Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Psychology Chapter 8 चिंतन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
चिंतन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
चिंतन सभी संज्ञानात्मक गतिविधियों या प्रक्रियाओं का आधार है। यह केवल मानव जाति में ही पाया जाता है। इसमें वातावरण से प्राप्त सूचनाओं का प्रहस्तन एवं विश्लेषण सम्मिलित है। उदाहरण के लिए, एक पेंटिंग (चित्र) को देखते समय हम मात्र पेंटिंग के रंग अथवा रेखा एवं स्पर्श पर ही ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि हम उसके अर्थ को समझने के लिए चित्र से परे जाते हैं तथा सूचना को अपने वर्तमान ज्ञान से जोड़ने का प्रयास करते हैं।
अत: पेंटिंग की समझ में नए अर्थ का सृजन सम्मिलित है जो आपके ज्ञान में वृद्धि करता है। इस प्रकार चिंतन एक उच्चतर मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अर्जित अथवा वर्तमान सूचना का प्रहस्तन एवं विश्लेषण करते हैं। इस प्रकार का प्रहस्तन एवं विश्लेषण सार प्रस्तुत करने, तर्क करने, कल्पना करने, समस्या का समाधान करने, समझने एवं निर्णय लेने के माध्यम से उत्पन्न होता है।
चिंतन प्रायः संगठित और लक्ष्य निर्देशित होता है। खाना बनाने से लेकर गणित की समस्या का हल करने तक दिन प्रतिदिन की सभी गतिविधियों का एक लक्ष्य होता है। एक व्यक्ति यदि कार्य से सुपरिचित है तो योजना बनाकर पूर्व में अपनाए गए उपायों को पुनः स्मरण कर (यदि कृत्य सुपरिचित है) या यदि कृत्य नया है तो रचना-कौशल का अनुमान कर लक्ष्य तक पहुँचना चाहता है।
चिंतन एक आंतरिक मानसिक प्रक्रिया है जिसका अनुमान बाह्य या प्रकट व्यवहार से लगाया जा सकता है। एक चाल चलने से पहले कई मिनट तक चिंतन में तल्लीन किसी शतरंज के खिलाड़ी को क्या आपने देखा है ? आप यह नहीं देख सकते कि वह क्या सोच रहा है। आप उसकी अगली चाल से मात्र यह अनुमान लगा सकते हैं कि वह क्या सोच रहा था या वह किन युक्तियों का मूल्यांकन कर रहा था।
प्रश्न 2.
संप्रत्यय क्या है ? चिंतन प्रक्रिया में संप्रत्यय की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
संप्रत्यय : आप यह कैसे जानते हैं कि शेर एक पक्षी नहीं है जबकि तोता है? जब हम एक परिचित अथवा अपरिचित वस्तु या घटना को देखते हैं तब हम वस्तु या घटना के लक्षणों को खोज कर उनका मिलान पहले से विद्यमान वस्तुओं एवं घटनाओं के संवर्ग से करते हुए उसे पहचानने का प्रयास करते हैं। उदाहरणार्थ, जब हम एक सेब को देखते हैं तो इसे हम फल के रूप में वर्गीकृत करते हैं, जब हम एक मेज को देखते हैं तो इसे हम फर्नीचर के रूप में वर्गीकृत करते हैं, जब हम एक कुत्ते को देखते हैं तो इसे हम पशु के रूप में वर्गीकृत करते हैं इत्यादि। जब हम एक नई वस्तु को देखते हैं, हम उसके लक्षणों को खोजने का प्रयास करते हैं, पहले से विद्यमान संवर्ग के लक्षणों से मिलान करते हैं और यदि मिलान पूर्ण है तो हम उसे उस संवर्ग का नाम दे देते हैं।
