RBSE Solutions for Class 11 Psychology Chapter 3 मानव व्यवहार के आधार

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RBSE Class 11 Psychology Solutions Chapter 3 मानव व्यवहार के आधार

प्रश्न 1. 
विकासवादी परिप्रेक्ष्य व्यवहार के जैविक आधार की किस प्रकार व्याख्या करता है ?
उत्तर : 
आधुनिक मानवों के तीन महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण उन्हें अपने पूर्वजों से अलग करते हैं :
(i) बड़ा और विकसित मस्तिष्क जिसमें संज्ञानात्मक व्यवहार; जैसे- प्रत्यक्षण, स्मृति, तर्कना, समस्या समाधान और संप्रेषण के लिए भाषा का उपयोग करने की अधिक क्षमता,
(ii) दो पैरों पर सीधा खड़ा होकर चलन की क्षमता, और 
(iii) काम करने योग्य विपरीत अगूंठे के साथ मुक्त हाथ। ये अभिलक्षण हमारे पास कई हजार वर्षों से हैं।

हमारे व्यवहार अन्य प्रजातियों की तुलना में बहुत जटिल और विकसित हैं क्योंकि हमारे पास बड़ा और अधिक विकसित मस्तिष्क है। मानव मस्तिष्क के विकास का प्रमाण दो तथ्यों से दिया जाता है। प्रथम, मस्तिष्क का वजन हमारे शरीर के कुल भार का 2.35 प्रतिशत है और यह सभी प्रजातियों की तुलना में सर्वाधिक है। (हाथी में यह 0.2 प्रतिशत है)। दूसरा, मनुष्य का प्रमस्तिष्क (मस्तिष्क के सामने का बड़ा भाग), मस्तिष्क के अन्य अंगों से अधिक विकसित है।

बाद में यह विकास पर्यावरण की मांगों के परिणामस्वरूप हुआ है। कुछ व्यवहार इस विकास में स्पष्ट भूमिका निभाते हैं। उदाहरणार्थ, आहार खोजने की योग्यता, परभक्षी से दूर रहना और छोटे बच्चों की सुरक्षा। ये सब जीव तथा उसकी प्रजाति की उत्तरजीविता से संबंधित उद्देश्य हैं। वे जैविकीय और व्यवहारात्मक विशेषताएँ जो इन उद्देश्यों को पूरा करने में हमारी सहायता करती हैं, जीन के माध्यम से इन विशेषताओं को अगली पीढ़ी तक पहुँचने में जीव की योग्यता को बढ़ाती हैं। पर्यावरण की आवश्यकताएँ लंबे समय में जैविकीय और व्यवहारात्मक परिवर्तन लाती हैं।

हमारे व्यवहार का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक हमारी जैविकीय संरचना है जो हमें हमारे पूर्वजों से एक विकसित शरीर और मस्तिष्क के रूप में उत्तराधिकार में मिली है। किसी दुर्घटना, बीमारी या दवाओं के सेवन से जब मस्तिष्क की कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तब इन जैविकीय आधारों का महत्त्व स्पष्ट दिखाई देता है। इस तरह के उदाहरणों में कई तरह की शारीरिक एवं मानसिक अशक्तता विकसित हो जाती है। कई बच्चों में माता-पिता से दूषित जीन के संचरण के कारण मानसिक मंदन तथा अन्य असामान्य लक्षण विकसित हो जाते हैं।

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प्रश्न 2. 
तंत्रिका कोशिकाएँ सूचना को किस प्रकार संचारित करती हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
तंत्रिका कोशिका हमारे तंत्रिका तंत्र की मूलभूत इकाई है। तंत्रिका कोशिकाएँ विशिष्ट कोशिकाएँ हैं, जो विभिन्न प्रकार के उद्दीपकों को विद्युतीय आवेग में परिवर्तित करने की अद्भुत योग्यता रखती हैं। इसके अतिरिक्त ये सूचना को विद्युत-रासायनिक संकेतों के रूप में ग्रहण करने, संवहन करने तथा अन्य कोशिकाओं तक भेजने में भी निपुण होती हैं। ये ज्ञानेन्द्रियों (संवेदी अंगों) से या पास की अन्य तंत्रिका कोशिकाओं से सूचना प्राप्त करती हैं, उसे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क और मेरुरज्जु) तक ले जाती हैं। फिर केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से पेशीय सूचना को पेशीय अंगों (मांसपेशियों तथा ग्रंथियों) तक ले जाती तंत्रिका तंत्र में एक स्थान से दूसरे स्थान तक सूचना का संवहन तंत्रिकाओं के माध्यम से होता है, जो अक्ष तंतु (axon) के ढेर होते हैं। 

