Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 4 संस्कृति तथा समाजीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
सामाजिक विज्ञान में संस्कृति की समझ, दैनिक प्रयोग के शब्द संस्कृति' से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
रोजमर्रा की बातों में या दैनिक प्रयोग में संस्कृति शब्द कला तक सीमित है अथवा कुछ वर्गों या यहाँ तक कि देशों की जीवन-शैली का संकेत करती है। लेकिन सामाजिक विज्ञान में संस्कृति की समझ दैनिक प्रयोग के 'संस्कृति' शब्द से भिन्न है। सामाजिक विज्ञान में संस्कृति एक सामान्य समझ है जिसको समाज में अन्य व्यक्तियों के साथ सामाजिक अन्त:क्रिया के माध्यम से सीखा तथा विकसित किया जाता है। किसी भी समूह की आपसी सामान्य समझ इसे अन्य से अलग करती है तथा इसे एक पहचान प्रदान करती है।
प्रश्न 2.
हम कैसे दर्शा सकते हैं कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर समग्र बनाते हैं?
उत्तर
संस्कृति के आयाम संस्कृति के तीन आयाम प्रचलित हैं
भौतिक पदार्थों में उपकरण या यंत्र भी शामिल हैं। लेकिन भौतिक संस्कृति, विशेष रूप से कला के बारे में हमारी समझ, संज्ञानात्मक तथा मानकीय क्षेत्रों में जानकारी प्राप्त किये बिना अधूरी है। सामाजिक प्रक्रिया के बारे में हमारी विकासशील सामान्य समझ इन सभी क्षेत्रों की जानकारी से ही बनती है। अतः स्पष्ट है कि संस्कृति के विभिन्न आयाम मिलकर एक समग्र बनाते हैं।
प्रश्न 3.
उन दो संस्कृतियों की तुलना करें जिनसे आप परिचित हों। क्या नृजातीय नहीं बनना कठिन नहीं है?
उत्तर:
पाषाणयुगीन तथा कांस्ययुगीन संस्कृति की तुलना ।
(1) पाषाणयुगीन संस्कृति में हथियार और औजार पत्थर के थे और बर्तन मिट्टी या पत्थर के बनाए जाते थे; जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में हथियार, औजार तथा बर्तनों के लिए तांबा, कांसा आदि धातुएँ प्रयोग में लायी जाती थीं।
(2) पाषाणयुगीन संस्कृति में कृषि सीमित होती थी क्योंकि खेती हाथ या लकड़ी के कुदाल से की जाती थी; जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में कृषि व्यापक स्तर पर होती थी क्योंकि इस युग में कृषि यंत्र तथा हल प्रयोग के लिए जाते थे तथा सिंचाई के लिए नहरें थीं।
(3) पाषाणयुगीन संस्कृति पूर्णतः ग्रामीण संस्कृति थी तथा ग्रामीण व्यवस्था आत्मनिर्भर थी; जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में नगरों का जन्म हो गया था। कृषि के साथ-साथ, व्यापार, विनिमय, मुद्रा आदि से आर्थिक विकास हुआ तथा नए शिल्पी और दस्तकार उभरकर सामने आए।
(4) पाषाणयुगीन संस्कृति में लोग प्रायः पैदल चलते थे। भार ढोने के लिए पशुओं का तथा नदियों में लट्ठों को बांधकर उन पर बोझ रखा जाता था; जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में जल नौकाएँ, पहियेदार बैलगाड़ियों तथा सवारियों के लिए पशुओं का प्रयोग किया जाता था।
(5) पाषाणयुगीन संस्कृति में वस्त्र मोटे तथा भद्दे थे, जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में सुन्दर, महीन और उपयोगी वस्त्र बनने लगे थे।
(6) पाषाणयुगीन संस्कृति में लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था। बोलचाल में प्रायः संकेतों का प्रयोग होता था; जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में लिपियाँ थीं तथा उनका अपना साहित्य था।
(7) पाषाणयुगीन संस्कृति में मानव का ज्ञान सीमित था तथा विकास की गति धीमी थी, जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में मानव ने विकास की गति तीव्र कर दी थी।
(8) पाषाणयुगीन संस्कृति में मनोरंजन शिकार व पेट भरने तक सीमित था, जबकि कांस्ययुगीन संस्कृति में शिकार के साथ-साथ चौपड़, चित्रकारी, घुड़दौड़, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य आदि अनेक मनोरंजन के साधन थे।
क्या नृजातीय बनना कठिन नहीं है?
