RBSE Class 10 Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

Rajasthan Board RBSE Class 10 Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Important Questions and Answers.

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RBSE Class 10 Science Chapter 16 Important Questions प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. 
कोलिफार्म जीवाणु पाया जाता है:
(अ) मानव के यकृत में
(ब) मानव के आमाशय में 
(स) मानव के आंत्र में
(द) मानव के वृक्क में 
उत्तर:
(स) मानव के आंत्र में

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प्रश्न 2. 
सन् 1731 में जोधपुर के खेजराली गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने हेतु कितने लोगों ने बलिदान दिया था? 
(अ) 363 
(ब) 263 
(स) 463
(द) 563 
उत्तर:
(अ) 363 

प्रश्न 3. 
चिपको आन्दोलन की शुरुआत कहाँ से हुई? 
(अ) दिल्ली से
(ब) टिहरी व गढ़वाल क्षेत्र से 
(स) जयपुर से
(द) हरिद्वार से
उत्तर:
(ब) टिहरी व गढ़वाल क्षेत्र से 

प्रश्न 4. 
राजस्थान राज्य के खेजराली गाँव में खेजड़ी वृक्ष को बचाने में किस महिला द्वारा बलिदान दिया गया था?
(अ) मेधा पाटकर 
(ब) अमृता देवी विश्नोई 
(स) सुमित्रा देवी 
(द) किरन बेदी 
उत्तर:
(ब) अमृता देवी विश्नोई 

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प्रश्न 5. 
हिमाचल प्रदेश की प्राचीन जल परिवहन संरचनाएँ अथवा प्रणाली है:
(अ) कुल्ह 
(ब) कट्टा 
(स) बंधिस
(द) अहार एवं पाइनं 
उत्तर:
(अ) कुल्ह 

प्रश्न 6. 
तावा बाँध बना था:
(अ) 1970 में 
(ब) 1971 में
(स) 1972 में 
(द) 1973 में 
उत्तर:
(अ) 1970 में 

प्रश्न 7. 
निम्न में से किस नदी पर टिहरी बाँध बना है? 
(अ) नर्मदा
(ब) यमुना  
(स) सरस्वती 
(द) गंगा
उत्तर:
(द) गंगा

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
जैव विविधता के लिए उत्तरदायी जीवों के नाम बताएँ।
उत्तर:
जैव विविधता के लिए जीवों के विभिन्न स्वरूप, जैसे- जीवाणु, कवक, फर्न, पुष्पी पादप, सूत्रकृमि (निमेटोड्स), कीट, पक्षी, सरीसृप आदि उत्तरदायी होते हैं। 

प्रश्न 2. 
गंगा सफाई योजना किस वर्ष में अपनाई गई थी?
अथवा 
गंगा नदी के जल प्रदूषण को दूर करने के लिए गंगा कार्य परियोजना कब प्रारम्भ की गई थी? 
उत्तर:
वर्ष 1985 में। 

प्रश्न 3. 
गंगा सफाई योजना क्यों प्रारम्भ की गई? 
उत्तर:
1985 में गंगा सफाई योजना इसलिए प्रारंभ की गई क्योंकि गंगा के जल की गुणवत्ता बहुत कम हो गई थी। 

प्रश्न 4. 
"जैव विविधता के विशिष्ट (Hot-spots) स्थल" कौन हैं? 
उत्तर:
'वन' जैव विविधता के विशिष्ट स्थल हैं। 

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प्रश्न 5. 
IUCN का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
IUCN-प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु अन्तर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources)

प्रश्न 6. 
विश्नोई लोग किस वृक्ष के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध हैं? 
उत्तर:
खेजड़ी वृक्ष। 

प्रश्न 7. 
जैव विविधता का आधार क्या है? 
उत्तर:
जैव विविधता का आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या है। 

प्रश्न 8. 
पुनः उपयोग, पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका क्यों है?
उत्तर:
पुनः उपयोग, पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि पुनः चक्रण में कुछ ऊर्जा व्यय होती है जबकि पुनः उपयोग में किसी वस्तु का बार - बार उपयोग करते हैं।

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प्रश्न 9. 
संरक्षण का प्रारम्भ कौनसे बड़े जन्तुओं से हुआ था? 
उत्तर:
संरक्षण का प्रारम्भ बड़े. जन्तुओं जैसे कि शेर, चीता, हाथी एवं गैंडा से हुआ था। 

प्रश्न 10. 
अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार किस कार्य हेतु दिया जाता है? 
उत्तर:
अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार जीव संरक्षण हेतु दिया जाता है। 

प्रश्न 11. 
हिमालय राष्ट्रीय उद्यान के सुरक्षित क्षेत्र में किस प्रकार के वन हैं? 
उत्तर:
हिमालय राष्ट्रीय उद्यान के सुरक्षित क्षेत्र में एल्पाइन वन हैं। 

प्रश्न 12. 
जीवाश्म ईंधन के कोई दो उदाहरण दीजिए। 
उत्तर:

  1. कोयला 
  2. पेट्रोलियम। 

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प्रश्न 13. 
किन्हीं तीन वन उत्पादों का नाम लिखिए जो किसी उद्योग के आधार हैं। 
उत्तर:

  1. तेंदु पत्ती 
  2. कागज 
  3. लाख। 

प्रश्न 14. 
राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए धार्मिक अनुष्ठान का भाग क्या है? 
उत्तर:
राजस्थान के विश्नोई समुदाय के लिए वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण उनके धार्मिक अनुष्ठान का भाग बन गया है। 

प्रश्न 15. 
बड़े बाँध में जल संग्रहण के कोई दो उपयोग लिखिए। 
उत्तर:

  1. सिंचाई 
  2. विद्युत उत्पादन। 

प्रश्न 16. 
किस नहर से राजस्थान के काफी बड़े क्षेत्र में हरियाली आ गई है? 
उत्तर:
इंदिरा गाँधी नहर से राजस्थान के काफी बड़े क्षेत्र में हरियाली आ गई है। 

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प्रश्न 17. 
किस सूक्ष्म जीवाणु द्वारा गंगा का जल संदूषित होना बताया गया है? 
उत्तर:
कोलिफार्म जीवाणु द्वारा। 