तंत्रिकाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं - संवेदी एवं पेशीय। संवेदी तंत्रिकाएँ जिन्हें अभिवाही तंत्रिकाएँ भी कहते हैं, सूचना को ज्ञानेन्द्रियों से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक ले जाती हैं। दूसरी ओर पेशीय तंत्रिकाएँ जिन्हें अपवाही तंत्रिकाएँ भी कहा जाता है, सूचना को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से मांसपेशियों तक ले जाती हैं। पेशीय तंत्रिका स्नायविक आदेशों का संवहन करती हैं जो हमारी गतिविधियों और अन्य प्रतिक्रियाओं को निर्देशित, नियंत्रित एवं नियमित करते हैं। कुछ मिश्रित तंत्रिकाएँ भी होती हैं, लेकिन इनमें संवेदी और पेशीय तंतु भिन्न-भिन्न होते हैं।
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प्रश्न 3. 
प्रमस्तिष्कीय वल्कुट के चार पालियों के नाम बताइए। ये क्या कार्य करते हैं ?
उत्तर : 
प्रमस्तिष्कीय वल्कुट को चार पालियों (खंडों) में विभक्त किया गया है - 
(i) ललाट पालि. 
(ii) पार्श्विक पालि, 
(iii) शंख पालि और 
(iv) पश्चकपाल पालि।

ललाट पालि (Frontal lobe) : मुख्यतः संज्ञानात्मक कार्यों; जैसे - अवधान, चिंतन, स्मृति, अधिगम एवं तर्कना से संबद्ध है, किंतु यह स्वायत्त और संवेगात्मक अनुक्रियाओं पर भी अवरोधात्मक प्रभाव डालता है।

पार्श्विक पालि (Parietal lobe) : मुख्यतः त्वचीय संवेदनाओं और उनका चाक्षुष और श्रवण संवेदनाओं के साथ समन्वय से संबद्ध है।

शंख पालि (Temporal lobe) : मुख्यतः श्रवणात्मक सूचनाओं के प्रक्रमण से संबद्ध है। प्रतीकात्मक शब्दों और ध्वनियों की स्मृति यहाँ रहती है।
लिखित भाषा और वाणी को समझना इसी पालि पर निर्भर करता है।

पश्चकपाल पालि. (Occipital lobe) : मुख्यतः चाक्षुष सूचनाओं से संबद्ध है। ऐसा माना जाता है कि चाक्षुष आवेगों की व्याख्या, चाक्षुष उद्दीपकों की स्मृति और रंग चाक्षुष उन्मुखता इसी पालि के द्वारा संपन्न होती है।

प्रश्न 4. 
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र किस प्रकार आपातकालीन स्थितियों में कार्य-व्यवहार करने में हमारी सहायता करता
उत्तर : 
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र : यह तंत्र उन क्रियाओं का संचालन करता है जो सामान्यतः हमारे प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं होती हैं। यह आंतरिक प्रकार्यों, जैसे साँस लेना, रक्त संचार, लार स्राव, उदर संकुचन और सांवेगिक प्रतिक्रियाओं का नियंत्रण करता है। स्वायत्त तंत्रिका तंत्र की ये क्रियाएँ मस्तिष्क के विभिन्न भागों के नियंत्रण में होती हैं।

स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के दो खंड हैं - अनुकंपी खंड और परानुकंपी खंड। यद्यपि दोनों के प्रभाव एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत होते हैं, फिर भी दोनों संतुलन की स्थिति बनाए रखने के लिए मिलकर कार्य करते हैं। अनुकंपी खंड आपातकालीन स्थितियों को संभालने का कार्य करता है जब प्रबल और त्वरित कार्यवाही होनी चाहिए; जैसे संघर्ष या पलायन की स्थिति में। इस आपातकाल में पाचन क्रिया रुक जाती है, रक्त आंतरिक अंगों से मांसपेशियों की ओर दौड़ने लगता है तथा श्वास गति ऑक्सीजन आपूर्ति, हृदय गति और रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है।

परानुकंपी खंड मुख्यतः ऊर्जा के संरक्षण से जुड़ा है। यह शरीर के आंतरिक तंत्र के नियमित प्रकार्यों का संचालन करता है। जब आपातकालीन स्थिति समाप्त हो जाती है तब परानुकंपी खंड कार्यभार ग्रहण कर लेता है, यह अनुकंपी तंत्र की सक्रियता को कम करता है और व्यक्ति को शांत कर उसे सामान्य स्थिति में लाता है। परिणामस्वरूप सभी शारीरिक क्रियाएँ जैसे-हृदय गति, श्वास गति और रक्त संचार सामान्य स्तर पर वापस आ जाते हैं।

