RBSE Class 8 Social Science Notes Civics Chapter 5 न्यायपालिका

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RBSE Class 8 Social Science Notes Civics Chapter 5 न्यायपालिका

→  कानून के शासन को लागू करने के लिए हमारे पास एक न्याय व्यवस्था है। इस व्यवस्था में बहुत-सारी अदालतें हैं जहां नागरिक न्याय के लिए जा सकते हैं। न्यायपालिका भारतीय लोकतन्त्र की व्यवस्था बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है क्योंकि यह स्वतन्त्र है।

→ न्यायपालिका की क्या भूमिका है?
'न्यायपालिका के कार्यों को मोटे तौर पर निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है

  • विवादों का निपटारा करना,
  • न्यायिक समीक्षा करना तथा
  • कानून की रक्षा करना तथा मौलिक अधिकारों को क्रियान्वित करना।

→ स्वतन्त्र न्यायपालिका क्या होती है?
हमारे संविधान में न्यायपालिका को पूरी तरह स्वतन्त्र रखा गया है क्योंकि विधायिका और कार्यपालिका न्यायपालिका के कार्य में दखल नहीं दे सकतीं। अदालतें सरकार के अधीन नहीं हैं और न ही वे सरकार की ओर से कार्य करती हैं। दूसरे, उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार की अन्य शाखाओं का कोई दखल नहीं है। एक बार नियुक्त हो जाने के बाद किसी न्यायाधीश को हटाना बहुत मुश्किल होता है।

RBSE Class 8 Social Science Notes Civics Chapter 5 न्यायपालिका

→ भारत में अदालतों की संरचना कैसी है? 
निचली अदालत से ऊपरी अदालत तक भारतीय न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी लगती है। सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय है। उसके नीचे राज्यों के उच्च न्यायालय हैं और सबसे निचले स्तर पर अधीनस्थ न्यायालय या जिला अदालतें हैं। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले देश की बाकी सारी अदालतों को मानने होते हैं। इस प्रकार भारत में एकीकृत न्यायिक व्यवस्था है। अगर किसी व्यक्ति को यह लगता है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया फैसला सही नहीं है तो वह उससे ऊपर की अदालत में अपील कर.सकता है।

→ विधि व्यवस्था की शाखाएँ कौनसी हैं? विधि व्यवस्था की प्रमुख शाखाएँ हैं

  • फौजदारी कानून और
  • दीवानी कानून। 

→ क्या हर व्यक्ति अदालत की शरण में जा सकता है?
सिद्धान्ततः भारत के सभी नागरिक देश के न्यायालयों की शरण में जा सकते हैं अर्थात् प्रत्येक नागरिक को अदालत के माध्यम से न्याय माँगने का अधिकार है। यद्यपि अदालत की सेवाएँ सबके लिए उपलब्ध हैं, लेकिन गरीबों के लिए निर्धनता और अशिक्षा के कारण अदालत में जाना काफी मुश्किल होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 1980 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने जनहित याचिका की व्यवस्था विकसित की है। जनहित याचिकाओं के माध्यम से बहुत सारे मुद्दों पर लोगों को न्याय दिलाया गया है। इस प्रकार जनहित याचिकाओं के माध्यम से आम आदमी की अदालत तक पहुँच हुई है। इसके बावजूद न्याय में देरी की समस्या अभी भी बनी हई है।

Prasanna
Last Updated on June 6, 2022, 3:45 p.m.
Published June 6, 2022