RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

Rajasthan Board RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम Important Questions and Answers. 

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Psychology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Psychology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Psychology Notes to understand and remember the concepts easily.

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1. 
सीखने से परिवर्तन होता है
(अ) व्यक्ति की प्रेरणाओं में 
(ब) व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों में 
(स) व्यक्ति के व्यवहार में
(द) व्यक्ति के व्यक्तित्व में। 
उत्तर :
(स) व्यक्ति के व्यवहार में

प्रश्न 2. 
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाला शारीरिक कारक है - 
(अ) आयु एवं परिपक्वता 
(ब) लिंग-भेद 
(स) स्वास्थ्य
(द) उपर्युक्त सभी कारक 
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी कारक 

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 3. 
अधिगम तथा परिपक्वता में अंतर है -
(अ) परिपक्वता जन्मजात प्रक्रिया है तथा अधिगम अर्जित 
(ब) कालक्रमानुसार परिपक्वता पहले आती है तथा अधिगम बाद में 
(स) परिपक्वता की गति निश्चित होती है, जबकि अधिगम की गति को बढ़ाया जा सकता है। 
(द) उपर्युक्त सभी अन्तर। 
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी अन्तर। 

प्रश्न 4. 
अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले सामाजिक कारक हैं
(अ) अनुकरण
(ब) प्रशंसा एवं निन्दा 
(स) प्रतियोगिता 
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5. 
सीखने के पठार की दिशा में
(अ) सीखने की गति घट जाती है
(ब) सीखने की गति बढ़ जाती है 
(स) सीखने की गति में वृद्धि नहीं होती
(द) सब कुछ भूल जाता है। 
उत्तर :
(स) सीखने की गति में वृद्धि नहीं होती

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 6. 
थॉर्नडाइक के अनुसार सीखने के लिए आवश्यक नहीं है - 
(अ) तैयारी
(ब) अभ्यास 
(स) प्रभाव या परिणाम 
(द) सूझ 
उत्तर :
(द) सूझ 

प्रश्न 7. 
प्रयत्न एवं भूल विधि को दर्शाने के लिए थॉर्नडाइक ने प्रयोग किया था - 
(अ) बन्दरों पर 
(ब) बिल्ली पर
(स) चूहों पर 
(द) मनुष्यों पर 
उत्तर :
(ब) बिल्ली पर

प्रश्न 8. 
सीखने के पठार को दूर करने के उपाय हैं -
(अ) प्रबल प्रेरक जुटाना 
(ब) अधिगम की विधि को बढाना 
(स) कुछ समय के लिए विश्राम करना
(द) उपर्युक्त सभी उपाय। 
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी उपाय। 

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. 
सीखने अथवा अधिगम की एक उत्तम परिभाषा लिखिए।
उत्तर : 
सीखना व्यवहार में वह परिवर्तन है जो अभ्यास के फलस्वरूप होता है और यह परिवर्तन, परिपक्वता, थकान, औषधि सेवन के कारण हुए परिवर्तन से भिन्न होता है। प्रायः ऐसे परिवर्तन सापेक्ष रूप से स्थायी होते हैं और इनका उद्देश्य व्यक्ति को वातावरण के साथ समायोजन में सहायता पहुँचाना होता है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 2. 
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले शरीर सम्बन्धी कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : 
1. आयु एवं परिपक्वता, 
2. लिंग भेद, 
3. स्वास्थ्य, 
4. औषधि सेवन अथवा नशे की स्थिति।

प्रश्न 3. 
सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्य सामाजिक कारक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : 
1. अनुकरण, 
2. निर्देश, 
3. प्रशंसा एवं निन्दा, 
4. सहयोग, 
5. प्रतियोगिता।

प्रश्न 4. 
प्रशंसा एवं निंदा का सीखने की प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : 
प्रशंसा एवं निंदा सामाजिक कारक हैं। प्रशंसा सीखने की प्रक्रिया के लिए सहायक कारक है तथा निन्दा सीखने के लिए बाधक सामाजिक कारक है।

प्रश्न 5. 
परिपक्वता से क्या आशय है ?
उत्तर : 
परिपक्वता से आशय है शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास। परिपक्वता का मापदंड पुष्टता एवं क्षमता