उदाहरणार्थ, सड़क पर टहलते समय आपको बहुत छोटे आकार का एक चतुष्पाद मिल जाता है, चेहरा कुत्ते की तरह है, अपनी पूँछ हिला रहा है और अपरिचितों पर भौंक रहा है। आप नि:संदेह उसकी पहचान एक कुत्ते के रूप में करेंगे और संभवत: सोचेंगे कि यह एक नई प्रजाति का है जिसे आपने पहले कभी नहीं देखा था। आप यह भी निष्कर्ष निकालेंगे कि यह अपरिचितों को काटेगा। संप्रत्यय एक संवर्ग का मानस चित्रण है। यह एकसमान या उभयनिष्ठ विशेषता रखने वाली वस्तु, विचार या घटना का वर्ग है। अधिकांश संप्रत्यय जिनका उपयोग लोग चिंतन में करते हैं वे न तो स्पष्ट होते हैं और न ही असंदिग्ध होते हैं। वे अस्पष्ट होते हैं। वे एक-दूसरे से कुछ अंश तक मिलते-जुलते हैं और प्रायः अस्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं। उदाहरणार्थ, एक छोटे
स्टूल को आप किस संवर्ग में रखेंगे? क्या आप इसे किसी कुर्सी अथवा मेज के अंतर्गत रखेंगे? इसका उत्तर संभवत: यह होगा कि हम एक प्रतिमान आदि-प्रारुप का निर्माण करेंगे। किसी सवंर्ग का सर्वोत्तम प्रतिनिधि सदस्य आदि प्ररुप होता है। मनोवैज्ञानिक एलिनार रौश (Eleanor Rosch) का तर्क है कि यह समझने में कि लोग संप्रत्यय के विषय में किस प्रकार सोचते हैं, वास्तविक जीवन में प्रायः आदि-प्ररूप की आवश्यकता पड़ती है। आदि-प्ररूप मिलान करने में लोग एक वस्तु की एक संवर्ग की सबसे प्रतिनिधिक वस्तुओं से तुलना करके यह निश्चित करते हैं कि क्या वह उस संवर्ग का सदस्य है।
अत: स्टूल के उपर्युक्त उदाहरण में आप इसकी तुलना एक स्तरीय या मानक अध्ययन कुर्सी (यदि आप इसे कुर्सी का एक प्रतिनिधि उदाहरण मानते हैं एवं एक छोटे अध्ययन मेज (यदि आप इसे मेज का एक प्रतिनिधि उदाहरण मानते हैं) से करेंगे और इसके बाद स्टूल की विशेषताओं का मिलान इन दोनों संप्रत्ययों से करेंगे। यदि यह कुर्सी से मेल खाता
है तो इसे आप कुर्सी संवर्ग में रखेंगे अन्यथा इसे मेज संवर्ग में रखेंगे। दूसरे उदाहरण को लें- 'कप' का संप्रत्यय।
कप (1) मूर्त वस्तु है, (2) उन्नतोदर है, (3) इनमें ठोस या द्रव को रखा जा सकता है.(4) इनमें हैंडल होते हैं। उन कपों के विषयों में क्या कहेंगे जिन्हें हम बाजार में देखते हैं, जिनमें हैंडल नहीं है, रूप में वर्गाकार हैं अथवा आकार में बड़े हैं ? एक प्रयोग में प्रतिभागियों को उपर्युक्त चित्र की तरह कपों के चित्र दिखाए गए और डब्ल्यू. लैबाव (W. Labov) ने उनसे पूछा- आप इनमें से किसे 'कप' संप्रत्यय का आदि-प्ररुप कहेंगे। प्रतिभागियों ने प्रायः पाँचवें नंबर को चुना। रोचक बात यह रही कि कुछ प्रतिभागियों ने 4 नंबर को एक कटोरा तथा 9 नंबर को एक फूलदान कहा क्योंकि वे बहुत भिन्न थे।
प्रश्न 3.