प्रश्न 18. 
जल - संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
जल संभर प्रबंधन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर जोर इसलिए दिया जाता है ताकि जैव मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके।

प्रश्न 19. 
पेट्रोलियम एवं कोयला किसके अपघटन से प्राप्त होते हैं? 
उत्तर:
पेट्रोलियम एवं कोयला लाखों वर्ष पूर्व भूमि में दबे जीवों की जैव मात्रा के अपघटन से प्राप्त होते हैं। 

प्रश्न 20. 
पेट्रोलियम के संसाधन लगभग अगले कितने वर्षों तक उपलब्ध रह सकते हैं? 
उत्तर:
पेट्रोलियम के संसाधन लगभग अगले 40 वर्षों तक उपलब्ध रह सकते हैं। 

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प्रश्न 21. 
कोयला एवं पेट्रोलियम को जलाने पर उत्पन्न हानिकारक गैसों का नाम लिखिए। 
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि। 

प्रश्न 22. 
कोयले व पेट्रोलियम को अपर्याप्त वायु (ऑक्सीजन की कमी) में जलाने पर क्या होता है?
उत्तर:
कोयले व पेट्रोलियम को अपर्याप्त वायु में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनो ऑक्साइड नामक विषैली गैस बनती है।

प्रश्न 23. 
यदि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जाए तो क्या होगा?
उत्तर:
यदि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जाए तो तीव्र वैश्विक ऊष्मण होने की संभावना होगी।

प्रश्न 24. 
कोयले का संघटन बताइए। 
उत्तर:
कोयला कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर (गंधक) से बना होता है। 

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प्रश्न 25. 
संसाधन किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव की भौतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले तत्व संसाधन कहलाते हैं। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
वन प्रबंधन में लोगों की भागीदारी को उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
पश्चिम बंगाल वन विभाग ने प्रदेश के दक्षिण - पश्चिम जिलों में नष्ट हुए साल के वनों को पुनःपूरण करने की योजना बनाई थी, जो असफल हो गई थी। अतः वन विभाग ने अपनी नीति में बदलाव कर मिदनापुर के अराबाड़ी वन क्षेत्र में एक योजना प्रारम्भ की। यहाँ वन विभाग के एक दूरदर्शी अधिकारी ए.के. बनर्जी ने ग्रामीणों को अपनी योजना में शामिल किया तथा उनके सहयोग से बुरी तरह से क्षतिग्रस्त साल के वन के 1272 हैक्टेयर क्षेत्र का संरक्षण किया।

इसके बदले में निवासियों को क्षेत्र की देखभाल की जिम्मेदारी के लिए रोजगार मिला, साथ ही उन्हें वहाँ से उपज की 25 प्रतिशत के उपयोग का अधिकार भी मिला और बहुत कम मूल्य पर ईंधन के लिए लकड़ी और पशुओं को चराने की अनुमति भी दी गई। स्थानीय समुदाय की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से 1983 तक अराबाड़ी का सालवन समृद्ध हो गया तथा पहले बेकार कहे जाने वाले वन का मूल्य 12.5 करोड़ आँका गया।

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प्रश्न 2. 
जल के भौम जल के रूप में संरक्षण के कोई चार लाभ लिखिए। 
उत्तर:
भौम जल के निम्न चार लाभ हैं:

  1. यह वाष्प बनकर उड़ता नहीं, परन्तु आस - पास में फैल जाता है। 
  2. बड़े क्षेत्र में वनस्पति को नमी प्रदान करता है। 
  3. इससे मच्छरों के जनन की समस्या भी नहीं होती।
  4. भौम जल मानव एवं जन्तुओं के अपशिष्ट से झीलों, तालाबों में ठहरे पानी के विपरीत संदूषित होने से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहता है।

प्रश्न 3. 
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन का दृश्यावलोकन पर टिप्पणी लिखिए। 
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन एक कठिन कार्य है। इस पर विचार करने के लिए हमें खुले दिमाग से सभी पक्षों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना होगा। हमें यह तो मानना ही होगा कि लोग अपने हित को प्राथमिकता देने का भरपूर प्रयास करेंगे परन्तु इस वास्तविकता को लोग धीरे-धीरे स्वीकार करने लगे हैं कि कुछ व्यक्तियों के निहित स्वार्थ बहुसंख्यकों के दुःख का कारण बन सकते हैं तथा हमारे पर्यावरण का पूर्ण विनाश भी सम्भव है।

कानून, नियम एवं विनियमन से आगे हमें अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक आवश्यकताओं को सीमित करना होगा, जिससे कि विकास का लाभ सभी को एवं भावी पीढ़ियों को उपलब्ध हो सके।

प्रश्न 4.
गंगा के प्रदूषण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गंगा का प्रदूषण: गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगासागर तक 2500 किमी. तक की यात्रा करती है। इसके किनारे स्थित उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल के 100 से भी अधिक नगरों ने इसे एक नाले में बदल दिया है। इसका मुख्य कारण इन नगरों द्वारा उत्सर्जित कचरा एवं मल का इसमें प्रवाहित किया जाना है।

इसके अतिरिक्त मानव के अन्य क्रियाकलाप, जैसे- नहाना, कपड़े धोना, मृत व्यक्तियों की राख एवं शवों को बहाना आदि भी इसे प्रदूषित करते हैं। यही नहीं, उद्योगों द्वारा उत्पादित रासायनिक उत्सर्जन ने गंगा का प्रदूषण स्तर इतना बढ़ा दिया है कि इसके विषैले जल में मछलियाँ मरने लगी हैं।

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प्रश्न 5. 
'नमामि गंगे कार्यक्रम' क्या है? समझाइए।
उत्तर:
नमामि गंगे कार्यक्रम जून 2014 में केन्द्र सरकार द्वारा एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में अनुमोदित एक एकीकृत संरक्षण मिशन है। यह प्रदूषण नियंत्रण और राष्ट्रीय नदी गंगा के कायाकल्प के प्रभावी न्यूनीकरण के दो उद्देश्यों को पूरा करने के लिए शुरू किया गया था। स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन कार्यान्वयन विंग है, जिसे अक्टूबर 2016 में स्थापित किया गया।

