Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Geography Chapter 11 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
(पृष्ठ सं. 138)
प्रश्न 1.
हम क्या फेंकते हैं और क्यों?
उत्तर:
हम अपने घरों का कूड़ा-कचरा घर से बाहर फेंक देते हैं, क्योंकि हम अपने घर को साफ रखना चाहते हैं।
प्रश्न 2.
हमारे द्वारा फेंका गया कचरा (अपशिष्ट) कहाँ जाकर समाप्त होता है?
उत्तर:
हमारे द्वारा फेंका गया कचरा प्रमुख रूप से नगरपालिकाओं के द्वारा निर्धारित निचली सतह की सार्वजनिक जमीन या गढ्डों में जाकर समाप्त होता है।
प्रश्न 3.
रद्दी बीनने वाले बच्चे कचरे को क्यों खंगालते हैं? क्या इसका कुछ मूल्य होता है?
उत्तर:
रद्दी बीनने वाले बच्चे कचरे को इसलिए बँगालते हैं क्योंकि इस कचरे से वे प्लास्टिक के डिब्बे, पॉलीथीन की थैलियाँ, रद्दी कागज तथा जंग लगी पिनें बीनते हैं तथा यह पुनर्चक्रण योग्य होने के कारण कबाड़ियों द्वारा कुछ मूल्य चुकाकर इन बच्चों से खरीद लिए जाते हैं।
प्रश्न 4.
क्या हमारा नगरीय अपशिष्ट उपयोगी है?
उत्तर:
हमारा नगरीय अपशिष्ट उपयोगी होता है क्योंकि इन अपशिष्टों को संसाधन के रूप में प्रयोग कर इनसे ऊर्जा तथा कम्पोस्ट खाद प्राप्त कर सकते हैं।
(पृष्ठ सं. 139)
प्रश्न 5.
क्या आपने कोई गंदी बस्ती देखी है? अपने शहर की किसी गंदी बस्ती में जाएँ व वहाँ रहने वाले लोगों की समस्याओं के बारे में लिखें।
उत्तर:
हाँ, हमारे शहर जयपुर में अनेक गंदी बस्तियाँ हैं। इनमें से एक है कठपुतली नगर गंदी बस्ती जो जयुपर के मुख्य भाग में स्थित है। यहाँ रहने वाले लोगों की अनेक समस्याएँ हैं; यथा:
(पृष्ठ सं. 141)
प्रश्न 6.
गंदी बस्तियों के निवासियों के बच्चे स्कूली शिक्षा से वंचित क्यों रह जाते हैं?
उत्तर:
क्योंकि इन बच्चों के अभिभावकों के पास स्कूली शिक्षा का खर्च वहन करने की क्षमता नहीं होती है। इसके अतिरिक्त ये लोग शिक्षा के महत्व से भी अनभिज्ञ होते हैं तथा इनकी बस्तियों में शिक्षा की स्थानीय व्यवस्था भी प्रायः नहीं होती है।
प्रश्न 1.
नीचे दिये चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए।
(i) निम्नलिखित में से सर्वाधिक प्रदूषित नदी कौन-सी है?
(क) ब्रह्मपुत्र
(ख) सतलुज
(ग) यमुना
(घ) गोदावरी।
उत्तर:
(ग) यमुना
(ii) निम्नलिखित में से कौन-सा रोग जलजन्य है?
(क) नेत्रश्लेष्मला शोथ
(ख) अतिसार
(ग) श्वसन संक्रमण
(घ) श्वासनली शोथ।
उत्तर:
(ख) अतिसार
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल वर्षा का एक कारण है?
(क) जल प्रदूषण
(ख) भूमि प्रदूषण
(ग) शोर प्रदूषण
(घ) वायु प्रदूषण।
उत्तर:
(घ) वायु प्रदूषण।
(iv) प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक उत्तरदायी हैं।
(क) प्रवास के लिए
(ख) भू-निम्नीकरण के लिए
(ग) गन्दी बस्तियाँ
(घ) वायु प्रदूषण।
उत्तर:
(क) प्रवास के लिए
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।
(i) प्रदूषण और प्रदूषकों में क्या भेद है?