समस्या समाधान की बाधाओं की पहचान कीजिए।
उत्तर :
समस्या समाधान में अवरोध : समस्या समाधान के दो प्रमुख अवरोध निम्नलिखित हैं :
1. मानसिक विन्यास : मानसिक विन्यास व्यक्ति के समस्या समाधान करने की एक प्रवृत्ति है जिसमें वह पहले से प्रयोग की गई मानसिक संक्रियाओं अथवा उपायों का अनुसरण करता है। किसी विशिष्ट युक्ति की पूर्व सफलता नई समस्या के समाधान में कभी-कभी सहायक होगी। यद्यपि यह प्रवृत्ति मानसिक दृढ़ता भी उत्पन्न करती है जो समस्या के समाधानकर्ता के लिए नए नियमों या युक्तियों के विषय में सोचने में बाधक बनती है। अतः कुछ स्थितियों में जहाँ मानसिक विन्यास समस्या समाधान की गुणवत्ता और गति में वृद्धि करता है वहीं अन्य स्थितियों में यह समस्या समाधान को बाधित करता है। आपने इसका अनुभव अपनी पाठयपस्तक की गणितीय समस्याओं को हल करते समय किया होगा। कुछ प्रश्नों को हल कर लेने के बाद, आप इन प्रश्नों
को हल करने के लिए आवश्यक नियमों के बारे में एक धारणा विकसित कर लेते हैं और बाद में आप उन्हीं नियमों का अनुसरण करते चले जाते हैं, उस समय तक जब तक कि आप असफल नहीं हो जाते। इस समय आप पहले से प्रयुक्त नियमों का परिहार करने में कठिनाई का अनुभव कर सकते हैं। ये नियम आपको नई युक्तियों पर विचार करने में बाधा उत्पन्न करेंगे। फिर भी हम दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रायः मिलती-जुलती या संबंधित समस्याओं के पूर्व अनुभव पर निर्भर करते हैं।
मानसिक विन्यास के समान ही, समस्या समाधान में प्रकार्यात्मक स्थिरता (Functional fixedness) उस समय उत्पन्न होती है जब लोग किसी चीज या परिस्थिति के सामान्य प्रकार्यों पर स्थिर हो जाने के कारण समस्या का हल करने में विफल हो जाते हैं। यदि आपने कभी मोटी दफ्ती मढ़ी हुई पुस्तक का उपयोग कील ठोकने के लिए किया है तो आप मानसिक स्थिरता को पार कर चुके हैं।
2. अभिप्रेरणा का अभाव : सभी लोग समस्या का समाधान करने में कुशल हो सकते हैं परंतु वे अभिप्रेरित नहीं हैं तो उनकी दक्षता एवं योग्यता किसी काम की नहीं है। कभी-कभी लोग जब पहले ही चरण को पूरा करने में कठिनाई या असफलता का अनुभव करते हैं तो वे शीघ्र ही निराश होकर कार्य छोड़ देते हैं। अतः समस्या का समाधान या हल ढूँढने के लिए कठिनाई के बाद भी उन्हें अपने प्रयास में निरंतर लगे रहने की आवश्यकता है।
प्रश्न 4.
समस्या समाधान में तर्कना किस प्रकार सहायक होती है?