प्रश्न 6. 
सामाजिक वानिकी क्या है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestry): वन संरक्षण के लिए जन - सहयोग हेतु एक अभिनव योजना प्रारम्भ की गई है जिसे सामाजिक वानिकी कहते हैं। इसके अन्तर्गत वृक्षों को लगाने व उनकी सुरक्षा करने के वे कार्यक्रम सम्मिलित हैं, जिनके द्वारा जलाने के लिए लकड़ी, पशुओं को आहार के लिए चारा, इमारती लकड़ी व अन्य वन उत्पाद प्राप्त किये जाते हैं।

इसमें वृक्षों को ऐसे स्थानों पर लगाया जाता है, जहाँ भूमि किसी अन्य उपयोग में न आती हो, जैसे- सड़क रेल मार्गों, व नहरों के किनारे, बंजर भूमि आदि। इस प्रकार सामाजिक वानिकी के तहत गाँवों में रहने वालों को उपर्युक्त आवश्यकताओं के अतिरिक्त व्यर्थ भूमि का सदुपयोग, पर्यावरण स्वच्छता, बेरोजगारों को रोजगार एवं कुटीर उद्योगों का विकास किया जाता है।

प्रश्न 7. 
वन्य जीवों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वन में रहने वाले जीवों (पौधे व जन्तु) को सामूहिक रूप से वन्य जीव कहते हैं। मानव के नियंत्रण और प्रभुत्व से दूर ये जीव अपने प्राकृतिक आवास स्थलों में रहते हैं। इससे स्पष्ट है कि ये जीव पालतू नहीं बनाये जा सकते हैं।

प्रश्न 8. 
पेड़ - पौधे पर्यावरण को स्वस्थ व संतुलित बनाने में क्या योगदान देते हैं?
उत्तर:
वन प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने में विशेष भूमिका निभाते हैं, जो पृथ्वी पर जीवन बनाये रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है। जैसे- 

  1. पेड़ - पौधे वायुमण्डल में CO2 व O2 का सन्तुलन बनाये रखते हैं। 
  2. भूमिगत जल के वाष्पन को रोकते हैं एवं वायुमण्डलीय आर्द्रता को बनाये रखते हैं। 
  3. भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं। 
  4. मृदा अपरदन व वर्षा के तेज जल बहाव को रोकते हैं । 
  5. पेड़ - पौधे वायुमण्डल से हानिकारक गैसों, जैसे- CO2, SO2 व नाइट्रोजन ऑक्साइड का अवशोषण कर वातावरण को स्वच्छ व सन्तुलित रखते हैं।

इस प्रकार पेड़ - पौधे पर्यावरण को स्वस्थ व संतुलित बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

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प्रश्न 9. 
हरित गृह प्रभाव क्या होता है?
उत्तर:
CO2 गैस वातावरण की अवरक्त किरणों (Infrared rays) को अवशोषित कर पुनः पृथ्वी पर परावर्तित कर देती है। इससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो जाती है अर्थात् वह गर्म हो जाती है। इस प्रक्रिया को हरित गृह प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 10. 
संपोषित विकास की संकल्पना क्या है?
उत्तर:
संपोषित विकास की संकल्पना मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं विकास को प्रोत्साहित करती है साथ ही भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है। आर्थिक विकास पर्यावरण संरक्षण से संबंधित है। अतः संपोषित विकास से जीवन के सभी आयामों में परिवर्तन शामिल है।

यह लोगों के ऊपर निर्भर है कि वे अपने चारों ओर के आर्थिक - सामाजिक एवं पर्यावरणीय स्थितियों के प्रति अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाएँ तथा प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति के संसाधनों के वर्तमान उपयोग में परिवर्तन के लिए तैयार रहें।

प्रश्न 11. 
प्राकृतिक संसाधनों के उपयोगों पर विस्तार से लिखिए। 
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग निम्न प्रकार से करना चाहिए:

  1. पर्यावरणीय स्थितियों को ध्यान में रखकर ही प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। 
  2. नवकरणीय प्राकृतिक संसाधनों का इस प्रकार उपयोग होना चाहिए, जिससे उनके पुनः प्राप्ति की सम्भावना बनी रहे।
  3. अनवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम और आवश्यकतानुसार उचित तरीके से उपयोग करना चाहिए, जिससे वे प्रकृति में लम्बे समय तक उपलब्ध रहें।
  4. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से दूसरों को हानि नहीं होनी चाहिए।

प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते समय हमें केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सोचना होगा। प्रकृति से विरासत में मिले बहुमूल्य संसाधनों को पूरी तरह समाप्त करने का हक हमें नहीं है। ये हमारी आने वाली पीढ़ियों की धरोहर हैं। अतः इनका उपयुक्त तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 12. 
वन्य जीव सप्ताह से क्या तात्पर्य है? समझाइए।
उत्तर:
वन्य जीव सप्ताह: भारत सरकार व राज्य सरकारें वन्य जीवों की विभिन्न तौर - तरीकों से सुरक्षा प्रदान करने में प्रयत्नशील हैं। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जनसमर्थन लेने और जन - आन्दोलन बनाने हेतु एक अक्टूबर से सात अक्टूबर तक प्रतिवर्ष वन्य जीव सप्ताह का आयोजन सारे राष्ट्र में किया जाता है, जिससे वन्य जीव के प्रति न केवल जनरुचि विकसित हो बल्कि विविध पक्षों को भी उजागर किया जा सके। वन्य जीव सप्ताह आयोजन के अवसर पर राज्य के समस्त चिड़ियाघरों में वन्य जीवों के जीवन का अध्ययन कराया जाता है।

प्रश्न 13. 
“वन मानव के लिए सम्पदा है" स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वन वह अनूठी सम्पदा है, जिसे प्रकृति द्वारा मानव को उपहारस्वरूप प्रदान किया गया है। इस सम्पदा में वनस्पति एवं वन्य जीव आते हैं। वन पर्यावरण सन्तुलन बनाये रखते हैं। इनसे मानव को भोज्य पदार्थ, ईंधन-लकड़ी, रेशे, फल, तेल, नील, मसाले, गोंद, औषधियाँ, चारकोल, रुद्राक्ष, मोम, लाख एवं रेशम आदि उत्पाद प्राप्त होता है।