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प्रश्न 5. 
विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ और उनसे निकलने वाले अंतःस्रावों के नाम बताएँ। अन्तःस्रावी तन्त्र हमारे व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
उत्तर : 
विभिन्न अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ निम्नलिखित हैं : 
(i) पीयूष ग्रन्थि।
(ii) अवटु ग्रन्थि। 
(iii) अधिवृक्क ग्रंथियाँ (एड्रीनल ग्लैंड)। 
(iv) अग्न्याश्य।

(i) जननग्रंथियाँ। (1) पीयूष ग्रन्थि (पिट्यूटरी ग्लैंड): पीयूष ग्रन्थि संवृद्धि अंत:स्राव और अन्य कई अंत:स्रावों को सावित करती है, जो हमारे शरीर में पाई जाने वाली अन्य कई अंत:स्रावी ग्रंथियों के नावों का निर्देशन एवं नियमन करते हैं। इसी कारण पीयूष ग्रंथि को 'मुख्य ग्रंथि' कहा जाता है। कुछ अंत:स्राव जीवनपर्यंत धीमी गति से स्रावित होते रहते हैं जबकि दूसरे अन्य जीवन में उपयुक्त समय पर प्रवाहित होते है। उदाहरणार्थ, संवृद्धि अंत:स्राव पूरी बाल्यावस्था में स्थिरतापूर्वक प्रवाहित होते रहते हैं, किशोरावस्था में कुछ स्फुरण के साथ, लेकिन जननग्रंथि पोषक हार्मोन यौवनारंभ की अवस्था में प्रवाहित होते हैं, जो लड़कियों और लड़कों में स्त्रियोचित एवं पुरुषोचित अंत:स्रावों को उद्दीप्त करते हैं। इसके फलस्वरूप मूल और गौण लैंगिक परिवर्तन हाते हैं।

(ii) अवटु ग्रन्थि (थायरॉइड ग्लैंड): यह ग्रंथि गले में स्थित होती है। यह थाइरॉक्सीन (Thyroxin) नामक अंत:स्राव उत्पन्न करती है जो शरीर में चयापचय की दर को प्रभावित करता है। अग्रपीयूष हार्मोन के द्वारा उपयुक्त मात्रा में थाइरॉक्सिन हार्मोन का स्राव और नियमन होता है। इस हार्मोन का स्थिर साव शरीर कोशिकाओं में ऊर्जा के उत्पादन को ऑक्सीजन, की खपत को और बेकार पदार्थ के विलोपन को बनाए रखता है।

(iii) अधिवृक्क ग्रंथियाँ (एड्रीनल ग्लैंड) : ये दोनों ग्रंथियाँ प्रत्येक गुर्दे के ऊपर स्थित होती हैं। इसके दो भाग होते हैं- अधिवृक्क वल्कुट (Adrenal cortex) और अधिवृक्क मध्यांश (Adrenal medulla) और इनमें प्रत्येक से अलग-अलग अन्तःस्राव उत्पन्न होता है। अधिवृक्क वल्कुट से होने वाला अंत:स्राव अग्रपीयूष ग्रंथि से स्रावित होने वाले अंत:स्राव एड्रीनोकार्टिकोट्रोफिक हार्मोन (ACTH) द्वारा नियंत्रित और नियमित होता है। अधिवृक्क वल्कुट हार्मोन के एक समूह को सावित करता है जिन्हें कॉर्टिकोयड (Corticoids) कहा जाता है। शरीर के | द्वारा इनका उपयोग कई शरीरक्रियात्मक उद्देश्यों, उदाहरणार्थ, शरीर में खनिज विशेषतः सोडियम, पोटैशियम और क्लोराइड्स के नियमन के लिए किया जाता है। इस ग्रंथि के कार्यों में भी किसी भी प्रकार की बाधा तंत्रिका तंत्र के प्रकार्यों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है।

अधिवृक्क मध्यांश दो प्रकार के अंत:स्राव नावित करता है, एपाइनफ्राइन (Epinephrine) तथा नॉरएपाइनफ्राइन (Norepinephrine) । इन्हें क्रमशः एड्रिनलीन और नॉरएड्रिनलीन के नाम से भी जाना जाता है। अनुकंपी सक्रियताः; जैसे- हृदयगति में वृद्धि, ऑक्सीजन की खपत, चयापचय दर, पेशी शक्ति इत्यादि, इन्हीं दो हार्मोन के स्राव के द्वारा घटित होती है। एपाइनफ्राइन और नॉरएपाइनफ्राइन अधश्चेतक को उद्दीप्त करते हैं जो प्रतिबलकों के हटा लेने के बाद भी व्यक्ति में संवेगों को बढ़ाते हैं।