उत्तर :
यदि आप रेलवे प्लेटफार्म पर एक व्यक्ति को तेजी से दौड़ते हुए देखते हैं तो आप अनेक प्रकार के अनुमान लगा सकते हैं, जैसे- वह उस रेलगाड़ी को पकड़ने के लिए दौड़ रहा है जो अभी छूटने वाली है, वह अपने मित्र को विदा करना चाहता है जो उस छूटने वाली रेलगाड़ी में बैठा है, उसने अपना बैग गाड़ी में छोड़ दिया है और उसे गाड़ी छूटने से पहले प्राप्त करना चाहता है। यह समझने या अनुमान करने के लिए कि वह व्यक्ति क्यों दौड़ रहा है, आप अनेक किस प्रकार के तर्कना, निगमनात्मक अथवा आगमनात्मक का उपयोग कर सकते हैं।
निगमनात्मक तथा आगमनात्मक तर्कना : चूँकि आपका पूर्व अनुभव यह बताता है कि प्लेटफार्म पर लोग रेलगाड़ी पकड़ने के लिए दौड़ते हैं, आप यह निष्कर्ष निकालेंगे कि इस व्यक्ति को देर हो रही है और वह रेलगाड़ी पकड़ने के लिए दौड़ रहा है। तर्कना का वह प्रकार जो एक अभिग्रह या पूर्वधारणा से प्रारंभ होता है उसे निगमनात्मक तर्कना कहते हैं। अत: निगमनात्मक तर्कना एक सामान्य अभिग्रह को विकसित करना है जिसे आप जानते हैं या विश्वास करते हैं कि सही है और फिर इस अभिग्रह के आधार पर विशिष्ट निष्कर्ष निकालते हैं। दूसरे शब्दों में यह सामान्य से विशिष्ट की ओर की तर्कना है। आपका सामान्य अभिग्रह यह है कि लोग प्लेटफार्म पर तब दौड़ते हैं जब उन्हें गाड़ी पकड़ने में देर हो रही होती है।
आदमी प्लेटफार्म पर दौड़ रहा है अत: उसे गाड़ी पकड़ने के लिए देर हो रही है। एक गलती जो आप कर रहे हैं (और निगमनात्मक तर्कना में आमतौर पर लोग इस प्रकार की गलती करते ही हैं) वह यह है कि आप मान लेते हैं परंतु हमेशा नहीं जानते हैं कि मूल कथन या अभिग्रह सही है। यदि आधारभूत सूचना सही नहीं है, अर्थात् लोग दूसरे कारणों से भी प्लेटफार्म पर दौड़ते हैं, तो आपका निष्कर्ष अवैध या गलत होगा। नीचे दिए गए चित्र में चुहिया को देखें
यह जानने के लिए कि आदमी प्लेटफार्म पर क्यों दौड़ रहा है, एक दूसरा तरीका भी है- आगमनात्मक तर्कना का उपयोग करना। कभी-कभी आप अन्य संभावित कारणों का विश्लेषण करते एवं देखते हैं कि वास्तव में व्यक्ति क्या कर रहा है और तब उसके व्यवहार के विषय में निष्कर्ष निकालते हैं। वह तर्कना
जो विशिष्ट तथ्यों एवं प्रेक्षण पर आधारित होती है उसे आगमनात्मक तर्कना कहा जाता है। आगमनात्मक तर्कना विशिष्ट प्रेक्षणों पर आधारित सामान्य निष्कर्ष निकालना है। पूर्व के उदाहरण में, आप अन्य व्यक्ति की अनुवर्ती क्रिया या गतिविधियों का प्रेक्षण करते हैं; जैसे- रेलगाड़ी के डिब्बे में प्रवेश करना और एक बैग के साथ वापस आना। अपने प्रेक्षण के आधार पर आप निष्कर्ष निकालेंगे कि व्यक्ति ने रेलगाड़ी में अपना बैग छोड़ दिया था। यहाँ आप संभवतः सभी तथ्यों को जाने बिना एक निष्कर्ष पर पहुंचने की गलती करते हैं। उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि तर्कना एक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए सूचनाओं को एकत्रित एवं विश्लेषित करने की एक प्रक्रिया है। इस अर्थ में तर्कना समस्या समाधान का भी एक प्रकार है।
प्रश्न 5.