वन भूमि की उर्वरता को बढ़ाते हैं। मृदा अपरदन व वर्षा के तेज बहाव को रोकते हैं। वन्य जीवों को आवास व भोजन उपलब्ध करवाकर उनका संरक्षण करते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि वन वास्तव में मानव के लिए एक सम्पदा है। 

प्रश्न 14: 
वन्य जीव संरक्षण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
वन्य जीव संरक्षण:
वन्य जीव व मानव प्रगति का सीधा सम्बन्ध है। अतः वन्य प्राणियों के संरक्षण की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है:

  1. पारिस्थितिक संतुलन बनाने में मुख्य भूमिका होती है। 
  2. जन्तुओं से प्राप्त होने वाले उत्पाद जैसे खाल, नख, दाँत, सींग प्राप्त होते हैं। 
  3. वैज्ञानिक शोध कार्य में सहायक। 
  4. जैव विकास की प्रक्रिया को समझने में सहायक है। 

वन्य प्राणियों के संरक्षण के उपाय:

  1. कानून, नियमों व प्रतिबन्धों द्वारा जीवों के अनावश्यक आखेट, वृक्ष - विनाश को रोक कर, प्रजननी जीवों की संख्या में वृद्धि की जावे।
  2. वन्य प्राणियों के आश्रय स्थलों को भी सुरक्षित रखना आवश्यक है। इसके लिए अधिक से अधिक जंगली जीव शरण - स्थल (अभयारण्य) तथा राष्ट्रीय जीव उद्यान एवं चिड़ियाघर बनाये जायें।
  3. प्रजननी जीवों की आबादी बढ़ाने हेतु उन्हें कृत्रिम मानव निर्मित संरक्षण दिया जावे।
  4. लुप्त हो रहे जीवों की संख्या के आँकड़े रखे जाएँ और उपयुक्त वातावरण बनाकर तथा प्रजनन करवाकर उनकी संख्या बढ़ाई जाए।
  5. वन्य प्राणी चेतना केन्द्र स्थापित किये जावें। 

प्रश्न 15. 
क्या वनों के परंपरागत उपयोग के तरीकों को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए?
अथवा 
क्या संरक्षित क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों को बलपूर्वक रोकने की प्रबंधन नीति सही है? समझाइए।
उत्तर:
विभिन्न अध्ययनों ने इस बात को स्थापित किया है कि वनों के परंपरागत उपयोग के तरीकों के विरूद्ध पूर्वाग्रह का कोई ठोस आधार नहीं है। उदाहरणतः विशाल हिमालय राष्ट्रीय उद्यान के सुरक्षित क्षेत्र में एल्पाइन वन हैं जो भेड़ों के चरागाह थे। घुमंतु चरवाहे प्रत्येक वर्ष ग्रीष्मकाल में अपनी भेड़ें घाटी से इस क्षेत्र में चराने के लिए ले जाते थे।

परंतु इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना के बाद इस परंपरा को रोक दिया गया। अब यह देखा गया कि पहले तो यह घास बहुत लंबी हो जाती है, फिर लंबाई के कारण जमीन पर गिर जाती है जिससे नयी घास की वृद्धि रुक जाती है। इसलिए संरक्षित क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों को बलपूर्वक रोकने की प्रबंधन नीति न तो सही है और ना ही लंबे समय के लिए सफल।

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प्रश्न 16. 
वर्षा जल का प्रबन्धन कैसे करना चाहिए? 
उत्तर:
वर्षा जल का प्रबन्धन निम्न प्रकार से करना चाहिए:

  1. जल की पूर्ति हेतु बरसात के पानी को संचित करना चाहिए। 
  2. प्राकृतिक झीलों, दलदली क्षेत्रों व पोखरों के मृदा भराव को रोकना चाहिए।
  3. पहाड़ी भागों व रेगिस्तानी क्षेत्रों में वर्षा जल को नहरों में भण्डारण करके वन व कृषि का विकास करना चाहिए। उदाहरण- इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना।
  4. पहाड़ों पर वर्षा जल के नियन्त्रण के लिए छोटे - छोटे बाँधों का निर्माण करवाना चाहिए।

प्रश्न 17. 
हरित गृह प्रभाव के कोई दो कारण लिखिए। 
उत्तर:
हरित गृह प्रभाव के कारण:

  1. जंगलों का दहन एवं जंगलों की कटाई के कारण वायुमण्डल में CO2 की मात्रा बढ़ रही है और यही हरित गृह प्रभाव का मुख्य कारण है।
  2. बढ़ती हुई आबादी एवं औद्योगीकरण के कारण जीवाश्म ईंधनों की अधिक मात्रा में खपत हो रही है। इससे वायुमण्डल में CO2 लगातार बढ़ रही है, जिससे पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 18. 
निम्न राज्यों की प्राचीन जल संग्रहण (Water harvesting) प्रणाली बताइए -  
(1) राजस्थान 
(2) महाराष्ट्र 
(3) जम्मू एवं कश्मीर 
(4) कर्नाटक 
(5) उत्तर प्रदेश 
(6) बिहार 
(7) हिमाचल प्रदेश 
(8) तमिलनाडु 
(9) केरल
उत्तर:

राज्य का नाम

प्राचीन जल संग्रहण प्रणाली

1. राजस्थान

(i) खादिन (Khadin)

(ii) बड़े पात्र (Tanks)

(iii)नाड़ी (Nadi)

2. महाराष्ट्र

(i) बंधारस (Bandharas)

(ii) ताल

3. जम्मू एवं कश्मीर

(i) तालाब (Ponds)

(ii) कुल (Kul)

4. कर्नाटक

 कट्टा (Kattas)

5. उत्तर प्रदेश

 बंधिस (Bundhis)

6. बिहार

(i) अहार (Ahar)

(ii) पाइन (Pyncs)

7. हिमाचल प्रदेश

7. कुल्ह (Kulh)

8. तमिलनाडु

8. एरिस (Tank)

