RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sociology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Sociology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Sociology Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 11 Sociology Solutions Chapter 3 पर्यावरण और समाज

RBSE Class 11 Sociology 3 पर्यावरण और समाज Intext Questions and Answers

पृष्ठ 54

प्रश्न 1. 
क्या आप जानते हैं कि रिज इलाके के जंगल में पाई जाने वाली वनस्पति क्षेत्रीय नहीं है बल्कि अंग्रेजों द्वारा लगभग 1915 में लगाई गई थी? यहाँ मुख्य रूप से विलायती कीकर अथवा विलायती बबूल के वृक्ष पाये जाते हैं जो दक्षिणी अमेरिका से लाकर यहाँ लगाए गए थे और अब सम्पूर्ण उत्तरी भारत में प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि 'चोरस'-जहाँ उत्तरांचल स्थित कॉरबेट नेशनल पार्क के वन्य जीवन की अद्भुत छटा को देखा जा सकता है, कभी वहाँ किसान खेती किया करते थे। इस क्षेत्र के गाँवों को पुनर्स्थापित किया गया है ताकि यहाँ वन्य जीवन को अपने प्राकृतिक रूप में देखा जा सके। क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण बता सकते हैं जहाँ 'प्राकृतिक रूप से देखी जाने वाली चीज़ वास्तव में मनुष्य के सांस्कृतिक हस्तक्षेप का उदाहरण हो?
उत्तर:
यह परियोजना छात्र स्वयं करें। 

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज

पृष्ठ 67

प्रश्न 2. 
पता कीजिए कि 

  1. आपके परिवार में रोजाना कितना पानी इस्तेमाल किया जाता है। 
  2. यह जानने का प्रयास कीजिये कि विभिन्न आय समूह के परिवारों में तुलनात्मक रूप से कितना पानी इस्तेमाल होता है? 
  3. विभिन्न परिवार पानी के लिए कितना समय और पैसा खर्च करते हैं? 
  4. परिवार में पानी भरने का काम कौन करता है? 
  5. सरकार विभिन्न वर्ग के लोगों के लिए कितना पानी महैया करवाती है?

उत्तर:
इस परियोजना को छात्र स्वयं करें। इस हेतु वह निम्न तथ्यों को ध्यान में रख सकते हैं।
1. आपके परिवार में रोजाना कितना पानी इस्तेमाल किया जाता है? इस प्रश्न का उत्तर छात्र अपने माता-पिता तथा बड़े लोगों से पूछकर दें।

2. विभिन्न आय समूह के परिवारों में तुलनात्मक रूप से कितना पानी इस्तेमाल किया जाता है?
इस प्रश्न के उत्तर में छात्र तीन आय समूह के परिवार ले सकते हैं-निम्न आय वर्ग, मध्यम आय वर्ग और उच्च आय वर्ग। इन तीनों आय वर्ग में तुलनात्मक रूप से उत्तरोत्तर अधिक पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इसे सामान्यतः क्रमशः 1 : 2 : 4 के अनुपात में दिखाया जा सकता है।

3. विभिन्न परिवार पानी के लिए कितना समय और पैसा खर्च करते हैं?
इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि उच्च आय वर्ग के परिवार पानी के लिए कोई भी समय खर्च नहीं करते हैं। लेकिन वे इसके लिए व्यय अधिक करते हैं। मध्यम आय वर्ग के परिवार पानी पर कम व्यय हो, इसके लिए जद्दोजहद करते रहते हैं और वैध रूप से सरकारी साधनों से जैसे--सरकारी नल आदि से पानी प्राप्त करने का अधिकतम प्रयास करते हैं। निम्न आय वर्ग के परिवार पानी पर काफी समय व्यय करते हैं, लेकिन उस पर न्यूनतम व्यय करते हैं। इस हेतु वे सार्वजनिक नलों, सार्वजनिक कुओं आदि से पानी लेने का प्रयास करते हैं। वैध साधन उपलब्ध न होने पर वे अवैध साधनों का प्रयोग करने के लिए भी मजबूर हो जाते हैं। -