(iv) अग्न्याश्य : आन्याशय पेट के नीचे रहता है। यह खाना खाने में मुख्य भूमिका निभाता है लेकिन यह भी एक हार्मोन का स्राव करता है जिसे इन्सुलिन (Insulin) कहा जाता है। इन्सुलिन शरीर के उपयोग के लिए या यकृत में ग्लाइकोजन के रूप में भंडारण के लिए यकृत की ग्लूकोज के विखंडन में सहायता करता है। जब समुचित मात्रा में इन्सुलिन का स्राव नहीं होता तो लोगों में मधुमेह नामक बीमारी हो जाती है।

(v) जननग्रंथियाँ : जननग्रंथियों से तात्पर्य पुरुषों में शुक्रग्रंथि और स्त्रियों में डिबग्रंथि से है। इन ग्रंथियों से स्रावित होने वाले अंत:स्राव पुरुषों और स्त्रियों में काम व्यवहार और प्रजनन प्रकार्यों को नियंत्रित और नियमित करते हैं। इन ग्रंथियों से निकलने वाले अंत:स्राव को शुरू करना, उसे बनाए रखना और उसके नियमन करने का कार्य जननग्रंथि पोषक हार्मोन (Gonadotrophic hormone) करते हैं जो अग्रपीयूष ग्रंथि से निकलते हैं। जननग्रंथि पोषक हार्मोन का स्राव यौवनारंभ के दौरान (10 से 14 वर्ष के मानवों में) शुरू होता है और ये जननग्रंथियों को अंत:स्राव को उत्पन्न करने के लिए उद्दीप्त करता है जो कि पुनः मूल और गौण लैंगिक लक्षणों के विकास को उद्दीप्त करता है। महिलाओं में डिंबग्रंथियाँ एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान उत्पन्न करती हैं। 

एस्ट्रोजन से महिला शरीर का लैंगिक विकास होता है। लैंगिक रूप से परिपक्व एक महिला की डिबग्रंथि में प्रजनन से संबंधित मूल लैंगिक लक्षण प्रकट होते हैं।पुरुषों में यह प्रजनन विषयक व्यवहार अधिक सरल होता है, क्योंकि इनमें कोई चक्रीय प्रतिरूप नहीं होता। पुरुषों में शुक्रग्रंथि निरंतर शुक्राणु उत्पन्न करती रहती है और एण्ड्रोजन नामक पुरुष यौन अंत:स्राव स्रावित करती है। प्रमुख पुरुष यौन हार्मोन टेस्टोस्ट्रोन है। टेस्टोस्ट्रोन से गौण लैंगिक परिवर्तन होते हैं; जैसे-शारीरिक परिवर्तन, शरीर और चेहरे पर बालों का आना, आवाज का भारीपन और लैंगिक उन्मुख व्यवहार में वृद्धि। आक्रामकता में वृद्धि और दूसरे अन्य व्यवहार भी टेस्टोस्ट्रोन की उत्पत्ति से संबंधित हैं।

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प्रश्न 6. 
संस्कृति का क्या अर्थ है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
यद्यपि संस्कृति हर समय हमारे साथ रहती है। इसे परिभाषित करने में बहुत-सी भ्रांतियाँ हैं। यह बहुत कुछ भौतिकी में 'ऊर्जा' के विचार या समाजशास्त्र में 'समूह' के विचार के समान ही है। कुछ के अनुसार संस्कृति हमारे बाहर रहती है और इसका व्यक्तियों के लिए बहुत महत्त्व है, जबकि दूसरों के अनुसार संस्कृति का कोई अस्तित्व नहीं है बल्कि यह एक विचार है जो लोगों के एक समूह द्वारा बनाया और समान रूप से माना जाता है।

संस्कृति की असंख्य परिभाषाएँ साधारणतया इसकी कुछ अत्यावश्यक विशेषताओं की ओर संकेत करती हैं। पहली विशेषता यह है कि संस्कृति उन लोगों के व्यवहारात्मक उत्पादों को सम्मिलित करती है जो हमसे पहले आ चुके हैं। यह मूर्त और अमूर्त दोनों उत्पादों के बारे में इंगित करती है जो किसी न किसी रूप में पहले रह चुके हैं। अतः जैसे ही हम जीवन प्रारंभ करते हैं संस्कृति वहाँ पहले से उपस्थित होती है। इसमें कुछ मूल्य होते हैं जो प्रकट किए जाते हैं और उनको प्रकट करने के लिए एक भाषा होती है। 

