्ष पर सेमी. में वर्षा तथा X. अक्ष पर 12 महीनों को दर्शाते हैं। वर्षा के आँकड़ों को निम्नांकित साधारण दण्ड आरेख के माध्यम से दिखाया गया है
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चित्र-थिरुवनन्तपुरम की औसत मासिक वर्षा 

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(v) रेखा और दण्ड आरेख-रेखा और दण्डं आरेख अलग-अलग भी बनाये जा सकते हैं लेकिन एक-दूसरे की निकट विशेषताओं को जैसे-औसत मासिक तापमान और वर्षा से सम्बन्धित आँकड़ों को दर्शाने के लिए रेखाग्राफ और दण्ड आरेख को एक साथ भी बनाया जा सकता है। इसमें X-अक्ष पर महीने तथा Y-अक्ष पर तापमान और वर्षा को आरेख के दोनों ओर दिखाया जाता है। 

उदाहरण:
निम्न तालिका में दी गई दिल्ली की औसत मासिक वर्षा और तापमान को रेखाग्राफ और दण्ड आरेख द्वारा दिखाइए

तालिका-दिल्ली में औसत मासिक तापमान और वर्षा 

माह

तापमान (°C में)

वर्षा (सेमी. में)

जनवरी

14.4

2.5

फरवरी

16.7

1.5

मार्च

23.3

1.3

अप्रैल

30.0

1.0

मई

33.3

1.8

जून

33.3

7.4

जुलाई

30.0

19.3

अगस्त

29.4

17.8

सितम्बर

28.9

11.9

अक्टूबर

25.6

1.3

नवम्बर

19.4

0.2

दिसम्बर

15.6

1.0

रचना:
(1) x-अक्ष पर वर्ष के 12 महीनों को दिखाने के लिए X-अक्ष को 12 भागों में बाँटा गया है।
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चित्र-दिल्ली में औसत मासिक तापमान और वर्षा 

(2) y-अक्ष पर तापमान को दिखाने के लिए उपयुक्त मापनी की सहायता से दाहिनी ओर दर्शाया है। तापमान को दर्शाने का अन्तराल 5°C हो सकता है।

(3) इसी प्रकार -अक्ष पर वर्षा को दिखाने के लिए 5 सेमी. के अन्तराल पर बायीं ओर दर्शाया है।

(4) इस प्रकार तापमान के आँकड़े को रेखाग्राफ द्वारा तथा वर्षा के आँकड़े को दण्ड आरेख द्वारा दिखाया गया है।

(vi) बहुदण्ड आरेख:
दो या दो से अधिक चरों को तुलना के उद्देश्य से प्रदर्शित करने के लिए बहुदण्ड आरेख का प्रयोग किया जाता है।
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चित्र-साक्षरता दर, 1951-2011 

(vii) मिश्रित दण्ड आरेख:
जब विभिन्न घटकों को तत्व या चर के एक समूह में रखा जाता है अथवा एक घटक के विभिन्न तत्व या चर साथ-साथ रखे जाते हैं, तो उन्हें एक मिश्रित दण्ड आरेख (यौगिक दण्ड आरेख) द्वारा दिखाया जा सकता है। इसके विभिन्न चरों को एक स्तम्भ में दर्शाया जा सकता है। 

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→ वृत्त आरेख (Pie Diagram)
वृत्त आरेख आँकड़ों को प्रदर्शित करने की दूसरी आलेखी विधि है। इसमें आँकड़ों के मूल्य को एक वृत्त के अन्दर दर्शाया जाता है। आँकड़ों के मूल्य या प्रतिशत को अनुकूल अंश (कोण) में विभाजित करके वृत्त आरेख बनाया जाता है। इसे चक्र आरेख (Wheel Diagram) या विभाजित वृत्त आरेख (Divided Circle Diagram) भी कहते हैं। प्रत्येक चर के कोण को निम्न सूत्र से परिकलित करते हैं
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यदि आँकड़े प्रतिशत के रूप में हैं तो कोणों की गणना के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग करते हैं
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उदाहरण:
निम्न तालिका में दिए गए आँकड़ों को वृत्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।

तालिका (क)-2010-11 में संसार के बड़े प्रदेशों को भारत का निर्यात 

इकाई/प्रदेश

 भारतीय निर्यात का प्रतिशत (%)

यूरोप

20.2

अफ्रीका

6.5

अमेरिका

14.8

एशिया व आशियान

562

अन्य कुल

100

कोणों की गणना:
आँकड़ों को व्यवस्थित करते हुए बढ़ते क्रम में लिखा जाता है। कोणों के अंशों की गणना के लिए एक स्थिरांक 3.6 को प्रतिशत के साथ गुणा करके प्राप्त किया जाता है। इस प्रकार निम्नलिखित कोण प्राप्त किये जाते हैं