4. परिवार में पानी भरने का काम अधिकांशतः महिलाएँ ही करती हैं।

5. सरकार उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए पानी मुहैया कराती है, क्योंकि ये लोग वैध रूप से मकानों में रहते हैं। लेकिन निम्न वर्ग के लोगों के लिए, जो शहरों में प्रायः झुग्गी-झोंपड़ियों में रहते हैं, जो कि अवैध रूप से विकसित हुई होती हैं, इसलिए योजनाबद्ध रूप से इनके लिए सरकार पानी मुहैया सही ढंग से नहीं करा पाती है। यहाँ काफी जद्दो-जहद के बाद ही सरकार पानी के साधन उपलब्ध कराती है और वह भी सीमित मात्रा में।

प्रश्न 3. 
कल्पना कीजिये कि आप 14-15 साल के झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लड़का/लड़की हैं। आपका परिवार क्या काम करता है और आप कैसे रहते हैं? अपनी दिनचर्या का वर्णन करते हुए उस पर एक छोटा निबन्ध लिखिये।
उत्तर:
मेरा नाम रमेश वर्मा है। मैं 15 साल का झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाला लड़का हूँ जो कि सरकारी स्कूल में कक्षा 11 का कला वर्ग का छात्र हूँ। मेरे परिवार में चार सदस्य हैं माता, पिता, मैं स्वयं और मेरी छोटी बहिन।। मेरे परिवार ने एक कॉलोनी में लकड़ी खोकेनुमा थड़ी लगा रखी है, जहाँ वे कपड़े प्रेस करने का काम करते हैं। मेरा परिवार एक छोटे से पक्के मकान में रहता है जो हम परिवार के सदस्यों ने मेहनत करके एक मिस्त्री की सहायता से बनाया है। इसमें दो कमरे, एक शौचालय तथा एक बाथरूम है। एक छोटा-सा आँगन है जिसमें माँ रसोई बनाती है। मैं एक कमरे में रहता हूँ तथा अपनी पढ़ाई उसी में करता हूँ। मेरी बहिन मुझसे 2 वर्ष छोटी है। वह 7वीं तक पढ़ी है। अब पढ़ाई छोड़ दी है।

वह अब माँ तथा पिता के काम में हाथ बँटाती है। मेरी दिनचर्या-मैं प्रात: 5 बजे उठ जाता हूँ। बस्ती के सभी लोग लगभग 5 बजे उठ जाते हैं। सबसे पहले शौच, स्नान आदि नित्यकर्म से फारिग होता हूँ। फिर 7 बजे स्कूल का होमवर्क या पढ़ने सम्बन्धी कुछ कार्य करता हूँ तथा 9 बजे तैयार होकर, खाना खाकर, स्कूल के लिए पैदल ही चला जाता हूँ। स्कूल घर से 3 किमी दूर है तथा मुझे 10 बजे पहुँचना होता है। 10 बजे से 4 बजे तक स्कूल में रहता हूँ। स्कूल से छुट्टी के बाद सीधे अपने पिता की थड़ी पर पहुँच जाता हूँ, जहाँ माता और पिता दोनों प्रेस कार्य कर रहे होते हैं।

अब मैं माता के कार्य में हाथ बँटाता हूँ अर्थात् कपड़े प्रेस करने का कार्य करता हूँ। इस दौरान माताजी प्रेस हो चुके विभिन्न घरों के कपड़े घरों में पहुँचा आती है तथा जिन घरों से और कपड़े प्रेस के लिए लाने होते हैं, ले आती है। 7 बजे तक मैं थड़ी पर कार्य करता हूँ फिर माताजी और अपनी बहिन के साथ तीनों अपने घर आ जाते हैं। साथ में घर में प्रेस के लिए कुछ कपड़े भी अपने साथ ले आते हैं। घर आकर माँ खाना बनाती है और खाना खाने के बाद मैं हमवयस्क कॉलोनी के अपने साथियों के पास चला जाता हूँ। लगभग 9 बजे तक मैं अपने साथियों के साथ हँसी-मजाक, तास का खेल या अन्य छोटे-मोटे खेल खेलकर या टी.वी. देखकर घर आ जाता हूँ। 9 बजे से 10 बजे तक पढ़ने का कुछ कार्य करता हूँ और फिर सो जाता हूँ। दूसरे दिन सुबह से फिर वही दिनचर्या प्रारंभ हो जाती है।