प्रश्न 6. 
सीखने की प्रक्रिया के मुख्य नियमों का प्रतिपादन किसने किया है ?
उत्तर : 
सीखने की प्रक्रिया के मुख्य नियमों का प्रतिपादन थॉर्नडाइक ने किया है।

प्रश्न 7. 
थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादिक सीखने के मुख्य नियम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : 
1. तैयारी का नियम, 
2. अभ्यास का नियम, 
3. प्रभाव का नियम।

प्रश्न 8. 
सीखने के पठार से क्या आशय है ?
उत्तर : 
व्यक्ति द्वारा सीखने की गति या दर में जब स्थिरता आ जाती है अर्थात् उसमें वृद्धि रुक जाती है तो उस स्थिति को "सीखने का पठार" कहा जाता है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 9. 
मनुष्यों द्वारा सामान्य कार्यों को सीखने के लिए सबसे अधिक किस विधि को अपनाया जाता है ?
उत्तर : 
मनुष्यों द्वारा सामान्य कार्यों को सीखने के लिए सबसे अधिक अनुकरण विधि को अपनाया जाता है।

प्रश्न 10. 
अनुकरण से क्या आशय है ?
उत्तर : 
जब कोई व्यक्ति अथवा पशु किसी अन्य व्यक्ति अथवा पशु को देखकर किसी कार्य को करता है तब कहा जाता है कि वह कार्य अनुकरण द्वारा सीखा गया है।

प्रश्न 11. 
प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए मुख्य रूप से किन मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण किया तथा किन-किन पशुओं पर परीक्षण किए ?
उत्तर : 
प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए थार्नडाइक ने बिल्ली पर तथा मैक्डूगल ने चूहों पर परीक्षण किए थे।

प्रश्न 12.
प्रग्रल एवं भूल विधि द्वारा मुख्य रूप से किस वर्ग के बच्चे कार्यों को करना सीखते हैं ?
उत्तर : 
सामान्य रूप से मंदबुद्धि वर्ग के बालक प्रयत्न एवं - भूल विधि द्वारा कार्यों को करना सीखते हैं।

प्रश्न 13. 
सूझ द्वारा सीखने की विधि के प्रतिपादन का कार्य मुख्य रूप से किस मनोवैज्ञानिक ने किया था ?
उत्तर : 
सूझ द्वारा सीखने की विधि के प्रतिपादन का श्रेय जर्मन गैस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक कोहलर को है।

प्रश्न 14. 
सीखने के सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धान्त को अन्य किन नामों से जाना जाता है ?
उत्तर : 
सीखने के सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धान्त को प्राचीन अनुबन्धन सिद्धान्त तथा सीखने का शास्त्रीय सिद्धान्त भी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
सीखने के सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रतिपादन किसने किया था ?
उत्तर : 
सीखने के सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम रूस के शारीर-शास्त्री पैवलोव I.P.Pavlov ने किया था।

प्रश्न 16.
नैमित्रिक अनुबन्धन के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं ? 
उत्तर : 
1. पुरस्कार नैमित्रिक अनुबन्धन
2. परिहार नैमित्तिक अनुबन्धन 
3. अकर्म नैमित्तिक अनुबन्धन
4. दंड नैमित्तिक अनुबन्धन। 

प्रश्न 17. 
सीखने के स्थानान्तरण की एक सरल परिभाषा दीजिए।
उत्तर : 
जब शिक्षण के एक क्षेत्र में प्राप्त विचार, अनुभव या कार्य की आदत ज्ञान या निपुणता का दूसरी परिस्थिति में प्रयोग किया जाता हैं तो वह शिक्षण या सीखने का स्थानान्तरण कहलाता

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 18. 
सीखने के स्थानान्तरण में सहायक चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए
उत्तर : 
1. सीखने की उत्तम विधि
2. सामान्यीकरण की क्रिया 
3. अधिगम स्थानान्तरण के लिए प्रयास करना 
4. सीखने के विषय के प्रति अनुकूल मनोवृत्ति।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA1)