उत्तर:
हमारी भूमि, वायु और जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक लक्षणों में अनचाहा परिवर्तन जिसके कारण मानव तथा अन्य जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, प्रदूषण कहलाता है। जबकि प्रदूषण उत्पन्न करने वाले पदार्थों को प्रदूषक कहा जाता है। प्रदूषक ठोस, द्रव या गैस के रूप में होते हैं।
(ii) वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, पेट्रोल व डीजल का दहन, खनन, औद्योगिक प्रक्रम, ठोस कचरा निपटान, वाहित मल निपटान आदि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।
(iii) भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में अधिकांश नगरों में नगरीय अपशिष्ट का 30 से 50 प्रतिशत कचरा बिना समुचित निपटान के छोड़ दिया जाता है जो गलियों में, घरों के पीछे खुली जगहों पर तथा परती भूमि पर जमा हो जाता है। इसके कारण इन क्षेत्रों में निवासित . व्यक्तियों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो जाता है। साथ ही वायु, मृदा एवं जल प्रदूषण की प्रक्रिया सम्पन्न होती है।
(iv) मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
वायु प्रदूषण के कारण मानव को श्वसन तंत्रीय, तंत्रिका तंत्रीय तथा रक्त संचार तन्त्र सम्बन्धी विभिन्न बीमारियों का गम्भीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) भारत में जल - प्रदूषण की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक जल में किसी अवांछित बाह्य पदार्थ का प्रवेश जिससे जल की गुणवत्ता में कमी आती है, उसे जल प्रदूषण कहते हैं। भारत में हो रहे तीव्र जनसंख्या विस्फोट तथा बढ़ते औद्योगीकरण के कारण जल प्रदूषण की समस्या गंभीर रूप धारण कर चुकी है। भारत के योजना आयोग ने इस संदर्भ में लिखा है 'उत्तर की डल झील से लेकर दक्षिण की पेरियार नदी तक तथा पूर्व में दामोदर व हुगली नदियों से लेक पश्चिम की ढाणा नदी तक जल के प्रदूषित होने की स्थिति गम्भीर है। भारत में गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ भी खूब दूषित हो रही हैं, जिसके कारण इन नदियों का जल आचमन करने योग्य नहीं रह गया है।'
भारत में नदियों के किनारे बसे सभी नगर व महानगर अपने यहाँ के सीवेज को इन नदियों में बिना किसी उचित प्रबन्ध के डाल रहे हैं। इसके अलावा, इन नदियों के समीप अवस्थित उद्योग भी अपने औद्योगिक कचरे तथा प्रदूषित अपशिष्ट जल को इन नदियों के प्रवाहित जल में डाल रहे हैं। ऐसे उद्योगों में चमड़ा, लुगदी-कागज, वस्त्र तथा रसायन उद्योगों के औद्योगिक अपशिष्ट नदियों के जल को गम्भीर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं।
भारत के कृषि क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में सतत् वृद्धि के उद्देश्य से रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशकों का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इन खतरनाक रसायनों का कुछ भाग वर्षा जल के साथ घुलकर नदियों या जलाशयों के जल में मिलकर उसे प्रदूषित कर देता है जबकि कुछ भाग भूमिगत जल स्रोतों से मिलकर भी इसे प्रदूषित कर देता है। भारत की प्रमुख नदियों में पार्थिव देह विसर्जन की राख को नदी जल में विसर्जित करने से भी नदियों का जल प्रदूषित होता है। धार्मिक पर्यों पर विषैले रसायनों से रँगी मूर्तियों का विसर्जन नदियों में किया जाता है।
नदियों के किनारे पर बसे नगरों में आयोजित धार्मिक मेले तथा सांस्कृतिक उत्सव भी नदियों के जल को प्रदूषित करते हैं। प्रदूषित जल पीने से डायरिया, आँतों के कृमि तथा हेपेटाइटिस जैसी बीमारियाँ होती हैं। भारत में केवल कुछ ही क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पीने का स्वच्छ पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इसी कारण भारत की एक बड़ी जनसंख्या जल-जनित बीमारियों से पीड़ित रहती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 25 प्रतिशत भाग जलजनित बीमारियों से ग्रस्त है।