जब संस्कृतियाँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आईं तभी नृजातीयता की उत्पत्ति हुई। नृजातीयता से आशय अपने सांस्कृतिक मूल्यों का अन्य संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार तथा आस्थाओं का मूल्यांकन करने के लिए प्रयोग करने से है। इसका अर्थ है कि जिन सांस्कृतिक मूल्यों को मानक के रूप में प्रदर्शित किया गया था उन्हें अन्य संस्कृतियों की आस्थाओं तथा मूल्यों से श्रेष्ठ माना जाता है। इस दृष्टि से नृजातीय बनना कठिन है।
प्रश्न 4.
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो विभिन्न उपागमों की चर्चा करें।
उत्तर:
सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करने के लिए दो प्रमुख उपागम निम्नलिखित हैं
(1) ऐतिहासिक उपागम-किसी भी विषय के सही ज्ञान के लिए ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का सहारा लिया जाता है। संस्कृति के उत्पत्ति, विकास तथा वर्तमान स्वरूप के विषय की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए इतिहास की सहायता ली जाती है। किसी भी संस्कृति का निर्माण एक साथ एक ही समय में नहीं हुआ। इसलिए संस्कृति के परिवर्तनों के अध्ययन के लिए ऐतिहासिक उपागम का प्रयोग किया जाता है।
(2) दार्शनिक उपागम-सांस्कृतिक परिवर्तनों के अध्ययन का एक अन्य उपागम ‘दार्शनिक उपागम' है। कुछ समाजशास्त्री दार्शनिक दृष्टि से सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन करते हैं।
प्रश्न 5.
क्या विश्वव्यापीकरण को आप आधुनिकता से जोड़ते हैं? नृजातीयता का प्रेक्षण करें तथा उदाहरण दें।
उत्तर:
विश्वव्यापीकरण-विश्वव्यापीकरण विश्वबंधुता पर बल देता है। विश्वबंधुता में व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के मूल्यों तथा आस्थाओं का मूल्यांकन अपने मूल्यों तथा आस्थाओं के अनुसार नहीं करता, बल्कि यह (विश्वव्यापीकरण) विभिन्न सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को मानता है तथा इन्हें अपने अन्दर समायोजित करता है तथा एक-दूसरे की संस्कृति को समृद्ध बनाने के लिए सांस्कृतिक विनिमय तथा लेन-देन को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, अंग्रेजी भाषा विदेशी शब्दों को लगातार अपनी शब्दावली में शामिल करके अन्तर्राष्ट्रीय संप्रेषण का मुख्य साधन बनकर उभरी है।
आधुनिकता-एक आधुनिक समाज भी सांस्कृतिक विभिन्नता का प्रशंसक होता है तथा बाहर से पड़ने वाले सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजे बन्द नहीं करता। परन्तु ऐसे सभी प्रभावों को सदैव इस प्रकार शामिल किया जाता है कि ये देशीय संस्कृति के तत्वों के साथ मिल सकें । उदाहरण के लिए, विदेशी शब्दों को शामिल करने के बावजूद अंग्रेजी अलग भाषा नहीं बन पायी है। इससे स्पष्ट होता है कि विश्वव्यापीकरण और आधुनिकता परस्पर पूरक हैं। दोनों ही विश्वव्यापी संस्कृति के हामी हैं। आज विश्वव्यापीकरण के कारण विश्व में जहाँ संचार के आधुनिक साधनों से संस्कृतियों के बीच अन्तर कम हो रहे हैं, वहीं आधुनिकता प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संस्कृति को विभिन्न प्रभावों द्वारा सशक्त करने की स्वतंत्रता देती है।