प्रश्न 1. 
सीखने या अधिगम तथा परिपक्वता में क्या पारस्परिक सम्बन्ध है ?
उत्तर : 
सीखना तथा परिपक्वता : सीखना तथा परिपक्वता दोनों ही व्यक्ति के व्यवहार को परिवर्तित करते हैं, परन्तु वास्तव में परिपक्वता वह आधार है जो किसी कार्य को सीखने के लिए आवश्यक होता है। जब तक किसी कार्य को सीखने के लिए पर्याप्त परिपक्वता नहीं है, तब तक सीखने की प्रक्रिया चल ही नहीं सकती। उदाहरण के लिए यदि - चार माह के शिशु को आप चलना सिखाएँ तो वह चलना कदापि नहीं सीख सकता, क्योंकि वह इस दृष्टि से आवश्यक रूप से परिपक्व नहीं है।

यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी परिपक्वता के अनुकूल विषयों को सीखने में असमर्थ रहता है तो उस स्थिति में यह परिपक्वता भी व्यर्थ ही है। उदाहरण के लिए-यदि कोई व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से पर्याप्त पुष्ट है, परन्तु फिर भी चलना या बोलना नहीं जानता तो उसकी यह पुष्टता किस काम की ? इस प्रकार स्पष्ट है कि परिपक्वता तथा सीखने की प्रक्रिया में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में पहले परिपक्वता आती है, तत्पश्चात् ही सीखने की प्रक्रिया संभव हो पाती है। यह भी कहा जा सकता है कि परिपक्वता सीखने के लिए एक आवश्यक शर्त है।

प्रश्न 2. 
अनुकरण विधि की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर : 
अनुकरण विधि की विशेषताएँ : हम किसी भाषा को बोलना, चलना-फिरना तथा सामान्य जीवन की असंख्य बातें अनुकरण द्वारा ही सीखते हैं। 
वस्तुतः सीखने की दिशा में मनुष्यों तथा पशुओं द्वारा यही विधि सर्वाधिक अपनायी जाती है। इसकी निम्न विशेषताएँ हैं :
1. इस विधि के अन्तर्गत अन्य व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों को उसके अनुरूप ही किया जाता है।
2. सामान्य रूप से अनुकरण करने वाला व्यक्ति उस क्रिया से पहले से परिचित नहीं होता जिसका वह अनुसरण करता है।
3. इस विधि में सर्वाधिक बल नकल पर दिया जाता है। अनुकरण किए गए कार्य में व्यक्ति की रुचि होना आवश्यक नहीं
4. इस विधि में भूल अथवा त्रुटि की संभावना नहीं होती।
5. इस विधि में अनुकरणकर्ता तथा मूलकर्ता की क्रियाओं । में पूरी तरह से समानता होती है।

प्रश्न 3. 
प्रयल एवं त्रुटि विधि के महत्व का वर्णन | कीजिए।
उत्तर : 
प्रयत्न एवं त्रुटि विधि का महत्व : छोटे बच्चों | और मन्दबुद्धि बालकों को इस विधि से विशेष लाभ प्राप्त होता । है। वे अधिकतर बातें एवं कार्य इसी विधि द्वारा सीखते हैं। किसी नई परिस्थिति के सामने आने पर बालक प्रयत्न करते हैं। प्रयास एवं गलतियों के दौरान अचानक वे सही प्रतिक्रिया करना या कार्य करना सीख जाते हैं। यह विधि गणित, व्याकरण आदि सीखने के लिए अधिक अच्छी है। यह छोटी आयु के बालकों के लिए उपयुक्त है। मन्दबुद्धि बालक भी इसी विधि से सब कुछ सीखते हैं क्योंकि उनमें बुद्धि कम होती है, इसलिए वह सुझ-बूझ द्वारा नहीं सीख पाते हैं।

प्रश्न 4. 
सीखने के स्थानान्तरण के गेस्टाल्ट सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
गेस्टाल्ट सिद्धान्त : अधिगम के स्थानान्तरण में दो तत्वों के इस सिद्धान्त के प्रतिपादन का कार्य मुख्य रूप से गेस्टाल्टवादियों ने ही किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी कार्य को करने या सीखने की सम्पूर्ण परिस्थिति का विशेष महत्व होता है। किसी कार्य को करने या सीखने में व्यक्ति की सूझ या अंतर्दृष्टि (Insight) का विशेष योगदान होता है। सीखने के स्थानान्तरण के सिद्धान्त के सत्यापन के लिए गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक कोहलर ने छोटे बच्चों, चिम्पैजियों या चूजों पर विभिन्न परीक्षण किए तथा निष्कर्षस्वरूप बताया कि सीखने के स्थानान्तरण के लिए सूझ या अन्तर्दृष्टि अनिवार्य होती है।