RBSE Class 11 Sociology पर्यावरण और समाज Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
पारिस्थितिकी से आपका क्या अभिप्राय है? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पारिस्थितिकी शब्द से अभिप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ घटित होती हैं। समाजशास्त्रीय दृष्टि से पारिस्थितिकी समुदायों तथा पर्यावरण के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन है। पर्यावरण से अनुकूलन को ही पारिस्थितिकी कहते हैं। मनुष्य, पर्वत, नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव-जन्तु आदि सब इसके अंग हैं। पारिस्थितिकीय कारक इस बात का निर्धारण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग कैसे रहते हैं? ।

प्रश्न 2. 
पारिस्थितिकी सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों तक ही सीमित क्यों नहीं है?
उत्तर:
पारिस्थितिकी एक वृहद् व्यवस्था है। मानव-समूह, पशु-समूह, पर्वत- नदियाँ, पेड़-पौधे, मैदान तथा सागर, जीव-जन्तु सभी पारिस्थितिकी के अंग हैं। आधुनिक समय में मनुष्य की क्रियाओं द्वारा पारिस्थितिकी में परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए नदियों के ऊपरी क्षेत्र में जंगलों की अंधाधुंध कटाई नदियों में बाढ़ की स्थिति को और बढ़ा देती है। विश्वव्यापी तापमान में वृद्धि के कारण जलवायु में परिवर्तन आ रहा है। कृषि भूमि में जहाँ मिट्टी तथा पानी के बचाव के कार्य चल रहे हों, खेती और पालतू पशु, कृत्रिम खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग-यह सब स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा प्रकृति में किया गया परिवर्तन है। इससे स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिकी सिर्फ प्राकृतिक शक्तियों तक ही सीमित नहीं है।

प्रश्न 3. 
उस दोहरी प्रक्रिया का वर्णन करें जिसके कारण सामाजिक पर्यावरण का उद्भव होता है।
उत्तर:
सामाजिक पर्यावरण का उद्भव 

  1. जैव-भौतिक पारिस्थितिकी तथा 
  2. मनुष्य के हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया की दोहरी प्रक्रिया के द्वारा होता है । अर्थात् जिस प्रकार से प्रकृति समाज को आकार देती है, ठीक उसी प्रकार से समाज भी प्रकृति को आकार देता है। यथा

1. जैव-भौतिक पारिस्थितिकी के कारण पर्यावरण का उद्भव-जैव-भौतिक पारिस्थितिकी अर्थात् प्रकृति समाज को आकार देती है। यह सामाजिक पर्यावरण के उद्भव का कारण होती है। उदाहरण के लिए सिंधु-गंगा के बाढ के मैदान की उपजाऊ भूमि-गहन कृषि के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण यह घनी आबादी का क्षेत्र बन जाता है तथा अतिरिक्त उत्पादन और गैर-कृषि क्रिया-कलाप आगे चलकर जटिल समाज तथा राज्य को जन्म देते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पारिस्थितिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्कृति को आकार देती है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज

2. मनुष्य की हस्तक्षेप की अन्तःक्रिया द्वारा सामाजिक पर्यावरण का उद्भव-सामाजिक संगठन के द्वारा पर्यावरण तथा समाज की अन्त:क्रिया को आकार प्रदान किया जाता है। उदाहरण के लिए-पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर की प्रकृति को आकार दिया है। निजी परिवहन पूँजीवादी वस्तु का एक ऐसा उदाहरण है जिसने जीवन तथा भूदृश्य को बदला है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, प्रादेशिक झगड़े, तेल के लिए युद्ध तथा विश्वव्यापी तापमान वृद्धि आदि पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों के कुछ एक उदाहरण हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बढ़ता हुआ मानवीय हस्तक्षेप सामाजिक पर्यावरण को पूरी तरह बदलने में सक्षम है।

प्रश्न 4. 
सामाजिक संस्थाएँ कैसे तथा किस प्रकार से पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार देती हैं?
उत्तर:
सामाजिक संस्थाएँ पर्यावरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को निम्न प्रकार से आकार देती हैं
(1) सामाजिक संगठन-सामाजिक संगठन के द्वारा पर्यावरण तथा समाज की अन्तःक्रिया को आकार प्रदान किया जाता है। यथा
(i) सम्पत्ति के सम्बन्ध यह निर्धारित करते हैं कि कैसे तथा किसके द्वारा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा? उदाहरण के लिए, यदि वनों पर सरकार का आधिपत्य है तो यह अधिकार भी उसे ही होगा कि वह यह संजीव पास बुक्स निर्णय ले कि क्या वह इस पट्टे पर किसी लकड़ी का कारोबार कम्पनी को देना चाहेगी अथवा ग्रामीणों को जंगलों से प्राप्त होने वाले वन्य उत्पादों को संग्रहित करने का अधिकार देगी।