9. केरल

9. सुरंगम


प्रश्न 19. 
कोयला एवं पेट्रोलियम संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करने की आवश्यकता है। क्यों?
उत्तर:
कोयला एवं पेट्रोलियम जैव मात्रा से बनते हैं, जिनकी मात्रा सीमित है। यदि इन्हें तीव्र गति से उपयोग में लिया गया तो ये शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगें। इसके अतिरिक्त इनमें कार्बन के अतिरिक्त हाइड्रोजन, नाइट्रोजन एवं सल्फर (गंधक) भी होते हैं। जब इन्हें जलाया जाता है तो कार्बन डाइऑक्साइड, जल, नाइट्रोजन के ऑक्साइड तथा सल्फर के ऑक्साइड बनते हैं। अपर्याप्त वायु (ऑक्सीजन) में जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड के स्थान पर कार्बन मोनोऑक्साइड बनती है।

इन उत्पादों में से नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइड तथा कार्बन मोनोऑक्साइड विषैली गैसें हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड एक ग्रीन हाउस गैस है। कोयला एवं पेट्रोलियम कार्बन के विशाल भण्डार हैं, यदि इनकी सम्पूर्ण मात्रा का कार्बन जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो गया तो वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा अत्यधिक हो जायेगी, जिससे तीव्र वैश्विक उष्मण होने की सम्भावना है। अतः इन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग की आवश्यकता है।

प्रश्न 20. 
"वाटरमैन' के नाम से किसे जाना जाता है? इनके योगदान के बारे में बताइए।
उत्तर:
डॉ. राजेन्द्र सिंह को भारत के वाटरमैन के नाम से जाना जाता है। इन्होंने पारंपरिक प्रौद्योगिकी द्वारा देश के सबसे शुष्क क्षेत्र के सूखाग्रस्त गाँवों के हजारों ग्रामीणों की जिंदगी बदल दी। दो दशकों के प्रयास के बाद डॉ. राजेन्द्र सिंह ने राजस्थान में पानी इकट्ठा करने के लिए 8600 जोहेड और अन्य संरचनाओं का निर्माण किया तथा राज्य भर के 1000 गाँवों में पानी वापस लाया गया। 2015 में इन्हें स्टॉकहोम पुरस्कार भी दिया गया।

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प्रश्न 21. 
कुल्ह किसे कहते हैं? यह प्रणाली किस राज्य में प्रचलित है एवं इसके प्रबंधन का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कुल्ह:
हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में चार सौ वर्ष पूर्व नहर सिंचाई की स्थानीय प्रणाली का विकास हुआ, इन्हें कुल्ह कहा जाता है । झरनों से बहने वाले जल को मानव निर्मित छोटी - छोटी नालियों से पहाड़ी पर स्थित निचले गाँवों तक ले जाया जाता है। इन कुल्ह से प्राप्त जल का प्रबंधन क्षेत्र के सभी गाँवों की सहमति से किया जाता था। इस व्यवस्था में कृषि के मौसम में जल सबसे पहले दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे।

कुल्ह की देखभाल एवं प्रबंधन के लिए दो अथवा तीन लोग रखे जाते थे जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इन कुल्ह से जल का भूमि में अंतःस्रवण भी होता रहता था, जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता था। सरकार द्वारा इन कुल्ह के अधिग्रहण के बाद इनमें से अधिकतर निष्क्रिय हो गए तथा जल के वितरण की आपस की भागीदारी की पहले जैसी व्यवस्था समाप्त हो गई।

प्रश्न 22. 
बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के क्या विकल्प हो सकते हैं?
उत्तर:
प्राचीनकालीन जल संरक्षण प्रणालियाँ बाँध जैसी बड़ी परियोजनाओं का विकल्प बन सकती हैं। जल संरक्षण के ऐसे सैंकड़ों तरीके हैं जिनके द्वारा धरती पर पड़ने वाली प्रत्येक बूंद का संरक्षण किया जा सके। जैसे छोटे - छोटे गड्ढे खोदना, झीलों का निर्माण, साधारण जल संभर व्यवस्था की स्थापना, मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर के संग्राहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्र करना। इससे भूजल स्तर बढ़ जाता है तथा नदी भी पुनः जीवित हो जाती है। 

प्रश्न 23. 
इंदिरा गाँधी नहर के जल प्रबंधन में क्या खामियाँ रहीं? समझाइए।
उत्तर:
इंदिरा गाँधी नहर से राजस्थान के काफी बड़े क्षेत्र में हरियाली आ गई है। परन्तु जल के खराब प्रबंधन के कारण मात्र कुछ व्यक्तियों द्वारा लाभ उठाने के कारण जल प्रबंधन के लाभ से बहुत से लोग वंचित रह गए हैं।

जल का समान वितरण नहीं है, अतः जल स्रोत के निकट रहने वाले व्यक्ति गन्ना एवं धान जैसी अधिक जल खपत वाली फसल उगा लेते हैं जबकि दूर के लोगों को जल मिल ही नहीं पाता। उन व्यक्तियों की व्यथा और भी बढ़ जाती है तथा असंतोष होता है जबकि उन व्यक्तियों को जिन्हें बाँध एवं नहर बनाते समय विस्थापित किया और उस समय किए हुए वायदे भी पूरे नहीं किए गए।

प्रश्न 24. 
अंग्रेजों ने वनों का निर्ममता से किस प्रकार दोहन किया एवं स्थानीय लोगों की प्रबंधन में भागीदारी न होने के कारण किस प्रकार से जैव विविधता नष्ट हो गई? समझाइए।
उत्तर:
अंग्रेजों ने न केवल वनों पर आधिपत्य जमाया वरन् अपने स्वार्थ के लिए उनका निर्ममता से दोहन भी किया। यहाँ के मूल निवासियों को एक सीमित क्षेत्र में रहने के लिए मजबूर किया गया तथा वन संसाधनों का किसी सीमा तक अत्यधिक दोहन भी प्रारम्भ हो गया।

स्वतन्त्रता के बाद वन विभाग ने अंग्रेजों से वनों का नियंत्रण तो अपने हाथ में ले लिया, परन्तु प्रबंधन व्यवहार में स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं एवं ज्ञान की उपेक्षा होती रही। अतः वनों के बहुत बड़े क्षेत्र एक ही प्रकार के वृक्षों जैसे कि पाइन (चीड़), टीक अथवा यूक्लिप्टस के वनों में परिवर्तित हो गए।