क्या निर्णय लेना एवं निर्णयन अंतःसंबंधित प्रक्रियाएँ हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
निर्णयन : निगमनात्मक एवं आगमनात्मक तर्कना हमें निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करते हैं। निर्णय (Judgement) लेने में हम ज्ञान एवं उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकालते हैं, धारणा बनाते हैं, घटनाओं और वस्तुओं का मूल्यांकन करते हैं। इस उदाहरण पर विचार करें, यह आदमी बहुत वाचाल है, लोगों से मिलना पसंद करता है, दूसरों को सरलता से सहमत कर लेता है-वह बिक्रीकर्ता की नौकरी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस व्यक्ति के बारे में हमारा निर्णय एक निपुण बिक्रीकर्ता के लक्षणों या विशेषताओं पर आधारित है।
कभी-कभी निर्णय स्वचालित होते हैं और इसके लिए व्यक्ति की ओर से किसी चेतन प्रयास की आवश्यकता नहीं होती है तथा ये आदतवश हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, लाल बत्ती देखने पर ब्रेक लगाना, किंतु उपन्यास अथवा साहित्यिक पुस्तक के मूल्यांकन में आपके पूर्व ज्ञान एवं अनुभव के संदर्भ की आवश्यकता होती है। एक पेंटिंग के सौंदर्य के मूल्यांकन में आपकी व्यक्तिगत अभिरुचियाँ और पसंद सम्मिलित होंगी। अतः हमारे निर्णय हमारे विश्वासों और अभिवृत्तियों से स्वतंत्र नहीं होते हैं।
नवीन अर्जित सूचना के आधार पर हम अपने निर्णय में परिवर्तन भी करते हैं। एक उदाहरण देखिए। एक नया अध्यापक विद्यालय में पद-भार ग्रहण करता है, विद्यार्थी तत्काल निर्णय लेते हैं कि अध्यापक बहुत कठोर है। बाद की कक्षाओं में वे अध्यापक से घुल-मिल जाते हैं और अपने निर्णय में परिवर्तन कर लेते हैं। अब वे अध्यापक का मूल्यांकन अत्यंत छात्र-मित्र के रूप में करते हैं। अनेक समस्याएँ जिनका समाधान हम प्रतिदिन करते हैं
जिसमें निर्णयन की आवश्यकता पड़ती है। पार्टी में जाने के लिए क्या पहनें ? रात के भोजन में क्या खाएँ ? हमें अपने मित्र से क्या कहना है ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर अनेक विकल्पों में से किसी एक विकल्प को चुनने में पाया जाता है। निर्णयन में हम विकल्पों का चयन करते हैं जो कभी-कभी व्यक्तिगत महत्त्व के विकल्पों पर आधारित होता है। निर्णयन और निर्णय परस्पर संबंधित प्रक्रियाएँ हैं। निर्णयन में हमारे समक्ष जो समस्या होती है वह है प्रत्येक विकल्प से संबंधित लागत-लाभ का मूल्यांकन करते हुए विकल्पों में से चयन करना। उदाहरणार्थ, कक्षा 11 के विषय के रूप में मनोविज्ञान एवं अर्थशास्त्र में से किसी एक के चयन करने का विकल्प जब हमारे पास है तो यह निर्णयन हमारी रुचि, भावी अवसर, पुस्तकों की उपलब्धता, अध्यापकों की दक्षता इत्यादि पर आधारित होगा।
वरिष्ठ छात्रों और अध्यापकों से बातचीत, कुछ कक्षाओं में पढ़ लेना आदि के द्वारा हम इनका मूल्यांकन कर सकते हैं। निर्णयन अन्य तरह की समस्या समाधान से हटकर है। निर्णयन में हम पूर्व से ही विभिन्न समाधान या विकल्पों को जानते हैं और उनमें से एक का चयन करना होता है। उदाहरण के लिए, आपका मित्र बैडमिंटन का बहुत अच्छा खिलाड़ी है। उसे राज्य स्तर पर खेलने का अवसर मिल रहा है। उसी समय वार्षिक परीक्षा नजदीक आ रही है और उसके लिए उसे गहन अध्ययन की आवश्यकता है। उसे दो विकल्पों - बैडमिंटन के लिए अभ्यास या वार्षिक परीक्षा के लिए अध्ययन में से एक को चुनना होगा। इस स्थिति में उसका निर्णय विभिन्न परिणामों के मूल्यांकन पर आधारित होगा।
प्रश्न 6.