(ii) भूमि तथा जल संसाधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व-इस बात का निर्धारण करेंगे कि क्या अन्य लोगों को इन संसाधनों के उपयोग का अधिकार होगा और यदि हाँ, तो किन नियमों और शर्तों के अन्तर्गत? संसाधनों पर नियंत्रण तथा स्वामित्व, श्रम विभाजन और उत्पादन प्रक्रिया से सम्बन्धित है। ग्रामीण भारत में स्त्रियाँ संसाधनों की कमी से ज्यादा प्रभावित होती हैं क्योंकि ईंधन तथा पानी लाने का काम स्त्रियों का ही होता है लेकिन, फिर भी इन संसाधनों पर इनका कोई नियंत्रण नहीं होता है।

(2) सामाजिक मूल्य-पर्यावरण तथा समाज के सम्बन्ध उसके सामाजिक मूल्यों में भी प्रतिबिंबित होते हैं। यथा
(i) पूँजीवादी मूल्यों ने प्रकृति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोषित किया है, जहाँ प्रकृति को एक वस्तु के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है जिसे लाभ के लिए खरीदा या बेचा जा सकता है। उदाहरण के लिए, नदी के बहुविकल्पीय सांस्कृतिक अर्थों, जैसे-पारिस्थितिकीय, उपयोगितावादी, धार्मिक तथा सौन्दर्यपरकता के महत्त्व को समाप्त कर इसे मात्र एक उद्यमकर्ता के लिए पानी को हानि या लाभ की दृष्टि से बेचने का कारोबार बना दिया है। - 

(ii) समानता तथा न्याय के समाजवादी मूल्यों ने कई देशों में बड़े-बड़े जमीदारों से उनकी जमीनों को छीन उन्हें पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया है।

प्रश्न 5. 
पर्यावरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्त्वपूर्ण तथा जटिल कार्य क्यों है? 
उत्तर:
पर्यावरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्त्वपूर्ण तथा जटिल कार्य है क्योंकि
(1) हमारे पास जैव-भौतिक प्रक्रियाओं के पूर्वानुमान तथा उसे रोकने के बारे में अधिक जानकारी नहीं है।

(2) पर्यावरण के साथ मनुष्य के सम्बन्ध और जटिल हो गये हैं। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण संसाधनों का दोहन बड़े पैमाने पर अत्यन्त तीव्र गति से हो रहा है; जिसने पारिस्थितिकी तंत्र को कई तरह से प्रभावित किया है । जटिल औद्योगिक तकनीक तथा संगठन की व्यवस्थाओं के लिए बेहतरीन प्रबन्धन व्यवस्था की जरूरत होती है जो अधिकांशतः गलतियों के प्रति कमजोर तथा सुभेद्य होते हैं।

(3) आज हम जोखिम भरे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का हम प्रयोग करते हैं जिसके बारे में हमें पूरी समझ नहीं है। नाभिकीय विपदा जैसे-चेरनोबिल, भोपाल की औद्योगिक दुर्घटना, यूरोप में फैली 'मैड काऊ' बीमारी औद्योगिक पर्यावरण में होने वाले खतरों को दिखाते हैं।

प्रश्न 6. 
प्रदूषण से सम्बन्धित प्राकृतिक विपदाओं के मुख्य रूप कौन-कौन से हैं? 
उत्तर:
प्रदूषण से सम्बन्धित प्राकृतिक विपदाएँ प्रदूषण से सम्बन्धित प्राकृतिक विपदाओं के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं
(1) वायु प्रदूषण-वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक विशेष अनुपात में उपस्थित रहती हैं। जीवधारी अपनी क्रियाओं द्वारा वायुमण्डल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखते हैं किन्तु उद्योगों तथा वाहनों से निकलने वाली जहरीली गैसों तथा घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा कोयले के प्रयोग से वायु प्रदूषण फैल रहा है। इससे श्वास तथा सेहत सम्बन्धी दूसरी बीमारियाँ तथा मृत्यु भी हो सकती है। खाना बनाने वाला ईंधन भी आंतरिक प्रदूषण का स्रोत है। यह ग्रामीण महिलाओं की सेहत पर बुरा असर डालता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह अनुमान लगाया कि लगभग 6 लाख लोग भारत में 1998 के दौरान घरेलू प्रदूषण से मरे। इनमें से लगभग 5 लाख ग्रामीण क्षेत्र से थे। अतः वायु प्रदूषण से सम्बन्धित पर्यावरण की प्रमुख विपदा है।