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर (SA2)

प्रश्न 1. 
परिपक्वता से क्या आशय है ?
उत्तर : 
परिपक्वता का अर्थ : परिपक्वता का सम्बन्ध शारीरिक, मानसिक शक्तियों के विकास से है। जन्म के बाद से ही मानव-शिशु के शरीर का निरन्तर विकास होता रहता है। जैसे-जैसे उसके शरीर के विभिन्न अंगों की वृद्धि होती है, वैसे-वैसे उन अंगों की शक्ति एवं क्षमता भी बढ़ती है। विभिन्न अंगों की क्षमता का बढ़ना एवं उनका सुदृढ़ होना ही परिपक्वता | है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि परिपक्वता तथा आकार की वृद्धि में पर्याप्त अन्तर है। बड़े आकार का आशय अधिक परिपक्वता नहीं है।

एक बच्चा पाँच वर्ष की आयु में किसी अन्य सात वर्ष के बच्चे से आकार एवं वजन में अधिक हो सकता है, परन्तु वह उससे अधिक परिपक्व नहीं हो सकता। परिपक्वता का मापदंड पुष्टता एवं क्षम का है। वस्तुत: परिपक्वता एक निश्चित विकासात्मक प्रक्रिया का परिणाम है। जैसे-जैसे विकास होता है, वैसे-वैसे परिपक्वता भी आती रहती है। परिपक्वता के स्तर भी निश्चित होते हैं। 5 वर्ष की आयु में परिपक्वता दस वर्ष की आयु की परिपक्वता से अनिवार्य रूप से कम होगी। बेरिंग ने परिपक्वता का अर्थ इन शब्दों में प्रस्तुत किया है

"हम परिपक्वता शब्द का प्रयोग उस वृद्धि और विकास के लिए करेंगे जो किसी बिना सीखे हुए व्यवहार के या विशिष्ट व्यवहार के सीखने के लिए आवश्यक होता है।" स्पष्ट है कि प्रत्येक कार्य को करने अथवा सीखने के लिए जो शक्ति अथवा क्षमता की आवश्यकता होती है उसे ही परिपक्वता कहा जाता है। उदाहरण के लिए-मानव शिशु के लिए चल-फिर सकने के लिए इतनी परिपक्वता अनिवार्य होती है कि उसकी टाँगें पूरे शरीर का वजन उठा सकें तथा शरीर का संतुलन बना सके।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 2.
'सीखने के पठार' को दूर करने के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
'सीखने के पठार' को दूर करने के उपाय : प्रत्येक व्यक्ति अपने सीखने के स्तर को निरन्तर उन्नत करना चाहता है, परंतु पठार की स्थिति में सीखने की गति या उन्नति अवरुद्ध हो जाती है, अत: इस पठार की स्थिति को समाप्त करना अनिवार्य है। सीखने के पठार को समाप्त करने के लिए मुख्य रूप से निम्न उपाय किए जा सकते हैं :

  • सर्वप्रथम पठार के उत्पन्न होने के मुख्य कारण को ज्ञात करना अनिवार्य है। इसके बाद उस कारण को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए।
  • पठार को समाप्त करने के लिए किसी प्रबल प्रेरक को अवश्य बनाए रखना चाहिए।
  • पठार को समाप्त करने के लिए कभी-कभी सीखने की विधि को बदलना अच्छा रहता है। नई विधि के प्रति अपेक्षाकृत अधिक उत्साह होता है।
  • कभी-कभी थकान के कारण भी पठार आ जाता है। ऐसी स्थिति में पर्याप्त आराम करना चाहिए। आराम के बाद पुनः सीखने का प्रयास करना चाहिए। इससे सीखने की गति तीव्र हो सकती है।
  • कुछ मनोवैज्ञानिक पठार को आगे सीखने की मानसिक तैयारी मानते हैं। अतः पठार की स्थिति को पूर्णतः समाप्त नहीं करना चाहिए।
  • शिक्षण में विविधता एवं रोचकता का ध्यान रखकर भी सीखने के पठार से बचा जा सकता है।
  •  सीखने में पठार न आए इसके लिए व्यक्तिगत विभिन्नता के सिद्धान्त को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

