Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 1 समय की शुरुआत से Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 History in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 History Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 History Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
अधिकांश धर्मों में मानव प्राणियों की रचना के बारे में अनेक कहानियाँ कही गई हैं, पर अक्सर वे वैज्ञानिक खोजों से मेल नहीं खातीं। ऐसी कुछ धार्मिक कथाओं के बारे में पता लगाइए और उनकी तुलना इस अध्याय में चर्चित मानव के क्रमिक विकास के इतिहास से कीजिए। आप उनके बीच क्या समानताएँ और अन्तर देखते हैं ?
उत्तर:
अधिकांश धर्मों में मानव प्राणियों की रचना के बारे में अनेक कहानियाँ कही गई हैं। अधिकांश धर्म यह मानते हैं कि इस पृथ्वी का निर्माण ईश्वर ने किया है एवं उन्हीं की इच्छा से मानव का निर्माण हुआ तथा आज भी उन्हीं की कृपा से सभी प्राणियों सहित अन्य प्राणियों की वंशानुगत परम्परा चल रही है। उदाहरण के रूप में, ईसाइयों के पवित्र ग्रन्थ बाइबिल के ओल्ड टेस्टामेंट में यह बताया गया है कि परमपिता परमेश्वर ने सृष्टि की रचना की है तथा उन्होंने ही सृष्टि की रचना करते समय अन्य प्राणियों के साथ-साथ मानव को भी बनाया है। परन्तु आधुनिक काल की वैज्ञानिक खोजों ने इन सब बातों को असत्य सिद्ध कर दिया है। मानव का विकास क्रमिक रूप से हुआ है। इसकी जानकारी हमें मानव के जीवाश्मों, पत्थर के औजारों एवं गुफाओं की चित्रकारियों की खोजों से मिलती है। अनेक विद्वानों ने जीवाश्मों के आधार पर मानव को अनेक प्रजातियों में बाँटा व उनके लक्षणों के आधार पर सप्रमाण मानव के विकास को स्पष्ट किया। अतः कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक खोजों ने धार्मिक कथाओं में वर्णित मानव प्राणियों की रचना को असत्य सिद्ध कर दिया है। दोनों के मध्य समानता केवल यह है कि दोनों ही पृथ्वी पर मानव व अन्य प्राणियों की उत्पत्ति बताते हैं लेकिन मानव उत्पत्ति की प्रक्रिया के सन्दर्भ में दोनों मतों में अन्तर दिखाई देता है।
प्रश्न 2.
हादज़ा लोग ज़मीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा क्यों नहीं करते ? उनके शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन क्यों होता रहता है ? सूखा पड़ने पर भी उनके पास भोजन की कमी क्यों नहीं होती ? क्या आप आज के भारत के किसी शिकारी-संग्राहक समाज का नाम बता सकते हैं ?
उत्तर:
हादज़ा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा नहीं करते क्योंकि उनके छोटे-छोटे समूह हैं। भोजन, पानी, आखेट, वनस्पति, खाद्य पदार्थों व अन्य संसाधनों की भी इस क्षेत्र में कोई कमी नहीं है। कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कहीं भी रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है, कहीं भी कन्द-मूल, फल व शहद आदि एकत्रित कर सकता है और भूमि का उपयोग कर सकता है। इस सम्बन्ध में हादज़ा लोगों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। फलस्वरूप जमीन व संसाधनों पर अधिकार व दावा जैसी बातें उनकी सोच से बाहर हैं। हादज़ा लोगों के शिविरों के आकार और स्थिति में मौसम के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है क्योंकि इनके शिविर वृक्षों अथवा चट्टानों के मध्य विशेषकर वहाँ लगाये जाते हैं जहाँ भोजन, पानी, वनस्पति, खाद्य पदार्थ, शिकार व सुरक्षा आदि की व्यवस्था होती है। अतः इन्हें स्थान परिवर्तन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। सूखा पड़ने पर भी हादज़ा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती क्योंकि इनके निवास क्षेत्र में ही पर्याप्त मात्रा में वनस्पति, खाद्य, कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड़ के फल, शिकार, पानी आदि सूखा पड़ने के बाद भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ इन्हें जंगली मधुमक्खियों का शहद व सुंडियाँ भी भोजन हेतु प्राप्त हो जाती हैं जिनकी आपूर्ति में मौसम का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता। अतः सूखे के समय में हादज़ा लोगों के पास भोजन की कमी नहीं होती है। सेंटिनल आज के भारत का एक प्रमुख शिकारी-संग्राहक समाज है। यह जनजाति समाज अण्डमान द्वीप समूह के उत्तरी सेंटिनल द्वीप में रहता है।
प्रश्न 3.