इन वृक्षों को उगाने के लिए सर्वप्रथम सारे क्षेत्र से अन्य सभी पौधों को हटा दिया गया, जिससे क्षेत्र की जैव विविधता बड़े स्तर पर नष्ट हो गई। यही नहीं, स्थानीय लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं जैसे कि पशुओं के लिए चारा, औषधि हेतु वनस्पति, फल एवं नट इत्यादि की आपूर्ति भी नहीं हो सकी। इस प्रकार के रोपण से उद्योगों को लाभ मिला जो वन विभाग के लिए भी राजस्व का मुख्य स्रोत बन गया। 

प्रश्न 25. 
प्राचीन जल संग्रहण तकनीकों से क्या लाभ हो सकता है?
उत्तर:
प्राचीन जल संग्रहण तकनीकें, स्थानीय होती हैं तथा इनका लाभ भी स्थानीय / सीमित क्षेत्र को होता है। स्थानीय निवासियों को जल - संरक्षण का नियन्त्रण देने से इन संसाधनों के कुशल प्रबंधन से इनका अतिदोहन कम अथवा पूर्णतः समाप्त हो सकता है।

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प्रश्न 26. 
जल - संभर प्रबन्धन क्या है? इसके लाभ बताइए।
उत्तर:
जल - संभर प्रबन्धन - जल:
संभर प्रबन्धन में मिट्टी एवं जल संरक्षण पर बल दिया जाता है, जिससे कि जैव - मात्रा उत्पादन में वृद्धि हो सके। इसका प्रमुख उद्देश्य भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों का विकास, द्वितीयक संसाधन पौधों एवं जन्तुओं का उत्पादन इस प्रकार करना है जिससे पारिस्थितिक असन्तुलन पैदा न हो। 

लाभ:
जल - संभर प्रबन्धन न केवल जल - संभर समुदाय का उत्पादन एवं आय बढ़ाता है वरन् सूखे एवं बाढ़ को भी शान्त करता है। यह निचले बाँधों एवं जलाशयों का सेवाकाल भी बढ़ाता है । साधारण जल - संभर व्यवस्था की स्थापना, मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर से संग्राहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्रित करना। इससे भूजल स्तर बढ़ जाता है तथा नदी भी पुनः जीवित हो जाती है।

प्रश्न 27. 
खादिन क्या है? यह पर्यावरण संरक्षण से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
खादिन जल संग्रहण की पारम्परिक विधि है, जो भारत के राजस्थान राज्य में कृषि के उपयोग में लाई जाती है। खादिन विधि द्वारा जल संग्रहण से सूखे की समस्या पर काबू पाया जा सकता है, क्योंकि इस विधि के द्वारा पानी की बूंद - बूंद का संरक्षण किया जाता है। इससे भू - जल स्तर बढ़ जाता है।

वस्तुतः खादिन ढालू खेत के निचले भाग में निर्मित काफी लम्बा मिट्टी का बना तटबंध होता है। आवाह क्षेत्र में जल ढलानों पर नीचे की ओर बहता है और बंध द्वारा रुककर जलाशय बना लेता है। एकत्र जल की कुछ मात्रा को कुएं बनाकर भूमि में प्रवेश करा दिया जाता है। इन जलाशयों के सूखने पर भी इनमें काफी नमी होती है, जहाँ फिर कृषि की जाती है।

प्रश्न 28. 
जल संरक्षण के किन्हीं चार प्राचीनकालीन तरीकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जल संरक्षण हेतु छोटे - छोटे तालाब खोदना, नदियों के रास्ते में छोटे-छोटे मिट्टी के बाँध बनाना, घर की छतों से जल को वाटर टैंक में एकत्र करना, झीलों का निर्माण करके भू - जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है। जल संरक्षण के प्राचीनकालीन तरीके निम्न प्रकार हैं:

  1. हिमाचल प्रदेश में कुल्ह 
  2. राजस्थान में खादिन 
  3. तमिलनाडु में एरिस 
  4. महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल। 

प्रश्न 29. 
कोलिफार्म से आप क्या समझते हैं?
अथवा 
जल में कोलिफार्म जीवाणु की उपस्थिति क्या संकेत देती है?
उत्तर:
कोलीफार्म जीवाणु का एक वर्ग है, जो मानव की आंत्र में पाया जाता है। जल में इसकी उपस्थिति, इस रोगजन्य सूक्ष्म जीवाणु द्वारा जल के संदूषित होने को बताता है।

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प्रश्न 30. 
वन्य संपदा की सुरक्षा के लिए कौन - कौन से उपाय हैं? 
उत्तर:
वन्य संपदा की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय हैं:

  1. वृक्षों को काटने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।
  2. वनों से केवल वे ही वृक्ष काटे जाएँ, जो सूख गए हैं या जिन्हें कोई गम्भीर बीमारी लग गई हो और उनके स्थान पर नये वृक्ष लगाए जाने चाहिए।
  3. पर्यावरण के संरक्षण से सम्बन्धित जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। 

प्रश्न 31. 
ऐसे तीन कार्य लिखें, जिनसे आप प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं। 
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए हम निम्न तीन कार्य करेंगे:

  1. कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) गैस का उत्सर्जन कम करना। 
  2. जल संसाधनों को प्रदूषित होने से बचाना।
  3. वनों का संरक्षण करना। वन संरक्षण करने से वायुमण्डल में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का संतुलन बना रहता है।

प्रश्न 32. 
बड़े बाँधों के निर्माण से उत्पन्न समस्याओं का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर:
बड़े बाँधों के निर्माण से होने वाली समस्याएँ निम्न प्रकार से हैं:

  1. सामाजिक समस्याएँ, क्योंकि इनसे बड़ी मात्रा में किसान और आदिवासी विस्थापित होते हैं और इन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता।
  2. पर्यावरणीय समस्याएँ, क्योंकि इनसे बड़े स्तर पर विनाश होता है और जैव विविधता की क्षति होती है।
  3. आर्थिक समस्याएँ, क्योंकि इनमें जनता का बहुत अधिक धन लगता है और उस अनुपात में लाभ अपेक्षित नहीं हैं।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
प्राचीन भारत में जल प्रबंधन (Water Management) किस प्रकार किया जाता था? बाद में इसमें क्या परिवर्तन आये और उनका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
बाँध, जलाशय एवं नहरों का उपयोग भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सिंचाई के लिए प्राचीन समय से किया जाता रहा है। पहले इन तकनीकों का प्रयोग स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता था तथा स्थानीय निवासी उसका प्रबंधन कृषि एवं दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करते थे जिससे जल पूरे वर्ष उपलब्ध रह सके।

इस भंडारित जल का नियंत्रण भली प्रकार से किया जाता था तथा जल की उपलब्धता और सदियों के अनुभव के आधार पर इष्टतम फसल प्रतिरूप अपनाए जाते थे। सिंचाई के इन संसाधनों का प्रबंधन भी स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता था।

अंग्रेजों ने भारत आकर अन्य बातों के साथ-साथ इस पद्धति को भी बदल दिया। बड़ी परियोजनाओं जैसे कि विशाल बाँध तथा दूर तक जाने वाली बड़ी-बड़ी नहरों की सर्वप्रथम संकल्पना कर उन्हें क्रियान्वित करने का कार्य भी अंग्रेजों द्वारा ही किया गया जिसे हमारे स्वतंत्र होने पर हमारी सरकारों ने भी पूरे जोश के साथ अपनाया।

इस विशाल परियोजनाओं से सिंचाई के स्थानीय तरीके उपेक्षित होते गए तथा सरकार धीरे - धीरे इनका प्रबंधन एवं प्रशासन अपने हाथ में लेती चली गई जिससे जल के स्थानीय स्रोतों पर स्थानीय निवासियों का नियंत्रण समाप्त हो गया।

प्रश्न 2. 
प्राचीन जल संरक्षण प्रणालियों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन जल संरक्षण प्रणालियाँ: 
जल संरक्षण की प्राचीन प्रणालियाँ बहुत उपयोगी हैं । यद्यपि पिछले कुछ वर्षों में इन्हें भुला दिया गया था तथापि अब इनका महत्त्व पुनः उजागर होने लगा है। अनेक संगठन प्राचीनकालीन जल संरक्षण प्रणालियों को पुनर्जीवित करने में लगे हैं जो बाँध जैसी बड़ी परियोजनाओं का विकल्प बन सकती हैं।

इन समुदायों ने जल संरक्षण के ऐसे सैकड़ों तरीके विकसित किए हैं जिनके द्वारा धरती पर पड़ने वाली प्रत्येक बूंद का संरक्षण किया जा सके, जैसे- छोटे - छोटे गड्ढे खोदना, झीलों का निर्माण, साधारण जल - संभर व्यवस्था की स्थापना, मिट्टी के छोटे बाँध बनाना, रेत तथा चूने के पत्थर के संग्राहक बनाना तथा घर की छतों से जल एकत्र करना।

इससे भूजल स्तर बढ़ जाता है तथा नदी भी पुन: जीवित हो जाती है। जल संग्रहण (Water harvesting) भारत में बहुत पुरानी संकल्पना है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में अहार तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस (Tank), केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा आदि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं।
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जल संग्रहण तकनीक स्थानीय होती है तथा इसका लाभ भी स्थानीय / सीमित क्षेत्र को होता है। स्थानीय निवासियों को जल संरक्षण का नियंत्रण देने से इन संसाधनों के अकुशल प्रबंधन एवं अतिदोहन कम होते हैं अथवा पूर्णतः समाप्त हो सकते हैं।

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प्रश्न 3. 
चिपको आन्दोलन क्या है? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
चिपको आन्दोलन:
यह आन्दोलन हिमालय की ऊँची पर्वत श्रृंखला में गढ़वाल के रेनी नामक गाँव में एक घटना से 1970 के प्रारम्भिक दशक में हुआ था। यह आन्दोलन स्थानीय निवासियों को वनों से अलग करने की नीति का ही परिणाम था यह विवाद लकड़ी के ठेकेदार एवं स्थानीय लोगों के बीच प्रारम्भ हुआ क्योंकि गाँव के समीप के वृक्ष काटने का अधिकार उसे दे दिया गया था।

एक निश्चित दिन ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने के लिए आए जबकि वहाँ के निवासी पुरुष वहाँ नहीं थे। बिना किसी डर के वहाँ की महिलाएँ फौरन वहाँ पहुँच गईं तथा उन्होंने पेड़ों को अपनी बाँहों में भरकर (चिपक कर) ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोका । अंततः ठेकेदार को अपना काम बन्द करना पड़ा।

प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण की इस प्रतियोगिता में पुनः पूर्ति होने वाले इन संसाधनों का संरक्षण अंतर्निहित है। लकड़ी के ठेकेदार द्वारा उस क्षेत्र के सारे वृक्षों को काट गिरा दिया जाता तो वह क्षेत्र हमेशा के लिए वृक्षहीन हो जाता, जिसके कारण पर्यावरण बिगड़ जाता, वर्षा के समय बाढ़ आना, भूरखलन, भूस्खलन के कारण जनहानि के साथसाथ मार्ग का अवरुद्ध होना आदि समस्याएँ बढ़ जातीं।

स्थानीय समुदाय के लोग वृक्षों के ऊपर चढ़कर कुछ शाखाएँ एवं पत्तियाँ ही काटते हैं जिसकी समय के साथसाथ पुनः पूर्ति भी होती रहती है। चिपको आन्दोलन बहुत तेजी से बहुत से समुदायों में फैल गया एवं जनसंचार ने भी इसमें योगदान दिया तथा सरकार को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि वन किसके हैं तथा वन संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए प्राथमिकता तय करने के लिए पुनर्विचार पर मजबूर कर दिया।

अनुभव ने लोगों को सिखा दिया कि वनों के विनाश से केवल वन की उपलब्धता ही प्रभावित नहीं होती वरन् मृदा की गुणवत्ता एवं जल स्रोत भी प्रभावित होते हैं । स्थानीय लोगों की भागीदारी से निश्चित रूप से वनों के प्रबंधन की दक्षता बढ़ेगी।