सर्जनात्मक चिंतन प्रक्रिया में अपसारी चिंतन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर :
सर्जनात्मक चिंतन प्रक्रिया में अपसारी चिंतन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें प्रवाह, लचीलापन, यांत्रिकता एवं विस्तरण आते हैं।
प्रश्न 7.
सर्जनात्मक चिंतन में विभिन्न प्रकार के अवरोध क्या हैं?
उत्तर :
सर्जनात्मक चिंतन करने में विभिन्न अवरोध आते हैं, जिन्हें आभ्यासिक, प्रात्यक्षिक, अभिप्रेरणात्मक, संवेगात्मक एवं सांस्कृतिक वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। नियमित कार्यों को सरलता एवं दक्षता से करने के लिए यद्यपि आभ्यासिक अधिगम की अधिक आवश्यकता होती है, फिर भी आदतों के वशीभूत हो जाने, विशेष रूप से सोचने या चिंतन करने के तरीकों में, की प्रवृत्ति सर्जनात्मक अभिव्यक्ति के लिए हानिकारक हो सकती है।
हम किसी घटना या वस्तु के सुपरिचित तीरके से चिंतन और प्रत्यक्षण के इतने अधिक अभ्यस्त हो जाते हैं कि नए तरीके से सोचना बहुत कठिन हो जाता है। शीघ्रता से निष्कर्ष पर पहुंचने की हमारी यह प्रवृत्ति, समस्याओं को नवीन परिप्रेक्ष्य में न देखने, कार्य करने के सामान्य एवं घिसे-पिटे तरीके से संतुष्ट हो जाने या पूर्वकल्पित धारणाओं से ऊपर उठने की इच्छा का अभाव, तात्कालिक निर्णय में परिवर्तन की अयोग्यता इत्यादि से संबंधित हो सकती है। प्रात्यक्षिक अवरोध हमें नए और मौलिक विचारों के प्रति खुला दृष्टिकोण रखने से रोकते हैं।
प्रश्न 8.
सर्जनात्मक चिंतन को कैसे बढ़ाया जा सकता
उत्तर :
सर्जनात्मक चिंतन का सामर्थ्य हम सभी में है। यह कुछ थोड़े से प्रतिभाशाली कलाकारों या वैज्ञानिकों या कुछ चुनिंदा लोगों तक ही सीमित नहीं है। सर्जनात्मक चिंतन की अभिव्यक्ति एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है। कोई व्यक्ति किस सीमा तक सर्जनात्मक हो सकता है, इसके निर्धारण में यद्यपि आनुवंशिक कारक महत्त्वपूर्ण हैं, तथापि पर्यावरणीय कारक सर्जनात्मक चिंतन योग्यताओं के विकास को प्रोत्साहित या बाधित करते हैं। भारत सहित विभिन्न देशों में शोधकर्ताओं ने परिवेशीय कारकों के कारण विभिन्न अवस्थाओं के स्कूल के बच्चों के सर्जनात्मक चिंतन के स्तर में गिरावट प्रदर्शित की है। इसके विपरीत शोधकर्ताओं ने यह भी बताया है कि निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों, सजातीय और अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों में काफी अविकसित सर्जनात्मकता होती है और वे अनेक प्रकार से सर्जनात्मक होते हैं।
शोध से यह भी स्पष्ट हुआ है कि हम सभी अभ्यास एवं प्रशिक्षण के द्वारा अपनी सर्जनात्मक चिंतन योग्यताओं का समुचित उपयोग कर सकते हैं। दिन-प्रतिदिन की समस्याओं का सर्जनात्मक एवं प्रभावशाली समाधान करने में हम अधिक कल्पनाशील, लचीला एवं मौलिक बन सकते हैं। एक व्यक्ति के विकास एवं परिपूर्णता के लिए सर्जनात्मक चिंतन का विकास महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 9.