आप क्या सोचते हैं कि प्राचीनतम मानव समाजों के जीवन के बारे में जानने के लिए संजातिवृत्त सम्बन्धी वृत्तान्तों का इस्तेमाल करना कितना उपयोगी अथवा अनुपयोगी है?
उत्तर:
संजातिवृत्त में समकालीन नृजातीय समूहों का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत उनके रहन-सहन, खान-पान, आजीविका के साधन, प्रौद्योगिकी की जाँच की जाती है। इसके अतिरिक्त इसमें स्त्री-पुरुष की भूमिका, कर्मकांड, रीति-रिवाज, राजनीतिक संस्थाओं तथा सामाजिक रूढ़ियों का भी अध्ययन किया जाता है। यह प्राचीनतम समाजों के जीवन को समझने में कितना उपयोगी है, इस सन्दर्भ में दो परस्पर विरोधी विचारधाराएँ प्रचलित हैं पहली विचारधारा के समर्थक विद्वानों का मत यह है कि उन्होंने आज के शिकारी-संग्राहक समाजों से प्राप्त विशिष्ट तथ्यों व आँकड़ों को सीधे तौर पर अतीत के पुरातत्वीय अवशेषों की व्याख्या करने के लिए उपयोगी मानते हुए उपयोग में लिया है। दूसरी विचारधारा के समर्थक विद्वानों का यह मत है कि संजातिवृत्त सम्बन्धी तथ्यों व आँकड़ों का उपयोग अतीत में समाजों के अध्ययन के लिए नहीं किया जा सकता है। उनके मतानुसार ये चीजें एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं।
प्रश्न 1.
दिये गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था (Positive Feedback Mechanism) को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों (inputs) की सूची दे सकते हैं जो औज़ारों के निर्माण में सहायक हुए ? औज़ारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला?
उत्तर:
औजारों के निर्माण में सहायक निवेश निम्नलिखित निवेश औजारों के निर्माण में सहायक सिद्ध हुए
वे प्रक्रियाएँ जिनको औजारों के निर्माण से बल मिला-
प्रश्न 2.
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पाई जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि सम्भवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ।
(क) व्यवहार और
(ख) शरीर रचना शार्षकों के अन्तर्गत दो अलग-अलग स्तम्भ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाए जाने वाले उन अंतरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्वपूर्ण समझते हैं?
उत्तर:
मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार में निम्नलिखित समानताएँ पायी जाती हैं
समानताएँ
(क) व्यवहार
मानव |
लंगूर और वानर |
(i) मानव प्रजनन द्वारा अपने जैसी संतान उत्पन्न करते हैं। |
(i) लंगूर और वानर भी प्रजनन द्वारा अपने जैसी संतान उत्पन्न करते हैं। |
(ii) मादा मानव अपने बच्चों को दूध पिलाती है। |
(ii) मादा लंगूर और वानर भी अपने बच्चों को दूध पिलाती हैं। |
(iii) मानव पेड़ों पर चढ़ सकता है। |
(ii) लंगूर और वानर भी पेड़ों पर चढ़ सकते हैं। |
(iv) मानव अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। |
(iv) लंगूर और वानर भी अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखते हैं। |
(v) मानव अपने बच्चों से प्यार करते हैं। |
(v) लंगूर और वानर भी अपने बच्चों से प्यार करते हैं। |
(vi) मानव लम्बी दूरी तक चल सकता है। |
(vi) लंगूर व वानर भी लम्बी दूरी तक चल सकते हैं। |
(ख) शरीर रचना मानव
मानव |
लंगूर और वानर |
(i) मानव एक रीढ़धारी प्राणी है। |
(i) लंगूर और वानर भी रीढ़धारी जीव हैं। |
(ii) मानव चौपाया है। इसके दो पैर एवं दो हाथ होते हैं। |
(ii) लंगूर और वानर भी चौपाये हैं। |
(iii) मादा मानव के बच्चों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं। |
(iii) मादा लंगूर और वानरों के भी बच्चों को दूध पिलाने हेतु स्तन होते हैं। |
