पृष्ठ 250.
प्रश्न 1.
चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर:
वास्तव में दिक्सूचक की सुई एक छोटी छड़ चुंबक होती है। इसलिए चुम्बक के समीप लाए जाने पर, चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र के कारण दिक्सूचक सुई पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो सुई को विक्षेपित कर देता है।
पृष्ठ 255.
प्रश्न 1.
किसी छड़ चुम्बक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर:
छड़ चुम्बक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ।
प्रश्न 2.
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची निम्न है।
- चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर आपस में प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।
- ये काल्पनिक रेखाएँ चुम्बक के उत्तरी ध्रुवों से निकलती हैं एवं दक्षिणी ध्रुव पर जाकर समाप्त हो जाती हैं।
- चुंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर होती है।
- इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श रेखा की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को निरूपित करती है।
- चुम्बकीय बल रेखाएँ उस स्थान पर अधिक सघन (अर्थात् परस्पर निकट) होती हैं जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है तथा उस स्थान, जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है, वहाँ चुम्बकीय बल रेखाएँ परस्पर दूर स्थित होती हैं।
- चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक बंद वक्र होती हैं।
प्रश्न 3. दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करती?
उत्तर:
दो चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ कहीं भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं। यदि वे ऐसा करें तो इसका यह अर्थ होगा कि प्रतिच्छेद बिन्दु पर दिक्सूची को रखने पर उसकी सूई दो दिशाओं की ओर संकेत करेगी जो सम्भव नहीं हो सकता।
पृष्ठ 256 - 257.
प्रश्न 1.
मेज के तल में पड़े तार के कृताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण - हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
यदि दाहिने हाथ की अंगुलियाँ तार के ऊपर इस प्रकार लपेटी जाएँ कि अंगूठा तार में प्रवाहित धारा की दिशा में हो, तब अंगुलियों के मुड़ने की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करेगी।
अतः पाश के अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र मेज के तल के लम्बवत् तथा ऊर्ध्वाधरतः नीचे की दिशा में है जबकि पाश के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र मेज के लम्बवत् तथा ऊर्ध्वाधरतः ऊपर की ओर क्रियाशील होगा।
प्रश्न 2.
किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर:
परिनलिका के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ समान्तर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। यह निर्दिष्ट करता है कि किसी परिनालिका के भीतर सभी बिन्दुओं पर चुम्बकीय क्षेत्र समान होता है। अर्थात् परिनालिका के भीतर एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनिए किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र।
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर:
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
पृष्ठ 259.
प्रश्न 1.
किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन - सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? (यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।)
(a) द्रव्यमान।
(b) चाल।
(c) वेग।
(d) संवेग।
उत्तर:
(c) वेग तथा (d) संवेग। प्रोटोन जब चुम्बकीय क्षेत्र में गति करता है तब इस पर एक चुंबकीय बल क्रिया करता है। इसके कारण प्रोटॉन का पथ वृत्ताकार हो जाता है। अतः इसका वेग तथा संवेग दोनों परिवर्तित हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
पाठ्यपुस्तक के क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि।
1. छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए।
2. अधिक प्रबल नाल चुंबक प्रयोग किया जाए और
3. छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर:
हम जानते हैं कि L लम्बाई के चालक में जिससे होकर धारा प्रवाहित हो रही हो तथा जिसे चुम्बकीय क्षेत्र B में लम्बवत् दिशा में रखा गया हो, पर क्रियाशील बल होगा:
F= BILL
इसलिए।
- छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा क्योंकि इस पर कार्यरत बल प्रवाहित विद्युत धारा के अनुक्रमानुपाती (F α I) होता है।
- छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा क्योंकि इस पर कार्यरत बल चुम्बकीय क्षेत्र के अनुक्रमानुपाती (F α B) होता है।
- छड़ का विस्थापन बढ़ जाएगा, क्योंकि इस पर कार्यरत बल छड़ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती (F α L) होता है।
प्रश्न 3.
पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है।
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी?
उत्तर:
(d) उपरिमुखी।
[फ्लेमिंग के वायमहस्त (बायाँ हाथ) नियम द्वारा दिशा ज्ञात की जा सकती है।]
पृष्ठ 261.
प्रश्न 1.