तालिका (ख)-2010-11 में संसार के बड़े पदेशों को भारत का निर्यात 
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→ रचना:
वृत्त के लिए उपयुक्त त्रिज्या चुनें। दिए हुए आँकड़ों के अनुसार 3-4 अथवा 5 सेमी. त्रिज्या लेकर वृत्त बना सकते हैं। प्रत्येक इकाई के प्रतिशत को कोणों के रूप में दक्षिणावर्त दिशा में चढ़ते हुए क्रम में बनाते हैं। इसकी रचना निम्नलिखित वृत्त आरेख में दिखाई गई है।

→ सावधानियाँ:

  • वृत्त को न तो अत्यधिक बड़ा होना चाहिए और न ही बहुत छोटा होना चाहिए।
  • वृत्त में छोटे कोण पहले तथा बड़े कोण बाद में बनाने चाहिए।
  • प्रदेश या क्षेत्र का नाम वृत्त खण्ड के बाहर लिखना चाहिए।
  • छायांकन इस प्रकार से करना चाहिए कि प्रत्येक वृत्त खण्ड स्पष्ट दिखाई दे। 
  • कोणों का कुल योग 360° होना चाहिए।

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चित्र-भारतीय निर्यातों की दिशा 2010-11

→ प्रवाह संचित्र:
प्रवाह संचित्र आलेख और मानचित्र का मिश्रण है। इसे उत्पत्ति और उद्देश्य के स्थानों के बीच वस्तुओं अथवा लोगों के प्रवाह को दर्शाने के लिए खींचा जाता है। इसे गतिक मानचित्र भी कहा जाता है जैसे-यातायात मानचित्र। प्रवाह संचित्र सामान्यतः दो प्रकार के आँकड़ों को दर्शाने के लिए खींचा जाता है, जो इस प्रकार हैं

  • वाहनों की गति की दिशानुसार वाहनों की संख्या और आवृत्ति।
  • यात्रियों की संख्या अथवा परिवहित किए गए सामान की मात्रा।

→ प्रवाह संचित्र को तैयार करने के लिए आवश्यकताएँ ।

  • यातायात मार्गों को दर्शाने वाला एक मार्ग मानचित्र स्टेशनों सहित।
  • वस्तुओं, सेवाओं, वाहनों की संख्याओं के उनके उत्पत्ति बिन्दु और गतियों की दिशा सहित प्रवाह से सम्बन्धित आँकड़े।
  • मापनी का चुनाव जिसके द्वारा वस्तुओं की मात्रा अथवा वाहनों की संख्या से सम्बन्धित आँकड़ों को प्रस्तुत करना है।

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→ थिमैटिक अथवा विषयक मानचित्र (Thematic Maps):
कभी-कभी आलेखों और आरेखों के उपयोग से प्रादेशिक सन्दर्भ के आँकड़ों में आन्तरिक विभिन्नताओं के बीच तुलना सफलता पूर्वक सम्भव नहीं होती। मानचित्रों की विविधता या प्रादेशिक वितरणों के प्रतिरूपों अथवा स्थानों पर विविधताओं की विशेषताओं को समझने के लिए विविध मानचित्रों का प्रयोग किया जाता है। इन्हें विषयक या वितरण मानचित्र कहते हैं।

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→ थिमैटिक मानचित्र निर्माण के लिए आवश्यकताएँ

  • चुने हुए विषय से सम्बन्धित राज्य अथवा जिला स्तर के आँकड़े।
  • अध्ययन क्षेत्र का प्रशासनिक सीमाओं सहित रूपरेखा मानचित्र।
  • प्रदेश का भौतिक मानचित्र, जैसे-जनसंख्या वितरण को दर्शाने के लिए भू-आकृतिक मानचित्र। 

→ थिमैटिक मानचित्र बनाने के नियम
(i) थिमैटिक मानचित्रों को बहुत ही सावधानी के साथ बनाना चाहिए। इसमें निम्न घटक प्रदर्शित होने चाहिए
(क) क्षेत्र का नाम
(ख) विषय का शीर्षक
(ग) आँकड़ों का साधन और वर्ष
(घ) संकेत चि
(ङ) मापनी 

(ii) थिमैटिक मानचित्र बनाने के लिए उपयुक्त विधि का चुनाव करना चाहिए। थिमैटिक मानचित्र के प्रकार-थिमैटिक या विषयक मानचित्र निम्न प्रकार के होते हैं
(क) बिन्दुकित मानचित्र (Dot Map)
(ख) वर्णमात्री मानचित्र (Choropleth Map)
(ग) समान रेखा मानचित्र (Isopleth Map)।