नृजातीयता-जब संस्कृतियाँ एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तभी नृजाति केन्द्रवाद या नृजातीयता की उत्पत्ति होती है। नृजातिवाद से आशय अपने सांस्कृतिक मूल्यों का प्रयोग अन्य संस्कृतियों के लोगों के व्यवहार तथा आस्थाओं का मूल्यांकन करने के लिए करने से है। अर्थात् नृजातीयता पर्यवेक्षण में व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के मूल्यों तथा आस्थाओं का मूल्यांकन अपने मूल्यों और आस्थाओं के अनुसार करता है। इसमें अपने मूल्यों और आस्थाओं को अन्य संस्कृतियों के मूल्यों और आस्थाओं से श्रेष्ठ माना जाता है।
नृजातिवाद की तुलनाओं में निहित सांस्कृतिक श्रेष्ठता की भावना उपनिवेशवाद की स्थितियों में स्पष्ट दिखाई देती है। थॉमस बाबींगटोन मैकॉले के भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भेजे गये शिक्षा (1835). के प्रसिद्ध विवरण में नृजातीयता का उदाहरण दिया गया है। जब वे कहते हैं, "हमें इस समय एक ऐसे वर्ग का निर्माण करने का भरसक 99 प्रयास करना चाहिए जो हमारे तथा हमारे द्वारा शासित लाखों लोगों के बीच द्विभाषियों का कार्य करे, व्यक्तियों का ऐसा वर्ग जो खून और रंग में भारतीय हो, परन्तु रुचि में, विचार में, नैतिकता तथा प्रतिभा में अंग्रेज' हो।" स्पष्ट है कि इसमें अंग्रेज संस्कृति की तुलना में भारतीय संस्कृति को पिछड़ा माना गया है और इसका मानक अंग्रेजी संस्कृति के मूल्य हैं। -
प्रश्न 6.
आपके अनुसार आपकी पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण क्या है? यह पहले अलग कैसे था? आप इस बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
विद्यालय समाजीकरण के एक प्रमुख अभिकरण के रूप में हमारे अनुसार हमारी पीढ़ी के लिए समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण 'विद्यालय' है। विद्यालय में बच्चा प्रमुख रूप से शिक्षकों, पाठ्यपुस्तकों एवं साहित्य एवं कला एवं कक्षा के साथियों से अनेक बातें सीखता है। कोई न कोई अध्यापक उसका मॉडल अवश्य होता है जिसके अनुरूप वह अपने को ढालना सीखता है। अध्यापक के आदर्श विचार, आचरण तथा रहन-सहन के ढंग भी छात्र अपनाता है। पुस्तकों, पाठ्यक्रम एवं साहित्य से भी वह नवीन ज्ञान अर्जित करता है। उसकी मानसिक क्षमता का विकास होता है। अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर आगे बढ़ता है। औपचारिक पाठ्यक्रम के साथ-साथ बच्चों को सिखाने के लिए कुछ अप्रत्यक्ष पाठ्यक्रम भी होता है।
विद्यालय में वह देश-विदेश के समाज और संस्कृति के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर व्यक्ति धीरे-धीरे समाज का प्रकार्यात्मक सदस्य बनने लगता है। पहले शिक्षा का अधिक महत्त्व नहीं था। इसलिए शिक्षा या विद्यालय द्वारा समाजीकरण वर्तमान में पहले से अलग है। पहले भारत में अधिकांश लोग विद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाते थे, विद्यालयों की संख्या भी बहुत कम थी; शिक्षा प्राप्त करने की सुविधायें व अवसर सभी लोगों को प्राप्त नहीं थे; इसलिए विद्यालय पहले समाजीकरण का प्रमुख तथा प्रभावी साधन नहीं था। लेकिन वर्तमान में 'सर्वशिक्षा अभियान' के तहत शिक्षा का महत्त्व बढ़ा है तथा सभी को शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त हैं। इसलिए आज विद्यालय समाजीकरण का सबसे प्रभावी अभिकरण बन कर उभरा है।