(ii) भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन् 2011 में भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 31.16% नगरीय है। जिसमें अधिकांश जनसंख्या गंदी बस्तियों में निवास कर रही थी। इन बस्तियों में निवास करने वाली इस जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में प्रथम स्थान है।
भारत में गंदी बस्तियों की निम्नलिखित समस्याएँ उल्लेखनीय हैं।
1. गंदी बस्तियों में पर्यावरण प्रदूषण की गम्भीर समस्या मिलती है।
2. ये बस्तियाँ न्यूनतम वांछित आवासीय सुविधाओं वाले क्षेत्र होते हैं जहाँ घटिया किस्म के जीर्ण-शीर्ण मकान मिलते हैं जिनमें प्रकाश, पेयजल तथा शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव मिलता है। मुंबई की धारावी नामक गंदी बस्ती जो कचरा भराव क्षेत्र पर बसी है इसमें 1440 व्यक्तियों पर एक शौचालय की उपलब्धता है। पीने के स्वच्छ जल की उपलब्धता का सामान्यतया अभाव मिलता है।
3. गंदी बस्तियों के क्षेत्र बहुत अधिक भीड़ - भाड़, पतली - सँकरी गलियों तथा आग जैसे गम्भीर खतरों के जोखिम से युक्त क्षेत्र होते हैं।
4. यहाँ निवासित अधिकांश व्यक्ति कम वेतन पर अधिक जोखिम भरे कार्य करते हैं, जिसके कारण इन बस्तियों में कुपोषण की गम्भीर समस्या बनी रहती है।
5. पर्यावरण प्रदूषण, मूलभूत आवश्यकताओं का अभाव तथा कुपोषण के कारण यहाँ के लोग विभिन्न बीमारियों से ग्रसित रहते हैं। इन बीमारियों में डायरिया, श्वसन सम्बन्धी बीमारियाँ, मलेरिया, खसरा तथा एच. आई. वी. एड्स सर्वप्रमुख हैं।
6. इन बस्तियों के लोग अपने बच्चों की पढ़ाई पर गरीबी के कारण .समुचित ध्यान नहीं दे पाते हैं।
7. नशीले पदार्थों का उपभोग, गुंडागर्दी, अपराध, जुआ, वेश्यावृत्ति, चोरी जैसी सामाजिक बुराइयाँ यहाँ प्रमुखता से मिलती हैं।
(iii) भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:
भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता में कमी है जो प्रमुख रूप से मृदा अपरदन, लवणता तथा भू-क्षारता के कारण होती है। इसके अलावा भूमि संसाधनों का अकुशल प्रबन्धन भी इसके लिए उत्तरदायी होता है। वर्तमान में भारत में 'जल, जंगल तथा जमीन' नामक तीनों प्राकृतिक संसाधनों का बढ़ता अविवेकपूर्ण उपभोग भू-निम्नीकरण की समस्या को गम्भीर रूप प्रदान कर रहा है। भारत में भू-निम्नीकरण को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए जाते हैं
1. जल संभरण प्रबन्धन: जल संभरण प्रबन्धन द्वारा भू-निम्नीकरण को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है। जल संभरण प्रबन्धन कार्यक्रम जल, जंगल तथा जमीन (जल, वनस्पति तथा भूमि) के मध्य सम्बन्धों को महत्व प्रदान करता है तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रबन्धन एवं सामुदायिक सहभागिता से लोगों की आजीविका को सुधारने का प्रयास करता है।
जल संभरण प्रबन्धन में सरकार तथा गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। इसके लिए क्षेत्र विशेष में मिलने वाले साझा संपदा संसाधनों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति एक वृक्ष का रोपण कर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले सकता है। इसके अलावा प्रत्येक परिवार चारागाह भूमि पर घास रोपण कर भूमि को विकसित कर सकता है तथा खुली चराई पर प्रतिबन्ध में अपना योगदान दे सकता है।
2. इसी प्रकार जल संरक्षण एवं प्रबन्धन के लिये जल संग्रहण की विभिन्न विधियों का उपयोग किया जा सकता है साथ ही नदियों व जलाशयों के जल को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों के अलावा हर व्यक्ति द्वारा अपना सक्रिय योगदान दिया जा सकता है।
3. प्राकृतिक तथा मानवजनित क्रियाकलापों से जलाक्रांत व दलदली क्षेत्र, लवणता व क्षारीय क्षेत्र, झाड़ी सहित तथा झाड़ी रहित खनन व भूमि तथा औद्योगिक व्यर्थ-भूमि जैसी निम्न कोटि की भूमियों की उत्पत्ति हुई है। ऐसे क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी मानवीय क्रियाओं पर कानूनी रूप से प्रतिबन्ध लगाना आवश्यक है।