प्रश्न 3. 
'प्रयत्न एवं भूल विधि' तथा 'सूझ विधि' में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
'प्रयत्न एवं भूल विधि' तथा 'सूझ विधि' में अंतर : मनुष्य के सीखने में प्रयत्न एवं भूल विधि का व्यापक प्रयोग होता है। शिशु के बोलचाल की भाषा सीखने में, बालक के अंकगणित सीखने में और प्रौढ़ व्यक्ति के किसी अपरिचित काम को करने में यह विधि दिखाई पड़ती है। दूसरी ओर अंतर्दृष्टि या सूझ का समस्याओं के सुलझाव में बड़ा महत्व है। उच्च श्रेणी के पशुओं तथा मनुष्यों में यह पाई जाती है। प्रयत्न एवं भूल विधि तथा सूझ विधि में निम्नलिखित अंतर पाए जाते हैं :

प्रयत्न एवं भूल विधि 

सूझ विधि 

1. इस विधि में शारीरिक कुशलता को अधिक महत्व दिया जाता है। 
2. यह विधि संवेदी-प्रेरक समायोजन पर आधारित होती है। 
3. इस विधि में विभिन्न प्रयासों को बदल-बदल कर किया जाता है।
4. इस विधि द्वारा पर्याप्त प्रयास के बाद सफलता मिलती है। 
5. इस विधि द्वारा प्रत्येक नई समस्या को नए ढंग से प्रारंभ किया जाता है। किसी एक समस्या का समाधान अन्य समस्याओं के समाधान हेतु काम नहीं आता।

1. यह विधि मुख्य रूप से बौद्धिक शक्ति के प्रयोग पर निर्भर करती है। 
2. यह मुख्य रूप से प्रत्यक्षीकरण पर आधारित होती है। 
3. इसमें बार-बार प्रयास को बदलने के स्थान पर एक दो बार में ही सफल प्रयास की चेष्टा की जाती है। यह सफल चेष्टा अधिगमकर्ता के उच्च बौद्धिक स्तर पर निर्भर करती है। 
4. इस विधि द्वारा एकाएक ही सफलता मिल जाती है। 
5. सूझ विधि द्वारा एक बार किसी समस्या का हल प्राप्त कर लेने के बाद अन्य समरूप समस्याओं के हल में भी सहायता मिलती है।


प्रश्न 4. 
सीखने के स्थानान्तरण के दो तत्वों के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
उत्तर : 
दो तत्वों का सिद्धान्त : अधिगम के स्थानान्तरण के दो तत्वों के सिद्धान्त को प्रतिपादित करने का श्रेय स्पीयरमैन (Spearman) को है। इस सिद्धान्त को 'सामान्य तथा विशिष्ट अंश का सिद्धान्त' भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त को प्रतिपादित करने के लिए सर्वप्रथम स्पष्ट किया गया है कि व्यक्ति की बुद्धि दो प्रकार की होती है। बुद्धि के इन दोनों प्रकारों को क्रमश: सामान्य बुद्धि तथा विशिष्ट बुद्धि के नामों से जाना जाता है। सामान्य बुद्धि को G से दर्शाया जाता है तथा विशिष्ट बुद्धि कोs से दर्शाया जाता है। 

स्पीयरमैन के सिद्धान्त के अनुसार सामान्य बुद्धि अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य रूप से विद्यमान होती है, परन्तु विशिष्ट बुद्धि अर्थात् । विभिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न रूप में पायी जाती है। जहाँ तक अधिगम के स्थानान्तरण का प्रश्न है, उसमें व्यक्ति की सामान्य बुद्धि द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। अत: अधिगम के उत्तम एवं सफल स्थानान्तरण के लिए व्यक्ति की सामान्य बुद्धि को प्रशिक्षित करना आवश्यक होता है तथा इसी प्रशिक्षण का महत्व है।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 5. 
सीखने के अनुबन्धन सिद्धान्त के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
अनुबन्धन सिद्धान्त का महत्व : पैवलोव का मत था कि समस्त सीखना या शिक्षण किसी न किसी रूप में अनुबन्धन सिद्धान्त द्वारा ही होता है। इस मत को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता, परन्तु यह सत्य है कि इस सिद्धान्त का समुचित महत्व है। पशुओं तथा मनुष्यों द्वारा बहुत सी बातें इसी सिद्धान्त के अनुसार सीखी जाती हैं।