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए।
उत्तर:
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम - इस नियम के अनुसार यदि हम अपने बाएं हाथ के अंगूठे तथा पहली दो अंगुलियों को इस प्रकार फैलाएँ कि तीनों परस्पर लम्बवत् रहें | यदि तर्जनी चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करे, मध्यमा चालक में प्रवाहित धारा को प्रदर्शित करे, तो अंगूठा चालक पर लगने वाले बल की दिशा को प्रदर्शित करेगा।
प्रश्न 2.
विद्युत मोटर का क्या सिद्धान्त है?
उत्तर:
विद्युत मोटर का सिद्धान्त - जब किसी कुंडली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुंडली पर एक बल युग्म कार्य करने लगता है, जो कुंडली को उसके अक्ष पर घुमाने का कार्य करता है। यही विद्युत मोटर का सिद्धान्त है।
प्रश्न 3.
विद्युत मोटर में विभक्त वलय (split ring) की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिपरिवर्तक का कार्य करता है। यह परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देता है। इसके कारण कुंडली तथा धुरी का निरंतर घूर्णन होता रहता है।
पृष्ठ 264.
प्रश्न 1.
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित ढंग से किसी कुण्डली में विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है।
- छड़ चुम्बक को कुण्डली (coil) के निकट तथा दूर ले जाने पर।
- दो कुंडलियों में से किसी एक में धारा के मान को परिवर्तित करके।
- चुम्बक को स्थिर रखकर कुण्डली को चुम्बक के समीप या उससे दूर ले जाकर कुण्डली में धारा प्रेरित की जा सकती है।
- कुण्डली को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाकर उसमें धारा प्रेरित की जा सकती है।
पृष्ठ 265 - 266.
प्रश्न 1.
विद्युत जनित्र का सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण पर आधारित विद्युत जनित्र का मूल सिद्धान्त है कि “जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुण्डली में से गुजरने वाली चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं में परिवर्तन होता है, जिसके कारण कुण्डली में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है।”
प्रश्न 2.
दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दिष्ट धारा के कुछ मुख्य स्रोत हैं।
- शुष्क सेल
- स्टोरेज सेल
- बैटरी या विद्युत सेल
- डी.सी. जनित्र (दिष्ट धारा जनित्र/डायनेमो)।
प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती विद्युत्त धारा के स्रोतों के नाम हैं।
- A.C. जनरेटर (जनित्र)।
- जल विद्युत धारा।
प्रश्न 4.
सही विकल्प का चयन कीजिए।
ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात् परिवर्तन होता है?
(a) दो
(b) एक
(c) आधे
(d) चौथाई?
उत्तर:
(c) आधे।
पृष्ठ 267.
प्रश्न 1.
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सामान्यतः उपयोग में आने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम हैं।
- विद्युत फ्यूज।
- भू - सम्पर्क तार (अर्थिंग - Earthing) ।
प्रश्न 2.
2 kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220 V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हल - दिया गया हैं।
विद्युत तन्दूर की शक्ति P = 2 kW
या P = 2000W
V = 220V
\(\therefore\) धारा \(I=\frac{P}{V}\)
मान रखने पर \(I=\frac{2000}{220}=9.09 \mathrm{~A}\)
स्पष्ट है कि विद्युत तंदूर से होकर प्रवाहित धारा का अनुमतांक 5A है, परन्तु विद्युत तन्दूर इससे बहुत अधिक धारा ले रहा है। इससे अति मारण हो जाएगा तथा फ्यूज जल जाएगा और विद्युत परिपथ अवरोधित हो जाएगा।
प्रश्न 3.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए।
उत्तर:
अतिभारण से बचाव के लिए सावधानियाँ:
- विद्युत परिपथ विभिन्न वर्गों में बंटा होना चाहिए और प्रत्येक साधित्र का फ्यूज होना चाहिए।
- विद्युत प्रवाह के लिए प्रयुक्त की जाने वाली तारें अच्छे प्रतिरोधन पदार्थ से ढंकी होनी चाहिए।
- उच्च शक्ति प्राप्त करने वाले उपकरण, जैसे - फ्रिज, एयर - कंडीशनर, वाटर हीटर, हीटर, प्रेस आदि का एक साथ प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- एक ही सॉकेट से बहुत से विद्युत साधित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- दोष युक्त विद्युत साधित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
RBSE Class 10 Science Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लंबवत् होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
उत्तर:
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
प्रश्न 2.