(2) जल प्रदूषण-प्रदूषण से सम्बन्धित दूसरी प्रमुख विपदा जल प्रदूषण है। सभी जीवधारियों के लिए जल महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक है। जल में अनेक प्रकार के खनिज तत्व, कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ तथा गैसें घुली रहती हैं। यदि जल में ये पदार्थ आवश्यकता से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं तो जल अशुद्ध होकर हानिकारक हो जाता है। इसी को जल प्रदूषण कहा जाता है। जल प्रदूषण ने न केवल सतही बल्कि भूमि-जल को भी प्रभावित किया है।

जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं-घरेलू नालियाँ, मल-मूत्र तथा घरेलू कचरा, फैक्ट्री से निकलने वाले अवशिष्ट - पदार्थ तथा बड़ी मात्रा में कृत्रिम खाद तथा कीटनाशकों के प्रयोग किये जाने के कारण खेतों से निकलने वाला जल आदि। नदियों तथा जलाशयों का प्रदूषण विशेषकर मुख्य समस्या है क्योंकि देश के अनेक नगरों में पेयजल किसी निकटवर्ती नदी से लिया जाता है। प्रायः नदियों में शहर के मल-मूत्र, कचरे तथा कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित कर दिया जाता है। इससे हमारे देश में अधिकांश नदियों का जल प्रदूषित होता जा रहा है।

(3) ध्वनि प्रदूषण-ध्वनि प्रदूषण से आशय है-अधिक तेज ध्वनि का निरन्तर जारी रहना। अधिक तेज ध्वनि से मानव की श्रवण शक्ति का ह्रास होता है, उसे भली-भाँति नींद नहीं आती तथा मानव का स्नायु तंत्र भी इससे प्रभावित होता है। ध्वनि प्रदूषण मुख्यतः नगरों की समस्या है। ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं-धार्मिक तथा सामाजिक अवसरों पर उपयोग किये जाने वाले लाउडस्पीकर, राजनीतिक प्रचार, विभिन्न प्रकार के वाहनों के हॉर्न, कारखानों के सायरन तथा विभिन्न प्रकार की मशीनों के चलने से होने वाला शोर आदि।

(4) रेडियोधर्मी प्रदूषण-परमाणु शक्ति उत्पादन केन्द्रों तथा परमाणु परीक्षण के फलस्वरूप भी जल, वायु तथा पृथ्वी का प्रदूषण निरन्तर बढ़ता जा रहा है। परमाणु विस्फोट के समय उत्पन्न रेडियोधर्मी पदार्थ वायुमण्डल की बाहरी परतों में प्रवेश कर जाते हैं, जहाँ वे ठंडे होकर संघनित अवस्था में बूंदों का रूप ले लेते हैं तथा बाद में ठोस अवस्था में बहुत छोटे धूलकणों के रूप में वायु में फैलते रहते हैं और वायु के चलने के साथ सम्पूर्ण विश्व में फैल जाते हैं।

प्रश्न 7. 
संसाधनों की क्षीणता से सम्बन्धित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
संसाधनों की क्षीणता से सम्बन्धित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे-संसाधनों की क्षीणता से सम्बन्धित पर्यावरण के प्रमुख मुद्दे निम्नलिखित हैं
(1) अस्वीकृत संसाधनों का अत्यधिक दोहन-अस्वीकृत अर्थात् अनवीनीकृत संसाधनों का प्रयोग करना पर्यावरण की एक गंभीर समस्या है, जैसे-प्राकृतिक गैस, कोयला, पैट्रोलियम पदार्थ आदि। इनका एक बार दोहन हो जाने के पश्चात् ये पुनउत्पादित नहीं होते। आए दिन जैव ऊर्जा मुख्यतः पैट्रोलियम की कमी के समाचार समाचार-पत्रों में दिखाई देते हैं।