यह एक जीवन-पद्धति है जो हम में से बहुत लोगों के द्वारा अपनाई जाती है जो उस परिवेश में बड़े होते हैं। संस्कृति का इस प्रकार का संप्रत्यीकरण इसे व्यक्ति के बाहर की बात समझता है, किंतु कुछ ऐसी भी व्याख्याएँ हैं जो संस्कृति को लोगों के मन में समझती हैं। दूसरे प्रकार की व्याख्याओं में संस्कृति को कुछ प्रतीकों में अभिव्यक्त अर्थों के रूप में समझा जाता है जो कि ऐतिहासिक रूप से लोगों में संचारित होते हैं। संस्कृति महत्वपूर्ण वर्ग बनाकर; जैसे- सामाजिक प्रथाएँ (जैसे-विवाह) और भूमिकाएँ (जैसे-वर) तथ मूल्य, विश्वास और आधार-वाक्य के माध्यम से एक अर्थ प्रदान करती है। जैसा कि रिचर्ड श्वेडर (Richard Shweder) ने कहा है कि यह सीखने के लिए कि 'माँ की बहन के पति मौसा होते हैं' हमें दूसरों से ज्ञान का एक ढाँचा ग्रहण करना होता है ताकि हम किसी चीज का अर्थ समझ सकें। 

संस्कृति को हम चाहे एक स्थित यथार्थ के रूप में देखें या उनका अमूर्तीकरण करें, या दोनों ही अर्थ में लें, यह मानव व्यवहार पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है। मानव व्यवहार की बहुत सी ऐसी भिन्नताएँ जो पहले जैविकीय कारणों से मानी जाती थीं उन्हें हम संस्कृति के कारण वर्गीकृत करके उनकी व्याख्या कर सकते हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ जिनमें मनुष्य का विकास होता है वे समय और स्थान के कारण बहुत भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, बीस वर्ष पहले भारत में बच्चे बहुत से ऐसे उत्पादों को नहीं जानते थे जो आज बाल संसार का हिस्सा हैं। उसी तरह एक आदिवासी जो दूरवर्ती वन या पहाड़ी क्षेत्र में रह रहा है, उसने कभी नाश्ते में एक सैंडविच' या 'पिज्जा' नहीं खाया होगा।

प्रश्न 7. 
क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि 'जैविक कारक हमें समर्थ बनाने की भूमिका निभाते हैं जबकि व्यवहार के विशिष्ट पहलू सांस्कृतिक कारकों से जुड़े हैं? अपने उत्तर के समर्थन के लिए कारण दीजिए।
उत्तर : 
हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं कि “जैविक कारक हमें समर्थ बनाने की भूमिका निभाते हैं जबकि व्यवहार के विशिष्ट पहलू सांस्कृतिक कारकों से जुड़े हैं।" हमारे अनेक व्यवहार अंत:स्रावों से प्रभावित होते हैं तो अन्य कई व्यवहार प्रतिवर्ती अनुक्रियाओं के कारण होते हैं। तथापि हार्मोन और प्रतिवर्त हमारे सभी व्यवहार के कारणों की व्याख्या नहीं करते। हार्मोन मानव कायिकी को नियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं, किंतु वे पूर्णरूपेण मानव व्यवहार को नियंत्रित नहीं करते। इसी प्रकार रूढ़धारणा (स्थिर रूप) जो किसी भी प्रतिवर्त का सबसे विभेदकारी गुण है, अधिकांश मानव अनुक्रियाओं में दिखाई नहीं देता है।

यह तर्क देने के लिए कि हमारा व्यवहार जानवरों के व्यवहार से अधिक जटिल है, हम अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से उदाहरण ले सकते हैं। इस जटिलता का एक प्रमुख कारण यह है कि मनुष्य के व्यवहार को नियमित करने के लिए एक संस्कृति है जो जानवरों में नहीं होती है। उदाहरण के लिए, एक मूल आवश्यकता, भूख को लें। हमें पता है कि इसका जैविकीय आधार है, जो मनुष्यों और जानवरों में समान है लेकिन जिस तरह से मनुष्यों द्वारा इस आवश्यकता की संतुष्टि होती है वह अत्यंत जटिल है। उदाहरणार्थ, कुछ लोग शाकाहारी भोजन करते हैं जबकि कुछ मांसाहारी भोजन भी खाते हैं। 
वे कैसे शाकाहारी या मांसाहारी बन गए? कुछ शाकाहारी अंडा खाते हैं कुछ नहीं। ऐसा क्यों है ? सोचने का प्रयत्न कीजिए कि लोग खाना खाने के विषय में इतना भिन्न व्यवहार किस प्रकार करने लगे हैं? यदि आप और खोज करें तो पाएंगे कि भोजन करने के तरीके में भी विभिन्नताएँ होती हैं (उदाहरण के लिए, हाथ से भोजन करना या चम्मच, काँटे और छुरी की सहायता से खाना)। यह उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि मनुष्य के व्यवहार को समझने में केवल जैविकीय कारक ही हमारी बहुत अधिक सहायता नहीं कर सकते। जीव वैज्ञानिकों द्वारा जो मानव प्रकृति बताई गई है उससे कहीं भिन्न मनुष्य का स्वभाव होता है। जैविकीय और सांस्कृतिक शक्तियों की परस्पर-क्रिया के द्वारा मानव प्रकृति विकसित हुई है। इन्हीं शक्तियों ने हमें कई तरह से समान और कई अन्य तरह से भिन्न बनाया है।