वैद्युतचुंबकीय प्रेरण की परिघटना ।
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर:
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
प्रश्न 3.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं।
(a) जनित्र।
(b) गैल्वेनोमीटर।
(c) ऐमीटर।
(d) मोटर।
उत्तर:
(a) जनित्र।
प्रश्न 4.
किसी जनित्र तथा de जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि।
(a) ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc मोटर में स्थायी चुंबक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिकपरिवर्तक होता है।
उत्तर:
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिकपरिवर्तक होता है।
प्रश्न 5.
लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान।
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर:
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रकथनों में कौन - सा सही है तथा कौन - सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए ।
(a) विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।
(b) विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
(c) किसी लंबी वृत्ताकर विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है।
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर:
(a) गलत, यह विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।
(b) सत्य।
(c) सत्य।
(d) गलत, विद्युन्मय तार के ऊपर लाल रंग का प्रतिरोधी प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7.
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के दो तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर:
- स्थायी चुम्बक के चारों तरफ चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
- एक धारावाही सीधा चालक के चारों तरफ चुम्बकीय क्षेत्र होता है।
प्रश्न 8.
परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर:
पास पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। जब परिनालिका से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह छड़ चुंबक के समान ही अपने चारों ओर चुबंकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है और चुंबक के समान व्यवहार करने लगती है।
दण्ड चुम्बक की सहायता से परिनालिका के ध्रुवों का निर्धारण-इसके लिए सबसे पहले परिनालिका को उसके केन्द्र पर धागा बाँधकर स्वतंत्रतापूर्वक लटका देते हैं। फिर दण्ड आरेख के उत्तरी ध्रुव को परिनालिका के एक सिरे के पास लाते हैं । यदि परिनालिका का यह सिरा दण्ड चुम्बक की ओर आकर्षित होता है, तो परिनालिका का यह सिरा दक्षिणी ध्रुव होगा तथा विपरीत सिरा उत्तरी ध्रुव होगा।
प्रश्न 9.
किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर:
किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल तब अधिकतम होता है जब विद्युत धारा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती है।
प्रश्न 10.
मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर:
चुंबकीय क्षेत्र की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त (बायाँ हाथ) नियम से ज्ञात की जा सकती है। इसके अनुसार चुंबकीय क्षेत्र की दिशा विद्युत धारा की दिशा, तथा चालक की गति की दिशा (अथवा विक्षेपण) तीनों एक-दूसरे के परस्पर लंबवत् होते हैं। इलेक्ट्रॉन पुंज की पीठ पीछे की दीवार से सामने की दीवार की ओर गति, धारा के सामने की दीवार से पीठ पीछे की ओर की दीवार की ओर गति के तुल्य है। पुंज के विक्षेपण का अर्थ है कि बल हमारे दाहिने पक्ष की ओर क्रियाशील है। अतः फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम के अनुसार चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर होगी।
प्रश्न 11.
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख।
सिद्धान्त: जब धारावाही चालक को चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उस पर एक बल आरोपित होता है। इस बल की सहायता से विद्युत ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
बनावट: चित्र में दिखाये अनुसार विद्युत मोटर में विद्युतरोधी तार की एक आयताकार कुण्डली ABCD होती है। यह कुण्डली किसी चुम्बकीय क्षेत्र के दोनों ध्रुवों के बीच इस प्रकार रखी होती है कि इसकी भुजाएँ AB तथा CD चुम्बकीय, क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् रहें। कुण्डली के दो सिरे विभक्त वलय के दो अर्धभागों P एवं Q से संयोजित होते हैं। इन अर्धभागों की भीतरी सतह विद्युतरोधी होती हैं तथा धुरी से जुड़ी होती है । P तथा Q के बाहरी चालक सिरे क्रमशः दो स्थिर चालक ब्रशों X तथा Y से स्पर्श करते हैं।
कार्यविधि:
(i) जब आर्मेचर से विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो आर्मेचर पर चुम्बकीय क्षेत्र में बल आरोपित होता है।
(ii) चूँकि आर्मेचर के दोनों सिरों AB एवं CD में धारा की दिशा विपरीत दिशा होती है अतः दोनों ही भुजाओं पर आरोपित बल बराबर किन्तु विपरीत दिशा में कार्यरत रहेंगे। इस प्रकार बल युग्म का निर्माण होता है।
(iii) यह बल युग्म आर्मेचर में एक निश्चित दिशा में घूर्णन करता है।
(iv) P एवं Q विभक्त वलय आर्मेचर के साथ गति करते हैं तथा प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात् इनका सम्पर्क X एवं Y से क्रमशः होता रहता है, जिसके कारण AB एवं CD भुजाओं में धारा की दिशा ज्यों की त्यों बनी रहती है। X एवं Y को कॉमुटेटर या सम्पर्क ब्रश कहते हैं। इसकी सहायता से P एवं Q द्वारा विद्युत धारा आर्मेचर में प्रवाहित होती रहती है।
विभक्त वलय का महत्त्व: विद्युत मोटर में विभक्त वलय दिक्परिवर्तन का कार्य करता है। जब कुण्डली का आधा चक्कर पूर्ण हो जाता है तब विभक्त वलय का ब्रशों से सम्बन्ध समाप्त हो जाता है और विपरीत दिशा में स्थित ब्रशों से जुड़ जाता है। इससे कुण्डली में धारा की दिशा सदैव इस प्रकार बनी रहती है कि कुण्डली एक ही दिशा में घूमती रहे।
प्रश्न 12.
ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर:
विद्युत मोटर का उपयोग विद्युत पंखों, विद्युत मिश्रकों, रेफ्रिजरेटरों, वाशिंग मशीनों, कम्प्यूटरों, MP3 प्लेयरों, कूलरों, एयर-कंडीशनरों आदि में किया जाता है।
प्रश्न 13.
कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबक।
1. कुंडली में धकेला जाता है।
2. कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है।
3. कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है।
उत्तर:
- गैल्वेनोमीटर की सुई एक दिशा में क्षणिक गति करेगी।
- सुई (i) की विपरीत दिशा में क्षणिक गति करेगी।
- सुई में कोई विक्षेप दिखाई नहीं देगा।
प्रश्न 14.
दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कुंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।
उत्तर:
हाँ, प्रेरित धारा उत्पन्न होगी। जब कुण्डली A में धारा परिवर्तित की जाती है तब इसके परितः परिवर्तित चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इस क्षेत्र की बल रेखाएँ कुण्डली B से गुजरते समय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होने के कारण कुण्डली B में प्रेरित धारा उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 15.
निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए।
1. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्।
2. किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल, तथा।
3. किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर:
- किसी धारावाही चालक के चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त नियम से ज्ञात किया जा सकता है।
- चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात की जाती हैं।
- चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील चालक में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दाहिने हस्त के नियम का उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 16.
नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धान्त तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रुशों का क्या कार्य है?
उत्तर:
विद्युत जनित्र अथवा प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो: इसमें यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुम्बकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है, जिसके फलस्वरूप विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
सिद्धान्त: विद्युत जनित्र, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जब किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में किसी कुण्डली को घुमाया जाता है, तो उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है। इसके कारण कुण्डली में एक विद्युत वाहक बल तथा विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। यही विद्युत जनित्र का सिद्धान्त है।
बनावट: विद्युत जनित्र के निम्न भाग होते हैं
(i) क्षेत्र चुम्बक: यह एक शक्तिशाली विद्युत चुम्बक होता है, जिसकी कुण्डली में दिष्ट धारा प्रवाहित करके इसको चुम्बक बनाया जाता है।
(ii) आर्मेचर: यह एक आयताकार कुण्डली होती है, जिसे कच्चे लोहे के क्रोड पर पृथक्कृत ताँबे के तार को लपेटकर बनाया जाता है। चित्र में इसे ABCD से दिखाया गया है। इस कुण्डली को ध्रुवों N व S के बीच रखा जाता है।
(iii) सी वलय: कुण्डली के तार के दोनों सिरे धातु के दो वलयों R1 तथा R2 से संयोजित होते हैं एवं आर्मेचर के साथ - साथ घूमते हैं। इनको सी वलय (Slip Rings) कहते हैं। ये परस्पर तथा धुरादण्ड से पृथक्कित होते हैं।
(iv) ब्रश: सी वलय दो कार्बन की पत्तियों को स्पर्श करते रहते हैं, जिन्हें ब्रश कहते हैं। चित्र में इन्हें B
1 व B
2 से दिखाया गया है। ये ब्रश स्थिर रहते हैं तथा इनको क्रमशः वलयों R
1 व R