(iv) बच्चा पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत एक लम्बे समय तक वह मादा मानव के गर्भ में पलता है। |
(iv) बच्चा पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत एक लम्बे समय तक वह मादा लंगूर और वानर के गर्भ में पलता है। |
(v) मानव के शरीर पर बाल होते हैं। |
(v) लंगूर और वानर के शरीर पर भी बाल होते हैं। |
(क) व्यवहार मानव
मानव |
लंगूर और वानर |
(i) मानव दो पैरों के बल चलता है। |
(i) लंगूर और वानर चार पैरों के बल चलते हैं। |
(ii) मानव सीधे खड़ा होकर चल सकता है। |
(ii) लंगूर और वानर सीधे खड़े होकर नहीं चल सकते। |
(iii) मानव औजार बना सकता है। |
(iii) लंगूर और वानर औजार नहीं बना सकते। |
(iv) मानव कृषि एवं पशुपालन का कार्य कर सकता है। |
(iv) लंगूर और वानर कृषि एवं पशुपालन का कार्य नहीं कर सकते हैं। |
(ख) शरीर-रचना मानव
मानव |
लंगूर और वानर |
(i) मानव का शरीर बड़ा होता है। |
(i) लंगूर और वानर का शरीर मानव से अपेक्षाकृत छेटा होता है |
(ii) मानव का मस्तिष्क बड़ा होता है। |
(ii) लंगूर और वानर का मस्तिष्क अपेक्षाकृत छोटा होता है। |
(iii) मानव की पूँछ नहीं होती है। |
(iii) लंगूर और वानरों की पूँछ होती है। |
प्रश्न 3.
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा कीजिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है?
उत्तर:
मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कमानव उद्भव के क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल के अनुसार, आधुनिक मानव का विकास विभिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले होमो सैपियंस से हुआ है। इस मॉडल के अनुसार आधुनिक मानव का विकास धीरे-धीरे तथा अलग-अलग गति से हुआ। इसलिए आधुनिक मानव विश्व के विभिन्न भागों में अलग-अलग स्वरूप में दिखाई देता है। यह तर्क आज के मनुष्यों के लक्षणों की विभिन्नता पर आधारित है। इस मॉडल के समर्थकों का मत है कि ये असमानताएँ एक ही क्षेत्र में पहले से रहने वाले होमो एरेक्टस एवं होमो हाइडलबर्गेसिस में पाए जाने वाली असमानताओं के कारण हैं। क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल. हमारे विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है।
प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं:
(क) संग्रहण
(ख) औज़ार बनाना
(ग) आग का प्रयोग।
उत्तर:
(ख) औज़ार बनाना:
पुरातात्विक अभिलेखों में संग्रहण, औज़ार बनाना एवं आग के प्रयोग में से औज़ार बनाने के साक्ष्य सर्वाधिक मात्रा में प्राप्त हुए हैं। प्रारम्भिक मानव द्वारा पत्थर के औज़ार बनाने एवं उनका प्रयोग करने का सबसे प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया एवं केन्या के पुरास्थलों से प्राप्त हुआ है। ऐसा माना जाता है कि ये औजार आस्ट्रेलोपिथिकस मानव ने लगभग 56 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में बनाए थे। लगभग 35000 वर्ष पूर्व फेंककर मारने वाले भालों एवं तीर-कमानों जैसे औजार बनाए जाने लगे। रोएँदार खाल को कपड़े की तरह उपयोग एवं सिलने के लिए सुई का भी आविष्कार हुआ। इसके पश्चात् छैनी या रुखानी जैसे छोटे-छोटे औज़ार बनाए जाने लगे। इन नुकीले ब्लेडों से हड्डी, सींग, हाथी दाँत एवं लकड़ी आदि पर नक्काशी करना सम्भव हुआ। संक्षेप में निबन्ध लिखिए
प्रश्न 5.
भाषा के प्रयोग से
(क) शिकार करने और
(ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी? इस पर चर्चा करिए। इन क्रियाकलापों के लिए विचार-सम्प्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था ?