(2) जल क्षरण का मुद्दा-जल-क्षरण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। भूजल के स्तर में लगातार गिरावट वैसे तो पूरे भारत में है पर मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इसकी स्थिति गंभीर है। जहाँ पानी हजारों, लाखों साल से लगातार जमा होता रहा है, कुछ ही दशकों में कृषि, उद्योग तथा शहरी केन्द्रों की बढ़ती मांगों के कारण खत्म होता जा रहा है। नदियों के बहाव को मोड़े जाने के कारण जल बेसिन को जो क्षति पहुँची है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। शहरों के जलाशय खत्म हो रहे हैं और वहाँ निर्माण कार्य होने के कारण प्राकृतिक निकासी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है। इससे भू-जल के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। यदि ऐसी ही स्थिति रही तो कृषि और जरूरी आवश्यकताओं के लिए पानी मिलना कठिन हो जायेगा।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज

(3) मृदा क्षरण का मुद्दा-भूमि का क्षरण भी तीव्र गति से होने के कारण आज यह मुख्य पर्यावरणीय मुद्दा बना हुआ है। मृदा की ऊपरी सतह का निर्माण हजारों सालों में होता है। यह महत्त्वपूर्ण कृषि-संसाधन है। लेकिन पर्यावरण के कुप्रबंधन; जैस-भू-कटाव, पानी का जमाव तथा खारे पानी के कारण यह संसाधन नष्ट होता जा रहा है। भवन-निर्माण के लिए ईंटों का उत्पादन भी मृदा की ऊपरी सतह के नाश के लिए जिम्मेदार है।

(4) जैविक विविध आवास संसाधनों का नष्ट होना-जैविक विविध आवासों; जैसे—जंगल (वन), घास के मैदान और आर्द्र भूमि आदि संसाधन भी बढ़ती कृषि भूमि के कारण समाप्ति के कगार पर खड़े हैं। इन आवासों की बढ़ती कमी कई वन्यजीवों की किस्मों के लिए खतरा है। उदाहरण के लिए-बाघों की जनसंख्या में निरन्तर गिरावट आ रही है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि संसाधनों की क्षीणता के कारण पर्यावरण के अनेक मुद्दे उभरे हैं। 

प्रश्न 8. 
पर्यावरण की समस्यायें सामाजिक समस्यायें भी हैं? कैसे? स्पष्ट कीजिये। 
उत्तर:
पर्यावरण की समस्यायें सामाजिक समस्याओं की जन्मदाता हैं । यथा

(1) पर्यावरणीय समस्याओं से सामाजिक असमानता बढ़ी है-पर्यावरणीय समस्यायें समाज में पाये जाने वाले विभिन्न समूहों की सामाजिक असमानता को भी प्रभावित करती हैं। समाजिक स्थिति और शक्ति भी पर्यावरणीय समस्या को हल करने और अन्य के लिए समस्या बन जाने का कारण बनती है। पर्यावरण की आपदाओं से बचने या उस पर विजय प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले समाधान भी कभी-कभी सामाजिक असमानताओं को बढ़ा देते हैं ।

उदाहरण के लिए-गुजरात राज्य के कुछ जिलों में, जहाँ पानी की बहुत कमी है, सम्पन्न किसानों ने अपने खेतों में उपजी नकदी फसलों की सिंचाई के लिए भू-जल प्राप्त करने हेतु काफी धन नलकूपों की गहरी खुदाई पर खर्च किया है। जब वर्षा नहीं होती है, तब गरीब ग्रामीणों के कुएँ सूख जाते हैं तथा उनमें पीने तक के लिए पानी नहीं रहता है। ऐसे समय में सम्पन्न किसानों के लहलहाते खेत गरीबों का मजाक उड़ाते दिखते हैं। इससे सामाजिक असमानता की समस्या और अधिक बढ़ गई। इसका कारण रहा पर्यावरणीय दृष्टि से जल प्रबंधन का न होना।