भालू को नाचना इसी सिद्धान्त के अनुसार सिखाया जाता है। जब भालू को नाचना सिखाया जाता है तब उसे एक तवे पर खड़ा किया जाता है। इसके बाद धीरे-धीरे तवे को गर्म किया जाता है, तथा साथ ही साथ डुगडुगी बजाई जाती है। प्रारंभ में भालू तवा गर्म लगने के कारण अपने पैरों को बार-बार उठाता है। इसके बाद केवल डुगडुगी बजाने पर ही वह नाचने लगता है। 

मनुष्यों द्वारा भी बहुत से कार्य अनुबन्धन सिद्धान्त द्वारा सीखे जाते हैं। शब्दों के अर्थ तथा वस्तुओं या व्यक्तियों की पहचान इसी सिद्धान्त द्वारा होती है। अनुबन्धन सिद्धान्त का एक अन्य महत्व भी है। यह सिद्धान्त निषेधात्मक समायोजन (Negative Adaptation) के रूप में अपनाया जा सकता है। यदि ऐसी व्यवस्था कर दी जाए कि कोई व्यक्ति जब-जब शराब पीए तब-तब उसे भयंकर पीड़ा का अनुभव हो तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि वह व्यक्ति शराब । पीना छोड़ दे। स्पष्ट है कि अवांछनीय आदतों को छुड़ाने के लिए | भी इस सिद्धान्त को अपनाया जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
परिपक्वता तथा सीखने में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
परिपक्वता तथा सीखने में अंतर : सीखने से व्यवहार में परिवर्तन होता है। ठीक इसी रूप में परिपक्वता से भी व्यवहारगत परिवर्तन दिखाई देते है। अत: यह समझ पाना कठिन हो जाता है कि कैन-सी क्रिया सीखने का परिणाम है तथा कौन सी परिपक्वता का परिणाम है। वास्तव में ये क्रियाएँ परिपक्व व सीखने की जटिल परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप विकास को प्राप्त होती हैं। तथापि इन दोनों में कुछ असमानताएँ भी दिखाई देती है। इनका अन्तर निम्न प्रकार से प्रकट होता है:

(i) परिपक्वता एक स्वाभाविक तथा जन्मजात प्रक्रिया है। परिपक्वता की यह स्वाभाविक प्रक्रिया अपने सामान्य रूप एवं गति में चलती है। इसके लिए व्यक्ति की इच्छा या प्रयास की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। इससे भिन्न सीखने की प्रक्रिया अपने आप में एक अर्जित प्रक्रिया है। इसके लिए व्यक्ति की इच्छा एवं प्रयास की विशेष भूमिका होती है।

(ii) सीखने की प्रक्रिया परिपक्वता पर आधारित होती है, या यह भी कहा जा सकता है कि सीखने की प्रक्रिया परिपक्वता पर निर्भर करती है। कालक्रमानुसार परिपक्वता पहले आती है तथा सीखने की प्रक्रिया बाद में सम्पन्न होती है।

(iii) परिपक्वता एक सामान्य गुण है जो प्रजातीय आधार पर पूर्व-निर्धारित होता है। एक प्रजाति के सभी व्यक्तियों में परिपक्वता का विकास लगभग सामान्य रूप में होता है। इससे भिन्न सीखने की प्रक्रिया एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है तथा इसका स्वरूप एवं गति व्यक्ति के गुणों, क्षमताओं आदि पर निर्भर करती है।

(iv) सामान्य रूप से परिपक्वता की गति सामान्य होती है तथा उसे सप्रयास परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इससे भिन्न सीखने की प्रक्रिया की गति को अभ्यास एवं प्रयास द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है।

(v) सीखने की प्रक्रिया पर समाजिक पर्यावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है। इससे भिन्न परिपक्वता का सम्बन्ध भौतिक पर्यावरण तथा आहार एवं पोषण से अधिक होता है।