उत्तर:
भाषा के प्रयोग से शिकार करने एवं आश्रय बनाने के काम में बहुत अधिक मदद मिली होगी जिसका वर्णन निम्न प्रकार से है
(क) शिकार करने में-जैसा कि हम सब जानते हैं कि पृथ्वी के समस्त जीवधारियों में मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने विचारों और मनोभावों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकता है। भाषा के प्रयोग से शिकार करने में बहुत अधिक मदद मिली होगी, जिसका वर्णन निम्नानुसार है
(ख) आश्रय बनाने में-भाषा के प्रयोग से आश्रय बनाने में निम्नलिखित सुविधाएँ प्राप्त हुई होंगी
विचार सम्प्रेषण के अन्य तरीके-
विचार सम्प्रेषण के लिए भाषा के अतिरिक्त चित्रकारी एवं संकेतों का प्रयोग भी किया जा सकता था। चित्रों एवं संकेतों के माध्यम से मानव ने अपने सहयोगियों को शिकार के तरीकों एवं तकनीकों का संदेश प्रदान किया होगा।
प्रश्न 6.
अध्याय के अन्त में दिए गए प्रत्येक कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इनका क्या महत्व है ?
उत्तर:
कालानुक्रम-1 में से दो घटनाओं का विवरण एवं महत्व
(i) होमिनॉइड और होमिनिड की शाखाओं में विभाजन:
आज से लगभग 64 लाख वर्ष पूर्व होमिनॉइड उपसमूह से होमिनिड वर्ग का विकास हुआ। यह प्राणियों का पहले से अधिक विकसित रूप था। इनके मस्तिष्क का आकार होमिनॉइड से बड़ा था। होमिनॉइड चार पैरों के बल चलते थे। लेकिन इनके शरीर का अगला हिस्सा और आगे के दोनों पैर लचकदार होते थे। जबकि होमिनिड सीधे खड़े होकर दो पैरों के बल चलते थे। होमिनिड के हाथ भी विशेष किस्म के थे जिनकी सहायता से वे औजार बना सकते थे और उनका ठीक प्रकार से उपयोग कर सकते थे।
(ii) पत्थर के सबसे पहले औजार-आज से लगभग 25-26 लाख वर्ष पूर्व मानव ने पत्थर के सबसे पहले औजार बनाए एवं उनका प्रयोग करना सीखा। पत्थर के औजार बनाने एवं उनका प्रयोग किए जाने का सबसे पहला साक्ष्य इथियोपिया एवं केन्या के पुरास्थलों से प्राप्त होता है। यह माना जाता है कि आस्ट्रेलोपिथिकस ने सबसे पहले पत्थर के औजार बनाये थे। यद्यपि ये औजार सादे एवं खुरदरे थे तो भी मानव इनकी सहायता से हिंसक जानवरों से अपनी रक्षा करने में सक्षम हो गया। उसके लिए जानवरों का शिकार करके भोजन प्राप्त करना भी आसान हो गया।
कालानुक्रम-2 में से दो घटनाओं का विवरण एवं महत्व
(i) स्वर तंत्र का निर्माण:
धरातल के समस्त जीवधारियों में मानव ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसकी अपनी भाषा है। भाषा का विकास लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ होगा। मानव में स्वरतंत्र का विकास आज से लगभग 2 लाख वर्ष पूर्व हुआ था। ऐसा माना जाता है कि होमोहैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ ऐसी विशेषताएँ थीं जिनके कारण उसके लिए बोलना सम्भव हुआ होगा। स्वर तंत्र के विकास का सम्बन्ध मुख्य रूप से आधुनिक मानव से रहा है।
मानव में स्वर तंत्र के विकास का बहुत अधिक महत्व है। इससे मानव को बोलने की शक्ति प्राप्त हुई एवं वह अपने मन के विचार बोलकर प्रकट करने लगा। सम्भवतः इससे औजार बनाने, शिकार करने एवं अन्य क्रियाकलापों के लिए नये तरीकों एवं तकनीकों का भी विकास सम्भव हुआ।
(ii) चूल्हों के इस्तेमाल के बारे में सबसे पहला साक्ष्य:
आज से लगभग 1.25 लाख वर्ष पूर्व मानव द्वारा निर्मित चूल्हों के इस्तेमाल के बारे में साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। चूल्हों के इस्तेमाल का सबसे पहला साक्ष्य दक्षिण फ्रांस में स्थित लेज़रेट गुफा से प्राप्त हुआ है। यहाँ दो चूल्हे पाए गए हैं। चूल्हे, आग के नियंत्रित प्रयोग को दर्शाते हैं। तत्कालीन मानव आग का प्रयोग गुफाओं के अन्दर प्रकाश एवं उष्णता प्राप्त करने के लिए करता था।