प्रश्न 4. 
पर्यावरण को बचाने के लिए पाँच प्रकार के R के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिए पाँच प्रकार के 'R' अर्थात् इनकार (Refusc), कम उपयोग (Reduce), पुनः उपयोग (Rcuse), पुनः प्रयोजन (Repurpose) और पुनः चक्रण (Recycle) का सिद्धान्त अपना कर पर्यावरण को प्रभावी ढंग से संरक्षित किया जा सकता है:

1. इनकार (Refuse):
इसका अर्थ है कि जिन वस्तुओं की हमें आवश्यकता नहीं है, उन्हें लेने से इनकार करना। उन उत्पादों को खरीदने से इनकार करना चाहिए जो हमें, हमारे परिवार और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जैसे- प्लास्टिक के थैलों को लेने से इनकार करना।

2. कम उपयोग (Reduce):  
इसका अर्थ है कि कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना। बिजली के पंखे, बल्ब, टेलीविजन आदि की आवश्यकता न होने पर स्विच बन्द करके बिजली की बचत की जा सकती है। टपकने वाले नल की मरम्मत करके जल की बचत कर सकते हैं। आहार को अनावश्यक व्यर्थ होने से बचाना।

3. पुनः चक्रण (Recycle):
 इसका अर्थ है कि हमें प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ एवं ऐसे ही पदार्थों का पुनः चक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ तैयार करनी चाहिए। जब तक अतिआवश्यक नहीं हो, इनका नया उत्पादन / संश्लेषण विवेकपूर्ण नहीं है। इनके पुनः चक्रण के लिए पहले हमें अपद्रव्यों को अलग करना चाहिए, जिससे कि पुनः चक्रण योग्य वस्तुएँ दूसरे कचरे के साथ भराव क्षेत्र में न फेंक दी जाएँ।

4. पुनः उपयोग (Reuse):
यह पुनः चक्रण से भी अच्छा तरीका है क्योंकि पुनः चक्रण में कुछ ऊर्जा अवश्य व्यय होती है। पुनः उपयोग में वस्तु का बार - बार उपयोग करते हैं। जैसे - लिफाफों को फेंकने की अपेक्षा फिर से उपयोग में लिया जा सकता है। विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ आई प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे आदि का उपयोग रसोईघर में वस्तुओं को रखने के लिए किया जा सकता है।

5. पुनः प्रयोजन (Repurpose):  
इसका अर्थ यह है कि जब कोई वस्तु जिस उपयोग के लिए बनी है यदि उस उपयोग में नहीं लाई जा सकती है तो उसे किसी अन्य उपयोगी कार्य के लिए प्रयुक्त करना। उदाहरण के लिए टूटे - फूटे चीनी मिट्टी के बर्तनों में पौधे उगाना।

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प्रश्न 5. 
“हमें संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता है।" समझाइए। 
उत्तर:
संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता: 
हमें संसाधनों के प्रबंधन की बहुत आवश्यकता है क्योंकि केवल सड़कें एवं इमारतें ही नहीं वरन् वे सारी वस्तुएँ जिनका हम उपयोग करते हैं, जैसे- भोजन, कपड़े, पुस्तकें, फर्नीचर, औजार, वाहन आदि सभी हमें पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होती हैं। हमें केवल एक ही वस्तु पृथ्वी के बाहर से प्राप्त होती है, वह है ऊर्जा, जो हमें सूर्य से प्राप्त होती है।

परन्तु यह ऊर्जा भी हमें पृथ्वी पर उपस्थित जीवों के द्वारा प्रक्रमों से तथा विभिन्न भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रमों द्वारा ही प्राप्त होती है। अतः हमें अपने संसाधनों की सावधानीपूर्वक अर्थात् विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करने की आवश्यकता है क्योंकि ये संसाधन सीमित हैं। स्वास्थ्य - सेवाओं में सुधार के कारण हमारी जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण सभी संसाधनों की मांग भी कई गुना तेजी से बढ़ी है। 

प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते समय दीर्घकालिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना होगा कि ये अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सकें। संसाधनों के प्रबंधन में इस बात को भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इनका वितरण सभी वर्गों में समान रूप से हो, न कि कुछ अमीर और शक्तिशाली लोगों को इनका लाभ मिले।

संसाधनों का दोहन करते समय हम पर्यावरण को क्षति भी पहुंचाते हैं। उदाहरण के लिए, खनन से प्रदूषण होता है, क्योंकि धातु के निष्कर्षण के साथ - साथ बड़ी मात्रा में धातुमल भी निकलता है। अतः संपोषित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान की भी व्यवस्था होनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
गंगा सफाई योजना क्या है?
उत्तर:
गंगा सफाई योजना:
गंगा हिमालय में स्थित अपने उदगम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में स्थित गंगा सागर तक लगभग 2500 किमी. तक की यात्रा करती है। यह विभिन्न राज्यों के सौ से अधिक नगरों से होकर गुजरती है। इन नगरों एवं कस्बों का वाहित मल एवं औद्योगिक अपशिष्ट गंगा नदी में डालने से यह एक नाले में बदल गई है। गंगा नदी का प्रदूषण मुख्य रूप से अग्र प्रकार का है:

  1. औद्यौगिक अपशिष्ट। 
  2. अपचारित वाहित मल। 
  3. मृत शवों को गंगा में प्रवाहित करना, शवों को इसके तट पर जलाना एवं अस्थि विसर्जन करना। 
  4. व्यक्तियों एवं पशुओं का इसमें नहाना।  
  5. नदी में मूर्ति विसर्जन एवं घरेलू अपमार्जकों का प्रवाहित करना। 

इन कारणों के कारण गंगा नदी के जल की गुणवत्ता बहुत कम हो गई है। इसलिए वर्ष 1985 में गंगा को पुनः उसके प्राकृतिक रूप में लाने के लिए गंगा सफाई योजना को प्रारम्भ किया गया। इस योजना के लिए करोड़ों रुपए की धनराशि आवंटित की गई है।

 

Bhagya
Last Updated on June 3, 2022, 3:27 p.m.
Published May 9, 2022