(vi) सीखने की प्रक्रिया का क्षेत्र विस्तृत है। इसका सम्बन्ध मानसिक, शारीरिक तथा नैतिक आदि अनेक क्षेत्रों से हो सकता है। इससे भिन्न परिपक्वता का सम्बन्ध मुख्य रूप से शारीरिक क्षमताओं से ही होता है।

(vii) प्रबल प्रेरणाएँ सीखने की प्रक्रिया को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। सामान्य रूप से प्रेरकों की उपस्थिति में सीखने की गति तीव्र हो जाती है। इससे भिन्न परिपक्वता की प्रक्रिया पर प्रेरणाओं का कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ता। परिपक्वता का विकास अपनी स्वाभाविक गति से होता है।

(viii) सीखने की प्रक्रिया अपने आप में एक सचेतन प्रक्रिया है अर्थात् व्यक्ति को इस प्रक्रिया का स्पष्ट ज्ञान रहता है। इससे भिन्न परिपक्वता की प्रक्रिया एक अचेतन प्रक्रिया है, अर्थात् इस प्रक्रिया का व्यक्ति को कोई स्पष्ट ज्ञान नहीं होता।

RBSE Class 11 Psychology Important Questions Chapter 6 अधिगम

प्रश्न 2. 
सीखने पर प्रेरणा के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
सीखने पर प्रेरणा का प्रभाव : व्यक्ति के प्रत्येक कार्य के सम्पन्न होने के पीछे कोई न कोई प्रेरणा अनिवार्य रूप से होती है। सीखने की प्रक्रिया प्रेरणा द्वारा तीव्र गति से चलती है. अर्थात् सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा का विशेष स्थान है तथा सीखने की प्रक्रिया पर प्रेरणा का प्रभाव पड़ता है। एंडरसन ने इसी तथ्य को इन शब्दों में स्पष्ट किया है। "सीखना प्रेरणा पाकर सर्वोत्तम ढंग से आगे बढ़ना है। वास्तव में प्रेरणा के पूर्ण अभाव में सीखने की प्रक्रिया चल ही नहीं सकती।" सीखने पर प्रेरणा के प्रभाव की व्याख्या करते हुए सर्वप्रथम कहा जा सकता है कि प्रेरणा द्वारा ही सीखने की प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है। जब तक बालक में प्रेरणा जागृत नहीं होगी, तब तक वह कुछ भी नहीं सीख सकता। थार्नडाइक द्वारा  प्रतिपादित सीखने के नियमों के विश्लेषण से ही ज्ञात होता है कि सीखने में प्रेरणा का विशेष महत्व है। 

किसी कार्य को सीखने के लिए छात्र एवं व्यक्ति का सामान्य व्यवहार भी नियन्त्रित होना चाहिए। व्यवहार के नियंत्रण के लिए विभिन्न प्रेरक उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। विद्यालय में भी निंदा, प्रशंसा, पुरस्कार तथा दंड आदि के माध्यम से बच्चों के व्यवहार को नियंत्रित किया जाता है। अच्छी आदतों को सीखने तथा चरित्र के निर्माण के लिए भी प्रेरकों का योगदान सराहनीय रहता है। किसी विषय को सीखने या याद करने के लिए ध्यान को केन्द्रित करना पड़ता है। ध्यान के केन्द्रित करने के लिए रुचि का होना अनिवार्य है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ध्यान को केन्द्रित करने तथा विषय को सीखने के लिए प्रेरणा का होना अनिवार्य है। शिक्षा के क्षेत्र में पूरी की पूरी प्रक्रिया का कोई न कोई लक्ष्य अवश्य होता है।

लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी प्रबल प्रेरणा का होना अनिवार्य है। तथा यह भी अनिवार्य है कि जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए, तब तक प्रेरणा का स्तर बनाए रखें। पाठ्यक्रम के निर्धारण के समय भी इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि विषय इस प्रकार के हों जो छात्रों को निरन्तर रूप से प्रेरित करते रहें। इस प्रकार स्पष्ट है कि सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रेरणा के अभाव में कोई भी विषय नहीं सीखा जा सकता। जितना ही प्रबल प्रेरक, उपस्थित होगा, उतनी ही सीखने की प्रक्रिया सुचारू रूप से तथा तीव्र गति से सम्पन्न होगी।
 

Bhagya
Last Updated on Sept. 26, 2022, 5:54 p.m.
Published Sept. 26, 2022