2 पर दबाकर रखा जाता है। दोनों ब्रशों के बाहरी सिरे, बाहरी परिपथ में विद्युत धारा के प्रवाह को दर्शाने के लिए गैल्वेनोमीटर से संयोजित होते हैं।
कार्यविधि:
जब दो वलयों से जुड़ी धुरी को इस प्रकार घुमाया जाता है कि कुण्डली की भुजा AB ऊपर की ओर तथा भुजा CD नीचे की ओर, स्थायी चुम्बक द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र में गति करती है तो कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं को काटती है। माना कि कुण्डली. ABCD को चित्र में दिखाये अनुसार दक्षिणावर्त घुमाया जाता है, तब फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियमानुसार, इन भुजाओं में AB तथा CD दिशाओं के अनुदिश प्रेरित विद्युत धाराएँ प्रवाहित होने लगती हैं। इस प्रकार, कुण्डली में ABCD दिशा में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। यदि कुण्डली में फेरों की संख्या अधिक है तो प्रत्येक फेरे में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा परस्पर संकलित होकर कुण्डली में एक शक्तिशाली विद्युत धारा का निर्माण करती है और बाह्य परिपथ में विद्युत धारा B1 से B2 की दिशा में प्रवाहित होती है।
जैसे ही कुण्डली अपनी अर्धघूर्णन स्थिति से गुजरेगी भुजा AB नीचे की ओर तथा भुजा CD ऊपर की ओर जाने लगती है। फलस्वरूप इन दोनों भुजाओं में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा परिवर्तित हो जाती है और DCBA के अनुदिश नेट प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है। इस प्रकार अब बाह्य परिपथ में B1 से B2 की दिशा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। अतः प्रत्येक आधे घूर्णन के बाद इन भुजाओं में विद्युत धारा की ध्रुवता परिवर्तित होती रहती है। इस प्रकार की धारा ‘प्रत्यावर्ती धारा' अर्थात् ac कहलाती है तथा विद्युत उत्पन्न करने की इस युक्ति को ‘प्रत्यावर्ती विद्युत धारा जनित्र' ac जनित्र कहते हैं।
संजीव पास बुक्स ब्रशों का कार्य-विद्युत जनित्र में ताँबे की दो पत्तियाँ B1 तथा B2 सी वलयों (R1 एवं R2) से जुड़ी रहती हैं, इन्हें ब्रश कहते हैं। ये घूमने वाली कुण्डली में प्रत्येक आधे चक्कर के बाद बाह्य परिपथ में धारा की दिशा बदल देते हैं।
प्रश्न 17.
किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर:
जब विद्युन्मय तार तथा उदासीन तार परस्पर सम्पर्क में आते हैं तो परिपथ लघुपथित हो जाता है। इस स्थिति में परिपथ का प्रतिरोध अचानक शून्य हो जाता है तथा धारा का मान बहुत अधिक बढ़ जाता है।
प्रश्न 18. भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
(i) भूसंपर्क तार - यह हरे रंग के विद्युतरोधी आवरण से ढके रहने वाला एक सुरक्षा तार होता है, जो घर के निकट भूमि के भीतर बहुत गहराई पर स्थित धातु की प्लेट से संयोजित होता है। यह तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत करता है। इससे साधित्र के धात्विक आवरण में विद्युत धारा का कोई क्षरण होने पर उस साधित्र का विभव भूमि के विभव के बराबर हो जाएगा। फलस्वरूप इस साधित्र को उपयोग करने वाला व्यक्ति तीव्र विद्युत आघात से सुरक्षित बचा रहता है।
इस तार का उपयोग विशेषकर विद्युत इस्त्री, टोस्टर, मेज का पंखा, रेफ्रिजरेटर आदि धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों में सुरक्षा के उपाय के रूप में किया जाता है।
(ii) धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भू - संपर्कित करना आवश्यक होता है। इससे साधित्रों तथा उनका प्रयोग करने वालों की सुरक्षा हो जाती है। धातु के आवरणों से संयोजित भू - सम्पर्क तार विद्युत धारा के लिए अल्प प्रतिरोध का चालन पथ प्रस्तुत कर देता है। धात्विक साधित्रों का भूमि से सम्पर्क हो जाने के कारण क्षरण के समय धारा उन साधित्रों का उपयोग करने वालों के शरीर से नहीं गुजरती, जिससे वे गम्भीर झटके से बच जाते हैं।