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प्रश्न 8. 
समाजीकरण के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
समाजीकरण के कारक : बहुत से लोग, जो हमसे जुड़े हैं, वे हमें समाजीकृत करने की शक्ति रखते हैं। ऐसे लोग 'समाजीकरण कारक' कहे जाते हैं। माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्य सबसे महत्त्वपूर्ण समाजीकरण कारक होते हैं। माता-पिता पर बच्चे की देखभाल का कानूनी उत्तरदायित्व भी होता है। उनका कार्य बच्चों का पालन-पोषण इस प्रकार करना होता है कि उनकी स्वाभाविक योग्यताओं का अधिकाधिक विकास हो सके और नकारात्मक व्यवहार की प्रवृत्ति कम-से-कम या नियंत्रित हो। चूंकि प्रत्येक बच्चा एक वृहत् समुदाय और समाज का भी भाग होता है, दूसरे कई प्रभाव (जैसे-शिक्षक, समसमूह) भी उसके जीवन पर संक्रिया करते हैं। माता-पिता : बालक के विकास पर सर्वाधिक प्रत्यक्ष और महत्त्वपूर्ण प्रभाव माता-पिता का पड़ता है। 

वे विभिन्न स्थितियों में माता-पिता के प्रति भिन्न प्रकार से प्रतिक्रिया करते हैं। माता-पिता उनके कुछ व्यवहारों को, शाब्दिक रूप से पुरस्कृत करके (जैसे-प्रशंसा करना) या अन्य मूर्त तरह से पुरस्कृत करके (जैसे- चॉकलेट या बच्चे की पसंद की वस्तु का खरीदना) प्रोत्साहित करते हैं। वे कुछ अन्य व्यवहारों का अनुमोदन न करके, निरुत्साहित करते हैं। वे बच्चों को विभिन्न स्थितियों में रख कर उन्हें विध्यात्मक अनुभव, सीखने के अवसर और चुनौतियाँ प्रदान करते हैं। बच्चों से अन्योन्यक्रिया करते समय माता-पिता विभिन्न युक्तियाँ अपनाते हैं, जिन्हें सामान्यतः पैतृक शैली कहा जाता है। 

प्राधिकृत, सत्तावादी और लोकतांत्रिक या अनुज्ञात्मक पैतृक शैलियों में विभेद किया गया है। शोध अध्ययन यह प्रदर्शित करते हैं कि माता-पिता के अपने बच्चों के प्रति व्यवहारों में स्वीकृति और नियंत्रण की हद के विषय में बहुत भिन्नताएँ होती हैं। जीवन की वे स्थितियाँ भी जिनमें माता-पिता रहते हैं (गरीबी, बीमारी, कार्य-दबाव, परिवार का स्वरूप), उन शैलियों को प्रभावित करती हैं, जो माता-पिता अपने बच्चों को समाजीकृत करने के लिए अपनाते हैं। दादा-दादी एवं नाना-नानी से समीपता तथा सामाजिक संबंधों का ढाँचा, बच्चे के समाजीकरण में प्रत्यक्षतः या माता-पिता के माध्यम से बहुत बड़ी भूमिका निभाते

विद्यालय : विद्यालय एक महत्त्वपूर्ण समाजीकरण कारक है। चूँकि बच्चे विद्यालय में लंबा समय व्यतीत करते हैं, जो उन्हें अपने शिक्षकों और समकक्षियों के साथ अन्योन्यक्रिया करने का एक सुसंगठित ढाँचा प्रदान करता है, इसी कारण आजकल विद्यालय को माता-पिता तथा परिवार की तुलना में बालक के समाजीकरण का अधिक महत्त्वपूर्ण कारक समझा जा रहा है। बच्चे केवल संज्ञानात्मक कौशल (जैसे-पढ़ना, लिखना, गणित को करना) ही नहीं सीखते हैं बल्कि बहुत से सामाजिक कौशल (जैसे-बड़ों तथा समवयस्कों के साथ व्यवहार करने के ढंग, भूमिकाएँ स्वीकारना, उत्तरदायित्व निभाना) भी सीखते हैं। वे समाज के नियमों और मानकों को सीखते भी हैं और उनका आंतरीकरण भी करते हैं। कई अन्य विध्यात्मक गुण जैसे- स्वयं