(2) जनहित के रूप में पर्यावरण सामाजिक विवाद का एक ज्वलंत मुद्दा है-कुछ पर्यावरण चिंतन कभीकभी सार्वभौमिक चिंतन बन जाते हैं जब इनके सम्बन्ध किसी विशेष सामाजिक वर्ग से नहीं रह जाते। उदाहरण के लिए-वायु प्रदूषण को कम करना अथवा जैव-विविधता को संरक्षण देना सार्वजनिक हित का कार्य है। समाजशास्त्रीय समीक्षा यह दर्शाती है कि सार्वजनिक प्राथमिकताओं को तय करने तथा उन्हें आगे बढ़ाने में राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्गों के हितों का ध्यान रखा जाता है। इसलिए कभी-कभी जनहित के कार्यों की रक्षक नीतियाँ भी वास्तव में राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली वर्गों के लाभ की रक्षा करती हैं अथवा गरीब और राजनीतिक रूप से कमजोर वर्गों को नुकसान पहुँचाती हैं। बड़े-बड़े बाँधों तथा उसके आस-पास के संरक्षित प्रदेशों से सम्बन्धित वादविवादों से स्पष्ट होता है कि जनहित के रूप में पर्यावरण बहस का एक ज्वलंत मुद्दा है।

प्रश्न 9. 
सामाजिक पारिस्थितिकी से क्या अभिप्राय है? 
उत्तर:
सामाजिक पारिस्थितिकी-सामाजिक पारिस्थितिकी समुदायों तथा पर्यावरण के सम्बन्धों का अध्ययन है। सामाजिक पारिस्थितिकी के अन्तर्गत किसी क्षेत्र विशेष के भौतिक, जैविक तथा सांस्कृतिक लक्षणों के अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है । सामाजिक पारिस्थितिकी की विचारधारा यह बताती है कि सामाजिक सम्बन्ध, मुख्य रूप से सम्पत्ति और उत्पादन के सम्बन्ध, पर्यावरण की सोच तथा प्रयास को एक रूप देते हैं । यह बताती है कि भिन्नभिन्न सामाजिक वर्ग भिन्न-भिन्न प्रकार से पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों को देखते हैं तथा समझते हैं।

उनकी अपनी-अपनी रुचियाँ तथा विचारधाराएँ पर्यावरण के सम्बन्ध में मतभेद उत्पन्न कर देती हैं। क्यूबर के अनुसार, "सामाजिक पारिस्थितिकी एक समुदाय में मनुष्यों एवं मानवीय संस्थाओं के प्रतीकात्मक सम्बन्धों एवं उनसे उत्पन्न क्षेत्रीय प्रतिमानों का अध्ययन है।" सामाजिक पारिस्थितिकी के अन्तर्गत इस बात का अध्ययन भी किया जाता है कि व्यक्ति किस प्रकार अपना अनुकूलन एक ओर तो भौगोलिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण के अनुसार करता है तथा दूसरी ओर वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार किस प्रकार पर्यावरण को नियंत्रित करने का प्रयास करता है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 पर्यावरण और समाज

प्रश्न 10. 
पर्यावरण से सम्बन्धित कुछ विवादास्पद मुद्दे जिनके बारे में आपने पढ़ा या सुना हो उनका वर्णन कीजिये। 
उत्तर:
पर्यावरण से सम्बन्धित कुछ विवादास्पद मुद्दे पर्यावरण से सम्बन्धित कुछ विवादास्पद मुद्दे निम्नलिखित हैं
(1) नर्मदा बचाओ आन्दोलन-मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए सन् 1995 में 'नर्मदा बचाओ आन्दोलन' प्रारंभ किया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व अरुन्धती राय ने किया। इसके अच्छे परिणाम सामने आए।

(2) चिपको आन्दोलन-उत्तरांचल राज्य में वनों को बचाने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने 27 मार्च, 1973 को चिपको आन्दोलन की शुरूआत की। श्री बहुगुणा पर्यावरण को बचाने के सिलसिले में कई बार जेल भी गए।

(3) पर्यावरण संरक्षण में रत महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व-निम्नलिखित व्यक्तियों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य किया
(i) चारुदत्त मिश्र-हिमालय की चोटियों पर पाए जाने वाले बर्फीले तेंदुए की लुप्त हो रही प्रजाति को बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। अप्रेल 2005 में उन्हें ब्रिटेन के पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार व्हाइटले गोल्ड प्रदान किया गया।

(ii) राजेन्द्र सिंह-राजस्थान राज्य को सूखे एवं मरुस्थलीकरण से बचाव में जुटे सामाजिक कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह को वर्ष 2001 के रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया क्योंकि इन्होंने छोटे-छोटे बांधों का निर्माण एवं जल संचय की नई विधियों का इस्तेमाल करके ग्रामीण परिवेश में नई क्रांति को जन्म दिया।

Prasanna
Last Updated on Sept. 7, 2022, 5:36 p.m.
Published Sept. 7, 2022