→ बिन्दुकित मानचित्र:
बिन्दुकित मानचित्र विभिन्न तत्वों; जैसे-जनसंख्या, पशु, फसल के प्रकार आदि के वितरण को दिखाने के लिए बनाया जाता है। इसमें चुनी हुई मापनी के आधार पर एक ही आकार के बिन्दु बनाये जाते हैं। 

→ बिन्दुकित मानचित्र निर्माण के लिए आवश्यकताएँ

  • दिए गए क्षेत्र का प्रशासनिक मानचित्र जिसमें राज्य या जिले की सीमाएँ दर्शाई गयी हों।
  • चुने हुए विषय जैसे कुल जनसंख्या, पशुओं आदि से सम्बन्धित सांख्यिकीय आँकड़े।
  • एक बिन्दु के मान के लिए उपयुक्त मापनी।
  • प्रदेश का भू-आकृतिक मानचित्र। 

→ बिन्दुकित मानचित्र निर्माण के लिए सावधानियाँ
बिन्दुकित मानचित्र का निर्माण करते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए

  • प्रत्येक बिन्दु का आकार समान होना चाहिए।
  • विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों की सीमा रेखाएँ अधिक घनी और मोटी नहीं होनी चाहिए।
  • बिन्दुओं का मापक, कुल बिन्दुओं की संख्या तथा वितरण वाले क्षेत्रों के क्षेत्रफल की जानकारी होनी चाहिए।
  • बिन्दुओं को इस रंग से अंकित किया जाए कि उन्हें आसानी से गिना जा सके। वर्णमात्री मानचित्र-वर्णमात्री मानचित्र जनसंख्या घनत्व, साक्षरता वृद्धि दर आदि को प्रदर्शित करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। 

→ वर्णमात्री मानचित्र निर्माण के लिए आवश्यकताएँ

  • विभिन्न प्रशासकीय इकाइयों को दर्शाने वाले क्षेत्रों का एक मानचित्र।
  • प्रशासकीय इकाइयों के अनुसार अनुकूल सांख्यिकीय आँकड़े। 

→ वर्णमात्री मानचित्र बनाने के लिए सावधानियाँ

  • आँकड़ों को बढ़ते अथवा घटते हुए क्रम में व्यवस्थित करना चाहिए।
  • आँकड़ों को पाँच (5) श्रेणियों में वर्गीकृत करना चाहिए; जैसे-अति उच्च, उच्च, मध्यम, निम्न और अति निम्न।
  • श्रेणियों के बीच अन्तराल को निम्न सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है
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    परास = अधिकतम मान-न्यूनतम मान।
  • प्रतिरूपों, छायाओं और रंगों का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

→ सममान रेखा मानचित्र:
समान लक्षण वाले स्थानों को आपस में मिलाने वाली रेखा को दर्शाने वाले मानचित्र को सममान रेखा मानचित्र कहते हैं। इसे आइसोप्लेथ (Isopleth) कहते हैं। आइसोप्लेथ शब्द 'आइसो' और 'प्लेथ' से बना है, जहाँ आइसो का अर्थ 'बराबर' तथा प्लेथ का अर्थ 'रेखाएँ' हैं। इस प्रकार एक काल्पनिक रेखा, जो समान मान वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाती हैं, सममान रेखा कहलाती है। सममान रेखाओं के अन्तर्गत समताप रेखा (समान तापमान), समवायुदाब रेखा (समान वायुदाब), समोच्च रेखाएँ (समान ऊँचाई) आदि सम्मिलित किए जाते हैं।

→ सममान रेखा मानचित्र निर्माण के लिए आवश्यकताएँ

  • विभिन्न स्थानों की स्थिति से दर्शाने वाला आधार रेखा मानचित्र।
  • निश्चित समय के अनुरूप तापमान, वायुदाब, वर्षा आदि के आँकड़े।

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→ ध्यान में रखने वाले नियम

  • समान मानों को प्रदर्शित करने वाली सममान रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हैं।
  • मानों के लिए बराबर अन्तराल चुना जाता है।
  • 5, 10, 15 या 20 के आदर्श अन्तराल को चुना जाता है।
  • सममान रेखाओं का मान रेखा के दूसरी तरफ अथवा रेखा को तोड़कर बीच में लिखना चाहिए।

→ क्षेपक:
समान मानों के स्थानों को जोड़ने वाली सममान रेखाओं का चित्रण क्षेपक कहलाता है। क्षेपक का उपयोग दो स्थानों के प्रेक्षित मानों के बीच मध्य मान को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सममान रेखा के चित्रण के बिल्कुल ठीक बिन्दु को निम्नलिखित सूत्र द्वारा निश्चित किया जाता है
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Prasanna
Last Updated on Jan. 5, 2024, 9:16 a.m.
Published Jan. 5, 2024