पहल करना, आत्म-नियंत्रण, उत्तरदायित्व लेना और सर्जनात्मकता इत्यादि विद्यालयों में प्रोत्साहित किए जाते हैं। ये गुण बच्चों को अधिक आत्मनिर्भर बनाते हैं। यदि ये कार्य संपादन सफल होते हैं तो जो कौशल और ज्ञान बच्चे विद्यालय में, अपने पाठ्यक्रम द्वारा या अपने शिक्षकों और समकक्षियों के साथ अन्योन्यक्रिया द्वारा अर्जित करते हैं, वे उनके जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी स्थानांतरित हो जाते हैं। कई शोधकर्ताओं का विश्वास है कि एक अच्छा विद्यालय बच्चे के व्यक्तित्व का पूर्णतया ही रूपांतरण कर सकता है। इसी कारण हम पाते हैं कि निर्धन माता-पिता भी अपने बच्चों को अच्छे विद्यालय में भेजना चाहते हैं।

समसमूह : मध्य बाल्यावस्था की मुख्य विशेषताओं में से एक है घर के बाहर सामाजिक समाज का विस्तार। इस संदर्भ में मित्रता का बहुत अधिक महत्त्व हो जाता है। यह बच्चों को न केवल दूसरों के साथ होने का अवसर प्रदान करती है बल्कि हमउम्र साथियों के साथ सामूहिक रूप से विभिन्न क्रियाकलापों (यथा - खेल) को आयोजित करने का भी अवसर प्रदान करती है। ऐसे गुण; जैसे- सहभाजन, विश्वास, आपसी समझ, भूमिका स्वीकृति एवं निर्वहन भी समकक्षियों के साथ अन्योन्यक्रिया के दौरान विकसित होते हैं। बच्चे, अपने दृष्टिकोण को दृढ़तापूर्वक रखना और दूसरों के दृष्टिकोण को स्वीकार करना, और उनसे अनुकूलन करना भी सीखते हैं। समसमूह के कारण आत्म-तादात्म्य का विकास अत्यन्त सुगम हो जाता है। चूंकि बच्चों का समसमूह के साथ संप्रेषण प्रत्यक्ष होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया सामान्यतः निर्बाध होती है।

जनसंचार का प्रभाव : आधुनिक वर्षों में जनसंचार ने भी समाजीकरण कारक के गुणों को अर्जित किया है। दूरदर्शन, समाचारपत्रों, पुस्तकों और चलचित्रों के माध्यम से बाह्य जगत ने हमारे जीवन और हमारे घरों में अपना स्थान बना लिया है और बना रहा है। जबकि बच्चे बहुत सारी बातें इन माध्यमों से सीखते हैं। किशोर और युवा प्रौढ़ अक्सर इन्हीं में से अपना आदर्श प्राप्त करते हैं, विशेषकर दूरदर्शन और चलचित्रों से। दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली हिंसा, परिचर्चा का एक मुख्य विषय है, चूंकि अध्ययन यह संकेत करते हैं कि दूरदर्शन पर हिंसा को देखना, बच्चों में आक्रामक व्यवहार को बढ़ाता है। समाजीकरण के इस कारक को अधिक अच्छी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है जिससे बच्चों में अवांछित व्यवहारों के विकास को रोका जा सके।

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प्रश्न 9. 
परसंस्कृतिग्रहण से क्या तात्पर्य है ? क्या परसंस्कृतिग्रहण एक निर्बाध प्रक्रिया है ? विवेचना कीजिए।
उत्तर : 
परसंस्कृतिग्रहण : परसंस्कृतिग्रहण का तात्पर्य दूसरी संस्कृतियों के साथ संपर्क के कारण आए हुए सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों से है। यह संपर्क प्रत्यक्ष (जैसे- कोई नयी संस्कृति में स्थानांतरित होता है और उसमें बस जाता है), या अप्रत्यक्ष (जैसे- जनसंचार या अन्य माध्यमों से) रूप में होता है। यह ऐच्छिक (जैसे कोई विदेश उच्च शिक्षा, प्रशिक्षण, नौकरी या व्यापार के लिए जाता है) या अनैच्छिक (जैसे-औपनिवेशिक अनुभव, आक्रमण या राजनीतिक शरण के द्वारा) हो सकता है।