क्या चिंतन भाषा के बिना होता है ? परिचर्चा कीजिए।
उत्तर :
चिंतन की विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं के विषय में आप सभी जानते हैं। हम सोचते हैं उसकी अभिव्यक्ति के लिए शब्द या भाषा आवश्यक है। यह खंड भाषा एवं विचार के मध्य संबंध की परीक्षा करता है। भाषा विचार को निर्धारित करती है और विचार भाषा को तथा भाषा एवं विचार के उद्गम भिन्न-भिन्न 123 विचार के निर्धारक के रूप में भाषा : हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में बंधुत्व संबंधों के लिए हम विभिन्न प्रकार के अनेक शब्दों का उपयोग करते हैं। माता के भाई, पिता के बड़े भाई, पिता के छोटे भाई, माता की बहन के पति, पिता की बहन के पति आदि के लिए हमारे पास अलग-अलग शब्द हैं।
एक अंग्रेज इन सभी बंधुत्व संबंधों के लिए मात्र एक शब्द 'अंकल' (अर्थात् चाचा) का उपयोग करता है। अंग्रेजी भाषा के रंगों के लिए अनेक शब्द हैं जबकि कुछ जनजातीय भाषाओं में केवल दो से चार रंगों के नाम हैं। क्या ऐसी भिन्नताएँ हमारे सोचने या चिंतन करने के तरीके के लिए महत्त्व रखती हैं ? क्या एक भारतीय बच्चे के लिए रिश्ते-नातों में विभेद करना अपने अंग्रेजी भाषा प्रतिपक्षी की तुलना में सरल है ? क्या हमारी चिंतन प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि हम उसका वर्णन भाषा में किस प्रकार करते हैं ? सच तो यह है कि चिंतन भाषा के बिना नहीं होता है।
प्रश्न 10.
मनुष्यों में भाषा का अर्जन किस प्रकार होता
उत्तर :
आयु के विभिन्न स्तरों पर मनुष्य किस प्रकार भाषा को अर्जित करता है एवं कैसे उसका उपयोग करता है यह विचारणीय प्रश्न है। कुछ क्षण सोचें- आप जो कहना चाहते हैं उसकी अभिव्यक्ति के लिए यदि आपके पास भाषा न हो तो क्या होगा ? भाषा के अभाव में अपने विचारों एवं अनुभूतियों को संप्रेषित करने में आप सक्षम नहीं होंगे और न ही आपके पास यह जानने का अवसर होगा कि दूसरे क्या सोचते या अनुभव करते हैं। एक बच्चे के रूप में आपने पहली बार जब 'माँ, माँ, माँ' कहना प्रारंभ किया तो न केवल आपको इस क्रिया को अनवरत दोहराने के लिए अत्यधिक बढ़ावा दिया, बल्कि यह आपके माता-पिता तथा अन्य पालनकर्ताओं के लिए भी हर्ष एवं आनंद का एक अद्भुत क्षण था।
धीरे-धीरे आपने 'माँ' और 'पापा' कहना सीख लिया और अपनी आवश्यकताओं, अनुभूतियों तथा विचारों को संप्रेषित करने के लिए कुछ समय बाद आपने दो या अधिक शब्दों को जोड़ा। परिस्थितियों के लिए उपयुक्त शब्दों को आपने सीखा और इन शब्दों से एक वाक्य बनाने के नियमों को भी आपने सीखा। आरंभ में आपने घर में प्रयुक्त होने वाली भाषा (प्रायः मातृभाषा) में संप्रेषण करना सीखा, स्कूल गए और शिक्षण की औपचारिक भाषा (अनेक स्थितियों में यह भाषा मातृभाषा से भिन्न होती है) को सीखा और ऊपर की कक्षाओं में प्रोन्नत किए गए तथा अन्य भाषाओं को सीखा। यही भाषा अर्जन की प्रक्रिया