दोनों ही स्थितियों में लोगों को कुछ नया सीखने की आवश्यकता होती है (और वे सीखते भी हैं) जिससे वे दूसरे सांस्कृतिक समूहों के लोगों के साथ जीवनयापन कर सकें। उदाहरणार्थ, भारतवर्ष में ब्रिटिश शासन के समय बहुत से लोगों और समूहों ने ब्रिटिश जीवन शैली के विविध पक्षों को अपना लिया। वे अंग्रेजी विद्यालयों में जाना, वैतनिक कार्यों को करना, अंग्रेजी कपड़े पहनना, अंग्रेजी भाषा बोलना और अपना धर्म परिवर्तित करना पसंद करते थे।

किसी के जीवन में परसंस्कृतिग्रहण किसी भी समय घटित हो सकता है। यह जब कभी घटित होता है तब इसमें मानकों, मूल्यों, गुणों और व्यवहार के प्रारूपों को पुनः सीखना होता है। इन पक्षों में परिवर्तन लाने में पुन: समाजीकरण की आवश्यकता होती है। कभी-कभी लोग इन नवीन बातों को सीखना सरल समझते हैं, और यदि उनका सीखना सफल रहता है तो उनके व्यवहार में उस समूह की दिशा की ओर परिवर्तन सरलतापूर्वक हो जाता है, जो उनके लिए परसंस्कृतिग्रहण लाता है। ऐसी स्थिति में नए जीवन की ओर संक्रमण अपेक्षाकृत निर्बाध और समस्यारहित होता है।

दूसरी ओर, बहुत सी स्थितियों में लोग परिवर्तन की नई माँगों के अनुसार कार्य व्यवहार करने में कठिनाई अनुभव करते हैं। उन्हें यह परिवर्तन कठिन लगता है, और वे द्वंद्व की स्थिति में पड़ जाते हैं। यह स्थिति अपेक्षाकृत कष्ट देने वाली होती है क्योंकि यह परसंस्कृतिग्राही लोगों और समूहों को दबाव और अन्य व्यवहारात्मक कठिनाइयों का अनुभव कराती है।

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प्रश्न 10. 
परसंस्कृतिग्रहण के दौरान लोग किस प्रकार की परसंस्कृतिग्राही युक्तियाँ अपनाते हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर : 
मनोवैज्ञानिकों ने विशद अध्ययन किया है कि लोग परसंस्कृतिग्रहण के दौरान किस प्रकार मनोवैज्ञानिक तरीके से परिवर्तित होते हैं। किसी भी परसंस्कृतिग्रहण के घटित होने के लिए दूसरे सांस्कृतिक समूह के साथ संपर्क होना अत्यावश्यक है। यह अक्सर कुछ द्वंद्व भी उत्पन्न करता है। चूंकि लोग लंबे समय तक द्वंद्व की स्थिति में नहीं रह सकते, अत: वे द्वंद्व का समाधान करने के लिए कुछ युक्तियों को अपनाते हैं। एक लंबे समय तक यह समझा जाता था कि आधुनिकता की ओर उन्मुख सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन एकदिशीय था.

जिसका आशय यह हुआ कि वे सभी लोग जो परिवर्तन की समस्या का सामना कर रहे हैं वे पारंपरिक स्थिति से आधुनिकता की स्थिति की ओर अग्रसर हो जाएँगे। तथापि पश्चिमी देशों के प्रवासियों तथा विश्व के विभिन्न भागों के देशवासियों या आदिवासियों पर किए गए अध्ययनों से ज्ञात होता है कि लोगों के पास परसंस्कृतिग्राही परिवर्तनों से निपटने के लिए कई विकल्प होते हैं। अतः परसंस्कृतिग्राही परिवर्तन का मार्ग बहुदिशीय होता है।

प्रश्न 11. 
संस्कृतिकरण और समाजीकरण में हम किस प्रकार विभेद कर सकते हैं ? व्याख्या कीजिए। 
उत्तर:

संस्कृतिकरण 

समाजीकरण

1. संस्कृतिकरण उन सभी प्रकार के अधिगम को कहते हैं जो बिना किसी प्रत्यक्ष और सुविचारित शिक्षण के होते हैं।

2. यद्यपि संस्कृतिकरण के प्रभाव काफी स्पष्ट दिखाई देते हैं तथापि लोग साधारणतया इन प्रभावों के प्रति सजग नहीं होते।

1. समाजीकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग ज्ञान, कौशल और शील गुण अर्जित करते हैं जो उन्हें समाज और समूहों के रूप में भाग लेने के योग्य बनाते हैं। 
2. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो पूरी जीवन अवधि तक निरंतर चलती है और जिसके माध्यम से विकास की किसी भी अवस्था में व्यक्ति प्रभावी ढंग से कार्य करने के तरीके सीखता है।


 

Bhagya
Last Updated on Sept. 23, 2022, 12:24 p.m.
Published Sept. 23, 2022